शावर में मस्ती
" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "
और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।
और अब बाकी रंगों का नंबर था
तो भौजी ने खींच के मुझे अपने साथ शावर में खड़ा कर दिया। पहले साबुन, फिर तेल मिला बेसन और फिर साबुन,
शावर में हम दोनों चिपके, देह पर घूमती, नाचती पागल करती भौजी की रसीली उँगलियाँ, साबुन लगाते कभी चिकोटी काट लेतीं तो कभी गुदगुदा देतीं और कभी कस के अपनी ओर खींच लेती। जिसने जिसने भौजाई की मीठी चिकोटियां और गुदगुदी का मजा लिया होगा उसे मालूम होगा की कामदेव के बाण भी उसके आगे फेल, और जब ये सब हो तो बेचारे मूसल चंद बौरायँगे ही, और वो अपनी प्यारी सहेली को सूंघ कर उसके दरवाजे पर जोर जोर से ठोकर मारने लगे,
और अब शावर में मजा लेना मैं भी सीख रहा था,
ऊपर से भौजाई ने मेरे हाथ में साबुन पकड़ा दिया, उनकी देह में लगाने को। बस। साबुन के झाग के साथ मेरी उंगलिया, संध्या भाभी की कभी पतली कटीली कमरिया पे तो कभी केले के पत्ते को भी शर्माने वाली चिकनी चिकनी गोरी गोरी पीठ पर, पर असली चीज जो मुझे पागल किये थी जैसे मैंने उन्हें देखा था वो थे उनके मोटे मोटे नितम्ब और एक हाथ साबुन के साथ सीधे वहीँ, दोनों नितम्बों को पकड़ के मैं उन्हें अपनी ओर खींचने लगा,
तो वो तो और खेली खायी थीं, साल भर से रोज बिना नागा जिस काई में कुदाल चल रही थी और जो दस दिन से उपवास पे थी, उसकी भूख तो उन्हें भी बेबस किये थी। बस उन्होंने भी अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुझे अपनी ओर खींच लिया।
और शावर में ही खुल के ग्राइंडिंग होने लगी, रगड़ घिस, रगड़ घिस,
लेकिन संध्या भौजी असली उस्ताद थीं, उन्होंने खुद अपनी दोनों जाँघे फैला दी और मेरा खड़ा खिलाडी, सूंघते ढूंढते उन जाँघों के बीच, जैसे कोई मोटा भूखा चूहा, रोटी के लालच में सूंघते सूंघते अंदर घुसे और चूहेदानी का दरवाजा, खट्ट बंद हो जाए, बस एकदम उसी तरह मूषक राज भौजी की दोनों जाँघों के बीच पकडे गए, दबोचे गए और संध्या भाभी की कदली की तरह की जाँघों ने उसे कस कस के रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।
इतना मजा तो कभी सपने में भी मुट्ठ मारने में नहीं आ सकता था। और भौजी का दुहरा हमला था, साथ में उनकी मोटी मोटी चूँचिया मेरे सीने पे रगड़ रही थीं और उनके हाथ मेरे नितम्बो को कभी दबोचते कभी उनकी लम्बी ऊँगली नितम्बो के बीच की दरार को कुरेद देती।
उंचासो पवन काम के चल रहे थे, मैंने अपने को भौजी के हवाले कर दिया था।
अब मैं सिर्फ देह था।
भौजी की जांघो के बीच रगड़ रगड़ कर मेरे मोटे मूसल की हालत खराब हो गयी थी,
और अब कमान पूरी तरह संध्या भौजी ने अपने हाथ में ले ली थी जैसे कल रात चंदा भाभी ने ले लिया था।
लेकिन चार पांच मिनट की रगड़ घिस के बाद भौजी मेरे हाथों की बेचैनी समझ गयी
और अब उनकी पीठ मेरे सीने की ओर थी और गप्पाक से मेरे दोनों हाथों ने भौजाई के जोबन को गपुच लिया, होली में सब देवर भौजाई का जोबन देख देख के ही खुस हो जाते हैं, रंग में भीगी देह से चिपकी साड़ी और गीली चोली के बीच से झांकता, ललचाता जोबन ही होली को सफल बना देता है और कोई लकी देवर और उदार भौजी हुईं तो बस चोली के ऊपर हिस्सों से रंग लगाने के बहाने, छुआ छुअल,
लेकिन यहाँ तो दोनों जोबना मेरी जमींदारी हो गए थे। कस कस के मैं मसल रहा था, मूसल राज अब गोरे गोरे मांसल नितम्बो के बीच कुण्डी खड़का रहे थे, एक बार फिर जाँघों का दरवाजा खुला, मूसल राज भौजी की दोनों मखमली जांघो के बीच गिरफ्तार, कैद बमश्क्क्त,जैसे जेल में कैदी चक्की चलाते हैं यहाँ वो खुद जाँघों की चक्की के बीच पीसे जा रहे थे
