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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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बीबी की सहेली भानु
ओह, अब समझा! मैं भी क्या पढ़ता हूँ! हा हा!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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प्रिय avsji मजा आ गया यार। सुबह , क्या घर में सिर्फ रूद्र, भानु और नीलम ही थे ? क्योंकि रात में कमरे में जाने से पहले, रूद्र को भानु, अनन्या तथा ऋतू ने रोका था। अब केवल भानु ही है। अनन्या तथा ऋतू कहाँ गायब हो गईं ?

आशु

बाकी लड़कियाँ चली गई होंगी। भानु ख़ास सहेली है, इसलिए रह गई।
वैसे भी मुझसे एक बार में दो तीन पात्रों से अधिक सम्हलते नहीं।
 
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बाकी लड़कियाँ चली गई होंगी। भानु ख़ास सहेली है, इसलिए रह गई।
वैसे भी मुझसे एक बार में दो तीन पात्रों से अधिक सम्हलते नहीं।

दो तीन? मुझे लगा आप एक (अंजली) से ज्यादा नहीं सम्हाल सकते हैं।

🤣😜😜

आशु
 
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दो तीन? मुझे लगा आप एक (अंजली) से ज्यादा नहीं सम्हाल सकते हैं।

🤣😜😜

आशु

सम्हलती तो वो एक ही नहीं है। 😂
 

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एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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सम्हलती तो वो एक ही नहीं है। 😂
भाई उधर अमर (My experience with love) ki कहानी में कोई अपडेट नहीं है?

आशु
 

avsji

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भाई उधर अमर (My experience with love) ki कहानी में कोई अपडेट नहीं है?

आशु
है न
 

avsji

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नित्यक्रिया से निवृत्त होने के बाद, नीलम और मैं हम दोनों साथ ही नहाने के लिए गए। नहाते वक्त ऐसी कोई ख़ास बात नहीं हुई – लेकिन जाहिर सी बात है, नीलम भी यह सुनिश्चित कर देना चाहती थी की मैं उसके शरीर के हर कोने से अच्छी तरह से जानकारी कर लूं – उसके शरीर में किस जगह पर कैसे लोच हैं, कैसी गोलाईयां हैं और कैसे मोड़ हैं – उन सबका ज्ञान उसको नहलाते समय साबुन लगाते और फिर पानी से धोते समय मुझे हो गया। उसके शरीर पर कहाँ कहाँ और कैसे कैसे तिल हैं, और कैसा जन्म-चिन्ह है, उसकी गुदा की बनावट और रंग, साथ ही साथ उसकी योनि का विस्तृत विवरण – मतलब नीलम के बारे में वो सभी जानकारियां जिनके बारे में संभवतः नीलम को खुद भी न मालूम हो, उस एक ही स्नान में मुझे हो गई।

हम तीनों ने साथ में बैठ कर नाश्ता किया। वायदे के मुताबिक, नीलम अभी भी नग्न थी – सिवाय एक नव-विवाहिता के समस्त आभूषणों के। मैंने भी उसका साथ देने के लिए कोई कपड़े नहीं पहने थे। भानु ने ‘हाउ क्यूट’, ‘हाउ स्वीट’, और ‘हाउ सेक्सी’ जैसे कई विशेषण हमारी प्रसंशा में जड़ दिए, और हमको बारी बारी से चूमा। नाश्ता करते समय भानु ने हमसे पूछा की हम दोनों अपने हनीमून के लिए कहाँ जा रहे हैं? वाकई! इस बात के बारे में तो मैंने बिलकुल भी नहीं सोचा था। मैंने दिमाग दौड़ाया लेकिन कुछ समझ नहीं आया – इसलिए मैंने नीलम से ही पूछना ठीक समझा।

उसने कहा,

“अच्छा... आप ये बताइए कि हम लोग हनीमून में क्या करेंगे?”

“अरे! हनीमून में क्या करना होता है?”

“फिर भी.. बताइए न?”

