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Fantasy क्या यही प्यार है

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
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354

सत्तावनवाँ भाग


लड़की देखने का कार्यक्रम पूरा हो जाने के बाद हम छहों बाहर आ गए। मैं महिमा को मुड़ मुड़ कर देख रहा था। जिसके चेहरे पर हमेशा वाली चिर-परिचित मुस्कान थी। पार्क से निकलकर हम लोग बाहर आ गए और स्टैंड के पास जा कर खड़े हो गए तो रेशमा ने कहा।

रेशमा- देखा नयन। इसे कहते हैं किस्मत। तुमने कितना ही महिमा से दूर भागने का प्रयत्न किया, परंतु आज देखो किस्मत ने तुम्हें महिमा के पास पहुँचा ही दिया।

पल्लवी- तुम एकदम सही बोल रही हो। महिमा की बात एकदम कही थी कि अगर किस्मत में नयन लिखा होगा तो वो उसे जरूर मिलेगा और देखो नयन महिमा की ही किस्मत में था। लेकिन ये अपनी घंटी के पीछे भाग रहा था और उस घंटी के पीछे कितनी परेशानी हुई इसको।

मैं- हाँ यार। सही कहा तुम दोनों ने। दिल की घंटी बजने के इंतजार में अनामिका ने तो मेरा तबला ही बजा दिया था। लेकिन अब जो होगा अच्छा ही होगा। मैं महिमा को बहुत प्यार दूँगा। इतना प्यार कि उसके 5 साल के इंतजार का दर्द खत्म हो जाए।

महेश- होना भी ऐसा ही चाहिए अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं अबकी बार तेरा हरमुनिया, बाँसुरी, और पता नहीं क्या क्या बजा दूँगा समझा।

महेश की बात सुनकर सब हँसने लगे। रश्मि ने मुझसे पूछा।

रश्मि- तुम खुश तो हो न नयन।

मैं- हाँ मैं बहुत खुश हूँ। या यूँ कहूँ कि आज से मेरे खुशहाल जीवन की शुरूआत हो गई है। जिसमें हरदम खुशी ही खुशी होगी। अच्छा पल्लवी महिमा का मोबाइल नम्बर मुझे दे देना।

पल्लवी- क्या बात है। मतलब आज से बात-चीत शुरू।

पल्लवी की बात सुनकर सब मुस्कुराने लगे। फिर हम लोंगों ने वहीं लगे थेले पर कुछ खाया-पिया। फिर सभी अपने अपने घर के लिए निकल गए। मैं और अभिषेक भी कमरे पर आ गए। महेश पल्लवी के साथ मे चला गया। मैंने कमरे पर आकर पापा को इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी और बोल दिया कि आगे कैसे और क्या करना है वो अपनी तरफ से देख लें।

फिर महिमा और मेरी बात-चीत शुरू हो गई। धीरे धीरे मेरा भी प्यार महिमा के लिए बढ़ता रहा। इस बीच हमने कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा भी दे दी थी। संजू से भी दो- तीन बार मुलाकात हुई थी। मैंने अपने सभी दोस्तों और महिमा और खुशबू को भी संजू से मिलवा दिया था।

मैं-महिमा, अभिषेक-खुशबू और महेश-पल्लवी साथ में घूमने के लिए जाते। साथ में रेशमा और रश्मि भी रहती थी। 10 दिन बाद महेश की छुट्टी खत्म हो गई थी तो वह लखनऊ वापस चला गया था। ग्यारवें दिन अभिषेक के घर से फोन आया जो उसके पापा का था।

अभिषेक- नमस्ते पापा। कैसे हैं आप।

अ. पापा- मैं ठीक हूँ बेटा। तुम कैसे हो।

अभिषेक- मैं ठीक हूँ पापा। मम्मी और पायल कैसी हैं।

अ.पापा- वो दोनों भी ठीक हैं। तुमसे एक बात पूछनी है।

अभिषेक- हाँ पापा कहिए न।

अ.पापा- तुम्हारा वो दोस्त है न। संजू। जो उस दिन तुम लोगों के साथ घर पर आया था। वो कैसा लड़का है।

अभिषेक- उसको तो मैं ज्यादा अच्छी तरह से नहीं जानता, क्योंकि उससे महीने भर की ही जान-पहचान है अपनी, लेकिन जितना भी उसके बारे मैं जान पाया हूँ बो अच्छा लड़का है।

अ.पापा- अपनी पायल के लिए कैसा रहेगा वो लड़का।

अभिषेक पापा की बात सुनकर मेरी तरफ देखने लगा। मैंने उससे पूछा तो उसने स्पीकर चालू कर दिया और अपने पापा से बोला।

अभिषेक- आपके दिमाग में ये ख्याल कैसे आ गया पापा उसको लेकर।

अ.पापा- बात ये है बेटा कि सुबह उसके पापा मम्मी और उसकी बहन घर आए हुए थे। वही बोल रहे थे कि वो पायल को अपनी बहू बनाना चाहते हैं। इसलिए मैंने इसके बारे में तुमसे पूछना जरूरी समझा, क्योंकि तुम पायल के भाई हो और उस लड़के को भी जानते हो।

अभिषेक- क्या। उसने पायल के लिए अपना रिश्ता भिजवाया है। साथ में संजू भी आया था क्या।

अ.पापा- नहीं वो नहीं आया था, वो अपने मम्मा पापा को घर के पास छोड़कर कहीं चला गया था।

अभिषेक- ठीक है पापा। मैं आपसे जल्द ही इसके बारे में बात करता हूँ। पहले संजू से तो बात कर लूँ।

इतना कहने के बाद अभिषेक ने फोन रख दिया। उसके चेहरे पर थोड़े गुस्से वाले भाव थे। अभिषेक ने मुझे देखते हुए कहा।

अभिषेक- ये संजू अपने आपको समझता क्या है। बिना मुझसे पूछे मेरी बहन के लिए अपना रिश्ता भेज दिया।

मैं- तू इतना नाराज क्यों हो रहा है। उसने बस रिश्ता भेजा है। मानना या न मानना चाचा चाची और पायल का काम है।

अभिषेक- लेकिन फिर भी एक बार मुझसे बोल तो सकता था न इसके बारे में।

मैं- देख अभिषेक। वो सीधे नहीं गया था पायल का हाथ माँगने चाचा चाची के पास। उसने अपने मम्मी पापा को भेजा था। इसका मतलब समझता है तू उसने अपने मम्मी पापा को अपनी पसंद बताई और उसके मम्मी पापा खुद गए रिश्ता लेकर। तो इसमें गलत तो नहीं है। अगर वो पायल को खुद से जाकर कुछ बोलता तो वो गलत होता, लेकिन उसने चाचा चाची के पास अपने मम्मी पापा को भेजा।

अभिषेक- तुझे क्या लगता है। मुझे पापा को क्या जवाब देना चाहिए।

मैं- वैसे देखा जाए तो संजू बुरा लड़का नहीं है। हम लोगों की ही तरह अच्छे स्वभाव वाला जान पड़ता है। हमने उसके साथ कुछ वक्त भी साथ गुजारा है। इसलिए वो अजनबी भी नहीं है। साथ में नौकरीपेशा भी है। तो पायल के लिए संजू के रिश्ते में कोई बुराई भी नहीं नजर आती। मैं तो यही कहूँगा की हाँ बोल दे चाचा चाची को, लेकिन उसके पहले संजू को बुलाकर उससे बात करनी चाहिए हमें।

अभिषेक ने मेरी बात मानकर संजू के पास फोन किया और थोड़ा नाराजगी और गुस्से के साथ बात की।

अभिषेक- संजू कहाँ हो तुम। मुझे तुमसे अभी मिलना है। ये तुमने जो रायता फैलाया है उसके बारे में बात करनी है।

संजू- पहले मेरी बात सुनो अभिषेक। तुम जैसा समझ रहे हो वैसा कुछ भी नहीं है।

अभिषेक- मैं बिलकुल सही समझ रहा हूँ। फोन पर कोई बात नहीं होगी। जो भी बात करनी है मिलकर करो।

अभिषेक की बात सुनकर संजू के मन में थोड़ा भय तो पैदा हो ही गया। उसने कुछ ही देर में कमरे पर आने की बात कहकर फोन रख दिया। अभिषेक ने भी फोन रख दिया। फोन रखने के बाद अभिषेक ने कहा।

अभिषेक- तुम क्या बोलते हो नयन। क्या इस बारे में महेश से भी बात करनी चाहिए।

मैं- हाँ क्यों नहीं। उससे तो बात करनी ही चाहिए। क्योंकि उसकी भी राय जाननी बहुत जरूरी है।

अभिषेक ने तुरंत महेश को फोन लगाया। महेश ने फोन उठाते हुए कहा।

महेश- हाँ भाई बोल। मन नहीं लग रहा क्या तेरा मेरे बिना। अभी कल ही आया और आज तूने फोन कर दिया।

अभिषेक- कुछ ऐसा ही समझ ले यार। अभी कुछ जरूरी बात करने के लिए तुझे फोन किया है।

महेश- फिर कोई लफड़ा हो गया क्या। साले तुम दोनों एकदम पनौती हो। हमेशा कुछ न कुछ होता रहता है तुम दोनों के साथ। साला बहुत अच्छे दोस्त मिले हैं मुझे। एक परेशानी खत्म नहीं होती और दूसरी आ जाती है।

अभिषेक- अपनी बकचोदी बंद करेगा पहले। मेरी बात तो सुन ले पहले। ये बता संजू तुझे कैसा लगता है।

महेश- देख बे। मैं उस टाइप का लड़का नहीं हूँ बताए देता हूँ। मेरे लिए पल्लवी ही ठीक है।

अभिषेक- अबे बकवास बंद कर अपनी। उसने पायल के लिए अपना रिश्ता भिजवाया है घर पर। पापा उसके बारे में मेरी राय जानना चाहते हैं। तू बता मुझे क्या करना चाहिए।

महेश- अच्छा तो ये बात है। देख भाई। लड़का तो मुझे ठीक ही लगा। देखने भी अच्छा खासा है। नौकरीपेशा भी है। मेरी तरफ से तो तुझे हाँ ही करना चाहिए। बाकी तू एक बार नूनू से भी पूछ ले। वो इस बारे में क्या बोलता है।

अभिषेक- नयन भी यही बोल रहा है जो तुम बोल रहे हो।

महेश- हम दोनों की तरफ से तो हाँ है भाई। बाकी एक बार तू भी इस बारे में अच्छे से सोच ले। संजू से बात करी तुमने इस बारे में।

अभिषेक- हाँ कुछ देर में वो आ रहा है कमरे पर। तब बात करूँगा उससे।
महेश- चल ठीक है अब फोन रखता हूँ। कुछ काम निपटाना है।

इतना कहकर महेश ने फोन रख दिया। लगभग आधे घंटे बाद संजू अपनी कार से हमारे कमरे पर आया। आते ही उसने कहा।

संजू- देखो मारना मत। पहले मेरी पूरी बात सुन लेना। उसके बाद ही कुछ करना।

अभिषेक- ठीक है बोलो तुम।

संजू- उस दिन जब अयोध्या से लौटते समय मैंने तुम लोगों से बताया था कि मुझे एक लड़की पसंद आ गई है कुछ दिन पहले तो वो पायल ही थी जिसके बारे में मैंने तुम दोनों को बताया था। उस दिन जब में तुम्हारे साथ तुम्हारे घर गया था तो मैंने पायल को देखा। पायल पहली ही नजर में मुझे पसंद आ गई थी। लेकिन अनामिका का मामला सामने था और उसे समाप्त हो जाने के बाद ही मैं इस बारे में विचार करना चाहता था, मैंने सोच लिया था कि अगर अनामिका के जाल में मैं फँस गया तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर अनामिका का मामला निपट गया तो मैं पायल से शादी करूँगा, इसलिए मैंने अपने मम्मी पापा को तुम्हारे घर भेजा।

अभिषेक- और तुमने मुझे इस बारे में बताना भी जरूरी नहीं समझा।

संजू- मैं तुम्हें बताना चाहता था, लेकिन मैंने सोचा कि अगर मेरे मम्मी पापा तुम्हारे मम्मी पापा से सीधे बात करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। इसीलिए मैंने तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं की।

अभिषेक- पापा को फोन आया था मुझे। उन्होंने मुझसे मेरी राय माँगी है। और मुझे लगता है कि तुम पायल के लिए सही लड़के नहीं हो।

संजू- मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ। मैं ये नहीं कहता कि मैं पायल को हमेशा खुश रखूँगा, ये कहना गलत हो जाएगा। लेकिन तुम्हें ये विश्वास जरूर दिलाता हूँ कि मैं पायल को खुश रखने की पूरी कोशिश करूँगा। उसे मेरे घर में किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होगी। उसे मैं वो सब देने की पूरी कोशिश करूँगी जिसकी हकदार एक पत्नी होती है। मानता हूँ कि मैं एक अच्छा लड़का नहीं हूँ तुम्हारी नजर में, लेकिन मैं इतना बुरा भी नहीं हूँ। पायल तुम्हारी बहन है अभिषेक। तुम हमेशा उसका भला ही सोचोगे। मुझे तुम्हारे इनकार से कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन एक बार मेरी बातों पर गौर जरूर करना।

