कितनी ज्ञान भरी बातें लेकिन कितने कामोत्तेजक शब्दों के साथ, और कितनी आसानी से
काम चार पुरुषार्थों में एक है, लेकिन अर्थ का अर्थ ढूँढ़ते नागरी जीवन में हम शायद इसे भूल गए हैं। गाँव की स्त्रियों और लड़कियों में सेक्स की चर्चा, जिन शब्दों को हम टैबू मानते हैं, भदेस समझते हैं वो भाषा का हिस्सा हैं, चिढ़ाने की छेड़ने की रोज मर्रा की भाषा, ओटीटी और नयी फिल्मो में वो शब्द फिर से बाहर निकले लेकिन गुस्से की तरह, हिंसा के विकल्प के शाब्दिक हिंसा की, गाँव की गारियो की छेड़छाड़ की तरह नहीं।
लम्बाई भी ज़रूरी है पर असली चीज़ मोटाइ है
ये बात वही जाने जिसने अच्छे से मरवाई है
ये एक महिला ही जान सकती है, अधिकतर नर्व एंडिंग्स योनि के शुरू के भाग में होती हैं इलसिए जो टैक्टाइल सुख, स्पर्श का आनद मिलता है उसका बड़ा हिस्सा यही मिलता है. इसलिए मेरी कई कहानियों में दरेरना, रगड़ना ऐसे शब्द इसी संदर्भ में आते हैं। सेक्स की शुरुआत एक क्यूरिऑसिटी की तरह होती है और बाद में सिर्फ एक बॉक्स टिक करने भर तक रह जाती है, लेकिन जिसने उसका आनंद लिया है वही यह जानता है
पिल्स शायद वोमेन एम्पावरमेंट का पहला बड़ा कदम था जिससे नारी को अपनी देह पर अधिकार मिला
आरूषि जी का लाख आभार की नारी मन और तन की बातों को कैसे उन्होंने एरोटिक ढंग से व्यक्त किया.