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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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Update 12

“अरे देखो देखो। नई कैदी लोग आ रही हैं…” वार्ड में वापस जाते ही एक सीनियर कैदी ने उन्हें देखकर कहा।

‘अबे क्या माल है रे साली सब की सब…’

“दिखने में तो सब शरीफ लग रही है साली...”

‘अबे दिखने में तो हम भी शरीफ ही लगती है पर हमसे बड़ी हरामी कोई है क्या इधर 😂😂…’

“अरे वो सब छोड़ो। ऐ संध्या। जा उन्हें लेकर आ।” - एक अन्य कैदी कमला ने उससे कहा।

‘हाँ दीदी।’

संध्या तुरंत ही उन सातो के पास गई और उन्हें अपने साथ चलने को कहा। उन लोगो का उसके साथ जाने का मन तो नही कर रहा था लेकिन जेल के नियमो व जेलर की चेतावनी की वजह से उन्हें उसके साथ जाना पड़ा। संध्या उन्हें सीधे वार्ड नंबर 19 के सामने बने चबुतरे के पास ले गई जहाँ कमला, गुलरेज व कई अन्य खतरनाक कैदी औरते उनका इंतजार कर रही थी। उन सातो को उनके सामने खड़े करवाया गया और लगभग 25 से 30 औरते उन्हें घेरकर खड़ी हो गई।​

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“क्या रे कमिनियो। क्या करके आई हो।” - कमला ने पूछा।

‘हमने कुछ नही किया है बेन।’ - दया ने जवाब दिया।

“अच्छा। कुछ नही किया तूने। तो इधर क्या अपनी माँ चुदाने आई है साली।” - उसने दया पर चिल्लाते हुए कहा।

दया आगे कुछ नही बोल पाई और चुपचाप सर झुकाकर खड़ी रही। कमला ने उन सभी को घूरती नजरो से देखा और फिर दया को अपने पास बुलाकर बोली - ‘नाम क्या है तेरा?’

‘दया जेठालाल गढ़ा’ - दया ने कहा।

‘साली तू दिखने में तो बड़ी घरेलू लगती हैं। पर तु है बड़ी हराम की जनी। कही तेरी माँ भी तो रंडियापा नही करती थी जवानी में…😀। - उसने दया का मजाक उड़ाते हुए कहा।

दया को अपनी माँ के बारे में उसकी बाते बुरी तो बहुत लगी लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे कुछ बोल नही सकती थी। कमला ने दया के बाद अंजली से भी उसका नाम पूछा और फिर बारी-बारी से उन सभी का परिचय लिया।

“चलो, कान पकड़ो और मुर्गा बनो सब।” - कमला ने उन्हें आदेश दिया।

‘जी?’ - बबिता के मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।

“अबे सुनाई नही दिया क्या लौड़ी? कान पकड़ो और मुर्गा बनो।”

उन सातो के पास कोई रास्ता नही था। जेल में उनका पहला दिन था और वे लोग सीनियर कैदी औरतो से घिरी हुई थी। यदि वे लोग उनकी बात नही मानती तो जाहिर था कि उन्हें खूब मार पड़ती। मजबूरन उन्हें उन सबके सामने मुर्गा बनना पड़ा। वे लोग आगे की ओर झुकी और अपने दोनों पैरों को फैलाकर उनके बीच मे से अपने हाथों को अंदर डाला और अपने कान पकड़कर उसी अवस्था मे स्थिर हो गई। उनका सर नीचे की ओर था और उनके कूल्हे जमीन से कुछ ऊँचाई पर उठे हुए थे। उन सबके लिए मुर्गा बनना आसान नही था। चूँकि माधवी और दया ने साड़ी पहनी हुई थी इसलिए उन दोनों को सबसे ज्यादा दिक्कत हुई। उन्होंने अपनी साड़ी को घुटनों तक ऊपर उठाया और मुर्गा बनी।

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उन लोगो को काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा गया। यदि वे लोग अपने कूल्हों को नीचे करती या जरा सी भी लड़खड़ाती तो सीनियर औरते उन्हें लाते मारने लगती। यहाँ तक कि उन्होंने सोनू को भी नही बख्शा और उसके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया। वे लोग कोई छोटी बच्ची नही थी जो मजाक-मजाक में ऐसा कर लेती। सोनू को छोड़कर वे सभी 35 साल से अधिक उम्र की वयस्क औरते थी और उनके लिए यह सब बेहद अपमानजनक था।

