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Romance काला इश्क़! (Completed)

Assassin

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Saare patte saare raaz khul he gaye akhir :faint:
Ritika jo Rahul ke paise aur show off ki chakachaundh me dubi he uska roop bahar aaya, Bhabhi jo itne der se Maanu ke pichhe thi uska bhi kaaran pata chala aur manu ne uska kya karna he ye bhi bata diya. Tau ji ko ye shadi mehej ek samaajik rutba badhane ka jariya dikh rahi he, Pitaji ke liye unke bete ka unki baat na manna aur Ritika ki kundli ka dosh ka Kand chhupana ye daga laga to unhone Manu ko ghar se aur jaydaat se nikal diya.
Iss bich 3 log he khamosh rahe, ek Maa jiski khamoshi chubh gayi sabse jyada, 2ri Bhabhi jo kuchh na keh sakti inke bich, 3ri Ritika jo kehti thi "You are only mine!" aur aaj wahi chupchaap dekhti rahi !
Ek member jo yaha kahi nahi dikha wo he Chandar (shayad kisi KAAM Se bahar gaya hoga)
Saket ne dosti nibhayi he hai akhir me bhi, bhale he itne time tak Manu out of contact tha par usne yaari jarur dikhai he :applause:
Aur iss sab me agar koi Maanu ko sambhale tha to wo thi Anu madam :)
Dono ki Jindagi lagbhag ek he jaisi ho gayi he, dono ko unka pyar nahi mila, har jagah bewafai he mili, ghar se bhi thukra diya Maa baap ne, aur kismat he ya sanyog dono he ab ek dusre ka sahara he, jo bina bole samaz gaye ke kya hua tha gaon me.
Literally this story is making its own place in our hearts :love:
Will wait for another update
 

Chunmun

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Fabulous update.
Kya update hai bhai. Jhakkash..
Pta nahi kaise log hai mujhe to yahi dar lag raha tha ki maNu k ghar jate hi sab samajh jainge ki ye bahut bimar hai or sab halla karenge puchenge ki kya hua kaise hua. Lekin yaha gau mai to ulti ganga bah rahi hai.
Kisi ne bhi kuch nahi pucha.
Puchna to bur ki baat do mithe bol bhi kisi ne nahi kahe.
Kya majra hai ye kya sirf ye ki Ritika ki sadi mantri k bete se ho rahi hai ya koi or bhi baat hai.
Pta nahi kaise maa baap hai ye log.
Thoda bhi dil nahi pashijha in logo ka.
Bahut umda update tha.
Ab to manu k thik ho america jane ka intjar hai.
In logo ko bada naam or paise ka gurur ho gya hai.
Ab to Manu ko bhi ye sab hasil karna padega tabhi koi bat banegi.
Sab matlabi log hai.
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Madam is taking care of Manu, because Manu's condition is bad, but this work belongs to Ritu, only I am sad about this. By the way, what happened to all the oaths and promises that Ritu and Manu took together.
Ritu is crazy, she shouldn't do that. Today we also understood the problem of Ritu's mother. At first, Manu's relationship with Ritu and now the family is broken. Sanket is fully playing their friendship.
After reading today's update, it is understood that the matter has worsened further and the reason for all this is just a decision by Ritu. As with Manu, one should never be with anyone and at the end I would just like to say a Punjabi song...:heart::heart::heart:

Yaad teri fer aonni aa,
Rooz menu staonni aaa,
Yaad teri fer aonni aa,
Rooz menu staonni aaa,
Ankhaan band ker ky tera chehra nazar avey,
Roi jandiyan ney ankhiyaan tey hosh assi harry,
Kivey dassan ji rahy hain teri yaad tey saahaary,
Is ishq ney kinny aashiq marry...
 

