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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,029
22,427
159
कुंदन आज अंजू को घर ले आया। नर्स सुषमा के कहने पर वह अंजू के लिए कपडे वगैरह खरीद कर ले आया था। अब अगर अंजू उसकी बीवी होती तो कम से कम उसके कपडे इत्यादि तो रहते.. और उसको कुछ आईडिया भी होता की उसकी बीवी की नाप क्या है.. लेकिन आश्चर्य की बात थी की नर्स सुषमा को उसका यह अनाड़ीपन खटका नहीं.. उसने अपने मन में यह कह कर समझा लिया की संभव है की वो अपनी बीवी को नए कपडे पहनाना चाहता हो! यह भी हो सकता है की वो हद से अधिक शर्मीला हो। सुषमा ने ही अंदाजे से उसको अंजू के अधोवस्त्रों की नाप बता दी, और उसको छेड़ा भी की कम से कम अपनी पत्नी का ठीक से जायजा तो लिया कर!

अंजू के लिए ब्रा और चड्ढी खरीदते समय कुंदन बहुत ही उत्तेजित हो गया था। अपनी समझ से उसने बेहद सेक्सी लगने वाली गुलाबी सी ब्रा और उसकी मैचिंग चड्ढी खरीदी थी। और गुलाबी ही रंग के शेड का शलवार सूट भी। एक मैक्सी भी खरीद ली, यह सोच कर की वो घर में क्या पहनेगी! अंजू को देख कर उसको लगा था की वो उम्र में उससे कुछ बड़ी है, लेकिन उसको इस बात की कोई परवाह नहीं थी – अगर बड़ी होगी तो होती रहे! बालिग़ तो अब वो खुद भी है! खैर, वो अस्पताल पहुंचा, और सभी ज़रूरी कागजों पर दस्तखत कर के अंजू को लिवा लाया।

आज अंजू को उसने पहली बार होश में देखा था – बेहोशी की हालत में भी वो अति सुन्दर लगती थी, लेकिन इस समय वो सचमुच की अप्सरा लग रही थी। उस नितांत कमजोरी की हालत में भी। अंजू ने जब कुंदन को देखा तो उसके चेहरे पर न तो ख़ुशी के भाव थे, और न ही दुःख के। वो दरअसल अपने पति को पहचान ही नहीं पाई। नर्स सुषमा ने जब दोनों को ऐसे ‘हिचकिचाते’ हुए देखा, तो प्रसन्न भाव से बोली,

“कोई बात नहीं.. घर जा कर आराम से मिलना!”

नर्स सुषमा ने अपने हिसाब से दो बिछड़े हुए प्रेमियों को मिला दिया था और यही सबसे बड़े पुण्य की बात थी।

डॉक्टर संजीव ने कुंदन को सख्त हिदायद दी थी की अंजू से घर के काम न कराये जांए, और उसको आराम करने दिया जाय। वो अभी भी काफी दुर्बल थी, और कम से कम एक महीना लगेगा उसको वापस अपनी ताकत पाने के लिए। उन्होंने उन दोनों को यह भी कहा था की वो दोनों यदि हो सके तो अगले दो सप्ताह शारीरिक सम्बन्ध न बनायें.. अभी वह सब झेलने की दशा में नहीं थी अंजू। अस्पताल में सबकी नज़रों में दोनों पति-पत्नी थे, इसलिए ऐसी बाते आराम से करी जा सकती थीं। दवाइयाँ इत्यादि समय पर लेते रहें.. और ऐसी ही कई सारी बातें।

खैर, कुंदन अंजू को घर ले आया। कसबे में आते हुए वो बहुत चौकन्ना था की कोई देख न ले की वो किसी लड़की को घर ला रहा था। कोई देखता तो हज़ार सवाल पूछते – कौन है, कहाँ से आई है इत्यादि इत्यादि! और वो उनसे झूठ नहीं कह सकता था, क्योंकि वहां सभी को मालूम था की कुंदन की शादी ही नहीं हुई है, तो उसकी बीवी कहाँ से आ जाएगी! उसकी तेज किस्मत कहिए, की जिस समय वो अपने घर आया, उस समय सड़क पर और आस पास कोई भी नहीं मिला। वो जल्दी से अंजू समेत अपने घर में घुस गया, और अन्दर से किवाड़ लगा ली।

वो एक पुराने पहाड़ी तरीके का घर था – जिसमे कुछ फेरबदल कर के आधुनिकीकरण कर लिया गया था। एक कमरा था, एक खुला हुआ सा रसोईघर, उसके बिलकुल विपरीत दिशा में स्नानघर और शौचालय था। एक हाल और एक अहाता जैसा बना दिया गया था। पत्थर, लकड़ी जैसी सामग्री से बना हुआ घर बाहर से पहाड़ी घर दिखता था, लेकिन अन्दर से बिजली और खड्डी स्टाइल के शौच की व्यवस्था थी।

“अंजू... रर रानी..” कुंदन ने अटकते हुए कहा, “तु तुम.. नहा लो.. अगर चाहो तो..”

अंजू को तो इस समय कोई भी अजनबी लगता। लेकिन यह सामने खड़ा व्यक्ति उसका पति था, ऐसा नर्स सुषमा ने उसको बताया था। इसलिए इस व्यक्ति से कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। लेकिन फिर भी वो संयत नहीं थी। उसने महसूस किया की उसका पति भी संयत नहीं है।

“ज जी!” कह कर उसने कुंदन की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।

“ओ ओह! बाथरूम उधर है.. सब भूल गई?” उसने खींसे निपोरी।

अंजू ने भी खिसियाई हुई मुस्कान डाली!

‘ओ भगवान! कितनी सुन्दर सी मुस्कान है इसकी! हे बाबा केदार.. हे बद्री विशाल! आपका बहुत बहुत धन्यवाद!’ कुंदन ने मन ही मन अपने सारे इष्टों को धन्यवाद किया।

“नहा लो.. तुम्हारे पुराने कपडे सब खराब हो गए थे.. जल्दी ही और नए कपड़े खरीद लूँगा तुम्हारे लिए..”

अंजू ने हामी में सर हिलाया। वो एक क्षण को हिचकिचाई, फिर कुंदन के सामने ही मुँह फेर कर अपने अस्पताल वाले कपड़े उतारने लगी (नर्स सुषमा ने कुंदन को कहा था की जब वो वापस अस्पताल आये, तो वो कपडे लेता आये)। कुछ ही देर में पूर्ण नग्न अंजू का पृष्ठ भाग कुंदन के सामने था। हाँलाकि अंजू के कमज़ोर शरीर से हड्डियाँ कुछ कुछ झाँक रही थीं, लेकिन उतना दृश्य ही कुंदन के लिए पर्याप्त था। उसका लिंग तुरंत ही तनावग्रस्त हो गया। वो अनिश्चित हालत में अंजू की तरफ बढ़ा, लेकिन उसी समय अंजू स्नानघर की तरफ चल दी।

जब स्नानघर का दरवाज़ा बंद हो गया, तो कुंदन ने अपनी पैंट के सामने गीलापन महसूस किया – उसके लिंग ने वीर्य उगल दिया था। वो शर्मसार हो गया – कैसी छीछालेदर! क्या लोग सच कहते हैं? उसके मन में एक क्षण शंका हुई.. फिर उसने उस शंका को मन से निकाल दिया – पहली बार उसने एक लड़की इस हालत में देखी थी.. ऐसे तो किसी का भी निकल जाता.. उसने झटपट से अपनी पैंट उतार दी। फिर उसके मन में ख़याल आया की क्यों न आज वो नंगा ही रह ले.. क्या पता अंजू को भी नंगी रहने के लिए पटा सके? अपने इस विचार पर उसको बहुत आनंद आया – उसने झटपट अपनी जांघिया उतार दी।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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जब अंजू नहा चुकी, तो उसने पाया की नहा कर पहनने वाले कपडे तो वो लाई ही नहीं। कुछ असमंजस के बाद उसने अपने पति को आवाज़ लगाई,

“सुनिए..?”

बाहर कुंदन नंगा खड़ा हुआ था – क्या वो अंजू को पसंद आएगा? वो उसको देख कर ‘डर’ तो नहीं जायेगी? वह यह सोच ही रहा था की अन्दर से अंजू की आवाज़ आई।

“ह हाँ?” कुंदन अचकचा गया।

“मेरे कपडे..”

“बाहर आ जाओ..” उसने कहा, फिर अपनी शैतानी स्कीम के अंतर्गत उसने कहा, “तुम वैसे भी घर में ऐसे ही रहती हो..”

‘ऐसे रहती हूँ? नंगी? अच्छा!’ अंजू ने सोचा।

कुंदन ने देखा की कुछ देर में स्नानघर का दरवाज़ा खुला, और पूर्ण नग्न अंजू बाहर निकली! वो उसको देखता ही रह गया...

‘ओह प्रभु! यह तेरी कैसी कलाकृति है! इतनी सुन्दर! कैसे सुन्दर स्तन!

अंजू ने देखा की कैसे उसका पति उसको प्यासी दृष्टि से देख रहा है.. वो हलके से मुस्कुरा दी। नर्स सुषमा ने बताया था की वो महीनो से बेहोश पड़ी है.. इतने दिनों तक कैसे इस बेचारे ने जीवन व्यतीत किया होगा! उसकी दृष्टि अपने पति के जनन क्षेत्र पर पड़ी।

“इधर आओ..” अंजू ने कुंदन को कहा।

कुंदन यंत्रवत उसकी तरफ चल दिया। अंजू वही रखे पीठे पर बैठ गई।

“अभी कुछ दिन सब्र कर लो.. लेकिन तब तक..” उसने अपने स्तन की तरफ इशारा किया, “आपको दूध पिलाती हूँ..”

अंजू की कही हुई बात कुंदन को मिश्री जैसी मीठी लग रही थीं। कहाँ तो एक लड़की मिलनी दुश्वार थी, और कहाँ आज ऐसी बला की खूबसूरत लड़की के रसीले स्तनों का पान करने को मिलेगा! इस विचार के साथ ही कुंदन को लगा की जैसे वो गलत कर रहा है – वो लड़की उसको अपना पति समझ कर यह सब कर रही थी। लेकिन वो जान बूझ कर उसका फायदा उठा रहा था। लेकिन कुंदन ने अपने मन को यह कह कर समझा लिया की बाद में वो अंजू को समझा देगा। फिलहाल तो ये मीठे मीठे दूध पिए जांए!


****


“सुनिए...?” अंजू की आवाज़ दोबारा सुन कर कुंदन की तन्द्रा टूटी!

‘ओ तेरी! ये तो सपना था!’ यह सोच कर उसने आवाज़ की दिशा में देखा। अंजू स्नानघर के दरवाज़े की ओट से झांकती हुई उसी की तरफ देख रही थी।

“क क्या?”

“जी मुझे कपड़े दे दीजिए पहनने के लिए..”

“अच्छा..” कह कर जब वो उठा, तो उसने देखा की वो कमर के नीचे पूरी तरह नंगा था।

‘धत्त तेरे की..’ वो नंगा होते ही लगता है सपना देखने लगा था! एक पल को वो हाथों से अपने छुन्नू को छुपाने को हुआ, लेकिन फिर रुक गया – बीवी से क्या छुपाना?

अपने पति को ऐसे अपने सामने नंगा घुमते हुए देख कर उसको थोड़ी सी शर्म आई, और हंसी भी! बेर के आकार के अंडकोष, और छुहारे के जैसा लिंग! दिखने में भी, और आकार में भी! अंजू को कहीं याद आया की लड़को का ऐसा होता है.. उसको नहीं मालूम था, की आदमियों का भी ऐसा ही होता है। या कहीं, उसका पति अभी लड़का ही तो नहीं? अगर ऐसा है, तो उसकी खुद की उम्र क्या है?

कुंदन अन्दर कमरे में जा कर अंजू की मैक्सी ले आया। फिर उसको एक शैतानी सूझी,

“यहाँ बाहर आ कर ले लो..”

“दीजिए न..”

“नहीं.. आज तो बाहर आ कर ही लेना पड़ेगा..”

अंजू ने उसको कुछ देर देखा, फिर वापस अन्दर हो कर उसने स्नानघर का दरवाज़ा बंद कर लिया।

‘ओये! ये क्या हो गया..’

फिर कुछ देर बाद जब दरवाज़ा खुला, तो अंजू अपने सीने पर अंगौछा लपेटे बाहर निकली। अंगौछा गीला था, और उसके शरीर पर पूरी तरह से लिपटा हुआ था। और चूंकि उसकी लम्बाई और चौड़ाई बहुत बड़ी नहीं थी, इसलिए वो अंगौछा अंजू का शरीर छुपा कम और दिखा अधिक रहा था। कुंदन को वह दृश्य बहुत पसंद आया। अंजू के उस रूप का अनुमोदन (approval) उसके छुन्नू ने अपना छुहारे वाला रूप छोड़ कर, भिन्डी जैसा रूप धारण कर के किया। अंजू ने देखा की उसके पति का लिंग उसकी मध्यमा उंगली के जितना ही लम्बा, और बस मुश्किल से कोई दो गुना मोटा था।

न जाने क्यों उसको हलकी सी निराशा हुई। उसको निराशा क्यों हुई? कहीं न कहीं उसके मन में ऐसा विचार आया था की उसके पति के जननांग बहुत पुष्ट होंगे। और उसका पति बहुत ही दृढ़ शरीर और व्यक्तित्व का मालिक होगा.. लेकिन कुंदन ऐसा नहीं था। ऐसे विचार उसको क्यों आ रहे थे जैसे कुंदन उसका पति न हो? लेकिन, उसको कुछ याद ही नहीं और सभी तो यही कह रहे हैं की कुंदन ही उसका पति है.. उसी ने उसको बचाया था।

“अब दीजिए...”

