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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Seema3384

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आपकी पिछली दोनों पोस्ट मैंने एक साथ पढ़ीं , पर ये पंक्तियाँ मुझे लगता है शायद कहानी की दिशा और दशा दोनों निर्धारित करें, इसलिए में थोड़ी चर्चा आज इन्ही पर करना चाहूंगी,

"... व्यभिचार की देन है और यह व्यभिचार अत्यंत निकृष्ट है ऐसे संबंध समाज और मानव जाति के लिए घातक है।" और "इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ,... इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ"

मैंने पहले भी कहा था की सुगना और सरजू सिंह के संम्ब्ध न तो कानूनी रूप से न ही नैतिक रूप से ' इन्सेस्ट' की श्रेणी में आते हैं. सरजू सिंह सुगना के ससुर नहीं हैं न ही सुगना उनकी बहू. सुगना के ससुर अगर कोई है तो वो वो विद्यानंद जी जो अपनी सांसारिक जिम्मेदारियां छोड़ कर अब स्वामी बन गए हैं, बिना इस बात की चिंता किये की जिस से उन्होंने शादी की, उस पत्नी की, जिस पुत्र को उन्होंने पैदा किया, उसकी क्या हालत है. सुगना का पति उसे छोड़कर बंबई में एक दूसरी स्त्री के साथ रह रहा है, उसके साथ उसके बच्चे भी हैं.

तो अनैतिक आचरण किसका है, सुगना का या उनका जो अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़ कर चले गए, और ग्राहस्थ्य धर्म के अपने कर्तव्यों की अवहेलना की?

या सुगना के पति का, जिसने न सुगना को देह का सुख दिया न अपना सरंक्षण?

अब एक बार सुगना और सरयू सिंह के संबंधो को देखते हैं , मैं पाठकों से अनुरोध करुँगी उस प्रसंग को फिर से पढ़ें, एक झिझक, एक मानसिक अंतर्द्वंद एक उहापोह ,.. जो उस संबंध के पहले है, सुगना के मन में देह की भूख तो है लेकिन उस से बढ़कर पुत्र की लालसा है और कजरी के मन में वंश समाप्त होने का डर, और यह संबंध देह के क्षणिक सुख की लालसा से नै उत्पन हुए बल्कि पुत्र प्राप्ति की कामना और वंश समाप्त होने के भय से भी उत्पन्न हुए हैं, ... हाँ देह का आनंद भी है पर जो संस्कृति काम को धर्म और मोक्ष के बराबर पुरुषार्थ मानती है, अनंग को पूजती है, उस के लिए यह आवश्यक है सृष्टि को चलाने के लिए , सृष्टि का सृजन भले ही अपौरुषेय है , पर पुरुष और स्त्री मिल कर ही उसे आगे बढ़ाते हैं ,

और स्त्री के पति और ससुर दोनों ही, जिसे वो सही समझते हैं, उसके लिए उसे छोड़कर चले गए है उसके लिए क्या उचित है ?

चलिए अब एक बार नैतिकता और विधि दोनों के तराजू पर सुगना संबंध को देखते हैं, ...

अगर पत्नी पति की सहायता से वंश को आगे न चला पाए तो,...

महाभारत में इस तरह की स्थितियां बार बार आती हैं,

कुंती, पांडू की अनुमति से तीन देवो का आह्वान करती हैं , और उनसे अर्जुन, भीम और युधिष्ठिर पैदा होते हैं, और युधिष्ठिर धर्मराज भी कहे जाते हैं। माद्री संबध अश्विनी पुत्रों से हुआ और नकुल सहदेव से हुआ,

गांधारी का व्यास के साथ नियोग सर्वजन्य और सर्वमान्य भी है और विदुर भी उसी की उत्तप्ति हैं।

यहाँ पर भी वंश वृद्धि के लिए कजरी परेशान है , और सब कुछ सोच समझ कर वह सरजू सिंह का चयन करती है,...

