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Romance एक अनोखा बंधन (Completed)

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amita

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“ये मैं कहा हूँ. मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली ले कर सोई थी.

मैं यहा कैसे आ गयी ? किसका कमरा है ये ?”

आँखे खुलते ही ज़रीना के मन में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक

अंजाना भय उसके मन को घेर लेता है.

वो कमरे को बड़े गोर से देखती है. "कही मैं सपना तो नही देख रही" ज़रीना सोचती है.

"नही नही ये सपना नही है...पर मैं हूँ कहा?" ज़रीना हैरानी में पड़ जाती है.

वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी हो कर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.

"बिल्कुल शुनशान सा माहॉल है...आख़िर हो क्या रहा है."

ज़रीना को सामने बने किचन में कुछ आहट सुनाई देती है.

"किचन में कोई है...कौन हो सकता है....?"

ज़रीना दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देख कर उशके होश उड़ जाते हैं.

“अरे ! ये तो अदित्य है… ये यहा क्या कर रहा है...क्या ये मुझे यहा ले कर आया है...ईश्की हिम्मत कैसे हुई” ज़रीना दरवाजे पर खड़े खड़े सोचती है.

आदित्या उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी. आदित्य और ज़रीना के परिवारों में बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर अदित्य की मम्मी और ज़रीना की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी. इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में मशहूर था. अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कठ्ठा हो जाते थे.

ज़रीना और अदित्य भी एक दूसरे को देख कर बिल्कुल खुस नही थे. जब कभी

कॉलेज में वो एक दूसरे के सामने आते थे तो मूह फेर कर निकल जाते थे. हालत कुछ ऐसी थी कि अगर उनमे से एक कॉलेज की कॅंटीन में होता था तो दूसरा कॅंटीन में नही घुसता था. शूकर है कि दोनो अलग अलग सेक्षन में थे. वरना क्लास अटेंड करने में भी प्राब्लम हो सकती थी.

“क्या ये मुझ से कोई बदला ले रहा है ?” ज़रीना सोचती है.

अचानक ज़रीना की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लवर पोट पर पड़ी. उसने धीरे से फ्लवर पोट उठाया.

आदित्य को अपने पीछे कुछ आहट महसूस हुई तो उसने तुरंत पीछे मूड कर देखा. जब तक वो कुछ समझ पाता... ज़रीना ने उसके सर पर फ्लवर पोट दे मारा.

आदित्य के सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर गिर गया.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की." ज़रीना चिल्लाई.

ज़रीना फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गयी.

पर घर के बाहर पहुँचते ही उसके कदम रुक गये. उसकी आँखे जो देख रही थी उसे उस पर विश्वास नही हो रहा था. वो थर-थर काँपने लगी.

उसके अध-जले घर के बाहर उसके अब्बा और अम्मी की लाश थी और घर के

दरवाजे पर उसकी छोटी बहन फ़ातिमा की लाश निर्वस्त्र पड़ी थी. गली मैं

चारो तरफ कुछ ऐसा ही माहॉल था.

ज़रीना को कुछ समझ नही आता. उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगता है और वो फूट-फूट कर रोने लगती है.

इतने में अदित्य भी वाहा आ जाता है.

ज़रीना उसे देख कर भागने लगती है….पर अदित्य तेज़ी से आगे बढ़ कर उसका मूह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापिस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.

ज़रीना को सोफे के पास रखी हॉकी नज़र आती है.वो भाग कर उसे उठा कर अदित्य के पेट में मारती है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है. पर अदित्य जल्दी से संभाल कर उसे पकड़ लेता है

“पागल हो गयी हो क्या… कहा जा रही हो.. दंगे हो रहे हैं बाहर. इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हे देखते ही नोच-नोच कर खा जाएँगे”

ज़रीना ये सुन कर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे !! कैसे दंगे?”

“एक ग्रूप ने ट्रेन फूँक दी…….. और दूसरे ग्रूप के लोग अब घर-बार फूँक रहे हैं… चारो तरफ…हा-हा-कार मचा है…खून की होली खेली जा रही है”

“मेरे अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा ने किसी का क्या बिगाड़ा था” ---ज़रीना कहते हुवे

सूबक पड़ती है

“बिगाड़ा तो उन लोगो ने भी नही था जो ट्रेन में थे…..बस यू समझ लो कि

करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक षड्यंत्र है”

“तुम मुझे यहा क्यों लाए, क्या मुझ से बदला ले रहे हो ?”

“जब पता चला कि ट्रेन फूँक दी गयी तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था”

“हां-हां माइनोरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है”

“मेरे मा-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, ज़रीना...कोई भी अपना आपा खो देगा.”

“तो मेरी अम्मी और अब्बा कौन सा जिंदा बचे हैं.. और फ़ातिमा का तो रेप हुवा

लगता है. हो गया ना तुम्हारा हिसाब बराबर… अब मुझे जाने दो” ज़रीना रोते हुवे कहती है.

“ये सब मैने नही किया समझी… तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि फ़ातिमा का रेप

देखा नही गया मुझसे….अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर करफ्यू लगा है.

माहॉल ठीक होने पर जहाँ चाहे चली जाना”

“मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी”

ज़रीना किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नस

काटने लगती है

आदित्य भाग कर उसके हाथ से चाकू छीन-ता है और उसके मूह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.

ज़रीना थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने

लगती है.

“चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वहसी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया कि तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा”

“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो”

आदित्य कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.

ज़रीना रोते हुवे वापिस उसी कमरे में घुस जाती है जिसमे उसकी कुछ देर पहले आँख खुली थी.

-----------------------

अगली सुबह ज़रीना उठ कर बाहर आती है तो देखती है कि अदित्य खाना बना

रहा है.

आदित्य ज़रीना को देख कर पूछता है, “क्या खाओगि ?”

“ज़हर हो तो दे दो”

“वो तो नही है.. टूटे-फूटे पराठे बना रहा हूँ….यही खाने

पड़ेंगे..….आऊउच…” आदित्या की उंगली जल गयी.

“क्या हुवा…. ?”

“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”

“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”

“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”

ज़रीना कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”

“नही मैं बना लूँगा”

“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”

“एक शर्त पर हटूँगा”

“हां बोलो”

“तुम भी खाओगि ना?”

“मुझे भूक नही है”

“मैं समझ सकता हूँ ज़रीना, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर ज़ींदा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”

“किसके लिए ज़ींदा रहूं, कौन बचा है मेरा?”

“कल मैं भी यही सोच रहा था. पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने

का कोई मकसद मिल गया”

“पर मेरा तो कोई मकसद नही………”

“है क्यों नही? तुम इस दौरान मुझे अछा-अछा खाना खिलाने का मकसद बना लो… वक्त कट जाएगा. करफ्यू खुलते ही मैं तुम्हे सुरक्षित जहा तुम कहो वाहा पहुँचा दूँगा” – अदित्य हल्का सा मुस्कुरा कर बोला

ज़रीना भी उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली, “चलो हटो अब…. मुझे बनाने दो”
Good start.
Ye kahani padhi hui lag rahi hai
 
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amita

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“क्या मैं किसी तरह देल्ही पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वाहा?”

“चिंता मत करो, माहॉल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”

ज़रीना अदित्य की ओर देख कर सोचती है, “कभी सोचा भी नही था कि जिस

इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना

बनाउन्गि”

आदित्य भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना

भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ. शायद

यही इंसानियत है”

धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो आछे दोस्त बनते जाते हैं. एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.

वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से. कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं. वो दोनो वक्त की कड़वाहट को

भुलाने की पूरी कॉसिश कर रहे हैं.

एक दिन अदित्य ज़रीना से कहता है, “तुम चली जाओगी तो ना जाने कैसे रहूँगा

मैं यहा. तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है. कौन मेरे लिए

अछा-अछा खाना बनाएगा. समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”

“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”

“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”

“तो मुझे फोन किया करना”

ज़रीना को भी अदित्य के साथ की आदत हो चुकी है. वो भी वाहा से जाने के

ख्याल से परेशान तो हो जाती है, पर कहती कुछ नही.

आफ्टर वन मंथ: --

“ज़रीना, उठो दिन में भी सोती रहती हो”

“क्या बात है? सोने दो ना”

“करफ्यू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकेट बुक करा कर आता हूँ. तुम किसी

बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आ जाउन्गा”

“अपना ख्याल रखना अदित्य”

“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकारण कहीं की…हे..हे..हे….”

“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” --- ज़रीना अदित्य के उपर तकिया फेंक कर

बोलती है

आदित्य हंसते हुवे वाहा से चला जाता है.

जब वो वापिस आता है तो ज़रीना को किचन में पाता है

“बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी”

“5 दिन और का मतलब? ……मुझे क्या यहा कोई तकलीफ़ है?”

“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”

ज़रीना अदित्य के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता

है

“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाउ?”

“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था बाबा. ऐसा चाहता तो टिकेट क्यों बुक

कराता?” -- ये कह कर अदित्य वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता

की उसकी आँखे कब नम हो गयी.

इधर ज़रीना मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि”

वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं. आदित्य ज़रीना से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता. ज़रीना भी बार-बार अदित्य को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर अदित्य के सामने आने पर उसके होन्ट सिल जाते हैं.

जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते

करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट

की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.

सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.

कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है

वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है

“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”

“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”

“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”

ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो

अदित्य”

“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.

एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.

----------------------

5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.

ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”

“क्या? ”

“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”

“सच!!!!”

“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”

“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”

“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”

“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा

“कुछ नही”

आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”

जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.

ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता

ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता

नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.

“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.

ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.

“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.

“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”

“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”

ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.


आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.
Good one
Ye kahani abhi tak uss ke Saransh ke rup me hai
 

amita

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ज़रीना रास्ते भर किन्ही गहरे ख़यालो में खोई रहती है. अदित्य भी चुप रहता है.

एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलमपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”

“ह्म्म…..भैया यही उतार दो. आदित्य, मौसी का घर सामने वाली गली में है” ज़रीना ने कहा.

"शूकर है तुम कुछ तो बोली." अदित्य ने कहा.

"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."

"अछा-अछा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.

ज़रीना ऑटो से उतरती है. "अदित्य आइ आम सॉरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."

"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."

"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाउन्गि"

"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." अदित्य ने मुस्कुराते हुवे कहा.

ज़रीना ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"

थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. आदित्य ज़रीना को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" अदित्य ने कहा.

