badi gehri baatein likhta hai bhaiमोहब्बत, इश्क, प्यार या जो भी नाम दो मैं तो बस इसे एक इबादत समझता हूँ. जिंदगी को लोगो ने अपने अपने शब्दों में ब्यान किया है , चाहे किसी अमीर की नजर हो या गरीब की सोच, एक चीज़ तो है दुनिया में जो हर इन्सान को एक दुसरे से जोडती है , जो इन्सान को अहसास करवाती है की वो इन्सान है, वो प्रेम है .
ye kya hai be, content hi delete kar rakha haiWill post again with improvement sorry for inconvenience
ye kya hai be, content hi delete kar rakha hai
poori kar fir padunga
shuru mein yahi bhej deta, faaltu mein 8 page khangaleयहां से शुरू है ये कहानीAdultery - गुजारिश
Romance ke king to aap ho bhai main to bas yu hi prastawana ki har line jaise dimag me download ho rahi thi .. main abhi kaam me hun isliye ache se comment nahi kar paya... main fursat se uspar comment karna chahunga ... lekin abhi ke liye kewal itna hi.... Dil jit liya :hug:xforum.live
jab main chota tha shayad 3rd class mein hunga, bahut baar dad ke saath ganvon mein gaya tha, jahan ek theater type bana ke gaanv vaalon filme dikhate the bachche rokne ki prakriya nirodh use etc sab mere sar ke upar se jaata tha, ek baar to film dekh ke behosh ho gaya tha. ismein kuch bhi jhuth nahi hai“बेपरवाह दिलबर दे दिल विच बेपरवाह दिलबर दे दिल विच तरस जरा एक दिल सी ओह तकड़ी डा ओह भी चक गठड़ी विच पाया. ”
इकतारा बजाते हुए वो बाबा गीत गा रहा रहा था , आसपास मजमा लगा था , लोग बाबा के साथ झूम रहे थे, मैं थोडा दूर पेड़ के तने से पीठ टिकाये देख रहा था . बाबा के इकतारे की तान उस बोझिल रात में दूर दूर तक गूँज रही थी , कशिश इतनी की सीधा दिल को टक्कर मारती थी ,
बाबा को बस मैं ही था जो बाबा कहता था वर्ना दुनिया उसे कभी पागाल, कभी चिश्ती न जाने क्या क्या कहती थी पर उसे भला क्या परवाह थी , आने जाने वालो को कभी कभी पत्थर मार देता था वो, कभी किसी को गालिया देता था पर कोई रात ऐसी नहीं थी जब वो गीत न गाता हो , मजार पर आने वाले लोग सब भूल कर बैठ जाते जब तक वो गाता, कोई कुछ दे जाता वो खा लेता.
वो कौन था , कहाँ से आया कोई नहीं जानता था जिसने भी उसे देखा था बस यही देखा था , ये रात भी ऐसी ही थी धीरे धीरे सब चले गए रह गए हम दोनों , वो अपनी जगह से मुझे देखता मैं अपनी जगह से .
“ओये मुसाफिरा , कब तक उस पेड़ के पास बैठा रहेगा , आ पास मेरे ” बाबा ने चिल्लाते हुए कहा
रोज वो ऐसे ही बुलाता था मुझे पर मैं कभी जाता नहीं था पर उस दिन मैं उसके पास गया .
“बैठ ” उसने चिलम सिल्गाते हुए कहा .
“क्यों बुलाया मुझे ” मैंने कहा
बाबा- कोई किसी को नहीं बुलाता सिवाय उसकी तक़दीर के , तेरे भी नसीब ने आवाज दी तुझे
मैं- सबको ऐसे ही पागल बनाते हो इन फालतू बातो से
बाबा के झुर्रियो भरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी उसने चिलम का कश लिया और बोला-”मुसाफिरा , मोहब्बतों का मौसम शुरू होने वाला है ये हवा देख , ये कहती है की एक नयी कहानी शुरू होने वाली है , तू बता तेरा क्या ख्याल है ”
मैं- मेरा क्या ख्याल होगा, और जैसा तूने कहा मुसाफिर, मैं तो मुसाफिर हूँ मुसाफिर के नसीब में मंजिल नहीं होती , होता है सफ़र .......