हाँ कोई कह सकता है की सूरज के जन्म के बाद भी सरजू सिंह और सुगना का संबंध कायम रहा, लेकिन यह भी हमें देखना होगा की स्त्री की चाह सिर्फ देह की नहीं होती, ( जैसा अधिकतर कहानियों दिखाया जाता है ) देह तो एक सीढ़ी भर है, मन के तहखाने तक पहुँचने के लिए जहाँ आंनद का कोष है,... खजाना है ,

बिना मन के तन का संबध व्यभिचार हो सकता है, पर मेरे लेखे सुगना और सरजू सिंह का संबंध व्यभिचार की श्रेणी में नहीं आता,

अब वैधिक दृष्टि से भी इस पर नजर डालते हैं,

सर्वोच्च न्यायालय ने २०१८ में भारतीय दंड सहिंता की धारा ४९७ को अवैध घोषित कर दिया हैं और कहा है की स्त्री पुरुष की संपत्ति नहीं है अतः सुगना सरयू संबंध आपराधिक नहीं हैं,

यहाँ पर कहानी एक दोराहे पर खड़ी है, यह एक नैतिक अंतर्द्वंद की ओर मुड़ सकती है जहाँ सुगना और कजरी स्त्री के देह के अधिकारों की बहस करती दिख सकती हैं या

सूरज की जो एक मैजिकल स्थिति है , अंगूठे की जिसका जिक्र कहानी में पहले ही आ चुका था , उससे वो इन्सेस्ट की ओर मुड़ सकती है

लेकिन कोई भी पाठक /पाठिका यह नहीं अंदाज लगा सकता की कहानी किधर मुड़ेगी,... ख़ास तौर से इस तरह जबरदस्त कहानी

जब भी मैं इस फोरम पर आउंगी अपनी कहानियों की ओर रुख करने के पहले कहानी पर जरूर आउंगी ,

सही मुझे भी वो बात न समझ आती ना इसमें इस से कोई उत्तेजना पैदा होती।।।

बिलकुल ही अलग किस्म का अपडेट लाली को छोड़ कर सुगना और महर्षि का वार्तालाप व्यर्थ जैसा है।।।
अगर महर्षि को ये सब पता है तो क्या उन्हे ये ज्ञान नही की वो उन्हिकी पुत्र वधु है।।।

अजीब किस्म की दुविधा है अपडेट में।।
जो बाते बताना ही समझ से परे है उत्साह और उत्तेजना से बिलकुल विपरीत है।।

जिस बेटे को व्यभिचार से ही है फिर भी उसका बेटा ही उसके साथ ये बात भी समझ से परे
 

komaalrani

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सही मुझे भी वो बात न समझ आती ना इसमें इस से कोई उत्तेजना पैदा होती।।।

बिलकुल ही अलग किस्म का अपडेट लाली को छोड़ कर सुगना और महर्षि का वार्तालाप व्यर्थ जैसा है।।।
अगर महर्षि को ये सब पता है तो क्या उन्हे ये ज्ञान नही की वो उन्हिकी पुत्र वधु है।।।

अजीब किस्म की दुविधा है अपडेट में।।
जो बाते बताना ही समझ से परे है उत्साह और उत्तेजना से बिलकुल विपरीत है।।

जिस बेटे को व्यभिचार से ही है फिर भी उसका बेटा ही उसके साथ ये बात भी समझ से परे


कहानी बहुत अच्छी है और बनारस वाली पोस्ट भी, मेरा यह मतलब नहीं था की ये पोस्ट अच्छी नहीं है.

यह पोस्ट स्वामी की मानसिकता को दर्शाती है और ऐसे बहुत से लोग हैं जो नैतिकता को मात्र देह से वो भी स्त्री की देह से ही जोड़ कर देखते हैं और हो सकता है स्वामी जी की सोच वही दर्शाती हो,

मेरा इशारा एक नैतिक अंतर्द्वंद की तरफ था और एक अच्छी कहानी मात्रा कामोत्तेजक ही नहीं विचारोत्तेजक भी होती है और कई स्तरों पर चलती है , और मैं इस कहानी को उसी श्रेणी की कहानी में गिनती हूँ.