“भई, मेरे हिसाब से तो हनीमून एक नए युगल के लिए ब्रेफिक्री, आनंद और पारस्परिक अंतर्ज्ञान का एक अवसर होता है! नए नए बने पति पत्नी को एकांत में मिलने का सुख मिलता है, एक दूसरे को समझने का अवसर मिलता है, और सब कुछ अच्छा रहा तो एक नए स्थान में पर्यटन करने का भी मौका मिलता है! और क्या?”

“ओह्हो! आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहे हैं.. हनीमून में करना क्या होता है?”

“अरे! बताया तो..” मैं जान बूझ कर टाल रहा था।

फिर से भानु बीच में टपक पड़ी,

“क्या मेरे भोले जीजू! आप भी न..” फिर नीलम की तरफ मुखातिब होते हुए, “मेरी बन्नो.. हनीमून में जीजू तेरी जम कर चुदाई करेंगे! और क्या? अभी तो तू अपनी मर्ज़ी से नंगी बैठी है, लेकिन जब हनीमून पर जायेगी, तो तुझे ये जबरदस्ती नंगी रखेंगे! और तेरी चूत का...”

“चोप्प्प्प!” मैंने डांट लगाई, “हनीमून में कुछ हो या न हो.. लेकिन कम से कम तू तो नहीं होगी वहाँ.. वही काफी है मेरे लिए..”

“हाय मेरे जीजू! इतनी बेरुखी मुझसे? अपनी एकलौती साली से?”

उसने फ़िल्मी अंदाज़ में अपनी दाहिनी बाँह थोड़ा ट्विस्ट करके अपने माथे पर, और बाईं बाँह ट्विस्ट कर के अपनी कमर के पीछे कर लिया और कहा,

“हाय री किस्मत! कैसा जीजा मिला मुझे!”

“तेरी तो..”

नीलम ने मुझे बाँह से पकड़ा, और मुस्कुराई, “जानू.. आप इसकी बातें मत सुना करिए! वैसे मैं कह रही थी, कि जो काम हम हनीमून पर करने वाले हैं, वो सच में, अभी भी तो कर ही रहे हैं न! मैं संतुष्ट हूँ पूरी तरह से.. और आपको संतुष्ट रखने की पूरी कोशिश करूंगी..”

“ओये होए मेरी पतिव्रता नारी! वैसे सच कहूं जीजू.. अपनी नीलू तो हमेशा से आपके ही सपने संजोए रही थी। पूरी तरह से आपके प्रति वफादार! बस.. एक बार मैंने ही इसको बहका दिया था..”

“तू तो कुछ भी कर सकती है” मैंने तल्खी से जवाब दिया।

“अरे अरे! आप तो नाराज़ हो गए.. और एक मैं हूँ.. जो आपसे खुश हुई जा रही हूँ..”

“तेरे खुश होने से भी मुझे क्या मिला जा रहा है?”

“अरे! नहीं मिला है तो मिल जायेगा! आप तो ऐसे उतावले होंगे तो कैसे चलेगा?”

“क्या? मैं उतावला..!”

“जानू.. आप परेशान मत होइए! इस कमीनी ने मुझसे कहा था की तेरे हस्बैंड को अपने दूध का स्वाद चखाएगी! चल री! कर न.. दे न अपने जीजू को गिफ्ट...”

“अबे! मैंने कब कहा था?”

“कहा नहीं था तूने?”

“न बाबा! तू ही पिला दूध वूध... ये सब मेरे अरुण की अमानत हैं... लेकिन... अपने प्यारे जीजू को भी कुछ न कुछ तो दूँगी ही!”