“चलो खड़ी हो और कपड़े उतारो फटाफट।” - कमला ने फिर कहा।

वे लोग खड़ी हुई और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ ही देर में वे लोग पूरी तरह से नंगी हो गई और सीनियर कैदियों के लिए मनोरंजन का साधन बन गई। उनके बड़े-बड़े बूब्स वाकई में बेहद आकर्षक थे और उनके कूल्हों पर जमें वसा की वजह से वे लोग और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। वे सातो गोरी-चिट्टी और खूबसूरत थी जिस वजह से सीनियरों कैदियों को उन्हें परेशान करने में और भी ज्यादा मजा आ रहा था। हालाँकि कोमल बहुत मोटी थी लेकिन दिखने में ठीक थी। उनके पीछे खड़ी औरते उनके कूल्हों पर हाथ मारने लगी और उन्हें दबाने लगी। तभी कमला भी अपनी जगह से उठी और बबिता के सामने जाकर खड़ी हो गई। उसने बबिता के चेहरे को जोर से पकड़ा और अपने होंठ उसके होंठो पर टिका दिए। एकदम से कमला का आना और किस करना बबिता के लिए असहजतापूर्ण था। वह स्तब्ध रह गई और आनन-फानन में कमला को धक्का दे दिया।

‘साली हरामजादी। मेरे को धक्का दिया तूने। कमला को धक्का दिया।’

कमला गुस्से से आग बबूला हो चुकी थी और बबिता की ओर घूरकर देखने लगी। उसने वहाँ मौजूद कैदियों से बबिता को नीचे लिटाने को कहा जिसके बाद उन लोगो ने पूर्ण नग्न अवस्था मे खड़ी बबिता को हाथों व पैरों से पकड़ा और उसे नीचे जमीन पर लिटा दिया।

उसके बाद वे लोग एक-एक करके बबिता के ऊपर चढ़ने लगी और उसके साथ लेस्बियन होने लगी। जो औरते उसके ऊपर चढ़ती जाती, वे उसे चूमती, उसके बूब्स दबाती और उसकी चूत में अपनी ऊँगली से गुदगुदी करती। बबिता असहाय थी और उस खिलौने की तरह बेबस पड़ी हुई थी जिसका इस्तेमाल सीनियर औरते अपनी मर्जी से कर रही थी। एक तरह से उसका बला….र ही हो रहा था। बस फर्क इतना ही था कि उसके साथ ऐसा करने वाले कोई पुरुष नही बल्कि उसी की तरह महिलायें थी।

कमला सहित बहुत सारी औरतो ने उसके साथ लेस्बियन सेक्स किया। हालाँकि उनके पास उसकी योनि में डालने के लिए डिल्डो या अन्य किसी तरह की कोई भी वस्तु नही थी जिस वजह से ज्यादातर औरतो ने अपनी ऊँगली और हाथ का इस्तेमाल किया। काफी देर तक उसके साथ सेक्स करने के बाद उन लोगो ने उसे छोड़ तो दिया लेकिन उसे जाने नही दिया। उसे अंजली और बाकी सभी के साथ ही दोबारा खड़े करवाया गया और फिर से उनकी रैगिंग शुरू हो गई।

सीनियर कैदियों ने उनसे ऊठक-बैठक लगवाई, एक पैर पर खड़े करवाया, जानवरो की नकल उतरवाई और कई तरह से उनकी रैगिंग ली। उन्हें एक-दूसरे के स्तनों पर मुँह लगाकर दूध पीने को कहा गया जिसे उन्हें मानना पड़ा। कुछ देर बाद उन्हें हाथो और घुटनों के बल जमीन पर गाय की तरह बिठाया गया और एक कतार में एक-दूसरे की गांड में मुँह लगाने को मजबूर किया गया।​

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सबसे आगे दया थी। उसके पीछे माधवी और माधवी के पूछे क्रमशः सोनू, अंजली, बबिता, रोशन और कोमल थी। दया की गाँड़ में माधवी का मुँह घुसा हुआ था और माधवी की गाँड़ में सोनू का। इसी तरह आगे भी श्रंखला बनी हुई थी और उन्हें इसी अवस्था मे घुटनो और हाथो के बल पर चलना पड़ रहा था। सीनियर औरते लगातार उनका मजाक उड़ा रही थी और उनके मजे ले रही थी। उन सातो की बेबसी, अपमान और दर्द केवल वे सातो ही समझ सकती थी और उस वक़्त उनकी मनोस्थिति का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था। जेल में आने के बाद से ही लगातार उन्हें रैगिंग, प्रताड़ना और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ रहा था।

जेल एक ऐसी जगह होती है जहाँ एक माँ अपनी बेटी को अपनी आँखों के सामने पिटता देखकर भी कुछ नही कर सकती। यही स्थिति माधवी की भी थी। अपनी आँखों के सामने ही अपनी बेटी के साथ गंदी-गंदी हरकते होती देख भी उसे चुप रहना पड़ रहा था। एक माँ अपने बच्चे को दुनिया की हर खुशी देना चाहती हैं लेकिन माधवी वह लाचार माँ बन चुकी थी जो अपनी बेटी के साथ गलत होता देख भी उसे रोकने में असमर्थ थी।