अभिषेक- ठीक है मैं सोचूँगा इस बारे में।

संजू- ठीक है मैं चलता हूँ अब। तुम्हारा जो भी फैंसला होगा वो मुझे दिल से स्वीकार होगा अभिषेक।

इतना कहकर संजू कमरे से बाहर चला गया। संजू के कमरे से बाहर जाने के बाद मैंने अभिषेक से कहा।

मैं- ये सब क्या था अभिषेक। क्या सच में तू संजू को पायल के लायक नहीं समझ रहा है।

अभिषेक- नहीं नयन। मैं उससे कुछ जानना चाह रहा था जिसका जवाब मुझे मिल गया है। मैं अभी पापा को फोन करके इस रिश्ते के लिए हाँ बोल देता हूँ।

इसके बाद अभिषेक ने अपने पापा को फोन किया।

अ. पापा- हाँ अभिषेक बोलो। क्या सोचा है तुमने इस रिश्ते के बारे में।

अभिषेक- पापा। मुझे लग रहा है कि हमें इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना चाहिए। नयन और महेश की भी यही राय है कि संजू पायल के लिए सही लड़का है। बाकी इसके आगे का क्या और कैसे करना है ये आप देख लीजिएगा। इस बारे में एक बार पायल से भी पूछ लिजिएगा पापा।

अ.पापा- ठीक है अभिषेक। मुझे भी संजू अच्छा लड़का लगा था उस दिन। पायल से भी मैंने बात कर ली है। उसकी भी हाँ ही है। मैं उन्हें रिश्ते के लिए हाँ बोल देता हूँ।

इतना कहकर अभिषेक के पापा ने फोन रख दिया। और इस बात की जानकारी सबको दे दी। अभिषेक के पापा ने अगले दिन संजू के घर वालों को इस रिश्ते के लिए हामी भर दी। दोनों तरफ से हाँ हो जाने के बाद एक निर्धारित दिन पर दोनों घरवालों ने संजू और पायल को एक दूसरे मिलने और बात करने के लिए कुछ समय दिया। दोनों ने एक दूसरे को देखा, बात की और रिश्ता पक्का हो गया।

पापा ने आगे क्या करना है इसके लिए संजू के पापा से बात की। संजू की छुट्टियाँ समाप्त होने वाली थी तो वो चाहते थे कि संजू के छुट्टी से जाने से पहले संजू और पायल की सगाई कर दी जाए। जिसके लिए किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। आज से 10 दिन बाद दोनों की सगाई की तारीख पक्की कर दी गई। इसी बीच संजू से दो तीन बार हमारी मुलाकात भी हुई। अब वो हमारी बहन का मंगेतर बनने वाला था तो उसके साथ अपने व्यवहार में संजीदगी आ गई थी।

हमारी कोचिंग अब समाप्त हो गई थी तो अब हम दोस्तों का मिलना कोचिंग में नहीं हो पाता था। इसलिए हम सब दोस्त साथ में महिमा और खुशबू समय निकाल कर कभी कभी एक साथ समय बिताया करते थे। साथ में घूमने जाते थे। पार्टी भी करते थे। मेरी महिमा के साथ सामन्जस्य बहुत ही बढ़िया हो गया था। मुझे महिमा की हर छोड़ी बड़ी अदाएँ अच्छी लगने लगी थी। महिमा अब मुझको अपने नखरे भी दिखाने लगी थी। उसके अंदर भी ठेठ प्रेमिका वाले सारे गुण विकसित हो गए थे। उसके प्रति मेरा प्यार दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा था।

धीरे धीरे सगाई का दिन भी करीब आ रहा था। अभिषेक ने महेश को फोन करके सगाई में आने के लिए कह दिया था। साथ ही अभिषेक ने रेशमा, पल्लवी, महिमा, रश्मि और खुशबू को भी संगाई समारोह में शामिल होने के लिए कहा व्यक्तिगत रूप से कहा था। बाकी खुशबू के घर अभिषेक के पापा ने फोन कर दिया था सगाई में आने के लिए।

सगाई वाले दिन से दो दिन पहले ही मैं और अभिषेक घर चले गए। महेश भी एक दिन बाद लखनऊ से आ गया। हम सबने मिलकर सगाई की सारी तैयारियाँ पूरी कर ली। सगाई वाले दिन पल्लवी अपनी कार से रेशमा, रश्मि, खुशबू और महिमा के साथ अभिषेक के घर पहुँच गई। और वहाँ उपस्थित बड़ों का आशीर्वाद लेकर घर के छोटे मोटे कामों में हाथ बँटाने लगी। धीरे धीरे वो समय भी आ गया जब संजू अपने परिवार और कुछ खास संबंधियों के साथ सगाई की रश्म के लिए अभिषेक के घर आया। हम सभी संजू से गले मिले। थोड़ी देर चाय-नाश्ते के बाद सगाई की रश्म शुरू कर दी गई। पाँचों लड़कियों ने मिलकर पायल को अच्छे से तैयार करके जब स्टेज पर ले कर आई। तो हम तीनों की आँखें अपनी वाली को देखकर फटी की फटी रह गई।

हम तीनों अपनी पलकें झपकाना भूल गए। पाँचों लड़कियों ने लहँगा चोली पहन रखा था। ऊपर से उन्होंने ओढ़नी ओढ़ रखी थी। जिसमें वो कयामत लग रही थी। हम लोगों की तो छोंड़ो। संजू की तरफ से आए हुए अन्य लड़के और अभिषेक के तरफ से उपस्थित हुए लड़कों की आँखें भी पाँचों लड़कियों को ही ताड़ रही थी। (शादी और सगाई में ये सब आम बात है। जो भी नौजवान लड़के सगाई और शादी में शामिल होने के लिए जाते हैं वो सगाई और शादी समारोह का आनंद लेने के बजाय लड़कियाँ ताड़ने का आनंद लेते हैं।) महिमा, खुशबू और पल्लवी की नजरें जब हमसे टकराती थी तो वो तीनों शरमाते हुए मस्कुराने लगती थी। हम तीनों को देखकर उनकी यही मुस्कुराहट कितने लड़कों के दिल पर छुरियाँ चला रही थी। कितने लड़कों को हम तीनों की किस्मत से जलन हो रही थी। ऐसे ही समय बातने के साथ ही सगाई की रश्म भी पूरी हो गई। फिर संजू की तरफ से आए हुए सभी लोगों ने खाना खाया। फिर लड़के वाले चले गए। उसके बाद हम लोग खाना खाने के लिए चले गए। खाना खाते हुए पल्लवी ने कहा।

पल्लवी- बहुत मजा आया मुझे तो। गाँव के खुले माहौल में शादी और सगाई का मजा ही कुछ अलग होता है। मैं शुरू से ऐसे खुले माहौल की शौकीन हूँ। शादी में तो और भी ज्यादा मजा आने वाला है।

अभिषेक- ये सब छोंड़ो पहले ये बताओ कि तुम और महेश कब सगाई और शादी कर रहे हो।

महेश- अभी उसमें समय है। अभी पापा से इस बारे में बात करनी है। तब तक तुम दोनों ही निपटा लो अपनी सगाई।

मैं- वो तो हम कर ही लेंगे। लेकिन तू रहने दे चाचा से बात करने को। हम दोनों बात कर लेंगे चाचा जी से। तेरे बस का नहीं है उनसे बात करना। कोई अच्छा मौंका देखकर बात करते हैं चाचा जी से।

इसी तरह बोलते बतलाते हम लोगों का खाना भी हो गया। खुशबू तो अपने पापा के साथ अपने घर चली गई परंतु अभिषेक के पापा और मम्मी ने रेशमा, पल्लवी, रश्मि और महिमा को अपने घर पर ही रोक लिया। मेरे अम्मा, पापा घर चले गए। काजल भी अभिषेक के यहाँ रात रुक गई। हम लोग देर रात तक बैठ कर बात करते रहे। फिर हम लोग भी सोने के लिए चले गए।


इसके आगे की कहानी अगले भाग में।
Bahut hi badhiya update mahi madam,,,,:claps:
Ye Sanju to bada chalu nikla. Matlab ki idhar baaki logo ke sath apni problems bhi solve karta raha aur udhar Abhishek ki bahan ko bhi pasand kar liya. Bahut khoob jaani....kora maal mil gaya bhai ab kya chahiye,,,,:lol:
Khair sanju ne samajhdari se kaam liya tha is liye kisi ko is rishte se problem nahi huyi. Sanju aur Payal ki sagaayi ho gayi...ab rah gaye baaki ke ashiq log to inka bhi jald hi kalyaan hoga. Dekhte hain happy ending ke pahle koi lafda to nahi hone wala,,,,:smoking:
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,168
354
अट्ठावनवाँ भाग।

पायल की सगाई हो गई थी और अगले दिन सुबह अभिषेक का पापा मम्मी और पायल से विदा लेकर पल्लवी, रेशमा, रश्मि और महिमा चारों पल्लवी की कार से अपने घर वापस चली गई थी। बाकी का बचा खुचा काम निपटाकर मैं काजल को लेकर चाचा चाची और अभिषेक से विदा लेकर अपने घर चला गया था। महेश भी सबसे विदा लेकर अपने घर चला गया। कोचिंग बंद हो गई थी इसलिए पढ़ाई अब अपने से पढ़ाई करनी थी। लेकिन मैं जिस कोचिंग में पढ़ाता था वह तो खुली ही थी। तो कुछ दिन घर पर बिताने के बाद मैं वापस शहर लौट गया। दो दिन बाद अभिषेक भी कमरे पर आ गया। महेश अपनी नौकरी पर चला गया था। कुछ दिन संजू की छुट्टी खत्म हो गई तो वो भी अपनी नौकरी पर जाने के लिए तैयार हो गया।

छुट्टी से लौटने से पहले संजू दोपहर को हमसे मिलने आया। मैंने और अभिषेक ने फोन करके पाँचों लड़कियों को भी बुला लिया। रश्मि अपने कार्यालय में आधे दिन की छुट्टी डालकर संजू से मिलने के लिए आई थी। संजू ने हम लोगों को रेस्टोरेंट में पार्टी दी थी। हम लोगों ने उसको बहुत मना किया, लेकिन वो नहीं माना। मजबूरन हमें रेस्टोरेंट में जाना पड़ा। वहाँ खाने का ऑर्डर करने के बाद संजू ने कहा।

संजू- मैं ये पार्टी इस खुशी में दे रहा हूँ तुम सब लोगों ने मुझे अपना दोस्त समझा है। ये पार्टी हम लोगों की दोस्ती के नाम पर है।

रश्मि- लेकिन ये तो गलत है न अब तो आप हमारे जीजा जी हो गए है। अरे माफ करने जीजा जी। मैंने आपको तुम बोल दिया। तो मैं कह रही थी कि आप तो हम लोगों के जीजा जी हो गए हैं। एक बात और बता दूँ आपको कि आपसे हमारी दोस्ती हुई ही नहीं थी कभी। तो आप हमारे दोस्त कब से हो गए।

संजू- एक कहावत बहुत पुरानी है जो मैंने सुनी है कि दोस्त का दोस्त दोस्त होता है। इसलिए तुम सब हमारे दोस्त के दोस्त हो इसलिए मेरे भी दोस्त हुए।

रेशमा- शायद आपने गलत कहावत पढ़ी है जीजा जी। कहावत ये है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है।

संजू- वो पुराने जमाने की कहावत थी। मैंने इसे सुधार कर नए जमाने की कहावत बना दिया है। इसलिए हम सब दोस्त हैं।

पल्लवी- लेकिन नयन और अभिषेक आपके दोस्त कब से हुए जीजा जी। ये दोनों तो आपके साले हैं।

संजू- अरे तो क्या हुआ साले भी तो किसी दोस्त से कम थोड़ी न होते हैं। जैसे दोस्त की हर बात सुनी जाती है, वैसे ही सालों की हर बात सुनी जाती है। नहीं तो बीबी मार मार कर कचूमर बना देती है। वो कहते हैं न कि सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का भाई एक तरफ। तो कुछ दिन बाद मेरा भी यही हाल होने वाला है।

महिमा- तो उस हिसाब से देखा जाए तो हम सब आपकी सालियां हुई फिर।

संजू- नहीं। सालियाँ तो मेरी रश्मि और रेशमा ही होगीं। क्योकि तुम तीनों की तो मेरे तीनों सालों के साथ सेटिंग चल रही है। मेरा मतलब है कि मेरे सालों के साथ शादी होने वाली है। तो हमारा रिश्ता जीजा-साली का नहीं रह जाएगा न। इसलिए मेरी दो ही सालियाँ हैं। रेशमा और रश्मि। और वैसे भी साली आधी घरवाली ही होती है।