“आदित्य अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”

“सुक्रिया उस खुदा का करो जिसने हमे इंसान बनाया है…. मेरा सुक्रिया क्यों करोगी?”

“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”

“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”

“ठीक है अदित्य अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”

“और उस हॉकी का क्या?”

ज़रीना शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”

“ठीक है बाबा जाओ अब…. लोग हमें घूर रहे हैं”

ज़रीना भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और अदित्य उसे जाते हुवे देखता रहता है.

वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.

ज़रीना गली में घुस कर पीछे मूड कर अदित्य की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाइ करते हैं. उनकी दर्द भारी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है. पर दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुवे भी एक अनोखे बंधन में बँध चुके हैं. प्यार के बंधन में.

जब ज़रीना गली में ओझल हो जाती है तो अदित्य मूड कर भारी मन से चल

पड़ता है.

“पता नही कैसे जी पाउन्गा ज़रीना के बिना मैं? काश! एक बार उसे अपना दिल चीर कर दीखा पाता…क्या वो भी मुझे प्यार करती है? लगता तो है. पर कुछ कह नही सकते”अदित्य चलते-चलते सोच रहा है.

अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है

“आदित्य!!! रूको….”

आदित्य मूड कर देखता है.

उसके पीछे ज़रीना खड़ी थी. उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.

“अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो अपने, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना

चाहिए”

“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है अदित्य… मुझे खुद से दूर मत करो”

आदित्य की भी आँखे छलक उठती हैं और वो दौड़ कर ज़रीना को गले लगा कर

कहता है, “क्यों जा रही थी फिर तुम मुझे छ्चोड़ कर?”

“तुम मुझे रोक नही सकते थे?” ज़रीना ने गुस्से में पूछा.

“रोक तो लेता पर यकीन नही था कि तुम रुक जाओगी”

“तुम कह कर तो देखते” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

“ओह्ह…ज़रीना आइ लव यू…”

“पता नही क्यों.... बट आइ लव यू टू अदित्य” ज़रीना ने कहा.

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वापिस कैसे जाउन्गा”

“और मैं सोच रही थी कि तुम्हारे बिना कैसे जी पाउन्गि”

“अछा हुवा तुम वापिस आ गयी वरना देल्ही से मेरी लाश ही जाती”

“ऐसा मत कहो… मैं वापिस क्यों नही आती. अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा को तो खो चुकी हूँ, तुम्हे नही खो सकती अदित्य”

उन्हे उस पल किसी बात का होश नही रहता. प्यार और होश शायद मुस्किल से साथ चलते हैं.

“पता है…मैं तुम्हे बिल्कुल लाइक नही करता था”

“मैं भी तुमसे बहुत नफ़रत करती थी”

“ऐसा कैसे हो गया? ये सब सपना सा लगता है” अदित्य ने कहा

“ये तो पता नही…पर मुझे हमेशा अपने पास रखना अदित्य, तुम्हारे बिना मैं नही जी सकती”

“तुम मेरी जींदगी हो ज़रीना, मेरे पास नही तो और कहा रहोगी”

“पर अब हम जाएँगे कहा…. मुझे नही लगता कि हम दोनो उस नफ़रत के माहॉल में रह पाएँगे?”

“चिंता मत करो, प्यार हुवा है तो इस प्यार के लिए कोई ना कोई सुकून भरा

आसियाना भी ज़रूर मिल जाएगा”

दोनो हाथो में हाथ ले कर चल पड़ते हैं किसी अंजानी राह पर जिसकी

मंज़िल का भी उन्हे नही पता. प्यार की राह पर मंज़िल की वैसे परवाह भी कौन करता है.

जिस तरह नदी पहाड़ को चीर कर अपना रास्ता बना लेती है. उसी तरह प्यार

भी इस कठोर दुनिया में अपने लिए रास्ते निकाल ही लेता है. तभी शायद

इतनी नफ़रत के बावजूद भी दुनिया में प्यार… आज भी ज़ींदा है
Badhiya
 
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आदित्य और ज़रीना एक दूसरे का हाथ थाम कर चल दिए. पर उन्हे जाना कहा था ये वो तैय नही कर पाए थे. नया नया प्यार हुवा था वो दोनो अभी बस उसमें खोए थे. जींदगी की कठोरे सचाईयों का सामना उन्हे अभी करना था.

“वापिस चले क्या ज़रीना?”

“तुम्हे क्या लगता है लोग हमें वाहा जीने देंगे. मैं वाहा नही रह पाउन्गि अब.”

“पर यहा हमारा कुछ नही है. घर बार सब गुजरात में ही है. यहा पैर जमाना मुश्किल होगा.”

“हम कोशिस तो कर ही सकते हैं.”

“ठीक है ऐसा करते हैं फिलहाल किसी होटेल में चलते हैं और ठंडे दिमाग़ से सोचते हैं कि आगे क्या करना है.”

“हां ये ठीक रहेगा. मैं बहुत थक भी गयी हूँ. बहुत जोरो की भूक भी लगी है.”

“चलो पहले खाना ही खाया जाए. फिर होटेल चलेंगे.”

“हां बिल्कुल चलो.”

दोनो एक रेस्टोरेंट में बैठ जाते हैं और शांति से भोजन करते हैं.

“दाल माखनी का कोई जवाब नही. नॉर्थ इंडिया में बहुत पॉपुलर है ये.”

“हां अच्छी बनी है. मैं इस से भी अच्छी बना सकती हूँ.”

“तुमने घर तो कभी बनाई नही.”

“सीखूँगी ना जनाब तभी ना बनाउन्गि. मुझे यकीन है मैं इस से अच्छा बना लूँगी.”

बातो बातो में खाना हो जाता है और दोनो अब एक होटेल की तलास में निकलते हैं.

“यहा शायद ही कोई अच्छा होटेल मिले. कही और चलते हैं.” ज़रीना ने कहा.

“तुम्हे कैसे पता.”

“जनाब मेरी मौसी के यहा आती रहती हूँ मैं, पता कैसे ना होगा.”

“ओह हां बिल्कुल. चलो कही और चलते हैं.” आदित्य ने कहा.

दोनो ऑटो पकड़ कर लक्ष्मीनगर पहुँचते हैं और वाहा एक होटेल में कमरा ले लेते हैं. रात घिर आई है और प्यार के दो पंछी रात में आशियाना पा कर खुस हैं.

जब अदित्य और ज़रीना कमरे की तरफ जा रहे होते हैं तो ज़रीना कहती है, “तुम्हे नही लगता कि हमें दो कमरो की ज़रूरत थी.”

“क्यों अब तुम क्या मुझसे अलग रहोगी. इस प्यार का कोई मतलब नही है क्या तुम्हारे लिए.”

“प्यार हुवा है शादी नही…हे..हे…हे.” ज़रीना ने हंसते हुवे कहा.

“शादी भी जल्द हो जाएगी. तुम कहो तो अभी कर लेते हैं.”

“नही…नही मैं मज़ाक कर रही थी. चलो अंदर.” ज़रीना ने कहा.

रूम में आते ही ज़रीना बिस्तर पर पसर गयी और बोली, “ये बिस्तर मेरा है. तुम अपना इंटेज़ाम देख लो.”

“बहुत खूब …मैं क्या फर्स पर लेटुंगा.” आदित्य भी ज़रीना के बाजू में आ कर लेट गया.

ज़रीना फ़ौरन बिस्तर से उठ गयी.

“प्यार का मतलब ये नही है कि हम एक साथ सोएंगे. मैं सोफे पर जा रही हूँ. तुम चैन से लेटो यहा हा.”

“अरे रूको मैं मज़ाक कर रहा था. तुम लेटो यहा. सोफे पर मैं सो जाउन्गा.” आदित्य बिस्तर से उठ जाता है.

“पक्का…फिर मत कहना कि मैने बिस्तर हथिया लिया.” ज़रीना मुश्कुराइ.

“मेरा दिल हथिया लिया तुमने बिस्तर तो बहुत छोटी चीज़ है. जाओ ऐश करो.” आदित्य भी मुश्कराया.

ऐसा प्यार था उनका. प्यार और तकरार दोनो साथ साथ चल रहे थे. जब प्यार होता है तो प्यार को तरह तरह से आजमाया भी जाता है. ऐसा ही कुछ ज़रीना और अदित्य के प्यार के साथ होने वाला था. वो दोनो तो इस बात से बिल्कुल अंज़ान थे. नया नया प्यार हुवा था. और नया प्यार अक्सर सोचने समझने की शक्ति ख़तम कर देता है. शुरूर ही कुछ ऐसा होता है प्यार का. लेकिन ऐसे नाज़ुक वक्त में थोड़ी सी भी ग़लत फ़हमी या टकराव प्यार को मिंटो में कड़वाहट में बदल सकती है. प्यार इतना गहरा तो होता नही है कि संभाल पाए. इश्लीए नया नया प्यार अक्सर शुरूवात में ही बिखर जाता है. अभी तक तो सब ठीक चल रहा लेकिन अगले दिन अदित्य और ज़रीना के प्यार का इम्तिहान था. जिसमे पास होना बहुत ज़रूरी था.

अगले दिन दोनो बड़े प्यार से उठे. गुड मॉर्निंग विश किया. नहाए धोए. ब्रेकफास्ट किया और फिर आगे का सोचने लगे.

“अदित्य हमारी पढ़ाई का क्या होगा.”

“तभी तो मैं वापिस जाने की सोच रहा था. अब तो शांति है वाहा.”

“लेकिन मैं अगर वाहा तुम्हारे साथ रहूंगी तो लोग तरह तरह की बाते करेंगे.”

“तो क्या हुवा हम शादी करके रहेंगे एक साथ यू ही थोड़ा रहेंगे.”

“लेकिन वाहा अभी भी तनाव बना हुवा है. ऐसे में हमारे रिश्ते को कोई नही समझेगा.”

“फिर ऐसा करते हैं कि पहले पढ़ाई पूरी करते हैं. फिर आगे का सोचते हैं.”

“मैं कहा रहूंगी. मेरा घर तो बुरी तरह जल चुका है. और वाहा कोई और नही है जिसके पास मैं रुक पाउ.”

“हॉस्टिल हैं ना कॉलेज का दिक्कत क्या है.”

“ओह हां ये बात तो मैने सोची ही नही. हां मैं हॉस्टिल में रह सकती हूँ.”

“चलो छोड़ो ये सब. चलो घूम कर आते हैं कही. आते हुवे वापसी की ट्रेन का टिकेट भी बुक करवा लेंगे.”

“कही हम जल्दबाज़ी में तो फ़ैसला नही ले रहे.”