Abhi32

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Waiting bro
 

Mohan575

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update 66

बस में बैठा ही था की अनु का फ़ोन आ गया, ये कॉल उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछने को किया था| "यार अभी तो निकला हूँ, बस में बैठा हूँ....आप चिंता मत करो!" पर उन्होंने मेरी एक ना सुनी और अगले 4 घंटे तक हम बात करते रहे| उनके पास जैसे बात करने के लिए आज सब कुछ था| जब और कुछ नहीं मिला तो उन्होंने Web सीरीज की ही बात छेड़ दी और मैं भी उनसे इस मुद्दे पर बड़े चाव से बात करने लगा| जैसे ही ग्यारह बजे तो मुझे नाश्ता करने को कहा, रास्ते के लिए उन्होंने थोड़ा नाश्ता बाँधा था वो मैंने खाया और मेरे साथ-साथ उन्होंने भी फ़ोन पर बात करते हुए खाया| जब बस एक जगह हॉल्ट पर रुकी तो मैंने केले खरीदे ताकि बाहर का खाने की बजाए फ्रूट्स खाऊँ| आखिर एक बजे मैं बस से उतरा और घर की तरफ चल दिया| मेरी दाढ़ी बढ़ी हुई, बालों का bun बना हुआ और दोनों हाथ जीन्स में घुसेड़ कर मैं बात करता हुआ चलता रहा| हाथ जीन्स की जेब में डालने का करण ये था की मैं अपने हाथों की कंपकंपी छुपा सकूँ, वरना घर वाले सब चिंता करते और मुझे वापस नहीं जाने देते|

अगर अनु ने फ़ोन कर के मुझे बातों में व्यस्त ना रखा होता तो घर की तरफ बढ़ते हुए मेरे मन में फिर वही दुखभरे ख्याल आने शुरू हो जाते| घर से दस कदम की दूरी पर मैंने उन्हें ये कह दिया की घर आ गया मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करता हूँ| कॉल काटते ही मेरे अंदर गुस्सा भरने लगा, मैं मन ही मन मना रहा था की रितिका मेरे सामने ना आये वरना पता नहीं मेरे मुँह से क्या निकलेगा| शुक्र है की घर का दरवाजा खुला था, माँ और ताई जी आंगन में बैठीं थीं| घर दुबारा रंगा जा चूका था, टेंट वगैरह का समान घर के बाहर और आंगन में पड़ा था, देख कर साफ पता चलता था की ये शादी वाला घर है| जैसे ही माँ और ताई जी ने मुझे देखा तो दस सेकंड तक वो दोनों मुझे पहचानने की कोशिश में लगी रहीं| जब उन्हें तसल्ली हुई तो ताई जी ने डांटते हुए पुछा; "ये क्या हालत बना रखी है? बाबा-वाबा बन गया है क्या?" मैं कुछ कहता उसके पहले ही माँ भी बरस पड़ी; "सूख कर काँटा हुआ है, इतना भी क्या काम में व्यस्त रहता है की खाने-पीने का ध्यान नहीं रहता?"

"बीमार हो गया था!" मैंने बस इतना ही कहा क्योंकि मैं जो सोच रहा था उसके विपरीत मेरे साथ हो रहा था| मुझे लगा था मेरी ये हालत देख कर वो रोयेंगे, चिंता करेंगे पर यहाँ तो मुझे और डाँटा जा रहा है! माना मैंने इतने महीने घर न आने की गलती की पर मेरी ये हालत देख कर तो माँ का दिल पसीज जाना चाहिए था! "माँ, पिताजी और ताऊ जी कहाँ हैं?" मैंने पुछा|

"तुझसे तो शादी के काम करने के लिए छुट्टी ली नहीं जाती तो अब किसी को तो काम करना होगा ना? वो तो शुक्र है की रितिका को तू घर छोड़ गया था वरना चूल्हा-चौका भी हमें फूँकना पड़ता! न्योता बाँटने गए हैं, कल आएंगे!" माँ के मुँह से रितिका का नाम सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं पाँव पटकता हुआ ऊपर पाने कमरे में चला गया| मेरे पास एक पिट्ठू बैग था जिसे मैंने अपने बिस्तर पर रखा और मैं धुप में छत की तरफ जा रहा था की तभी अनु का फ़ोन आ गया; "बात हो गई?"