कुंदन क्या करता भला? उसने अंजू को उसकी मैक्सी दे दी।

“अच्छा, मैं आपसे एक बात पूछूँ?” अंजू ने अपने बाल सुखाते हुए कहा।

“एक क्या? जितना मन करे उतना पूछो!”

“नहीं.. आपको लग सकता है की मैं कैसी फालतू बातें कह रही हूँ, और पूछ रही हूँ...”

“नहीं नहीं.. ऐसा कुछ भी नहीं.. पूछो न?”

“आपकी उम्र कितनी है?”

कुंदन को फिर शरारत सूझी, “सोलह साल..”

‘ओह! तो मेरा ख़याल सही था...’ अंजू ने सोचा।

“और मेरी..?”

“इक्कीस साल..”

“सही में? मैं आपसे पांच साल बड़ी हूँ?”

“और क्या!”

कुंदन ने उसको और कुरेदा, “तुमको क्या लगा की मैं कितना बड़ा हूँ?”

“मुझे लगा की पंद्रह सोलह के होगे!”

“हैं! वो कैसे?” कुंदन को वाकई आश्चर्य हुआ!

“वो कैसे क्या? आपके अंडे और छुन्नू, लड़के जैसे ही तो हैं अभी..”

अंजू की बात पर उसको अचानक ही बेहद गुस्सा आया, “इसी छुन्नू से मैंने तुझे गाभिन किया था..” वो गुस्से से बोला।

“आप गुस्सा क्यों हो गए? मैंने कब मना किया इस बात से? बिलकुल किया था आपने! वो नर्स बता रही थीं.. की हमारा बच्चा..” कहते कहते अंजू की आँख में पानी आ गया।

“आई ऍम सॉरी.. मेरा मतलब.. मुझे माफ़ कर दो!”

“नहीं! आप माफ़ी मत पूछिए... पति का आदर करना चाहिए.. मैंने गलती करी है.. आप मुझे माफ़ कर दीजिए!”

“अरे! अब माफ़ी वाफी छोड़ो.. और जल्दी से कपड़े बदल लो...”

कुंदन की बात पर अंजू कुछ देर चुप रही.. वो फिर से हिचकिचा रही थी..

“क्या हुआ?”

“कपड़े पहनने हैं..”

“तो पहनो न?”

“आपके सामने?”

“हाँ! क्यों क्या हो गया?”

अंजू लेकिन चुप ही रही।

“अरे मुझसे क्या शरमाना? मैं तो तुमको नंगा देखता ही रहता हूँ..” कुंदन ने उत्तेजित और भर्रायी हुई आवाज़ में अंजू को छेड़ा।

“धत्त झूठे…”

“अरे मैं झूठ क्यों कहूँगा? तुम तो मुझे देखते ही अपना कुरता उतारने लगती हो!”

“अच्छा जी! वो क्यों भला?”

“मुझको दूध पिलाने के लिए..”

अंजू इस बात पर एकदम से गंभीर हो गई।

“सच में?”

“सोलह आने सच!”

अंजू ने मैक्सी वहीँ ज़मीन पर फेंकी, और अंगौछे को अपने सीने से हटाते हुए सामने पड़ी खटिया की तरफ बढ़ी। खटिया पर बैठते बैठते अंजू पूरी तरह से नंगी हो चली थी।

“इधर आओ..” अंजू ने कुंदन को कहा।

कुंदन ने अंजू के स्तन देखे, तो उसको बाकी कुछ भी दिखना बंद हो गया... वो यंत्रवत उसकी तरफ चल दिया।

अंजू ने अपने स्तन की तरफ इशारा किया, “... आपको फिर से अपना दूध पिलाती हूँ..”

अंजू की कही हुई बात कुंदन को मिश्री जैसी मीठी लग रही थीं। कहाँ तो एक लड़की मिलनी दुश्वार थी, और कहाँ आज ऐसी बला की खूबसूरत लड़की के रसीले स्तनों का पान करने को मिलेगा! इस विचार के साथ ही कुंदन को लगा की जैसे वो गलत कर रहा है – वो लड़की उसको अपना पति समझ कर यह सब कर रही थी। लेकिन वो जान बूझ कर उसका फायदा उठा रहा था। लेकिन कुंदन ने अपने मन को यह कह कर समझा लिया की बाद में वो अंजू को समझा देगा। फिलहाल तो ये मीठे मीठे दूध पिए जांए!

एक पल को कुंदन को लगा जैसे सपने वाली बात एकदम सचित्र हो गई! अगर सपने इतनी जल्दी सच होते हैं, तो वो और देखेगा! यह छलकता हुआ सौन्दर्य, ऐसा मीठा आमंत्रण! कुंदन अंजू के पास पहुंचा, और उसके दाहिने स्तन के एक निप्पल को अपने मुँह मैं ले कर चूसने लगा और दूसरे स्तन को सहलाने लगा! जाहिर सी बात है की एक वयस्क आदमी, स्तनों को अलग तरीके से चूसेगा - ख़ास तौर से तब, जबकि उसको अपने जीवन में पहली बार ऐसे सुन्दर स्तन देखने और भोगने को मिले हों!

"आराम से बाबा.. यह आपके लिए ही तो हैं! जितना मन चाहे, उतना चूसो..." अंजू ने कुंदन के सर को प्यार से सहलाते हुए कहा।

कुंदन बारी बारी से अंजू के दोनों स्तनों को चूसता रहा।

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कुछ लिख लेता हूँ
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रात का खाना कुंदन ने ही बनाया – अंजू काफी थक गई थी, और क्योंकि डॉक्टर ने आराम करते रहने की सख्त हिदायद दी थी, इसलिए कुंदन अपना पति-धर्म (यानि की आराम से बैठना, जब पत्नी खाना पका रही हो, और फिर सम्भोग कर के सो जाना) निभा नहीं पाया। अंजू कुछ ढंग से खा नहीं सकी – एक तो खाना बेस्वाद बना था, और ऊपर से दवाइयों, और लम्बे कोमा के प्रभाव से उसको खाने से अरुचि सी हो गई थी। खाना और दवाइयाँ खा कर अंजू सो गई; तो उसके साथ कुंदन को भी झक मार कर लेटना पड़ा। पहली बार एक स्त्री के साथ रात बिताने की उत्तेजना में उसके लिंग ने अनायास ही वीर्य थूक दिया। लेकिन फिर भी कुंदन को उम्मीद थी, की उसकी यह हालत जल्दी ही ठीक हो जायेगी – अब क्योंकि अंजू भी उसके साथ है!

आज अंजू पहली बार कोमा के प्रभाव से पूरी तरह से बाहर आ कर सो रही थी। नींद बहुत गहरी आई – और नींद में बड़े ही विचित्र से सपने भी! सपनो ने ऐसे ऐसे स्थानों और ऐसे वस्तुओं के दृश्य थे, जो उसने अपने जीवन में पहले कभी भी नहीं देखे थे – अथाह समुद्र, रेतीला बीच, समुद्र की गहराइयाँ, बहुत ही घना बसा शहर और उसके अनगिनत दृश्य, एक आलीशान सा घर.... और इन सभी दृश्यों में परिलक्षित होता एक पुरुष! और सिर्फ यही नहीं... वह पुरुष उसके सपनो में सुस्पष्ट रूप से दिख रहा था – कभी इस वेश में, तो कभी किसी और... और तो और कभी कभी नग्न भी! दो तीन दृश्य तो उसने उस पुरुष के साथ सम्भोग के भी देखे! कौन है वो? उसने सपने में ही अपने दिमाग पर जोर डाला! लेकिन निद्रा ने विवश कर के रखा हुआ था। और भी लोग दिखे – एक लड़की.. “नीलू!” उसके दिमाग में कौंधा!

कुंदन उथली नींद में सो रहा था की अचानक उसने अंजू को ‘नीलू नीलू’ पुकारते सुना! वो जाग गया।

‘नीलू कौन?’ उसने सोचा! कहीं यह अंजू का असली नाम तो नहीं? या उसकी किसी सहेली का? तो क्या अंजू को अपनी भूली हुई याद-दाश्त वापस मिलने लगी? बेटा! जल्दी कुछ कर.. नहीं तो ये लड़की जायेगी हाथ से! और कुछ इस्धर उधर हो गया, तो पिटाई भी हो सकती है! उसने कुछ देर और इंतज़ार किया, लेकिन अंजू ने कुछ और नहीं कहा.. उसको कब नींद आई, उसको खुद ही नहीं पता चला।



सुबह :

सुबह का उजाला घर के आँगन में अपने पैर पसार रहा था। अंजू ने अपनी आँखें धीरे धीरे खोलीं। आज बहुत ही अरसे के बाद उसने अच्छे से नींद ली थी – यह बात उसको भी समझ में आ रही थी। कल से आज वह काफी तरो ताज़ा महसूस कर रही थी। उसने जम्हाई भरी, अंगड़ाई ली, और फिर अचानक ही उसको कल रात के सपने की बातें याद आ गईं। उसको स्वयं पर बहुत ही लज्जा आई – अपना पति होते हुए भी ऐसे ऐसे सपने आते हैं..! लेकिन जाने क्यों वो पुरुष भी कोई अपना सा ही लग रहा था। उसने कुंदन को आँगन से इधर उधर होते हुए देखा। वो मुस्कुराई – कल जब कुंदन उसके स्तनों का पान कर रहा था तो उसको बहुत ही आनंद आया। वो भी कैसे नटखट बच्चों के जैसे मचल मचल कर पी रहा था।

कल शाम को कुंदन ने अंजू को बताया की उसकी उम्र सोलह साल की नहीं है.. बल्कि अंजू के बराबर ही है.. अंजू थोड़ा निराश हो गई – अगर सोलह की उम्र होती, तो कुछ उम्मीद भी थी, लेकिन अभी तो... खैर! उसके मन में एक बात उठी की उन दोनों की पहली रात कैसी रही होगी? कैसे कुंदन ने उसके कपड़े उतारे होंगे, और कैसे उसके साथ सम्भोग किया होगा!

कुंदन ने अंजू को देखा तो मुस्कुराया। एक बार उसके मन में आया की अंजू से पूछे की ये नीलू कौन है.. फिर उसको याद आया की अंजू को तो कुछ याद ही नहीं.. क्यों अनायास ही ऐसी बातें छेड़ना? कहीं लेने के देने पड़ गए तो!

“ठीक से सोई?” उसने पूछा।

“हाँ.. आप क्या कर रहे हैं?”

“नाश्ता बना रहा हूँ... काम पर भी तो जाना है..”

“ओ माँ! कितनी देर सोती रही मैं.. और आपने जगाया क्यों नहीं?”

“अरे कोई बात नहीं.. पहले ठीक हो जाओ.. ये सब तो होता रहता है..”

“नहीं नहीं.. अब से खाना मैं ही बनाउंगी..”

“ठीक है.. बना लेना.. लेकिन अभी तो आराम से रहो न..”

“समय कितना हो रहा है..”

“साढ़े नौ हो रहे हैं..”

“बाप रे!” फिर कुछ सोच कर, “आपने... खा लिया?”

“हाँ.. बस अभी अभी.. कुछ देर में निकल जाऊँगा..”

“अच्छा..” अंजू ने कुछ बुझे हुए स्वर में कहा। अकेला रहना भला किसको पसंद आएगा? “कब आयेंगे वापस?”

“शाम को..”

“ओह!”

“कहो तो न जाऊं..” कुंदन ने रोमांटिक बनने की असफल एक्टिंग करी।

अंजू मुस्कुराई, “कुछ देर में चले जाइए?”

“हम्म.. देर में चला तो जाऊं.. लेकिन उसके बदले में मुझे क्या मिलेगा?”

“मेरी गोदी में सर रख कर लेटेंगे आप?” अंजू मुस्कुराई। कुंदन भी मुस्कुराया।

“और?”

“पहले रखिए तो सही..”

कुंदन बिस्तर पर आ कर अंजू के बगल आ कर उसकी गोदी में सर रख कर लेट गया। कुंदन का शिश्न उत्तेजित होने लगा – लेकिन फिर भी वो इस समय काफी आराम महसूस कर रहा था। आश्चर्यजनक रूप से उसको किसी भी तरह का उतावलापन नहीं महसूस हुआ। अंजू बड़े प्यार से कुंदन के सर और चेहरे को सहला रही थी। कुंदन को ठीक वैसा महसूस हुआ, जैसा की अगर वो अपनी माँ की गोदी में सर रखता! उतना ही आराम! उतना ही चैन! उतनी ही कोमलता!

‘बढ़िया!’

सुख और आनंद से उसकी आँखें बंद हो गईं, जो कपडे की हलकी सरसराहट की आवाज़ के बाद ही खुलीं। अंजू ने मैक्सी के सामने के बटन खोल दिए थे, और कुंदन को स्तनपान करवाने के लिए अपने स्तन स्वतंत्र कर दिए थे। कुंदन ने देखा – अंजू के आदर्श स्तन और चूचक उसको निमंत्रण दे रहे थे। उसके चूचक उत्तेजनावश कड़े हो गए थे, मानो कह रहे हों – ‘सैयां! आ जाओ.. हमें अपने मुँह में ले लो.. और चूसो!’

