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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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Update 22

अदालत द्वारा पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए दी गई 90 दिनों की अवधि समाप्त होने को आई थी। अगले दिन सातो को अदालत में पेश किया जाना था। उन्हें नही पता था कि आगे क्या होने वाला हैं लेकिन मन मे एक विश्वास था कि भगवान उनके साथ कुछ भी गलत नही होने देंगे। वे लोग कोर्ट जाने से पहले भगवान की पूजा करना चाहती थी लेकिन जेल में किसी भी धर्म के कैदियों को पूजा-पाठ करने की सख्त मनाही थी। हालाँकि यह पाबंदी जेल नियमो के अनुसार नही थी बल्कि जेलर ने कैदियों पर यह पाबंदी लगा रखी थी।

पेशी से एक दिन पहले कुछ कैदी औरतो ने उन्हें हिम्मत दी और उन्हें ढाँढस बँधाया कि वे लोग कल अपने घर पर होगी। वैसे तो जब भी वे लोग कहती थी कि उन्होंने कोई अपराध नही किया है तो जेल में कोई भी उनकी बातों पर विश्वास नही करता था। ऐसा सिर्फ उनके साथ ही नही था। जेल में आने वाली किसी भी कैदी को जेल का स्टॉफ व अन्य कैदी औरते निर्दोष मानती ही नही थी। फिर चाहे किसी का अपराध साबित हुआ हो या नही, इस बात से कोई फर्क नही पड़ता था।​

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वे सातो रात भर चिंता में डूबी रही। उनके मन मे अनेको सवाल थे। क्या कल हम अपने घर जा सकेंगे? हमे बेल मिलेगी या नही? अगर बेल नही मिली तो क्या फिर से जेल में रहना पड़ेगा? इस तरह के ढेरो सवाल उन्हें बेचैन कर रहे थे। जेल में बिताये साढ़े तीन महीने उनकी जिंदगी के सबसे बुरे और मुश्किल दिन थे और वे लोग कुछ भी करके जेल से बाहर निकलना चाहती थी।

उन्हें बाहर की दुनिया देखे तीन महीने बीत चुके थे। जेल में अखबार, टीवी आदि की व्यवस्था जरूर थी ताकि कैदियों को बाहर की जानकारी आसानी से मिल सके लेकिन जेलर ने कैदियों को मिलने वाली तमाम सुविधाओ पर पूरी तरह से पाबंदी लगा रखी थी। कैदियों को ना टीवी देखने की इजाजत थी, ना अखबार पढ़ने की और ना ही ऐसी किसी वस्तु को इस्तेमाल करने की जिससे बाहर की जानकारी मिल सके। जेलर का मानना था कि जेल ही कैदियों की असली दुनिया हैं और उन्हें बाहर की जानकारी होना आवश्यक नही हैं।

खैर, अगले दिन सुबह नौ बजे उन सभी को अदालत के लिए रवाना कर दिया गया। सभी के हाथों में हथकड़ी थी और उन्हें दो-दो की जोड़ी में गाड़ी में बिठाया गया था। अदालत जाते हुए उन सभी के दिमाग मे कई तरह की चीजें चल रही थी। मन मे थोड़ी चिंता थी तो वही घर जाने की खुशी भी थी। वे लोग सोचकर बैठी थी कि आज उन्हें बेल मिल ही जाएगी। उनके वकील ने भी उन्हें इस बात का पूरा यकीन दिलाया था कि अब उन्हें जेल में नही रहना पड़ेगा और आज वे सभी अपने-अपने घरों में होगी।​
 
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Update 23

7 जून,

‘हे भगवान, आज प्लीज हमे बेल दिलवा देना…’

कटघरे में खड़ी अंजली ने मन ही मन भगवान को याद किया और उनसे सभी को बेल दिलवाने की प्रार्थना की। वे सातो कठघरे में खड़ी थी और कुछ ही देर में उनके केस की सुनवाई शुरू हो गई।

जज - “मिस्टर मूर्ति (दूसरे पक्ष के वकील), प्लीज प्रोसीड।”

मूर्ति - ‘जज साहब, जैसा कि इस केस में सब कुछ साफ हैं। कठघरे में खड़ी इन सातों आरोपी महिलाओ ने बड़ी ही बेरहमी से अजय दीवान और उनकी पत्नी कामिनी दीवान की हत्या की और पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की। इस केस से जुड़े सारे सबूत पहले ही कोर्ट में जमा कराए जा चुके हैं। अजय और कामिनी की बॉडी पर और कमरे में मिले उँगलियों के निशान, सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल लोकेशन के आधार पर यह साबित होता हैं कि इन सातों ने ही अजय दीवान को मारा हैं और मैं अदालत से विनती करता हूँ कि इन सातों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये ताकि भविष्य में कोई भी अपराधी ऐसा करने से पहले सौ बार सोचे। That's all your honour.’​

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जज - “मिस्टर शर्मा (आरोपियों के वकील), आप कोई सबूत लाये है?”

