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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

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komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

भाग १०२ - सुगना और उसके ससुर -सूरजबली सिंह पृष्ठ १०७३

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motaalund

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एकदम सही कहा आपने

जब अंदर तक खुदाई होती है

गितवा को उसकी भौजाई ने यही तो समझाया था,



अब गीता , गज़ भर उछली,.... भाभी ये क्या , मजाक ठीक है ,... लेकिन सच में ,...वो मेरा भाई है सगा भाई,... उसके साथ '

भाभी ने अब कस के उसके गाल चूमे और बोलीं,

' बिन्नो , डोली पे चढ़ के चुदवाने जिस के घर जायेगी , सज धज के लौंड़ा खाने सुहाग सेज पर बैठेगी वो भी तो किसी का भाई होगा , और जिसे तेरा भाई लाएगा चोदने वो भी तो किसी की बहन होगी,..."



गीता सोच में पड़ गयी , ये बात तो भाभी की एकदम सही है , और जब भाभी को लगा चिड़िया बस दाने चुगने वाली है , उन्होंने प्यार दुलार से गीता की ठुड्डी पकड़ के, आँखों में आँखे डाल के कहा,

" सुन बिन्नो , भाई से खास कर सगे भाई से करवाने में तीन जबरदस्त फायदे हैं , तू कहे तो बताऊँ, जबरदस्ती नहीं है,... बुरा माने तो '

गीता हंस के बोली , बताइये न भाभी , बुरा क्यों मानूंगी ,... "



और भाभी ने गिनवाना शुरू कर दिया ,


' देख पहला फायदा ,जगह का,...

किसी और से मानले तूने टांका भिड़ा लिया , गाँव का , पड़ोस के स्कूल का लौंडा ,... मिलेगी कहाँ,... गन्ने का खेत , अरहर,... और वो भी बारहों महीने तो रहते नहीं , ... फिर कब कौन सा बहाना बना के जायेगी रोज रोज,... और तुम दोनों के पास टाइम ,...

घर में सगे भाई के साथ जगह ही जगह , टाइम ही टाइम,... घर में माँ नहीं है तो दोनों जब जाहे जब , माँ सो जाए तो पूरी रात तेरी ,... और घर में माँ हो तो बाहर खेत वेत में,... कोई साथ देखेगा तो बोलेगा भी नहीं ,... "



गीता ध्यान से सुन भी रही थी सोच भी रही थी,... भाभी बोल तो सही रही थीं,...


और भाभी ने देखा की तीर निशाने पर लग रहा है तो उन्होंने दूसरा फायदा भी बताना शुरू कर दिया,...

" देख दूसरा,

डर हर लड़की को रहता है बदनामी का , और तू तो एकदम ही भोली है सीधी बछिया,... नहीं गाँव में बदनामी की बात नहीं,...


वो लड़का बदनामी का डर दिखाके लड़की को बोलेगा , चल में इस दोस्त के नीचे लेट वरना ,... और दूसरा दोस्त तीसरे के साथ ,... फिर दो चार महीने में लड़की पता चला पंचायती हो गयी , गाँव का हर लौंडा उसे चोद चुका है , फिर वो खुद लौंड़ा ढूंढ़ती फिरेगी , और उसकी पूछ भी नहीं , बदनामी अलग ,"

गीता बहुत ध्यान से सुन रही थी और भाभी ने बिना रुके अगला फायदा गिनवा दिया,...

"देख एक तो जगह वगह ढूँढ़ने का चक्कर नहीं , दूसरे बदनामी का डर नहीं लेकिन सबसे बड़ा फायदा ,... लम्बे समय तक मज़ा ले सकती है , लौंडे तो कल वो पढ़ने कहीं बाहर चला गया , कहीं कमाने चला गया , कहीं महीने दो महीने बाद कोई और लौंडिया उसे फांस ली , या उसी का मन भर गया,... तो बस दूसरा खूंटा ढूंढो , घर का माल है , सगा भाई है तो कहाँ जाएगा , और जाएगा भी लौट के घर पे आएगा,..."