संजू ने ये बात एक आँख दबाते हुए शरारती अंदाज में कही। संजू की नहले पर रेशमा ने दहला मारते हुए कहा।

रेशमा- ये बात बस जुबान पर ही रखिएगा जीजा जी। इस बात को अपने मन में मत बसा लिजिएगा। कि हम लोग आपकी आधी घरवाली हैं। नहीं तो आपकी पूरी घरवाली मार मार कर आपको आधा घरवाला बना देगी। फिर आप न तो घर के रहेंगे न घाट के।

संजू- अच्छा हुआ तुमने मेरी आँखें खोल दी। इस बात को मैं ताउम्र याद रखूँगा।

संजू की बात सुनकर हम सब हँसने लगे। तब तक खाना भी आ गया। हम सब ऐसे ही हँसी मजाक करते हुए खाना खाया और फिर कुछ देर बातचीत करने के बाद हम सभी वहाँ से निकल गए। अगले दिन संजू भी अपनी ड्यूटी पर चला गया। ऐसे ही समय गुजरता रहा और हमारी रेलवे के स्टेशन मास्टर की मुख्य परीक्षा भी हो गई। इसी बीच अभिषेक के पापा और संजू के पापा ने संजू और पायल के शादी की तारीफ भी मकर्रर कर दी। डेढ़ महीने बाद एक अच्छा सा मुहुर्त था। तो वही दिन शादी के लिए निर्धारित किया गया। संजू के जाने के बाद हमारी फोन पर बात-चीत हो जाया करती थी। धीरे धीरे समय बीतता गया और संजू और पायल की शादी की तारीख नजदीक आती गई।

(पायल की शादी को अभी 10 दिन बचे हुए हैं तो अभिषेक, नयन और महेश की तरफ से सभी पाठकों को सूचित किया जाता है कि वह इनकी बहन की शादी में सपरिवार सहित उपस्थित होकर इस शादी को सफल बनाएँ और नव विवाहित जोड़े को अपना आशिर्वाद दे।)

शादी के ठीक दस दिन पहले ही हम लोगों का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का सहायक समीक्षा अधिकारी/समीक्षा अधिकारी का मुख्य परीक्षा का परिणाम भी आ गया। जो थोड़ा खुशी तो थोड़ा गम लेकर आई। खुशी इसलिए कि इस परीक्षा में रेशमा, मेरा और अभिषेक का चयन हो गया था और गम इस बात का कि पल्लवी, महिमा और खुशबू का चयन नहीं हुआ था। लेकिन फिर भी तीनों बहुत खुश थी हम तीनों के लिए। ये बात जब हमारे घर वालों को पता चली तो वो भी बहुत खुश हुए। परीक्षा परिणाम आने के बाद हम सबने मिलकर हमेशा की तरह ठेले पर बाटी चोखा की पार्टी की।

पायल की शादी के तीन दिन पहले ही मैं और अभिषेक घर चले गए। महेश भी 10 दिन की छुट्टी लेकर आ गया। हम तीनों दोस्तों इन तीन दिन में जितने भी काम बकाया थे। सभी की जिम्म्दारी अपने कन्धों पर ले ली थी। मैं और महेश अभिषेक के घर ही रुके। हमारे रुकने से अभिषेक के घरवालों को कोई ऐतराज नहीं था, परंतु अभिषेक की बुआ की देवरानी भी इस शादी में अपनी जेठानी के साथ 4 दिन पहले ही अभिषेक के घर आई थी। उन्हें इस बात का ऐतराज था। इसका कारण ये था कि हम दोनों पायल और बाकी लड़कियाँ जो भी वहीं थी। उन सबके साथ हँसी मजाक किया करते थे। पायल तो फिर भी हमारी बहन ही थी, तो वो हमेशा मुझसे और महेश से बोलती रहती थी। ऊपर से हम लोग अभिषेक के यहाँ ही रात गुजारते थे। वो घर जितना अभिषेक का था उतना ही महेश और मेरा भी था तो हम दोनों बेरोक टोक घर के किसी भी कोने में किसी भी समय आ जा सकते थे। तो दो दिन तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन शादी की एक रात पहले ही जब मैं पानी पीने रसोईघर में जा रहा था तो मैंने बुआ की देवरानी को अभिषेक की मम्मी से बात करते हुए सुना।

बु. देवरानी- भौजी। तुमसे एक बात करनी थी।

अ.मम्मी- हाँ दीदी बोलो न क्या बात करनी थी।

बु.देवरानी- ये जो दिन रात यहीं पर पड़े रहते हैं। ये कौन हैं। तुम्हारे रिश्तेदार तो नहीं लगते यह।

अ.मम्मी- नहीं दीदी। ये दोनों रिश्तेदार नहीं है। अभिषेक के दोस्त हैं।

बु.देवरानी- वैसे एक बात कहूँ बुरा मत मानना भौजी।

अ.मम्मी- अरे कहो ना दीदी। मैं क्यों बुरा मानूँगी।

बु. देवरानी- मुझे ये दोनों लड़के ठीक नहीं लगते। इनकी नीयत ठीक नहीं लग रही है मुझ।

अ.मम्मी- ये क्या कह रही हैं आप दीदी। आप उनके बारे में नहीं जानती इसलिए आप ऐसा कह रही हैं। दोनों अभिषेक के बहुत अच्छे दोस्त हैं और पायल को अपनी बहन मानते हैं। आप भी न पता नहीं क्या क्या सोचती रहती हैं।

बु. देवरानी- अरे भौजी तुम्हें नहीं पता। ऐसे ही लड़की पहले अपने दोस्त की बहन को अपनी बहन बनाते हैं और फिर उसी बहन के साथ गलत काम करते हैं। मैंने देखा है दोनों को। पायल और दूसरी लड़कियों के पास मँडराते रहते हैं। पता नहीं उनकी नीयत कैसी हैं। पता लगा कुछ ऊँचनीच हो गई तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहोगी तुम। इतनी भी क्या छूट देनी कि अपना ही घर समझकर दोनों बैठे हुए हैं। जब मन होता है कहीं भी घुस जाते हैं। मुझे इनकी नीयत ठीक नहीं लग रही है तभी तो दोनों अपने घर नहीं जाते। दिन रात यहीं पर डेरा जमाए रहते हैं। इन दोनों को बोल दो कि अपने काम से काम रखें। जमाना बहुत खराब है। घर में गहने और पैसे पड़े हुए हैं। अगर इन्होंने कुछ चुरा लिया तो।

मैं तो बुआ की देवरानी की बात सुनकर ही आश्चर्यचकित रह गया। उन्होंने तो हमारे बताचीत और रुकने का मतलब ही गलत तरीके से निकाल लिया। मैं चुपचाप उनकी आगे की बात सुनने के लिए रुका रहा। बुआ की देवरानी की बात सुनकर अभिषेक की माँ को गुस्सा आ गया। वो उनसे बोली।

अ.मम्मी- आप मेरी ननद की देवरानी हैं। मैं आपको दीदी बोलती हूँ इसका मतलब ये नहीं है कि आपके जो मुँह में आए बके जा रही हैं। आपकी जगह कोई और होता तो मैं उसे अभी यहाँ से चले जाने के लिए बोल देती। आप उन दोनों के बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं। आपको उन दोनों के बारे में पता ही क्या है। एक तो दोनों हमारी मदद कर रहे हैं काम में और आप उनके बारे में पता नहीं क्या क्या उलटा सीधा सोचे जा रही हैं। अच्छा हुआ कि आपकी ये बात अभिषेक और अभिषेक के पापा ने नहीं सुनी नहीं तो पता नहीं कौन सा बवाल मचाते दोनों। वो दोनों पायल को अपनी बहन से भी ज्यादा प्यार करते हैं। तभी तो पायल उन दोनों ते बेझिझक बात करती है। किसी भी काम के लिए बोल देती है। आप गाँव के किसी भी आदमी से पूछ लीजिए दोनों के बारे में। कोई इन दोनों के बारे में गलत नहीं बोलेगा। आपको पता है पहले मैं भी आपकी तरह इन्हें गलत समझती थी, क्योंकि मुझे भी यही लगता था पहले, हमेशा इनको जली कटी सुनाती रहती थी, लेकिन जब मुझे हृदयघात हुआ था तो इन्हीं दोनों ने मेरी जान बचाई। दिन रात मेरी सेवा की। मुझे नया जीवन दिया। पायल भी अपनी राह से भटक गई थी। यही दोनों हैं जिन्होंने पायल को सही राह पर लेकर आए। इसलिए मैं इन दोनों के खिलाफ एक भी बुरा लफ्ज नहीं सुन सकती। जैसे अभिषेक मेरा बेटा है। वैसे ही ये दोनों भी मेरे बेटे हैं।

आपको पता है जो चार लड़कियाँ अभी शाम को कार से आई हैं वो कौन हैं। वो अभिषेक और इन दोनों की दोस्त हैं। वो चारों शहर की हैं। बड़ें घरों की लड़कियाँ हैं। फिर भी वो मेरे तीनों बेटों की दोस्त हैं। कैसी दोस्त है ये आप खुद ही समझ लीजिए कि शादी से एक दिन पहले ही आई हैं चारों। तो सोच सकती हैं आप की कितनी गहरी दोस्ती है इन सब में। और सुबह देखना हर एक काम जो वो कर सकती हैं। सब अपने जिम्में ले लेंगी। वो किसलिए यहाँ पर आई हैं। हमारा और उनका कोई रिश्ता भी नहीं है। रिश्ता है हमारे बेटों से। प्यार का रिश्ता, दोस्ती की रिश्ता। जिसे निभाने के लिए वो चारों आई हैं। ये रिश्ता ऐसे ही नहीं बना इन सबके बींच। इन सब को विश्वास है एक दूसरे पर। नहीं तो आप खुद सोचो कि ये चारों लड़कियाँ क्यों आती आती यहाँ पर। क्यों रहती हमारे बच्चों के साथ अगर उनकी नीयत गलत होती। आप ये सब नहीं समझेंगी। क्योंकि आपने उन दोनों को बस एक ही नजर से देखा है। इसलिए आगे से आप अपनी जुबान बंद रखिएगा। नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

मुझे चाची जी से इसी जवाब की उम्मीद थी। मैं चाची जी का जवाब सुनकर मुस्कुराते हुए वहां से चले गया। उनका जवाब सुनकर बुआ की देवरानी अपना मुँह बिचकाते हुए रसोईघर से बाहर आ गई। जाकर अभिषेक और महेश के पास बैठ गया। उसी शाम को रेशमा, पल्लवी, महिमा, रश्मि भी अभिषेक के यहाँ आ गई थी। खुशबू कल अपने परिवार के साथ आने वाली थी। थोड़ी देर बात करने के बाद हम सब सो गए। अगले दिन उठकर हम लोगों अपना अपना काम बाँट लिया। घर का काम लड़कियों ने अपने जिम्मे ले लिया और बाहर का काम हम तीनों ने अपने जिम्मे। इस दौरान महेश पल्लवी से आँखें चार होती रही और मेरी महिमा के साथ। रश्मि और रेशमा ये सब देखकर मजा ले रही थी। मेरे अम्मा पापा और काजल भी दोपहर तक अभिषेक के घर आ गए। महेश के मम्मी पापा भाई और बहन भी कुछ देर पहले ही इस शादी में शामिल होने के लिए आए। सभी लड़कियों ने आकर मेरे और महेश के मम्मी पापा के चरण स्पर्श किए।

इसी तरह काम करते हुए शाम हो गई। और बरात के आने का समय भी हो गया। थोड़ी ही देर में बारात भी आ गई। सभी बारातियों का स्वागत धूमधाम से किया गया। हम तीनों संजू के गले लगे। उसके बाद चलपान का कार्यक्रम चला। जलपान के बाद गाजे बाजे से साथ बारात घर पर आई। द्वाराचार की रश्म पूरी की गई। लड़के फिर से छत की बालकनीं पर खड़ी लड़कियाँ ताड़ रहे थे। पाँचों लड़कियाँ इस समय पायल के साथ थी। रेशमा ने कहा।

रेशमा- जीजी जी तो बड़े हॉट लग रहे हैं आज।

रश्मि- सही कहा तुमने। कही हमारी पायल जयमाल के समय बेहोश न हो जाए उन्हें देखकर।

पायल (शरमाते हुए) क्या दीदी आप लोग भी मुझे छेड़ रहे हैं।

पल्लवी- नहीं ये दोनों सच बोल रही हैं। सच में जीजा जी दूल्हे बने बहुत ही हैंडसम लग रहे हैं।

इधर बाहर द्वाराचार की रश्म पूरी हो गई और जयमाल के लिए संजू स्टेज पर आकर बैठ गया। कुछ ही देर में पायल को अच्छे से सजाकर पाँचों लड़कियों के साथ कुछ लड़कियाँ उन्हें जयमाल पर लेकर आ गई। पायल सितारों जड़ा लहंगा पहन कर आई थी। इसमें वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। महिमा और खुशबू ने साड़ी पहनी हुई थी, जबकि रेशमा पल्लवी और रश्मि ने लगभग समान रंग और डिजाइन का लहंगा पहना हुआ था। मैं, अभिषेक और महेश अपनी अपनी बंदियों को ताड़ रहा था। वो तीनों आँखें दिखाकर मना कर रही थी, लेकिन ऐसे कि लोगों को शक न हो कि हम लोगों का नैन मटक्का चल रहा है। थोड़ी देर में ही जयमाल की रश्म की शुरूआत हो गई।