मुझे यह भी लगा की इस समय कहानी एक निर्णायक मोड़ पर है यह मेरी एक व्यक्तिगत राय या भावना हो सकती है पर मुझे अक्सर इन्सेस्ट वाली कहानियां बहुत नहीं भाती क्योंकि उसमें जो मानसिक झंझावात मुझे लगता है होना चाहिए वो नहीं होता।

इस कहानी की हर पोस्ट कुछ नए दरवाजे खोलती है तो मैं बस यही कहूंगी , इन्तजार करिये अगली पोस्ट की
 

Lovely Anand

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कहानी बहुत अच्छी है और बनारस वाली पोस्ट भी, मेरा यह मतलब नहीं था की ये पोस्ट अच्छी नहीं है.

यह पोस्ट स्वामी की मानसिकता को दर्शाती है और ऐसे बहुत से लोग हैं जो नैतिकता को मात्र देह से वो भी स्त्री की देह से ही जोड़ कर देखते हैं और हो सकता है स्वामी जी की सोच वही दर्शाती हो,

मेरा इशारा एक नैतिक अंतर्द्वंद की तरफ था और एक अच्छी कहानी मात्रा कामोत्तेजक ही नहीं विचारोत्तेजक भी होती है और कई स्तरों पर चलती है , और मैं इस कहानी को उसी श्रेणी की कहानी में गिनती हूँ.

मुझे यह भी लगा की इस समय कहानी एक निर्णायक मोड़ पर है यह मेरी एक व्यक्तिगत राय या भावना हो सकती है पर मुझे अक्सर इन्सेस्ट वाली कहानियां बहुत नहीं भाती क्योंकि उसमें जो मानसिक झंझावात मुझे लगता है होना चाहिए वो नहीं होता।

इस कहानी की हर पोस्ट कुछ नए दरवाजे खोलती है तो मैं बस यही कहूंगी , इन्तजार करिये अगली पोस्ट की
मैंने पहले भी कहा है और आज फिर कहता हूं कि आप कहानी का मर्म बखूबी समझती हैं.

सुगना और सरयू सिंह ने जो संबंध बनाए वह नैतिक या अनैतिक थे यह पाठक अपनी इच्छा अनुसार तय कर सकते हैं।
परंतु सरयू सिंह ने सुगना को उसे गर्भवती करने की बजाय लड्डू में गर्भ निरोधक दवाइयां खिलाकर कई महीनों तक संभोग करते रहे। सुगना भी उस आनंद को छोड़ना नहीं चाहती थी और पुत्र की लालसा को त्याग कर संभोग सुख में रम गई थी। सरयू सिंह के माथे का दाग नियति का इशारा था वह सुगना और सरयू सिंह दोनों को इस संबंध को यथाशीघ्र रोकने का इशारा कर रही परंतु कामाग्नि में जल रहे ससुर और बहू आनंद लेते रहे .

सरयू सिंह और सुगना के काम संबंध यही नहीं रुके पूरी यात्रा के दौरान कजरी भी इस वासना के खेल में शामिल हो गई।

विद्यानंद स्वामी कहीं से भी आदर्श नहीं है वह कलयुगी महात्माओं और फकीरों की तरह है सूरज के बारे में उसे किसी अनजान शक्ति ने बताया है जिसे ढूंढता हुआ वह बनारस महोत्सव आया है उसे अपने परिवार का बखूबी ज्ञान है परंतु न तो वह अपने पुत्र रतन को जानता है न सुगना को।

हां सरयू सिंह और कजरी अब अभी उसकी यादों में है जिसका जिक्र उसने हरिद्वार में किया था।

विद्यानंद त्रिकालदर्शी महात्मा नहीं है जिन्हें भूत भविष्य वर्तमान सभी का ज्ञान सूरज के बारे में उनका आकलन उस अनजान शक्ति द्वारा बताया गया है।

लंबी कहानी के संवादों और भावनाओं को आत्मसात कर पाना इतना आसान नहीं होता मैं समझ सकता हूं पर फिर भी यकीन के साथ कह सकता हूं की जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाएगी कहानी का मर्म और दुविधा खत्म होती जाएगी।
सेक्स और उसका रोमांच समय-समय पर पाठकों की जांघों के बीच हलचल मचाता रहेगा।

.धन्यवाद....
 