"नहीं.... ताऊ जी और पिताजी घर से बाहर गए हैं! कल आएंगे उनसे बात कर के कल आ जाऊँगा|" मैंने मुंडेर पर बैठते हुए कहा|

"किसी से लड़ाई मत करना, आराम से बात करना और अगर जाने से मना करें तो कोई बात नहीं!" अनु ने प्यार से मुझे समझाते हुए कहा| मैंने उन्हें जान बुझ कर अभी जो हुआ उस बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं उम्मीद कर रहा था की शायद ताऊ जी का दिल जर्रूर पसीज जाएगा| अभी मैं बात कर ही रहा था की रितिका मुझे मेरी तरफ आती हुई दिखाई दी, मैंने गुस्से से उसे देखा और हाथ के इशारे से वापस लौट जाने को कहा पर वो नहीं मानी और मेरी तरफ आती गई| "मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करता हूँ!" इतना कह कर मैंने कॉल काटा|

"ये क्या हालत बना रखी है आपने?" ऋतू ने चिंता जताने का नाटक करते हुए कहा| शुरू से ही वो कभी इस तरह का नाटक नहीं कर पाई तो अब क्या कर पाती|

"ज्यादा नाटक मत चोद! मेरी इतनी ही फ़िक्र होती तो मुझे यूँ छोड़ नहीं देती!" मैंने उसे झाड़ते हुए कहा| पर उसके पर निकल आये थे इसलिए वो भी मेरे ऊपर बरसने लगी;

"अगर अपनी लाइफ के बारे में सोच कर एक डिसिशन लिया तो क्या गलत किया? तुम मुझे कभी स्टेबिलिटी नहीं दे सकते थे, राहुल दे सकता है!" आज उसने पहली बार मुझे आप की जगह 'तुम' कहा था और उसका ये कहना था की मेरा गुस्सा उबल पड़ा;

"तुझे पहले दिन से ही पता था की हमारे रिलेशनशिप में कितना खतरा है पर तब तो तुझे सिर्फ प्यार चाहिए था मुझसे?! अगर तूने मुझे ये बहाना दे कर छोड़ा होता और फिर घरवालों की मर्जी से शादी आकृति तो शायद कम खून जलता मेरा पर तूने मुझे सिर्फ और सिर्फ इसलिए छोड़ा क्योंकि तुझे एक अमीर घर का लड़का मिल गया जो तुझे दुनिया भर के ऐशों-आराम दे सकता है! तूने मुझे धोका सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए दिया है!" ये सच सुन कर वो चुप हो गई और सर झुका कर खड़े हो गई|

"अब बोल क्या लेने आई थी यहाँ?" मैंने गुस्से में पुछा|

मेरा गुस्सा देख उसका बुरा हाल था, फिर भी हिम्मत करते हुए वो बोली; "आप ...शादी तर प्लीज मत रुकना...कॉलेज से राहुल के दोस्त आएंगे और वो आपको देखेंगे तो....." रितिका ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

"मुझे यहाँ देख कर वो कहेंगे की ये तो चाचा-भतीजी हैं और कॉलेज में तो Lovers बन कर घुमते थे! Hawwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww" मैंने ऋतू को टोंट मारते हुए कहा| "ओह! तूने उसे मेरे बारे में कुछ नहीं बताया ना?" मैंने रितिका का मजाक उड़ाते हुए कहा|

giphytsk.gif

"अगर चाहूँ तो मुझे मिनट नहीं लगेगा सब सच बोलने में और फिर वो खेत में खड़ा पेड़ दिख रहा है ना?!" मैंने उस पेड़ की तरफ ऊँगली करते हुए उसे फिर ताना मारा| "पर मैं तेरी तरह गिरा हुआ इंसान नहीं हूँ! तुझे क्या लगा मैं यहाँ तेरी शादी में 'चन्ना मेरेया' गाने आया हूँ?!" इतना कह कर मैं नीचे जाने को पलटा तो रितिका को यक़ीन हो गया की मैं उसकी शादी में शरीक नहीं हूँगा और उसने मुझे; "थैंक यू" कहा पर मेरे मन में तो उसके लिए सिर्फ नफरत थी जो गाली के रूप में बाहर आ ही गई; "FUCK OFF!!!" इतना कह कर मैं नीचे आ गया|

मैंने रितिका को अनु के बारे में कुछ नहीं बताया, क्यों नहीं बताया ये मैं नहीं जानता| शायद इसलिए की उसे ये जानकर जलन और दुःख होगा या फिर शायद इसलिए की कल को वो सबसे मेरे और अनु के बारे में कुछ न कह दे, या फिर इसलिए की उसका गंदा दिमाग इस सब का गंदा ही मतलब निकालता और फिर मेरा गुस्सा उस पर फूट ही पड़ता|!