कुंदन ने वही किया। अंजू समझ गई की आधे घंटे का प्रोग्राम तो बन गया। कल की चुसाई के बाद उसके चूचक थोड़े से पीड़ित थे, लेकिन अकेला रहने से यह ज्यादा अच्छा यह था की वो यह पीड़ा बर्दाश्त कर ले। कुंदन भी पूरी सतर्कतापूर्व चूस रहा था, जिससे अंजू को चोट न लगे। कुछ देर बाद जब उसने दूसरे स्तन को मुँह में लिया, तब अंजू के मुँह से एक कराह निकली।

‘क्या उसको दर्द हुआ?’ कुंदन ने दूध पीना छोड़ कर एक प्रश्नवाचक दृष्टि अंजू पर डाली। वो आँखें बंद किए सिसकारी भर रही थी। जब अंजू ने देखा की कुंदन ने पीना छोड़ दिया, तो उसने आँखों में ही वापस पूछा, ‘क्या हुआ?’

कुंदन ने ‘कुछ नहीं’ में सर हिलाया, और वापस दूध पीने में लग गया। उसी के साथ उसने अंजू की मैक्सी भी उसके कन्धों से नीचे सरका दी – अब वो ऊपर की और नंगी बैठी हुई थी। और कुंदन बिना झिझक के अंजू के स्तन पी रहा था। जब उसका मन भर गया तो अंत में वो अलग हुआ। अलग हो कर वो अंजू की गोदी से उठा, और उसको बिस्तर पर लिटाने लगा। लिटाने साथ साथ ही वो उसकी मैक्सी को नीचे की तरफ खींचने लगा जिससे वो पूरी नंगी हो जाय। अंजू को शर्म आई, लेकिन उसने मना नहीं किया।

“छुन्नी के साथ खेलोगी?”

अंजू शर्माती हुई मुस्कुराई।

“अपनी चूत के साथ खेलने दोगी?”

‘चूत?’ यह तो सुना हुआ शब्द है.. “वो क्या होता है?”

“यह..” कुंदन ने अंजू की योनि की तरफ इशारा किया। अंजू ने जांघे सिकोड़ लीं।

कुंदन अपनी पैंट उतार रहा था। अंजू देख रही थी की आगे क्या होने वाला है। कुछ ही देर में उसका भिन्डी के आकर का शिश्न मुक्त हो गया। वाकई अभूतपूर्व घटना थी की अभी तक उसके लिंग ने वीर्य नहीं छोड़ दिया था। कुंदन ने अंजू का हाथ पकड़ कर अपने छुन्नू पर रख दिया। अंजू ने अपनी उंगलियाँ उसके इर्द गिर्द लपेट लीं।

“कितना गरम है..”

कुंदन गर्व से मुस्कुराया।

“रुको.. आज तुम्हारी चूत के साथ खेलता हूँ.. बहुत दिन हो गए..” उसने प्रभाव के लिए आगे जोड़ा।

कह कर वो अंजू की घने बालों के अन्दर छुपी योनि की दरार पर अपनी उंगली फिराने लगा। अंजू नख-शिख तक कांप गई, और कुंदन को कामुक लालसा से देखने लगी। कुछ देर यूँ ही दरार पर उंगली चलाने के बाद उसने अपनी उंगली वहां पर दबाई – पट से अन्दर जाने का रास्ता खुल गया। कुंदन मुस्कुराया और अपनी तर्जनी को अंजू की योनि के भीतर डालने लगा। उधर अंजू भी अपनी जांघ खोलने लगी – जैसे उसको अन्दर आने के लिए और जगह दे रही हो..

उंगली पूरी अन्दर जाने के बाद उसने धीरे धीरे ही उसको बाहर निकाला और वापस अन्दर बाहर करने लगा। उसी ताल में अंजू भी अपने नितम्ब हलके हलके उछालने लगी।

कुंदन अंजू के पास आया, और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला,

“इसको कहते हैं उंगल चुदाई..” और उंगली अन्दर बाहर करने का क्रम करते हुए वो उसके स्तन भी चूसने लगा। अंजू के अन्दर का ज्वार बहुत दिनों से उठा हुआ था। कुंदन ने उंगली डाल कर बस जैसे किसी बाँध को तोड़ दिया। दो मिनट के भीतर ही अंजू यौन उत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई... उसका शरीर किसी अनियंत्रित यंत्र जैसे कम्पित होने लगा।

उसको यूँ स्खलित होते देख कर कुंदन चाह कर भी खुद पर नियंत्रण न रख सका, और उसके कुछ कर पाने से पहले ही उसका वीर्य निकल पड़ा, और सामने अंजू के सपाट पेट पर जा कर गिरा। दो तीन विस्फोटों में वह खाली हो गया। अंजू हाँफते हुए अपने पेट पर पड़े सफ़ेद रंग के तीन छोटे छोटे तलैयों को देखने लगी – और उनको अपनी हथेली से पोंछने लगी।

कुंदन बोला, “सम्हाल कर रानी! हाथ धो लेना पहले.. कहीं मेरे पानी से सना हाथ अपनी चूत पर लगा लिया तो गाभिन हो जाओगी.. समझी?”

अंजू ने हामी में सर हिलाया, और बिस्तर से उठा कर हाथ धोने चल दी। नंगी ही।

कुंदन अपनी किस्मत पर खुद ही रश्क करने लगा।
 

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कुंदन अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहा था की अंजू के बारे में उसके किसी पडोसी को न पता चले। इसलिए उसने अंजू को जैसी जैसी हिदायदें दी थीं, उनको सुन कर वो खुद भी अचरज में पड़ गई। वो अगर इस घर की मालकिन थी, तो क्यों नही वो छत पर जा सकती थी? क्यों नहीं वो अपने कपड़े धूप में सुखा सकती थी? क्यों नहीं वो घर में बिना खट-पट के रह सकती थी.. इत्यादि! और सबसे बड़ी बात की कुंदन घर के बाहर ताला लगा कर क्यों जाय? अगर उसको घर से बाहर निकलने की ज़रुरत पड़ी तो? लेकिन उसको कोई उत्तर नहीं मिला। अंजू ने भी कोई अधिक प्रतिवाद नहीं किया – कुछ तो सोचा होगा कुंदन ने!

नहा धो कर उसने नाश्ता किया, और फिर दवाई खाई। अकेले बंद घर में वो क्या करती भला? जल्दी ही वो फिर से सो गई। उसको गहरी नींद आई, या उथली यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उसको अत्यंत सजीव से सपने आये। और उन सपनो ने फिर से वही पुरुष विभिन्न अवस्थाओ में दिखा – कभी उसको अपनी गोद में बैठाए, कभी सूट पहने, कभी कार चलाते, कभी नग्न, और कभी उसके साथ रमण करते!

“रूद्र?” अंजू ने ऊंची आवाज़ में कहा, और नींद से जाग उठी। उसका शरीर पसीने पसीने हो गया था, और एक कम्पन भी हो रहा था।

‘क्या नाम था उसका?’ अंजू को वापस याद नहीं आया।

कुछ देर में उसको घर के दरवाज़े पर आहट हुई। कुंदन वापस आ गया था, और घर का दरवाज़ा खोल रहा था। अंजू ने घड़ी पर नज़र डाली – शाम के चार बज रहे थे।

अन्दर आते हुए उसने बहुत सावधानीपूर्वक दरवाज़ा वापस बंद किया और फिर अंजू को अपनी बाहों में भर लिया। ऐसा करते ही अंजू उसके आलिंगन में सिमट गई – उधर कुंदन अंजू के गालो, होंठ और माथे पर अपने चुम्बन की छाप लगाने लगा। कुंदन शायद दिन भर इसी क्षण के सपने संजो रहा था। उस पर इस समय वासना का तूफ़ान परवान चढ़ रहा था –उसके हाथ अंजू के शरीर की टोह लेने में व्यस्त थे – वो कभी अंजू के स्तनों को मसलता, तो कभी उसके नितम्बों को! अंत में उसके हाथ अंजू के चूतड़ों पर जम गए।

“अंजू रानी! आज मैं रुक नहीं पाऊँगा! आज मुझे तेरे अन्दर जाना ही है..” चुम्बनों के बीच में कुंदन ने अंजू को अपने इरादों से अवगत कराया।

उसकी बात पर अंजू ने एक पल को सोचा, और फिर कुंदन के एक हाथ को अपने एक स्तन पर रख दिया। जोश में आ कर कुंदन अंजू को फिर से चूमने लगा। अंजू ने आज शलवार कुरता पहना हुआ था। उसने जल्दी ही अंजू का कुरता उतार दिया – उसने अन्दर कुछ नहीं पहना हुआ था। फिर उसने अंजू के शलवार का नाड़ा भी ढीला कर दिया।

शलवार उसके कूल्हों से सरक कर नीचे गिर गया।

उसका ऐसा नज़ारा देख कर कुंदन काफी आवेश में आ गया। आज दूकान पर जाते ही उसने किसी से अव्वल गुणवत्ता का शिलाजीत खरीद कर उसका सेवन किया था। अब उसका प्रभाव हो, या न हो, लेकिन इस समय कुंदन को विश्वास भी था, और आत्म-विश्वास भी। लिहाजा, उसका अब तक का प्रदर्शन, उसके लिए अत्यंत संतोषजनक था। अंजू ने चड्ढी पहन रखी थी – गुलाबी चड्ढी पहने हुए, और अन्यत्र पूर्ण नग्न अंजू का रूप बहुत सुहाना लग रहा था। वो सचमुच काम की देवी लग रही थी। उससे रहा नहीं जा रहा था – आज तो बस कर ही डालना है!

आत्मविश्वास से लबरेज़, उसने अंजू के नितम्बों को दबाना, कुचलना शुरू कर दिया। उसके साथ ही उसकी चड्ढी भी नीचे की तरफ सरकानी शुरू कर दी। अंजू समझ गई की कुंदन आज रुक नहीं सकता। किसी का कोई डर तो था नहीं! वो थोड़ा सा कसमसाई, लेकिन अपनी हर हरकत के साथ वो बस कुंदन की बाहों में और समाती गई। वैसे, अंजू को भी अच्छा लग रहा था – पति का संसर्ग तो सबसे सुखद होता है। और वैसे भी अपनी याद में प्रेमालाप का उसका यह पहला अनुभव था।

कुछ ही देर में अंजू पूरी तरह से नंगी हो गई, और कुंदन उसको अपनी गोद में उठा कर बिस्तर तक ले गया। बिस्तर पर लिटा कर उसने अंजू की टाँगें मोड़ कर, उसके घुटने उसके सीने से लगा दिए। इस अवस्था में अंजू की योनि की दोनों फांकें पूरी तरह से खुल गईं, और उनके बीच में से योनि का गुलाबी हिस्सा झाँकने लगा। अंजू को अपने गुप्तांगों का ऐसा निर्लज्ज प्रदर्शन होते देख कर शर्म भी बहुत आई और रोमांच भी! उसकी अवस्था ऐसी थी की कुंदन उसकी योनि के पूरा भूगोल, और यहाँ तक कि उसकी गुदा को भी खूब अच्छी तरह से देख सकता था।

अंजू की रस से भरी, गुलाबी योनि देख कर कुंदन के मुँह में पानी आ गया। उसने बस स्टेशन पर बिकती सस्ती काम-प्रसंगों से भरी पुस्तिकाओं में पढ़ा था की अगर स्त्री की योनि को पुरुष मुख से चाटे, तो उसको बहुत आनंद आता है। लिहाजा, उसने यह काम भी आजमाने का सोचा। अंजू की टाँगों को वैसे ही मोड हुए, उसने झुक कर उसकी योनि की दरार पर जीभ फिराई। वहां से मूत्र की हलकी सी गंध आ रही थी – कुंदन का मन जुगुप्सा से भर गया, लेकिन फिर भी उसने मैदान नहीं छोड़ा। जब ओखली में सर डाल दिया है, तो मूसल से क्या डरना?

दो तीन बार जीभ फिराने के बाद, कुंदन सहज हो गया और तबियत से अंजू की योनि चाटने लगा। उसको योनि की संरचना का कोई ख़ास ज्ञान नहीं था – उसको नहीं मालूम था की बस थोड़ा ऊपर चाटने से उसकी ‘प्रेमिका’ ऐसी पागल हो जायेगी की उसने नाम की माला अपने उम्र भर जप्ती रहेगी। खैर, इस समय वो जो कुछ कर रहा था, वही अंजू के लिए काफी भारी होता जा रहा था। दोनों के सम्भोग का पहला स्खलन अंजू को बुरी तरह कम्पित कर गया।

“ओह कुंदन..” अंजू ने बस इतना ही कहा, लेकिन इतनी कामुक तरीके से कहा की कुंदन का स्खलन होते होते बचा।

अंजू कोई दो मिनट तक कांपती रही, तब जा कर वो कुछ संयत हुई। इतनी देर तक वो बस आँखें बंद किये आनंद ले रही थी। जब उसकी आँख खुली, तब उसने अपनी ही तरफ देखते कुंदन को देखा। वो मुस्कुरा रहा था। पहला किला फतह!! अंजू उसको देख कर लज्जा से मुस्कुराई। इस बीच में वो कब निर्वस्त्र हो गया, अंजू को अंदाजा नहीं हुआ।

“रानी – अब मेरी बारी!”