“फ़ैसला तो हमें लेना ही है. मुझे इस से बेहतर रास्ता नही लगता. तुम कुछ सूझा सकती हो तो बोलो.”

“हां वैसे हमारी पढ़ाई के लिहाज़ से ये ठीक है…चलो कहा घूमने चलोगे” ज़रीना ने कहा

“लाल किला नही देखा मैने अब तक चलो वही चलते हैं.” आदित्य ने कहा.

“मैने देखा है एक बार. तुम्हारे साथ देखने में और मज़ा आएगा चलो.”

दोनो लाल किला घूमने निकल पड़े. जब वो लाल किले से बाहर आए तो दोनो को जोरो की भूक लग चुकी थी.

“अदित्य चलो अब खाना खाया जाए. एक रेस्टोरेंट है यही पास में वाहा हर तरह का खाना मिलता है. चलो.”

आदित्य और ज़रीना एक रिक्सा ले कर उस रेस्टोरेंट पर पहुँचते हैं. लेकिन रेस्टौरा को देखते ही अदित्य सोच में पड़ जाता है. रेस्टोरेंट में वेज और नोन-वेज दोनो तरह का खाना था. आदित्या था पंडित इश्लीए वो थोड़ा सोच में पड़ गया. लेकिन ज़रीना की खातिर रेस्टोरेंट में घुस्स गया.

“ज़रीना तुम ऑर्डर दो मैं वॉश रूम हो कर आता हूँ.”

“क्या लोगे तुम ये तो बताते जाओ.”

“मंगा लो कुछ भी.”

ज़रीना ये तो जानती ही थी कि अदित्य वेजाइटरियन है. उसने उसके लिए वेज खाना ऑर्डर कर दिया और अपने लिए चिकन कढ़ाई और तंदूरी नान ऑर्डर कर दिया. यही से सारी मुसीबत शुरू होने वाली थी. आदित्य जब तक वापिस आया तब तक उसका खाना आ चुका था. जैसे ही अदित्य बैठा ज़रीना का ऑर्डर भी आ गया. जब वेटर ने चिकन कढ़ाई टेबल पर रखी तो आदित्या की तो आँखे फटी रह गयी. उसका मन खराब हो गया.

“ये तुमने ऑर्डर किया है.”

“हां…ये मेरी फेवोवरिट डिश है.”

“अफ…मैं यहा एक मिनिट भी नही बैठ सकता.” आदित्य वॉश रूम की तरफ भागता है. उसे उल्टी आ जाती है. पंडित होने के कारण वो हमेसा नोन वेज चीज़ो से दूर ही रहा था. उसके साथ ऐसा होना स्वाभाविक ही था.

आदित्य वापिस आया और बोला, “उठो मैं यहा खाना नही खाउन्गा.”

“क्या हो गया अदित्य कुछ बताओ तो सही. बैठो तो.”

“ये नोन वेज मेरी आँखो के आगे से हटा लो. मुझे ग्लानि होती है. कैसे खा सकती हो तुम एक जीव को. तुम्हे ग्लानि नही होती”

ज़रीना ने चिकन कढ़ाई पर पलेट रख दी और बोली, “कैसी बात कर रहे हो. इसमे ग्लानि की क्या बात है.”

अदित्य बैठ गया और बोला, “मैं ये सब बर्दास्त नही कर सकता. तुम्हे ये सब छोड़ना होगा.”

“क्यों छोड़ना होगा. ये भोजन है और कुछ नही. आइ लाइक इट.”

“पर ये किसी की हत्या करके बनता है. ये पाप है.”

“पता नही कौन सी दुनिया में जी रहे हो तुम. मैने तो बहुत पंडित लोगो को खाते देखा है नोन वेज.”

“खाते होंगे पर मैं बिल्कुल नही खाता.”

“तो मत खाओ तुम मुझे नही रोक सकते.”

“तुम समझती क्यों नही. अपने खाने के लिए क्या किसी जीव की हत्या ठीक है.”
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“मिस्टर अदित्य पांडे एक बात बताओ. क्या आनाज़ में जान नही होती. क्या पॅडी ज़ींदा नही होती. जिस पेड़ से फ्रूट तोड़े जाते हैं क्या वो जींदा नही हैं. मार्स पर घास का एक तिनका भी नही उगता. एक घास का तिनका भी उतना ही जींदा है जितना की चिकन. अब बताओ क्या कुछ ग़लत कहा मैने.”

“मुझे नही पता लेकिन मुझे ये सब बर्दास्त नही है.”

“ये तुम्हारी प्राब्लम है मेरी नही.” ज़रीना ने कहा.

प्यार बड़ी जल्दी अपना हक़ जताने लगता है. यही बात अक्सर टकराव का कारण बन जाती है. आदित्य ज़रीना पर हक़ तो जता रहा था पर उसने ग़लत वक्त चुन लिया था. ज़रीना के लिए अपने भोजन को डिफेंड करना स्वाभाविक था. ये बात अदित्य की समझ में नही आ रही थी.

ज़रीना की भी ग़लती थी. वो ये नही समझ पा रही थी कि अदित्य का रिक्षन नॅचुरल है. उसे बहस में पड़ने की बजाए थोड़ा शांति से काम लेना चाहिए था. लेकिन ये बाते कहनी आसान हैं और करनी मुश्किल.

आदित्य फ़ौरन उठ कर बाहर आ गया. आदित्य को सामने ही हनुमान जी का मंदिर दीखाई दिया और वो मंदिर में घुस्स गया.ज़रीना को इतना बुरा लगा कि वो भी बिना खाना खाए बिल पे करके बाहर आ गयी. बाहर आकर अदित्य को ना पाकर उसकी आँखो में खून उतर आया.

“बस इतना ही प्यार था इसे मुझसे. चला गया छोड़ के मुझे. मैं ऐसे इंसान के साथ जींदगी नही बीता सकती.”

गुस्से में अक्सर हम सही फ़ैसला नही कर पाते और अपनी सोचने समझने की ताक़त खो बैठते हैं. ज़रीना इतने गुस्से में थी कि उसने तुरंत मौसी के घर जाने का फ़ैसला कर लिया. उसने ऑटो पकड़ा और सिलमपुर की तरफ चल पड़ी. हालाँकि ये बात और थी कि रास्ते भर उसकी आँखे टपकती रही.

आदित्य सोच रहा था कि ज़रीना अंदर चैन से बैठ कर खाना खा रही होगी. इश्लीए वो मंदिर से आराम से निकला. उसने रेस्टोरेंट के बाहर से ही झाँक कर देखा. ज़रीना वाहा होती तो दीखती. उसने अंदर आ कर पता किया. उसे बताया गया कि वो तो खाना खा कर चली गयी. अब वेटर बहुत बिज़ी रहते हैं. उन्हे क्या मतलब किसी ने खाना खाया या नही. उसके मूह से निकल गया कि वो खाना खा कर चली गयी. आदित्य के शीने पर तो जैसे साँप लेट गया.

उसने बाहर आ कर देखा लेकिन ज़रीना कही दीखाई नही दी. “ये प्यार इतनी जल्दी भिखर जाएगा मैने सोचा नही था.”

आदित्य ऑटो लेकर होटेल की तरफ चल दिया. उसे उम्मीद थी कि ज़रीना उसे होटेल में ही मिलेगी. लेकिन होटेल पहुँच कर वो दंग रह गया. ज़रीना वाहा होती तो मिलती. वो तो अपनी मौसी के घर पहुँच भी गयी थी और वाहा उसका बड़े जोरो का स्वागत भी हो रहा था.

आदित्य बेचारा अकेला बिस्तर पर लेट गया. “शायद वो चली गयी अपनी मौसी के यहा. अगर यही सब करना था तो कल मेरे साथ आई ही क्यों थी. कल ही चली जाती. चलो अछा ही हुवा. उसके साथ निभाना वैसे भी मुश्किल था.” ये बाते अदित्य सोच तो रहा था लेकिन सोचते सोचते उसकी अंजाने में ही आँखे भर आई थी.

“ज़रीना क्यों किया तुमने मेरे साथ ऐसा. तुम तो ऐसी नही थी. मुझे छोड़ कर चली गयी. क्या यही प्यार था तुम्हारा. मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगा.”

ज़रीना और आदित्या दोनो को ही प्यार ने बड़ी गहरी चोट दी थी. इधर अदित्य रो रहा था उधर ज़रीना की भी हालत खराब थी. उसे लोगो ने घेर रखा था. उस से पूछा जा रहा था कि वो दंगो से कैसे बची. ज़रीना ऐसी हालत में नही थी कि कुछ भी कहे. उसका तो दिल बहुत भारी हो रहा था. वो कयि बार वॉश रूम में आकर चुपचाप सूबक सूबक कर रोई.

इस तरह प्यार के इंतेहाँ में अदित्य और ज़रीना का प्यार फैल हो गया था. और इस फेल्यूर के बाद दोनो का ही बहुत बुरा हाल था. दोनो के दिलो में एक दूसरे के लिए नफ़रत उभरने लगी थी लेकिन आँखे थी कि प्यार में आँसू बहा रही थी. प्यार भी अजीब खेल खेलता है.

प्यार को समझना बहुत मुश्किल काम है. ये बात वही समझ सकते हैं जो कभी प्यार के पचदे में पड़े हों. ज़रीना चली तो आई थी गुस्से में अपनी मौसी के घर लेकिन उसके दिल पर अदित्य से दूर हो कर जो बीत रही थी उसे सिर्फ़ वो ही जानती थी. ऐसा नही था कि नाराज़गी दूर हो गयी थी उसकी. वो तो ज्यों की त्यों बरकरार थी. लेकिन फिर भी रह-रह कर वो अदित्य की यादों में खो जाती थी.

मौसी के यहा ज़रीना को गुम्सुम देख कर सभी परेशान थे. उन्हे लग रहा था कि ज़रीना ज़रूर कुछ छुपा रही है. लोग अंदाज़ा लगा रहे थे कि शायद दंगो के दौरान कुछ अनहोनी हो गयी होगी उसके साथ, जिसे वो छुपा रही है. इश्लीए लोगो ने उस से सवाल पूछने बंद कर दिए. उन्हे क्या पता था की ज़रीना की छुपी का कारण अदित्य है.

ज़रीना कोशिस तो खूब कर रही थी हँसने की मुश्कूराने की लेकिन बार बार उसका दिल भारी हो उठता था.

“बेटा तू कुछ बोल क्यों नही रही है. जब से आई है गुमशुम सी है. हमें बता तो सही की क्या बात है.” ज़रीना की मौसी ने पूछा.