मैं नीचे आया तो सब मुझे ही देख रहे थे क्योकि छत पर जब मेरी आवाज ऊँची हुई तो वो सब ने सुनी थी पर मैं कहा क्या ये वो सुन नहीं पाए थे! उनके लिए तो मैं रितिका को झाड़ रहा था| भाभी ने कहा की मैं खाना खा लूँ पर मैं बिना खाये ही बाहर चल दिया| भूख तो लगी थी पर मन अब घर में रहने को नहीं कर रहा था| मैं ने बाहर से फ्रूट चाट खाया और अनु को फ़ोन किया| उसे मैंने जरा भी भनक नहीं होने दी की अभी क्या हुआ! बात करते-करते मैं एक बगीचे में बैठ गया, कुछ देर बाद मुझे संकेत मिला और मेरी हालत देख कर वो समझ गया की लौंडा इश्कबाजी में दिल तुड़वा चूका है! उसने मुझसे लड़की के बारे में बहुत पुछा और मैं उसे टालता रहा ये कह कर की उस बेवफा को क्या याद करना! खेर मैं शाम को घर आया तो किसी ने मुझसे कोई बात नहीं की, चाय पी और आंगन में लेटा रहा| तभी वहाँ चन्दर आ गया और मुझे तना मारते हुए बोला; "मिल गई छुट्टी?" मैं एकदम से उठ बैठा और उसे सुनाते हुए कहा; "मुझे तो छुट्टी नहीं मिली पर तेरी तो बेटी की शादी है तूने कौन से झंडे गाड़ दिए?! अभी भी तो कहीं से पी कर ही रहा है!" वो कुछ बोलने को आया पर ताई जी को देख कर चुप हो गया| वो चुप-चाप अपने कमरे में घुसा और भाभी को आवाज दे कर अंदर बुलाया|
रात के खाने के समय ताई जी ने फिर मुझे बात सुनाने के लिए बोली; "भाई क्या जमाना आ गया है, चाचा की शादी हुई नहीं और हमें भतीजी की शादी करनी पड़ रही है!"

"दीदी क्या करें, बाहर जा कर इसके पर निकल आये हैं, तो ये हमारी क्यों सुनेगा?!" माँ ने कहा| मैंने चुप-चाप खाना खाया और अपने कमरे में आ गया| सर्दी शुरू हो चुकी थी इसलिए मैं दरवाजा भेड़ कर लेटा था की भाभी हाथ में दूध का गिलास ले कर आईं| आते ही उन्होंने शाल उतार कर रख दी, उन्होंने साडी कुछ इस तरह पहनी थी की उनका एक स्तन उभर कर दिख रहा था| ब्लाउज के दो हुक खोल कर वो मुझे अपना क्लीवेज दिखते हुए गिलास रखने लगीं| फिर मेरी तरफ अपनी गांड कर के वो नीचे झुकीं और कुछ उठाने का नाटक करने लगी| पर मेरा दिमाग तो उनकी सौतेली बेटी के कारन पहले से ही आउट था! मैं एक दम से उठ बैठा और उनका हाथ पकड़ कर अपने पास खींच कर बिठाया| भाभी के चेहरे पर बड़ी कातिल मुस्कान थी, वो सोच रहीं थी की आज उन्हें मेरा लंड मिल ही जायेगा जिसके लिए वो इतना तड़पी हैं!


"क्यों करते हो ये सब?" मैंने उन्हें थोड़ा डाँटते हुए कहा|

"मैंने क्या किया?" भाभी ने अपनी जान बचाने के लिए कहा|

"ये जो अपने जिस्म की नुमाइश कर के मुझे लुभाने की कोशिश करते रहते हो!" मैंने भाभी के ब्लाउज के खुले हुए हुक की तरफ ऊँगली करते हुए कहा| ये सुन कर उनकी शर्म से आँखें झुक गई;

"बोलो भाभी? क्यों करते हो आप? आपको लगता है की इस सबसे मैं पिघल जाऊँगा और आपके साथ सेक्स करूँगा?!" अब भाभी की आँख से आँसू का एक कतरा उनकी साडी पर गिरा| ये देख कर मैं पिघल गया और समझ गया की बात कुछ और है जो भाभी मुझे बता नहीं रही;