कह कर उसने अपने तने हुए लिंग का सर, उसकी योनि के खुले हुए होंठों के बीच लगा दिया। अब यह शिलाजीत का प्रभाव हो, या फिर कुंदन के आत्म-विश्वास का, इस समय उसके लिंग में अतिरिक्त तनाव बना हुआ था, इसलिए खुद कुंदन को भी अपना आकार और तनाव काफी प्रभावशाली लग रहा था।

कुंदन अनुभवहीन था, यह साफ़ दिख रहा था। किसी लड़की से सम्भोग का यह पहला अवसर था। उसको लगता था की योनि पर लिंग टिका कर बस धक्का लगा देने से काम हो जाएगा। उसने वैसा ही किया – लेकिन बार बार उसका लिंग फिसल जा रहा था। अंत में अंजू ने ही उसकी मदद करी – उसने अपनी योनि के होंठों को उँगलियों की सहायता से हल्का सा फैलाया, और अपने हाथ से पकड़ कर कुंदन के लिंग को प्रवेश कराने में मदद करी। उसका लिंग गर्म था, और साफ़ लग रहा था की बेहद उतावला हो रहा था। चाहे कुछ भी हो – हर स्त्री अपने प्रेमी को – वो चाहे पति के रूप में हो, या सिर्फ प्रेमी के रूप में – अपने लिए ऐसे उतावला होते देख कर ख़ुशी से फूली नहीं समाएगी।

उसने कुंदन के लिंगमुख को अपनी योनि के द्वार पर टिका दिया, और मन ही मन भगवान् का नाम लिया। कुंदन ने रास्ता साफ़ देख कर एक जोरदार झटका दिया – उसका सारा का सारा लिंग एक ही बार में उसकी योनि के भीतर समा गया।

अब भले ही उसका लिंग काफी पतला सा रहा हो, लेकिन अंजू के लिए इतने अरसे के बाद यह पहला सम्भोग था। अपनी गहराई में उस गरमागरम लिंग को उतरते हुए महसूस कर के अंजू की आह निकल गई।

“ऊह्ह्ह! अह्ह… उईई … आआआअ… ऊऊऊ… उह… ओह्ह…” हर धक्के के साथ अंजू नए प्रकार की आवाज़ निकालती जा रही थी। उसको शर्म तो बहुत आ रही थी, लेकिन फिर भी कामुक उन्माद के सम्मुख वो नतमस्तक थी।

ख़ुशी से उछल पड़ी वह, और फिर जोरों से धक्के मार-मार कर किलकारियां भरने लगी।

उधर कुंदन भी स्वयं के भीतर एक नए प्रकार का जीव उत्पन्न होता महसूस कर रहा था – इतना देर तो वो हस्त मैथुन करते हुए भी नहीं टिक पाता। वो इसी ख़ुशी में पूरे जोश के साथ धक्के लगा रहा था। बीच बीच में वो अंजू के होंठों को चूमता, तो कभी चूचकों का रस पीता। अंजू भी खुल कर अपने प्रथम सम्भोग का आनंद उठा रही थी – उसकी योनि बहुत गीली हो गई थी, और वो खुद भी अपने चूतड़ उचका उचका कर सम्भोग में सहयोग दे रही थी।

अंततः कुंदन ने पूरी ताकत से एक ज़ोर का धक्का लगाया। आखिरी।

“आआआआआआह्ह…”

और इसी धक्के के साथ कुंदन ने अपना पूरा वीर्य अंजू की चूत में खाली कर दिया और उसी अवस्था में अंजू के ऊपर ही पस्त होकर गिर गया।

“अंजू अंजू! मेरी प्यारी! …आई लव यू… तू मेरी जान है! जान!”

जवाब में अंजू मुस्कुरा दी, और कुंदन के माथे पर चुम्बन दे कर उसने आँखें बंद कर लीं।
 

mashish

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“चलिए जी! ये भी क्या बात है? मेरी सुहागरात के दिन ही आप मुझे रुला रहे हैं!” कहते हुए उसने अपने आँसूं पोंन्छे।

“ओओओ.. मेरी प्यारी बीवी नाराज़ हो गई? इसको कैसे मनाऊँ? कैसे मनाऊँ... ह्म्म्म.. सुहागरात में तो बीवी को मनाने का बस एक ही तरीका है..”

“वो क्या?”

“उसकी चूत चाट कर..”

“छीह्ह! आप ऐसे ऐसे शब्द मत बोला करिए.. आपके मुँह से अच्छा नहीं लगता!”

“अच्छा! लेकिन मेरा मुँह अपनी चूत पर महसूस करना अच्छा लगता है?”

मेरी बात पर नीलम बुरी तरह शरमा गई!

“आप करते जाइए... धीरे धीरे सब अच्छा लगने लगेगा!”

“दैट्स लाइक माय गर्ल!” कह कर मैंने नीलम को बिस्तर पर लिटाया, उसकी टाँगे फैलाईं, और उसकी मालपुए जैसी मीठी मीठी चूत को फिर से भोगने लगा।

“जानेमन! तुमको मालूम है की तुम्हारी चूत का स्वाद कितना मीठा मीठा है? इसमें शहद डाल दिया था क्या?”

“ओह्ह्ह्ह.. नहीं.. ल्लेकिन यह सोच कर.. कि अअअआआज्ज से आपके सामने मुझे नंगी रहना पड़ेगा, मेरी चूत से बस रस बहता ही जा रहा है! आःह्ह्ह! ऊऊह्ह्ह!”

“सच में?”

“क्या सच में?” नीलम जैसे किसी तन्द्रा से जागी। उसका एक और स्खलन समाप्त हो गया था।

“तुम आज से नंगी रहोगी?”

"मैं नंगी रहूंगी, तो आपको ख़ुशी मिलेगी?”

“हाँ!”

"मुझे नंगी देखकर आपको क्या कोई एक्स्ट्रा खुशी मिलेगी?” नीलम ने मुझे छेड़ा, “आपने पहले तो दीदी, और फिर फरहत - उनको तो लगभग हर रोज़ ही नंगी देखा होगा!"

"हाँ! और तुम भी तो मेरी पत्नी हो! वो कोई बौड़म ही होगा, जो तुम जैसी पत्नी को नंगा न रखना चाहे! खुशी तो मिलेगी ही, और शारीरिक संतुष्टि भी मिलेगी मुझे! संध्या से भी मिलती थी, और फरहत से भी! और अब, तुमको देख कर तुमसे भी वही खुशी पाना चाहता हूँ।"

कहते हुये मैंने नीलम की योनि की दरार पर उंगली फिराई – मेरी उंगली गीली हो गई। मैंने उसको दिखाते हुए उसके रस से भीगी उंगली को अपने मुँह में रख कर चूस लिया।

"अच्छा जी! तो आप मुझे न सिर्फ नंगी रखना चाहते हैं, बल्कि शारीरिक सुख भी चाहते हैं!” उसने मुझे छेड़ा!

"हाँ"

“इतना सब कुछ... और इतने सस्ते में!”

“अरे! सस्ता क्या? हर बार तुम्हारा वज़न एक किलो बढाऊँगा न!” मैंने भी उसको छेड़ा।

“हा हा! और जब बाकी लोग मुझे ऐसे देखेंगे तो?”

“तो क्या? मैं उनके सामने ही यह सब करूँगा।"

"अच्छा! तो बीवी की नुमाइश लगने वाली है! और अगर देखने वालो में से किसी ने ऐसा ही कुछ करने की सोची तो?”

"तो क्या? अगर देखने वाला आदमी हुआ, तो मैं तुम्हारी चूत में डालूँगा, और उसको तुम्हारी गांड में डालने को कहूँगा!”

“धत्त! गंदे!”

“अरे सुन तो ले पूरा... और अगर औरत हुई, तो उसको तुम्हारी गांड चाटने को कहूँगा, और मैं तुम्हारी चूत में डालूँगा!

“आप इतनी गन्दी बाते क्यों कर रहे हो?” नीलम ने मेरे चेहरे हो अपनी हथेलियों में भरते हुये कहा।

“सॉरी जानू.. ऐसे ही!”

“आप मुझे किसी के साथ भी शेयर मत करिएगा प्लीज!”

“आई ऍम सॉरी जानू! अब ऐसे कुछ नहीं कहूँगा तुमको!”

“मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ! किसी भी चीज से कहीं ज्यादा...." कहते हुये नीलम ने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिये और उत्साह और जोश से चुम्बन देने लगी। जब वह चुम्बन करके पीछे को हुयी तो उसने कहा,


“मैं सच में नंगी रह लूंगी.. आप देखना.. लेकिन मुझे अपने सिवाय किसी और को न देना!”

मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में भरकर कहा, “नीलू, तुम बहुत अच्छी हो!”

“हाँ... मुझे पता है कि मैं क्यों अच्छी हूँ! मैंने नंगी रहने का वायदा किया है, इसीलिए न?”

“हाँ...वो भी है।“

“आपको मेरे बूब्स अच्छे लगते हैं?” नीलम ने मेरी आँखों को देखा – वो काफी देर से उसके स्तनों पर ही जमी हुई थीं।

“हाँ! मुझे तुम्हारे बूब्स बहुत अच्छे लगते हैं..”

और मैंने उसके स्तनों को अपने हाथों से लेकर दबाना, मसलना शुरू कर दिया।

"आआह्हह्हह! आराम से! उफ़!” नीलम थोडा इठलाई, “अच्छा एक बात बताइए – दीदी और फरहत के मुकाबले आपको मेरे कैसे लगते हैं?”

"सेक्सी! और टेस्टी!”

"तो फिर! अब क्या करने का इरादा है?" उसने कहा।

“इनको पीने का प्लान है अब!”, मैंने कहा, और उसके एक चूचक को अपने मुँह में ले लिया!

“आह! हाँ! आह्ह.. आराम से जानू!!” नीलम अपने सीने को आगे की तरफ ठेलते हुए बोली।

मैंने जी भर कर और जोश में उसके चूचक चूसना शुरू कर दिया। नीलम आहें भरने लगी।

“काश, इनमें दूध भरा होता!”, मैंने चूसते हुए बीच में कहा।

"हा हा! अच्छा जी... आपके इरादे बड़े नेक हैं! लेकिन इसके लिए तो आपको मुझे प्रेग्नेंट करना पड़ेगा।" नीलम हँसते हुए बोली।

“तो फिर ठीक है, चलो.. तैयार हो जाओ..”, मैंने कहा।

“क्या?”

"अरे! तुमको प्रेग्नेंट करने का यही तो एक तरीका है!”

नीलम ने मेरे तने हुए लिंग को देखा, और कहा, “आपका ‘वो’ बहुत आतुर है अपनी सहेली से मिलने के लिए!”

“हाँ! इसकी सहेली भी इससे मिलने के लिए लार टपका रही है न!”

नीलम ने अपने दोनों हाथों से मेरे लिंग को पकड़ा और सहलाने लगी। उसी समय मैंने भी उसको पुनः चूमना शुरू कर दिया और बिस्तर पर लिटा दिया।

“रेडी हो जाओ, जानू...”

“क्यों? किसलिए?” वो भली भांति जानती थी की किसलिए।

"तुमको चोदना है न.. जिससे तुम जल्दी से जल्दी माँ बन सको!”

मेरी बात सुन कर नीलम ने अपनी दोनों टाँगे फैला दीं।

"ज़रा और फैलाओ जानेमन.. अपनी मालपुए जैस चूत थोड़ा ढंग से दिखाओ मुझे!” मैंने उसकी योनि पर अपनी निगाहें जमाये हुये कहा।

"अभी ठीक से दिख रही है?“ नीलम ने टांगों को और फैलाते हुए पूछा।

“थोड़ा और..” मैंने मिन्नत करी।

“अब बताइए? अब दिखी ठीक से? क्योंकि अब और नहीं फैला पाऊंगी...” नीलम ने अपनी जांघे और फैलाते हुये कहा।

“हाँ, अब दिखी! तुम्हारी प्यारी प्यारी.. मीठे रस से सराबोर चूत!”

“अब और कितनी देर तक इसे देखते रहेंगे? मुझे माँ बनाने का इंतजाम कब करेंगे?” नीलम ने हँसते हुये पूछा।

"ये तो इतनी सुन्दर है की मैं चाहता हूँ की इसे तब तक देखूं, जब तक ये मेरे दिमाग में पूरी तरह न बस जाय!” मैंने कहा।

"अरे! आपकी ही तो मिलकियत है ये! जब चाहे आप देख लीजिए, या भोग लीजिए!” उसने अपनी दोनों टाँगे मेरे कंधों पर रखते हुये कहा।

मैंने नीलम की योनि पर अपना लिंग स्थापित किया और कहा, “चुदने को तैयार?”

“हाँ जानू! आप बुरी तरह चोदिये मुझे!”

मैंने अपने लिंग को अंदर की तरफ धकेलते हुये उसको चूमा। जैसे ही नीलम ने मेरे लिंग को अपनी योनि की गहराइयों में जाते हुये महसूस किया, वो बोली, “अब आप जल्दी से कर दीजिए सब कुछ! मैं कैसे भी रोऊँ, आप रुकियेगा नहीं!“

उसकी इस बात पर मैं भी तुरंत शुरू हो गया और बल पूर्वक धक्के लगाने लग गया। नीलम भी मेरे धक्को के साथ नीचे की तरफ से टाल मिलाने लगी। कुछ ही क्षणों में मैंने नीलम की योनि में लिंग को अंदर बाहर करने की गति बढ़ा दी और तब तक करता रहा जब तक मैंने उसकी योनि के अंदर अपना पूरा वीर्य उड़ेल न दिया। इसी बीच में नीलम को एक बार फिर से चरमसुख मिल गया। जब उसने अपनी कोख में मेरे वीर्य की पिचकारी महसूस करी, तो वो मुस्कुरा दी।
lovely update
 
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कुछ देर के बाद हम दोनों ही संयत हो गए। मैं कुछ देर उसके ऊपर यूँ ही लेटा रहा। जब उठा तो मैंने कहा, “नीलू, मुझे बहुत मज़ा आया! तुमको?”

