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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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Update 30

इधर अन्य वार्डो में बंद बाकी औरतो का भी वही हाल था। कोमल को तो उसकी सेल की सीनियर औरते मोटी, भैंस और ना जाने क्या-क्या कहकर अपमानित करती रही। शरीर से थोड़ी मोटी होने की वजह से वह बहुत ज्यादा भागदौड़ नही कर पाती थी लेकिन तीन महीनों से जेल में दौड़ने व व्यायाम करने से उसके अंदर थोड़ी फुर्ती आने लगी थी। सीनियर कैदियों ने उसे लगातार बिना रुके जगह पर ही कूदते रहने की सजा दी और कहा कि यदि वह एक सेकंड के लिए भी कूदना बन्द करेगी तो उसे अपनी जीभ से चाटकर सेल के पूरे फर्श को साफ करना पड़ेगा।

उसने कूदना शुरू किया। जितनी उसकी क्षमता थी, वह उतना कूदती रही लेकिन धीरे-धीरे उसकी साँसे फूलने लगी। आखिरकार उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया और उसने कूदना बंद कर दिया। उसका दम भरने लगा था और वह तेजी से साँस लेने लगी। हालाँकि उसकी हालत का सीनियर कैदियों पर कोई असर नही हुआ और उन्होंने तुरंत ही उसकी जीभ से फर्श को पूरा साफ करवाया। कोमल को अपनी जीभ से पूरे फर्श को चाट-चाटकर साफ करना पड़ा।

अंजली, दया और माधवी की स्थिति भी बहुत ही दयनीय थी। उनके साथ भी इस तरह रैगिंग व मारपीट की जा रही थी और उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था लेकिन जो सबसे ज्यादा तकलीफ में थी, वह थी रोशन।

रोशन किसी सेल में नही बल्कि एक बैरक में बंद थी जिसमे लगभग 100 महिला कैदियों को एक साथ रखा गया था। अंदर पैर रखने तक की जगह नही थी और औरते बिल्कुल एक-दूसरे से सटकर बैठी हुई थी। बैरक के अंदर ही पाँच शौचालय बने हुए थे जबकि एक जगह पर औरतो के बाथरूम करने के लिए थोड़ी सी खुली जगह थी। इसी जगह पर कैदी औरते अपने बर्तन धोने का काम भी करती थी। ज्यादातर औरते पेशाब करने के लिए शौचालय के अंदर ही जाती थी लेकिन कई औरते ऐसी भी थी जो बर्तन धोने की जगह पर ही पेशाब किया करती थी।

रोशन अब तक अपनी सोसायटी की बाकी औरतो के साथ एक ही सेल में बंद रही थी लेकिन बैरक की व्यवस्था सेल से काफी अलग थी। एक तो वहाँ सैकड़ो औरते एक ही कमरे में जानवरो की तरह भरी पड़ी थी और उनके बीच मे रोशन बिल्कुल अकेली थी। ना किसी से जान-पहचान थी और ना ही बात करने के लिए कोई सहेली मौजूद थी। अपने दिल मे एक उम्रकैद की कैदी होने का दर्द छुपाये रोशन बैरक के अंदर जाते ही शौचालय के पास थोड़ी सी जगह बनाकर बैठ गई।​

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“अरे देखो देखो। नई आइटम आई है रे…” सीनियर कैदियों ने उस पर फब्तियाँ कसनी शुरू कर दी।

तभी एक दूसरी औरत ने बताया - ‘नई नही है। दूसरे सर्कल में थी। तीन महीने से अंदर है साली।’

“ऐसा क्या। तब तो इसको जेल का फूल नॉलेज होगा।” - उन लोगो ने उसका मजाक बनाते हुए कहा।

‘ऐ चल बे लौड़ी। उठ वहाँ से…’ - एक औरत ने उसे धमकाते हुए कहा।

रोशन ने उसकी तरफ देखा और उठकर अपनी जगह पर ही खड़ी हो गई। तभी उसके बगल में बैठी कैदी ने उसके पिछवाड़े में एक जोर का हाथ मारा और उसके कूल्हों को दबाने लगी। उसका ऐसा करना उसे अच्छा तो नही लग रहा था लेकिन अब उसे इन सब चीजों की आदत हो चुकी थी। बगल में बैठी उस कैदी औरत ने उसे आगे की ओर धक्का दिया और उसे दूसरी कैदियों के बीच में धकेल दिया जिससे वह एकदम से कैदियों के बीच मे आकर गिर पड़ी।