कह कर उसने मुझे होंठों पर चुम्बन दिया.. और हँसते हुए अन्दर कमरे में भाग गई।

और इसी के साथ नीलम और मेरी शादी-शुदा जिंदगी चल निकली। एक महीना ऐसे ही हँसते हँसते बीत गया। सच में – जो सब कुछ संध्या के जाने से खो गया था, वो सब कुछ नीलम के आते ही वापस आ गया। सब कुछ तो नहीं – लेकिन काफी कुछ। दिल का घाव भर तो सकता है, लेकिन उसका चिन्ह कैसे छूटे? इस सब का पूरे का पूरा श्रेय नीलम को ही जाता है। मैंने तो समय से पूरी तरह से हार मान लिया था और उसके सम्मुख अपने सारे हथियार डाल दिए थे। बस इसी बात की तमन्ना रह गई थी की कब मुझे समय अपने अंक में भर के इस धरती से मुक्ति दे दे। लेकिन, वो एक दिन था, और आज का दिन है – जीवन को भरपूर जीने की इच्छा बलवती हो गई है।

भगवान् ने एक और सद्बुद्धि दी – और वह यह की मैंने कभी भी नीलम की संध्या से तुलना नहीं करी.. और करने की सोची भी नहीं। दोनों ही लडकियाँ अप्रतिम और अनोखी थीं। दोनों ही मेरी पत्नियाँ थीं, और दोनों से ही मुझे अत्यंत प्रेम था। जहाँ संध्या ने मेरे यंत्रवत जीवन में अपने प्रेम की फुहार सिंचित कर उसमें बहार ला दी थी, उसी प्रकार नीलम ने मेरे मृतप्राय शरीर में पहले तो प्राण फूंके, और फिर अपने प्रेम के रस से सींच कर जैसे मुझे संजीवनी दे दी थी। एक आदमी को भला जीवन से और क्या प्रत्याशा हो सकती है?

****
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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“बत्तीस नंबर के पेशेंट को होश आ गया है..”,

सरकारी अस्पताल की नर्स सुषमा हर्ष-पूरित उत्तेजना में भागते भागते बाहर आई और लगभग चीखते हुए यह उद्घोषणा करने लगी।

“जल्दी से डॉक्टर संजीव को बुलाओ.. हे प्रभु! कैसे कैसे निराले खेल! मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी..”

वह रिसेप्शन पर निठल्ले से खड़े दोनों वार्ड-बॉयज को कह रही थी। उन दोनों ने उसकी बात पर ऐसे मुँह बनाया जैसे उनको किसी ने रेंडी का तेल पिला दिया हो, लेकिन सुषमा ने जब आँखे तरेरी, तो दोनों ही भाग कर डॉक्टर संजीव को बुलाने निकल लिए। किसी की मजाल नहीं थी की नर्स सुषमा की बात न माने।

कोई पंद्रह मिनट बाद डॉक्टर संजीव, बतीस नंबर की पेशेंट की जांच कर रहे थे। नब्ज़ और आँखें इत्यादि देखते हुए वो मरीज़ से पूछते जा रहे थे,

“बहुत बढ़िया! कैसा लग रहा है आपको? कहीं दर्द तो नहीं?”

“मैं कहाँ हूँ?” मरीज़ ने पूछा।

“ओह! सॉरी! मैंने तो बताया ही नहीं – आप गौचर के सरकारी अस्पताल में हैं! मैं डॉक्टर संजीव हूँ.. और ये हैं नर्स सुषमा! इन्होने ही आपकी दिन रात देखभाल करी है।“

“क्या डॉक्टर साहब.. आप भी..”

“अस्पताल में? क्यों?”

“आपको सब बताएँगे.. लेकिन, आप पहले यह बतोये की आपका नाम क्या है?”

“नाम? मेरा नाम.. क्या? मेरा नाम क्या है?” मरीज़ को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

“कोई बात नहीं.. कोई बात नहीं.. आराम से!” कहते हुए डॉक्टर ने अपने नोट पैड में कुछ लिख लिया, और फिर सुषमा से कहा,

“इनके वाइटल स्टैट्स सब ठीक हैं.. लेकिन, इतने महीने कोमा में रहने के कारण लगता है याददाश्त सप्रेस हो गई है। कोई बात नहीं.. तीन दिन ऑब्जरवेशन पर रखते हैं – अगर हालत ठीक रही तो पेशेंट को रिलीव कर दे सकते हैं.. मेमोरी गेन में टाइम लग सकता है, और उसके लिए हॉस्पिटल में रहने की ज़रुरत नहीं! इनके घर इत्तला कर दी?”

