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Incest अनोखे संबंध ।।। (Completed)

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  • Maa beta

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  • Baap beti

    Votes: 73 23.9%
  • Aunty bhatija

    Votes: 59 19.3%
  • Uncle bhatiji

    Votes: 21 6.9%

  • Total voters
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Salini singh

Hawas ka sikaar huyi
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Update 10


हमारे बीच में इसी तरह की बातें घर हुया करती थी। मैं और शीतल माँ से छेड़खानी करते रहते थे। इसी दौरान एक दिन शाम के टाईम पे माँ को मास्टर जी के घर जाते हुये देखा। जैसा की मुझे पता था माँ की माहवारी पिछ्ले दिन ही खतम हूई थी। जाहिर सी बात है माहवारी के बाद हर औरत का चुदाई का मन करता है। उस दिन बापू भी अनाज ले कर शहर गए हुये थे। माँ को मास्टर जी के घर जाते देख कर मेरा खुन खौलने लगा। मैं इधर माँ को पटाने की कोशिश कर रहा था उधर साला मास्टर सारा मजा लुट रहा था। मैं ने सोच लिया आज माँ से आमने सामने बात करनी होगी।

अन्धेरा हो चुका था। मास्टर के घर से कुछ दुरी पर मैं नदी के पुल के उपर माँ का इन्तज़ार करने लगा। देखा माँ बड़े मजे में इत्राती हुई चली आ रही थी। पुल के पास आ के जब मुझे माँ ने देखा तो एकदम सहम गई।

वह पास आकर बोली: रामू तू यहां क्या कर रहा है?

मैं ने माँ को पलट कर जवाब दिया: माँ यह बात तो मुझे आप से पूछनी चाहिए आप इस वक्त यहां क्या कर रही हैं?

माँ:मतलब?

मैं: मतलब,,, माँ मुझे यह अच्छा नहीं लगता की आप इस तरह किसी के पास चली जाओ। माँ मेरे सामने खडी थी। और मुझे देख रही थी।

माँ: तुझे क्या फर्क पड़ता है मैं किसी के पास जाऊँ या ना जाऊँ?

मैं: पर माँ मुझे यह बर्दाश्त नहीं होता की कोई आप को।।।। और चुप हो गया।

माँ: क्या बर्दाश्त नहीं होता? बोल रामू।

मैं: यही कि आप किसी और के साथ…!

माँ: लेकिन क्यूँ?

मैं: मैनें एक लम्बी सांस ली और एक दम से बोल दिया:: क्यौंकि मैं तुम से प्यार करता हूँ और मैं नहीं चाहता कि आपको कोई छुए।

माँ मांद मांद मुस्कुरा ने लगी। माँ ने नदी की तरह देखते हुये बोला: देख रामू: यह नदी का पानी एक लहर में बहता जा रहा है। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। लेकिन नदी के पास अगर कोई अपनी नाली बनाएगा तो नदी के पानी का मोड़ उस तरफ भी बहने लगेगा। है ना।

मैं ने बोला: मैं समझा नहीं माँ।

माँ फिर मेरी तरफ मुहं फेरके बोलने लगी: मैं भी इस नदी की लहर की तरह हूँ रामू।

मैं ने माँ को अपनी तरफ घुमा के उनकी आंखों में देखते हुये कहा: मेरी माँ सिर्फ मेरी है। और उस्पे किसी का हक नहीं । और यह कहते हुए माँ को अपनी बाहों में भर लिया। माँ भी मेरे से लिपट गई।
हम दौनों काफी देर तक इसी तरह एक दुसरे से लिपटे रहे।

माँ मेरे से लिपटे हुए बोली: जब मेरे से इतना प्यार करता है तो फिर कभी मुझे कहा क्यों नहीं। और हम अलग होके एक दुसरे की आंखों में देखने लगे।

मैं: क्या कहता! कई बार अपने दिल की बात तुम्हें बोलने की कोशिश की। लेकिन तुम क्या सोचोगी इस लिये कह नहीं पाया।

माँ: अगर तू नहीं बोल पाया तो फिर मैं भी केसे आगे बड़ती?

मैं: अब तुम मेरे वादा करो तुम कहीं भी कभी भी नहीं जायोगी!

माँ: फिर कहाँ जाऊँगी बोल। आखिर मेरी भी तो कुछ इच्छाएं हैं।

मैं: अब जब तुम मेरी हो गई हो तो तुम्हारी सारी इच्छाएं मैं पूरी करूंगा।

माँ: चल घर चलते हैं। काफी देर हो गई है। और हम घर की और चलने लगे।

माँ ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। और हम दौनों कुछ दूर तक चुपचाप चलते रहे।
मैं ने माँ से पुछा: माँ तुम ने मेरी बात पर कुछ बोला नहीं।

माँ ने मेरी तरफ देख कर कहा: अब जब तू ने तय कर ही लिया है अब मैं क्या बोलूं।

मेरे दिल एक उलझन सी थी। मुझे सब पता तो था लेकिन मुझे माँ के मुहं से सुनना था।

मैं: मतलब! क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ?

माँ: एसा तो मैं ने नहीं कहा।

मैं: लेकिन तुम्हारी बातों से लग रहा है जैसे मैं तुम पर जबरदस्ती कर रहा हूँ।

माँ: एसा नहीं है मेरे लाल। मैं तेरी माँ हूँ। तू मुझ पर जबरदस्ती नहीं कर सकता यह मुझे भी पता है। मैं तो बस यह बोल रही थी की देखा जायेगा मेरा बेटा केसे मेरी सारी इच्छाएं पूरी करता है। और हंस देती है।

इस तरह हम घर आ जाते हैं। घर के आँगन में शीतल रात की सब्जी काट रही थी। शीतल ने माँ से पुछा: माँ तुम इतनी देर कहाँ थी?

माँ ने मेरी तरफ घुरते हुए कहा: वह मैं और रामू जरा गावँ घुमने गए थे। वैसे शीतल अब अपने भाई को जरा अच्छी अच्छी चीजें खिलाया कर, क्यौंकि बहुत जल्द तेरे भाई को शायद मेरी सेवा करनी पड़े।

मैं और शीतल दौनों इस बात पर मुस्कुरा रहे थे। माँ यह कह कर जाने ही लग रही थी की शीतल ने माँ को सुनाते हुए मुझे कहा: भाई माँ की खुब मन लगाकर सेवा करना कहीं उन्हें दुसरे किसी के पास जाने की जरुरत न पड़े। फिर वह भी तुझे जी जान लगाकर प्यार देगी। शीतल की इस बात पर मैं और माँ एक दुसरे को देख मुस्कुरा रहे थे।
Bahut kàmuk update love you 😘
 
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Update 54

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रघू कुछ देर चुपचाप बैठा रहा। उसे समझ नहीं आया किस बात से उसे प्रारंभ करना चाहिए। पार्वती के जाने के बाद रघू ने दरवाजे की कुंडी लगा दी। कमरे में तेज लाईट जल रही है। सुहागरात की सेज पे लाईट की किरनों से एक मंत्रमुग्ध वातावरण तैयार हुआ है। यह प्यार का माहोल था, संजोग का माहोल था, दो प्रेमी के मिलन का वातावरण था।

बाहर से अभी भी औरतों की आवाजें आ रही थी। अब हंसी मजाक करने लगी थी। साथ में खाना खा रही थी। दूल्हा दुल्हनों को उन्होने विवाह समाप्त होने के बाद खिला दिया है। यह असल में पार्वती की राय थी।

पार्वती ने कोमल से कहा था, हमें उन्हें पहले ही खिला देना चाहिए।"

कोमल ने कहा, एसा क्यों! साथ में खायेंगे ना!"

तब पार्वती ने माहोल को समझाते हुए कहा था, "बात वह नहीं है, दो दुल्हन हैं और एक दूल्हा है। हमें उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय देना होगा। अगर हमारे साथ खाने बिठाया, तो सुहागरात शुरु होते होते आधी रात हो जायेगी। दो दुल्हनों पे बेचारा अकेला रघू कैसे ध्यान देगा?"

कोमल ने कहा था, यह तो सही कहा तुम ने दीदी!"

राधा और रेखा ने ना चाहते हुए भी दो चार निवाले मुहं डाले बस।


रघू ने कुछ देर इसी सोच में गुजार दिया। पार्वती जाते जाते दोनों का चेहरा घूँघट में छुपाकर गई थी। अब उसे घूँघट हटाकर सुहागरात का उद्घाटन करना होगा। इसी बीच बदमाश रेखा घूँघट के अन्दर से बोल पड़ी, "क्या हुआ पतिदेव, हमें पूरी रात इसी तरह रखोगे! घूँघट उठाने में इतनी झिझक क्यों?"


"नहीं, वह असल में सोच रहा था पहले किस की घूँघट हटाऊँ! तुम्हारी या रा,रा,राधा की!"


"क्यों दोनों का एक साथ नहीं उठा सकते? हम पास पास ही बैठी हैं!" रेखा ने थोड़ा हँस दिया। राधा अभी भी चुपचाप घूँघट के भीतर मुहं छुपाये बैठी थी। उसने अपनी कोहनी से रेखा को रोक दिया।


"हाँ यह सही है। तुम दोनों का घूँघट एक साथ हटाता हूँ।" रघू आगे आया। दोनों के सामने बैठा। और दौनों की ओढनी दो हाथों से उठाया। ओढनी से दोनों ने अपने तन को ढाक रखा था। रघू ने ज्यादा कुछ सोचा नहीं, उसके ओढनी सरकाने से राधा और रेखा दोनों एक साथ उपर से अधनंगी हो पड़ी। रघू ने जब यह माजरा देखा, उसे थोडी बदमाशी सूझी। उसने ओढनी खींचकर पूरा हटा दिया। राधा और रेखा ऊपर से पूरी नंगी होकर बैठी रही। राधा और रेखा शर्माकर अपने हाथों से छाती को छुपाने लगी।


"क्या करते हो पतिदेव!" रेखा शर्माके बोलती है।


"वह सरक गया है।" रघू मुस्कुराता है।


"एसा कोई अचानक से करता है क्या! देखो अपनी बिबोयों को। हमें थोड़ा समय दो।"


"अब बर्दाश्त नहीं होता रेखा। तुम दोनों को अपना बनाने के लिए शादी की। हाथ हटाओ ना, तुम्हारी खुबसूरती देखने दो।" रघू थोड़ा और पास आ गया।


"नहीं, पहले हमें हमारा तोहफा दो। फिर हटायेंगे हम अपना हाथ। क्यों राधा!" राधा ने रेखा की और देखा। उसने भी कहा, "हाँ, पहले हमें तोहफा दो। और यह, यह दूध भी नहीं पिलाने दिया। कितना उतावला है हमारा पति। देखा रेखा!"


"बडा उतावला है। देखो ना, किस तरह देख रहा है हमें। बहुत खुश नसीब हो तुम पतिदेव। जो दो दो बिबियों के साथ सुहागरात मनाने का मौका मिल गया। अब हमें हमारा तोहफा दो। उसके बाद हम अपने आप को तुम्हारे हवाले कर देंगे। फिर सम्भालना!" राधा और रेखा अभी भी अपनी अपनी छाती छुपाके रखी थी।


"कैसा तोहफा चाहिए बताओ, वही दूँगा तुम दोनों को। वैसे भी मुझे पता है, बिबियों को जेवरात तोहफा में दिए जाते हैं। लेकिन तुम दोनों के शरीर में सारे जेवरात हैं। गले में देखो, यह मोटे सोने के हार, कान में तीन तीन बालियाँ झुमके, नाक में नथनी, माथे पे माँग टिका, हाथों में इतनी सारी चूडियां कंगन, पैरों में पायल, झुमक, अब तुम दोनों ही बताओ, मैं क्या लाता! मैं ने पहले से सोचकर शादी से पहले यह जेवरात ला दिए। अगर मुझे पता होता, सुहागरात में कोई गहना देना चाहिए, फिर मैं एक गहना अपने पास रख लेता। पर तुम दोनों को अगर और चाहिए मैं अब की बार दोनों के लिए हीरे की नाक की कील ला दूँगा!" रघू ने उन्हें अस्वास्थ करना चाहा।


"हमने कब कहा हमें जेवरात चाहिए। हमारे पतिदेव के होते हुए हमें किसी बात की फिक्र नहीं है। हमें कुछ एसा चाहिए जो खास हो। क्यों राधा, सही कहा ना मैं ने?"