“पकड़ो साली को। सुलाओ नीचे।” - सीनियर कैदियों ने चिल्लाना शुरू किया।

तभी कुछ औरतो ने उसके हाथों व पैरों को पकड़ा और उसे नीचे जमीन पर लिटा दिया। दो औरतो ने उसके हाथों को दबाये रखा और दो औरतो ने उसके पैरों को। उसे पता था कि उसके साथ क्या होने वाला है इसलिए उसने कुछ देर तक तो अपने आपको छुड़ाने की पूरी कोशिश की लेकिन जब वह कामयाब नही हो पाई तो उसने प्रयास करना छोड़ दिया और अपने आपको उन औरतो के हवाले कर दिया।

सीनियर औरते उसके ऊपर चढ़ने लगी और उसके साथ जबरदस्ती करने लगी। उन्होंने उसकी साड़ी उतार दी और उसके ब्लाउज के बटन भी खोल दिए। फिर उसकी ब्रा उसके बूब्स से नीचे सरकाई और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोलकर उसका पेटीकोट भी नीचे सरका दिया। रोशन एक लाचार खिलौने की तरह जमीन पर पड़ी थी और सीनियर औरते लगातार उसके ऊपर चढ़कर अपनी हवस की प्यास बुझा रही थी। जब उनके बूब्स रोशन के बड़े-बड़े बूब्स को छूते या टकराते तो ऐसा लगता जैसे दो पहाड़ एक-दूसरे को नीचे दबाने का प्रयास कर रहे हो।

सीनियर कैदियों ने अब उसके साथ बहुत ही गंदी-गंदी हरकते करनी शुरू कर दी। उन लोगो ने रोशन के मुँह पर थूकना शुरू कर दिया और उसकी योनि में ऊँगली डालकर उसी ऊँगली को उसे चटवाने लगी। वे लोग उसके मुँह पर बैठ गई और उसके मुँह को अपनी गाँड़ से पूरी तरह बंद कर दिया। रोशन के लिए यह बहुत ही तकलीफदेय था और उसका साँस लेना भी मुश्किल होने लगा था। सीनियर औरते उसके पेट, स्तनों और चेहरे पर खड़ी होने लगी और कुछ तो उसके शरीर पर खड़ी होकर नाचने भी लगी। उस वक़्त रोशन इतनी ज्यादा तकलीफ और दर्द में थी जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल था। उसे लगने लगा था कि ऐसी जिंदगी जीने से अच्छा है कि वह आत्महत्या ही कर ले और अपनी जिंदगी खत्म कर ले लेकिन फिर अगले ही पल उसे अपनी आँखों के सामने अपने पति और बेटे का चेहरा नजर आने लगा। उस वक़्त उसकी मनोदशा ऐसी थी कि यदि बाहर उसका परिवार ना होता तो शायद वह कब की आत्महत्या कर चुकी होती।

वह लगातार रोये जा रही थी लेकिन उस बैरक में किसी भी औरत को उस पर जरा भी दया नही आई। उसके पेट पर खड़े होने की वजह से उसे दर्द भी होने लगा था और उसे खाँसी आने लगी लेकिन जैसे ही वह थोड़ा भी खाँसती, आसपास मौजूद औरते अपने पैरों के पंजों को उसके मुँह में घुसा देती। उसे इतना ज्यादा तंग किया गया जैसे मानो वह कोई निर्जीव वस्तु हो। उसके स्तनों से दूध निकाला गया, उसे लातो से मारा-पीटा गया और कई तरह की हरकतें करवाई गई। उस रात उसकी जमकर रैगिंग की गई। उसे पानी से पूरी तरह भीगा दिया गया और पाँचो शौचालयो की घिस-घिसकर सफाई करवाई गई। आखिरकार रात दस बजे बैरक की लाइट बंद होने के बाद उसे छोड़ा गया। हालाँकि तब तक उसकी हालत बहुत ही खराब हो चुकी थी और वह ठीक से चल भी नही पा रही थी। उसने जैसे-जैसे अपनी साड़ी और बाकी कपड़े उठाये और एक कोने में जाकर थोड़ी सी जगह बनाकर बैठ गई।

