भानु मेरी एक बहुत ही करीबी, और प्यारी सहेली है। जाहिर सी बात है की उसकी उम्र भी मेरे ही बराबर थी। वैसे उम्र ही क्या, हम दोनों का डील डौल भी लगभग एक जैसा ही था। लेकिन जहाँ मैं एक पहाड़ी लड़की हूँ, भानु एक दक्षिण भारतीय सुंदरी है। एक बात तो है – दक्षिण भारत की लड़कियों की गढ़न बहुत अच्छी होती है। भानु भी ऐसी ही है... सांवली सलोनी.. सामान्य कद की। लेकिन उसके स्तन 32B साइज़ के हैं, और उस पर खूब फबते हैं। बड़ी बड़ी आँखें और उन्नत नितम्ब! सचमुच, बहुत ही प्यारी लड़की है वो। वो कॉलेज में सबसे पहले मेरी दोस्त बनी, और धीरे धीरे हम दोनों इतने करीब आ गए हैं की हमारी कोई भी बात एक दूसरे से नहीं छुपी है।
एक और बात है, बैंगलोर जैसे शहर में रहने के बावजूद उसका परिवार कुछ रूढ़िवादी किस्म का है। रस्मों, और कर्म-कांडों को निभाने की जैसे सनक सी हैं उनमें! उनके परिवार की सोच यह भी रही है की लड़कियों का ब्याह जल्दी कर देना चाहिए.. लिहाजा, दो साल पहले ही भानु का रिश्ता एक सॉफ्टवेर इंजिनियर (बैंगलोर में और कौन मिलता है?) के साथ तय कर दिया गया है। इसने तो शुरू शुरू में बहुत नखरे किए, बहुत सी मिन्नतें करीं, लेकिन कुछ हो नहीं सका। माता-पिता के सामने बेबस थी। बस, इतनी ही गनीमत थी की उसको कम से कम स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लेने तक की मोहलत दी गई थी। शायद उसकी कुंडली में कुछ गोत्र, मांगलिक वाला चक्कर था, और इस कारण से बस कुछ ही रिश्ते मिल रहे थे। उसके माता-पिता ने सबसे कमाऊ वाले रिश्ते को पकड़ लिया। मजे की बात यह, की उसकी यह बात पूरे कॉलेज में सिर्फ मुझे ही मालूम थी। वैसे उसका मंगेतर अरुण कोई बुरा नहीं था। देखने बोलने में अच्छा था। उन दोनों को अपने अपने परिवार की तरफ से दिन में मिलने की इजाज़त मिली हुई थी। आज भी कॉलेज के बाद वो दोनों किसी कॉफ़ी शॉप पर ही मिल रहे थे।
खैर, नहाने के बाद मैंने हल्का फुल्का कपड़ा पहना (मतलब, सिर्फ पजामा और टी-शर्ट, और अन्दर कुछ भी नहीं) और टीवी देखते हुए भानु के आने का इंतज़ार करने लगी। कुछ ही देर में वो आ गई – उसके हाथ में एक बैग था, जिसमें दो दिनों के लिए ज़रूरी सामान और कपड़े थे। उसके आने के बाद हम दोनों साथ में चाय बनाने लगे, और साथ ही साथ मज़े से बातें भी करने लगे। मैंने उसको पूछा की आज दोनों ने मिल कर क्या किया! उत्तर में वो बस शरमा रही थी। दोनों को अनोखे में ही मिलने का अवसर मिलता था, इसलिए कुछ तो किया होगा न! मेरे खूब जिद करने से उसने बताया की आज अरुण में न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई, की उसने इसे चूम लिया। यह बताते बताते ही उसके सांवले गालों पर लाली आ गई। मैंने उसे छेड़ते हुए कहा, की बदमाश, इतनी ज़रूरी बात इतनी देर में बता रही है! तो वो शरमा कर हंस दी।
(हमारी बात चीत अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ – इन मिली जुली भाषाओँ में हुई.. लेकिन यहाँ सुविधा के लिए सिर्फ हिंदी में ही बता रही हूँ)..
मैं : “हाय! हमारी किस्मत कहाँ, की कोई हमको चूमे!”
भानु : “अरे है न! तुम्हारे जीजू?”