खैर, उन सातो को नचवाया गया, उनसे गाना गवायाँ गया, पुशअप्स लगवाए गए और उनके साथ मारपीट तक की गई। सबसे अंत मे उन्होंने उन लोगो को कुर्सी में बैठने वाली स्थिति में खड़े करवाया और काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा। उनके लिए यह स्थिति बहुत ही तकलीफदेय थी क्योंकि उन्हें अपने कूल्हों को हवा में और हाथो को आगे की ओर रखना पड़ रहा था। पीछे खड़ी कैदी औरते अपनी पूरी ताकत से उनकी पीठ और कूल्हों पर लाते मारती जा रही थी ताकि वे आगे की ओर गिर पड़े। दिलचस्प बात यह थी कि उन सातो को पीछे से लाते पड़ने के बावजूद अपनी जगह से हिलना या आगे गिरना मना था। यदि वे लोग अपनी जगह से जरा भी हिलती या आगे जाती तो उन्हें और ज्यादा मार पड़ती। आखिरकार घंटो तक उनकी रैगिंग करने के बाद सीनियर कैदियों ने उन्हें जाने दिया जिसके बाद उन्होंने अपने कपड़े अपने और सीधे अपनी सेल में चली गई।​
Nice 🙂 👍 👍 🙂
 

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Update 13

जेल में उनका पहला दिन बहुत ही ज्यादा तकलीफों भरा रहा। मेडिकल के दौरान पहले जेलर ने खूब परेशान किया और फिर वार्ड में वापस लौटने के बाद सीनियर कैदियों ने भी बहुत तंग किया। रात में भी जब सेलो में ताले लगा दिए गए तब पिछली रात की तरह ही सेल की सीनियर कैदियों ने उनकी जमकर रैगिंग की और उनके साथ सेक्स भी किया। वे लोग बेबस थी और सब कुछ चुपचाप सहन करने के लिए मजबूर थी।​

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जेल में उनके दिन इसी तरह गुजरने लगे। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हर चीज में उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा था। रोज सीनियरों की रैगिंग झेलनी पड़ती, उनके साथ सेक्स करना पड़ता और रोजाना शारीरिक व मानसिक शोषण का सामना करना पड़ता। हालाँकि ऐसा हाल केवल उनका ही नही था। जेल की तमाम कैदियों की यही स्थिति थी। जेल में लंबे समय से बंद औरतो को तो जेल की जीवन की आदत हो चुकी थी लेकिन नई कैदियों के लिए यह बेहद मुश्किल था। उन सातो के लिए भी जेल के जीवन को स्वीकार करना आसान नही था। जेल का माहौल उनके बाहरी जीवन से बिल्कुल अलग और विपरीत था।

जेल में आने के चौदह दिन बाद भी उनके घर से कोई मिलने नही आया था। उन्हें ना तो मोबाईल रखने की अनुमति थी और ना ही उनके पास अपने घरवालों से संपर्क करने का कोई साधन था। जेल में अंडरट्रायल कैदियों को महीने में दो बार और सजायाफ्ता कैदियों को महीने में एक बार अपने घरवालों से मिलने की इजाजत थी लेकिन उन लोगो को जेल में आये हुए चौदह दिन ही हुए थे इसलिए नियमानुसार उन्हें उनके वकील के अलावा किसी से भी मिलने की इजाजत नही दी गई और चौदह दिनों की ज्युडिशयल कस्टडी समाप्त होते ही उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया।

‘अंजली मेहता…

‘बबिता अय्यर…

‘दया गढ़ा…

‘कोमल हाथी…

‘माधवी भिड़े…

‘रोशन कौर सोढ़ी और सोनालिका भिड़े…

ये कैदी दस बजे तक तैयार रहेंगे। आज इनकी पेशी की तारीख हैं।’

जेल में सुबह सात बजे ही उनके नाम का अनाउंसमेंट कर दिया गया और उन्हें पेशी पर जाने के लिए तैयार रहने को कहा गया। उन लोगो ने सुबह के कुछ काम खत्म किये और फिर नहाकर तैयार हो गई जिसके बाद सुबह पौने दस बजे जेल से कुछ गाड़ियाँ कोर्ट जाने के लिए रवाना हुई। इन गाड़ियों में पेशी पर जाने वाली महिला कैदियों को बिठाया गया था जिनमे वे सातो भी शामिल थी। सभी के हाथों में हथकड़ी लगी हुई थी और कुछ महिला सिपाही उनकी निगरानी में तैनात थी। कोर्ट पहुँचने के बाद उन सभी को एक-एक कर वेन से नीचे उतारा गया और एक कतार में अंदर ले जाया गया।​

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उन सातो के परिवार और गोकुलधाम सोसायटी के लोग पहले ही कोर्ट पहुँच चुके थे। जब उन सातो को वेन से नीचे उतारा गया तो अपने परिवार को देखकर वे लोग भावुक हो उठी और उनके पास जाने के लिए अपनी निगरानी में तैनात महिला सिपाहियों से इजाजत माँगने लगी। हालाँकि पुलिस ने उन्हें अपने परिवार से मिलने की इजाजत नही दी और उन्हें सीधे कोर्ट के अंदर लेकर गई।

