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Shayari आँखे - शेरी शायरी

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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इधर गैसू, उधर रू-ए-मुनव्वर है तसव्वर में,
कहाँ ये शाम आयेगी, कहाँ ऐसी सहर होगी।


1.गैसू - बाल, जुल्फें 2. रू-ए-मुनव्वर - रौशन चेहरा या मुखड़ा

3. सहर - सुबह, प्रातःकाल, प्रभात, भोर

Bahut hi umda :applause:
 
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इक न इक जुल्मत से जब वाबस्ता रहना है तो जोश,
जिन्दगी पर साया-ए-जुल्फे-परीशां क्यों न हो।

-'जोश' मलीहाबादी
Shandaar :applause:
 
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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आप के गैसुओं की साया है,
लोग जिसको बहार कहते हैं।
Bahut khoob :perfect:
 
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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निगाहों पे गुफ़्तगू हो चुकी,... लगता है अब शेरो की तादाद इस मुद्दे पर कम होती जा रही है तो मैं इस थ्रेड में गेसुओं को भी जोड़ रही हूँ और आप सब से इल्तज़ा है की निगाहों के साथ जुल्फों पे शेर पेश करें,

और शुरुआत गेसुओं से जुड़े चंद शेरों के साथ,
Time ki kami ke chalte yaha aa nahi pata, yahi vajah hai ki apni taraf se kuch pesh-e-khidmat nahi :sigh:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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क्या कहें, क्या क्या किया, तेरी निगाहों ने सुलूक,
दिल में आईं दिल में ठहरीं दिल में पैकाँ हो गईं।
 

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शोर न कर धड़कन ज़रा, थम जा कुछ पल के लिए,
बड़ी मुश्किल से मेरी आखों में उसका ख्वाब आया है।
 
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TheBlackBlood

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IMG-20220910-203126.jpg
 

komaalrani

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क्या कहें, क्या क्या किया, तेरी निगाहों ने सुलूक,
दिल में आईं दिल में ठहरीं दिल में पैकाँ हो गईं।
बहुत ही खूब सूरत शेर,

सच में , आपके बिना तो ये महफ़िल सूनी ही हो जाती है, गुस्ताख़ी माफ़, थोड़ा बहुत वक्त बाकी थ्रेड से निकल के अगर यहाँ का रुख़ इसी तरह करते रहेंगे



कभी कभी तन्हाई एकदम काटने को दौड़ती है, और जब उम्मीदें दम तोड़ने लगती हैं तो फ़ैज़ साहेब की चंद लाइनें बार बार जेहन में उभरती हैं,'

' फिर कोई आया दिल ए जाऱ, नहीं कोई नहीं।

राह रौ होगा, कहीं और चला जाएगा।

....

अपने इन बेख्वाब किवाड़ों को मुक़्क़फ़ल कर लो,

अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आएगा।

लेकिन आप आते हैं तो फिर


जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए।
 

komaalrani

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क्या बात कही, जैसा उम्मदा शेर वैसी ही तस्वीर
 
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