मैं : “ऐसे मत छेड़ यार! मैं तो उनको दिखती ही नहीं.. उनकी नज़र मुझ पर पड़े, ऐसी किस्मत ही नहीं!”
भानु : “तू किस्मत की बात करती है? तू तो आइटम है.. आइटम! और आइटम ही क्या, पूरी पटाखा है! एक बार इशारा कर दे, बस, आशिकों की लाइन लग जायेगी तेरे सामने!”
मैं : “अच्छा जी! तू जैसे कोई कम है..?”
भानु (गहरी सांस भरते हुए): “मेरा क्या! मेरा डब्बा तो पैक हो गया है!”
मैं : “हा हा हा! वाह भई... यह डब्बा खुलने को इतना बेकरार है क्या? कुछ दिन रुक जा.. फुर्सत से खुलेगी! हा हा हा! अबे बता न.. क्या किया था तुम दोनो ने।“
भानु : “अरे बताया तो! सिर्फ़ किस किया था उसने...”
मैं : “हाँ जी! तुमने कहा, और मैंने मान लिया! आप लोग इतने शरीफ हो!”
भानु : “कुछ बातें परदे के अन्दर रखनी चाहिए!”
मैं (चाय पीते हुए): “मुझसे भी?”
भानु : “हाँ.. तुझसे भी..!”
मैं : “ह्म्म्म... ये सुनो! मैं तो तुमको कुछ बताने वाली थी.. लेकिन.. अब...”
भानु : “हैं? क्या बताने वाली थी?”
मैं (उसको छेड़ते हुए): “रहने दे.. कुछ बातें परदे के अन्दर ही रहनी चाहिए!”
भानु : “नीलू.. ऐसे मत छेड़! ठीक है बाबा.. मैं बताऊंगी.. लेकिन पहले तू बता! ओके?”
मैं : “लेकिन पहले तो मैंने पूछा!”
भानु : “तू बहस बहुत करती है.. अब नखरे मत कर, और बता भी दे..”
मैं : “अच्छा.. ठीक है! तो सुन.. मैंने आज अपनी.. इसको (अपनी योनि की तरफ इशारा करते हुए) देर तक सहलाया.. पहली बार...”
भानु : “धत्त तेरे की! खोदा पहाड़, निकली चुहिया! यह बोल न की तूने आज पहली बार मास्चरबेट किया!”
मैं : “हाँ.. वही..”
भानु : “मेरी बुद्धूराम! तूने यह आज किया? अपनी जिंदगी के कितने बरस तूने यूँ ही वेस्ट कर दिए!”
मैं : “मतलब? तूने क्या बहुत पहले ही...?”
भानु : “हाँ जी.. पांच साल पहले..!”
मैं : “पांच साल पहले? बाप रे!”
भानु : “हाँ! और नहीं तो क्या? हम लड़कियाँ तो जल्दी ही जवान हो जाती हैं! लेकिन तू बिना यह सब किए इतना दिन कैसे रही?”
मैं : “पता नहीं..”
भानु : “अपने जीजू को एक इशारा तो देती.. फिर देखती, तू कैसे बचती?”
मैं : “भानु प्लीज! इस बात से मुझे मत छेड़! ठीक है की वो मुझे पसंद हैं.. लेकिन इसका यह मतलब नहीं की वो भी मुझे पसंद करें!” फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद, “अरे! मेरी छोड़.. तू बता! क्या क्या किया तुम दोनों ने?”
भानु : “ठीक है बाबा.. सुन! आज मिस्टर मूड में थे! पहले भी उसने मुझे दो तीन बार चूमा था.. लेकिन आज वाला! उसने मेरे दोनों गालों को पकड़ कर चूमा.. नॉट किस.. स्मूच! मेरी जान ही निकल गई जब मैंने उसकी जीभ अपने मुँह में महसूस करी! फिर उसने मेरे बूब्स भी छुए! इतना मना करने पर भी देर तक दबाता मसलता रहा! बड़ी मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया। शॉप में ज्यादातर लोग हमें ही देख रहे थे। मैं तो शर्म के मारे बाहर भाग आई।“
मैं : “बाप रे! तुझे कैसा लगा यार?”