कैद भी क्या चीज होती हैं। अपने ही परिवार से मिलने के लिए, उन्हें छूने और उनसे बात करने के लिए भी किसी और की इजाजत लेनी पड़ती हैं। कैदी इतने भी आजाद नही होते कि अपनी मर्जी से पानी तक पी सके। वे सातो चौदह दिनों बाद अपने परिवार को देख रही थी लेकिन उनके साथ तैनात महिला सिपाहियों को उनकी भावनाओं की जरा भी कद्र नही थी। वे लोग उन्हें धमकाने लगी कि यदि बाहर किसी भी तरह की कोई गलत हरकते की तो जेल वापस जाने के बाद उन्हें इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा। हालाँकि वे सातो पूरे विश्वास के साथ कोर्ट आई थी कि आज उन्हें जमानत मिल जाएगी और वे लोग जेल रूपी नर्क से बाहर आ पायेगी।​
 
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Update 14

सुबह लगभग साढ़े ग्यारह बजे उनके केस की सुनवाई शुरू हुई। दोनो पक्षो के वकीलों ने कई तरह की दलीले दी। उनके विरोधी पक्ष के वकील ने कहा कि -

“वे लोग अजय दीवान को डरा-धमकाकर उससे पैसे ऐंठना चाहते थे। वे लोग उसे रे.. केस में फँसाने की धमकी देते थे और उससे लगातार पैसो की माँग कर रहे थे। जब अजय ने परेशान होकर उन्हें पैसे देने से मना किया तो एक दिन मौका देखकर वे सातो उसके फ्लैट में गई। उसे धमकाया और बाद में उसकी और उसकी पत्नी की हत्या कर दी।”

उस वकील ने अदालत में उन सभी की मोबाइल लोकेशन डिटेल, सोसायटी की सीसीटीवी फुटेज और उनकी कॉल डिटेल्स जमा की और उन सातो को कड़ी से कड़ी सजा देने की माँग की।​

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जवाब में बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि - ‘वे लोग अजय दीवान के फ्लैट में गई जरूर थी लेकिन अजय ने खुद फोन करके उन्हें वहाँ बुलाया था। वह उन्हें अपनी बहनों की तरह मानता था और सोनू को अपनी बेटी की तरह। जब वे लोग वहाँ पहुँची तो अजय और उसकी पत्नी जमीन पर पड़े तड़प रहे था और उन्हें पहले ही किसी ने बेरहमी से मार दिया था।’

काफी देर तक दोनों पक्षो की दलीलें सुनने के बाद जज ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाने वाले डॉक्टर और फोरेंसिक डिपार्टमेंट के अधिकारी को कटघरे में बुलाया और उनसे सवाल-जवाब किये। उन्होंने बताया कि अजय के शरीर पर लगभग 17 से अधिक वार के निशान पाये गए है और जिस चाकू से उसे मारा गया है, उस पर भी उन सातो के फिंगरप्रिंट हैं। इसके अतिरिक्त कमरे में कई जगहों पर उनके फिंगरप्रिंट मिले है। अजय की पत्नी की लाश पर भी उनके फिंगरप्रिंट के निशान पाए गए हैं।

सारे सबूत उनके खिलाफ थे। उनके वकील ने उन्हें जमानत दिलवाने की भरसक कोशिश की लेकिन सारी दलीले सुनने के बाद अदालत ने उन्हें जमानत देने से साफ इंकार कर दिया। अदालत ने माना कि उनके खिलाफ पेश किए गए सबूत उन्हें आरोपी ठहराने के लिए काफी है और सबूतों के आधार पर उन्हें जमानत देने का सवाल ही पैदा नही होता। जज ने पुलिस को चार्जशीट जमा करने के लिए 90 दिनों का समय दिया और उनके वकील को उनकी बेगुनाही साबित करने के लिए भी अंतिम मौका दिया। अदालत ने साफ कह दिया कि यदि अगली सुनवाई में उनकी ओर से कोई ठोस सबूत पेश नही किया गया तो अदालत अपना फैसला सुना देगी।​

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अदालत का यह फैसला उनके और उनके परिवार के लिए किसी सदमे से कम नही था। जज के द्वारा फैसला सुनाते ही वे सातो कटघरे में ही रोने लगी और उन्हें जेल ना भेजने की गुहार लगाती रही। हालाँकि अदालत ने अपना फैसला तो नही बदला लेकिन उन्हें उनकी बात रखने का मौका जरूर दिया।

“जज साहब, प्लीज हमे वापस जेल मत भेजिए। हमने कुछ नही किया हैं।” - माधवी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

‘हाँ जज साहब, आपको इतना सा भी अंदाजा नही है कि क्या होती है जेल की लाइफ।’ - बबिता बोली।

“जब तुम लोग क्राइम करती हो तब जेल का ख्याल नही आता।” - जज ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा।

अंजली - ‘हमने कोई क्राइम नही किया है जज साहब। हम बेकसूर है।’