"मुझे अपना देवर नहीं दोस्त समझो और बताओ की बात क्या है? क्यों आपको ये जिल्लत भरी हरकत करनी पड़ती है?" ये सुन कर भाभी एकदम से बिफर पड़ीं और रोने लगी, रोते-रोते उन्होंने सारी बात कही; "तुम जानते हो न अपने भैया को? बताओ मुझे और कुछ कहने की जर्रूरत है? इतने साल हो गए शादी को और मैं आज तक माँ बन नहीं पाई, बताओ क्यों? सारा दिन नशा कर-कर अपना सारा किस्म खराब कर लिया तो ऐसे में मैं क्या करूँ? कहीं बाहर इसलिए नहीं जाती की पिछली बार की तरह बदनामी हुई तो ये सब मुझे मौत के घाट उतार देंगे! इसलिए मैंने तुम्हारी तरफ आस से देखना शुरू किया! तुम्हारी तरफ एक अजीब सा खिचाव महसूस होता था| तुम्हें बचपन से बड़े होते देखा है, भले ही अब माँ बनने की उम्र नहीं मेरी कम से कम तुम्हें एक बार पा लूँ तो दिल को सकून मिले!"

“भाभी जो आपके साथ हुआ वो बहुत गलत है पर ये सब करना इसका इलाज तो नहीं? आप डाइवोर्स ले लो और दूसरी शादी कर लो!" मैंने भाभी को दिलासा देते हुए कहा|

"नहीं मानु! ये मेरी दूसरी शादी है और अब तीसरी शादी करना या करवाना मेरे परिवार के बस की बात नहीं! मेरे लिए तो तुम ही एक आखरी उम्मीद हो, रहम खाओ मुझ पर! तुम्हारा क्या चला जायेगा अगर मुझे दो पल की खुशियाँ मिल जायनेंगी?!" उन्होंने फिर रोते हुए कहा|

"नहीं भाभी मैं ये सब नहीं कर सकता!" मैंने उनसे दूर होते हुए कहा|

"क्यों?" भाभी ने अपने आँसू पोछते हुए कहा|

"क्योंकि मैं आपसे प्यार नहीं करता!"

"तो थोड़ी देर के लिए कर लो!" उन्होंने मिन्नत करते हुए कहा|

"नहीं भाभी ....मेरे साथ जबरदस्ती मत करो!"

"एक बार मानु! बस एक बार...."

"भाभी प्लीज चले जाओ!" मैंने उन्हें थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा क्योंकि उनकी आँखों में मुझे वासना नजर आ रही थी| भाभी की बातों से उनका दर्द मैं समझ सकता था पर एक उलझन थी, उन्हें बच्चा चाहिए या फिर अपने तन की आग मिटानी है| मेरा उनके साथ कुछ भी करना बहुत गलत होता इसलिए मैंने उनके साथ कुछ नहीं किया| भाभी उठ के जाने लगी तो मैंने कहा; "भाभी.... ताई जी से कहो की चन्दर को नशा मुक्ति केंद्र भेजे, थोड़ी तकलीफ होगी पर वो धीरे-धीरे सम्भल जायेगा| फिर हो सकता है की आपके रिश्ते उसके साथ सुधर जाएँ और प्लीज किसी और के साथ कुछ गलत करने की सोचना भी मत| आपकी इज्जत का बहुत मोल है, सिर्फ आपके लिए ही नहीं बल्कि इस घर के लिए भी| मैं भी दुआ करूँगा की आप को अपने पति से वो प्यार मिले जिस पर आपका हक़ है|" भाभी ने पहले हाथ जोड़ कर मूक माफ़ी माँगी और फिर हाँ में सर हिलाया और वो चली गईं| उनके जाने के बाद मुझे खुद पर गर्व हुआ क्योंकि मैं आज चाहता तो गलत रास्ते पर जा सकता था पर मैंने ऐसा नहीं किया, मैं लेट गया और चन्दर के बारे में सोचने लगा|