तभी मेरी नजर महेश के पापा पर पड़ी। जो पीछे एक कुर्सी पर बैठकर जयमाल का कार्यक्रम देख रहे थे। तो मैंने सही मौका देखकर आज ही उनसे महेश और पल्लवी के बारे में बात करने का सोचा और महेश और अभिषेक से कुछ देर में आने का बहाना बनाकर उनके पास चला गया।


इसके आगे की कहानी अगले भाग में।

Shandar, bahut hi badhiya update,,,,:claps:
Chat magni pat byaah wala system bana diya mahi madam ne. Waise ye achha hi hai kyoki jab apne pasand ka sab ho to uske liye intzaar hi nahi hota. Sanju par kripa ki gayi jiska nateeja ye hua ki jald hi baat shadi tak pahuch gayi. Idhar is beech lafda karne me Bua ki devraani ne kamaan apne hath me le li thi kintu lafda karwane me safal nahi huyi...lagta hai is field me kachchi thi wo. Pura rihalsal kar ke aana tha na,,,,:beee:

Abhishek ki maa ne senka to bechari devrani ka muh bhaad ki tarah khula hi rah gaya. Khair Nayan bhi khush ho gaya ki Abhishek ki maa ab us par bharosa karti hai aur use apne bete jaisa maanti hai. Sabhi ladko ke maal bhi maujood hain is liye dil laga hua hai. Waise shadi ke mahaul me mauka achha hota hai kisi maal ko pelne ka par shayad hi yaha kisi ki kismat chamke,,,,:lol:

To Nayan ne mahesh ka uddhaar karne ke liye shadi ke is maahaul me mauka khoj liya aur chal diya mahesh ke papa ke paas. Dekhte hain wo kis tarah se mahesh ke papa ko mahesh aur pallavi ki shadi ki baat shuru karta hai,,,,,:reading:
 
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उनसठवाँ भाग


मैं जाकर महेश के पापा को प्रणाम करके उनके पास बैठ गया और उनसे बातचीत शुरू कर दी।

मैं- प्रणाम चाचा।

म. पापा- सदा सुखी रहो बेटा। कैसे हो तुम।

मैं- मैं ठीक हूँ चाचा। आप कैसे हैं।

म. पापा- मैं भी ठीक हूँ बेटा।

मैं- और यहाँ की तैयारियाँ अच्छी हैं न चाचा। कोई कमी तो नहीं रह गई है न इन तैयारियों में।

म.पापा- नहीं बेटा। बहुत अच्छे से सबकुछ संभाला है तुम तीनों ने। सबकुछ एकदम बढ़िया हैं।

मैं- मैं कुछ बात करना चाहता हूँ आपके चाचा।

म. पापा- हाँ नयन बोलो इसमें पूछने वाली कौन सी बात है।

मैं- पूड़ी कब खिला रहे हैं आप हमें।

म.पापा- जब तुम लोगों का मन करे घर पर आ जाना। पूड़ी, हलवा, मिठाई सबकुछ बन जाएगा।

मैं- अरे चाचा। मेरा मतलब नहीं समझ रहे हैं आप। मैं ये कह रहा हूँ कि महेश का बैंड कब बजवा रहे हैं। उसकी शादी का भी तो कुछ सोचिए चाचा जी। नौकरी को भी दो साल से ज्यादा हो गए हैं। अब किस बात का इंतजार कर रहे हैं आप चाचा जी।

म. पापा- अरे मैंने कितनी बार इससे कहा है, लेकिन हर बार टरका देता है कि अभी उसकी उमर ही कितनी है। उसे शादी ब्याह के बंधन में मत बाँधू मैं। मेरी तो सुनता ही नहीं है। तुम उसके दोस्त हो। तु उसे समझाओ तो वो जरूर मान जाएगा।

मैं- ठीक है चाचा जी। मैं बात करूँगा महेश से। वैसे एक बात बताइए चाचा जी। आपने कोई लड़की देख रही है क्या महेश के लिए पहले से ही।

म. पापा- अरे नहीं बेटा। पहले ये तैयार तो हो। बहुत रिश्ते आ रहे हैं शादी के लिए, लेकिन मैं बोल देता हूँ कि अभी लड़का दो-तीन साल शादी नहीं करना चाहता। अब किसी लड़की को देखकर रिश्ता पक्का करके उसको इंतजार थोड़ी ही करवा सकते हैं। जब महेश बोलेगा तभी लड़की देखूँगा। लेकिन ये कुछ कहता ही नहीं।

मैं- एक बात कहूँ चाचा जी। आपकी बातों से मुझे लग रहा है। कि महेश किसी से प्यार करता हो। जिससे वो शादी करना चाहता हो।

म. पापा- मुझे नहीं लगता है कि महेश किसी से प्यार करता है। लेकिन अगर करता भी है तो कम-से-कम मुझे बता तो सकता है न। आखिर मैं बाप हूँ उसका। लेकिन प्यार मोहब्बत में अच्छी बात नहीं हैं। अगर ऐसा है तो कहीं महेश हमसे बिना बताए शादी तो नहीं कर लेगा। अगर ऐसा हुआ तो हम लोगों का क्या होगा।

मैं- इसीलिए तो मैं आपसे बात करने के लिए आया हूँ कि जितनी जल्दी हो सके महेश की शादी करवा दीजिए।

म. पापा.- मैं तो कब से उसे बोल रहा हूँ शादी के लिए। लेकिन वो तैयार ही नहीं हो रहा है।

मैं- वो बात छोड़िए चाचा जी। अब मैं महेश से शादी के लिए बात करूँगा। अच्छा ये बताइए कि वो जयमाल के स्टेज पर वो जो लड़की खड़ी है हलका गुलाबी और हरे रंग का लहँगा पहन कर वो लड़की कैसी रहेगी महेश के लिए।

ये मैंने पल्लवी के लिए इशारा करके महेश के पापा को बताया। जिसे सुनकर उसके पापा ने कहा।

म. पापा- लड़की तो सच में बहुत सुंदर है। लेकिन ये है कौन। क्या तुम उसे जानते हो।

मैं- उसका नाम पल्लवी है। हमारे साथ ही पढ़ती थी पहले। बहुत ही अच्छी लड़की है। हमेशा हम लोगों के साथ घुल-मिल कर रहती है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात ये है कि इसके संस्कार बहुत अच्छे हैं। सबसे प्यार और सम्मान देकर बात करती है। महेश के लिए एक अच्छी पत्नी और आपके लिए एक अच्छी बहू साबित होगी ये। और तो और उसके घरवाले भी लड़का ढूँढ़ रहे हैं इसकी शादी के लिए और इसके घरवाले भी मुझे अच्छी तरह से जानते हैं। अगर आप हाँ कहें तो मैं बात छेड़ दूँ इसके मम्मी पापा से।।

म. पापा- वो तो ठीक है। लेकिन क्या वो लड़की महेश से शादी के लिए मानेगी।

मैं- क्यों नहीं मानेगी। क्या कमी है महेश में।

म. पापा- अरे तुम ही इस लड़की को देखो। कितनी मासूम दिखती है। निहायत ही खूबसूरत है। और महेश को देखो। देखने में घोड़ा हो गया है, लेकिन दिन भर ऊट पटाँग हरकतें करता रहता है। अंगूर और लंगूर की जोड़ी लगेगी दोनों की।

मैं- वो सब आप मुझपर छोड़ दीजिए। मैं सब संभाल लूँगा। पहले आप ये बताइए की अगर लड़की और लड़की को घरवाले इस रिश्ते के लिए मान गए तो क्या आप इस लड़की से महेश की शादी करेगें।

म. पापा- क्यों नहीं करेंगें। मेरे लंगूर बेटे के लिए इतनी अच्छी लड़की मिलेगी तो मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है।

मैं- आप रुकिए चाचा जी। मैं उसे आपसे मिलवा देता हूँ। एक बार आप उससे मिलकर बात कर लीजिए फिर निर्णय लिजीए।

इतना कहकर मैंने पल्लवी को फोन किया। पल्लवी ने जब फोन पर मेरा नम्बर देखा तो स्टेज से ही इधर उधर नजर दौड़ाई। जब मैं उसे कहीं दिखाई नहीं दिया तो उसने फोन उठाया।

पल्लवी- हाँ नयन बोलो।

मैं- तुम थोड़ी देर के लिए स्टेज से यहाँ आ सकती है।

पल्लवी- कुछ काम था क्या। थोड़ी देर बाद आऊँ तो चलेगा।

मैं- नहीं तुम अभी आओ। मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहता हूँ। मैं आखिरी पंक्ति में कोने की तरफ बैठा हूँ। जल्दी आओ।

इतना कहकर मैंने फोन रख दिया। पल्लवी स्टेज से उतर कर मेरे पास आने लगी तो अभिषेक ने रास्ते में ही उससे पूछा कि कहाँ जा रही हो तो उसने मुझसे मिलने के लिए बोलकर मेरे पास आ गई और बोली।

पल्लवी- हाँ नयन क्यों बुलाया है मुझे।

मैं- पल्लवी ये महेश के पापा हैं। ये तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं।

मेरे ऐसा कहने के बाद पल्लवी ने उनके पाँव छूकर उनको प्रणाम किया।

पल्लवी- प्रणाम चाचा जी।

म.पापा- हमेशा खुश रहो बेटी। बैठो बेटी। कैसी हो तुम।

पल्लवी- मैं ठीक हूँ चाचा जी आप कैसे हैं।

म.पापा- मैं भी अच्छा हूँ। नयन तुम्हारी बहुत तारीफ कर रहा था। तुम्हारे बारे में बता रहा था तो मैंने सोचा मैं तुमसे मिल लूँ और देखूँ कि नयन जो कह रहा था वो कितना सच है।

पल्लवी- वो क्या है न चाचा जी। नयन बहुत अच्छा है। तो इसे सभी अच्छे लगते हैं। ये कुछ ज्यादा ही सबकी तारीफ करता रहता है।

म. पापा- नयन बता रहा था कि तुम सब एकसाथ में पढ़ते थे।

पल्लवी- हाँ चाचा जी। मैं, महेश, अभिषेक, नयन, रेशमा, रश्मि और महिमा। हम लोगों ने एक साथ पढ़ाई की है। सभी बहुत अच्छे हैं।

म. पापा- तुम्हारे घर में कौन कौन हैं बेटी।

पल्लवी- हमारे घर में चार लोग हैं। मम्मी, पापा और बड़े भैया और मैं।

म. पापा- तुम शहर की रहने वाली हो न।

पल्लवी- हाँ चाचा जी। मेरा घर शहर में है। लेकिन मुझे गाँव बहुत पसंद आता है, क्योंकि यहाँ का वातावरण शहरों के मुकाबले बहुत बढ़िया होता है। गाँव में भाई-चारा शहरों की अपेक्षा अधिक होता है। शहर में पड़ोसी पड़ोसी को ठीक से नहीं जानता और गाँव में तो एक गाँव के लोग भी दूसरे गाँव के लोगों को जानते हैं।और यहाँ की शादियाँ तो और भी ज्यादा पसंद आती हैं। इसीलिए मैं इस शादी में जी भर के आनंद लेना चाहती हूँ।

म. पापा- ठीक है बेटी। तुम जाओ अब और शादी का आनंद उठाओ।

पल्लवी- ठीक है चाचा जी। प्रणाम।

इतना कहकर पल्लवी उनके पाँव छूकर फिर से स्टेज पर चली गई। उसके जाने के बाद म. पापा ने कहा।

म.पापा- तुम सच कह रहे थे नयन। लड़की तो सच में बहुत संस्कारी है। जितनी प्यारी वो दिखती है उतनी प्यारी बातें भी करती है।

मैं- यही तो मैं बोल रहा था कि लड़की बहुत अच्छी है और अपने महेश के लिए अच्छी जीवनसाथी साबित होगी। तो आप क्या बोलते हो चाचा जी। महेश के बारे में लड़की के घरवालों को बता दूँ।

म. पापा- तुम जो समझाना चाहते थे मैं समझ गया हूँ बेटा।

मैं- क्या मतलब चाचा जी। मैं कुछ समझा नहीं।

म.पापा (हँसते हुए) यही कि महेश इसी लड़की से प्यार करता है।

मैं उनकी बात सुनकर चकित रह गया। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा था कि इन्हें ये सब कैसे पता चला। मैंने महेश के पापा से कहा।