“मौसी कुछ नही बस वैसे ही परेशान हूँ.” ज़रीना ने कहा.

“अम्मी और अब्बा की याद आ रही होगी है ना. फ़ातिमा का सुन कर बहुत दुख हुवा मुझे. अल्ला उन्हे माफ़ नही करेंगे जिन्होने फ़ातिमा के साथ ये सब किया.”

“मुझे वो सब याद ना दिलाओ मौसी. बड़ी मुश्किल से भूली हूँ मैं वो सब.” बोलते-बोलते ज़रीना की आँखो में आँसू उतर आए.

मौसी ने ज़रीना को गले से लगा लिया और बोली, “मेरी प्यारी बच्ची…चल छोड़ ये उदासी कुछ खा पी ले.”

“मुझे भूक नही है मौसी अभी.” ज़रीना ने कहा.

“चल ठीक है. जब तेरी इच्छा हो तब खा लेना….ठीक है. थोड़ा आराम कर ले, बहुत थक गयी होगी. तेरे लिए वही कमरा तैयार करवा दिया है जहा तू हर बार आ कर रहती है…ठीक है.”

“शुक्रिया मौसी” ज़रीना मुश्कुरा दी.

ज़रीना कमरे में आ कर बिस्तर पर गिर गयी और फिर आँसुओ का वो तूफान उठा की थामे नही थमा. “क्यों किया अदित्य तुमने ऐसा मेरे साथ. बहुत प्यार करती हूँ तुम्हे में…फिर आख़िर क्यों”

अब ज़रीना के पास अदित्य तो था नही जो कोई जवाब देता. प्यार के गम में डूबी हुई ज़रीना रोते हुवे सवाल पे सवाल किए जा रही थी जिनका उसे कोई जवाब नही मिल रहा था. बहुत रुला रहा था प्यार बेचारी को.

आदित्य की भी हालत कम नाज़ुक नही थी. पेट में चूहे कूद रहे थे लेकिन मज़ाल है कि मूह पे खाने का नाम आए. प्यार भूक प्यास सब भुला देता है. वो भूके पेट होटेल के बिस्तर पर पड़ा हुवा करवट बदल रहा था. पता नही उसे ऐसा क्यों लग रहा था कि अभी दरवाजा खुलेगा और ज़रीना अंदर आएगी. जब भी उसे अपने कमरे के बाहर आहट सुनाई देती तो वो फ़ौरन उठ कर देखता.वो दाए-बाए हर तरफ बड़े गौर से देखता. अब ज़रीना वाहा होती तो दीखती. हर बार निराश और हताश हो कर अदित्य वापिस अपने बिस्तर पर गिर जाता. हालत तो अदित्य की भी बिल्कुल ज़रीना जैसी ही थी बस फ़र्क इतना था कि उसकी आँखे इतनी नही बरस रही थी जीतनी की ज़रीना की. हां ये बात ज़रूर थी कि उसकी आँखो में हर वक्त नमी बनी हुई थी. आँसू भी टपकते थे रह-रह कर जब दिल बहुत भावुक हो उठता था.

“ज़रीना तुम्हे मुझे यू छोड़ कर नही जाना चाहिए था. मेरे बारे में तुमने एक बार भी नही सोचा. कितना प्यार करता हूँ तुम्हे और फिर भी तुमने ऐसा किया. तुम्हे माफ़ नही कर पाउन्गा मैं.” आदित्या ने अपनी आँखो के नीचे से आँसुओ की बूँदो को पोंछते हुवे कहा.

धीरे धीरे कब रात घिर आई पता ही नही चला. पूरी रात ज़रीना को नींद नही आई. आदित्य भी सो नही पाया. हां ऐसा होता है. प्यार कभी-कभी नींद भी छीन लेता है. ऐसी नाज़ुक हालत में सोना वैसे भी नामुमकिन था.

प्यार की एक इंट्रेस्टिंग बात ये भी होती है की सब नाराज़गी और नफ़रत सिर्फ़ उपर का दिखावा होती है. दिल की गहराई में कुछ ऐसी तड़प होती है एक दूसरे के लिए की उसे शब्दो में नही कहा जा सकता. ये बात कोई प्यार करने वाला ही समझ सकता है.

सुबह होते होते अदित्य और ज़रीना दोनो का ही गुस्सा ठंडा पड़ने लगा था. ज़रीना ने फ़ैसला किया कि वो दिन निकलते ही होटेल जाएगी और अदित्य के गले लग जाएगी और उस से खूब लड़ाई करेगी. बस दिक्कत की बात सिर्फ़ ये थी कि वो घर से निकले कैसे. कोई उसे अकेले कही जाने नही देगा और किसी को साथ लेकर वो अदित्य के पास जा नही सकती थी. इश्लीए जैसे ही दिन निकला वो चुपचाप घर से निकल पड़ी. देल्ही में ऑटो तो सारी रात चलते हैं. सुबह सुबह ऑटो मिलने में कोई दिक्कत नही हुई.

पर दिक्कत ये आन पड़ी कि ऑटो वाला ज़रीना को लक्ष्मीनगर की बजाए कही और ही ले आया. दरअसल ऑटो वाला नया था. उसे लक्ष्मीनगर की लोकेशन ठीक से पता नही थी बस यू ही अपने पैसे बनाने के चक्कर में चल पड़ा था अंदाज़े से.

“भैया ये कहा ले आए तुम मुझे ये लक्ष्मीनगर तो नही लग रहा.”

“ओह…ये लक्ष्मीनगर नही है क्या. ग़लती हो गयी मेडम”

ऑटो वाले ने दूसरे ऑटो वाले से लक्ष्मी नगर का रास्ता पूछा और फिर ऑटो को लेकर चल पड़ा.

होटेल पहुँचते पहुँचते सुबह के 9 बज गये. ज़रीना ने तुरंत ऑटो वाले को पैसे पकड़ाए और होटेल में घुस्स कर सीधा अपने उस रूम की तरफ चल पड़ी जिसमे अदित्य और वो एक साथ रुके थे. लेकिन पीछे से रिसेप्षन पर खड़ी एक युवती ने उसे टोक दिया.

“एक्सक्यूस मी मेडम, आप कहा जा रही हैं.”

ज़रीना मूडी और बोली, “रूम नो 114 में ठहरी हूँ मैं.”

“ओह हां मैं भूल गयी सॉरी. पर आपके साथ जो थे वो जा चुके हैं रूम छोड़ कर.”

“क्या?” ज़रीना के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन ही निकल गयी.

“कब गये वो?”

“बस अभी अभी निकले हैं”

“कहा गये वो?” ज़रीना का तो दिमाग़ ही घूम गया था.

“मेडम शायद आपने ठीक से सुना नही. वो चेक-आउट करके जा चुके हैं. अब कहा गये हैं हमें नही पता.”

ज़रीना चेहरा लटकाए हुवे होटेल से बाहर आ गयी.

“मेरा ज़रा सा भी वेट नही किया तुमने अदित्य. क्यों प्यार किया मैने तुमसे.” ज़रीना की आँखे फिर से भर आई.

बड़ा ही अजीब सा कुछ हो रहा था अदित्य और ज़रीना के साथ. ज़रीना होटेल पहुँच गयी थी और अदित्य सिलमपुर. बात सिर्फ़ इतनी थी कि दोनो ग़लत समय पर सही जगह पर थे.

आदित्य को ज़रीना की मौसी का घर तो पता था नही. हां बस गली का पता था. अदित्य पीठ पर बेग टांगे गली में चक्कर लगा रहा था. उसने किसी से ज़रीना की मौसी के घर के बारे में पूछने की जहमत नही उठाई. वो बस बार बार गली के चक्कर लगा रहा था.

“क्या वो मुझे भूल गयी इतनी जल्दी. बाहर आकर तो देखना चाहिए उसे मैं कब से घूम रहा हूँ यहा.”
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आदित्य को एक बार भी ये ख्याल नही आया की ज़रीना शायद होटेल गयी हो. क्योंकि वो पूरा दिन और पूरी रात वेट करता रहा था ज़रीना का इश्लीए शायद उसे ये ख्याल ही नही आया.

अब वो किसी का दरवाजा खड़का कर पूछे भी तो क्या पूछे. क्या ये पूछे कि ज़रीना की मौसी का घर कहा है. ज़रीना की मौसी का नाम पता होता तो शायद बात बन जाती. और ये भी पता नही था कि उसके साथ बर्ताव क्या होगा अगर ज़रीना की मौसी का घर मिल भी गया तो.

“बस समझ ले अदित्य उसे तेरी कोई कदर नही है. ये प्यार ख़तम हो चुका है. कुछ नही बचा अब.” आदित्य ने सोचा.

आदित्य भारी मन से गली से बाहर की ओर चल दिया.

दुर्भाग्य की बात ये थी कि इधर अदित्य गली से निकल रहा था और उधर गली के दूसरी तरफ से ज़रीना आ रही थी ऑटो में बैठ कर. दोनो एक दूसरे को ढूंड रहे थे लेकिन ना जाने क्यों मुलाकात नही हो पाई.

आदित्य ने गली से बाहर आकर ऑटो पकड़ा. इधर अदित्य ऑटो में बैठा, उधर ज़रीना ऑटो से उतर कर मौसी के घर में वापिस आ गयी.

“मैं ही बेवकूफ़ थी जो निकल पड़ी सुबह सुबह उसके लिए जो मुझे छोड़ कर जा चुका है. इतना बेदर्दी निकलेगा ये अदित्य मैने सोचा नही था. ये प्यार मेरी जींदगी की सबसे बड़ी ग़लती है.” ज़रीना सोचते हुवे चल रही थी.

“ज़रीना बेटा कहा गयी थी तू इतनी सुबह सवेरे हमें तो चिंता हो रही थी.” ज़रीना की मौसी ने कहा.

“कही नही मौसी यही पास में ही गयी थी.”

“बेटा कुछ तो बात ज़रूर है जो तू छिपा रही है.”

“कुछ नही है मौसी आपको वेहम हो रहा है.”

“जब तेरा मन हो बता देना बेटा, मुझे तो तेरी बहुत चिंता हो रही है. चल कुछ खा ले.”

खाने का मन तो अब भी नही था ज़रीना का लेकिन फिर भी मौसी का दिल रखने के लिए उसने कुछ खा लिया.