“मुझे भी!” उसने कहा, और मुझे होंठो पर चूमा। “आप थक गए होंगे! सो जायेंगे?

“नहीं! इतनी मस्त चुदाई करने के बाद कोई सोता है क्या?”

“हा हा! तो क्या करता है?”

“रुको.. बताता हूँ!”

कह कर मैंने अलमारी से जो संध्या के लिए खास मेड-टू-आर्डर करधनी बनवाई थी, वो बाहर निकाली। यह एक 18 कैरट सोने की करधनी थी। इसमें लाल-भूरे, नीले और हरे रंग के मध्यम मूल्यवान जड़ाऊ पत्थर लगे हुए थे। नीलम उत्सुकतावश मुझे देख रही थी की मैं क्या कर रहा हूँ। मैं वापस आकर बिस्तर पर बैठ गया और नीलम को बिस्तर से नीचे उतरने को कहा। जब वो ज़मीन पर खड़ी हुई, तो मैंने उसकी कमर में यह करधनी बाँध दी। प्रथम सम्भोग के समय उसका हीरों का मयूर जड़ाऊ हार उतार दिया था – उसको भी वापस पहनाया। और थोड़ा सा पीछे हट कर उसके सौन्दर्य का अवलोकन करने लगा।

नीलम पूरी तरह नग्न थी – और उसके शरीर पर यह हार, मंगलसूत्र, वो करधन, कलाइयों में चूड़ियाँ और कंगन, माथे में सिन्दूर, कानो में कर्णफूल, पैरों में पायल, और बिछिया! मतलब सिर्फ आभूषण बचे थे! उसकी बिंदी हमारे सम्भोग क्रिया के समय न जाने कब खो गई, और सिन्दूर और काजल अपने अपने स्थान पर फ़ैल गए थे, और लिपस्टिक का रंग मिट गया था। किन्तु फिर भी, नीलम, अपनी ही बहन की भान्ति बिलकुल रति का ही अवतार लग रही थी।

“आपकी एक तस्वीर निकाल लूं?”

नीलम शर्म से मुस्कुराई, और हामी में सर हिलाया।

मैंने झटपट अपना कैमरा निकला, और दनादन कई सारी तस्वीरें उतार लीं। उसके बाद मैंने नीलम की कमर को आलिंगन में लेकर उसकी नाभि, और फिर उसकी कमर को करधनी के ऊपर से चूमा। फिर खड़े हो कर उसके दोनों चूचकों को चूमा, और अंत में उसके होंठों पर एक चुम्बन दिया।

“जानू.. आज दिन में बस यही पहन कर रहना!”

नीलम उत्तर में सिर्फ मुस्कुरा दी!!

मेरी हर कही हुई बात नीलम के लिए जैसे वेद-वाक्य, या फिर कोई दैवीय आदेश था। हमारे वैवाहिक जीवन के पहले दिन सचमुच नीलम ने अपने शरीर पर कुछ भी नहीं पहना – उसके शरीर पर बस वही कुछ आभूषण - करधनी, कंठहार, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ और कंगन, पायल और अंगूठी ही रही। ऐसा करने के लिए उसकी दलील यह थी कि मैंने पहली बार – मेरे जीवन में भी, और हम दोनों के वैवाहिक जीवन में भी – उससे कुछ माँगा था। इसलिए वो किसी भी कीमत पर मुझे उस बात के लिए मना नहीं कर सकती थी – चाहे मैं ही उसको वैसा करने से मना करूँ! खैर, मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी भला? इतनी सुन्दर सी लड़की अगर नग्न हो कर घर में इधर उधर घूमे तो आनंद ही आएगा! खैर, मैंने कमरे से बाहर निकलने से पहले एक निक्कर और टी-शर्ट पहन लिया था। उसकी सहेली भानू जब सुबह उठी, तो उसका यह रूप देख कर दंग रह गई।

“हाआआआआ! क्या जीजू! मेरी इतनी शर्मीली सी सहेली.. आपके साथ बस एक रात क्या रह ली, उसकी तो ऐसी हालत हो गई! क्या किया आखिर आपने?”

मैंने आँख मारते हुए उसको उसी के अंदाज़ में छेड़ा, “आजा तू भी.. देखते हैं, मेरे संग का क्या असर होता है तुझ पर!”

“न बाबा! मैं तो सोच रही हूँ की जब पति मिलेगा तो उससे नए नए कपड़ों की फरमाइश करूंगी.. अगर आपके साथ हो ली, तो ऐसे नंगी रहना पड़ेगा!”

“ओये होए! सहेली के पति को अपना पति बनाना चाहती है?” मैंने फिर छेड़ा।

“अरे मेरा ही क्या? आपके जैसे शानदार मर्द को देख कर किसी भी लड़की का जी होने लगेगा!”

“अरे तो रुक कर कुछ देर देख ही ले की हमने ऐसा क्या किया जिससे तेरी सहेली की ऐसी हालत हो गई..”

“न बाबा... ये ऑप्शन भी गड़बड़ है! आप दोनों को चुदाई करते देख कर अगर मेरा भी मन डोल गया तो?” भानु फिर से बेशर्मी पर उतर गई।

“तो क्या? तू भी बहती गंगा में हाथ धो लेना.. लगे हाथ तेरी चूत की भी कुटाई हो जाएगी!”

“ओये होए! नई नई बीवी, वो भी नंगी नंगी, आपके पहलू में बैठी हुई है, और आपकी गन्दी नज़र उसकी सहेली पर है!”

“ठहर तो.. बताता हूँ तुझे!” इस लड़की से कोई नहीं जीत सकता।

“नहीं! मुझे कुछ मत बताओ...” वो भागी, “आप दोनों चुदो-चुदाओ.. इसमें मेरा क्या काम? मैं क्यों कबाब में हड्डी बनूँ?” यह कहते हुए वो खिलखिलाती हुई कमरे से भाग खड़ी हुई। इस पूरे वार्तालाप के दौरान नीलम पहले तो सिर्फ मुस्कुराती रही, लेकिन बाद में हँसते हँसते दोहरी हो गई।

“हंसी आ रही है?”

वो और हंसी.. दरअसल अब तक वो खिलखिला रही थी।

“जानू.. जाने दीजिए.. वो ऐसी ही है..”

“हंसी निकालूँ और?” मैंने अपनी आवाज़ में नकली क्रूरता मिलाते हुआ कहा। नीलम कुछ सहम गई।

“हम्म? हंसी निकालूँ तेरी?” मैंने नाटक जारी रखा।

नीलम के चेहरे से मुस्कान अब तक ख़तम हो चुकी थी – शायद मेरे ऐसे अचानक बदले हुए रूप को देख कर डर गई थी वो! मैंने उसके करीब जा कर उसकी जाँघों के बीच में अपनी उंगली फिराई। उसकी योनि की फाँकों की गुलाब जैसी कोमल पंखुडियां खुली, और मेरी उंगली के गिर्द चिपक गईं।

“ये होंठ हँसेंगे तेरे... ऊपर वालों में तो सिर्फ कराहें और आहें निकलेंगी!” दूसरे हाथ से मैं अपनी निक्कर उतार रहा था।

मेरी इस बात पर नीलम के होंठों पर एक लज्जालु मुस्कान तैर गई। वो बोली,

“ये भी कैसे मुस्कुराएंगे? आपका अंग लेने में तो ये पूरी तरह से खुल जाते हैं!”

“अच्छा जी?”

“हाँ जी! .. ऊओह्ह्ह्ह! (मैंने उसकी योनि के ऊपर भगशेफ़ को छेड़ा) ये बेचारे तो बस लार टपकाते रह जाते हैं!” वो अदा से मुस्कुराई।

अब तक मेरी निक्कर उतर चुकी थी। यानि अब हम दोनो ही नंगे हो चुके थे। मैंने अपनी पत्नी को जी भर कर देखा – वो भी कभी मुझे, तो कभी मेरे लिंग को देख रही थी। वो सोचे बिना न रह सकी कि दीदी को कैसा लगता रहा होगा जब वो इस लिंग को अपने अंदर लेती थीं! इस बार शुरुआत नीलम ने करी। उसने मेरे लिंग को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाने का उपक्रम शुरू किया। उसकी नरम गरम हथेलियों का स्पर्श पा कर मेरा लिंग भी तुरंत ही पूर्ण स्तम्भन की स्थिति में आ गया। मैंने भी उसके स्तनों को सहलाना और मसलना शुरू कर दिया।

जल्दी ही हम दोनों ही एक दूसरे को अपनी बाहों में भर कर लेट गये। मैंने एक हाथ से नीलम के एक चूचक को मसलते हुए कहा,

“ओह नीलू! तुम नहीं जानती कि मैं कितना खुश हूँ! तुमको पाकर मुझे अपने मन की खोई हुई खुशी मिल गई है! और.. जीने का सहारा भी!”

“ऊह्ह्ह! अरे! आप ऐसा न कहिए! सहारा तो आप हैं मेरे! आपकी वजह से मुझे वो सुख मिला है जिसके बिना मैं खुद को अधूरा महसूस कर रही थी।“

नीलम ने मेरे लिंग को सहलाते हुए कहा। मैंने महसूस किया कि नीलम की योनि गीली हो गई थी। पर अभी उसमे लिंग डालने का सही समय नहीं आया था। यह बात उसको भी समझ आ रही थी। वो अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, और अपने शरीर को कमानी की तरह कुछ पीछे करते हुए इस तरह हुई, जिससे उसका योनि क्षेत्र मेरे सामने कुछ बाहर आ जाय, और कुछ अधिक प्रदर्शित होने लगे।

“एक बार इन होंठो को भी चूम लीजिए..”

ऐसे सुन्दर, मादक, गोरे, चिकने शरीर, और उससे भी अधिक चिकनी और रसीली योनि को अपने मुँह के करीब होता देख कर मैं और भी अधिक उत्तेजित होने लगा। मैंने आगे बढ़ कर उसके दोनों नितम्बों को पकड़ लिया, और अपनी तरफ धीरे से खींचा – ऐसा करने से नीलम का योनि मुख मेरे होंठों से मात्र कुछ इंचों की ही दूरी पर रह गए!

मैंने कहा, “नीलू, थोड़ा जगह बनाओ..”

नीलम ने अपनी टाँगे कुछ खोल दीं, और मुझे उसकी योनि का आस्वादन करने के लिए जगह मिल गई। नीलम ने अपना योनि क्षेत्र कुछ इस तरह से व्यवस्थित किया जिससे अब मैं आराम से अपनी जीभ से उसकी योनि का भोग कर सकता था – मैंने वही किया। मैं उसकी योनि को अपनी जीभ से सहलाने लगा। इस प्रकार की छेड़खानी का असर नीलम पर काफी सकारात्मक हुआ – वो भी कामुकता में मत्त सी हो गई। मैंने सोचा की नीलम को अपने इस कार्य का कुछ पारितोषिक तो मिलना ही चाहिए – इसलिए मैंने भी आराम से रह रह कर उसके भगशिश्न को चाटना शुरू कर दिया। मैं क्रमशः उसकी योनि की पूरी लम्बाई को चाटता, और रह रह कर उसके भगशिश्न को अपने होंठों से दबा कर उसको पागल बना देता। लगभग तीन मिनट के बाद ही नीलम उन्माद में पीछे की तरफ कुछ झुकी और अपनी योनि का रस मेरे मुँह पर ही छोड़ने लगी। मेरे चाटने की गति बढ़ने लगी और उसी के साथ साथ नीलम भी उन्माद के अंतराल तक पहुँच गई। उस समय मैं अपनी दो उंगलियाँ उसकी योनि में डाल कर अंदर बाहर करने लगा। नीलम इस नए प्रहार को बिलकुल भी सहन नहीं कर सकी।एक जोरदार सिसकारी के साथ वो अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गई। उस उन्माद में उसका पैर कांप गया, और इससे पहले की मैं उसको सम्हाल सकता, वो भहरा कर फर्श पर गिर गई। मैं घबराया की कहीं उसको चोट न लग गई हो – लेकिन नीलम लंबी लंबी साँसे भरते हुए फर्श पर लेट गई।

यह सुनिश्चित करने के बाद, की वह पूरी तरह से ठीक है, मैं वापस मूड में आ गया। मैं पुनः उसके स्तनों को मसलने में लग गया। मेरा लिंग भी अब अपने गंतव्य में जाने को आतुर हो रहा था। मैंने नीलम का हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया – मैं एक तरह से उसको बताना चाहता था कि मैं अब तैयार हूँ! नीलम भी समझ गई कि अब वक्त आ चुका है। उसने मुझको उसके ऊपर आने को कहा, और मेरा लिंग अपने हाथों से पकड़ कर अपनी योनि से सटा दिया। मैंने धीरे धीरे लिंग को उसकी योनि में डालना आरम्भ कर दिया।