मैं- नहीं चाचा जी। ऐसा तो कुछ भी नहीं है।

म.पापा- तुम मुझे पागल समझते हो क्या नयन। तुम दोनों इतने अच्छे दोस्त हो और तुम मुझे बताओगे कि महेश शायद किसी से प्यार करता हो। और मैं तुम्हारी बात मान लूँगा। तुम लोगों को सबकी आपस की हर एक बात पता रहती है। तो ये पता नहीं था तुम्हें कि महेश किसी से प्यार करता है या नहीं। जब तुमने पल्लवी का नाम लिया तभी मैं समझ गया कि ये वही लड़की होगी। क्योंकि मैंने महेश के मोबाइल पर पल्लू नाम से कई बार फोन देखा है। ये अगल बात है कि मैंने कभी फोन उठाया नहीं है। मैंने तुमलोगों से ज्यादा दुनिया देखी है बेटा। कैसे नाम को छोटा करके मोबाइल में सुरक्षित रखते हो तुम लोग मुझे सब पता है।

मैं इतना बेवकूफ भी नहीं हूँ कि महेश के शादी के लिए बार बार मना करने का कारण न समझ सकूँ। मुझे पता तो था कि महेश किसी से प्यार जरूर करता है इसीलिए वो शादी से इनकार कर रहा है। लेकिन किस लड़की से करता है। ये नहीं जानता था। आज तुमने मुझे उस लड़की से मिलवा भी दिया।

में उनकी बात सुनकर अपना सिर नीचे कर लिया और उनसे बोला।

मैं- हाँ चाचा जी। महेश पल्लवी से ही प्यार करता है। बल्कि दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। पल्लवी के घर वालों को कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन महेश आपसे बात नहीं कर पाता था डर के कारण, इसलिए मैंने सोचा कि आपसे घुमा-फिरा कर बात कर लूँ और आपको महेश की शादी पल्लवी से करने के लिए मना लूँ। लेकिन आपने तो पकड़ लिया मुझे।

म. पापा- तुमने बहुत अच्छा किया बेटा। लड़की मुझे बहुत पसंद है। तुमने जैसा बताया था लड़की के बारे में वैसी ही है। महेश ने दूसरी बार कोई ढंग का काम किया है। पहली तो नौकरी अच्छी मिली और दूसरा उसने मेरे लिए एक अच्छी बहू ढ़ूढी है।

मैं- तो क्या आपको इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं है चाचा जी।

म.पापा- अरे मैं पागल थोड़े ही हूँ जो इतनी अच्छी लड़की को अपनी बहू बनाने से मना करूँगा। और वैसे भी मेरे बेटे की खुशी सबसे ज्यादा जरूरी है। मुझे इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं है। लेकिन अभी तुम महेश से इसके बारे में कुछ मत बोलना। मैं बात करूँगा उससे खुद इस बारे में।

महेश के पापा की बात सुनकर मैं बहुत खुश हुआ। मैं खुशी से झूम उठा। मैंने महेश के पापा से कहा।

मैं- मुझे बहुत खुशी हो रही है चाचा जी। आपने पल्लवी और महेश की शादी के लिए हाँ कर दी है।

म. पापा- मैं भी बहुत खुश हूँ कि महेश के पास तुम जैसे दोस्त हैं जो एक दूसरे की खुशी के बारे में सोचते हैं। मुझे तुम लोगों की दोस्ती पर गर्व है बेटा। अब तुम्हारा काम पूरा हो गया है। तुम भी जाकर जयमाल का आनंद लो।

मैं महेश के पापा को प्रणाम कर फिर से स्टेज के पास पहुँच गया। अभिषेक ने मुझे देखते ही कहा।

अभिषेक- कहाँ चला गया था तू। और पल्लवी को किसलिए बुलाया था तुमने।

मैं- अरे भाई महेश का काम कर रहा था। पल्लवी को उसके पापा से मिलवाने के लिए बुलाया था।

अभिषेक- क्या। सच में। काम हुआ या नहीं।

मैं- सब कुछ ठीक हो गया। चाचा जी दोनों की शादी के लिए मान गए हैं। लेकिन उन्हें पहले से ही इस बारे में पता चल गया था।

अभिषेक- महेश ने नहीं बताया था उन्हें तो कैसे पता चल गया था उनको।

फिर मैंने अभिषेक को शुरू से लेकर अंत तक सबकुछ बता दिया। जिससे सुनने के बाद अभिषेक ने कहा।

अभिषेक- चलो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। अब तो कोई रुकावट नहीं होगी शादी मैं।

उसके बाद हम लोग भी स्टेज पर जाकर पायल और संजू को आशीर्वाद दिया। इसी तरह हँसी खुशी जयमाल का कार्यक्रम भी समाप्त हो गया। धीरे धीरे समय बीतने के साथ ही शादी का का पूरा कार्यक्रम खत्म हो गया। इस बीच हम तीनों दोस्तों को अपनी वाली से आँखमिचोली चलती रही। बिदाई के समय पायल हम सब के गले लगकर खूब रोई। अभिषेक और उसके मम्मी पापा का बुरा हाल हो गया था। लेकिन क्या कर सकते थे। लड़की पराया धन होती है तो उसे बिदा होकर अपने पिया के घर जाना ही पड़ता है। तो पायल भी अपने पापा के घर से विदा होकर संजू के घर चली गई। इतने दिन से जो खुशी का माहैल था वो दुःखदायी हो गया। लेकिन फिर धीरे धीरे सभी ने अपने आपको संभाला दिन भर मैं, अभिषेक, महेश, रेशमा, पल्लवी, रश्मी महिमा और खुशबू तथा घर के अन्य रिश्तेदारों ने मिलकर सभी कुछ व्यवस्थित किया। उस दिन खुशबू को छोड़कर सारी लड़कियाँ अभिषेक के यहाँ ही रुकी। महेश के घरवाले और मेरे अम्मा पापा घर चले गए काजल लड़कियों के साथ रुक गई। अगले दिन चारों लड़कियाँ अपनी कार से शहर चली गई। मैं और महेश भी अपने घर चले गए।

इसी तरह दिन गुजरता रहा। महेश ने भी अपना स्थानांतरण इलाहा बाद में करवा लिया। 3 महीने बाद अभिषेक और मेरी समीक्षा अधिकारी के पद के लिए और रेशमा की सहायक समीक्षा अधिकारी के पद के लिए कार्यभार ग्रहण पत्र प्राप्त हुआ। तो हम लोगों ने जाकर कार्यभार ग्रहण कर लिया। फिर हम लोगों ने जाकर पार्टी की और रमेश रिक्शेवाले से मिले। क्योंकि मेरी सफलता में अप्रत्यक्ष रूप से मैं उनका भी योगदान मानता था। धीरे धीरे समय बीतता गया और घर वालों ने हम तीनों की शादी की तारीख भी निर्धारित कर दी। हम तीनों तो एक ही मंडप में शादी करने का सोच रहे थे, लेकिन फिर एक दूसरे की शादी का मजा नहीं ले पाते इसलिए अगल अगल शादी करने का निर्णय लिया। हम तीनों की शादी में हफ्ते से 10 दिन का अंतर था। सबसे पहले महेश, फिर मैं और आखिर में अभिषेक की शादी की तारीख निश्चित की गई।

सभी रिश्तेदारों और दोस्तों की उपस्थिति में हम तीनों की शादी हुई। हम लोगों ने एक दूसरे सी शादी में खूब आनंद उठाया। शादी के बाद हम तीनों ने आपस में मिलने के बाद अपनी अपनी सुहागरात का अनुभव साझा किया। हम तीनों इतने अच्छे दोस्त थे तो इसमें कोई बुराई भी नहीं नजर आई। समय अपनी गति के साथ चलता रहा। हम लोगों की शादी के एक महीने बीत चुके थे। चूंकि हम सब की नौकरी इलाहाबाद में ही थी तो हमारा मिलना जुलना अक्सर लगा ही रहता था। एक महीने हम तीनों ने एक बात साझा की।

मैं- अभिषेक एक बात कहनी थी तुझसे यार। मेरा एक सपना था कि मैं गाँव में एक कोचिंग सेटर खोलूँ। जिससे गाँव के बच्चों को कोचिंग का लाभ कम शुल्क में मिल सके।

अभिषेक- यार तेरे विचार तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन अब तो हम लोग नौकरी कर रहे हैं। ऐसे मैं कोचिंग खोल भी नहीं सकते, क्योंकि अपने पास समय भी नहीं है और समय के अलावा एक साथ दो लाभ के पद का उपभोग भी नहीं कर सकते। अगर कार्यालय में पता चला तो दिक्कत हो सकती है।

मैं- इसके लिए मेरे दिमाग में एक बात है। क्यों न हम सब खुशबू, महिमा और पल्लवी से बात करें। अगर वो कोचिंग पढ़ाने के लिए तैयार हो जाएँ तो कोचिंग सेंटर का सपना पूरा हो सकता है।

महेश- बात तो तू सही कह रहा है दोस्त। लेकिन क्या ये सही रहेगा। मेरे मतलब है कि घरवालों को तो कोई दिक्कत नहीं है। वो लोग भी मान ही जाएँगी, लेकिन तुझे तो पता है कि गाँव में कितने तरह के लोग रहते हैं। और वो तीनों बेटियाँ नहीं बहुएँ हैं। लोग तरह तरह की बात करने लगेंगे। जितने मुँह उतनी बातें।

मैं- तुम्हारी बात तो सही है, लेकिन ये सब हमलोग गाँव के बच्चों के लिए कर रहे हैं। कितने दिन बात करेंगे। जब उन्हें हमारे मुख्य उद्देश्य के बारे में जानकारी होगी तो धीरे धीरे सब शांत हो जाएँगे।

अभिषेक- ठीक है फिर पहले अपनी वाली से बात कर लें फिर घरवालों से बात करते हैं।

हम तीनों ने ये निर्णय लेकर पल्लवी, महिमा और खुशबू से अपनी बातें बताई तो वो इसके लिए तैयार भी हो गई। अब घर वालों से बात करनी थी तो मैं अभिषेक अपने मम्मी पापा को लेकर महेश के घर चले गए। जहाँ तीने के अभिभावक से एक साथ अपनी बात साझा कर सकें।



इसके आगे की कहानी अगले भाग में।
Bahut hi khubsurat update mahi madam,,,,:claps:
To Nayan ne mahesh ke papa se mahesh ki shadi ki baat shuru ki aur pallavi ko bhi bula kar unse milwaya. Halaaki mahesh ke papa ne Nayan ko us waqt chaunka diya jab unhone use ye bataya ki unhe pahle se pata tha ki unka ladka kisi chhori se pyar vyar karta hai. Ye chhore log apne aapko kuch zyada hi smart samajhte hain,,,,:doh:jabki ye log ye bhool jate hain ye apne baap ke baap nahi hain balki inke baap inke baap hain...sala ye sab likhna bhi bada ajeeb hai,,,,:lol:

Khair mahesh ke baap ko pallavi pasand aayi aur pasand bhi kyo na aaye...pallu darling hai hi aisi. Mahesh ke baap ne bhi khul kar kah diya ki langoor ko angoor mil jaye to bhala wo kaise inkaar kar dega. Khair to alag alag date par teeno ka uddhaar ho hi gaya lekin do ladkiya to aise hi rah gayi bechari...unki bhi kahi setting karwa dena mahi madam. Koi na mile to mujhe batana....kuch sochuga unke bare me,,,,:lol1:
 
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साठवाँ एवं अंतिम भाग


कोचिंग खोलने के लिए अभिषेक और मैं अपने अभिभावक को लेकर महेश के घर चले गए। सबका अभिवादन और प्रणाम करने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।

अभिषेक- हम लोग एक बहुत जरूरी बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। हम लोग चाहते थे कि ये बाद हमारे माता-पिता के सामने हो। क्योंकि हम लोगों को आपकी सहमति चाहिए।

पापा- बात क्या है ये बताओ।

मैं- पापा आपको पता है। परास्नातक करने के बाद मैंने आपसे कोचिंग सेंटर खोलने की बात की थी तो आपने कहा था कि मैं पहले सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न करूँ। कोचिंग को मैं दूसरे विकल्प के रूप में रखूँ।

पापा- हाँ तुमने मुझसे बात की थी और मैंने तुमको ये बात कही थी।

महेश- तो हम लोग अब भी यही चाहते हैं कि हम तीनों मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोलें। जिसमें गाँव के बच्चों को कम शुल्क पर शिक्षित करें। इसी के लिए हम लोगों को आप सब से बात करनी थी।

अ.पापा- लेकिन ये कैसे हो सकता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए कोई लाभ का दूसरा काम अपने नाम से नहीं कर सकते तुम तीनों। इसके अलावा तुम्हारे पास समय कहाँ रहेगा कि तुम लोग बच्चों को पढ़ाओ।

अभिषेक- हम लोगों के पास समय नहीं है। लेकिन खुशबू, पल्लवी भाभी और महिमा भाभी के पास तो समय है न। ये तीनों लोग कोचिंग पढ़ा सकती हैं।

म.पापा- क्या। ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा। ये लोग कैसे कोचिंग पढ़ा सकती हैं।