बाबा- मुसफिरा, ये जो लेख होते है न नसीबो के ये बड़े जालिम होते है , ये तारे देख ये गवाह है , उन कहानियो के जो बनी, न बनी , कुछ लोग कमजोर निकले कुछ जमाना ज़ालिम. पर जब तैनू देखता हु तो एक तीस होती है कलेजे में . अब देख, तू भी तो हर रात यहाँ ही आकर रुकता है . चा पिवेगा
मैं- ना , बस अब निकलूंगा रात बहुत हुई
वापसी में मैं बस उसके बारे में सोचता रहा उसकी बाते , लोग शायद ठीक कहते थे की वो पागल है पर मुझे क्या लेना देना था उस से , बात को आई गयी किया मैंने , सुनकर भी क्या हो जाना था हम जैसे लोगो के लिए नहीं थी ये दुनिया.
घर आकर मै खाना खा ही रहा था की मेरा दोस्त करतार आ गया उसने मुझे बताया की गाँव में विडिओ आया है तो मेरी आँखों में चमक आ गयी .
“घरवालो को मालूम हुआ तो गुस्सा करेंगे” मैंने कहा
करतार- किसी को मालूम नहीं होगा, बस एक फिल्म देख कर वापिस आ जायेंगे ,सन्नी देओल की नयी फिल्म लाये है मैंने मालूम कर लिया है
मैं- सच
करतार- हाँ
मैं- ठीक है तू गली में मेरी राह देखना जैसे ही घरवाले सो जायेंगे मैं आता हु.
करीब घंटे भर बाद सब बत्तिया बुझ गयी , मैंने अपना खेस ओढा और धीरे से निकल गया पर करतार नहीं दिखा , धुंध बढ़ने लगी थी मैंने खेस को और कसा और जिस घर में विडियो लाये थे उस तरफ चल पड़ा. पहले से ही उनकी बैठक में बहुत लोग जमा थे पर जैसे तैसे मैं भी बैठ गया और फिल्म देखने लगा.
उन दिनों सनी देओल का बहुत क्रेज था गाँव में , लड़के उसके डायलाग बोलते थे ,फिल्म देखने में बहुत मजा आ रहा था पर ठन्डे फर्श पर बैठने से परेशानी हो रही थी , मेरी निगाहे करतार को देख रही थी पर वो चुतिया न जाने किस तरफ बैठा था .
“ठण्ड लग रही है ” मेरे पास बैठी औरत ने कहा
मैं उसका चेहरा तो नहीं देख पाया क्योंकि घूँघट था पर फिर भी बोला- हाँ काकी
“ले कम्बल में आ जा ” उसने कम्बल मेरी तरफ किया तो मैं सरक गया. अब ठीक लग रहा था , मैं उस से सटकर बैठा था तो मेरे पैर उसकी जांघ से रगड़ खाने लगे, सर्दी में बड़ा अच्छा लग रहा था , थोड़ी देर बीती फिर उसका हाथ मेरी जांघ पर आ गया . वो मेरी जांघ को सहलाने लगी ,
मेरा ध्यान फिल्म से हट कर कही और पहुँच गया था , बदन में ऐसी हरकत कभी पहले नहीं हुई थी , नवम्बर की ठण्ड में मैंने पसीने को रेंगता महसूस किया अपने तन पर तभी उस औरत का हाथ मेरे लिंग पर आ टिका, वो और कुछ करती की तभी बिजली चली गयी .