“अभी नहीं डॉक्टर! अभी करती हूँ!”

“देखिए,” संजीव ने मरीज़ को कहा, “आप घबराइये नहीं.. आप महीनो के बाद होश में आईं हैं, इसलिए शायद आपको अभी कुछ ख़ास याद नहीं है। लेकिन, जल्दी ही आपको सब याद आ जायेगा। इस बीच नर्स सुषमा आपका पूरा ख़याल रखेंगी।“

कह कर डॉक्टर ने मरीज़ के सर पर प्यार से हाथ फिराया और फिर कुछ और ख़ास निर्देश दे कर वहां से विदा ली।

“हाँ! कुंदन जी... मैं सुषमा बोल रही हूँ... नर्स सुषमा!” टेलीफोन पर सुषमा कह रही थी,

“हाँ हाँ.. अस्पताल से.. आपके लिए खुश खबरी है.. हाँ! आपकी पत्नी को होश आ गया है.. हाँ हाँ! ... आप बिलकुल आ सकते हैं देखने उसको! क्या नाम बताया था आपने उसका? ... अंजू? हाँ? ओके! उनको एक्चुअली फिलहाल याद नहीं आ रहा है! कोमा का असर लगता है.. आप आ जाइए, फिर आराम से बात कर लेंगे.. ओके .. ओके!”


कुंदन कोई बीस इक्कीस साल का गढ़वाली युवक था। उसकी इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर की दूकान थी – दूकान क्या थी, बस महीने का खर्च निकल जाता था। पोलिटेकनिक की पढाई करते ही उसने अपना खेत बेच दिया, और यह काम करने लगा। माँ बाप उसके थे नहीं, इसलिए किसी ने रोका भी नहीं! मौज से कट रही थी। लेकिन आमदनी अधिक तो नहीं थी। रहने सहने का काम हो जाता था। बाकी लोगों की तरह उसको भी यह मन होने लगा था कि तनहा रातों में वो अकेला न सोये! यूँ ही अकेले, ठन्डे बिस्तर में पड़े रहने से अच्छा था की कोई एक गरम शरीर उसके बगल में हो, जिसके संग वो साहचर्य कर सके! ऐसे ही नाहक अपने वीर्य को वो कब तक नाली में बहाता रहेगा?

महीनो पहले वो केदारनाथ जी के दर्शनों के लिए गया था यह मन्नत मांगने की उसको एक सुन्दर सी पत्नी मिल जाय। पत्नी वत्नी का तो पता नहीं, लेकिन वो उस प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गया। जैसे तैसे वो जान बचा कर भागा। चोटें बहुत सी आईं, लेकिन फिर भी वो न जाने कैसे पहाड़ों की तरफ ऊपर की ओर पहुँच गया। रस्ते में उसने न जाने कितने ही अभागों के शवों को देखा। हर शव उसको यही याद दिलाता की अंत में उसकी भी यही दशा होने वाली थी, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत न हारी।

एक शाम को उसने एक लड़की को वहीँ पहाड़ों पर पड़े देखा – वो लगभग मरणासन्न थी। उसके आस पास सियार मंडरा रहे थे, की कब वो मरे, और कब उनका भोजन बने। अचानक ही कुंदन को लगा की उसकी आस पूरी होने वाली है। उसने उस लड़की को जंगली जानवरों की दृष्टि से बचाया, और जैसे कैसे भी उसको वापस जीवन की तरफ लाया। लेकिन लड़की की हालत बहुत खराब थी। होश तो कब का खो चुकी थी। इस घटना के कोई दो दिन बाद भारतीय सेना ने उन दोनों को बचाया और अस्पताल में भरती किया।

कोई और उस लड़की पर हाथ साफ़ न कर ले, उसके लिए कुंदन ने उसको अपनी पत्नी ‘अंजू’ के नाम से भरती किया था। कम से कम वह देह व्यापार करने वालो की कुदृष्टि से तो बची रहेगी। उसको तो अस्पताल से हफ्ते भर में छुट्टी मिल गई, लेकिन अंजू को होश नहीं आया। इस बीच उसको पता चला की वो बाप बनने वाला था।