महेश- क्यों नहीं पढ़ा सकती पापा। तीनों पढ़ी लिखी हैं। तीनों को अपने विषयों में पकड़ भी है। इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा जब पढ़ाई लिखाई का सदुपयोग ही न हो तो।

म.मम्मी- लेकिन इसके लिए पहले इन तीनों से तो पूछ लो कि ये तैयार हैं या नहीं पढ़ाने के लिए।

मैं- इस बारे में उन लोगों से बात हो चुकी है। उनकी सहमति मिलने के बाद ही आप लोगों के समक्ष अपनी बात रख रहा हूँ।

मम्मी- वो तो ठीक है बेटा। लेकिन बहुएँ अगर कोचिंग पढ़ाने जाएँगी तो गाँव समाज में तरह-तरह की बातें उठने लगेंगी। उसका क्या।

अभिषेक- उसी लिए तो हम लोगों ने आप सबसे बात करना उचित समझा। अपने गाँव के आस-पास कोई ढंग का कोचिंग सेंटर नहीं है। और जो है भी वहाँ एक ही विषय पढाया जाता है। दूसरे विषय के लिए दूसरी कोचिंग में जाना पड़ता है। ऊपर से हर विषय के लिए अलग-अलग शुल्क जमा करने पड़ता है, लेकिन हमने जिस कोचिंग सेंटर के बारे में सोचा है उसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय एक ही जगह बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।

म.पापा- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि गाँव समाज तरह तरह की बातें बनाने लगेगा। तुम लोगों को तो पता है कि कोई भी अच्छा काम अगर शुरू करो तो उसकी सराहना करने वाले कम और नुक्श निकालने वाले ज्यादा लोग आ जाते हैं।

मैं- हम लोग जो भी काम करने चाहते हैं आप लोगों की सहमति से करना चाहते हैं। मैं ये जानता हूँ कि गाँव के कुछ लोग हैं जिनको हमारी पत्नियों के कोचिंग पढ़ाने से परेशानी होगी। कुछ दिन बात बनाएँगे और बाद में सब चुप हो जाएँगे और हम समाज की खुशी के लिए अपने अरमानों का गला तो नहीं घोंट सकते। इन लोगों की इच्छा है कि ये लोग भी कुछ काम करें, लेकिन गाँव में काम मिलने से रहा और ये लोग आप लोगों को छोड़कर शहर जाकर काम करेंगी नहीं। तो इन लोगों को भी तो अपनी इच्छाओं/सपनों को पूरा करने का हक है। जो ये कोचिंग पढ़ाकर पूरा करना चाहती हैं। हमारे सपने को ये लोग साकार करना चाहती हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हम जो कुछ कर रहे हैं समाज के हित के लिए कर रहे हैं। समाज में रहने वाले बच्चों के लिए कर रहे हैं। हमें समाज की नहीं आप लोगों की हाँ और न से फर्क पड़ता है। आप लोगों की खुशी या नाखुशी से फर्क पड़ता है। अगर आप लोगों को ये सही नहीं लगता तो हम ये बात दोबारा नहीं करेंगे आप लोगों से।

इतना कहकर मैं शांत हो गया। मेरे शांत होने के बाद कुछ देर वहाँ खामोशी छाई रही। सभी के अभिभावक हमको और अपनी बहुओं को देखने लगे। फिर हम लोगों से थोड़ा दूर हटकर कुछ सलाह मशवरा किया और हम लोगों के पास वापस आ गए। कुछ देर बाद पापा ने कहा।

पापा- देखो बेटों। हमें तुम लोगों के फैसले से कोई ऐतराज नहीं है। तुम लोगों की खुशी में हमारी भी खुशी है। तुम लोगों के सपनों के बीच हम लोग बाधा नहीं बनेंगे। तुम लोग कोचिंग खोलना चाहते हो तो खुशी खुशी खोलो हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं, लेकिन उसके पहले हमारी कुछ शर्त है जो तुम लोगों को पूरा करना होगा। तभी कोचिंग खोलने की इजाजत मिलेगी।

हम छहों एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पापा की शर्त क्या है। थोड़ी देर एक दूसरे को देखने के बाद अभिषेक ने कहा।

अभिषेक- आप लोगों की जो भी शर्त है वो हमें मंजूर है। बताईए क्या शर्त है आपकी।

म.पापा- बात ये है कि अब हम लोगों की उमर बीत चुकी है। या उमर के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें बेटों और बहुओं के होते हुए कुछ आराम मिलना चाहिए। तुम तीनों तो सुबह अपने कार्यालय चले जाते हो। कोचिंग खुलने के बाद बहुएँ भी पढ़ाने के लिए चली जाएँगी। तो हम लोगों की सेवा कौन करेगा। इसलिए हम लोग चाहते है कि हमें चाय नाश्ता और खाना यही लोग बनाकर देंगी। ऐसा नहीं कि मम्मी मैं कोचिंग पढ़ाने जा रही हूँ। तो आप खाना बना लीजिएगा, चाय-नाश्ता बना लीजिएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम लोग इन्हें बेटी मानते हैं तो एक मा-बाप की तरह हमें पूरा सम्मान मिलना चाहिए जैसे अभी तक मिलता रहा है। कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार की तरफ से छूट मिलती है तो उसका नाजायज फायदा उठाया जाता है।

पल्लवी- ऐसा ही होगा पापा। हम लोग ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली उठा सके। आप लोग हमारे माँ बाप हैं। आपकी सेवा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। जो हम हमेशा निभाएँगे। आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।

अ.पापा- ठीक है फिर तुम लोग कोचिंग खोल सकते हो। पर कोचिंग का नाम क्या रखोगे।

अभिषेक- आप लोग ही निर्णय लीजिए की क्या नाम रखा जाए कोचिंग का।

पापा- (कुछ देर सोचने के बाद) तुम लोग अपने नाम से ही कोचिंग का नाम क्यों नहीं रख लेते। तीनों के नाम का पहला अक्षर अमन (अभिषेक, महेश, नयन) ।

मैं- ठीक है पापा, लेकिन अमन के साथ ही ये कोचिंग सेंटर आप लोगों के आशीर्वाद के बिना नहीं चलना मुश्किल है। तो इसलिए आप लोगों का आशीर्वाद पहले और हम लोगों का नाम बाद में। इसलिए कोचिंग का नाम आशीर्वाद अमन रखेंगे।

इस नाम पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जता दी। फिर कुछ देर बात-चीत करने के बाद हम लोग अपने अभिभावक के साथ अपने घर पर आ गए। अगले दिन हम लोगों ने मुख्य मार्ग के आस पास कोचिंग सेंटर खोलने के लिए कमरे की तलाश करने लगे। दो चार जगह बात करने के बाद चार बड़ा बड़ा कमरा आसानी से मिल गया। फिर हम लोगों ने कोचिंग खोलने के लिए जरूरी सामान महीने भर में जमा कर लिया और कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। शुरू के दो महीने तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन दो महीने के बाद बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। कोचिंग सेटर अच्छी तरीके से चलने लगा।

हम लोगों के गाँव में भी तरह तरह ही बात उठने लगी। कि लालची हैं। पैसे के पीछे भाग रहे हैं। बहुओं के जरिए पैसे कमा रहे हैं। वगैरह वगैरह। कई बड़े बुजुर्ग लोगों ने हम लोगों के पापा से भी इस बारे में बात की कि बहुओ का यूँ घर से बाहर तीन-तीन, चार-चार घंटे रहना अच्छी बात नहीं है। जमाना बहुत खराब है। कोई ऊंच-नीच घटना हो सकती है।, लेकिन हमारे अभिभावकों ने उन्हें बस एक ही जवाब दिया कि मेरी बहुएँ समझदार मैं पढ़ी लिखी हैं। वो आने वाली परेशानियों का सामना कर सकती हैं। शुरू-शुरू में जो बातें उठी थी। वो समय बीतने के साथ धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। देखते ही देखते कोचिंग सेंटर बहुत अच्छा चलने लगा। शुरू शुरू में जो लोग मम्मी पापा की बुराई करते थे। वो भी धीरे-धीरे तारीफ करने लगे कि बहु और बेटा हों तो फलाने के बहु बेटे जैसे। हम लोगों का शादीशुदा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के डेढ़-से दो वर्ष के अंदर ही महेश-पल्लवी, अभिषेक-खुशबू और मैं-महिमा माँ बाप भी बन गए।हमने पढ़ाई में अच्छे कुछ लड़के लड़कियों को भी कोचिंग पढ़ाने के लिए रख लिया। ताकि तीनों लडकियों को कुछ मदद मिल सके।


तीन साल बाद।


इन तीन सालों में कुछ भी नहीं बदला। हम लोगों की दोस्ती और प्यार वैसे ही रहा जैसे पहले रहा था। हम सभी अपनी पत्नियों के साथ बहुत खुश थे। हमारे अभिभावक भी इतनी संस्कारी और अच्छी बहु पाकर खुश थे। बदलाव बस एक हुआ था कि हमारे कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी। और हमने ये देखते हुए इस कोचिंग सेंटर की तीन और शाखाएँ खोल दी थी। जिसमें हमने कुछ अच्छे और जानकार लड़के लड़कियों को पढ़ाने के लिए रख लिया था।

आज मेरा कार्यालय बंद था तो मैं घर में ही था। सुबह के लगभग 11 बजे का समय था तभी दो लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ जो मंडल अधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक की गड़ियाँ थी। आकर मेरे घर के सामने रुकी। उसके साथ एक गाड़ी पुलिस की गाड़ी भी थी। पूरे गाँव में ये चर्चा हो गई थी कि मेरे यहाँ पुलिस वाले आए थे। गाँव के कुछ लोग भी मेरे घर के आस पास आ गए ये पता करने के लिए कि आखिर माजरा क्या है। उस गाड़ी से एक लड़का जो लगभग 26-27 वर्ष का था एवं एक लड़की जो कि 24-25 वर्ष की थी। नीचे उतरे। उस समय पापा घर से बाहर चूल्हे में लगाने के लिए लकड़ी चीर रहे थे और मैं अपने कमरे में कुछ काम कर रहा था। महिमा और काजल अम्मा के साथ बाहर बैठकर बात कर रही थी। साथ में मेरा बेटा भी था। अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार तो सभी डर गए। पापा को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो वो तुरंत उनके पास गए। लड़की और लड़के ने पापा के पैर छुए। लड़की ने विनम्र भाव से पूछा।

लड़की- क्या नयन सर का घर यही है।

पापा- हाँ यही है आप कौंन हैं।

लड़की- जी मेरा नाम दिव्या है मैं कौशाम्बी जिले की पुलिस अधीक्षक हूँ। ये मेरे भाई सुनील कुमार प्रतापगढ़ जिले के मंडल अधिकारी हैं। हमें सर से मिलना था। क्यो वो घर पर हैं।

पापा- हाँ। आइए बैठिए। मैं बुलाता हूँ उसे।

इतना कहकर पापा ने काजल को कुर्सियाँ लाने के लिए कहा। काजल दौड़कर घर में गई और कुर्सियाँ लेकर आई। तबतक महिमा ने मुझे बता दिया था कि बाहर पुलिस आई है और एक लड़की मुझे पूछ रही है। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया है जिसके लिए पुलिस को मेरे घर आना पड़ा। मैं भी अपने कमरे से बाहर आया। तो देखा कि एक लड़का और एक लड़की बाहर कुर्सी पर बैठे हुए पापा से बातें कर रहे हैं। मैं उनके पास पहुँच गया और बोला।

मैं- हाँ मैडम जी। मैं नयन हूँ आपको कुछ काम था क्या मुझसे।

मेरी आवाज सुनकर लड़की कुर्सी से उठी और मेरे पैर छूने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की ऐसा क्यो कर रही है। मै थोड़ा पीछे हटकर उस लड़की को अपना पैर छूने से रोका और कहा।

मैं- ये आप क्या कर रही हैं मैडम।

लड़की- मैं आपकी मैडम नहीं हूँ सर। मैं वही कर रही हूँ जो एक विद्यार्थी को शिक्षक के साथ करना चाहिए।

उसकी बात सुनकर मेरे साथ अम्मा पापा भी उसे देखने लगे। मैंने उसके कहा।

मैं- ये क्या बोल रही हैं आप मैडम। आप इतनी बड़ी अधिकारी होकर मेरे पैर छू रही हैं। लोग तो आपके पैर छूते हैं। और आप मेरी विद्यार्थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं।

इसी बीच काजल ने सबके लिए जलपान लाकर मेज पर रख दिया और अंदर चली गई। लड़की ने कहा।

लड़की- सर मैं दिव्या। आपको शायद याद नहीं है। मैं .................... कोचिंग में कक्षा 12 में पढ़ती थी। आगे वाली सीट पर बैठती थी। जिसने अपनी मर्यादा भूलकर गलत हरकत की थी तो आपने एक दिन मुझे एक छोटा लेकिन अनमोल सा ज्ञान दिया था। कुछ याद आया आपको सर जी। मैं वही दिव्या हूँ।