शर्मा - ‘जज साहब, मेरे काबिल दोस्त बार-बार इस बात पर जोर दे रहे है कि सीसीटीवी फुटेज में मेरे मुवक्किलों के चेहरे दिखाई दिए। लेकिन शायद वह यह भूल रहे है कि मेरी सातो मुवक्किल उसी सोसायटी में रहती है जहाँ अजय दीवान रहता था। जाहिर सी बात है कि सोसायटी में सभी का एक-दूसरे के घर मे आना-जाना लगा रहता हैं।’

मूर्ति - “चलिए मिस्टर शर्मा, मान भी लेते हैं कि सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल लोकेशन सबूत ना हो लेकिन बॉडी और कमरे में इनके फिंगरप्रिंट कहाँ से आये?’

शर्मा - ‘माई लार्ड, मै पहले भी बता चुका हूँ कि जब मेरी सातो मुवक्किल अजय दीवान के फ्लैट में पहुँची तब अजय और उनकी पत्नी घायल अवस्था मे जमीन पर पड़े हुए थे। अब अगर कोई भी उन्हें ऐसा देखता तो उन्हें तड़पने के लिए यूँ ही तो नही छोड़ देता। मेरी मुवक्किल ने भी ऐसा ही किया और उनकी मदद करने की कोशिश की। इसी वजह से उनके फिंगरप्रिंट अजय दीवान और कामिनी दीवान की बॉडी पर पाये गए।’

काफी देर तक दोनों पक्षो की बहस चली। विपक्ष के वकील ने अपने तर्क दिए तो वही बचाव पक्ष के वकील ने अपने तर्क प्रस्तुत किये। बचाव पक्ष के वकील मिस्टर शर्मा ने अदालत से सभी सातो आरोपियो को बेल देने की गुजारिश की और कहा कि वे लोग कोई आदतन अपराधी नही हैं और ना ही उनका कोई पुराना क्रिमिनल रिकॉर्ड हैं। वे सभी अच्छे घरो की सभ्य महिलायें हैं जिन्हें जेल में रखना उनकी स्वतंत्रता का हनन हैं। इसलिए उन्हें तुरंत बेल दी जानी चाहिए जबकि दूसरे पक्ष के वकील ने अदालत से उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देने की माँग की।

अदालत ने दोनों पक्षो की दलीलें ध्यान से सुनी और फिर लंच के बाद अपना फैसला देने का फरमान सुनाया। लंच तक के लिए अदालत की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।​
 
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Update 24

(अदालत का फैसला)

आधे घंटे के लंच ब्रेक के बाद अदालत की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई। दोनो पक्षो की बहस पूरी हो चुकी थी और जज अपना फैसला सुनाने को तैयार थे। सभी के मन मे बस यही सवाल था कि क्या सातो आरोपी महिलाओ को बेल मिलेगी या उन्हें दोबारा जेल भेज दिया जाएगा। खैर, इस बात का जवाब तो सिर्फ जज साहब के पास था। बाकी सभी केवल अनुमान ही लगा सकते थे।

सातो आरोपी महिलाओ को कटघरे में खड़ा करवाया गया। उनके परिवार वाले सामने बेंचो पर बैठे हुए थे और जज की ओर आशा भरी निगाहों से टकटकी लगाए देखे जा रहे थे। सातो आरोपियों की धड़कने तेजी से चलने लगी थी और उनकी आँखों के सामने जेल में बिताए दिनों के भयावह दृश्य तैरने लगे।

कुछ ही देर में जज ने अपना फैसला पढ़ना शुरू किया।

“दोनो पक्षो की दलीलें सुनने और सारे सबूतों व गवाहों को मद्देनजर रखते हुए ये अदालत इस नतीजे पर पहुँची हैं कि इन सातो महिलाओ ने ही अजय दीवान और उनकी पत्नी कामिनी दीवान की हत्या की हैं। सीसीटीवी फुटेज और स्पॉट पर मिले फिंगरप्रिंट से यह बात पूरी तरह साबित होती हैं। दोनो विक्टिम की बहुत ही बेरहमी से हत्या की गई है और सातो आरोपी किसी भी तरह की दया की हकदार नही हैं। लिहाजा ये अदालत अंजली मेहता, बबिता अय्यर, दया गढ़ा, कोमल हाथी, माधवी भिड़े, रोशन कौर सोढ़ी और सोनालिका भिड़े को धारा 302 के तहत हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाती है। साथ ही धारा 201 के तहत सबूत मिटाने के लिए 3 साल की जेल और 20,000 रुपये जुर्माना, धारा 118 के तहत अपराध करने की योजना बनाने व पुलिस को गुमराह करने के लिए 7 साल की जेल और 10,000 रुपये जुर्माने की भी सजा सुनाती हैं। The court is adjourned.”