आस पास बैठे लोग जिनको फिल्म में मजा आ रहा था , निराश हो गए बिजली वालो को कोसने लगे, मैं भी उठने लगा ही था की वो फुसफुसाई
“बैठा रह ”
चूँकि हम पीछे ही पीछे बैठे थे और अँधेरा था , वो धीरे से बोली- मेरे पीछे आना
इस से पहले की कोई मोमबती, लैंप जलाता वो उठ कर बाहर को चल पड़ी , धडकते दिल से मैं उसके पीछे आया, गली में धुंध थी पर उसकी पाजेब की आवाज आ रही थी मैं कुछ कदम चला ही था की बिजली आ गयी . सब जगह रौशनी हो गयी .
पर मुझे अब फिल्म कहा देखनी थी , मैंने जैसे ही गली पार की एक चीख जैसे मेरे कान के पर्दों को हिला गयी और मेरी ही नहीं बल्कि औरो ने भी सुन ली होगी, मैंने अपने पीछे और लोगो को भी भागते देखा , गलियारे में एक लाश पड़ी थी , गाँव के लाला महिपाल के मुनीम की लाश , ...................
yaad aa gayi un dino ki jab TV kisi kisi ke pass hota tha aur hum Sunday sham ki movie dekhne ke liye papa ko request karte the, ke please jaane do“बेपरवाह दिलबर दे दिल विच बेपरवाह दिलबर दे दिल विच तरस जरा एक दिल सी ओह तकड़ी डा ओह भी चक गठड़ी विच पाया. ”
इकतारा बजाते हुए वो बाबा गीत गा रहा रहा था , आसपास मजमा लगा था , लोग बाबा के साथ झूम रहे थे, मैं थोडा दूर पेड़ के तने से पीठ टिकाये देख रहा था . बाबा के इकतारे की तान उस बोझिल रात में दूर दूर तक गूँज रही थी , कशिश इतनी की सीधा दिल को टक्कर मारती थी ,
बाबा को बस मैं ही था जो बाबा कहता था वर्ना दुनिया उसे कभी पागाल, कभी चिश्ती न जाने क्या क्या कहती थी पर उसे भला क्या परवाह थी , आने जाने वालो को कभी कभी पत्थर मार देता था वो, कभी किसी को गालिया देता था पर कोई रात ऐसी नहीं थी जब वो गीत न गाता हो , मजार पर आने वाले लोग सब भूल कर बैठ जाते जब तक वो गाता, कोई कुछ दे जाता वो खा लेता.
वो कौन था , कहाँ से आया कोई नहीं जानता था जिसने भी उसे देखा था बस यही देखा था , ये रात भी ऐसी ही थी धीरे धीरे सब चले गए रह गए हम दोनों , वो अपनी जगह से मुझे देखता मैं अपनी जगह से .
“ओये मुसाफिरा , कब तक उस पेड़ के पास बैठा रहेगा , आ पास मेरे ” बाबा ने चिल्लाते हुए कहा
रोज वो ऐसे ही बुलाता था मुझे पर मैं कभी जाता नहीं था पर उस दिन मैं उसके पास गया .
“बैठ ” उसने चिलम सिल्गाते हुए कहा .
“क्यों बुलाया मुझे ” मैंने कहा
बाबा- कोई किसी को नहीं बुलाता सिवाय उसकी तक़दीर के , तेरे भी नसीब ने आवाज दी तुझे
मैं- सबको ऐसे ही पागल बनाते हो इन फालतू बातो से
बाबा के झुर्रियो भरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी उसने चिलम का कश लिया और बोला-”मुसाफिरा , मोहब्बतों का मौसम शुरू होने वाला है ये हवा देख , ये कहती है की एक नयी कहानी शुरू होने वाली है , तू बता तेरा क्या ख्याल है ”
मैं- मेरा क्या ख्याल होगा, और जैसा तूने कहा मुसाफिर, मैं तो मुसाफिर हूँ मुसाफिर के नसीब में मंजिल नहीं होती , होता है सफ़र .......