लेकिन मैंने भी रात में चंदा भाभी की पाठशाला में न सिर्फ पढ़ाई की थी बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुआ था।
एक हाथ जोबन के गर्व को मसल के चूर कर रहा था और दूसरा दक्षिण दिशा में योनि के किले पर चढ़ाई करने, ....थोड़ी देर हथेली से मैंने सहलाया, फिर एक ऊँगली अंदर बाहर और अंगूठा क्लिट पे।
भौजी जबरदस्त गरमाई थीं, जिस तरह से उनकी जादुई अंगूठी, क्लिट कड़ी कड़ी हो गयी थी, एकदम साफ़ लग रहा था और जॉबन और भौजी की गुलाबो दोनों के रगड़ने मसलने का नतीजा जल्द सामने आया,
वो सिसकने लगीं, उनकी बिल शहद फेंजने लगी, एकदम गाढ़ा गाढ़ा, मीठा मीठा, ऊँगली में लगा के मैंने भौजी को चटा दिया और भौजी ने अपने होंठों से मुझे।
और भौजी समझ गयी असली खेला का टाइम आ गया,
वो शावर से बाहर निकली, मैंने शावर धीमे किया और संध्या भौजी ने निचे छुपी एक पतली शीशी निकाल ली। जब वो वार्निश निवारक तेल लायी थीं तभी और उसकी झार से ही मैंने पहचान लिया था, कोल्हु का शुद्ध देसी सरसों का तेल।
संध्या भौजी ने अपनी खूब गहरी गदोरी में कम से कम १००- १५० ग्राम कडुवा तेल , और उनकी गहरी हथेली देख के मुझे कल रात की चंदा भाभी की एक बात याद आ गयी।
चुदाई की पढ़ाई के साथ औरतों को समझने और पटाने के भी उन्होंने १०१ नुख्से बताये थे एकदम कच्ची कलियों से चार चार बच्चों की माँ तक के लिए,
और उसी में उन्होंने बताया था की जिस औरत की हथेली जितनी गहरी होती है उसकी बुर भी उतनी ही गहरी होती है और उतनी ही जबरदस्त चुदवासी, छोटे मोटे लंड से उसका मन नहीं बुझता और उस कहीं तेरे ऐसा मुस्टंडा वाला डंडा मिल जाए तो खुद पकड़ के घोंट लेगी और उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।
एक बार उसका मन भर गया तो कुछ भी करेगी और उसके आशीर्वाद का भी बड़ा असर होगा, जो किसी से न पटे, वो लौंडिया खुद ही टांग फैला देगी , अगर गहरी हथेली वाली को हचक के पेल दो तो। और हचक के पेलवाने के साथ उस औरत को गारी देने में, रगड़ने और रगड़वाने में भी बहुत मजा आता है।
संध्या भाभी की हथेली एकदम वैसे ही थी, खूब गहरी,
लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने चंदा भाभी से पूछ ही लिया,
" भाभी और लड़को के भी साइज पता करने का कोई तरीका हैं क्या "
और वो बहुत जोर से हंसी, हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। किसी तरह से बोलीं,
" अबे स्साले, तुझे तो देख के ही मैं समझ गयी थी। और फिर उनकी हंसी चालू और अब जब रुकी तो चंदा भाभी बोलीं की मुझे लगा की,....
मैंने गुड्डी की मम्मी से बोला तो वो हँसते हुए बोलीं की तुम सोचती हो मुझे अंदाज नहीं था और उन्होंने तो साइज भी, मैं जानती थी बड़ा होगा लेकिन गुड्डी की मम्मी हम सबसे आगे हैं इन सब मामलों में। वो बोलीं की जब तुम भैया के बियाह में बिन्नो की शादी में आये थे तो तुम्हे छेड़ रही थीं, तभी अंदाज लगा लिया था उसी समय, ऊँगली देख के, " लेकिन ऊँगली से, कैसे, उस समय तो मैं वैसे भी, "
मेरे अचरज का ठिकाना नहीं था, जितनी बातें चंदा भाभी से सीख रहा था।
उनकी हंसी फिर चालू हो गयी, फिर किसी तरह हंसी रोक के बोलीं,
" ये सब औरतों की बातें, सब कुछ एक दिन में ही सीख लेगो क्या, लेकिन चलो बता देती हूँ , तर्जनी की लम्बाई और जिस ऊँगली में अंगूठी पहनते हैं बस उसी से, तर्जनी अंगूठी वाली ऊँगली से जितनी छोटी हो मरद का मूसल उतना ही बड़ा होता है और फिर औरत की निगाह, गुड्डी की मम्मी ने तो साइज का भी अंदाज ही लगा लिया था लेकिन पहली बार वो गलत थी, कल बताउंगी मैं उन्हें। "
" मतलब " मेरी अभी भी कुछ समझ में नहीं आया,
" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।
लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया