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ik hasīñ aañkh ke ishāre par
qāfile raah bhuul jaate haiñ
Abdul Hamid Adam
qāfile raah bhuul jaate haiñ
Abdul Hamid Adam
बहुत बहुत शुक्रिया, हुज़ूर का, तशरीफ़ लाने के लिए,क्या बात कही है ,
Waah! Kya baatजिसे अपना समझना था वो आँख अब अपनी दुश्मन है
कि ये रोने से बाज़ आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ
घटा जो दिल से उठती है मिज़ा तक तो आ जाती है
मगर आँख उस को बरसाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ
हुज़ूर की ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रियाShandaar
बहुत बहुत शुक्रियाWaah! Kya baat![]()