लडकियाँ अक्सर ही सम्भोग के बाद एक प्रकार का दर्द अनुभव करती हैं। अगर वो दर्द सम्भोग करते समय आघात के कारण उठता है, तो मर्द को चाहिए कि वो सावधानीपूर्वक, और प्रेम से करे। जल्दबाज़ी न दिखाए। लेकिन यदि यह बात नहीं है, तो एक और कारण है – और वो यह की सम्भोग, और उसके बाद चरमोत्कर्ष की प्राप्ति के बाद लड़कियों की योनि अति संवेदनशील हो जाती है। अब इस संवेदनशीलता की अवधि कुछ भी हो सकती है – कुछ सेकंडों से लेकर कई मिनटों तक भी! इस अवधि में लडकियाँ यह नहीं चाहती की उनकी योनि को और अधिक छेड़ा जाय। यह संवेदनशीलता इस बात पर भी निर्भर करती है की उनके भगनासे को भी छेड़ा गया है या नहीं। खैर, सुहागरात के सम्भोग, और अभी अभी प्राप्त यौन चरमोत्कर्ष के बाद नीलम की भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी – उसकी योनि के दोनों होंठ सूजे हुए से लग रहे थे।

किन्तु इस पर भी उसने मेरे लिंग का पूरी तरह स्वागत किया। उसका छोटा सा योनि मुख जैसे अपनी सीमा तक खिंच गया था। मेरे लिंग पर वो एक रबड़ के छल्ले के समान कस गया था, और मेरा लिंग इस समय पूरी तरह से उसके अन्दर समाहित हो गया था। मैंने जैसे यह देखा, मैंने उसको लगभग पूरा बाहर निकाला, और वापस अंदर धकेल दिया। पाठक समझ सकते है की ऐसा करने में गति तो कम हो जाती है, लेकिन घर्षण अभूतपूर्व होता है। मैं ऐसा बार बार दोहराने लगा। इस प्रकरण के दौरान, मैंने नीलम के कंधे पकड़ रखे थे। इसलिए अब इस उन्मादक प्रहार को झेलने के अतिरिक्त नीलम के पास अब कोई चारा नहीं बचा था।

नीलम भी सम्भोग के मामले में संध्या के समान ही थी – वो भी तुरंत ही बहकने लगती थी, और लगभग तुरंत ही तैयार हो जाती थी। मेरे कठोर और गरम लिंग के घर्षण का अनुभव नीलम को उन्मत्त करने लग गया था। वो शीघ्र ही अपने अंदर चरमोत्कर्ष की लहर उठती सी महसूस करने लगी। मैं भी जैसे किसी मतवाले पशु के समान, आँखें बंद किये, पूरे मनोयोग से उसके अन्दर बाहर हो रहा था। जब आँख खुली, तो सामने नीलम के प्यारे से स्तन नज़र आ गए। मैं रह न सका – मैंने जैसे ही उसके एक चूचक स्तन को मुँह में लेकर चूसना शुरू किया, नीलम पुनः चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। उसके शरीर की थरथराहट मैंने महसूस की और नीलम को भोगने के लिए अपनी गति और बढ़ा दी।

ड्राइंग रूम में हमारी रतिक्रिया की मादक ध्वनियाँ गूँज रही थीं। अरे, हमको तो यह भी नहीं मालूम पड़ा की कब भानु वह आ खड़ी हुई, और मज़े लेकर हमारे इस अन्तरंग समय की विडियो रिकॉर्डिंग कर रही थी। मैं अब पूरे वेग से धक्के मार रहा था – मेरा भी अंत आ गया था – मेरा पहला स्खलन बहुत ही तीव्र था। पहली पिचकारी में ही मेरा कम से कम अस्सी प्रतिशत वीर्य नीलम की कोख में समां गया। बाकी का बचा हुआ अगले चार पांच पिचकारियों में निकल गया। इस सम्भोग में ऐसा अभूतपूर्व भावावेश था, की हम दोनों एक दूसरे से बुरी तरह से लिपट गए। हमारी साँसे धौंकनी की तरह चल रही थीं, और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे की एक मैराथन दौड़ कर आया हूँ। हम एक दूसरे को अपनी बाहों में भरकर लेटे रहे। वृषणों में अब कुछ भी नहीं बचा हुआ था, लेकिन फिर भी लिंग रह रह कर व्यर्थ ही पिचकारियाँ छोड़ने का प्रयास कर रहा था। नीलम की योनि में भी स्पंदन हो रहे थे – मानों मेरे लिंग के उठने वाले स्पंदनों से ताल मिला रही थी। खैर, कुछ देर तक ऐसे ही शांत लेटे रहने के बाद हमने एक दूसरे को होंठों में चुम्बन दिया और पुनः आलिंगनबद्ध हो गए।

“क्या बात है जीजू और नीलू!” हमारी तन्द्रा तब टूटी जब हमने हलकी हलकी तालियों की आवाज़ सुनी। “ये तो गुड मोर्निंग हो गया है जी!”

मैंने और नीलम – हम दोनों ने ही आवाज़ की दिशा में देखा। भानु मुस्कुराती हुई अपने मोबाइल फ़ोन लिए हमारा विडियो बना रही थी।

“ठहर जा तू..” मैंने धमकी दी और उठने का उपक्रम किया, लेकिन नीलम ने मुझे गलबैयां डाल कर रोक लिया।

“जाने दीजिए न.. ले दे कर वही तो एक आपकी साली है..”

“हाँ जीजू.. आपकी आधी घरवाली!” कह कर उसने मुझे जीभ दिखा कर चिढाया।

“डेढ़ घरवालियाँ हैं आपकी... डेढ़!! वैसे आप चिंता न करिए – ये विडियो मैं इन्टरनेट पर नहीं डालूँगी। बल्कि आप दोनों को मेरी तरफ से गिफ्ट दूँगी। .. और अपने पास भी रखूंगी। जब भी मेरे सेक्सी से जीजू की याद आएगी, इसको देख कर खुश हो लिया करूंगी..।“ उसने निहायत ही नाटकीय अंदाज में यह बात कही। मुझे भी हंसी आये बिना न रही।

“अच्छा, तो तू मेरी आधी घरवाली है.. कम से कम घरवाली का आधा प्यार तो दे!” मैंने उसको छेड़ा। मुझे लगा की इस एक वाक्य से मैंने पहली बार भानु को कुछ समय के लिए निरुत्तर कर दिया। वो कुछ देर अचकचा गई, लेकिन फिर सम्हाल कर बोली, “क्या जीजू.. इतनी सुन्दर सी बीवी है, और नंगी पड़ी है.. और आप मुझ पर डोरे डाल रहे हैं?”

“क्या करूँ साली साहिबा! इतनी सेक्सी साली का कोई तो फायदा होना चाहिए न!”

“क्या सच में? आपको मैं सेक्सी लगती हूँ?”

“हाँ! सुन्दर, और सेक्सी!” फिर नीलम की तरफ देख कर, “क्यों जानू?”

“हाँ .. बिलकुल! तू तो बहुत सुन्दर है!” नीलम फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोली,

“आपको अगर चांस मिले, तो इसके बूब्स देखिएगा! बहुत सेक्सी हैं!”

“क्या कह रही है तू कमीनी?”

“तू कमीनी है.. यहाँ हम दोनों नंगे पड़े हैं, और तू पूरे कपड़ों में खड़ी है..”

सहेलियों की मीठी तकरार...

“आप ही कुछ कहिए न...”

“हाँ भानु.. वो बात तो है..”

“हाँ.. आप तो कहेंगे ही न.. मेरे कपडे उतर गए तो दो दो नंगी लडकियाँ मिल जाएँगी आपको.. यानी पाँचो उंगलियाँ घी में..”

“नहीं रे.. पाँचों नहीं,” मैंने भानु के वाक्य को सुधारा, “दसों उंगलियाँ.. और घी में नहीं.. या तो मीठे मीठे बन (छोटे, मीठे पाव – मेरा इशारा स्तनों की तरफ था) में.. या फिर शहद में!”

हमारी छेड़खानी सुन कर भानु की जो भी मोरचाबंदी थी, वो जल्दी ही ढह गई।

“क्या सचमुच इसके बूब्स बहुत सेक्सी हैं?” मैंने नीलम से पुछा।

नीलम के कुछ कहने से पहले ही भानु बोली, “कोई सेक्सी वेक्सी नहीं हैं.. जैसा सभी का होता है, वैसा ही है!”

मैंने कहा, “तुम्हारा भी ऐसा ही है क्या?” मैंने नीलम के स्तनों की तरफ इशारा किया।

“आपकी बीवी के बहुत सुन्दर हैं..”

“नहीं.. सच में.. इसके बहुत सुन्दर हैं.. आप खुद ही देख लो..” दोनों लडकियाँ एकदम बच्चों वाली बातें कर रही थीं।

“सच में जीजू.. ये बिलकुल बेशर्म हो गई है..”

“इधर आओ भानु...” मैंने थोड़ा सीरियस हो कर कहा। न जाने क्या असर हुआ उस पर, वो बिना किसी हील हुज्जत के हमारे पास चली आई।

“बैठो..” वो बैठ गई।

“मैं तेरे बूब्स छूकर देख लूँ क्या?”

उसने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन हलके से सर हिला कर हामी भर दी।

“पक्का?” वो शर्म से मुस्कुरा दी। बल्कि शरमाना मुझे चाहिए था – नंगा तो आखिर मैं था उसके सामने!

नीलम: “हाँ... छू कर देखिए न!”

मैंने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर उसका बायाँ स्तन बहुत हलके से छुआ – ठीक से छुआ भी नहीं था, फिर भी भानु चिहुंक सी गई।

“भानु, डरो मत! मैं कुछ नहीं करूंगा.. नीलू भी तो यही हैं न..!” मैंने उसको स्वन्त्वाना दी।

लेकिन जिस बात को मैं भानु की शर्म सोच रहा था, दरअसल वो उसकी बदमाशी थी। उसका घबराया हुआ, भोला सा चेहरा देखते देखते बदल गया – उसके होंठों पर एक पतली सी मुस्कान आ गई, और उसने अचानक ही जीभ निकाल कर मुझे चिढाया,

“न न न जी-जा-जी..” उसने एक एक अक्षर रुक रुक कर बोला, “आज के लिए बस इतना ही.. अपनी इस साली को खुश कर के रखिएगा.. क्या पता, आगे और क्या क्या मिल जाए आपको!! ही ही ही!”

कह कर वो आगे बढ़ी और मुझको होंठों पर चूम लिया, फिर मेरे बाद उसके नीलम को भी होंठों पर चूम लिया।

“अब आप लोग थोड़ा नहा-धो लीजिए... मैं आपके लिए नाश्ता बनाती हूँ... ऊओह्ह्ह! देखिए न.. आपकी ये एकलौती साली पहले ही आपसे खुश हो गई है.. आपको नाश्ता मिल रहा है उससे! हा हा!”
beautiful update
 
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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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है न

प्रिय avsji गलती के लिए माफी।

मैंने टिप्पणी पहले दे दी। अपडेट बाद में देखा।

आशु
 
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mashish

BHARAT
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नित्यक्रिया से निवृत्त होने के बाद, नीलम और मैं हम दोनों साथ ही नहाने के लिए गए। नहाते वक्त ऐसी कोई ख़ास बात नहीं हुई – लेकिन जाहिर सी बात है, नीलम भी यह सुनिश्चित कर देना चाहती थी की मैं उसके शरीर के हर कोने से अच्छी तरह से जानकारी कर लूं – उसके शरीर में किस जगह पर कैसे लोच हैं, कैसी गोलाईयां हैं और कैसे मोड़ हैं – उन सबका ज्ञान उसको नहलाते समय साबुन लगाते और फिर पानी से धोते समय मुझे हो गया। उसके शरीर पर कहाँ कहाँ और कैसे कैसे तिल हैं, और कैसा जन्म-चिन्ह है, उसकी गुदा की बनावट और रंग, साथ ही साथ उसकी योनि का विस्तृत विवरण – मतलब नीलम के बारे में वो सभी जानकारियां जिनके बारे में संभवतः नीलम को खुद भी न मालूम हो, उस एक ही स्नान में मुझे हो गई।

हम तीनों ने साथ में बैठ कर नाश्ता किया। वायदे के मुताबिक, नीलम अभी भी नग्न थी – सिवाय एक नव-विवाहिता के समस्त आभूषणों के। मैंने भी उसका साथ देने के लिए कोई कपड़े नहीं पहने थे। भानु ने ‘हाउ क्यूट’, ‘हाउ स्वीट’, और ‘हाउ सेक्सी’ जैसे कई विशेषण हमारी प्रसंशा में जड़ दिए, और हमको बारी बारी से चूमा। नाश्ता करते समय भानु ने हमसे पूछा की हम दोनों अपने हनीमून के लिए कहाँ जा रहे हैं? वाकई! इस बात के बारे में तो मैंने बिलकुल भी नहीं सोचा था। मैंने दिमाग दौड़ाया लेकिन कुछ समझ नहीं आया – इसलिए मैंने नीलम से ही पूछना ठीक समझा।

उसने कहा,

“अच्छा... आप ये बताइए कि हम लोग हनीमून में क्या करेंगे?”

“अरे! हनीमून में क्या करना होता है?”

“फिर भी.. बताइए न?”

“भई, मेरे हिसाब से तो हनीमून एक नए युगल के लिए ब्रेफिक्री, आनंद और पारस्परिक अंतर्ज्ञान का एक अवसर होता है! नए नए बने पति पत्नी को एकांत में मिलने का सुख मिलता है, एक दूसरे को समझने का अवसर मिलता है, और सब कुछ अच्छा रहा तो एक नए स्थान में पर्यटन करने का भी मौका मिलता है! और क्या?”

“ओह्हो! आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहे हैं.. हनीमून में करना क्या होता है?”