जज - “आपके कहने पर तो आपको बेकसूर नही माना जा सकता। कोर्ट सबूतों के आधार पर फैसला करती हैं।”

बबिता - ‘सर, वहाँ हमारा बहुत ज्यादा हरासमेंट हो रहा है। सेक्सुअली एब्यूज़ किया जा रहा है।’

जज - “मिसेस बबिता। आप एक लेडीज जेल में है जहाँ सिर्फ महिला कैदी हैं। और आप कह रही है कि आपका हरासमेंट हो रहा हैं।”

अंजली - ‘जज साहब, हम लोग बहुत तकलीफ में जी रहे हैं। जेल में हमारे साथ रोज मारपीट होती है। प्लीज हमें दोबारा जेल मत भेजिए।’

जज - “जेल में थोड़ी बहुत मारपीट तो होगी ही मैडम। आपको जेल के अंदर भी सारी सुविधाएँ चाहिए क्या?”

तभी माधवी ने बीच मे बोलते हुए कहा - ‘कम से कम मेरी बेटी को तो छोड़ दीजिए जज साहब। बच्ची है वो। उसका भविष्य बर्बाद हो जायेगा।’

जज - “18-19 साल की लड़कियाँ भी जेल में बंद हैं। कल को सभी ऐसा बोलने लगेगी। हम क्या सबको रिहा कर देंगे।”

जज ने उनकी एक नही सुनी और सबको जेल भेजने का आदेश दे दिया। अदालत द्वारा बेल की अर्जी खारिज होने के बाद पुलिस ने सभी को हथकड़ी पहनाई और वेन में बिठाकर जेल के लिए रवाना हो गई।​
 
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Update 15

“आ गई साली कमिनियो। - जेलर ने उन सातो को देखते ही कहा।

वे लोग चुपचाप खड़ी रही और अपने आँसू छुपाने की कोशिश करती रही। उन्हें कोर्ट लेकर गई काँस्टेबल्स ने अदालत के आदेश की एक कॉपी जेलर के हाथों में सौंप दी जिसे पढ़ते ही उसकी आँखों मे एक अलग ही चमक जाग उठी। उसने फिर उन सातो की ओर देखकर कहा -

‘मैंने तो पहले ही कहा था। मेरी जेल से निकलना इतना आसान नही हैं। इस बात को भूल ही जाओ कि तुम लोग यहाँ से कभी बाहर भी निकल सकती हो और अब जब वापस आ ही गई हो तो तुम्हारा स्वागत तो करना पड़ेगा। 😀’​

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वे लोग एकदम से घबरा गई। जेलर की बातों में चेतावनी थी लेकिन साथ ही रहस्य भी था। उसका कोई भरोसा नही था कि कैदियों के साथ कब क्या कर ले। उसने वहाँ मौजूद काँस्टेबल से कहा - “मेघा, आज रात ये सातो मेरे क्वार्टर में होनी चाहिए…”

‘जी मैडम..’ - काँस्टेबल ने तुरंत ही जवाब दिया।

उसके बाद उन सभी को चेकिंग रूम में ले जाया गया और पूर्ण नग्न अवस्था मे उनकी तलाशी ली गई। तलाशी की प्रक्रिया से अब वे लोग अच्छी तरह से वाकिफ थी इसलिए उनमे से किसी ने भी अपने कपड़े उतारने से मना नही किया और ना ही तलाशी के दौरान किसी तरह की कोई आनाकानी की। उनकी अच्छी तरह से तलाशी लेने के बाद उन्हें उनके सर्कल में भेज दिया गया।​

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वे लोग अगले तीन महीनों के लिए जेल में कैद हो चुकी थी। इस दौरान ना तो उनकी कोई पेशी थी और ना ही उनके पास जेल से बाहर निकलने का कोई जरिया था। पिछले चौदह दिन तो जैसे-तैसे निकल गए थे लेकिन अगले तीन महीनों तक जेल में रहने के ख्याल से भी वे लोग घबराने लगी थी।

“अब हम क्या करेंगे? तीन महीने कैसे रहेंगे यहाँ?” - बबिता ने कहा।

‘हौसला रखिये बबिटा जी। ऊपरवाला सब ठीक करेगा।’ - रोशन बोली।

दया - “मुझे तो लगा था कि जज साहब हमारी बात सुनेंगे और हमे बेल दे देंगे।”

अंजली - ‘हम सबको यही लगा था दया भाभी।’

तभी सोनू बीच मे रोते हुए बोली - “मुझे तो बहुत डर लग रहा है। अगर हम कभी यहाँ से बाहर ही नही निकल पाये तो…”