भानु : “कैसा लगा? अरे, मेरी हालत खराब हो गई! मेरी योनि में चींटियाँ काटने लग गईं। कोई और जगह होती तो आज मेरा केक भी कट जाता!”
मैं : “क्या वैसा लगता है जैसे मास्चरबेट करते समय लगता है?
भानु : “अरे! वो तो कुछ भी नहीं है.. उससे भी पावरफुल! मास्चरबेशन का क्या है? उसमें तो बस अपना ही हाथ है.. लेकिन जब दूसरे का हाथ लगता है न.. पूरा शरीर झनझना जाता है।”
मैं : “बाप रे!”
भानु : “तू जानना चाहती है की कैसा लगता है?”
मैं : “न बाबा! वैसे भी मेरा कोई बॉयफ्रेंड थोड़े ही है!”
भानु : “बॉयफ्रेंड नहीं तो क्या, गर्लफ्रेंड तो है! मैं ही सिखा देती हूँ...”
मैं उसकी बात सुन कर चुप हो गई।
भानु : “ए नीलू.. तू बुरा तो नहीं मान गई?”
मैं : “नहीं यार!”
भानु : “तो बोल.. तुझे प्यार करूँ?”
मैं हंस पड़ी।
भानु : “तेरे होने वाले बॉयफ्रेंड से बढ़िया करूंगी!”
मैं : “ऐसी बात है? तो आ जा..”
भानु वाकई सीरियस थी। मुझे शुरू शुरू में लगा की वो शायद मजाक कर रही थी। लेकिन जब उसने मेरे पास आकर मेरे होंठों पर अपने होंठ सटाए तो मुझे वाकई एक करंट सा लगा। कुछ देर ऊपर से ही छोटे छोटे चुम्बन लेने के बाद वो उन्हे चूसने लगी। मैंने भी अपनी तरफ से जैसा हो सका, सहयोग किया। कुछ देर चूमने के बाद भानु का मेरे स्तनों पर आ गया और वो उनको टी-शर्ट के ऊपर से ही सहलाने लगी। मैं रोमांचित हो उठी.. दिमाग में पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। सच में, मेरे शरीर में एक अनोखी सी आग आग सुलग गई। भानु मुझे अपनी बाहों में लिए रह रह कर मेरे गाल, होंठ, आंखें, नाक, गर्दन और स्तनों पर चुम्बन देने लगी। एक बारगी कामुक उन्माद में मेरा मुँह खुल गया, तो उसने मौका पाते ही अपने होंठों से वहाँ हमला कर दिया, और अपनी जीभ मेरे मुंह के अन्दर डाल कर मेरी जीभ से खिलवाड़ करने लगी! मैं उचक कर अलग हो गई।
मैं : “ओए! छी! कैसा कैसा तो लगा! गीला गीला!”
भानु : “तुझे अच्छा नहीं लगा?”
मैं : “न रे! कैसा अजीब सा लग रहा था। अब बस कर..।“
भानु : “बस कैसे करूँ मेरी जान? अब तो मुझसे भी रहा नहीं जा रहा है..”
मैं : “हम्म.. तो क्या किया जाय?”
भानु : “तेरा तो नहीं मालूम.. लेकिन मेरा तो अब इन कपड़ों के अन्दर रहना मुश्किल है..”
मैं (हँसते हुए) : “तो बाहर आ जा.. मेरे अलावा कौन है यहाँ तुझे देखने वाला?”
भानु : “अरे ऐसे नहीं! तू उतार! मैं तेरा उतार दूँगी!”
कहते हुए वो फिर से मुझसे लिपट कर मेरे होंठ चूसने लगी और टी-शर्ट के निचले हिस्से को पकड़ कर मेरे शरीर से हटाने लगी। मैं भी उसके कुर्ते के बटन खोल कर उसके कुरते को उतारने लगी। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, मैंने टी-शर्ट के नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था, लिहाजा, उसके उतरते ही मैं अर्धनग्न भानु के सामने सम्मुख हो गई। भानु का कुर्ता भी उतरा – लेकिन उसने अभी भी ब्रा पहनी हुई थी।
भानु : “अरे भगवान्! नीलू.. तेरी चून्चियां क्या मस्त हैं! कितनी प्यारी प्यारी! देख न! कैसे लाइट मार रही हैं!”