आदित्य सीधा रेलवे स्टेशन पहुँचा और किसी तरह से गुजरात की ट्रेन की टिकेट का इंटेज़ाम किया. उसे रात की ट्रेन की टिकेट मिली किसी तरह से जुगाड़ करके. बहुत बेचैन हो रहा था देल्ही छोड़ने के ख्याल से. वाहा उसकी ज़रीना जो थी. पर उसे लग रहा था कि प्यार व्यार ख़तम हो चुका है और अब वापिस चलने में ही भलाई है. जब ट्रेन प्लॅटफॉर्म पर पहुँची तो वो बड़े भारी मन से ट्रेन में चढ़ा.

उस वक्त ज़रीना अपने हाथ की लकीरो को देख रही थी. “शायद किश्मत में तुम्हारा साथ नही लिखा था अदित्य. या फिर शायद साथ लिखा था पर हम निभा नही पाए. जो भी हो तुम मुझे यू छोड़ कर चले जाओगे मैने सोचा नही था. आइ हेट यू.” और ज़रीना की आँखे फिर से बहने लगी.

आदित्य पहुँच तो गया घर वापिस गुजरात. लेकिन घर की तरफ जाते वक्त उसके पाँव ही नही बढ़ रहे थे आगे. वो जानता था कि ज़रीना के बिना उस घर में रहना कितना मुश्किल होगा उसके लिए. जब वो घर में घुसा तो वो मंज़र उसकी आँखो में घूम गया जब वो ज़रीना को साथ लेकर घर से निकल रहा था रेलवे स्टेशन के लिए.

आदित्य ने बेग एक तरफ पटका और सोफे पर गिर गया. वक्त जैसे थम सा गया था और जीवन की खुशियाँ जैसे साथ छोड़ गयी थी. दुनिया ही उजड़ गयी थी अदित्य की.

यही हाल कुछ ज़रीना का था. ज़रीना भी उस वक्त अपने रूम में बिस्तर पर पड़ी थी. उसका भी ऐसा ही हाल था जैसे कि सब कुछ उजड़ गया हो उसका.

जब मौसी कमरे में घुसी तो वो फ़ौरन उठ कर बैठ गयी. “मौसी आप…सलाम आलेकम.”

“सलाम आलेकम बेटा, कुछ तो बता सब खैरीयत तो है. तुम तो हमसे कुछ बोल ही नही रही हो. जब से आई हो कमरे में पड़ी रहती हो बस.”

अब ज़रीना बताए भी तो कैसे. उसकी तकलीफ़ का कारण अदित्य का प्यार था और उस प्यार को कोई नही समझ सकता था. मौसी को टालने के लिए उसने कहा, “कारण तो आप जानती ही हैं मौसी. सब कुछ खो दिया है मैने.”

“अल्लाह रहम करे मेरी बच्ची पर. बहुत कुछ सहा है तुमने ज़रीना. तुम्हे ज़ींदा देख कर जो ख़ुसी हमें मिली थी वो हम लफ़ज़ो में बयान नही कर सकते. अब यही दुवा है कि अल्लाह का फ़ज़ल हो तुम पर.”

“अल्लाह शायद हम से रूठ गये हैं मौसी. सब कुछ बीखर गया है.” ज़रीना ने कहा.

मौसी ज़रीना को गले लगा लेती है. “वक्त करवट लेगा बेटी. वक्त हमेसा एक सा नही रहता…आओ थोड़ा बाहर घूम फिर लो. बंद कमरे में घुटन हो जाती है बैठे बैठे.”

“ठीक है मौसी आप चलिए मैं आती हूँ.” ज़रीना ने कहा.

बहुत कोशिस की ज़रीना ने अदित्य को भुलाने की और उसे अपनी यादों से हटाने की. लेकिन जब कोई दिल में बस जाता है उसे इतनी आसानी से निकाला नही जा सकता.

कोशिस आदित्य भी कर रहा था ज़रीना को भुलाने की. लेकिन घर के हर कोने में ज़रीना की यादें बसी थी. वो घर में जहा भी देखता उसे ज़रीना का ही अहसास रहता. हर कोने में बस ज़रीना ही बसी थी जैसे. और ना चाहते हुवे भी उसकी आँखे नम हो जाती थी.

भुलाने की कोशिस में एक हफ़्ता बीत गया लेकिन कुछ फ़ायडा हुवा नही. प्यार की तड़प, कसक और मीठी सी बेचैनी हर वक्त बरकरार थी. धीरे धीरे वो दोनो ही ये बात समझने लगे थे कि वो दोनो प्यार के अनोखे बंधन में बँध चुके हैं जिसे वो चाह कर भी नही तौड सकते. उनकी हर कोशिस बेकार जो हो रही थी.

और फिर एक ऐसी तड़प उठी प्यार की जिसने उनके प्यार को और ज़्यादा महका दिया. एक रात ऐसी आई जिसमे दोनो काग़ज़ और कलाम लेकर बैठ गये और कुछ लिखने की ठान ली. ज़रीना को तो अदित्य का अड्रेस पता ही था. अदित्य ने भी घूम फिर कर किसी तरह ज़रीना की मौसी का अड्रेस ढूंड ही लिया. दो चिट्ठियाँ लीखी जा रही थी रात के वक्त एक साथ. देल्ही में ज़रीना लिख रही थी और गुजरात में आदित्य लिख रहा था. हां थोड़ा वक्त का अंतर था. ज़रीना रात के 12 बजे लिखने बैठी थी और अदित्य रात के 2 बजे लिखने बैठा था.

अगले दिन चुपके से दोनो ने अपनी अपनी चत्तियाँ पोस्ट कर दी. पहुँचने में 4 दिन लग गये. दोनो बेचैन थे अपनी चिट्ठी का जवाब पाने की लिए. लेकिन उन्हे नही पता था कि दोनो ने एक साथ चिट्ठी लिखी है और दोनो जल्द ही एक दूसरे की चिट्ठी पढ़ने वाले हैं.

पहले आदित्य को चिट्ठी मिली ज़रीना की. घर में बैठा था चुपचाप मूह लटकाए हुवे जब डाकिये ने बेल बजाई घर की.

“आदित्य पांडे आप ही का नाम है.” डाकिये ने पूछा.

“जी हां बिल्कुल.” आदित्य ने कहा.

“यहा साइन कर दीजिए, स्पीड पोस्ट आई है आपके नाम.”

आदित्य ने साइन किए और डाकिये ने चिट्ठी अदित्य को पकड़ा दी. जब अदित्य ने चिट्ठी के पीछे भेजने वाले का नाम देखा तो आँखो में वो रोनक आ गयी उसके की वो ज़ोर से चिल्लाया “ज़रीना!”

डाकिये के भी कान फॅट गये. वो सर हिलाता हुवा चला गया.

आदित्य ने फ़ौरन चिट्ठी को लीफाफ़े से निकाला और सोफे पर बैठ कर पढ़ने लगा. चिट्ठी इस प्रकार थी :-

“मेरे प्यारे आदित्य,

तुम चले गये ज़रा सी बात पर मुझे छोड़ कर. क्यों किया ऐसा तुमने. किस हाल में हूँ मैं यहा क्या तुम्हे खबर भी है. कोई दिन ऐसा नही जाता जब तुम्हारे लिए आँसू नही बहाती. हर पल तुम्हारे लिए तड़पति रहती हूँ. तुम तो शायद मुझे भूल गये होंगे. मैं तुम्हारे लिए पापी जो हूँ. तुमने एक मोका भी नही दिया मुझे कुछ कहने का और चले गये. दिल पर क्या बीती है कह नही सकती. ये चिट्ठी तुम्हे लिख रही हूँ क्योंकि अपने दिल के हाथो मजबूर हो गयी हूँ. उस दिन लड़ाई के बाद मैं भी फ़ौरन खाना खाए बिना बाहर आ गयी थी. बहुत ढूँढा तुम्हे पर तुम तो जा चुके थे. क्या यही प्यार था तुम्हारा. मैं क्या करती, मौसी के घर आना पड़ा मुझे. अगले दिन भी मैं सुबह सुबह जैसे-तैसे ऑटो लेकर होटेल पहुँची. लेकिन तुम वाहा से भी निकल गये चेक आउट करके. मेरा इंतेज़ार भी नही किया तुमने. खून के आँसू रोई हूँ मैं तुम समझ नही सकते. बड़ी मुश्किल से वापिस आई थी मौसी के घर. मन तो कर रहा था कि मर जाउ कही जाकर पर इस उम्मीद में वापिस आ गयी कि क्या पता तुम मिल जाओ कही. तुम्हे तो दिखाई थी मौसी की गली मैने. अगर प्यार करते मुझसे तो मुझे ढूंड ही लेते. पर नही तुम्हे तो मुझे छोड़ कर भागने की पड़ी थी. चले गये चुपचाप मुझे छोड़ कर, सोचा भी नही की कैसे जीऊंगी मैं तुम्हारे बिना.

और हां मैने नोन-वेज खाना छोड़ दिया है बिल्कुल. आगे से कभी देखूँगी भी नही नोन-वेज को, खाने की तो दूर की बात है. मुझे अहसास हो गया है कि तुम ठीक थे. पेड़-पोधो और जीव जंतुओ में कुछ तो फरक रहता ही है. चिकन में जीवन ज़्यादा है एक हरी सब्जी के मुक़ाबले. मैं ये बात समझ गयी खुद ही. तुमने तो बहुत बुरे तरीके से समझाने की कोशिस की थी. मुझे आराम से कहते तो मैं ख़ुसी ख़ुसी तुम्हारे लिए कुछ भी छोड़ देती. नोन-वेज तो बहुत छोटी चीज़ है आदित्य.

अब ये बताओ कि अपनी ज़रीना को कब ले जाओगे यहा से. मैं खुद आ जाती पर अकेले सफ़र करते हुवे डर लगता है मुझे. कभी अकेले गयी नही कही. बहुत घबराती हूँ मैं ट्रेन में. अगर नही आओगे तो मुझे आना तो पड़ेगा ही. दिल के हाथो मजबूर जो हूँ. इन दीनो में यही जाना है आदित्य कि बहुत प्यार करती हूँ मैं तुम्हे और तुम्हारे बिना नही जी सकती. आ जाओ आदित्य मैं आँखे बिछाए तुम्हारा इंतेज़ार कर रही हूँ. ले जाओ अपनी ज़रीना को अपने साथ और जैसे जी चाहे वैसे रखो.

तुम्हारी ज़रीना.”