उसकी आँखो में आँसू थे और चेहरे पर कभी ना मिटने वाली बेबसी। बेबसी कैद में होने की, बेबसी आजाद ना होने की और बेबसी अपने साथ गलत होते हुए भी उसे रोक ना पाने की। उन सभी ने सोनू को हिम्मत दी और उसे ढाँढस बँधाते हुए कहा कि वे लोग जरूर बाहर निकलेंगे। उस वक़्त उन सबके दिमाग मे केवल एक ही बात चल रही थी कि किसी भी तरह वे लोग जेल से बाहर निकले। हालाँकि उनका भविष्य उनके हाथ मे नही और वे लोग सिर्फ उम्मीद ही कर सकती थी।

जेल में आने के बाद उनकी जिंदगी बेरंग सी हो चुकी थी। रोजाना एक जैसी दिनचर्या और सीमित जगह पर रहने की वजह से वे लोग ऊबने लगी थी। अंदर मनोरंजन के लिए उनके पास कोई साधन नही थे। वे लोग ना तो अपने पास मोबाईल रख सकती थी और ना ही उन्हें टीवी देखने की इजाजत थी। जेल के भीतर उन्हें ना अच्छा खाना मिलता था, ना अच्छा बिस्तर और ना ही अपनी मर्जी से कुछ भी करने की आजादी। यही उनकी जिंदगी थी और इसे स्वीकार करना उनकी मजबूरी बन चुकी थी।​
 
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Update 16

“ऐ…चलो सब लोग बाहर आओ। मैडम ने बुलाया है तुम लोगो को…” उसी रात नौ बजे वार्डन शोभना कुछ लेडी काँस्टेबल्स के साथ वार्ड में आई और उन सातो को उनकी सेल से बाहर निकाला। उस वक़्त वे लोग अपनी सेल की सीनियर कैदियों की सेवा में लगी हुई थी। सेल से बाहर आते ही उन सबके हाथो में हथकड़ी पहना दी गई और उन्हें पकड़कर सीधे जेलर के क्वार्टर में ले जाया गया।

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उस वक़्त जेलर अपने सोफे पर बैठी हुई थी और टीवी देख रही थी। उन्हें लेकर गई महिला सिपाहियों ने उन सातो को जेलर के हवाले कर दिया और वहाँ से चली गई। उन लोगो ने देखा कि वहाँ पर पहले से ही कुछ कैदी औरतें व लड़कियाँ मौजूद थी जो रात के नौ बजे भी अलग-अलग तरह के काम कर रही थी। कोई बर्तन साफ कर रही थी तो कोई फर्श पर पोछा लगा रही थी। कोई सामानों को व्यवस्थित करने में व्यस्त थी तो कोई जेलर की मालिश में लगी हुई थी। उन सातो को देखते ही जेलर ने तंज भरे लहजे में कहा -

‘आ गई साली रंडियों। चलो फटाफट कपड़े उतारो और नंगी हो जाओ।’

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उनके पास उसकी बात को मना करने का कोई कारण नही था और उसके कहने पर उन्हें अपने कपड़े उतारने पड़े। उनके कपड़े उतारते ही जेलर ने उसकी मालिश कर रही कैदी से अंदर जाकर पानी के कटोरे लाने को कहा जिसके बाद वह कैदी अंदर गई और पानी से भरे कुछ कटोरे ले आई। उन कटोरों को उन सातो के सामने नीचे जमीन पर रख दिया गया और फिर जेलर उनसे बोली -

‘चलो महारानियो, नीचे झुको और पानी पियो।’

उनके लिये यह सुनना बेहद ही अपमानजनक था। जमीन पर पड़े कटोरे में मुँह डालकर पानी पीने का मतलब था कि जेलर उन्हे इंसान नही बल्कि जानवरो से भी बदतर समझती थी। उन लोगो ने जेल में अब तक बहुत कुछ सहा था। सीनियरों द्वारा रैगिंग हो, मारपीट हो या फिर उनका शारीरिक शोषण हो। वे लोग चुपचाप सबकुछ सहती रही। हालाँकि यह उनकी मर्जी नही बल्कि मजबूरी थी लेकिन जब जेलर ने उनसे जानवरो की तरह पानी पीने को कहा तो वे लोग चुप नही रह पाई और माधवी तुरंत ही बोल पड़ी -

“मैडम, ये कैसा बर्ताव कर रही है आप हमारे साथ। हम इंसान हैं। कोई जानवर नही हैं।”

तभी अंजली ने भी कहा - ‘हाँ मैडम, कम से कम हमारे साथ इंसानो की तरह बिहेव तो कीजिये।’

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उन्होंने इतना कहा ही था कि जेलर गुस्से से आग बबूला हो उठी। वह अपनी जगह से उठी और अंजली के बालों को जोर से खीचते हुए बोली -

“साली हरामजादी, तुम लोगो से इंसानो की तरह बिहेव करूँ। हाँ। तुम जैसी औरतो के लिए ये जेल, जेल नही, नर्क है नर्क और यहाँ तुम्हारी औकात सिर्फ जानवरो के बराबर है। समझी।”