‘साला! कैसी किस्मत! लड़की मिली भी तो पेट से!’ उसने सोचा।

लेकिन फिर उसको यह सुन कर राहत हुई की वो बच्चा उस प्राकृतिक आपदा का शिकार बन गया था। यह सुन कर उसको सच में दुःख हुआ। लेकिन यह तसल्ली भी हुई, की शायद अंजू का पति मर गया हो, और अब यह सुन्दर सी, अप्सरा सी दिखने वाली लड़की उसकी बन सके। लेकिन यह तसल्ली बहुत दिन न रही – अंजू जैसे होश में आने का नाम ही नहीं ले रही थी। महीनो बीत गए। कुंदन की उम्मीद तो कब की छूट गई थी। माँ बाप नहीं थे, तो किसी को क्या पड़ी थी की उसके लिए लड़की ढूंढता? ऐसा नहीं था की कुंदन की माली हालत में कोई बहुत ज्यादा खराबी थी – उसका गुजरा हो जाता था, उसको कोई बुरी आदत नहीं थी.. लेकिन उसके कसबे में एक बात प्रसिद्ध थी – वो बाद बेबुनियाद भी हो सकती है – और वो यह की कुंदन ‘उतना मर्द’ नहीं था। उसको अपने बारे में यह बात सुनने में आती रहती थी। उसको गुस्सा भी आता था, लेकिन बेचारा क्या करता? बस, खून के घूँट पी कर रह जाता।

इस अफवाह के कारण कई सारे सम्बन्धी नहीं चाहते थे की उनकी लड़की का रिश्ता कुंदन से हो जाय। कौन माँ बाप चाहेंगे की उनकी लड़की वैवाहिक सुख से वंचित रहे? किसी को न मालूम होता तो कोई बात नहीं, लेकिन जान बूझ कर कोई मक्खी तो नहीं निगलेगा न! अंजू उसके लिए एक आखिरी आस थी, लेकिन उसको भी होश नहीं आ रहा था। लेकिन आज जब अचानक ही नर्स सुषमा का फ़ोन आया, तो कुंदन की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा! निश्चित सी बात है, अंजू का कोई भी रिश्तेदार जीवित नहीं है.. होता तो अब तक कोई इश्तेहार न दे देता? ढूँढने न आता भला? कुंदन के अकेलेपन के दिन बस समाप्त होने ही वाले थे।

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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आज ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, इसलिए सवेरे ही बहाना बना कर घर में रुकने का प्लान कर लिया। लेकिन, नीलम को कॉलेज जाना ही था – उसका कोई बहुत ज़रूरी लेक्चर था, जिसको वो बिलकुल भी मिस नहीं कर सकती थी। खैर, मैंने ठान ही ली थी, की आज घर में बैठूँगा, और नीलम के लिए कुछ अच्छा सा पका कर उसको दोपहर बाद सरप्राइज दूंगा।

खैर, दोपहर के निकट मैं टीवी लगाए चैनल इधर उधर कर रहा था। टीवी देखने की आदत नहीं थी, लेकिन समय काटने के लिए कुछ तो करना ही था। सैकड़ों चैनल तीन चार बार इधर उधर करने के बाद 'नेशनल जियोग्राफिक' चैनल पर रोक दिया – रोक क्या दिया, मेरी उंगलियाँ स्वतः रुक गईं। सामने टीवी स्क्रीन पर उत्तराखंड त्रासदी की एक डाक्यूमेंट्री चल रही थी। वो त्रासदी मेरे जीवन का सबसे बड़ा घाव थी – मेरे हाथ खुद ही रुक गए, और मैं देखने लगा। दिमाग कहीं और ही मंडरा रहा था। डाक्यूमेंट्री में क्या कहा जा रहा था, मुझे सुनाई नहीं दे रहा था – मेरा मष्तिष्क स्वयं ही सामने के चित्रों में कभी तो अथाह जलराशि की गड़गड़ जैसी आवाज़ भरता जा रहा था, तो कभी चोटिल व्यक्तियों की कराह की आवाज़! मन में तो हुआ की टीवी बंद कर दूं – लेकिन वो कहते हैं न, आदमी को अपने दुस्वप्नों से दो-चार होना चाहिए। और कुछ न हो, कम से कम तसल्ली तो मिल ही जाती है।