सजा का एलान होते ही मानो सातो के पैरों तले जमीन खिसक गई हो। आखिर एकाएक यह क्या हुआ? उम्रकैद की सजा। उनकी हालत ऐसी हो गई जैसे काटो तो खून नही। अँधेरा छा गया उनकी आँखों के सामने। कानून के ऐसे अंधेपन का जरा भी अंदाजा नही था उन्हें। खुद के निरपराध, बेगुनाह होने के बावजूद सजा की उम्मीद तो कतई नही थी। वे लोग मिन्नते करती रही, गिड़गिड़ाती रही और जज से इतनी कठोर सजा ना देने की गुहार लगाती रही मगर जज के कानो पर जूँ तक न रेंगी। उन्होंने तो बस सजा सुनाई और लग गए अगले केस की सुनवाई में।

उन सातो का रो-रोकर बुरा हाल था। अपने परिवार वालो की ओर देखकर अपनी व्यथा छुपाने की कोशिशें करती रही लेकिन आखिर थी तो वे औरते ही। भला कब तक अपने आँसूओ को छुपा पाती। परिवार से आखिरी मुलाकात का दर्द और दोबारा अपने घर ना जा पाने की बेबसी उनके चेहरो पर साफ झलक रही थी। तीन महीने पहले भी उन्हें इसी तरह जेल भेजा गया था लेकिन इस बार का ग़म और तकलीफ कही अधिक बड़ी थी। पिछली बार उनके पास जेल से बाहर निकलने की उम्मीद थी लेकिन इस बार तो उन्हें जेल का स्थाई सदस्य ही बना दिया गया था। एक अंतिम आशा के रूप में उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प जरूर मौजूद था लेकिन उसमें ना जाने कितने साल लग जाये।

सजा सुनाए जाने के बाद सभी के हाथो मे हथकड़ियाँ पहना दी गई और उन्हें जेल के लिए रवाना किया गया। गाड़ी में बैठे हुए भी उनके आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे। उनकी निगरानी में तैनात महिला पुलिसकर्मी लगातार उन्हें डाँटे जा रही थी और उन्हें रोने के लिए मना कर रही थी। गाड़ी की खिड़की से नजर आते बाहर के दृश्य उनके मन को विचलित करने लगे। वे लोग सड़कों पर आजाद घूमते लोगो को देखती जा रही थी और सोच रही थी कि आखिर उनसे ऐसी क्या गलती हो गई जो हमेशा के लिए उनकी आजादी ही छीन ली गई। जेल की चारदीवारी में बिताए पिछले तीन महीने उनके लिए जितने कठिन थे, उनकी आने वाली जिंदगी उससे भी कही ज्यादा कठिन और भयावह होने वाली थी। एक तरह से बाहर की दुनिया अब उनके लिए कल्पना मात्र बनकर रह गई थी। जेल जाते हुए उनसे उनका घर, परिवार और सपने हमेशा के लिए छूट रहे थे और अब ना जाने कब उन्हें बाहर की दुनिया देखने को मिले।​
 
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Update 25

(सज़ायाफ्ता कैदियों के तौर पर जेल में प्रवेश)

अदालत से निकलने के लगभग एक घंटे बाद ही उनकी गाड़ी जेल के मेन गेट के सामने पहुँच चुकी थी। जेल पहुँचते ही उन सातो को एक-एक कर गाड़ी से नीचे उतारा गया और एक कतार में मेन गेट से अंदर ले जाया गया। सभी के हाथों में हथकड़ी लगी हुई थी और अंदर जाते हुए उनकी धड़कने तेजी से चलने लगी। वे लोग लगातार पीछे मुड़कर गेट से बाहर देखने की कोशिश करती रही लेकिन गेट के बंद होते ही वे लोग पूरी तरह से जेल प्रशासन के अधीन हो गई।​