इतना कहते ही उसने पास पड़ा डंडा उठाया और अंजली के पैरों पर एक जोर का डंडा मारा। अंजली दर्द के मारे चिल्ला उठी। लेकिन जेलर यही नही रुकी। वह अंजली पर जमकर डंडे बरसाने लगी। अंजली लगातार डंडो से बचने की कोशिश करती रही और उससे रहम की भीख माँगती रही लेकिन जेलर थी कि उसे उस पर जरा भी दया नही आई। वह जेल के अंदर थी और जेलर की मार से बचने के लिए कही भाग भी नही सकती थी। जेलर उसे बेरहमी से पीटती रही जिसे देखकर बाकी सभी औरते बेहद डर गई। हालाँकि उसने अंजली को कमर के ऊपर ना मारते हुए ज्यादातर उसके पैरों व कूल्हों पर ही मारा जिस वजह से उसके पैरों व कूल्हों पर लाल निशान तक पड़ गए थे।

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अंजली की पिटाई के बाद तो उनमें से किसी की हिम्मत ही नही हुई कि वे लोग जेलर की बातों को मना कर पाये। जेलर के कहे अनुसार उन सभी ने नीचे झुककर पानी के कटोरे पर मुँह लगाकर पानी पीना शुरू किया। यह ठीक वैसा ही था जैसे कोई कुत्ता या गाय जैसा कोई जानवर जमीन पर पड़े बर्तन में मुँह लगाकर पानी पीता हैं।

वे लोग पानी पी ही रही थी कि जेलर ने उनके गले मे कुत्ते का पट्टा और चैन बाँधनी शुरू कर दी। वे लोग कुछ नही कर सकती थी इसलिए चुपचाप जेलर का कहना मानती रही। जेलर ने उस वक़्त सलवार व पजामा पहन रखा था और उन सातो के गले मे पट्टा बाँधने के बाद उसने भी अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसने अपनी ब्रा व पैंटी को छोड़कर अपने सारे कपड़े उतार दिए और उनके सामने ही अर्धनग्न हो गई।

वे सातो अपने घुटनों और हाथो के बल किसी कुत्ते की तरह जमीन पर पड़ी हुई थी और उनके गले में बँधे पट्टे व चैन जेलर के हाथो मे थी। उसने उन्हें पूरे कमरे में उसी अवस्था मे घुमाया और फिर उन्हें कमरे में ही अलग-अलग जगहों पर बाँध दिया। फिर बाहर से कुछ लेडी काँस्टेबल्स को अंदर बुलाया और सातो के पिछवाड़े में डंडा घुसाने का आदेश दिया। जेलर के कहते ही काँस्टेबल्स ने सबकी गाँड़ में डंडे घुसा दिए।

“आँह……वे लोग दर्द के मारे कराहने लगी और अपनी होठो को कसकर दबा लिया। उनकी स्थिति ऐसी थी कि वे चाहकर भी डंडे को नही निकाल सकती थी। उनके दोनो हाथ और घुटने जमीन पर टिके हुए थे और गले मे पट्टा बँधा हुआ था। जेलर ने लगभग पंद्रह मिनट तक उन सातो को उसी अवस्था मे रखा और फिर उनकी गाँड़ में से डंडे को निकालकर सोनू को अपने साथ बैडरूम में ले जाने लगी।

सोनू को ले जाते देख माधवी ने तुरंत उन्हें रोका और झट से बोल पड़ी - ‘मैडम, मेरी बेटी को कहाँ ले जा रही हो आप?’

जेलर को अब उनकी एक भी बात सहन नही हो रही थी। माधवी के टोकते ही उसने उसे एक जोर का तमाचा जड़ दिया और सोनू को छोड़कर बाकी सभी को एक-दूसरे के साथ सेक्स करने का फरमान सुना दिया। उसने दो-दो की जोड़ियाँ बनाई। दया और माधवी, बबिता और अंजली तथा रोशन और कोमल की। इन जोड़ियों में से एक को मर्द बनाया यानि उन्हें रबर का नकली लिंग पहना दिया। मर्द बनी कैदी को अपनी जोड़ी की दूसरी औरत को उसी तरह चोदना था जिस तरह एक मर्द किसी औरत को चोदता हैं।​
 
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“ऐ…चलो सब लोग बाहर आओ। मैडम ने बुलाया है तुम लोगो को…” रात के नौ बजे वार्डन शोभना कुछ लेडी काँस्टेबल्स के साथ वार्ड में आई और उन सातो को उनकी सेल से बाहर निकाला। उस वक़्त वे लोग अपनी सेल की सीनियर कैदियों की सेवा में लगी हुई थी। सेल से बाहर आते ही उन सबके हाथो में हथकड़ी पहना दी गई और उन्हें पकड़कर सीधे जेलर के क्वार्टर में ले जाया गया।​