वहाँ सोने के लिए भी ठीक से जगह नही थी। कई औरते एक-दूसरे से सटकर सोई थी तो कई एक-दूसरे पर चढ़कर। कुछ औरतो के पास तो सोने के लिए भी जगह नही थी और वे लोग बैठे-बैठे ही सोने को मजबूर थी। रोशन भी उन्ही कैदियों में से एक थी। पूरे बैरक में कही भी खाली जगह नही थी और रोशन को कोने में बैठे-बैठे ही सोना पड़ा। काफी रात तक वह सो नही पाई और अपने परिवार की यादों में खोई रही। आखिरकार, इसी परेशानी में कब उसे नींद लग गई, पता ही नही चला।​
 
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अगली सुबह...

सुबह हुई। रोजाना की तरह ही महिला पुलिसकर्मी कैदियों को जानवरों की तरह जगाने लगी। गाली-गलौच और गंदे-गंदे शब्दो से उनके दिन की शुरुआत हुई। सब कुछ वैसा ही था लेकिन बस बदल गए थे तो उन सातो के हालात, उनकी परिस्थिति और उनका पहनावा। बाकी औरतो के लिए वह सुबह भले ही अन्य दिनों की तरह बिल्कुल सामान्य थी लेकिन उन सातो के लिए यह उनके अंधकारमय और नर्करूपी भावी जीवन की पहली काली सुबह थी।

उनके बदन पर रंगीन साड़ियाँ, जीन्स, टीशर्ट, गाउन या नाइट सूट नही था बल्कि सफेद रंग की कैदियों वाली साड़ी थी जो उन्हें इस बात का एहसास करा रही थी अब वे लोग सज़ायाफ्ता कैदी हैं। एक दिन पहले तक जेल की हर सुबह उनके लिए एक नई आशा लेकर आती थी कि एक ना एक दिन उन्हें जेल से आजादी जरूर मिलेगी लेकिन अब उनकी परिस्थिति पूरी तरह बदल चुकी थी।​

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“ऐ चलो सब लोग। जल्दी-जल्दी बाहर निकलो…” - महिला सिपाहियों ने कैदियों पर चिल्लाते हुये कहा।

वे सातो भी अपनी-अपनी सेल से बाहर निकल आई और एक-दूसरे को खोजने लगी। महिला कैदियों की भारी भीड़ के बीच मे एक-दूसरे को खोजना भी एक बड़ी चुनौती थी। सभी औरते एक जैसे कपड़ो में थी जिस वजह से उन्हें और भी ज्यादा मुश्किले हो रही थी। कैदी औरते दिनचर्या के कामो में लगी हुई थी और शौच आदि करने के बाद उन्हें व्यायाम के लिए मैदान में ले जाया गया।

उन सातो में दया और माधवी को साड़ी में व्यायाम करने में कोई खासी परेशानी नही हुई लेकिन बबिता, अंजली, कोमल, रोशन और सोनू के लिए साड़ी पहनकर व्यायाम करना काफी मुश्किल था। उन्हें इसकी बिल्कुल भी आदत नही थी और जेल में आने से बाद भी वे लोग नाइट सूट या अन्य आरामदायक कपड़ो में ही व्यायाम किया करती थी। सज़ायाफ्ता होने के बाद उनके पास कोई और विकल्प नही था इसलिए मजबूरन उन्हें साड़ी में ही व्यायाम करना पड़ा। हालाँकि असल परेशानी तब शुरू हुई जब सारे कैदियों को दौड़ाना शुरू किया गया।​