बाबा- मुसफिरा, ये जो लेख होते है न नसीबो के ये बड़े जालिम होते है , ये तारे देख ये गवाह है , उन कहानियो के जो बनी, न बनी , कुछ लोग कमजोर निकले कुछ जमाना ज़ालिम. पर जब तैनू देखता हु तो एक तीस होती है कलेजे में . अब देख, तू भी तो हर रात यहाँ ही आकर रुकता है . चा पिवेगा
मैं- ना , बस अब निकलूंगा रात बहुत हुई
वापसी में मैं बस उसके बारे में सोचता रहा उसकी बाते , लोग शायद ठीक कहते थे की वो पागल है पर मुझे क्या लेना देना था उस से , बात को आई गयी किया मैंने , सुनकर भी क्या हो जाना था हम जैसे लोगो के लिए नहीं थी ये दुनिया.
घर आकर मै खाना खा ही रहा था की मेरा दोस्त करतार आ गया उसने मुझे बताया की गाँव में विडिओ आया है तो मेरी आँखों में चमक आ गयी .
“घरवालो को मालूम हुआ तो गुस्सा करेंगे” मैंने कहा
करतार- किसी को मालूम नहीं होगा, बस एक फिल्म देख कर वापिस आ जायेंगे ,सन्नी देओल की नयी फिल्म लाये है मैंने मालूम कर लिया है
मैं- सच
करतार- हाँ
मैं- ठीक है तू गली में मेरी राह देखना जैसे ही घरवाले सो जायेंगे मैं आता हु.
करीब घंटे भर बाद सब बत्तिया बुझ गयी , मैंने अपना खेस ओढा और धीरे से निकल गया पर करतार नहीं दिखा , धुंध बढ़ने लगी थी मैंने खेस को और कसा और जिस घर में विडियो लाये थे उस तरफ चल पड़ा. पहले से ही उनकी बैठक में बहुत लोग जमा थे पर जैसे तैसे मैं भी बैठ गया और फिल्म देखने लगा.
उन दिनों सनी देओल का बहुत क्रेज था गाँव में , लड़के उसके डायलाग बोलते थे ,फिल्म देखने में बहुत मजा आ रहा था पर ठन्डे फर्श पर बैठने से परेशानी हो रही थी , मेरी निगाहे करतार को देख रही थी पर वो चुतिया न जाने किस तरफ बैठा था .
“ठण्ड लग रही है ” मेरे पास बैठी औरत ने कहा
मैं उसका चेहरा तो नहीं देख पाया क्योंकि घूँघट था पर फिर भी बोला- हाँ काकी
“ले कम्बल में आ जा ” उसने कम्बल मेरी तरफ किया तो मैं सरक गया. अब ठीक लग रहा था , मैं उस से सटकर बैठा था तो मेरे पैर उसकी जांघ से रगड़ खाने लगे, सर्दी में बड़ा अच्छा लग रहा था , थोड़ी देर बीती फिर उसका हाथ मेरी जांघ पर आ गया . वो मेरी जांघ को सहलाने लगी ,
मेरा ध्यान फिल्म से हट कर कही और पहुँच गया था , बदन में ऐसी हरकत कभी पहले नहीं हुई थी , नवम्बर की ठण्ड में मैंने पसीने को रेंगता महसूस किया अपने तन पर तभी उस औरत का हाथ मेरे लिंग पर आ टिका, वो और कुछ करती की तभी बिजली चली गयी .
आस पास बैठे लोग जिनको फिल्म में मजा आ रहा था , निराश हो गए बिजली वालो को कोसने लगे, मैं भी उठने लगा ही था की वो फुसफुसाई
“बैठा रह ”
चूँकि हम पीछे ही पीछे बैठे थे और अँधेरा था , वो धीरे से बोली- मेरे पीछे आना
इस से पहले की कोई मोमबती, लैंप जलाता वो उठ कर बाहर को चल पड़ी , धडकते दिल से मैं उसके पीछे आया, गली में धुंध थी पर उसकी पाजेब की आवाज आ रही थी मैं कुछ कदम चला ही था की बिजली आ गयी . सब जगह रौशनी हो गयी .