लड़की की बात सुनकर मुझे वो वाकया याद आ गया जब मैंने एक लड़की को अपने अंग दिखाने के कारण अकेले में बैठाकर समझाया था। मुझे उसको इस रूप में देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी इस बात की हुई कि उसने मेरी बात को इतनी संजीदगी से लिए और आज इस मुकाम पर पहुँच गई है। मैंने उससे कहा।

मैं- दिव्या तुम। मुझे से विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मुझसे मिलने के लिए आओगी। वो भी इस रूप में। मुझे सच में बहुत खुशी हो रही है तुम्हें अफसर के रूप में देखकर।

दिव्या- मेरी इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ आपका है सर जी। आज मैं जिस मुकाम पर पहुँची हूँ वो आपके कारण ही संभव हुआ है।

मैं- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का परिणाम है। तुमने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।

दिव्या- ये सच है सर जी कि मैंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की है, लेकिन मुझे यह मेहनत करने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया था। जब मेरे कदम भटक गए थे तो आप ने ही मेरे भटके कदम को सही राह पर लाने की कोशिश की थी। आपने मुझको समझाया था कि मुझे वो काम करना चाहिए जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो, उन्हें मुझपर गर्व हो, न कि मेरी काम से उनके शर्मिंदगी महसूस हो। मैंने आपकी उस बात को गाँठ बाँध लिया और उसके बाद मैंने कोई की गलत काम नहीं किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित किया। और उसी का नतीजा है कि आज मै इस मुकाम पर हूँ। अगर आपने उस दिन मेरे भटकने में मेरा साथ दिया होता तो आज मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। इसलिए मेरी इस सफलता का श्रेय आपको जाता है सर जी। अब तो आप मुझे अपना आशीर्वाद देंगे न कि मैं भविष्य में और ऊँचाइयों को छुऊँ।

मैं- अब तुम बड़ी हो गई हो। और एक अफसर भी बन गई हो। तुम अपने कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों के सामने मेरे पैर छुओ। ये अच्छा नहीं लगता।

ये बात मैंने उसके साथ आए हुए पुलिसकर्मियों को देखकर कही थी। जो हम लोगों की तरफ ही देख रहे थे। मेरी बात सुनकर दिव्या ने कहा।

दिव्या- मैं चाहे जितनी बड़ी हो जाऊँ और चाहे जितनी बड़ी अधिकारी बन जाऊँ। लोकिन हमेशा आपकी विद्यार्थी ही रहूँगी। और आप हमेशा मेरे गुरु रहेंगे। गुरू का स्थान सबसे बड़ा होता है। मैं अपने कनिष्ठ अधिकारियों कर्मचारियों के सामने आपके पैर छुऊँगी तो में छोटी नहीं हो जाऊँगी सर जी। बल्कि उनको भी ये संदेश मिलेगा कि माता-पिता के बाद शिक्षक ही भगवान के दूसरा रूप होता है। इसलिए आप मुझे अपने आशीर्वाद से वंचित मत करिए सर। आपका आशीर्वाद लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाने वाली।

दिव्या ने इतना कहकर मेरे पैर छुए। मैंने इस बार उसको नहीं रोका। मेरे पैर छूने के बाद दिव्या ने कहा।

दिव्या- बातों बातों में मैं तो भूल ही गई। ये मेरे भाई हैं सुनील कुमार। ये प्रतापगढ़ में सर्किल अधिकारी (Circle Officer City) के पद पर हैं। मैं इनसे कुछ नहीं छुपाती। जब मैंने भइया को बताया कि मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो ये भी जिद करके मेरे साथ में आ गए। ये भी आपसे मिलना चाहते थे।

दिव्या के बताने पर उसने भी मेरे पैरे छूने चाहे तो मैंने उसे मना करते हुए कहा।

मैं- देखो मिस्टर सुनील। दिव्या मेरी विद्यार्थी है तो उसने मेरे पैर छुए। लेकिन तुम मेरे विद्यार्थी नहीं हो तो तुम मुझसे गले मिलो।

मैं और सुनील आपस में गले मिले। फिर दिव्या ने मुझसे कहा।

दिव्या- सर मैंने सुना है कि आपकी शादी भी हो गई है। तो क्या मुझे मैडम से नहीं मिलाएँगे।

मैं- अरे क्यों नहीं। (अम्मा पापा की तरफ इशारा करते हुए) ये मेरी अम्मा हैं ये मेरे पापा हैं। (महिमा और काजल को अपने पास बुलाकर), ये मेरी पत्नी महिमा और ये मेरी बहन काजल, और ये मेरा प्यारा बेटा अंश है।

दिव्या और सुनील ने मेरे अम्मा और पापा के पाँव छुए। दिव्या ने महिमा के पैर छुए और काजल को अपने गले लगाया और मेरे बेटे को अपनी गोद में उठाकर दुलार किया। सुनील ने महिमा और काजल को नमस्ते किया।कुछ देर बातचीत करने के बाद मैंने दिव्या से पूछा।

मैं- दिव्या। तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मिला। तुम कोचिंग गई थी क्या।

दिव्या- हाँ सर। मैं कोचिंग गई थी। नित्या मैडम से मिली थी तो उन्होंने बताया कि आपकी शादी हो गई है। फिर कोचिंग के रिकॉर्ड से आपका पता मिल गया। मुझे तो लगता था कि आपका घर ढ़ूढ़ने में परेशानी होगी, लेकिन यहाँ तो मुख्य सड़क पर ही आपके बारे में सब पता चल गया। आपकी कोचिंग के कारण आपको सभी जानते हैं। आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। एक तरह से ये भी समाज सेवा ही है।

पापा- ये इसका सपना था बेटी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद इसके सपने को मेरी बहू ने साकार किया है। जिसमें इसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया इसका। मेरे बेटे और बहू ने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।

दिव्या- सर हैं ही ऐसे। सर की संगत में जो भी रहेगा उसका भला ही होगा। जिसके पास सर जैसा बेटा हो उसका सिर कभी नहीं झुक सकता चाचा जी। आप से एक निवेदन है चाचा जी अगर आप बुरा न मानें तो।

पापा- कहो न बेटी। इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है।

दिव्या- मुझे भूख लगी है। तो क्या मैं आपके घर पर खाना खा सकती हूँ। प्लीज।

दिव्या ने ये बात इतनी मासूम सी शक्ल बनाकर कही कि हम लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पापा ने कहा।

पापा- क्यों नहीं बेटी। तुम सभी लोग खाना खाकर ही जाना घर। मैं अभी खाना बनवाता हूँ तुम लोगों के लिए।

इतना कहकह पापा ने महिमा और काजल को सबके लिए खाना बनाने के लिए कहा। दिव्या भी जिद करके महिमा और काजल के साथ रसोईघर में चली गई। सबने मिलकर खाना बनाया। उसके बाद दिव्या, सुनील और उसके उसके साथ जो पुलिस वाले आए थे। सबने खाना खाया। खाना खाने के बाद दिव्या और उसका भाई हम लोगों के विदा लेकर चले गए। उनके जाने के बाद पापा ने कहा।

पापा- मुझे तुमपर बहुत गर्व है बेटा। तुमने उस समय जो किया इस बच्ची के साथ। उसे सुनकर मुझे फक्र महसूस होता है कि मैंने तुझे कभी गलत संस्कार नहीं दिए थे। ये भी प्यार को एक स्वरूप है बेटा। जिसके साथ जैसा व्यवहार और प्यार दिखाओगे। देर-सबेर उसका फल भी तुम्हें जरूर मिलेगा। इस बात को हमेशा याद रखना।

मैं- जी पापा जरूर।

इसी तरह दिन गुजरने लगे। काजल भी अब शादी योग्य हो गई थी 23-24 वर्ष की उम्र हो गई थी। पापा ने जान पहचान वालों से अच्छे रिश्ते के बारे में बोल दिया था। दिव्या को मेरे यहाँ आए हुए दस दिन ही हुए थे एक मैं नौकरी से घर पहुंचा ही था और हाथ मुँह धोकर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। अम्मा और पापा भी साथ में बैठे थे। कि दिव्या का फोन मेरे मोबाइल पर आया।

मैं- हेलो दिव्या।

दिव्या- प्रणाम सर जी।

मै- प्रमाम। बोलो दिव्या। कुछ काम था।

दिव्या- सर एक बात कहना था आपसे।

मैं- हाँ दिव्या बोलो।

दिव्या- मुझे ये पूछना था कि आपकी बहन काजल की शादी कहीं तय हो गई है क्या।

मैं- नहीं दिव्या। अभी लड़का देख रहे हैं। अगर कहीं अच्छा लड़का मिला तो शादी कर देंगे।

दिव्या- सर अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मना तो नहीं करेंगे।

मैं- मेरे पास ऐसा क्या है दिव्या जो मैं तुम्हें दो सकता हूँ। कुछ ज्ञान था जो मैं तुम्हें पहले ही दे चुका हूँ। अब मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसकी जरूरत होगी। फिर भी बताओ अगर मेरे सामर्थ्य में होगा तो मैं मना नहीं करूँगा।

दिव्या- वो आपके सामर्थ्य में ही तभी तो मैं आपसे माँग रही हूँ।

मैं- बताओ दिव्या। मैं पूरी कोशिश करूँगा।

दिव्या- सर मैं आपकी बहन काजल को अपनी भाभी बनाना चाहती हूँ। अपने भाई के लिए आपकी बहन का हाथ माँग रही हूँ।

मैं- क्या। ये क्या बोल रही हो तुम। तुमको कुछ समझ में आ रहा है। कि तुम क्या माँग रही हो।

दिव्या- हाँ मुझे पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ। मेरे भैया को काजल पसंद है। भैया ने खुद मुझसे कहा है। और भैया ने मम्मी पापा से भी बात कर ली है। उनको भी कोई आपत्ति नहीं है। और आप भी तो काजल के लिए रिश्ता देख ही रहे हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हाँ अगर मेरे भैया आपको अच्छे नहीं लगे तो अलग बता है।

मैं- ऐसी बात नहीं है। तुम्हारे भाई में कोई कमी नहीं है। लेकिन कहाँ तुम लोग और कहाँ हम। जमीन आसमान का अंतर है हम दोनों की हैसियत में। और हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम इतनी अच्छी तरह से काजल की शादी कर पाएँगे तुम्हारे भाई के साथ। समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। और शादी की बात घर के बड़े बुजुर्गों पर छोड़ देनी चाहिए।

दिव्या- आप जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ रही हूँ सर जी। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपकी हैंसियत मुझसे बहुत ज्यादा है सर। मेरी नजर में आपकी हैंसियत आपका पैसा नहीं। आपके संस्कार हैं आपके गुण हैं। और यही सब काजल के अंदर भी है। वो भी आपकी तरह गुणवान है। जिसकी कोई कीमत नहीं है। हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए सर जी। सारा दहेज काजल के गुणों के रूप में हमें मिल जाएगा। बस आप हाँ कर दीजिए।

मैं- देखो दिव्या मैं हाँ नहीं बोल सकता। इसके लिए पहले मुझे अपने अम्मा पापा से बात करनी पड़ेगी। अगर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अभी फोन रखता हूँ। अम्मा पापा से बात करने के बाद तुमको बताऊँगा।

इतना कहकर मैंने अपने फोन रख दिया। और अम्मा पापा को सारी बात बता दी जो दिव्या से हुई थी। अम्मा पापा को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर आया है। लेकिन पापा और अम्मा ने हाँ करने से पहले काजल की राय जाननी चाही। काजल ने कह दिया कि आप लोग जहाँ भी मेरे रिश्ता तय करेंगे मैं वहाँ शादी कर लूँगी। महिमा ने भी इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति जता दी। अगले दिन सुबह ही मैंने दिव्या को फोन करके उसके पता लिया और अम्मा पापा को लेकर उसके घर चला गया। दोनों के अभिभावकों ने कुछ देर बात की और दोनों तरफ से रिश्ता तय हो गया। रिश्ता तय होने के बाद मैंने अपने सभी दोस्तो को इस बारे में बता दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए। मैंने संजू और पायल को भी इसके बारे में बता दिया। समय बीतने के साथ काजल और सुनील की सगाई धूम धाम से हो गई। सारे गाँव और पास पड़ोस के गाँवों में ये चर्चा का विषय था कि एक गरीब किसान के बेटी की शादी एक मंडल अधिकारी के साथ हो रही है। कुछ को जलन हुई तो कुछ को खुशी मिली। सगाई होने के दो महीने बाद काजल और सुनील की शादी भी धूम-धाम से संपन्न हुई।

आज हमारी दोस्ती, हमारा प्यार आज सबकुछ हमारे पास था। इस प्रकार हम सब अपना अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगे।



मित्रों एवं पाठकों।

ये कहानी यहीं समाप्त होती है। जैसा कि कहानी के शुरू में मैंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्यार का अलग-अलग मतलब होता है। हर व्यक्ति प्यार का मतलब अपने अपने हिसाब से निकालता है। किसी के लिए टूट कर प्यार करने वाले के प्यार की कोई कीमत नहीं होती तो किसी के लिए प्यार के दो मीठे बोल ही प्यार की नई इबारत लिख देता है।