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सोनू साड़ी में ठीक से दौड़ नही पा रही थी और उसे बार-बार साड़ी के खुलने का डर सता रहा था। चूँकि कैदियों को ना तो साड़ी में फँसाने के लिए पिन दिए जाते थे और ना ही किसी तरह की अन्य कोई चीजे जिस वजह से औरतो को साड़ी के खुलने और पल्लू के नीचे सरकने का खतरा बना रहता था। ज्यादातर औरते साड़ी के पल्लू को पीछे से घुमाकर कमर में लपेट लेती थी ताकि साड़ी मजबूती से बँधी रहे और उसके खुलने का डर ना रहे। उन लोगो ने भी वैसा ही किया और साड़ी के पल्लू को कसकर कमर में लपेट किया। व्यायाम के बाद सभी कैदियों की गिनती की गई और फिर रोजाना की तरह उनसे अन्य काम करवाये जाने लगे।

उन सातो से अपनी-अपनी सेल में सारे काम करवाये गए। उनसे झाड़ू लगवाई गई, पानी भरवाया गया और टॉयलेट शीट की सफाई करवाई गई। उसके बाद सुबह 9 बजे जेल में एक और सायरन बजा जो उन सातो के अनुसार संभवतः नहाने के समय का इशारा था। हालाँकि सर्कल 2 में यह सायरन नहाने के लिए नही बल्कि कैदी औरतो व लड़कियों को अपना दूध निकलवाने के लिए मैदान में जमा होने के समय का इशारा था।

दरअसल, जेल में सज़ायाफ्ता कैदी महिलाओ को अपना दूध निकलवाना अनिवार्य था। जेलर द्वारा महिला कैदियों का दूध मिल्क बैंक वालो को बेचा जाता था और उनसे भारी मुनाफा कमाया जाता था। हालाँकि आधिकारिक तौर पर मिल्क बैंक वाले केवल उन महिलाओं से ही दूध ले सकते थे जो स्वेच्छा से अपना दूध देने को तैयार हो लेकिन जेलर ने प्रत्येक महिला व लड़की के लिए इसे अनिवार्य कर दिया था। 18 साल की लड़कियों से लेकर 70 साल की बूढ़ी महिलाओ को भी अपना दूध देना जरूरी था।​

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कैदियों का दूध निकालने के लिए कुछ अलग-अलग तरीके प्रयोग किये जाते थे जिनमे मुख्य रूप से हाथो व दूध निकालने की मशीनों का इस्तेमाल किया जाता था। कैदियों को एक लाइन में खड़ा करवाया जाता था और फिर लेडी काँस्टेबल्स बारी-बारी से प्रत्येक महिला व लड़की का दूध निकालती थी। इसके लिए औरतो को काँस्टेबल के सामने आगे की ओर झुककर खड़े होना पड़ता था और वह काँस्टेबल उस औरत के स्तनों को दबाकर निप्पल्स के सहारे उसका दूध निकालकर बर्तन में गिराती जाती थी। यह ठीक वैसा ही था जैसे किसी गाय या भैस का दूध निकाला जाता हैं।

इसके अलावा दूध निकालने के लिए कुछ मशीनों का प्रयोग भी किया जाता था जो अलग-अलग प्रकार की थी। एक मशीन में कप के आकार की एक वस्तु को महिला के स्तनों में फँसाया जाता था जो इलेक्ट्रिसिटी की मदद से अपने आप दूध को स्तनों से खींच लेती थी। दूसरी मशीन में महिला के हाथ-पैरो व गले को पट्टे से बाँध दिया जाता था ताकि वे अपनी जगह से हिल ना पाए और फिर मशीन द्वारा उनके स्तनों से दूध निकाला जाता था। दूध निकालने की यह मशीनी प्रक्रिया महिलाओ के लिए बहुत ही ज्यादा तकलीफदेय होती थी और इससे स्तनों में बहुत दर्द होता था लेकिन जेलर को महिलाओ को होने वाले इस दर्द का जरा भी एहसास नही था।​
 
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सुबह हुई। रोजाना की तरह ही महिला पुलिसकर्मी कैदियों को जानवरों की तरह जगाने लगी। गाली-गलौच और गंदे-गंदे शब्दो से उनके दिन की शुरुआत हुई। सब कुछ वैसा ही था लेकिन बस बदल गए थे तो उन सातो के हालात, उनकी परिस्थिति और उनका पहनावा। बाकी औरतो के लिए वह सुबह भले ही अन्य दिनों की तरह बिल्कुल सामान्य थी लेकिन उन सातो के लिए यह उनके अंधकारमय और नर्करूपी भावी जीवन की पहली काली सुबह थी।