चन्दर बचपन से ही गलत संगत में रहा, पढ़ाई-लिखाई में उसका मन नहीं था क्योंकि वो जानता था की आगे उसे जमींदारी का काम संभालना है| उसे सुधरने के लिए घरवालों ने उसकी शादी जल्दी करा दी, ये सोच कर की वो सुधर जायेगा और वो कुछ सुधरा भी| पर फिर भाभी को वो प्यार नहीं दे पाया जो उसे देना चाहिए था| दिन भर खेत के मजदूरों के साथ गांजा फूकना शुरू किया तो भाभी पर से उसका ध्यान हटता रहा| फिर भाभी पेट से हुई, घर वाले लड़के की उम्मीद करने लगे और जब लड़की पैदा हुई तो सब ने उन्हें ही दोषी मान लिया| अब ऐसे में उन्हें खेत में काम करने वाले एक लड़के से प्यार हुआ और फिर वो काण्ड हुआ! उस काण्ड के बाद चन्दर के दोस्तों ने उसका बड़ा मजाक उड़ाया और इसी के चलते उसकी शादी फिर से करा दी| नई वाली भाभी का पति गौना होने से पहले ही मर गया था तो उनके लिए तो ये अच्छा मौका था पर उन्हें क्या पता की उन्हें एक चरसी के गले बाँधा जा रहा है, पता नहीं उसने नई भाभी को कितना प्यार दिया, या दिया भी की नहीं! बचपन से ही उसे इतने छूट दी गई थी जिसके कारन वो ऐसा हो गया| मेरे पैदा होने के बाद ना चाहते हुए भी घर में उसका और मेरा comparison शुरू हो गया और शायद इसी के चलते उसने किसी की परवाह नहीं की| खेतों में जाना छोड़ दिया, जो काम मेरे पिताजी को संभालना पड़ा| शहर वो सिर्फ और सिर्फ एक ख़ास 'माल' लेने जाता था, इस बहाने अगर किसी ने उसे कोई काम दे दिया तो वो करता या कई बार वो भी नहीं करता| ताऊ जी और पिताजी मजबूरी में सारा काम सँभालते थे क्योंकि उन्हें चन्दर से अब कोई उम्मीद नहीं थी|



यही सब सोचते-सोचते सुबह हुई और मैं जल्दी से उठ गया, छत पर योग किया और वॉक के लिए बाहर निकल गया| मेरे वापस आने तक पिताजी और ताऊ जी भी आ चुके थे|

ताऊ जी: ये क्या हालत बना रखी है अपनी?

उन्होंने भी सब की तरह वही सवाल दोहराया|

मैं: जी बीमार हो गया था|

पिताजी: तो यहाँ नहीं आ सकता था? फ़ोन कर देता हम लेने आ जाते? यहाँ तेरी देखभाल अच्छे से होती|

मैं: आप सब को शादी-ब्याह की तैयारी करनी थी ऐसे में मुझे अपनी तीमारदारी करवाना सही नहीं लगा| अभी मैं ठीक हूँ|

पिताजी: बहुत अक्ल आ गई तुझ में? ये कुछ पत्रियाँ हैं इन्हें आज बाँट आ और वापसी में टेंट वाले को बोलता आइओ की वो कल आजाये|

पिताजी ने मुझे शादी का काम पकड़ा दिया जो मैं कर नहीं सकता था क्योंकि उस घर में हर एक क्षण मुझे सिर्फ और सिर्फ दर्द दे रहा था|

मैं: पिताजी ....आप सब से कुछ बात करनी है|

ताऊ जी: बोल? (उखड़ी हुई आवाज में)

मैं: मुझे एक प्रोजेक्ट मिला है जिसके लिए मुझे अमेरिका जाना है और फिर उसी कंपनी ने मुझे बैंगलोर में जॉब भी ऑफर की है|

मेरा इतना कहना था की ताऊ जी ने एक झन्नाटे दर तमाचा मेरे दे मारा|

ताऊ जी: चुप चाप ब्याह के कामों में हाथ बँटा, कोई नहीं जाना तूने अमेरिका!

मैं: ताऊ जी ये मेरी लाइफ का सवाल है!

पिताजी: भाई साहब ने कहा वो सुनाई नहीं दे रहा तुझे? कहीं नहीं जायेगा तू! जितना उड़ना था उतना उड़ लिया तू, अब घर बैठ!

मैं: पिताजी विदेश जाने का मौका सब को नहीं मिलता, मुझे मिला है और मैं इसे गंवाना नहीं चाहता| (मैंने थोड़ा सख्ती दिखते हुए कहा|)

ताऊ जी: तुझे विदेश जाना है ना, तू शादी कर मैं भेजता हूँ तुझे विदेश!

मैं: ताऊ जी आपको पता है की एक तरफ की टिकट कितने की है? 90,000/- रूपए है! दो लोगों का आना-जाना 4 लाख रूपए! वहाँ रहना-खाना अलग! एक ट्रिप के लिए सब कुछ बेचना पड़ जायेगा आपको!

