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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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भाग 255 रात बाकी, बात बाकी, पृष्ठ १५९६
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motaalund

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a critique must understand not only the story but also the art of story writing, must have the touch stone on which to judge the story, and judging anything, without being judgmental, is a hard task.
मुंडे मुंडे मतिभिन्ना..
एक महाशय आपके इतना समझाने के बाद भी अपना निरंतर प्रयास किए हुए हैं...
और अपने मन मर्जी से कहानी को आगे बढ़ाने की जिद किए बैठे हैं...
 

motaalund

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लम्बाई भी ज़रूरी है पर असली चीज़ मोटाइ है
ये बात वही जाने जिसने अच्छे से मारवाई है

लिंग का कड़कपन और देर तक टिकना जरूरी है
ऐसे लौड़े से चुदे बिना औरत की प्यास अधूरी है

ख़ुशी ख़ुशी सौंप देती है औरत उसे जवानी
चोद चोद के उसको चूत से निकाल दे पानी

स्त्री भी उसी पुरुष को चुनती हैं जिसमें उसे मर्दानगी पुरुष्राथ नज़र आता हैं और उस स्त्री को रूह से एहसास होता हैं की सिर्फ इसी मर्द में स्त्रीभोग करने का साहस हैं तो वो स्त्री उस मर्द के साथ खुशी खुशी उसे स्त्रीभोग ओर खुद उस मर्दानगी का सुख पाने के लिए बेताब हो जाति है.
कोमल जी, आप कितनी खूबसूरती से एक महिला की भावनाओं और इच्छाओं को व्यक्त करती हैं। वो दिन गए जब एक महिला घर की चारदीवारी में खुद को गुप्त रखती थी और जिससे उसकी शादी हुई थी उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताती थी। अब वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहती है और अगर वह अपने शयनकक्ष में असंतुष्ट महसूस करती है तो दूसरे पुरुषों की तलाश करने से नहीं हिचकिचाती।
वास्तविक सच्चाई से रूबरू करवाया है..
 

motaalund

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आपकी कविता पढ़ते - पढ़ते काव्य बहुत आसान सा जान पड़ता है लेकिन जैसे ही लिखने की सोचो तब पता लगता है कि आपकी विधा और उसकी गहराई।

वाकई आपके सहज और सरल काव्य की प्रशंसा भी करना मुझ जैसे पाठक की शक्ति से परे है।

मेरा विनम्र अभिवादन स्वीकार कर मुझे अनुगृहित करे।

सादर
आपकी भी भाषा पर पकड़ काबिले तारीफ है...
 

Random2022

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Part 2

क्या पंकज जी गुड्डी की तरह मेरे यौवन से खेलेंगे
अपने लौड़े पे मुझे बिठाकर क्या सारी रात वो पेलेंगे
इतना मोटा लौड़ा उनका मैं चूत में क्या ले पाऊँगी
गुड्डी को जब पता चला तो उसको क्या बतलाऊंगी

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जो बातें नहीं हो मुमकिन क्यों उनका करु ख्याल
ऐसा ही सब से होता है मैं क्यों दिल में रखू मलाल
ये सब मैं क्या सोच रही हूं ये सब है बेकार
ननदोई जी कैसे जुड़ जायेंगे मेरे दिल के तार

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दिल के तार जोडू काहे बस तन का मिलन ही काफी है
दिल की मानू और तन की न मानू ये भी तो नाइंसाफी है
फ़िर रात को पतिदेव ने बिस्तर पे मुझे अधूरा छोड़ दिया
पांच मिनट में निकाल के पानी अपना मुखड़ा मोड़ लिया


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देख के ऐसा रुख पति का गुस्सा बहुत था आया
सोच लिया था अब अपने लिए ढूंढूंगी मर्द पराया
ठान लिया था मैंने उतार दूंगी ये शराफत का चोला
बाथरूम में बैठी रगड़ रही थी जब मैं चूत का छोला

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ख्यालो में खोयी मैं पंकज का ले रही थी लन
अब उनसे ही चुदने का मैं बना चुकी थी मन

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एक नई सुबह हुई और मिट गई रात की स्याही
अपने घर को लौट आया रात का भटका राही
सोचा था जो रात को मैंने निकाल दिया अब मन से
ऐसा कैसे मुमकिन है मैं चुद जाऊ पंकज के लन से
ऐसा कौन इंसान यहाँ है जिसने जो मांगा वो पाया
सोच का पंछी मार उड्डारी वापस धरती पर आया

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Ho sake to is baat ko guddi se mt chupana kavita me varna salhaj ko apradh boadh ho baad me. Nanad bhojai ki sehmati hogi to khul kar maje le payegi
 
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