उनके बदन पर रंगीन साड़ियाँ, जीन्स, टीशर्ट, गाउन या नाइट सूट नही था बल्कि सफेद रंग की कैदियों वाली साड़ी थी जो उन्हें इस बात का एहसास करा रही थी अब वे लोग सज़ायाफ्ता कैदी हैं। एक दिन पहले तक जेल की हर सुबह उनके लिए एक नई आशा लेकर आती थी कि एक ना एक दिन उन्हें जेल से आजादी जरूर मिलेगी लेकिन अब उनकी परिस्थिति पूरी तरह बदल चुकी थी।​

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“ऐ चलो सब लोग। जल्दी-जल्दी बाहर निकलो…” - महिला सिपाहियों ने कैदियों पर चिल्लाते हुये कहा।

वे सातो भी अपनी-अपनी सेल से बाहर निकल आई और एक-दूसरे को खोजने लगी। महिला कैदियों की भारी भीड़ के बीच मे एक-दूसरे को खोजना भी एक बड़ी चुनौती थी। सभी औरते एक जैसे कपड़ो में थी जिस वजह से उन्हें और भी ज्यादा मुश्किले हो रही थी। कैदी औरते दिनचर्या के कामो में लगी हुई थी और शौच आदि करने के बाद उन्हें व्यायाम के लिए मैदान में ले जाया गया।

उन सातो में दया और माधवी को साड़ी में व्यायाम करने में कोई खासी परेशानी नही हुई लेकिन बबिता, अंजली, कोमल, रोशन और सोनू के लिए साड़ी पहनकर व्यायाम करना काफी मुश्किल था। उन्हें इसकी बिल्कुल भी आदत नही थी और जेल में आने से बाद भी वे लोग नाइट सूट या अन्य आरामदायक कपड़ो में ही व्यायाम किया करती थी। सज़ायाफ्ता होने के बाद उनके पास कोई और विकल्प नही था इसलिए मजबूरन उन्हें साड़ी में ही व्यायाम करना पड़ा। हालाँकि असल परेशानी तब शुरू हुई जब सारे कैदियों को दौड़ाना शुरू किया गया।​

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सोनू साड़ी में ठीक से दौड़ नही पा रही थी और उसे बार-बार साड़ी के खुलने का डर सता रहा था। चूँकि कैदियों को ना तो साड़ी में फँसाने के लिए पिन दिए जाते थे और ना ही किसी तरह की अन्य कोई चीजे जिस वजह से औरतो को साड़ी के खुलने और पल्लू के नीचे सरकने का खतरा बना रहता था। ज्यादातर औरते साड़ी के पल्लू को पीछे से घुमाकर कमर में लपेट लेती थी ताकि साड़ी मजबूती से बँधी रहे और उसके खुलने का डर ना रहे। उन लोगो ने भी वैसा ही किया और साड़ी के पल्लू को कसकर कमर में लपेट किया। व्यायाम के बाद सभी कैदियों की गिनती की गई और फिर रोजाना की तरह उनसे अन्य काम करवाये जाने लगे।

उन सातो से अपनी-अपनी सेल में सारे काम करवाये गए। उनसे झाड़ू लगवाई गई, पानी भरवाया गया और टॉयलेट शीट की सफाई करवाई गई। उसके बाद सुबह 9 बजे जेल में एक और सायरन बजा जो उन सातो के अनुसार संभवतः नहाने के समय का इशारा था। हालाँकि सर्कल 2 में यह सायरन नहाने के लिए नही बल्कि कैदी औरतो व लड़कियों को अपना दूध निकलवाने के लिए मैदान में जमा होने के समय का इशारा था।