पर मुझे अब फिल्म कहा देखनी थी , मैंने जैसे ही गली पार की एक चीख जैसे मेरे कान के पर्दों को हिला गयी और मेरी ही नहीं बल्कि औरो ने भी सुन ली होगी, मैंने अपने पीछे और लोगो को भी भागते देखा , गलियारे में एक लाश पड़ी थी , गाँव के लाला महिपाल के मुनीम की लाश , ...................
Khud baap ban gaye, par maa baap ki kami aaj bhi khalti hai#2
रात अचानक से बहुत भारी हो गयी , ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था , छोटे मोटे झगडे मारपीट तो खैर चलती रहती थी पर ऐसे कभी किसी की लाश नहीं मिली थी, धीरे धीरे करके पूरा गाँव ही जमा हो गया था. एक दो लोगो ने मुनीम की लाश को देखा कोई जख्म नहीं, कोई मारपीट नहीं तो फिर ये मरा कैसे.
“लगता है हार्ट अटैक हो गया होगा ” किसी ने कहा
मुनीम की उम्र कोई ६५ के आस पास होगी तो ऐसा हो सकता था पर न जाने क्यों मुझे लग रहा था की उसे किसी ने मारा है . इस बखेड़े में एक बात छुट गयी थी की वो औरत कौन थी . और अब तो इतनी भीड़ हो गयी थी की कुछ भी अनुमान लगाना मुश्किल था .
अनुमान , हाँ पर इतना जरुर था की वो हो न हो मेरे ही मोहल्ले की थी की क्योंकि जिस गली में वो मुड़ी थी उधर हमारे ही घर थे . बाकि बची रात मैंने उस औरत के बारे में सोच सोच कर काटी की कौन हो सकती है वो , खैर सुबह मुझे करतार (कट्टु )मिला
मैं- साले कल कहाँ मरवा रहा था मैंने कितना ढूंढा तुझे
कट्टु- यार भाई, वो कल बापू साथ सो गया था तो मैं निकल नहीं पाया
मैं कट्टु को उस औरत के बारे में बताना चाहता था पर न जाने क्यों मैंने खुद को रोक लिया और हम बाते करते हुए जोहड़ की तरफ चल पड़े.
मैं- तुझे क्या लगता है मुनीम को हार्ट अटैक आया या किसी ने मारा उसे .
कट्टु- जो भी हुआ ठीक ही हुआ , साला मर गया लोगो के बही खाते में बहुत बढ़ा कर हिसाब लिखता था वो .
मैं- पुलिस को सुचना देनी चाहिए थी , वो तहकीकात करती
कट्टु- आजतक कभी पुलिस आई है क्या गाँव में , पंच लोग ही पुलिस बने फिरते है . वैसे माँ बता रही थी की तू आजकल मजार पर बहुत जाने लगा है . क्या करता है तू उधर ,
मैं- कुछ नहीं यार बस वैसे ही .
कट्टु- तुझे मालूम है न की अपने गाँव वाले उधर कम ही जाते है
मैं- यार अब इसमें क्या है , सब तो जाते है
कट्टु- चल छोड़, सुन मैं आज शहर जा रहा हूँ तू भी चल
मैं- ना रे
कट्टु- चल न , बस अड्डे होकर आयेंगे कोई नयी किताब आई होगी तो देख लेंगे .
मैं- फिर कभी
कट्टु- ठीक है मैं तो जाऊंगा ही सुन तेरी साइकिल ले जाऊ
मैं- ठीक है .
करतार के जान के बाद भी मैं बहुत देर तक जोहड़ पर बैठा रहा , घुटनों तक पैर पानी में दिए मैं बस उस औरत के बारे में सोचने लगा, काश वो मुनीम की लाश नहीं मिलती तो मेरे नसीब में एक चूत मिल गयी थी .