“अरे! बताया तो..” मैं जान बूझ कर टाल रहा था।

फिर से भानु बीच में टपक पड़ी,

“क्या मेरे भोले जीजू! आप भी न..” फिर नीलम की तरफ मुखातिब होते हुए, “मेरी बन्नो.. हनीमून में जीजू तेरी जम कर चुदाई करेंगे! और क्या? अभी तो तू अपनी मर्ज़ी से नंगी बैठी है, लेकिन जब हनीमून पर जायेगी, तो तुझे ये जबरदस्ती नंगी रखेंगे! और तेरी चूत का...”

“चोप्प्प्प!” मैंने डांट लगाई, “हनीमून में कुछ हो या न हो.. लेकिन कम से कम तू तो नहीं होगी वहाँ.. वही काफी है मेरे लिए..”

“हाय मेरे जीजू! इतनी बेरुखी मुझसे? अपनी एकलौती साली से?”

उसने फ़िल्मी अंदाज़ में अपनी दाहिनी बाँह थोड़ा ट्विस्ट करके अपने माथे पर, और बाईं बाँह ट्विस्ट कर के अपनी कमर के पीछे कर लिया और कहा,

“हाय री किस्मत! कैसा जीजा मिला मुझे!”

“तेरी तो..”

नीलम ने मुझे बाँह से पकड़ा, और मुस्कुराई, “जानू.. आप इसकी बातें मत सुना करिए! वैसे मैं कह रही थी, कि जो काम हम हनीमून पर करने वाले हैं, वो सच में, अभी भी तो कर ही रहे हैं न! मैं संतुष्ट हूँ पूरी तरह से.. और आपको संतुष्ट रखने की पूरी कोशिश करूंगी..”

“ओये होए मेरी पतिव्रता नारी! वैसे सच कहूं जीजू.. अपनी नीलू तो हमेशा से आपके ही सपने संजोए रही थी। पूरी तरह से आपके प्रति वफादार! बस.. एक बार मैंने ही इसको बहका दिया था..”

“तू तो कुछ भी कर सकती है” मैंने तल्खी से जवाब दिया।

“अरे अरे! आप तो नाराज़ हो गए.. और एक मैं हूँ.. जो आपसे खुश हुई जा रही हूँ..”

“तेरे खुश होने से भी मुझे क्या मिला जा रहा है?”

“अरे! नहीं मिला है तो मिल जायेगा! आप तो ऐसे उतावले होंगे तो कैसे चलेगा?”

“क्या? मैं उतावला..!”

“जानू.. आप परेशान मत होइए! इस कमीनी ने मुझसे कहा था की तेरे हस्बैंड को अपने दूध का स्वाद चखाएगी! चल री! कर न.. दे न अपने जीजू को गिफ्ट...”

“अबे! मैंने कब कहा था?”

“कहा नहीं था तूने?”

“न बाबा! तू ही पिला दूध वूध... ये सब मेरे अरुण की अमानत हैं... लेकिन... अपने प्यारे जीजू को भी कुछ न कुछ तो दूँगी ही!”

कह कर उसने मुझे होंठों पर चुम्बन दिया.. और हँसते हुए अन्दर कमरे में भाग गई।

और इसी के साथ नीलम और मेरी शादी-शुदा जिंदगी चल निकली। एक महीना ऐसे ही हँसते हँसते बीत गया। सच में – जो सब कुछ संध्या के जाने से खो गया था, वो सब कुछ नीलम के आते ही वापस आ गया। सब कुछ तो नहीं – लेकिन काफी कुछ। दिल का घाव भर तो सकता है, लेकिन उसका चिन्ह कैसे छूटे? इस सब का पूरे का पूरा श्रेय नीलम को ही जाता है। मैंने तो समय से पूरी तरह से हार मान लिया था और उसके सम्मुख अपने सारे हथियार डाल दिए थे। बस इसी बात की तमन्ना रह गई थी की कब मुझे समय अपने अंक में भर के इस धरती से मुक्ति दे दे। लेकिन, वो एक दिन था, और आज का दिन है – जीवन को भरपूर जीने की इच्छा बलवती हो गई है।

भगवान् ने एक और सद्बुद्धि दी – और वह यह की मैंने कभी भी नीलम की संध्या से तुलना नहीं करी.. और करने की सोची भी नहीं। दोनों ही लडकियाँ अप्रतिम और अनोखी थीं। दोनों ही मेरी पत्नियाँ थीं, और दोनों से ही मुझे अत्यंत प्रेम था। जहाँ संध्या ने मेरे यंत्रवत जीवन में अपने प्रेम की फुहार सिंचित कर उसमें बहार ला दी थी, उसी प्रकार नीलम ने मेरे मृतप्राय शरीर में पहले तो प्राण फूंके, और फिर अपने प्रेम के रस से सींच कर जैसे मुझे संजीवनी दे दी थी। एक आदमी को भला जीवन से और क्या प्रत्याशा हो सकती है?

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good update
 
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“बत्तीस नंबर के पेशेंट को होश आ गया है..”,

सरकारी अस्पताल की नर्स सुषमा हर्ष-पूरित उत्तेजना में भागते भागते बाहर आई और लगभग चीखते हुए यह उद्घोषणा करने लगी।

“जल्दी से डॉक्टर संजीव को बुलाओ.. हे प्रभु! कैसे कैसे निराले खेल! मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी..”

वह रिसेप्शन पर निठल्ले से खड़े दोनों वार्ड-बॉयज को कह रही थी। उन दोनों ने उसकी बात पर ऐसे मुँह बनाया जैसे उनको किसी ने रेंडी का तेल पिला दिया हो, लेकिन सुषमा ने जब आँखे तरेरी, तो दोनों ही भाग कर डॉक्टर संजीव को बुलाने निकल लिए। किसी की मजाल नहीं थी की नर्स सुषमा की बात न माने।

कोई पंद्रह मिनट बाद डॉक्टर संजीव, बतीस नंबर की पेशेंट की जांच कर रहे थे। नब्ज़ और आँखें इत्यादि देखते हुए वो मरीज़ से पूछते जा रहे थे,

“बहुत बढ़िया! कैसा लग रहा है आपको? कहीं दर्द तो नहीं?”

“मैं कहाँ हूँ?” मरीज़ ने पूछा।

“ओह! सॉरी! मैंने तो बताया ही नहीं – आप गौचर के सरकारी अस्पताल में हैं! मैं डॉक्टर संजीव हूँ.. और ये हैं नर्स सुषमा! इन्होने ही आपकी दिन रात देखभाल करी है।“

“क्या डॉक्टर साहब.. आप भी..”

“अस्पताल में? क्यों?”

“आपको सब बताएँगे.. लेकिन, आप पहले यह बतोये की आपका नाम क्या है?”

“नाम? मेरा नाम.. क्या? मेरा नाम क्या है?” मरीज़ को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

“कोई बात नहीं.. कोई बात नहीं.. आराम से!” कहते हुए डॉक्टर ने अपने नोट पैड में कुछ लिख लिया, और फिर सुषमा से कहा,

“इनके वाइटल स्टैट्स सब ठीक हैं.. लेकिन, इतने महीने कोमा में रहने के कारण लगता है याददाश्त सप्रेस हो गई है। कोई बात नहीं.. तीन दिन ऑब्जरवेशन पर रखते हैं – अगर हालत ठीक रही तो पेशेंट को रिलीव कर दे सकते हैं.. मेमोरी गेन में टाइम लग सकता है, और उसके लिए हॉस्पिटल में रहने की ज़रुरत नहीं! इनके घर इत्तला कर दी?”

“अभी नहीं डॉक्टर! अभी करती हूँ!”

“देखिए,” संजीव ने मरीज़ को कहा, “आप घबराइये नहीं.. आप महीनो के बाद होश में आईं हैं, इसलिए शायद आपको अभी कुछ ख़ास याद नहीं है। लेकिन, जल्दी ही आपको सब याद आ जायेगा। इस बीच नर्स सुषमा आपका पूरा ख़याल रखेंगी।“

कह कर डॉक्टर ने मरीज़ के सर पर प्यार से हाथ फिराया और फिर कुछ और ख़ास निर्देश दे कर वहां से विदा ली।

“हाँ! कुंदन जी... मैं सुषमा बोल रही हूँ... नर्स सुषमा!” टेलीफोन पर सुषमा कह रही थी,

“हाँ हाँ.. अस्पताल से.. आपके लिए खुश खबरी है.. हाँ! आपकी पत्नी को होश आ गया है.. हाँ हाँ! ... आप बिलकुल आ सकते हैं देखने उसको! क्या नाम बताया था आपने उसका? ... अंजू? हाँ? ओके! उनको एक्चुअली फिलहाल याद नहीं आ रहा है! कोमा का असर लगता है.. आप आ जाइए, फिर आराम से बात कर लेंगे.. ओके .. ओके!”


कुंदन कोई बीस इक्कीस साल का गढ़वाली युवक था। उसकी इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर की दूकान थी – दूकान क्या थी, बस महीने का खर्च निकल जाता था। पोलिटेकनिक की पढाई करते ही उसने अपना खेत बेच दिया, और यह काम करने लगा। माँ बाप उसके थे नहीं, इसलिए किसी ने रोका भी नहीं! मौज से कट रही थी। लेकिन आमदनी अधिक तो नहीं थी। रहने सहने का काम हो जाता था। बाकी लोगों की तरह उसको भी यह मन होने लगा था कि तनहा रातों में वो अकेला न सोये! यूँ ही अकेले, ठन्डे बिस्तर में पड़े रहने से अच्छा था की कोई एक गरम शरीर उसके बगल में हो, जिसके संग वो साहचर्य कर सके! ऐसे ही नाहक अपने वीर्य को वो कब तक नाली में बहाता रहेगा?

महीनो पहले वो केदारनाथ जी के दर्शनों के लिए गया था यह मन्नत मांगने की उसको एक सुन्दर सी पत्नी मिल जाय। पत्नी वत्नी का तो पता नहीं, लेकिन वो उस प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गया। जैसे तैसे वो जान बचा कर भागा। चोटें बहुत सी आईं, लेकिन फिर भी वो न जाने कैसे पहाड़ों की तरफ ऊपर की ओर पहुँच गया। रस्ते में उसने न जाने कितने ही अभागों के शवों को देखा। हर शव उसको यही याद दिलाता की अंत में उसकी भी यही दशा होने वाली थी, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत न हारी।

एक शाम को उसने एक लड़की को वहीँ पहाड़ों पर पड़े देखा – वो लगभग मरणासन्न थी। उसके आस पास सियार मंडरा रहे थे, की कब वो मरे, और कब उनका भोजन बने। अचानक ही कुंदन को लगा की उसकी आस पूरी होने वाली है। उसने उस लड़की को जंगली जानवरों की दृष्टि से बचाया, और जैसे कैसे भी उसको वापस जीवन की तरफ लाया। लेकिन लड़की की हालत बहुत खराब थी। होश तो कब का खो चुकी थी। इस घटना के कोई दो दिन बाद भारतीय सेना ने उन दोनों को बचाया और अस्पताल में भरती किया।

कोई और उस लड़की पर हाथ साफ़ न कर ले, उसके लिए कुंदन ने उसको अपनी पत्नी ‘अंजू’ के नाम से भरती किया था। कम से कम वह देह व्यापार करने वालो की कुदृष्टि से तो बची रहेगी। उसको तो अस्पताल से हफ्ते भर में छुट्टी मिल गई, लेकिन अंजू को होश नहीं आया। इस बीच उसको पता चला की वो बाप बनने वाला था।

‘साला! कैसी किस्मत! लड़की मिली भी तो पेट से!’ उसने सोचा।

लेकिन फिर उसको यह सुन कर राहत हुई की वो बच्चा उस प्राकृतिक आपदा का शिकार बन गया था। यह सुन कर उसको सच में दुःख हुआ। लेकिन यह तसल्ली भी हुई, की शायद अंजू का पति मर गया हो, और अब यह सुन्दर सी, अप्सरा सी दिखने वाली लड़की उसकी बन सके। लेकिन यह तसल्ली बहुत दिन न रही – अंजू जैसे होश में आने का नाम ही नहीं ले रही थी। महीनो बीत गए। कुंदन की उम्मीद तो कब की छूट गई थी। माँ बाप नहीं थे, तो किसी को क्या पड़ी थी की उसके लिए लड़की ढूंढता? ऐसा नहीं था की कुंदन की माली हालत में कोई बहुत ज्यादा खराबी थी – उसका गुजरा हो जाता था, उसको कोई बुरी आदत नहीं थी.. लेकिन उसके कसबे में एक बात प्रसिद्ध थी – वो बाद बेबुनियाद भी हो सकती है – और वो यह की कुंदन ‘उतना मर्द’ नहीं था। उसको अपने बारे में यह बात सुनने में आती रहती थी। उसको गुस्सा भी आता था, लेकिन बेचारा क्या करता? बस, खून के घूँट पी कर रह जाता।

इस अफवाह के कारण कई सारे सम्बन्धी नहीं चाहते थे की उनकी लड़की का रिश्ता कुंदन से हो जाय। कौन माँ बाप चाहेंगे की उनकी लड़की वैवाहिक सुख से वंचित रहे? किसी को न मालूम होता तो कोई बात नहीं, लेकिन जान बूझ कर कोई मक्खी तो नहीं निगलेगा न! अंजू उसके लिए एक आखिरी आस थी, लेकिन उसको भी होश नहीं आ रहा था। लेकिन आज जब अचानक ही नर्स सुषमा का फ़ोन आया, तो कुंदन की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा! निश्चित सी बात है, अंजू का कोई भी रिश्तेदार जीवित नहीं है.. होता तो अब तक कोई इश्तेहार न दे देता? ढूँढने न आता भला? कुंदन के अकेलेपन के दिन बस समाप्त होने ही वाले थे।