दरअसल, जेल में सज़ायाफ्ता कैदी महिलाओ को अपना दूध निकलवाना अनिवार्य था। जेलर द्वारा महिला कैदियों का दूध मिल्क बैंक वालो को बेचा जाता था और उनसे भारी मुनाफा कमाया जाता था। हालाँकि आधिकारिक तौर पर मिल्क बैंक वाले केवल उन महिलाओं से ही दूध ले सकते थे जो स्वेच्छा से अपना दूध देने को तैयार हो लेकिन जेलर ने प्रत्येक महिला व लड़की के लिए इसे अनिवार्य कर दिया था। 18 साल की लड़कियों से लेकर 70 साल की बूढ़ी महिलाओ को भी अपना दूध देना जरूरी था।​

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कैदियों का दूध निकालने के लिए कुछ अलग-अलग तरीके प्रयोग किये जाते थे जिनमे मुख्य रूप से हाथो व दूध निकालने की मशीनों का इस्तेमाल किया जाता था। कैदियों को एक लाइन में खड़ा करवाया जाता था और फिर लेडी काँस्टेबल्स बारी-बारी से प्रत्येक महिला व लड़की का दूध निकालती थी। इसके लिए औरतो को काँस्टेबल के सामने आगे की ओर झुककर खड़े होना पड़ता था और वह काँस्टेबल उस औरत के स्तनों को दबाकर निप्पल्स के सहारे उसका दूध निकालकर बर्तन में गिराती जाती थी। यह ठीक वैसा ही था जैसे किसी गाय या भैस का दूध निकाला जाता हैं।

इसके अलावा दूध निकालने के लिए कुछ मशीनों का प्रयोग भी किया जाता था जो अलग-अलग प्रकार की थी। एक मशीन में कप के आकार की एक वस्तु को महिला के स्तनों में फँसाया जाता था जो इलेक्ट्रिसिटी की मदद से अपने आप दूध को स्तनों से खींच लेती थी। दूसरी मशीन में महिला के हाथ-पैरो व गले को पट्टे से बाँध दिया जाता था ताकि वे अपनी जगह से हिल ना पाए और फिर मशीन द्वारा उनके स्तनों से दूध निकाला जाता था। दूध निकालने की यह मशीनी प्रक्रिया महिलाओ के लिए बहुत ही ज्यादा तकलीफदेय होती थी और इससे स्तनों में बहुत दर्द होता था लेकिन जेलर को महिलाओ को होने वाले इस दर्द का जरा भी एहसास नही था।​
Awesome 👍 😎
 

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(कैदी औरतो का दूध)

सायरन के बजते ही सभी कैदी औरते व लड़कियाँ अपने-अपने कपड़े उतारकर मैदान में लाइनो में लगने लगी। बबिता सहित उन सातो को जेल के इस नियम की बिल्कुल भी जानकारी नही थी और जब उन्हें इस बारे में पता चला तो वे लोग बिल्कुल स्तब्ध रह गई। हालाँकि वे लोग ऐसा करने से इंकार नही कर सकती थी इसलिए मजबूरन उन्हें अपने कपड़े उतारकर बाकी कैदियों के साथ बाहर निकलना पड़ा।

वे लोग बाहर आई। बाहर आते ही उन्होंने देखा कि वहाँ पर कैदी औरतो की लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी। सभी कैदी पूरी तरह से नंगी खड़ी थी जिनमे 18 साल की लड़कियों से लेकर बूढ़ी औरते भी शामिल थी। वे सातो भी एक लाइन में जाकर एक साथ खड़ी हो गई।

कुछ देर बाद उन सातो की बारी आई। उन लोगो मे सबसे आगे बबिता थी। अपनी बारी आने पर बबिता आगे बढ़ी और काँस्टेबल के सामने आगे की ओर झुककर खड़ी हो गई। उसने अपने दोनों हाथो और घुटनों को जमीन पर टिका दिया जिसके बाद वह काँस्टेबल उसके स्तनों को दबाकर निप्पल्स के सहारे उसका दूध निकालने लगी। उसने बर्तन को उसके स्तनों के नीचे रखा और अपने हाथों को पानी मे भिगाकर उसके निप्पल्स को खींचने लगी। उसके ऐसा करने पर बबिता के स्तनों से तेज दूध की धार निकली और फिर किसी गाय की तरह उसके स्तनों से निकलते दूध को बर्तन में गिराया जाने लगा।​