मैंने इस कहानी से यही बताने का प्रयास किया है कि प्यार के कितने रंग होते हैं और हर इंसान प्यार के किसी न किसी रंग में रंगा होता है।


ये कहानी यहीं समाप्त हो गई है तो आप सभी पाठकों से जिन्होंने नियमित कहानी पढ़ी है उनसे भी और जिन्होंने मूक पाठक बनकर कहानी पढ़ी है उनसे भी मैं चाहूँगी कि आप पूरी कहानी से संबंध में अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/टिप्पणी/समीक्षा चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो, जरूर दें ताकि मुझे भविष्य में आगे लिखने वाली कहानियों के संबंध में प्रेरणा मिल सके और जो भी कमियाँ इस कहानी में रह गई हैं उसे सुधारने की कोशिश कर सकूँ।


साथ में उस सभी पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण समीक्षा देकर मुझे कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि बिना समीक्षा के कहानी लिखने में लेखक का भी मन नहीं लगता। साथ ही ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।


कहानी खत्म करने से पहले प्यार को लेकर मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। जिसे आप भी एक बार पढ़ें और आनंद लें।


प्यार के कितने फलसफें हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।

कितने ही अनकहे किस्से हैं जिसे जबान नहीं दिया जा सकता।

तुम्हारे प्रेम में गर हवस है, कपट है, धोखा है, छल है।

तो कसमें कितनी भी खाओ प्यार की सम्मान नहीं किया जा सकता।




किसी को पा लेना ही प्यार नहीं, किसी को खो कर भी प्यार किया जाता है।

हमेशा हँसना ही नहीं सिखाता, कभी रो कर भी प्यार किया जाता है।

प्यार करने के लिए चाहिए सच्ची नीयत, पवित्र मन और खूबसूरत एहसास।

प्यार जीते जी नहीं मिलता कभी कभी, गहरी नींद में सो कर भी प्यार किया जाता है।




प्यार मन के एहसासों से होता है।

प्यार किसी के जज्बातों से होता है।

प्यार के लिए जरूरी नहीं रोज मिलना।


प्यार तो चंद मुलाकातों से होता है।



प्यार में साथ जीने मरने की कसमें हों ये जरूरी नहीं।


हमेशा साथ रहने की भी कसमें हों ये जरूरी नहीं।

कभी कभी प्यार जुदाई भी माँगता है दोस्तों

प्यार किया हो तो शादी की रश्में हों ये जरूरी नहीं।




किसी को प्यार करके बिस्तर पर सुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।

वो तुम्हें याद करें और तुम उसे भुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।

प्यार एक दूसरे को टूट कर किया जाए ये जरूरी नहीं।

मगर किसी को हँसा कर फिर उसे रूला दो तो वो प्यार नहीं रहता।




पूर्ण/समाप्त/खत्म
Bahut hi khubsurat update,,,,:claps:
Is kahani ka ye wala update behad khubsurat tha mahi madam,,,,:perfect:

Gaav samaaj ke bachcho ki bhalaayi aur unke Ujjwal bhavishya ke liye couching center kholne ka nirnay bahut hi achha tha aur ye dekh kar achha bhi laga ki parents ne bhi iske liye apni apni manjuri di. Ye sach hai ki gaav dehaat me bahuye agar aisa koi kaam karti hain to samaaj me maujood kayi log is baat ka patangad bana kar jane jane kya kya bolne lagte hain. Kisi ko kisi ki achhaaiya nahi dikhti balki sirf buraaiya dikhti hain. Kuch to aise bhi hote hain ki wo aakhiri saans tak isi koshish me lage rahte hain ek achhe bhale insaan ko zameen ke neeche itna gaad do ki uska kahi vajood hi na rahe. Log dusro ki achhaaiyo aur khushiyo se jalte hain aur chaahte hain ki wo bhi waisa hi ban jaye jaise wo khud hain lekin aisa hota nahi hai. Upar wala jo chaahta hai wahi hota hai,,,,:dazed:

Nayan ki ek student thi jise ek samay usne is baat ke liye sahi galat ka paath padhaya tha ki wo use apna ang dikha kar galat karna chahti thi. Divya ko us waqt Nayan ka paath samajh aa gaya tha is liye usne dubara fir kabhi waisa nahi kiya aur sachchi mahnat aur lagan se usne padhaayi ki jiska nateeja ye nikla ki aaj wo is mukaam par thi. Halaaki aisa bhi hota hai ki bahuto ko aise paath samajh me bhi nahi aate aur wo aage bhi apni harkato se baaz nahi aate. Khair ye to sabki apni apni soch aur kismat ki baate hain,,,,:dazed:

Mahi madam bahut bahut shukriya aur bahut bahut badhai bhi is kahani ko complete karne ke liye. Ummid hai aage bhi aapke dwara aisi hi khubsurat kahaniya padhne ko milengi,,,,:love:
 
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Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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Kya baat hai, bahut hi badhiya,,,,:claps:
धन्यवाद आपका महोदय।।
Anamika ki talwaar abhi bhi sanju aur nayan par latki huyi hai. Halaaki Nayan apna palla jhaadta hua nazar aaya lekin kya ye itna asaan hai. Khair dekhte hain aage,,,,:smoking:
अनामिका ने जो किया बहुत सोच समझकर किया। इसलिए एक छोटी सी बात नहीं समझ पा रहे हैं सब। बस परेशानी में घिरे पड़े हैं।।
Mahi madam, ladki ke baap se itna confident ho kar kaun aashiq baat karta hai. Abhishek to sach me kaafi pahucha hua hai.
सब समय का बदलाव है सर जी।समय सबकुछ करवा रहा है। आगे बहुत कुछ हुआ।।

Khair baatcheet badi dilchasp rahi. Khushbu ke baap ne baato ko ghuma fira kar bade achhe tareeke se Abhishek ke kandhe par ek aisi jimmedari daal di hai jise nibhana Abhishek ke liye challenge ki tarah hai. Kahne ka matlab ye ki khushbu ke baap ne bade pyaar se Abhishek ki maar li hai,,,,:lol1:
😁😆😁😁😆😆😁
सही कहा सर जी। अभिषेक के कंधे पर ही बंदूक रख दी और खुशबू पर निशाना लगाने के लिए बोल दिया।। अभिषेक की स्थिति ऐसी हो गई है कि आगे कुआँ तो पीछे खाई।।

🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽
 
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Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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Bahut hi badhiya mahi madam,,,,,:claps:
धन्यवाद आपका महोदय,

Aapne Abhishek ke dwara khushbu ko bade achhe tareeke se samjhaya. Bechaari khushu....mujhe to uske liye behad dukh ho raha hai,,,,:verysad:
अभिषेक को तो ये करना ही था। मजबूरी जो थी। कभी कभी ज्यादा सीधा होना भी खतरे को दावत देता है। अभिषेक के साथ भी यही हुआ।।

Pallavi reshma aur Rashmi ke saamne ye log laude lag gaye/gaand fati padi hai jaise shabd badi sahajta se bol jate hain aur wo teeno aitraaz bhi nahi karti. Waakayi me badi achhi
दोस्ती में कभी कभी गुस्से में इतना तो चलता ही है। वो तो सामने वाले कि सोच पर निर्भर करता है कि वो इस बात को किस तरह से लेता है।।
Anamika ka case abhi bhi chal raha hai. Mujhe lagta hai koi tagda locha hai. Khair dekhte hain aage,,,,:smoking:
लोचा तो था ही, लेकिन अनामिका ने इतना उलझा दिया था सबको की किसी का ध्यान हो नहीं गया उसपर।

🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽
 
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Mahi Maurya

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Bahut hi badhiya update,,,,:claps:
धन्यवाद आपका महोदय,

Mahesh bhi aa gaya hai aur usne Abhishek ki help karne ke liye khushbu ka no liya aur use milne ke liye bhi bulaya lekin uski khushbu se kya baat huyi ye usne nahi bataya aur na hi update me iska scene dikha hai.
थोड़ा बहुत सस्पेन्स भी जरूरी था इसलिए इस भाग में कुछ नहीं लिखा हमने। महेश ने ही सबका बेड़ा पार लगाया था।।

Aditya se milne ke baad aur medical report ki jaanch karne ke baad yahi pata chala ki Anamika ki wo report real thi, matlab jo raahat aur ummid ki kiran nazar aayi thi wo gadhe ke seeng ki tarah gaayab ho gayi hai.
अब जब अस्पताल के रिकार्ड में सब डेटा मौजूद था तो उसे चुनौती कौन दे सकता था। बस थोड़ा और दिमाग लगा लेते उस समय तो उसी समय दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता।
Ab sawaal ye hai ki Anamika kiska beej apne pet me liye ghoom rahi hai.??? Kahi sanju koi game to nahi khel raha ya fir wo beej kisi chauthe person ka hai. Khair dekhte hain aage,,,,:smoking:
कहानी का यही तो पेंच था जो अनामिका ने फंसाया था और सभी लौंडे उसमे फंसते हुए चले गए।।

🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽
 
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Mahi Maurya

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Bahut khoob, shandar update,,,,:claps:
To mahesh ne Abhishek ka beda paar kar diya. Mujhe laga hi tha ki isne kuch kiya hai. Khair to khushi ki baat ye huyi ki Abhishek ki viraan hone wali zindagi me fir se bahaar aa gayi. Chalo khushbu aur Abhishek ka to rishta ab pakka hi ho gaya samjho lekin Anamika wala matter abhi bhi gale me talwaar lagaye kaayam hai. Dekhte hain kya hota hai aage,,,,,:smoking:
धन्यवाद आपका महोदय।

इसीलिए तो अभिषेक से महेश ने खुशबू का नम्बर लिया था। ताकि वो अपने स्तर से कुछ कर सके अभिषेक के लिए। उठाने बस एक कोशिश की और वो कामयाब हो गई। इसीलिए शादी व्याह की बात बड़े बुजुर्ग ही करें तो ही अच्छा है।

अभिषेक के पापा गके खुशबू के यहां और रिश्ता पक्का करके आ गए।।

🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽
 
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Mahi Maurya

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Bahut hi shandar update mahi madam,,,,:claps:
धन्यवाद आपका महोदय,
To wahi hua jiska mujhe andesha tha. Yaani mahesh ne sach me Abhishek ke liye kuch kiya tha aur wo kuch kya tha....ye ki usne direct uske baap se hi baat kar li. Yaha tak ki khushbu ko milwa bhi diya. Abhishek ka baap khushbu se mila aur dono ke beech dono ke rishte ke bare me baatcheet huyi jiska nateeja ye nikla ki khushbu ka baap shadi ke liye maan gaya.
जी महोदय।
एक दोस्त होने के नाते उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। ये तो अच्छा हुआ कि उसकी कोशिश रंग लाई और अभिषेक के पापा को भी अपने बेटे का दर्द समझ आया और उन्होंने खुशबू के पापा से बात की। ये तो और भी अच्छा हुआ कि खुशबू के पापा भी मान गए।
Idhar kajal ne phone kar ke Nayan ko ye bata kar chaunka diya ki uske pita ne bhi uski shadi ke liye ek ladki khoj li hai. Khair sab kuch set ho gaya hai
अपनी भाभी से मिलकर काजल बड़ी खुश थी इसलिए उसने धमकी देनेवाले अंदाज़ में नयन से बताया। कि उसे जिसनी भाभी मान लिया है उसी से शादी करनी पड़ेगी।
Anamika naam ki talwaar ka bhi samaadhaan ho gaya. Well done mahesh,,,,:good:

Aage dekhte hain Anamika ka is bare me kya reaction hota hai,,,,:reading:
महेश की सूझबूझ के कारण ही ये सब सम्भव हुआ। अनामिका बहुत ही बेहरतीन तरीके से सबका सामना करती है।।
🙏🙏🏼🙏🏼🙏🏼
 
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Mahi Maurya

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Bahut hi badhiya mahi madam,,,,:claps:
धन्यवाद आपका सर जी।।
To aakhir Anamika ka kissa khatam ho gaya. Waise ek baat to hai ki jab se uska ye wala matter shuru hua tha tab se uske chaahne walo ki gaand me danda sa pada hua tha. Khair bure kaam karne wale se chhutkara mil gaya. Sanju ke gale me padne wali talwaar hamesha hamesha ke liye usse door ho gayi. Idhar Nayan ne bhi is sabke baad yakeenan apna pichhwada sahlaya hoga,,,,:lol1:
Ab dekhte hain aage kya hota hai,,,,,:reading:
हाहाहाहा
😆😆😆😆😁😜🤓🤓

सही कहा आपने। अनामिका ने सबकी बजा कर रख दी थी। इतने शातिराना ढंग से सबकुछ किया उसने की सबकुछ सामने होते हुए भी कोई समझ नहीं पाया कि आखिर इससे छुटकारा कैसे मिले।।
 
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