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अंदर जाने पर सबसे पहले उन्हें जाँच कक्ष में ले जाया गया। उस वक़्त वहाँ पर इन सातो के अलावा कोई अन्य कैदी मौजूद नही थी। जाँच कक्ष में मौजूद महिला पुलिसकर्मी जेलर के आने का इंतजार कर रही थी और तब तक उन्होंने उन सातो को नीचे जमीन पर ही बिठाकर रखा। कुछ देर बाद जेलर के आते ही सातो की जाँच प्रक्रिया शुरू की गई।

‘कपड़े उतरवाओ इनके…” - जेलर ने कमरे में आते ही कहा।

जेलर के कहते ही वहाँ मौजूद एक काँस्टेबल उन सातो को आदेश देते हुए बोली - ‘ऐ चलो उठो और इधर खड़े हो जाओ।’

वे सातो अपनी जगह से उठी और सामने दीवार के पास जाकर खड़ी हो गई। उनके इर्द-गिर्द कुछेक महिला काँस्टेबल्स मौजूद थी लेकिन उस कक्ष में उस वक़्त जेलर सहित दस से अधिक महिला पुलिसकर्मी कार्यरत थी।

“चलो महारानियो। कपड़े उतारो अपने।” - काँस्टेबल ने कहा।

वे लोग मजबूर थी। काँस्टेबल के कहने पर उन्हें अपने कपड़े उतारने पड़े। वे लोग एक-दूसरे के बगल में आगे की ओर मुँह करके खड़ी थी। सामने जेलर कुर्सी लगाकर बैठी हुई थी और उन्हें देखे जा रही थी। वे लोग भले ही तीन महीनों से जेल में बंद थी और उन्हें जेल के माहौल की आदत होने लगी थी लेकिन जेल स्टॉफ और सीनियर कैदियों का डर अब भी उनके मन मे कायम था। जेलर का चेहरा उनके लिए खौफ का पर्याय था और उसको देखते ही उन सातो की घबराहट बढ़ने लगती थी।​

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उन्होंने एक साथ अपने कपड़े उतारने शुरू किए। दया और माधवी ने अपनी साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा व पेंटी उतार दी और पूरी तरह से नग्न हो गई। सोनू माधवी के बगल में ही थी और अपनी माँ के साथ ही उसने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए। उसने अपना जीन्स, टॉप तथा ब्रा व पैंटी उतार दी और माधवी के साथ पूर्ण नग्न अवस्था मे हाथ नीचे कर खड़ी हो गई।

सोनू के बगल में रोशन खड़ी थी और उसके बगल में क्रमशः कोमल, बबिता व अंजली थी। उन चारों ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और अब वे सातो पूरी तरह से नंगी हो गई। क्या कमाल का दृश्य था वह। सातो नग्न अवस्था मे सर झुकाये खड़ी थी और जेलर उन्हें टकटकी लगाए निहारे जा रही थी। उनके सीने से लटक रहे बड़े-बड़े स्तन उनकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। उनका गोरा व आकर्षक बदन और उनकी चिकनी गुलाबी चूत किसी को भी उत्तेजित करने के लिए काफी थी।

उनके पास खड़ी काँस्टेबल्स ने उनके कपड़े उतारते ही उनकी जाँच शुरू कर दी। नियमित जाँच प्रक्रिया के अनुसार उनके बालो से लेकर उनके नाक, कान, मुँह, गले, हाथ, पैर, कूल्हे, वजाइना और स्तनों की भी जाँच की गई और फिर जाँच प्रक्रिया के पूर्ण होते ही उन्हें जेल के कपड़े दिए गए।

वे लोग अब अंडरट्रायल कैदी नही थी। सातो अब सज़ायाफ्ता कैदी बन चुकी थी। अब तक उन्हें अपने घर के कपड़े पहनने की इजाजत थी लेकिन सज़ायाफ्ता होने के बाद वे लोग अब सिर्फ जेल की पोशाक ही पहन सकती थी। वे सातो जिन कपड़ो में थी, उन्हें जमा कर लिया गया और उन्हें कैदियों वाली पोशाक दी गई। जेल की इस कैदियों वाली पोशाक में सफेद रंग की साड़ी (जिस पर नीली धारियाँ थी), सफेद ब्लाउज, सफेद पेटीकोट और सफेद रंग की ब्रा व पैंटी शामिल थी। उन सातो को कपड़ो के तीन-तीन सेट दिए गए और उन्हें इन्ही तीन जोड़ी कपड़ो के साथ अपनी सजा काटनी थी।​
 
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farzicricketer

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लंबे अपडेट्स कहानी को रोचक बनाएंगे और पाठक उत्सुक भी रहेंगे। बबिता माधवी अंजली सोनू रोशन का आपस में भावुक सम्भोग एक अलग ही उत्साह होगा।
कृपया इस पर भी ध्यान दें।
 
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