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बबिता 35 साल की एक शादीशुदा महिला थी जिसकी कोई संतान नही थी। हालाँकि वह पहले गर्भवती हो चुकी थी लेकिन देरी से बच्चे पैदा करने की सोच की वजह से उसने अपना गर्भपात करवा लिया था। बबिता के अलावा अंजली की भी यही कहानी थी। अंजली ने भी बच्चे पैदा नही किये थे और उन सातो में केवल बबिता व अंजली ही थी जो शादीशुदा होते हुए भी निःसंतान थी जबकि सोनू इकलौती लड़की थी जो अविवाहित थी।

बबिता के बाद अगली बारी अंजली की थी। उसके बड़े-बड़े और सुडौल स्तनों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने स्तनों के भीतर दूध की डेयरी खोल रखी हो। काँस्टेबल ने उसे भी आगे की ओर झुकाया और उसका दूध निकालने लगी। अंजली के बाद क्रमशः रोशन, कोमल, दया और माधवी का भी दूध निकाला गया लेकिन जब अंतिम में सोनू की बारी आई तो उसके स्तनों से बिल्कुल भी दूध नही निकला।

“इस साली का तो दूध ही नही आ रहा हैं।” - काँस्टेबल ने एक अन्य काँस्टेबल से कहा।

‘हाँ तो छोड़ दे ना। जब तक चुदेगी नही, तब तक दूध कैसे बनेगा।’

“मशीन में भेजूँ क्या?”

‘अबे मशीन में भेजके क्या करेगी। दूध तो निकलेगा नही। बस दर्द ही होगा।’

“तो हमको क्या करना हैं। होने दे दर्द। मैडम को नाम दे देंगे अभी। फिर वो जाने क्या करना है इसका।”

‘चल ठीक हैं। भेज दे फिर। ये भी देख लेगी मशीन का कमाल।’

उस काँस्टेबल ने तुरंत ही सोनू को मशीनों वाले ब्लॉक में भेज दिया जहाँ उसे एक मशीन में बाँध दिया गया और उसके दोनों स्तनों में दूध निकालने वाले यंत्र लगा दिए गए। उस कमरे में ऐसी बहुत सी कैदी औरते व लड़कियाँ मौजूद थी जिन्हें उनका दूध निकालने के लिए वहाँ लाया गया था। मशीन में बाँधे जाने से पहले सोनू अन्य कैदियों को अपनी आँखों के सामने दर्द से कराहते हुए देख रही थी और उन्हें देखकर उसका दिल भी तेजी से धड़कने लगा था।​

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खैर, सोनू के स्तनों पर यंत्र लगाये जाते ही उसे चालू कर दिया। सोनू आगे की ओर झुकी थी और उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ हथकड़ी से बँधे हुए थे। उसके दोनों पैरों में भी जंजीर पहना दी गई थी और वह अपनी जगह से हिल तक नही पा रही थी। मशीन के चालू होते ही उसके स्तनों पर लगे ट्यूब के आकार के यंत्र उसके स्तनों से दूध को खींचने लगे।

“आँह आई…आँह…प्लीज इन्हें निकालो…आँह…बहुत दर्द हो रहा है मैडम…प्लीज…”

मशीन को चालू हुए अभी एक मिनट भी नही हुआ था कि सोनू दर्द के मारे चिल्लाने लगी। उसके स्तनों पर अत्यधिक खिंचाव हो रहा था जिस वजह से उसे दर्द महसूस होने लगा। कुछ ही देर में उसे समझ आ गया था कि मशीन से दूध निकालने की प्रक्रिया बहुत ही तकलीफदेय है और उसके लिए इसे सहन करना बेहद मुश्किल हैं। हालाँकि उस वक़्त उसके पास बचने का कोई रास्ता नही था और अगले दस मिनट तक उसे ना चाहते हुए भी उस मशीन का दर्द सहन करना पड़ा। जब उसके स्तनों से बिल्कुल भी दूध नही निकला, तब जाकर उसे छोड़ा गया और उसे बाहर जाने की इजाजत दे दी गई।​
 
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