मैं टीवी बंद नहीं कर सका। बस – चित्र देखता गया। अचानक ही एक ऐसा चित्र आँखों के सामने आया जिसने मेरे ह्रदय की धड़कन कुछ क्षणों के लिए रोक दी। डाक्यूमेंट्री में एक अस्पताल का दृश्य दिखा रहे थे, जिसमे त्रासदी के शिकार लोग भरती किये गए थे। कैमरामैन ने अस्पताल के बड़े से हाल में अपना कैमरा एक कोने से दूसरे कोने तक चलाया था, लेकिन मुझे जो दिखा वो अत्यंत ही अकल्पनीय था।

उस अस्पताल के एक बिस्तर पर संध्या थी!!

कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। दृश्य में संध्या लगभग निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी हुई थी, नहीं – बैठी हुई थी। उसको एक नर्स ने पीछे से सहारा दिया हुआ, और सामने से एक और नर्स उसका कुछ तो मुआयना कर रही थी। एक क्षणिक दृश्य, एक झलक भर.. लेकिन मेरे दिलोदिमाग पर एक अमिट छाप लगाता हुआ! एकदम से रोमांच हो गया – शरीर से सारे रोंगटे खड़े हो गए। उत्तेजना में मेरी साँसे तेज हो गईं।

‘क्या सचमुच संध्या जीवित है? हे प्रभु! काश, ऐसा ही हो!’

अब मैं बहुत सचेत हो कर वो डाक्यूमेंट्री देखने लगा – हो सकता है पुनः दिखाएँ? लेकिन उस अस्पताल का दृश्य पुनः नहीं दिखाया गया। बीच में जब प्रचारों का समय आया तब मैंने डाक्यूमेंट्री का नाम नोट कर लिया। और वापस देखने लगा। अंत तक दोबारा वहां का दृश्य नहीं दिखाया गया। डाक्यूमेंट्री ख़तम होने पर मैंने कैमरामैन, फोटोग्राफर, निर्देशक और निर्माता समेत उस डाक्यूमेंट्री को बनाने में जितने भी सहयोगी थे, सबका नाम लिख लिया।

कुछ देर समझ ही नहीं आ सका की क्या करूँ! कहाँ से शुरू करूँ! कहीं ऐसा तो नहीं की पुराने दुःख के कारण मुझे संध्या दिखी हो! या वो लड़की संध्या न हो, कोई और हो? और फिर, नीलम ने भी तो देखा ही था न की संध्या मर चुकी थी। नीलम से पूछूं? नहीं नहीं! वो बेचारी को फिर से उस बुरी घटना की याद दिलाना बिलकुल ही गलत होगा। वैसे भी वो कितना कुछ झेल चुकी है। नहीं नहीं! नीलम से नहीं।

मैंने जल्दी से लैपटॉप में इन्टरनेट चला कर नेशनल जियोग्राफिक की वेबसाइट खोली, और उनके कॉर्पोरेट ऑफिस कॉल लगाई। अगले एक घंटे तक मैंने एक के बाद एक कई सारे लोगों से वहां बात करी, और सिलसिलेवार तरीके से उनको अपनी आप बीती सुनाई। अंततः, वहां ले एक बड़े अफसर ने मुझसे मिलने का वायदा किया और उसने अपना फ़ोन और ईमेल भी दिया। मैंने झटपट उसके ईमेल पर संध्या की तस्वीर के साथ, उस डाक्यूमेंट्री का पूरा विवरण लिख कर भेज दिया। नीलम के घर आने से पहले मुझे उनका कॉल आया की उन्होंने डाक्यूमेंट्री देखी है, लेकिन उनको नहीं लगता की वो लड़की संध्या है! क्योंकि ठीक से कुछ भी नहीं दिखा। लेकिन मैंने अपनी जिद नहीं छोड़ी। उन्होंने अंत में हार मान ली और डाक्यूमेंट्री बनाने वाली टीम से बात करने का वायदा किया। उन्होंने कहा की जो कुछ भी बन पड़ेगा, वो करेंगे।