मैं : “हट्ट बेशरम! कैसे बोल रही है!”
भानु : “अरे मैं सच कह रही हूँ..” कहते हुए उसने मेरे हाथ अपने स्तनों पर जमाए, और खुद मेरे दोनों स्तनों को दबाने लगी। मेरी तो जान ही निकल गई।
मैं : “आऊऊ.. आह्ह नहीं.. धीरे अआह्ह्ह.. धीरे!”
भानु (अनसुना करते हुए) : “नीलू, तू भी उतार इसको और खेलो..”
मैंने जैसे तैसे उसके प्रहार झेलते हुए उसकी ब्रा उतारी। तुरंत ही उसके उन्नत वक्ष मेरे सामने उपस्थित थे। मैं सचमुच में उसके स्तन देखती रह गई। कितने प्यारे स्तन! बिलकुल खिलौनों के समान! बड़े-बड़े, शरीर के बाकी हिस्सों जैसा ही साँवला सलोना रंग, उत्तेजना से ओत-प्रोत लम्बे तने हुए गहरे सांवले चूचक, और उसी से मिलता जुलता गोल घेरा। मुझसे रहा नहीं गया.. और मैंने भी अपने हाथ उन पर जमा दिए।
मैं : “हाय रे मेरी भानु रानी! तेरे संतरे कितने मस्त हैं! ठोस.. मुलायम.. और रसीले... दोनों के दोनों! मैं खा लूँ?”
भानु : “नेकी और पूछ पूछ?”
मैंने उसकी इस बात पर उसको सोफे पर ही लिटा दिया, और खुद भी उसके बराबर लेट गई। एक तरीके का आलिंगन – करवट में मेरा दाहिना स्तन उसके बाएं स्तन से टकरा रहा था। मैंने उसकी पीठ और नितम्ब सहलाते हुए उसके एक निप्पल पर अपनी जीभ फिराई। दीदी की याद पुनः हो आई। मैंने पूरा निप्पल अपने मुंह में भरा, और चूसना शुरू किया। मज़ा आ गया। भानु की सिसकी छूट गई। लेकिन फिर भी उसने मेरे सर को पकड़ कर अपने स्तन में भींच सा लिया।
भानु : “आह्ह्ह्ह! इस्स्स्स... नील्लू.. आह्ह्ह! धीरे... ऊफ़.. मज़ा आ गया! आह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है। कस कर चूसो न... उफ्फ्फ़! आआऊऊ ... काटो मत प्लीज। आराम से मेरी जान। अआह्ह्ह.. अरुण सुनेगा, तो जल मरेगा! ऊऊह्ह्ह.. मजे से चूसो! ओह्ह्ह!”
मैंने कोई चार-पांच मिनट तक उसके दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसा। एक पल मुझे लगा की भानु का शरीर थरथरा रहा है.. मुझे समझ में आ गया की उसने अपना कामोत्कर्ष प्राप्त कर लिया है, इसलिए जब तक वो शांत न हो जाए, तब तक मैं चूसती रही। निवृत्त होने के बाद भानु भी अब मेरे स्तन दबाने और चूसने लगी।
मैं : “भानु, तेरा मन नहीं हुआ की और कुछ भी किया जाय..?”
भानु : “मन क्यों नहीं हुआ! मैंने बताया न.. बड़ी मुश्किल से भागी वहाँ से.. कोई और जगह होती, तो आज तो अरुण ने मेरा काम तमाम कर दिया होता! खैर, मेरी छोड़.. तू बता, तेरा दिल भी तो तेरे जीजू से लगा हुआ है.. तेरा दिल नहीं चाहता?”
मैं : “दिल तो बहुत चाहता है! मैंने उनका और दीदी का खेल देखा है.. और मुझे मालूम है सब कुछ। लेकिन डर लगता है।“
भानु : “डर? किस बात का?”
मैं : “इस बात का की कहीं मैं उनको चोट न पहुंचा दूं! वो अभी तक दीदी के जाने का गम नहीं मिटा पाए हैं.. कहीं उनको ऐसा न लगे की मैं दीदी की याद मिटाना चाहती हूँ.. उनकी जगह लेना चाहती हूँ..”