Page 136
हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा...
 

motaalund

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जो बात आप कविता में कह देती हैं वो मैं लाख कोशिश करूँ कहानी में नहीं कह सकती

और इस कहानी ने जो पेज १३६ से इन्सेस्ट की ओर करवट ली और पेज ४०० तक इन्सेस्ट से मुड़ के नहीं देखा , इस पूरी कथा यात्रा का सार आपकी पंक्तियों ने कह दिया

मेरी और से और

अरविन्द और संगीता की ओर से भी कोटिश धन्यवाद , बस ये साथ बना रहे , इस किस्से पर भी और बाकी कहानियों पर भी


:bow::bow::bow::bow::bow:
पूरी कथा तो नहीं लेकिन इंसेस्ट पार्ट का सार जरुर कह दिया....
 

motaalund

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Last Update is on page 394



भाग ४८ - रोपनी -

फुलवा की ननद



ननदें कौन चुप रहने वाली थीं , एक बियाहिता अभी अभी गौने के बाद ससुराल से लौटी ननद सावन मनाने मायके आयी, चिढ़ाते बोली,...

" अरे तो भौजी लोगन को खुस होना चाहिए,की सीखा पढ़ा, खेला खेलाया मिला,... वरना निहुराय के कहीं अगवाड़े की बजाय पिछवाड़े पेल देता, महतारी बुरिया में चपाचप कडुवा तेल लगाय के बिटिया को चोदवाये के लिए भेजी थी और यहाँ दमाद सूखी सूखी गाँड़ मार लिया,... "

फिर तो ननदों की इतनी जोर की हंसी गूंजी,... और उसमें सबसे तेज गीता की हंसी थी, एक और कुँवारी ननद बोली,...

" अरे भौजी, तबे तो यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे की चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "

इस मस्ती के बीच रोपनी भी चल रही थी हाँ गन्ने के खेत से आने वाली चीखें अब थोड़ी देर पहले बंद हो गयी थीं और वहां से कभी कभी रुक के सिसकियाँ बस आतीं।

डेढ़ दो घण्टे से ऊपर हो गया था, भैया को फुलवा की बारी ननदिया को गन्ने के खेत में ले गए,... जब रोपनी शुरू हुयी थी, बस आसमान में ललाई छानी शुरू भी नहीं हुयी थी ठीक से,... और अब सूरज निकल तो आया था, लेकिन बादल अभी भी लुका छिपी खेल रहे थे, सावन भादो की धूप छाँह का खेल, और काले काले घने बादल जब आसमान में घिर जाते तो दिन में रात होने सा लगता,... और कभी धूप धकिया के नीचे खेत में रोपनी करने वालियों की मस्ती देखने, झाँकने लगती और कभी उन की शैतानियों से शरमा के बादलों के पीछे मुंह छिपा लेती,...

और तभी सबसे पहले एक भौजाई ने देखा, ...

माहौल बनाना तो कोई आपसे सीखे...
 

motaalund

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भैया तेरी लाडली अब हो गई है सयानी

मेरी चुत से भी रोज बहता है अब पानी

मेरी चुत में भी अब चींटियाँ रेंगती हैं

जब कभी अब तेरा लौड़ा देखती है

हर रात बिस्तर पे जब तुम्हे सोचती हूं

अपने भरकते बदन को मैं खुद नोचती हूं

हर रात चुदने का कुलबुलता है कीड़ा

नहीं अब सही जा रही है ये पीड़ा

काम की अग्नि में ये बदन जल रहा है

तुझसे चुदने की का ख्वाब पल रहा है

मेरी चुत की तुम खुजली मिटा दो

जड़ तक तुम अपना लौड़ा घुसा दो

मेरे दर्द की तुम न परवाह करना

मेरी चीखो पे ने तुम कान धरना

बड़ी खूबसूरत बनेगी अपनी जोड़ी

जब तुम कहो बन जाओगी घोड़ी

जैसे कहोगे के चुदवाउंगी तुमसे

हर छेद में लौड़ा घुसवाओंगी तुमसे

शर्म ओ हया की सब दिवारे गिरा दे

खुल के मजा दे और खुल के मजा ले

बरस जाओ तुम अब यू मेरे अंदर

प्यासी नदिया को मिल जाए समंदर

बरसों की प्यास अब यूं न भुजेगी

जब तक तेरी बहना तुमसे न चुदेगी

D07-E2-D39-99-F1-4099-A9-D6-08304-CA1284-C
जब तक बच्चेदानी ना भरेगी....
 

