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भाग २३९ -बंबई -बुधवार

वॉर २
घबड़ाहट, परेशानी और मीनल

३४,४५,263
सुबह से पहली बार मीनल को घबड़ाते देखा, लेकिन परेशान चेहरे पर उसने मुस्कान चिपकायी और अनु और सुब्बू के साथ मिल के बियर गटकने और बीयर लोगों को लेने की तैयारी में लग गयी,
मीनल ने मुझसे बोला था की स्साले अबकी और कस के हमला करेंगे, देखना गांड में मलहम वलहम लगा के घंटे डेढ़ घंटे में फिर से हाजिर होंगे, अपनी माँ का दूध पी के, लेकिन
ये जो फोन आ गया वो लग रहा था की जीती बाजी पलट देगा, क्योंकि तीन बातें एक साथ हमारे खिलाफ चली गयी थीं, जिनमे से एक भी बाजी पलटने के लिए काफी था,
पहली बात, मिस्टर बुल का खुद का फोन, जो जल्दी नहीं होता था, उसके चमचे ही बड़ी मुश्किल से लिफ्ट देते थे तो ये तो,
इसका मतलब बात सचमुच में बहुत सीरियस थी, दूसरे ये बात अगर उन्हें पता चली थी तो हमारे खिलाफ वालों को भी पता चल गयी होगी और जो अभी अपने घाव पर मलहम लगा रहे थे, वो तो जोश से उछल रहे होंगे ,
दूसरी बात थी, शेयर मार्केट का सिद्धांत, ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं।
तो मिस्टर बुल, जो शेयर में उछाल चाहते थे और जिन्हे तगड़ा फायदा होता, वो भी घाटे का सौदा क्यों करते। अगर उन्हें लगता की हम पीछे हट रहे हैं और शाम तक कम्पनी अगर हमारे हाथ से निकल जायेगी तो वो नए लोगों से पंगा क्यों लेंगे ?
और तीसरी बात थी, कोई कितना भी बड़ा गुंडा क्यों न हो, अपनी गली का, अपने शहर का, लेकिन सरकार से बड़ा गुंडा कोई नहीं होता।
और सुबह से इंडिकेशन था की सरकार हमारे साथ थी, सुबह सुबह बीयर मार्केट के उस्तादों पर इंफोर्स्मेंट डायरेक्ट्रोरेट का छापा, सेबी का उनकी ट्रेडिंग बंद करना, बैंको का उनका अकाउंट फ्रीज करना और गवर्नमेंट इन्वेस्टर्स का हमारी कम्पनी में पैसा लगाना, मार्केट में बार बार यही मेसेज जा रहा था और जो किनारे पे बैठे, नदी की धार पर देख रहे थे, उनके लिए ये बहुत बड़ा सिग्नल था।
पर अगर सबसे बड़ा इन्वेस्टर ही हाथ खींच लेगा तो बड़ा मुश्किल था,...
और उसकी देखा देखी और लोग भी,
और अकेले मेरे और मीनल के बस का नहीं था.
हम लोगों ने धारा मोड़ दी थी, डूबती नाव को तेरा दिया था, किनारे की ओर मोड़ दिया था, हवा का रुख बदला था, लेकिन किनारे तक पहुँचाना अकेले हमारे बस का नहीं था।
पर कहते हैं न सांप के काटे का भी मंतर होता है तो इस मामले में भी कुछ काट तो होगी ही और वो बात और काट दोनों मैंने सोच ली थी और इस समय भले ही न्यूयार्क में रात हो, लेकिन अभी तुरंत ही वहां कुछ होना होगा, इसलिए उन्होंने ग्लोबल हेडक्वार्टर को आगाह किया था और दुबारा सीधे एक बार फिर अपने स्ट्रेटजी वाले को फोन किया था, कुछ भी करके, कुछ भी हो, अगर कम्पनी को बचाना हो तो,....
पर अब सब कुछ वहां के हाथ में था
और यहाँ मीनल जो कुछ कर सकती थी, कर रही थी।
अभी ट्रेडिंग का काम उसने शिब्बू के हवाले कर दिया था, एक आँख से वो बोर्ड्स को देख रही थी और दूसरी ओर अनुराधा से मिल के फोन पे बात कर कर के अपनी टीम की हिम्मत बढ़ा रही थी, रिसोर्सेज इकठ्ठा कर रही थी।
एकदम जैसा मीनल ने बोला था,
ठीक एक घंटे बाद, हमला शुरू हुआ, लेकिन डेढ़ घंटे में वो तूफ़ान में बदल गया, जैसे सुनामी आ गयी हो, वो भंवर में फंस गए हो,
पहले हमारी सपोर्टिंग इंडस्ट्रीज, ब्रोकरेज फर्म पे हमला हुआ, और पंद्रह मिनट में लग गया की उन्हें बचाना अब मुश्किल होगा,
फिर ढेर सारी नयी नयी छोटी कम्पनियां, इन्वेस्टर्स, अब हमारे शेयर को बेच रहे थे, और साफ़ लग रहा था की वो घाटा सह के बेच रहे थे और सिर्फ मार्केट गिराने के लिए बेच रहे थे। किसी ने उन्हें फंड किया था।
मीनल ने हाथ रोक दिया और सब को बोल दिया,
अभी तेल देखो, तेल की धार देखो, और बस पंदह मिनट के बाद सारे बिकवाली बाले एक साथ मैदान में आ गए, और न सिर्फ उनकी कम्पनी के बल्कि उन सेक्टर्स के काफी कम्पनी के शेयर बेचने लगे
मीनल ने कुछ सेलेक्टिव बायिंग शुरू की पर लग रहा था जैसे तूफ़ान में कागज़ का जहाज उड़ाए,
लग रहा था उन लोगों ने अपना पूरा वार चेस्ट खोल दिया है
डेढ़ घंटे में बाजी पलट गयी थी, एकदम हमारे खिलाफ।
मीनल भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
मीनल ने अनीस की ओर देखा, और अनीस ने एक बियर का कैन उछाल दिया, बियर आधा पी कर के मीनल ने कैन मुझे पकड़ा दिया, गरियाते बोली,
" स्साले अबकी लगता है शिलाजीत खा के आये हैं, लेकिन चल यार आज तेरा साथ है तो बिना स्सालों की माँ चोदे छोड़ना नहीं है "
और तभी मेरा फोन घनघनाया, वही स्पेशल वाला, नान स्मार्ट फोन, जिसका नंबर कुछ लोगों के ही पास था, एल आई सी से,.....
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