"हाँ रेखा, मैं भी यही चाहती हूँ। हमारा पति हमें एसा तोहफा दें, जो हमारे पास हमेशा रहे।"


"फिर तुम दोनों ही बताओ, तुम्हें क्या चाहिये! हम वहीं देंगे।"


"सोच लो, बाद में मुकर ना जाना।"


"नहीं जाऊँगा। बताओ तुम क्या चाहिए। मैं तैयार हूँ।


"हमें तुम्हारे से वचन चाहिए। तुम्हारा वादा और प्रतिज्ञा चाहिए। बताओ दे पाओगे?"


"कैसा वादा! कैसा वचन!"


"राधा तुम बताओ!"


"हम चाहते हैं तुम हमेशा हमारे ऊपर अपना पति धर्म निभाओ। अगर हम कभी गलती करती हैं तो हमें डांटे, हमेशा हम से प्यार करे। और एक जरुरी बात, हमारे अलावा किसी दूसरी औरतों की तरफ आंख्ँ उठाकर भी ना देखे। मतलब देखोगे, लेकिन सम्बंध सिर्फ हमारे साथ होगा। तुम्हारे दिल में सिर्फ और सिर्फ हम हों। बस यही वचन चाहिए।" राधा ने कहा। राधा की बात सुनकर रघू को अंदाजा हुआ, दोनों बिबियों ने पहले से यह सोच रखा था।


"क्यों हमारे प्यारे पतिदेव। वचन निभा पाओगे! आज तुम्हारी तरफ से यही हमारा तोहफा है। लेकिन उसके बदले हम भी तुम से वचन करेंगे। लेकिन पहले तुम पतिदेव!" रेखा अपनी शरारती अंदाज में बोली।


"हम्म, काफी कठिन वादा दे दिया मुझे! देखो, प्यार मैं सिर्फ तुम दोनों से ही करता हूँ। और आगे भी करता रहूँगा। हमेशा अपना पति धर्म निभाऊँगा। लेकिन वह दूसरा वादा मुझे कुछ समझ नहीं आया। मेरे दिल में हमेशा तुम दोनों रहोगे। पर अभी तुम ने सुना, तुम्हारी सहेलियाँ अब मेरी साली हो गई है। तो क्या मैं उनसे!,,,"


"समझ गई मैं। बस अब कहने की जरुरत नहीं है। रेखा, देखा! हमारे पति के दिल में सालीयों के साथ रंगरलियाँ मनाने का सपना है। वह तुम कर सकते हो। इतनी छूट तुम्हें जरुर मिलेगी। लेकिन प्यार हमेशा हमारे साथ करोगे! बस इतना सा वादा है।"


"ठीक है वादा रहा, मैं हमेशा तुम दोनों से प्यार करूँगा। अब तुम दोनों मुझ से वादा करो, मुझे हमेशा पति का सम्मान दोगे। कभी मुझे बेटा या भाई होने का एहसास नहीं होने दोगे। और हमेशा पत्नी वाला प्यार दोगे।"


"हाँ हम उसके लिए तैयार हैं। शादी भी हमने इसी लिए की है। और कुछ!"


"नहीं, एसे नहीं। मुझे तुम दोनों से सुनना है। बताओ मुझे!"


"हाँ बाबा हाँ, हम हमेशा तुम्हें पति वाला प्यार देंगे। एक पत्नी की तरह प्यार करेंगे। कभी बेटा होने का एहसास नहीं होने देंगे। तुम्हारे नाम की माँग में सिन्दूर भरेंगे। मंगलसूत्र पहनेंगे। तुम्हारे से आशीर्वाद लेंगे। और कुछ!"


"बस फिलहाल यही। अब आगे क्या! एक वादा रह गया है।" अन्दर बदमाश ऊपर से सीधा सादा दिखने वाला रघू ने कहा। उसके कहने पे राधा और रेखा ने एक दूसरे की और देखा।


"और क्या रह गया है! सब कुछ तो बता दिया।" रेखा ने बताया।


"नहीं अभी भी एक वादा बाकी है।"


"मैं बता देती हूँ रेखा, हमारे इस नटखट पति देव को और क्या चाहिए! एक वादा रह गया है। वह है, हम पत्नी होने ने नाते तुम्हारे बच्चों की माँ बनेगें। तुम्हारी सन्तानों को जनम देंगे। हमारे पेट में पलने वाला बच्चा तुम्हारा ही होगा। अब खुश!" राधा के बताने के अंदाज से रघू का लौड़ा धोती फाड़ के निकलना चाह रहा था।


"हाँ यही वादा चाहिए था। अब चलो, यह सब हटाओ। मुझे अपनी पत्नियों को देखने दो।"


"इतनी भी क्या जल्दी है पतिदेव। पहले दूध तो पी लो। सुहागरात में दूध पीना शुभ होता है। वह रखा है दूध!"