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awesome update
 
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आज ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, इसलिए सवेरे ही बहाना बना कर घर में रुकने का प्लान कर लिया। लेकिन, नीलम को कॉलेज जाना ही था – उसका कोई बहुत ज़रूरी लेक्चर था, जिसको वो बिलकुल भी मिस नहीं कर सकती थी। खैर, मैंने ठान ही ली थी, की आज घर में बैठूँगा, और नीलम के लिए कुछ अच्छा सा पका कर उसको दोपहर बाद सरप्राइज दूंगा।

खैर, दोपहर के निकट मैं टीवी लगाए चैनल इधर उधर कर रहा था। टीवी देखने की आदत नहीं थी, लेकिन समय काटने के लिए कुछ तो करना ही था। सैकड़ों चैनल तीन चार बार इधर उधर करने के बाद 'नेशनल जियोग्राफिक' चैनल पर रोक दिया – रोक क्या दिया, मेरी उंगलियाँ स्वतः रुक गईं। सामने टीवी स्क्रीन पर उत्तराखंड त्रासदी की एक डाक्यूमेंट्री चल रही थी। वो त्रासदी मेरे जीवन का सबसे बड़ा घाव थी – मेरे हाथ खुद ही रुक गए, और मैं देखने लगा। दिमाग कहीं और ही मंडरा रहा था। डाक्यूमेंट्री में क्या कहा जा रहा था, मुझे सुनाई नहीं दे रहा था – मेरा मष्तिष्क स्वयं ही सामने के चित्रों में कभी तो अथाह जलराशि की गड़गड़ जैसी आवाज़ भरता जा रहा था, तो कभी चोटिल व्यक्तियों की कराह की आवाज़! मन में तो हुआ की टीवी बंद कर दूं – लेकिन वो कहते हैं न, आदमी को अपने दुस्वप्नों से दो-चार होना चाहिए। और कुछ न हो, कम से कम तसल्ली तो मिल ही जाती है।

मैं टीवी बंद नहीं कर सका। बस – चित्र देखता गया। अचानक ही एक ऐसा चित्र आँखों के सामने आया जिसने मेरे ह्रदय की धड़कन कुछ क्षणों के लिए रोक दी। डाक्यूमेंट्री में एक अस्पताल का दृश्य दिखा रहे थे, जिसमे त्रासदी के शिकार लोग भरती किये गए थे। कैमरामैन ने अस्पताल के बड़े से हाल में अपना कैमरा एक कोने से दूसरे कोने तक चलाया था, लेकिन मुझे जो दिखा वो अत्यंत ही अकल्पनीय था।

उस अस्पताल के एक बिस्तर पर संध्या थी!!

कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। दृश्य में संध्या लगभग निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी हुई थी, नहीं – बैठी हुई थी। उसको एक नर्स ने पीछे से सहारा दिया हुआ, और सामने से एक और नर्स उसका कुछ तो मुआयना कर रही थी। एक क्षणिक दृश्य, एक झलक भर.. लेकिन मेरे दिलोदिमाग पर एक अमिट छाप लगाता हुआ! एकदम से रोमांच हो गया – शरीर से सारे रोंगटे खड़े हो गए। उत्तेजना में मेरी साँसे तेज हो गईं।

‘क्या सचमुच संध्या जीवित है? हे प्रभु! काश, ऐसा ही हो!’

अब मैं बहुत सचेत हो कर वो डाक्यूमेंट्री देखने लगा – हो सकता है पुनः दिखाएँ? लेकिन उस अस्पताल का दृश्य पुनः नहीं दिखाया गया। बीच में जब प्रचारों का समय आया तब मैंने डाक्यूमेंट्री का नाम नोट कर लिया। और वापस देखने लगा। अंत तक दोबारा वहां का दृश्य नहीं दिखाया गया। डाक्यूमेंट्री ख़तम होने पर मैंने कैमरामैन, फोटोग्राफर, निर्देशक और निर्माता समेत उस डाक्यूमेंट्री को बनाने में जितने भी सहयोगी थे, सबका नाम लिख लिया।

कुछ देर समझ ही नहीं आ सका की क्या करूँ! कहाँ से शुरू करूँ! कहीं ऐसा तो नहीं की पुराने दुःख के कारण मुझे संध्या दिखी हो! या वो लड़की संध्या न हो, कोई और हो? और फिर, नीलम ने भी तो देखा ही था न की संध्या मर चुकी थी। नीलम से पूछूं? नहीं नहीं! वो बेचारी को फिर से उस बुरी घटना की याद दिलाना बिलकुल ही गलत होगा। वैसे भी वो कितना कुछ झेल चुकी है। नहीं नहीं! नीलम से नहीं।

मैंने जल्दी से लैपटॉप में इन्टरनेट चला कर नेशनल जियोग्राफिक की वेबसाइट खोली, और उनके कॉर्पोरेट ऑफिस कॉल लगाई। अगले एक घंटे तक मैंने एक के बाद एक कई सारे लोगों से वहां बात करी, और सिलसिलेवार तरीके से उनको अपनी आप बीती सुनाई। अंततः, वहां ले एक बड़े अफसर ने मुझसे मिलने का वायदा किया और उसने अपना फ़ोन और ईमेल भी दिया। मैंने झटपट उसके ईमेल पर संध्या की तस्वीर के साथ, उस डाक्यूमेंट्री का पूरा विवरण लिख कर भेज दिया। नीलम के घर आने से पहले मुझे उनका कॉल आया की उन्होंने डाक्यूमेंट्री देखी है, लेकिन उनको नहीं लगता की वो लड़की संध्या है! क्योंकि ठीक से कुछ भी नहीं दिखा। लेकिन मैंने अपनी जिद नहीं छोड़ी। उन्होंने अंत में हार मान ली और डाक्यूमेंट्री बनाने वाली टीम से बात करने का वायदा किया। उन्होंने कहा की जो कुछ भी बन पड़ेगा, वो करेंगे।

कुछ देर में नीलम आ गई। कोई और समय होता, तो मैं सांझ को पहली बार मिलने के अवसर में अगले दस मिनटों में नीलम के साथ गुत्थम-गुत्था हो चुका होता। लेकिन आज मैं काफी शांत बैठा हुआ था – कम से कम नीलम को तो ऐसा ही लगा होगा। लेकिन, मुझे अगले कुछ मिनटों में मालूम होने वाला था की मैं अपनी पत्नी के बारे में काफी कम जानता था – और वो मुझको मुझसे ज्यादा समझती और जानती थी। नीलम ने मुझसे क्या बाते करीं, मुझे याद नहीं, लेकिन वो अन्दर चली गई। संभवतः चाय बनाने गई होगी।

मुझे नहीं मालूम की वो कब वापस आई और उसने क्या कहा – मेरी आँखें तो खुली हुई थीं लेकिन मन न जाने कितने ही कोसों दूर था। अचानक ही मुझे अपने चेहरे पर गरम साँसों और गालों पर नरम उँगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं एक झटके से वापस आया – नीलम मेरी आँखों में झाँक रही थी, मानों प्रयास कर रही हो की मेरे अन्दर क्या चल रहा था। वो प्रत्यक्ष मुस्कुराई, लेकिन वो चिन्तित थी। उसने कुछ कहा नहीं।

“जानू – कॉफ़ी!” उसने एक हाथ से मेरे गाल को छुआ, और उसके दूसरे में कॉफ़ी का मग था।

मैं उल्लुओं की भांति कभी उसकी तरफ तो कभी कॉफ़ी मग की तरफ देख रहा था। उसने फिर दोहराया, “कॉफ़ी..”

“ओह सॉरी! मैं किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।“

उसने कुछ कहा नहीं। बस मेरी बगल आकर मुझसे सट कर बैठ गई। हम दोनों ही शान्ति से कॉफ़ी पीने लगे। कॉफ़ी समाप्त होने के बाद नीलम ने अपना और मेरा मग सामने की टेबल पर रखा, और वापस आकर मेरी गोद में इस तरह बैठ गई जिससे की उसकी दोनों टाँगे मेरे इधर उधर रहें। गोद में बैठे बैठे ही उसने अपनी पहनी हुई टी-शर्ट उतार फेंकी। अन्दर कुछ भी नहीं पहना हुआ था – कोमल पहाड़ियों के मानिंद उसके सुन्दर स्तन तुरंत ही स्वतंत्र हो कर मेरे सम्मुख हो गए।

इस बात का असर मुझ पर बहुत ही सकारात्मक पड़ा – उस मुद्रा में मेरा लिंग तुरंत ही खड़ा हो कर उसकी नितम्बों के मध्य की घाटी में अटक सा गया। हम दोनों ने ही इस समय पजामे पहने हुए थे, इसलिए सीधा कनेक्शन नहीं हो सका – लेकिन नीलम मेरे ऊपर पड़ने वाले अपने इस प्रभाव पर हलके से मुस्कुराई। उसने प्यार से मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं, और लिंग के ऊपर अपने नितम्बों को घिसने लगी। कुछ ही देर में मैंने भी देखा की मैं स्वयं भी हलके हलके अपनी कमर चला कर उसका साथ देने लगा था।

हम दोनों ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। मैंने रह रह कर उसके होंठों, गालो, कन्धों और चूचकों पर चुम्बन लिया। इस बीच हम दोनों ही अपने अपने तरीके से तेजी तेजी घिस रहे थे। मेरा लिंग उत्तेजना के मारे फूल कर मोटा हो गया था।

थोड़ी देर में मैंने उससे कहा, “अगर मज़ा ही लेना है, तो ठीक से लेते हैं न...”

तो वो कुछ बोली नहीं, तो मैंने उसको अपनी गोद से उठाया और सामने खड़ा कर दिया। उसके बाद मैंने खुद उठा और अपना पजामा उतार दिया और फिर लगे हाथ नीलम का पजामा भी उसके शरीर से अलग कर दिया। उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। नीलम ने उस समय काले रंग की चड्ढी पहनी हुई थी। मैंने देखा की इतनी देर तक लिंग घिसने के कारण चड्ढी का नरम नरम कपड़ा उसके नितम्बों की दरार में अन्दर घुस गया था।

मैंने जब उसके चूतड़ों को सहलाया, वो एकदम से कांप गई। मैंने उसके चूतड़ों को कुछ देर तक सहला कर तीन चार बार दबाया और उसको कमर से खींच के फिर से अपने लिंग पर बैठा लिया। पहली ही बार की तरह इस बार भी नीलम अपनी कमर हिला रही थी। मैं उसी के ताल में उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगा। एकदम चिकनी जाँघें – मक्खन के जैसी! कुछ देर ऐसा ही करने के बाद मैंने एकदम से उसकी चड्ढी को पकड़ा और घुटनों तक खींच दिया। मैंने एक हाथ से अपने लिंग को साधा, और दूसरे से नीलम को फिर से अपनी गोद में बैठा लिया। उस समय मेरे लिंग के उसकी नग्न गुदा के स्पर्श से मुझे मन में आया की क्यों न गुदा मैथुन किया जाय? एक अजीब सा वासना पूर्ण अहसास था वो। मैंने अपने हाथों से उसके चूतड़ों को चौड़ा किया और उनके मध्य अपने लिंग को बैठाया।

“जानू.. जानू! उसमे नहीं! आपका बहुत मोटा है.. मर जाऊंगी मैं..”नीलम ने मिन्नत करी।

सचमुच! ध्यान ही नहीं रहा!

“ठीक है.. लेकिन, कभी ट्राई करते हैं!”

“हाँ.. लेकिन आज नहीं! प्लीज!”

“ओके” मैंने कहा और उसको लिटा कर, अपना मुँह उसकी योनि पर रख दिया।

लोग उत्तेजित योनि को ‘पाव रोटी’ की उपमा देते हैं.. मुझे यह पसंद नहीं आता। मुझे उत्तेजित योनि को मालपुए की उपमा देनी अच्छी लगती है। मालपुआ रसीला, और मीठा होता है। नीलम की योनि भी उसी तरह की हो रही थी। अब मेरा भी लिंग उत्तेजना के बल को सहन नहीं कर पा रहा था। लेकिन फिर भी फोरेप्ले तो करना होता ही है न! मैं अपनी जीभ उसकी योनि के भीता डाल कर अन्दर के स्वाद और वातावरण को महसूस कर रहा था, और उंगली से उसके भगनासे को छेड़ रहा था। नीलम उस शाम पहली बार स्खलित हुई। उसकी आवाजें अब कामुक सिसकारियों में बदल गई थी।

मैं फिर उसकी टाँगों के बीच आ गया। मैंने उसकी टाँगें उठा कर अपने कंधों पर रख ली और अपने लिंग को उसकी योनि के मुहाने पर टिका दिया। आप लोग उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। नीलम की कुछ ऐसी हालत थी उसकी जांघें मुड़ कर लगभग क्षैतिज हो गई थीं, और योनि लगभग ऊर्ध्व! मैंने तेजी से अपना लिंग उसकी योनि में डालना शुरु कर दिया। मैंने गुरुत्व के प्रभाव से सारा काम जल्दी हो गया। और फिर वही चिरंतन चली आ रही प्रक्रिया करने लगा। नीलम भी मस्त हो कर अपनी चुदाई का आनंद लेने लगी । मेरे होंठ उसके मुँह और होंठों को चूस रहे थे। करीब पंद्रह मिनट के बाद मैंने अपना वीर्य नीलम के अन्दर ही छोड़ दिया।

उस पूरे साहचर्य के दौरान मेरे मन में सिर्फ संध्या की ही छवि घूम रही थी...

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superb update
 
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