Lovely Anand

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सही मुझे भी वो बात न समझ आती ना इसमें इस से कोई उत्तेजना पैदा होती।।।

बिलकुल ही अलग किस्म का अपडेट लाली को छोड़ कर सुगना और महर्षि का वार्तालाप व्यर्थ जैसा है।।।
अगर महर्षि को ये सब पता है तो क्या उन्हे ये ज्ञान नही की वो उन्हिकी पुत्र वधु है।।।

अजीब किस्म की दुविधा है अपडेट में।।
जो बाते बताना ही समझ से परे है उत्साह और उत्तेजना से बिलकुल विपरीत है।।

जिस बेटे को व्यभिचार से ही है फिर भी उसका बेटा ही उसके साथ ये बात भी समझ से परे

सीमा जी इस कहानी में सेक्स आ अंश ज्यादा है पर संबंधों की जटिलता कई बार कुछ पाठकों को कम रोचक लग सकती है।
जुड़े रहे और अपनी भावनाएं व्यक्त करते रहे। विद्यानंद के प्रसंग की अपनी अहमियत है जो आने वाले अपडेट्स में दिखाई पड़ेगी।
 

Lovely Anand

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Adbhut aur akalpania bemisaal update lovely Anand bhai.Lagta hai aaj to sonu boor rupi khajane par fateh paa hi lega.
Bahut hi umda aur bemisaal update Sirjee....
धन्यवाद जुड़े रहिये।
 

Lovely Anand

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सरयूसिंग, कजरी और सुगना बनारस महोत्सव में आ गये
स्वामी विद्यानंद ने सुगना को बुला कर सुरज के उस के साथ आगे क्या क्या घटनायें होने वाली है उसका बहूत कुछ विवरण सुगना को बता दिया लेकीन उसे यह नहीं मालूम की सुगना उसके पुत्र सुरेश की पत्नी हैं और सुरज उसके भाई सरयूसिंग और बहू सुगना के अवैध मिलन का परिनाम हैं
कजरी, सरयूसिंग और स्वामी विद्यानंद मुलाकात होने के बाद तीनों की क्या प्रतिक्रिया होती हैं देखते हैं
सोनू और लाली के मिलन का समय आ गया है
देखते एक धुवांधार थ्रिसम होने वाला है की नहीं
बहुत ही अजब गजब रोमांचकारी और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
आप भी कहानी बड़ी तेजी में पढ़ लेते हैं जैसे पारखी व्यक्ति खत देखकर खत का मजमून भांप लेताहै।

वैसे राजेश विद्यानंद उर्फ बिरजू का पुत्र नहीं है उसका पुत्र रतन है जो मुंबई में है राजेश सुगना की सहेली लाली का पति है। वही लाली जो सोनू और पाठकों के दिमाग में छाई हुई है।

जुड़े रहें...
 
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Lovely Anand

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भाई गलती से मिस्टेक हो गई
🙏
आपका इस कहानी से जुड़ाव पहले का है मैंने इसीलिए आपको याद दिलाया वैसे आपकी व्यस्तताओं को देखकर लगता है कि आप लेखकों को प्रोत्साहित ज्यादा करते हैं और कहानी की पढ़ाई कम
ज्यादा कह दिया हो तो क्षमा करिएगा यूं ही जुड़े रहिए मुस्कुराते रहिए।
 
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Napster

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आपका इस कहानी से जुड़ाव पहले का है मैंने इसीलिए आपको याद दिलाया वैसे आपकी व्यस्तताओं को देखकर लगता है कि आप लेखकों को प्रोत्साहित ज्यादा करते हैं और कहानी की पढ़ाई कम
ज्यादा कह दिया हो तो क्षमा करिएगा यूं ही जुड़े रहिए मुस्कुराते रहिए।
भाई आपकी दोनो कहानी और आपकी अनूपम लेखनी का फॅन हू
हा ऑफिशीयल व्यस्तता के कारण लेट पढता हू लेकीन पढता जरुर हू
लेखक को प्रोत्साहन देना कहानी पढने वाले हर पाठक का कर्तव्य है जो मै करता हू
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 
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