कुछ देर में नीलम आ गई। कोई और समय होता, तो मैं सांझ को पहली बार मिलने के अवसर में अगले दस मिनटों में नीलम के साथ गुत्थम-गुत्था हो चुका होता। लेकिन आज मैं काफी शांत बैठा हुआ था – कम से कम नीलम को तो ऐसा ही लगा होगा। लेकिन, मुझे अगले कुछ मिनटों में मालूम होने वाला था की मैं अपनी पत्नी के बारे में काफी कम जानता था – और वो मुझको मुझसे ज्यादा समझती और जानती थी। नीलम ने मुझसे क्या बाते करीं, मुझे याद नहीं, लेकिन वो अन्दर चली गई। संभवतः चाय बनाने गई होगी।

मुझे नहीं मालूम की वो कब वापस आई और उसने क्या कहा – मेरी आँखें तो खुली हुई थीं लेकिन मन न जाने कितने ही कोसों दूर था। अचानक ही मुझे अपने चेहरे पर गरम साँसों और गालों पर नरम उँगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं एक झटके से वापस आया – नीलम मेरी आँखों में झाँक रही थी, मानों प्रयास कर रही हो की मेरे अन्दर क्या चल रहा था। वो प्रत्यक्ष मुस्कुराई, लेकिन वो चिन्तित थी। उसने कुछ कहा नहीं।

“जानू – कॉफ़ी!” उसने एक हाथ से मेरे गाल को छुआ, और उसके दूसरे में कॉफ़ी का मग था।

मैं उल्लुओं की भांति कभी उसकी तरफ तो कभी कॉफ़ी मग की तरफ देख रहा था। उसने फिर दोहराया, “कॉफ़ी..”

“ओह सॉरी! मैं किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।“

उसने कुछ कहा नहीं। बस मेरी बगल आकर मुझसे सट कर बैठ गई। हम दोनों ही शान्ति से कॉफ़ी पीने लगे। कॉफ़ी समाप्त होने के बाद नीलम ने अपना और मेरा मग सामने की टेबल पर रखा, और वापस आकर मेरी गोद में इस तरह बैठ गई जिससे की उसकी दोनों टाँगे मेरे इधर उधर रहें। गोद में बैठे बैठे ही उसने अपनी पहनी हुई टी-शर्ट उतार फेंकी। अन्दर कुछ भी नहीं पहना हुआ था – कोमल पहाड़ियों के मानिंद उसके सुन्दर स्तन तुरंत ही स्वतंत्र हो कर मेरे सम्मुख हो गए।

इस बात का असर मुझ पर बहुत ही सकारात्मक पड़ा – उस मुद्रा में मेरा लिंग तुरंत ही खड़ा हो कर उसकी नितम्बों के मध्य की घाटी में अटक सा गया। हम दोनों ने ही इस समय पजामे पहने हुए थे, इसलिए सीधा कनेक्शन नहीं हो सका – लेकिन नीलम मेरे ऊपर पड़ने वाले अपने इस प्रभाव पर हलके से मुस्कुराई। उसने प्यार से मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं, और लिंग के ऊपर अपने नितम्बों को घिसने लगी। कुछ ही देर में मैंने भी देखा की मैं स्वयं भी हलके हलके अपनी कमर चला कर उसका साथ देने लगा था।

हम दोनों ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। मैंने रह रह कर उसके होंठों, गालो, कन्धों और चूचकों पर चुम्बन लिया। इस बीच हम दोनों ही अपने अपने तरीके से तेजी तेजी घिस रहे थे। मेरा लिंग उत्तेजना के मारे फूल कर मोटा हो गया था।

थोड़ी देर में मैंने उससे कहा, “अगर मज़ा ही लेना है, तो ठीक से लेते हैं न...”