ताई जी: तुझे शर्म नहीं आती जुबान लड़ाते?

ताऊ जी: नहीं ...नहीं...नहीं...बात कुछ और है! ये विदेश जाना इसका बहाना है, असल बात कुछ और है?

ताऊ जी कुछ-कुछ समझने लगे थे पर मुझे तो उनसे सच छुपाना था इसलिए मैं बस इसी बात को पकड़ कर बैठ गया|

मैं: नहीं ताऊ जी, मैं आपसे सच कह रहा हूँ| ये देखिये....

ये कहते हुए मैंने उन्हें फ़ोन में ई-मेल दिखाई जो उनके समझ तो आनी नहीं थी, इसलिए मैंने ऋतू को इशारे से बुलाया और उसे पढ़ने को कहा| उसने साड़ी मेल पढ़ी और ये भी की वो मेल अनु ने भेजा है|

रितिका: जी दादा जी|

पिताजी: चल एक पल को मान लेता हूँ पर तू कुछ दिन रुक कर भी जा सकता है ना? रितिका क्या तारिख लिखी है इसमें?

रितिका: जी 29 तरीक!

ताऊ जी: अब बोल?

मैं: (एक गहरी साँस लेते हुए) आपको सच सुनना ही है तो सुनिए, में इस शादी से ना खुश हूँ! इस Idiot को पढ़ाने के लिए मैंने क्या-क्या पापड़ नहीं बेले! वो पंडित याद है ना आपको जिसे आपने इसके दसवीं के रिजल्ट वाले दिन बुलाया था, उसे मैंने पूरे 5,000/- रुपये खिलाये थे ताकि वो आपके सामने झूठ बोले की इसके ग्रहों में दोष है, वरना आप तो इसकी शादी तब ही करा देते! और ये वहाँ शहर में उस मंत्री के लड़के से इश्क़ लड़ा रही थी! आप सब को पता है न उस मंत्री के बारे में की उसने क्या किया था? यही सब करने के लिए इसे शहर भेजा था आपने? शादी के बाद तो अब इसे वो मंत्री पढ़ने नहीं देगा!

मैंने जानबूझ कर रीतिका को बलि का बकरा बनाया, इधर मेरी बात सुन ऋतू का सर शर्म से झुक गया क्योंकि मैंने जो कहा था वो सच ही था! वहीं मेरे मुँह से ये सुनते ही ताऊ जी ने अपना सर पकड़ लिया और पिताजी समेत बाकी सभी लोग मुझे देखने लगे|

ताई जी: तो इसी लिए तो कल रितिका पर बरस रहा था, हमने कितना पुछा पर वो कुछ नहीं बोली बस रोती रही!

वो आगे कुछ और बोलतीं पर ताऊ जी ने हाथ दिखा कर उन्हें चुप करा दिया और खुद बोले;

ताऊ जी: तूने हम लोगों से दगा किया?

मैं: दगा कैसा? आप सब को प्यार से जब समझाया की इसे आगे पढ़ने दो तब आप सब ने मुझे ही झाड़ दिया तो मुझे मजबूरन ये करना पड़ा| मुझे क्या पता था की शहर जा कर इसे हवा लग जायेगी और ये ऐसे गुल खिलाएगी?!

पिताजी: कुत्ते! (पिताजी ने मुझे जीवन में पहली बार गाली दी|)

मैं: आप सब को मैं ही गलत लग रहा हूँ? इसकी कोई गलती नहीं? दो साल पहले तक तो आप सब इसे छोटी सी बात पर झिड़क दिया करते थे और आज अचानक इतना प्यार क्यों?

ताई जी: इसकी हिमायत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसके कारन हमें इतने बड़े खानदान से नाम जोड़ने का मौका मिल रहा है| समाज में हमें वो समान वापस मिलने वाला है जो इसकी माँ के कारन छीन गया था| तूने ऐसा कौन सा काम किया है?

मैं: ताई जी आपको बस घर के मान सम्मान की पड़ी है? कल से आया हूँ आप में से किसी ने भी ये पुछा की मेरी तबियत कैसी है? मुझे आखिर क्या बिमारी हुई थी? दो पल किसी ने प्यार से पुचकारा मुझे? ऐसा कौन सा जादू चला दिया इसने यहाँ रह कर?