आदित्य की हालत बहुत नाज़ुक हो गयी पढ़ते-पढ़ते. आँसू टपक रहे थे ज़रीना के एक-एक बोल पर. बार बार पढ़ा उसने एक एक लाइन को. दिल में प्यार की मीठी मीठी चुभन हो रही थी. कुछ बोल ही नही पा रहा था आदित्य, लिखा ही कुछ ऐसा था ज़रीना ने. उसने वो चिट्ठी सीने से लगा ली और सोफे पर लेट गया.

ज़रीना को आदित्य की चित्ति अगले दिन मिली. वो तो सोई थी कमरे में जब मौसी ने आवाज़ दी.

“ज़रीना बेटा तुम्हारा खत आया है.”

ज़रीना ये सुनते ही बिस्तर से उठ गयी. “मेरे लिए खत कौन भेज सकता है. कही आदित्य ने तो नही भेजा. पर उसे तो यहा का अड्रेस भी नही पता होगा.”

ज़रीना तुरंत भाग कर बाहर आई. उसने साइन करके चिट्ठी ले ली. पीछे आदित्य का नाम था. वो तो झूम उठी ख़ुसी के मारे. पर मौसी के कारण अपनी ख़ुसी को दबा लिया किसी तरह.

“किसका खत है बेटा.” मौसी ने पूछा.

“है एक सहेली का मौसी मैं आराम से रूम में बैठ कर पढ़ूंगी.”

“ठीक है पढ़ ले. पहली बार तेरी आँखो में चमक देख रही हूँ. शायद ये खत कुछ शुकून देगा तुझे. जा पढ़ले अपनी सहेली का खत आराम से.”

“शुक्रिया मौसी.” ज़रीना फ़ौरन रूम में वापिस आ गयी. रूम में आते ही उसने कुण्डी बंद कर ली. उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था. ख़ुसी ही कुछ ऐसी थी फ़िज़ा में. बहुत फुर्ती से उसने लीफाफा खोला और चिट्ठी निकाल कर बिस्तर पर बैठ गयी. आदित्य की चित्ति कुछ इस प्रकार थी.
Emotional
 

kartik

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Yeh kahani JATIN sir ki hai... aur bhi do kahani hai...CHHOTI SI BHOOL.. aur bhi ek kahani hai naam yaad nhi....bohat khoobsurat kahani hai yeh bhi..
 
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amita

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“मेरी प्यारी ज़रीना,

कैसी हो तुम. बहुत मुश्किल से मिला अड्रेस तुम्हारी मौसी का मुझे. अड्रेस मिलते ही आज ये चिट्ठी लिख रहा हूँ. एक बात पूछनी थी तुमसे. क्यों चली गयी थी तुम रेस्टोरेंट से बिना बताए. खाना खाकर रफू चक्कर हो गयी मुझे छोड़ कर. क्या बस इतना ही प्यार था तुम्हारा. तुम्हे नही लगता कि तुमने कुछ ग़लत किया है. मैं ढून्दता रहा तुम्हे वाहा लेकिन तुम कही नही मिली. बताओ क्यों किया तुमने ऐसा.

थक हार कर मैं होटेल वापिस आ गया था. उम्मीद थी कि तुम होटेल में ही मिलॉगी मुझे. पर ये क्या तुम तो वाहा भी नही थी. ऐसा कौन सा तूफान आ गया था कि तुम अचानक मुझे छोड़ कर चली गयी. क्या एक बार भी नही सोचा तुमने की मैं कैसे जीऊँगा. क्या तुम्हे ज़रा भी चिंता नही हुई मेरी.अगले दिन तुम्हारी मौसी की गली में भी घुमा मैं काफ़ी देर. लेकिन तुम तो शायद मुझे भूल कर मज़े की नींद ले रही थी. बहुत बेदर्द हो तुम.

दिल से मजबूर हो कर लिख रहा हूँ ये चित्ति मैं. बहुत कोशिस की तुम्हे भुलाने की पर भुला नही सका. क्या करू प्यार ही इतना करने लगा हूँ तुम्हे. पर तुम्हे क्या, तुम्हे तो मिल गया होगा शुकून मुझे तडपा के.

एक बात और कहनी थी. आज मैने तुम्हारी खातिर वो किया जो मैं कभी नही कर सकता था. आज तुम्हारी फेवोवरिट डिश चिकन कढ़ाई खाई मैने. इतनी बुरी भी नही लगी जितना मैं समझता था.मुश्किल हुई पर खा ही ली. अब जो चीज़ मेरी ज़रीना की फेवोवरिट है उसे तो चखना ही था. अब हमारे बीच कोई भी दिक्कत नही होगी इस बात को लेकर. अब मैं भी नोन-वेज बन गया हूँ. तुम ठीक ही थी ज़रीना. मैने बहुत सोचा और इसी नतीजे पर पहुँचा कि जीवन तो कण-कण में है. यही तो हमारे हिंदू धरम की मान्यता भी है. तुम्हारे भोजन का यू अपमान करना ग़लत था. ये बात अब मैं समझ गया हूँ. अब ये छोटी सी बात हमारे बीच नही आएगी. आ जाओ वापिस मेरी जिंदगी में ज़रीना. तुम्हारे बिना बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ मैं. सब कुछ बिखर गया है.

तुम्हे लेने आ रहा हूँ ज़रीना इस रविवार को मैं. तैयार रहना. कोई बहाना नही चलेगा. तुम सिर्फ़ मेरी हो और मेरी रहोगी. बहुत प्यार करूँगा तुम्हे मैं ज़रीना. तैयार रहना तुम मैं आ रहा हूँ तुम्हे लेने.

तुम्हारा आदित्य”

मैं तो तैयार खड़ी हूँ आदित्य तुम आओ तो सही. आँखे बंद करके चल पड़ूँगी तुम्हारे साथ. जहा चाहे वाहा ले जाना तुम मुझे. आइ लव यू.” बोलते बोलते ज़रीना की आँखे भर आई लेकिन इस बार आँसू कुछ और ही रंगत लिए थे.

ज़रीना ने प्यार की खातिर नोन-वेज छोड़ दिया और आदित्य ने प्यार की खातिर नोन-वेज शुरू कर दिया. वैसे तो बहुत छोटी सी बाते लगती हैं ये. लेकिन ये करना इतना आसान नही होता. अपने अहम यानी कि ईगो को मारना पड़ता है. जो अपनी ईगो को ख़तम कर पाता है वही प्यार की गहराई में उतार पाता है. आदित्या और ज़रीना फैल तो ज़रूर हुवे थे प्यार के इम्तिहान में लेकिन अब उन्होने वो पाया था अपने जीवन में जो की बहुत अनमोल था. प्यार में एक दूसरे के लिए झुकना सीख गये थे वो दोनो. जो कि प्यार के लंबे सफ़र पर जाने के लिए ज़रूरी है.

अब इसे अनोखा बंधन ना कहु तो क्या कहु मैं. ये अनोखा बंधन बहुत प्यारा और सुंदर है जिसमे कि इंसानी जींदगी की वो खुब्शुरती छुपी है जिसे शब्दो में नही कहा जा सकता. बस समझा जा सकता है. बस समझा जा सकता है…………………………

प्यार के दुश्मन हज़ार होते हैं. प्यार को दुनिया की नज़र भी लग जाती है. बहुत खुस थे ज़रीना और आदित्य एक दूसरे का प्यार भरा खत पा कर. ज़रीना के पाँव ज़मीन पर नही थम रहे थे. आदित्य भी ख़ुसी से झूम रहा था.

सनडे को लेने जाना था आदित्य को ज़रीना को. आने जाने की टिकेट उसने बुक करा ली थी. अभी 2 दिन बाकी थे. उसने सोचा क्यों ना ज़रीना के आने से पहले अपने पापा के कारोबार को संभाल लिया जाए. वही बचा था अब इक लौता वारिस उसे ही सब संभालना था. ज़रीना की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए ये ज़रूरी भी था.

बहुत बड़ा कपड़े का व्यापार था आदित्य के पापा दीना नाथ पांडे का. बिना देख रेख के वो यू ही नुकसान में जा रहा था. दंगो के बाद आदित्य ने सुध ही नही ली व्यापार की. लेकिन अब उसे ज़िम्मेदारी का अहसास हो चला था. ज़रीना की खातिर उसे उस बीखरे हुवे व्यापार को फिर से खड़ा करना था. प्यार काई बार ज़िम्मेदारी भी सीखा देता है.

आदित्य सुबह सवेरे ही घर से निकल पड़ा. सभी करम्चारी आदित्य को देख कर बहुत खुस हुवे. सभी परेशान थे कि फॅक्टरी अगर यू ही चलती रही तो जल्दी बंद हो जाएगी और उनका रोज़गार छिन जाएगा. आदित्य ने सभी को भरोसा दिलाया कि वो फिर से फॅक्टरी को पहले वाली स्तिथि में ले आएगा.

पूरा दिन आदित्य ने फॅक्टरी में ही बिताया. किसी बिगड़े काम को ठीक करने के लिए अक्सर एक सच्चे पर्यास की ज़रूरत होती है. उसके बाद सब कुछ खुद-ब-खुद ठीक होता चला जाता है. ऐसा ही कुछ हो रहा था दीना नाथ पांडे की उस फॅक्टरी में. आदित्य के आने से उम्मीद की एक किरण जाग उठी थी सभी के मन में. जो कि एक बहुत बड़ी बात होती है.

काफ़ी दिनो बाद कुछ काम हुवा फॅक्टरी में. आदित्य बहुत खुस था. फॅक्टरी में रहा आदित्य मगर हर वक्त उसके जहन में ज़रीना का चेहरा घूमता रहा.

शाम को वो ख़ुसी ख़ुसी घर लौट रहा था. अंजान था कि काई बार ख़ुसी को किसी की नज़र भी लग जाती है. जब वो अपने घर पहुँचा तो पाया कि कुछ गुंडे टाइप के लोग ज़रीना के टूटे-फूटे घर के बाहर खड़े हैं. वो उन्हे इग्नोर करके अपने घर में घुसने लगता है. मगर उसे कुछ ऐसा सुनाई देता है कि उसके कदम घर के बाहर ही थम जाते हैं.

“यार जो भी हो. क्या मस्त आइटम थी वो ज़रीना. मैं तो दंगो के दौरान बस उसे ही ढूंड रहा था. एक से एक लड़की को ठोका उस दौरान पर ज़रीना जैसी कोई नही थी उनमे. पता नही कहा छुप गयी थी साली. उसकी छोटी बहन की तो अच्छे से ली थी हमने.”

“हो सकता है वो घर पर ना हो कही बाहर गयी हो.”