"दूध तो मैं जरुर पीऊँगा। लेकिन यह तो बताओ किस का दूध पिलाओगी। अपना या राधा का!" रघू अब उनके नजदीक बैठ गया। दोनों के सामने। नजरों के सामने। रघू ने दोनों का हाथ पकड़ा।


"उसके लिए हमारे पति को थोड़ा इन्तज़ार करना पडेगा। और मेहनत भी। क्यों रेखा!"


"हाँ मेहनत करनी पड़ेगी। दूध के लिए मेहनत लगती है। काफी मेहनत लगती है। कर पाओगे जी!"


"उसी दूध के लिए आज से हमारी मेहनत शुरु होगी। चलो कोई बात नहीं है, पहले मेहनत करूँगा फिर दूध पीऊँगा। फिलहाल यही दूध पी लेता हूँ। लेकिन तुम्हारे हाथों से पीऊँगा मैं।" दूध लाने के लिए दोनों को उठना ही पडेगा। और अपने दूध से हाथ हटाकर रघू के सामने दिखाना भी पडेगा। इसी सोच में दोनों ने कुछ देर एक दूसरे की तरफ देखा।


"रेखा, चल, लगता है आज हमारा पति हमारी लाज शरम सब मिटाकर ही मानेगा।" राधा यूँही बिना कुछ सोचे पलंग से नीचे उतर आई। और उसकी बड़ी बड़ी मम्मियां लटकी हुई हिल्ती रही। रघू उससे अपनी नजर नहीं हटा पा रहा था। अपनी माँ राधा की तरह रेखा भी नीचे आ गई। दोनों अधनंगी नारी को देखकर रघू बेचारा हक्का-बक्का होकर रह गया। उसका मुहँ खुला का खुला रह गया।


"जितना भी देख लो, जी नहीं भरेगा तुम्हारा! क्यों राधा!"


"हाँ, यह लो, दूध पी लो।" राधा दूध का ग्लास रघू के आगे बढा देती है।


"यह तो गाये का दूध है।"


"अभी यही पी लो, जब तुम अपना दूध तैयार कर लोगे, तब हम तुम्हें वही दूध पिला देंगे। ही ही।" रघू को अपने ऊपर विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी माँ और बहन उसकी बीबी बनकर उसे अपना यह रूप दिखायेगी। पति बन बैठा रघू धोती में खडा लौड़ा लेकर दोनों खुबसूरत बिबियों को बस देखने लगा।

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Bhai Story to bahut hi Solid h..
Sirf photos aur gif ki kami h.. Wo v add kroge to aur maza ayega
 
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राधा रेखा प्रतीक्षा कर रही है।

लगने लगा है की ये प्रतीक्षा अंतहीन हो रही है।

इनकी प्रतीक्षा खत्म नहीं हुई तो कुसुम की कहानी कैसे शुरू होगी
 
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राधा रेखा प्रतीक्षा कर रही है।

लगने लगा है की ये प्रतीक्षा अंतहीन हो रही है।

इनकी प्रतीक्षा खत्म नहीं हुई तो कुसुम की कहानी कैसे शुरू होगी
 
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Mass

Well-Known Member
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Babulaskar , bhai, yeh story 19th Nov 2020 ko start kiya hain...aaj exactly 2 yrs complete hua hain yeh story start kar ke...
aur in do years mein is story mein only 54 updates aaye hain...which is very very slow...and you complain ki koi comments nahi aate hain kar ke...
Khair...kya yeh story (which you said is nearing completion) 2022/23 tak end hoga??
Rest upto you though...All the best!!
 
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राधा रेखा प्रतीक्षा कर रही है।

लगने लगा है की ये प्रतीक्षा अंतहीन हो रही है।

इनकी प्रतीक्षा खत्म नहीं हुई तो कुसुम की कहानी कैसे शुरू होगी
लेखक महोदय कुछ होगा या नहीं।
 
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