न जाने क्यों मेरे अन्दर एक तन्हाई थी, एक अजीब सी बेताबी ,एक उदासी मैं बस इन दिनों अकेला रहना चाहता था .
शायद इसका एक कारण चढ़ती जवानी भी हो सकती थी , जब इस उम्र में हार्मोन बदलते है , पर बस ऐसा ही था , एक बार फिर उस शाम मैं मजार के पास पहुँच गया था , पर आज वो बाबा इकतारा नहीं बजा रहा था , लोगो ने इंतज़ार किया पर उसका मूड नहीं हुआ . धीरे धीरे करके लोग जाने लगे. मैं उसी पेड़ के निचे बैठा था कम्बल ओढ़े.
“ओये मुसाफिरा ओथे क्यों बैठा है आज पास जरा ” बाबा ने आवाज दी .
मैं उसके पास गया .
मैं- आज इकतारा नहीं बजाया
बाबा- उसकी मर्जी, जब उसका मन हो बजे
मैं- आओ चा पीते है
बाबा- ठीक है .
मैंने चाय वाले को आवाज दी .
बाबा- कुछ परेशां लगता है मुसफिरा
मैं- मालूम नहीं , आजकल मेरा मन नहीं लगता कही भी ,
बाबा- होता है , भरोसा रख उस रब्ब पर . तेरे लिए भी कुछ लिखा होगा उसने .
मैंने बाबा को चाय का कप दिया और खुद भी चुस्की ली, बरसती ठण्ड में जैसे रूह को करार आ गया.
मैं- जानते हो बाबा मैं रोज यहाँ आकर क्यों बैठता हूँ .
बाबा- जानता हु मुसाफिरा भला मुझसे क्या छिपा है .
“तुमने देखा होगा उन्हें, वो आते थे न यहाँ ” मैंने कहा
बाबा- ठण्ड बढ़ रही है मुसफिरा घर जा .
मैं- तुम जानते थे न उन्हें
बाबा- सब जानते थे उन्हें, वो जो पेड़ हैं न जिसके निचे तो घंटो बैठता है तेरी माँ ने लगाया था . बड़ा शौक था उसे , कहती थी मैं रहू न रहू ये पेड़ जरुर रहेगा. बड़ी नेक थी वो.
अपनी माँ के बारे में सुन कर मेरी आँखों से आंसू गिर गए.
“ना मुसाफिरा न , इनको संभाल कर रख बड़े अनमोल है ये , रात गहरी हो रही है तू जा ” बाबा ने कहा
मैं- मुझे बताओ न मेरे माँ-बाप के बारे में बाबा
बाबा ने इकतारा उठाया और बजाने ;लगा. आंसू उसकी सफ़ेद दाढ़ी में कही खो गए.
ठण्ड बहुत बढ़ गयी थी , खेत पर पहुँच कर मैंने अलाव जलाया तो कुछ राहत मिली , मैंने पानी की मोटर चलाई और खेत में पहुँच गया ,, आज बिजली पूरी रात आने वाली थी , सरसों में पानी लगाना था . जैसे ही पानी आया मेरे पैर सुन्न से हो गए. ऐसा नहीं था की खेतो पर काम करने वाले नहीं थे, लोग काम करते भी थे पर न जाने क्यों मुझे इस मिटटी से बड़ा लगाव था .
बरसती ओस में भीगते हुए मैं पानी की लाइन बदलते हुए दूर अपनी झोपडी के पास जलते अलाव को देख रहा था , हौले से जलती आंच इस अँधेरी रात में बड़ी खूबसूरत लग रही थी . मैं पानी की लाइन बदल कर कस्सी उठाये अलाव की तरफ बढ़ ही रहा था की “छन छन ” की तेज आवाज ने मेरा ध्यान खींच लिया .
पाजेब की आवाज थी ये इतना समझ गया था , पर इस समय इस उजाड़ में कौन औरत आएगी,
“कोई है क्या ” मैंने आवाज दी .
कोई जवाब नहीं आया . आई तो बस पाजेब की आवाज .