“हो सकता है? पर यार उसकी लेने की तम्माना दिल में ही रह गयी. अफ क्या चीज़ थी साली. ऐसे दंगो में ही तो ऐसा माल हाथ आता है. वो भी निकल गया हाथ से.”

आदित्य तो आग बाबूला हो गया ये सुन कर. प्रेमी कभी अपनी प्रेमिका के खिलाफ ऐसी बाते नही सुन सकता. भिड़ गया आदित्य उन लोगो से बीना सोचे समझे. जो आदमी सबसे ज़्यादा बोल रहा था वो उस पर टूट पड़ा.

“बहुत बकवास कर रहा है. तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बाते करने की” आदित्य ने उसे ज़मीन पर गिरा कर उस पर घूँसो की बोचार कर दी. मगर वो 5 थे और आदित्य अकेला था. जल्दी ही उसे काबू कर लिया गया. ये कोई हिन्दी मूवी का सीन नही था जहा कि हीरो 5 तो क्या 10 लोगो को भी धूल चटा देता है. ये रियल लाइफ का द्रिश्य था.

2 लोगो ने आदित्य को पकड़ लिया और एक ने चाकू निकाल कर कहा, “क्यों बे ज़्यादा चर्बी चढ़ि है तुझे. हम कौन सा तेरी मा बहन के बारे में बोल रहे थे. उन लोगो के बारे में बोल रहे थे जो हमारे दुश्मन हैं. हिंदू हो कर हिंदू पर ही हाथ उठाते हो वो भी हमारे दुश्मनो की खातिर. तुम्हारे जैसे लोगो ने ही हिंदू धरम को कायर बना रखा है.”

“कायरता खुद करते हो और पाठ मुझे पढ़ा रहे हो. छोड़ो मुझे और एक-एक करके सामने आओ. खून पी जाउन्गा मैं तुम लोगो का.”

“ जग्गू मार साले के पेट में चाकू और चीर दे पेट साले का. ज़रूर इसी ने छुपाया होगा ज़रीना को. इसके घर में देखते हैं. क्या पता जो दंगो के दौरान नही मिली अब मिल जाए…हे…हे.”

“उसके बारे में एक शब्द भी और कहा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा.” आदित्य छटपटाया. मगर 2 लोगो ने उसे मजबूती से पकड़ रखा था.

किसी तरह से आदित्य ने दोनो को एक तरफ धकेला और टूट पड़ा उस गुंडे पर जिसके हाथ में चाकू था. होश खो बैठा था आदित्य. होता है प्यार में ऐसा भी कभी. मगर ये ज़्यादा देर नही चला. फिर से उसे जाकड़ लिया गया.

और फिर वो हुवा जिसके बारे में आदित्य ने सोचा भी नही था. चाकू के इतने वार हुवे उसके पेट पर की खून की नादिया बह गयी वाहा. आदित्य को तड़प्ता छोड़ वो गुंडे भाग गये वाहा से.

आदित्य की फॅक्टरी का एक करम्चारी, रमेश आदित्य से कुछ पेपर्स पर साइन लेने उसके घर पहुँचा तो उसने आदित्य को वाहा खून से लटपथ पाया. तुरंत किसी तरह आंब्युलेन्स बुलाई उसने और आदित्य को हॉस्पिटल ले जाया गया.

बहुत सीरीयस हालत में था वो. ऑपरेशन किया डॉक्टर्स ने मगर बचने की उम्मीद कम ही बता रहे थे. खून बहुत बह गया था. चाकू के इतने वार हुवे थे कि पेट छलनी छलनी हो रखा था उसका. बड़ी देर लगी ऑपरेशन में भी. ऑपरेशन के बाद आदित्य को आइक्यू में रख दिया गया. उसे होश नही आया था. सनडे आ गया मगर अभी भी वो कोमा में ही था. आदित्य के बारे में सुन कर मुंबई से उसके चाचा, चाची मिलने आए. दीना नाथ पांडे की मौत के वक्त नही आ पाए थे वो क्योंकि माहॉल ठीक नही था. चाचा का नाम था रघु नाथ पांडे और चाची का नाम था विमला देवी.

“डॉक्टर साहिब कब तक रहेगा कोमा में आदित्य.” रघु नाथ ने पूछा.

“कुछ नही कह सकते. हम जो कर सकते थे हमने किया. अब सब भगवान के उपर है.” डॉक्टर कह कर चला गया.

आज के दिन आदित्य को ज़रीना को लेने देल्ही जाना था. मगर वो तो कोमा में पड़ा था. उशे होश ही नही था कि ज़रीना तड़प रही होगी आदित्य के लिए. या फिर होश था उसे मगर कुछ कर नही सकता था. कोमा चीज़ ही कुछ ऐसी है. बेसहाय बना देती है इंसान को.

………………………………………………………………

ज़रीना तो सुबह से ही बेचैन थी. बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्य का. उसे मौसी को बिना कुछ कहे घर से निकलना था, आदित्य के पीछे पीछे. बस एक बार दिख जाए आदित्य गली में. आँखे बिछाए बैठी थी वो. छत की बाल्कनी में खड़ी हो गयी सुबह सवेरे ही.

“क्या बात है बेटा आज सुबह जल्दी उठ गयी.” मौसी ने आवाज़ लगाई ज़रीना को.

ज़रीना मौसी की आवाज़ सुन कर चौंक गयी, “सलाम आलेकम मौसी.”

“सलाम आलेकम बेटा. क्या बात है आज सुबह सुबह यहा खड़ी हो. सब ख़ैरियत तो है.”

“हां मौसी सब ख़ैरियत है. बस वैसे ही खड़ी थी.”

“तुमसे कोई मिलने आ रहा है आज.” मौसी ने कहा.

“कौन?”

“एमरान नाम है उसका. यही पड़ोस में रहता है. अछा लड़का है. तेरे बारे में बताया मैने उसे. बहुत दुख हुवा उसे सुन कर तुम्हारे बारे में.

मिलना चाहता है तुम से. आ जाओ नीचे वो आता ही होगा. बहुत अहसान है उसके हम पर. उस से मिलॉगी तो अछा लगेगा हमें.”

“ठीक है मौसी मैं आती हूँ आप चलिए.” ज़रीना ने कहा.

मौसी सोच में पड़ गयी कि आख़िर क्या है बाल्कनी में ऐसा आज जो ज़रीना वाहा से हटना नही चाहती. मौसी के जाने के बाद ज़रीना ने फिर से झाँक कर देखा गली में मगर उसे कोई दीखाई नही दिया. “शायद बाद में आएगा आदित्य. अभी तो सारा दिन पड़ा है. मिल आती हूँ पहले इस एमरान से.”

ज़रीना जब सीढ़ियाँ उतर कर आई तो उसने पाया की एमरान उसका इंतेज़ार कर रहा था.

“तो आप हैं ज़रीना शेख. खुदा कसम बहुत खूबसूरत हैं आप. हमारी नज़र ना लग जाए आपको.” एमरान ने ज़रीना को देखते ही कहा.

“आओ बेटी बैठो. यही है एमरान. बहुत काबिल लड़का है. जब भी कोई काम बोलती हूँ इसे वो ये झट से कर देता है.”

“ये तो आपकी जर्रा नवाज़ी है खाला. हम इतने काबिल भी नही हैं. सब खुदा की रहम है.”

“नही एमरान तुम सच में बहुत काबिल हो. अछा तुम दोनो बाते करो मैं चाय लेकर आती हूँ.”

ज़रीना मौसी को रोकना चाहती थी पर कुछ कह नही पाई.

“लगता है आपको ख़ुसी नही हुई हमसे मिल कर. आप कहें तो हम चले जाते हैं.” एमरान ने कहा.

“जी नही आप हमें ग़लत ना समझे. हम थोड़ा परेशान हैं.” ज़रीना ने कहा.

“समझ सकते हैं हम आपकी परेशानी. हम बेख़बर नही हैं आपकी परेशानी से. खाला हमें सब कुछ बता चुकी हैं. हम यहा आपका गम बाटने आयें हैं.” एमरान ने कहा.

“बहुत बहुत शुक्रिया आपका मगर हम उस बारे में बात नही करना चाहते.”

“समझ सकते हैं हम. गुज़रे दौर की बाते जख़्मो को और हवा ही देती हैं. हम आपसे माफी चाहेंगे अगर हमने आपके जख़्मो को कुरेद दिया हो तो. हमें ज़रा भी इल्म नही था कि इन बातो का जिकर नही होना चाहिए. हम तो बस आपका गम हल्का करना चाहते थे.”

“आपसे इज़ाज़त चाहूँगी. मुझे जाना होगा.”

“रोकेंगे नही आपको. मगर आप बैठेंगी तो हमें अछा लगेगा. आपसे ही मिलने आयें हैं हम.”
Kya jabardast varnan kiya hai
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
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एक अनोखा बंधन--16

गतान्क से आगे.....................

खाने खाने के बाद ज़रीना ने कहा, “क्या तुम भी चाहते हो कि मैं जीन्स और टॉप पहन कर चलूं.”

“हां बिल्कुल, कॉलेज में तो तुम्हे देखता ही नही था नज़र उठा कर. हां ये अब्ज़र्व ज़रूर किया था कि तुम अक्सर जीन्स पहन कर आती थी कॉलेज. आज तुम्हे जीन्स में देखने का मन है.”

“ठीक है मैं पहन कर आती हूँ.” ज़रीना उठ कर चल दी

“जल्दी आना, ज़्यादा देर मत लगाना..”

“ओके”

ज़रीना वॉश रूम गयी और कोई 20 मिनिट बाद बाहर निकली. मगर वो जीन्स और टॉप पहन कर नही आई थी. उसी चुरिदार में वापिस आ गयी जिसमे वो अंदर गयी थी.

ज़रीना वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गयी आदित्य के सामने.

“क्या हुवा कुछ मायूस सी लग रही हो. जीन्स और टॉप फिट नही आई क्या?”

“नही ऐसी बात नही है”

“फिर…”

“चलो घर जाकर ही पहनूँगी.”

“क्यों….. नही तुम पहन कर चलो ना अछा लगेगा मुझे.”

“अछा तो मुझे भी लगेगा पर…”

“पर क्या?”

ज़रीना ने अपने पर्स से एक पेन निकाला और पेपर नॅपकिन पर कुछ लिख दिया. मगर लिखने के बाद वो उसे आदित्य को देने से झीजक रही थी.

“क्या बात है बताओ ना.”

ज़रीना ने काँपते हाथो से वो नॅपकिन आदित्य की तरफ बढ़ाया. मगर इस से पहले की आदित्य वो नॅपकिन पकड़ पाता ज़रीना ने अपना हाथ वापिस खींच लिया.