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उस वक़्त जेलर अपने सोफे पर बैठी हुई थी और टीवी देख रही थी। उन्हें लेकर गई महिला सिपाहियों ने उन सातो को जेलर के हवाले कर दिया और वहाँ से चली गई। उन लोगो ने देखा कि वहाँ पर पहले से ही कुछ कैदी औरतें व लड़कियाँ मौजूद थी जो रात के नौ बजे भी अलग-अलग तरह के काम कर रही थी। कोई बर्तन साफ कर रही थी तो कोई फर्श पर पोछा लगा रही थी। कोई सामानों को व्यवस्थित करने में व्यस्त थी तो कोई जेलर की मालिश में लगी हुई थी। उन सातो को देखते ही जेलर ने तंज भरे लहजे में कहा -

‘आ गई साली रंडियों। चलो फटाफट कपड़े उतारो और नंगी हो जाओ।’​

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उनके पास उसकी बात को मना करने का कोई कारण नही था और उसके कहने पर उन्हें अपने कपड़े उतारने पड़े। उनके कपड़े उतारते ही जेलर ने उसकी मालिश कर रही कैदी से अंदर जाकर पानी के कटोरे लाने को कहा जिसके बाद वह कैदी अंदर गई और पानी से भरे कुछ कटोरे ले आई। उन कटोरों को उन सातो के सामने नीचे जमीन पर रख दिया गया और फिर जेलर उनसे बोली -

‘चलो महारानियो, नीचे झुको और पानी पियो।’

उनके लिये यह सुनना बेहद ही अपमानजनक था। जमीन पर पड़े कटोरे में मुँह डालकर पानी पीने का मतलब था कि जेलर उन्हे इंसान नही बल्कि जानवरो से भी बदतर समझती थी। उन लोगो ने जेल में अब तक बहुत कुछ सहा था। सीनियरों द्वारा रैगिंग हो, मारपीट हो या फिर उनका शारीरिक शोषण हो। वे लोग चुपचाप सबकुछ सहती रही। हालाँकि यह उनकी मर्जी नही बल्कि मजबूरी थी लेकिन जब जेलर ने उनसे जानवरो की तरह पानी पीने को कहा तो वे लोग चुप नही रह पाई और माधवी तुरंत ही बोल पड़ी -

“मैडम, ये कैसा बर्ताव कर रही है आप हमारे साथ। हम इंसान हैं। कोई जानवर नही हैं।”

तभी अंजली ने भी कहा - ‘हाँ मैडम, कम से कम हमारे साथ इंसानो की तरह बिहेव तो कीजिये।’​

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उन्होंने इतना कहा ही था कि जेलर गुस्से से आग बबूला हो उठी। वह अपनी जगह से उठी और अंजली के बालों को जोर से खीचते हुए बोली -

“साली हरामजादी, तुम लोगो से इंसानो की तरह बिहेव करूँ। हाँ। तुम जैसी औरतो के लिए ये जेल, जेल नही, नर्क है नर्क और यहाँ तुम्हारी औकात सिर्फ जानवरो के बराबर है। समझी।”

इतना कहते ही उसने पास पड़ा डंडा उठाया और अंजली के पैरों पर एक जोर का डंडा मारा। अंजली दर्द के मारे चिल्ला उठी। लेकिन जेलर यही नही रुकी। वह अंजली पर जमकर डंडे बरसाने लगी। अंजली लगातार डंडो से बचने की कोशिश करती रही और उससे रहम की भीख माँगती रही लेकिन जेलर थी कि उसे उस पर जरा भी दया नही आई। वह जेल के अंदर थी और जेलर की मार से बचने के लिए कही भाग भी नही सकती थी। जेलर उसे बेरहमी से पीटती रही जिसे देखकर बाकी सभी औरते बेहद डर गई थी। हालाँकि उसने अंजली को कमर के ऊपर ना मारते हुए ज्यादातर उसके पैरों व कूल्हों पर ही मारा जिस वजह से उसके पैरों व कूल्हों पर लाल निशान तक पड़ गए थे।​

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अंजली की पिटाई के बाद तो उनमें से किसी की हिम्मत ही नही हुई कि वे लोग जेलर की बातों को मना कर पाये। जेलर के कहे अनुसार उन सभी ने नीचे झुककर पानी के कटोरे पर मुँह लगाकर पानी पीना शुरू किया। यह ठीक वैसा ही था जैसे कोई कुत्ता या गाय जैसा कोई जानवर जमीन पर पड़े बर्तन में मुँह लगाकर पानी पीता हैं।

वे लोग पानी पी ही रही थी कि जेलर ने उनके गले मे कुत्ते का पट्टा और चैन बाँधनी शुरू कर दी। वे लोग कुछ नही कर सकती थी इसलिए चुपचाप जेलर का कहना मानती रही। जेलर ने उस वक़्त सलवार व पजामा पहन रखा था और उन सातो के गले मे पट्टा बाँधने के बाद उसने भी अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसने अपनी ब्रा व पैंटी को छोड़कर अपने सारे कपड़े उतार दिए और उनके सामने ही अर्धनग्न हो गई।​
Bhai update toh bahut hi jabardast hai bs ap isme sexy nude pics or gif bhi add karo toh maza dugna ho jayega
 
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