motaalund

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कोमल जी... आपके शब्द हमेशा से प्रेरणादायी रहे हैं। भाई और बहन के सेक्स संबंध पर आपके अध्याय ने मुझे इस मंच पर कुछ पंक्तियाँ जोड़ने के लिए प्रेरित किया है। मुझे आशा है कि यह भविष्य में भी जारी रहेगा। मैं देवर और भाभी के बीच संवाद पर कुछ पंक्तियाँ जोड़ने की भी योजना बना रही हूं…आपके सुझाव का इंतजार रहेगा
स्वागत है...
 

motaalund

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मैं पलके बिछा के आपके एक एक शब्द का इन्तजार करुँगी और मेरे साथ मेरे सभी मित्र पाठक भी बाट तकते हैं आपकी हर एक पोस्ट का और ऊपर से आप जो चित्र पोस्ट करती हैं वो भी अद्भुत है।

इन्सेस्ट के क्षेत्र में तो बस मैंने अभी घुटनों के बल चलना शुरू किया और आपकी कविताओं का सहारा लेकर कुछ बेबी स्टेप्स ले रही हूँ,

देवर भाभी तो बहुत ही रसिक रिश्ता है आप जरूर इस दिशा में भी लिखें

देवर को तो द्वितीयो वर भी कहा गया है।

आपका कितना भी आभार व्यक्त करूँ कम होगा
हम पाठक भी आभारी हैं और रहेंगे...
 

motaalund

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मैंने निम्नलिखित पंक्तियों में अपने विचार व्यक्त करने का प्रयास किया है। पहली दो पंक्तियाँ भाभी की हैं और अगली दो पंक्तियाँ देवर की हैं। कृपया पढ़ें और इस प्रयास पर अपने विचार व्यक्त करें:

देवर जी ऐसे क्यों रोज़ मुझे ताकते हो
हर रात मेरे कमरे में क्यों झाँकते हो

आफताब से बढ़कर है तुम्हारी सूरत
लगता है तुम कोई अजंता की मूरत

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बातो में तुमसे मन नहीं जीत सकती
लेकिन करो ना तुम मुझसे ऐसी मस्ती

देखा है मैंने तुमको ऊंगली करते
मेरे नाम लेके रातो को झरते

नहीं तुम्हारे भैया से अब कोई आस
भुजा नहीं पाते अब वो मेरी प्यास

तेरे महकते बदन को बाहों में भर लूँ
आओ तुम्हें झुका कर में प्यार कर लूं

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बात तो करते हो बहुत भारी भारी
लगती नहीं मुझे ठीक नीयत तुम्हारी

है तेरी आँखों का सुरूर इतना
बता मेरे दिल का कसूर कितना

कुसूर इतना है कि तू मदहोश हो बैठा
जोश ही जोश में तू अपने होश खो बैठा

तेरे जिस्म का जिस को मिल जाए नजारा
होश में फिर वो कैसे रह पाए बेचारा

दिन रात कपड़ो में मेरे क्या ढूंढ़ते हो
बता जरा मेरी पैंटी को क्यों सुंघते हो

तुम्हारे बदन की उसमें खुशबू है आती
मेरी सांसो में वो हर रोज है महकाती

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सच्चा नहीं तेरा धोखा है प्यार
चढ़ा है तुझे सिर्फ वासना का बुखार

प्यास तेरी बड़ी है प्यास मेरी भी बड़ी
आ मेरे पहलू में दूर मुझसे क्यों खड़ी

नहीं चाहिए मुझे कोई झूठ वादे
खुल के बता क्या है तेरे इरादे

ओ मेरी प्रियतमा ओ मेरी सुहासिनी
चाटना चाहता हूं मैं तेरे बुर की चाशनी

उम्मीद के घोड़े तुम न सरपट भगाओ
जरा पेंट खोलो और लौड़ा दिखाओ

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सिर्फ दिखाओ नहीं.. घुसाओ...
एकदम मन को हरने वाली कविता....
 
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