“अरे…क्या बात है ज़रीना…कुछ कहो तो सही. क्या लिखा था तुमने नॅपकिन पर वो तो पढ़ने दो.” आदित्य ने कहा और ज़रीना के हाथ को पकड़ लिया.

ज़रीना ने तुरंत वो नॅपकिन हाथ में दबोच लिया. बड़ी मुश्किल से निकाला आदित्य ने वो नॅपकिन ज़रीना के हाथ से.

“छ्चोड़ो ना आदित्य. प्लीज़ मत पढ़ो…मैं बाद में पहन लूँगी जीन्स.” ज़रीना गिड़गिडाई

मगर आदित्य नही माना. उसने धीरे से उस नॅपकिन को फैलाया. उस पर लिखा था.

“मेरी ब्रा की स्ट्रॅप टूट गयी है. टॉप नही पहन सकती. अजीब लगेगा. सॉरी.”

ज़रीना तो नज़रे झुकाए बैठी थी. शर्मा रही थी वो आदित्य से. उसने अपनी चुनरी से अपनी छाती को अच्छे से ढक रखा था.

आदित्य ने भी एक नॅपकिन उठाया और बोला, “पेन देना अपना.”

ज़रीना ने बिना आदित्य की तरफ देखे उसे पेन पकड़ा दिया.

आदित्य ने नॅपकिन पर कुछ लिख कर ज़रीना की तरफ बढ़ाया. ज़रीना ने चुपचाप नॅपकिन पकड़ लिया.

उस पर लिखा था, “नयी खरीद लेंगे. चिंता क्यों करती हो.”

ज़रीना ने एक और नॅपकिन उठाया और उस पर लिख कर आदित्य को थमा दिया चुपचाप.

उस पर लिखा था, “यहा हाइवे पर कहा से ख़रीदेंगे. तुम चिंता मत करो मैं देल्ही जा कर खरीद लूँगी.”

आदित्य ने पढ़ कर कहा, “चलो चलते हैं ज़रीना लेट हो रहे हैं.”

“हां चलो”

इस तरह खाने की टेबल पर पेपर नॅपकिन के ज़रिए दोनो में कुछ प्राइवेट बातें हुई. जो की उनके प्यार की तरह ही सुंदर थी.

आदित्य ने ज़रीना के लिखे नॅपकिन अपनी जेब में डाल लिए और ज़रीना ने आदित्य के लिखे नॅपकिन अपने पर्स में.

आदित्य ने ढाबे के काउंटर पर बिल पे किया और ज़रीना के साथ वापिस कार में आकर बैठ गया.

“मसूरी में कितना अछा मौसम था और यहा बहुत गर्मी हो रही है.” आदित्य ने कहा.

“हां देल्ही में तो आग बरस रही होगी इस वक्त.” ज़रीना ने कहा.

“ज़रीना अपने स्कूल के बारे में बताओ. बच्चे तो बहुत खुश होंगे मसूरी आकर. बहुत ही सुंदर हिल स्टेशन है मसूरी”

“हां बहुत खुश हैं वो. वो तो यहा से वापिस ही नही जाना चाहते. खूब मस्ती की बच्चो ने मसूरी में.” ज़रीना हंसते हुवे बोली.

“आएँगे हम वापिस दुबारा घूमने. अभी बस तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने की जल्दी थी.”

बातों में डूब गये दोनो प्रेमी और बातों-बातों में देल्ही पहुँच गये वो दोनो.

देल्ही में घुसते ही ज़रीना ने कहा, “आदित्य कोई ज़रूरत नही है हमें उसी होटेल में जाने की. हमें एरपोर्ट के पास ही किसी होटेल में रुकना चाहिए. बाकी तुम्हारी मर्ज़ी.”

“ह्म्म…. ठीक है. जैसा तुम कहो.”

आदित्य ने टॅक्सी वाले को एरपोर्ट के पास ही किसी होटेल में ले जाने को कहा.

ड्राइवर ने उन्हे महिपालपुर उतार दिया. ज़रीना ने आस पास नज़र दौड़ाई तो मायूस हो गयी. कोई भी ऐसी शॉप नही थी वाहा जहा से वो ब्रा खरीद पाती. आदित्य ज़रीना की असमंजस समझ गया. प्यार में अक्सर प्रेमी, एक दूसरे की परेशानी बिना कहे ही समझ जाते हैं.

होटेल के रूम में आकर आदित्य ने कहा, “ज़रीना मैं अभी आता हूँ. तुम आराम करो.”

“क्यों….कहा जा रहे हो तुम?” ज़रीना ने हैरानी में पूछा.

“कुछ नही रिसेप्षन से पूछ आता हूँ कि यहा से एरपोर्ट कितनी दूर है ताकि हम सुबह उसी अनुसार तैयार हो जायें.”

“जल्दी आना आदित्य. मेरा मन नही लगेगा अकेले यहा.”

“ओके”

आदित्य आ गया कमरे से बाहर. “कहा मिलेगी ब्रा…रिसेप्षन पर पता करता हूँ.”

आदित्य ने रिसेप्षन वाले से पूछा मगर उसे कुछ आइडिया नही था. आदित्य होटेल से बाहर आया और एक ऑटो लेकर निकल पड़ा. उसने ऑटो वाले को किसी मार्केट में ले जाने को कहा. आधा घंटा लगा मार्केट पहुँचने में.

इधर ज़रीना परेशान हो रही थी. “कहा रह गया आदित्य. रिसेप्षन पर ही तो गया था.”

ज़रीना टीवी ऑन करके बैठ गयी. मगर उसका मन सिर्फ़ आदित्य में ही अटका था.

अचानक दरवाजे पर नॉक हुई. ज़रीना ने दरवाजा खोला.

“आदित्य ये क्या मज़ाक है. एक घंटे में लौटे हो तुम वापिस. मेरी बिल्कुल भी चिंता नही है तुम्हे.”

“सॉरी…सॉरी…सॉरी…एक दोस्त मिल गया था मुझे. उसी से बात करने लग गया. वक्त का पता ही नही चला.”

“कितने गंदे हो तुम...मैं यहा परेशान हो रही हूँ और तुम बाते करने में व्यस्त थे.”

आदित्य ने कुछ नही कहा और सीधा वॉश रूम में घुस गया. 2 मिनिट बाद बाहर आ गया वो.

“ज़रीना तुम नहा ली क्या?”

“तुम्हारा वेट कर रही थी मैं. कुण्डी लगा कर कैसे जाती नहाने. तुम आते तो कौन खोलता.”

“हां वो तो है…चलो नहा लो तुम पहले. फिर मैं भी नहा लूँगा. फिर हम ढेर सारी बाते करेंगे.” आदित्य ने हंसते हुवे कहा.

ज़रीना ने एक तकिया उठाया और आदित्य पर फेंक कर मारा. “तुम सच में बहुत गंदे हो.” वो घुस गयी भाग कर वॉश रूम में.

अंदर आ कर जैसे ही उसने कुण्डी लगाई उसे खुँती पर एक ब्रा टगी मिली. ब्रा देखते ही उसके चेहरे पर हल्की सी मुश्कान बिखर गयी. वो नहा कर बाहर आई तो आदित्य बिस्तर पर आँखे बंद करके पड़ा था. ज़रीना ने बेड के पास रखी टेबल पर रखे नोट पॅड को उठाया और एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर आदित्य के पास रख दिया और अपने गले से आवाज़ की “उह…उह”

आदित्य ने आँखे खोल कर देखा. “क्या हुवा गले में खरास है क्या. मैं अभी विक्क्स की गोली ले कर आता हूँ.”

“खबरदार इस कमरे से बाहर निकले तुम तो.” ज़रीना चिल्लाई.

आदित्य फ़ौरन उठ कर बैठ गया. जैसे ही वो बैठा उसे ज़रीना का रखा काग़ज़ का टुकड़ा दीखाई दिया. उसने वो उठाया.

उस पर लिखा था, “कहा से लाए. अछी है.”

आदित्य हंस दिया वो पढ़ कर. आदित्य ने टेबल से नोट पॅड उठाया और कुछ लिख कर उसने भी गले से आवाज़ की “उह..उह” और काग़ज़ ज़रीना की तरफ बढ़ा दिया. ज़रीना ने नज़रे झुका कर चुपचाप वो काग़ज़ पकड़ लिया.

उसमें लिखा था, “मुझे डर था कि कही तुम्हे पसंद ना आए.”

ज़रीना भी मुश्कुरा उठी ये पढ़ कर. वो बिस्तर के दूसरे कोने पर बैठ गयी और फिर से नोट पॅड उठा कर कुछ लिख कर आदित्य की तरफ बढ़ा दिया “उह..उह.”

आदित्य ने काग़ज़ पकड़ लिया और पढ़ने लगा.

उसमें लिखा था, “तुम कुछ लाओ और मुझे पसंद ना आए ऐसा कैसे हो सकता है. वैसे मेरा साइज़ कैसे पता लगा तुम्हे ??? .”

आदित्य ने तुरंत लिख कर ज़रीना की तरफ काग़ज़ बढ़ा दिया.

उसमें लिखा था, “अंदाज़े से ले आया. शूकर है अंदाज़ा सही निकला.”

ज़रीना काग़ज़ पढ़ कर मुश्कुरा दी. उसने तकिया उठाया और दे मारा आदित्य के सर पर. “चलो अब उठो यहा से. ये बिस्तर मेरा है…तुम कही और इंटेज़ाम कर लो.”

“हद होती है बेशर्मी की. पिछली बार भी होटेल में बिस्तर तुमने हथिया लिया था. इस बार भी क़ब्ज़ा करने पर तुली है. मुझे क्या बेवकूफ़ समझ रखा है.”

“आदित्य जाओ ना प्लीज़. बहुत थॅकी हुई हूँ मैं. नींद आ रही है बहुत तेज. थोड़ा सा सो लेने दो ना.”

“डिन्नर नही करोगी क्या?”

“नही…डिन्नर नही करती हूँ मैं. तुम्हारे बिना 2 टाइम का खाना ही मुश्किल से हाज़ाम होता था. अब तो आदत सी पड़ गयी है मुझे. डिन्नर किए हुवे साल बीत गया मुझे. कभी एक-दो बार खाया है मैने. पर ज़्यादातर मुझे शाम को भूक नही लगती है.”

“अब लगेगी…मैं आ गया हूँ ना.”

“देखते हैं. फिलहाल मुझे सोने दो. और जा कर नहा लो तुम.”

क्रमशः...............................
 
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