तो वो कुछ बोली नहीं, तो मैंने उसको अपनी गोद से उठाया और सामने खड़ा कर दिया। उसके बाद मैंने खुद उठा और अपना पजामा उतार दिया और फिर लगे हाथ नीलम का पजामा भी उसके शरीर से अलग कर दिया। उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। नीलम ने उस समय काले रंग की चड्ढी पहनी हुई थी। मैंने देखा की इतनी देर तक लिंग घिसने के कारण चड्ढी का नरम नरम कपड़ा उसके नितम्बों की दरार में अन्दर घुस गया था।

मैंने जब उसके चूतड़ों को सहलाया, वो एकदम से कांप गई। मैंने उसके चूतड़ों को कुछ देर तक सहला कर तीन चार बार दबाया और उसको कमर से खींच के फिर से अपने लिंग पर बैठा लिया। पहली ही बार की तरह इस बार भी नीलम अपनी कमर हिला रही थी। मैं उसी के ताल में उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगा। एकदम चिकनी जाँघें – मक्खन के जैसी! कुछ देर ऐसा ही करने के बाद मैंने एकदम से उसकी चड्ढी को पकड़ा और घुटनों तक खींच दिया। मैंने एक हाथ से अपने लिंग को साधा, और दूसरे से नीलम को फिर से अपनी गोद में बैठा लिया। उस समय मेरे लिंग के उसकी नग्न गुदा के स्पर्श से मुझे मन में आया की क्यों न गुदा मैथुन किया जाय? एक अजीब सा वासना पूर्ण अहसास था वो। मैंने अपने हाथों से उसके चूतड़ों को चौड़ा किया और उनके मध्य अपने लिंग को बैठाया।

“जानू.. जानू! उसमे नहीं! आपका बहुत मोटा है.. मर जाऊंगी मैं..”नीलम ने मिन्नत करी।

सचमुच! ध्यान ही नहीं रहा!

“ठीक है.. लेकिन, कभी ट्राई करते हैं!”

“हाँ.. लेकिन आज नहीं! प्लीज!”

“ओके” मैंने कहा और उसको लिटा कर, अपना मुँह उसकी योनि पर रख दिया।

लोग उत्तेजित योनि को ‘पाव रोटी’ की उपमा देते हैं.. मुझे यह पसंद नहीं आता। मुझे उत्तेजित योनि को मालपुए की उपमा देनी अच्छी लगती है। मालपुआ रसीला, और मीठा होता है। नीलम की योनि भी उसी तरह की हो रही थी। अब मेरा भी लिंग उत्तेजना के बल को सहन नहीं कर पा रहा था। लेकिन फिर भी फोरेप्ले तो करना होता ही है न! मैं अपनी जीभ उसकी योनि के भीता डाल कर अन्दर के स्वाद और वातावरण को महसूस कर रहा था, और उंगली से उसके भगनासे को छेड़ रहा था। नीलम उस शाम पहली बार स्खलित हुई। उसकी आवाजें अब कामुक सिसकारियों में बदल गई थी।

मैं फिर उसकी टाँगों के बीच आ गया। मैंने उसकी टाँगें उठा कर अपने कंधों पर रख ली और अपने लिंग को उसकी योनि के मुहाने पर टिका दिया। आप लोग उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। नीलम की कुछ ऐसी हालत थी उसकी जांघें मुड़ कर लगभग क्षैतिज हो गई थीं, और योनि लगभग ऊर्ध्व! मैंने तेजी से अपना लिंग उसकी योनि में डालना शुरु कर दिया। मैंने गुरुत्व के प्रभाव से सारा काम जल्दी हो गया। और फिर वही चिरंतन चली आ रही प्रक्रिया करने लगा। नीलम भी मस्त हो कर अपनी चुदाई का आनंद लेने लगी । मेरे होंठ उसके मुँह और होंठों को चूस रहे थे। करीब पंद्रह मिनट के बाद मैंने अपना वीर्य नीलम के अन्दर ही छोड़ दिया।

उस पूरे साहचर्य के दौरान मेरे मन में सिर्फ संध्या की ही छवि घूम रही थी...

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