ताऊ जी: बस कर! मैं तुझसे बस एक आखरी बार पूछूँगा, तू यहाँ रह कर शादी में शरीक होगा या फिर तुझे विदेश जाना है?

मैं: मैं विदेश जाना चाहता हूँ|

ताऊ जी: ठीक है, अपना सामान उठा और निकल जा मेरे घर से! दुबारा यहाँ कभी पेअर मत रखिओ, मैं तुझे जायदाद से भी बेदखल करता हूँ|

ताऊ जी का फैसला सुन कर मुझे लगा की मेरे माँ-बाप रोयेंगे या मुझे समझायेंगे पर पिताजी ने गरजते हुए कहा;

पिताजी: सामान उठा और निकल जा!

मैं आँखों में आँसू लिए ऊपर अपना बैग लेने चल दिया| बैग ले कर आया और एक-एक कर सबके पेअर छुए पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा| जब पिताजी के पाँव छूने आया तो उन्होंने मुझे दकके मारते हुए घर से निकाल दिया और दरवाजे मेरे मुँह पर बंद कर दिए| मैं अपने आँसू पोछते हुए चल दिया, आज मन बहुत दुखी था और खून के आँसू रो रहा था और इस सब का जिम्मेदार अगर कोई था तो वो थी रितिका! ना वो मेरी जिंदगी में जबरदस्त घुस आती और तबाही मचा कर मेरा हँसता-खेलता जीवन उजाड़ती! बस स्टैंड पर पहुँचने से पहले मुझे संकेत मिला और मैंने उससे मदद मांगते हुए कहा; "यार एक मदद कर दे! देख मुझे कुछ जर्रूरी काम से जाना पड़ रहा है तू प्लीज शादी के काम संभाल लिओ!" उस मिनट नहीं लगा कहने में की चिंता मत कर पर वो समझ गया की बात कुछ और है| पर मैंने उसे कहा की मैं बाद में बता दूंगा, फिलहाल वो मेरे घर में होने वाले कार्यक्रम को संभाल ले! उसकी यहाँ बहुत जान-पहचान थी और मैं जानता था की वो आसानी से सारा काम संभाल लेगा| मैं बस में बैठ कर वापस लौटा, घर आते-आते 2 बज गए थे और जैसे ही बैल बजी तो अनु ने ख़ुशी-ख़ुशी दरवाजा खोला| पर जब मेरी आँसुओं से लाल आँखें देखीं तो वो सब समझ गई और एकदम से मेरे गले लग गई और रो पड़ी| मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और हम घर के अंदर आये| मैंने रितिका की शादी की बात छोड़ कर उसे सब बता दिया और वो भी बहुत दुखी हुई और कहने लगी की मैंने क्यों जबरदस्ती अमेरिका जाने की जिद्द की!

"वहाँ अब मेरी कोई जर्रूरत नहीं थी, मुझे अपनी जिंदगी में अब आगे बढ़ना है और वो सब मुझे अब भी इसी तरह बाँध के रखना चाहते हैं| मैं उड़ना चाहता हूँ पर उनकी सोच अब भी शादी पर अटकी हुई है! दो पल के लिए प्यार से बात कर के समझाते तो शायद मैं जाने से मना भी कर देता पर सब को मुझ पर सिर्फ गुस्सा ही आ रहा था| कल से किसी ने ये तक नहीं पुछा की मुझे बिमारी क्या हुई थी? मेरी अपनी माँ तक ने मेरा हाल-चाल नहीं लिया| तो अब क्या उम्मीद करूँ? अब या तो उनके हिसाब से चलो और जो वो कहें वो करो तो सब ठीक है पर जहाँ अपनी मर्जी चलानी चाही तो मुझे घर से निकाल दिया| मेरे अपने पिताजी ने मुझे धक्के मार कर घर से निकाल दिया|" ये कहते हुए मेरी आँखें फिर नम हो गईं| अनु ने आगे बढ़ कर मेरे आँसू पोछे और मुझे अपने सीने से लगा कर पुचकारा|


Ritu ko ab bhi sirf aur sirf apni shaadi ki tension hai
Manu jiye ya mare us se ritika ko koi matlab nahi

Ab to ye lag raha hai ki ritika ko Manu se kabi pyaar tha hi nahi
Ritika ko apni padayi karni thi aur apni life ko enjoy karna tha

Manu uske liye apni ayashi puri karne ka jariya tha
 
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