भानु : “लेकिन ऐसा तो नहीं है न! तू तो उनसे प्यार करती है!”
मैं : “हाँ! प्यार तो मैं बहुत करती हूँ.. जब से उनको देखा है तब से! बस, प्यार के रूप बदलते गए!”
भानु : “तुम्हारी जैसी लड़की भी तो बड़े नसीब से मिलती है। ये एहसास करा दो अपने जीजू को! प्यार करती हो, तो बता भी दो! क्या बिगड़ेगा भला!”
फिर कुछ देर बाद अचानक ही बोलती है, “एक काम कर.. एक रात को चांस ले। तू पूरी नंगी हो कर उनके रूम में चली जा.. खुद बा खुद लाइन पर आ जायेंगे वो.. जब खुद विश्वामित्र मेनका के सामने मेमना बन गए, तो वो क्या चीज़ हैं?”
मैं : “बस कर.. अपने आइडियाज अपने पास ही रख.. अब तेरा हो गया हो तो छोड़ मेरे दुद्धू..”
भानु : “छोड़ने का मन ही नहीं करता। नीलू मेरी जान.. सच सच बताना, कहाँ छुपा रखी थी यह प्यारी प्यारी चून्चियां?”
उसकी इतनी बेशर्मी भरी बात सुन कर मैं पुनः शरमा गई।
वो फिर मेरे स्तन जोर जोर से चूसने लगी और उसके कारण उठने वाले आनंद के उन्माद में मैं पागल होने लगी। इसी बीच उसने मेरा पजामा भी नीचे सरकाना शुरू कर दिया। मैं चौंक गई, “अआह्ह्ह.. ओए.. ये क्या कर रही है?”
“नीलू.. तेरे यार से पहले मैं देख लूंगी, तो क्या हो जाएगा?”
अब वो पूरी तरह निर्लज्ज हो कर मुझे निर्वस्त्र करने पर उतारू हो गई थी। हलके फुल्के कपड़े उतारने में कितनी ही देर लगती है.. कुछ ही क्षणों में मैं पूर्ण नग्न उसके सामने थी। शर्म के कारण मैंने अपनी दोनों टांगें और पैर एकदम सटा लिए, जिससे भानु मेरी योनि ठीक से न देख सके। कैसी मूर्खता.. निर्वस्त्र हो जाने पर भी क्या छुपना है भला! भानु न जाने कहाँ कहाँ से सीख कर आई है (और कहाँ से सीखी होगी?) लेकिन वो अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर मालिश जैसी करने लगी, और साथ ही मेरे स्तन भी पी रही थी। ऐसे में भला कितनी देर रहा जाए? मैं वैसे ही उत्तेजित थी, अब अतिउत्तेजित हो गई और बिना सोचे मैंने अपने दोनों पैर खोल दिए। भानु अब मेरी योनि एकदम साफ़ साफ़ देख सकती थी।
भानु मेरी योनि की दरार पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, “सच नीलू.. जिसे तू ये खज़ाना देगी न, वो धन्य हो जाएगा! कैसी पतली पतली फांकें हैं.. और गोरी भी! बस... ये बाल साफ़ करवा ले.. एकदम मस्त लगेगी!”
वो हल्के हलके हाथों से मेरी योनि को सहलाते हुए, मेरे उसके भगांकुर को रगड़ने लगी, मैं न चाहते हुए भी जोर जोर से आहें भरने लगी! उन्माद की बेचैनी के मारे मैं अपना सिर इधर-उधर करने लगी। लगा की साँसे रुक रुक कर चल रही हैं.. वाकई, कोई और छूता है, तो बहुत ही अलग एहसास होता है। भानु न जाने कब तक मेरी योनि को इस प्रकार रगडती रही, फिर अचानक ही उसने मेरे छिद्र में अपनी उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी। इस प्रहार को मैं नहीं सह पाई, और देखते ही देखते वह दबी घुटी आहें भरते हुए स्खलित हो गई। उसी उन्माद में मैं उठ कर जोर से भानु से लिपट गई। जब वासना का ज्वार थमा, तो मैंने देखा की सोफे के गद्दी पर मेरी योनि के नीचे की जगह गीली हो गई थी। न जाने क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गए। भानु बिना कुछ कहे मुझसे लिपटी रही।