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Adultery घर की बहू

Coquine_Guy

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ये कहानी मुझे अच्छी लगी .. इसीलिए इसको यहां पोस्ट कर रहा हूँ ताकि आप लोग भी पढ़े और मज़ा उठाएं
 
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Alok

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Atyadhik kamutejit update bhai.....
 
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Coquine_Guy

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- जी में ऋषि हूँ धरम पाल जी का लड़का
कामया- ओहो हाँ … हाँ … अच्छा तुम हो
और एक मुस्कुराहट सी उसके होंठों में दौड़ गई थी कामेश ने सच ही कहा था बिल्कुल लड़की छाप है लड़कियों के साथ पला बढ़ा है इसलिए शायद
कामया- हाँ … ठीक है कैसे आना हुआ
और अपने बालों को ठीक करने के लिए जैसे ही पीछे अपने हाथ ले गई तो उसके बालों से क्लुचेयर गायब था पता नही कहाँ गिर गया था खेर अपने साइड के बालों को लेकर बीच में एक गाँठ बाँध लिया उसने और ऋषि की ओर देखती हुई फिर से बोली
कामया- हाँ … बता ओ
ऋषि- जी वो पापाजी ने कहा था कि आपसे मिल लूँ
क्माया के होंठो एक मधुर सी मुस्कान फेल गई थी
कामया- हाँ … और मिलकर क्या करूँ हाँ …
ऋषि- हिहिहीही जी पापा कर्हते है कि भाभी बहुत स्मार्ट है उनके साथ रहेगा तो सब सीख जाएगा हिहिहीही
कामया- हिहिहीही क्या सीख जाओगे हाँ …
ऋषि झेप कर इधर उधर देखने लगा और फिर से हिहीही कर उठा
कामया- हाँ … आज तो मुझे जाना है एक काम करो तुम कल आ जाओ हाँ … फिर देखते है ठीक है
ऋषि किसी स्कूली बच्चे की तरह से झट से खड़ा हो गया और हाथ बाँध कर जी कह उठा
ऋषि- तो में जा ऊ
कामया- हिहीही हाँ … कहाँ जाओगे हाँ …
वो भी ऋषि को एक बच्चे की तरह ही ट्रीट कर रही थी
ऋषि - , जी घर और कहाँ और प
कामया- घर क्यों
ऋषि- फिर कहाँ जा ऊ
कामया- हाँ … अभी तो आए हो फिर घर चले जाओगे तो कोई पूछेगा तो क्या कहोगे
ऋषि- घर पर में ही हूँ और सभी तो दीदी के यहां गये है
कामया- हाँ … हाँ … याद आया तो चलो ठीक ह ै
और अपना मोबाइल उठाकर पापाजी का नंबर डायल करने ही वाली थी कि
ऋषि- आप कहाँ जाएँगी भाभी
कामया- में शोरुम जाउन्गी क्यों
ऋषि- कैसे गाड़ी चलानी आती है आपको
कामया- नहीं ड्राइवर को बुला लूँगी इसलिए पापाजी को फोन कर रही हूँ
ऋषि- में छोड़ दूं आपको में वही से तो जाऊँगा
कामया- हाँ ठीक है लेकिन तुम्हे तकलीफ तो नहीं होगी
ऋषि- हिहीही नहीं क्यों कौन सा मुझे आपको उठाकर ले जाना है हिहिहीही
कामया को भी हँसी आ गई थी उसके लड़कपन पर हाँ … बिल्कुल बच्चा था बस बड़ा हो गया था शायद लड़कियों के साथ पालने से ही यह ऐसा हो गया था घर में सभी बड़े थे यही सबसे छोटा था इसलिए शायद वो अपना पर्स उठाकर ऋषि के साथ बाहर निकली और उसी के साथ शोरुम की ओर बढ़ चली
रास्ते में ऋषि भी उससे खुलकर बातें करता रहा कोई अड़चान नहीं थी उसे भाभी के साथ बिल्कुल घर जैसा ही माहॉल था उसके साथ इस दोरान यह भी फिक्स हो गया कि कल से वो ही भाभी को लेने आएगा और दोनों कॉंप्लेक्स का काम देखेंगे और दोपहर को वो ही भाभी को शोरुम भी छोड़ देगा
कामया को भी ऋषि अच्छा लगा और दोनों में एक अच्छा रिस्ता बन गया था पापाजी से भी मिलवाया ऋषि थोड़ी देर तक बैठा हुआ वो भी उनके काम को देखता रहा और बीच बीच में जब उसकी आखें कामया से मिलती तो एक मुश्कान दौड़ जाती उसके चहरे पर

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पूरा दिन कब निकल गया कामया को पता भी नहीं चला और शोरुम बंद करने का टाइम भी आगया रात को जब वो वापस घर पहुँची तो सबकुछ वैसा ही था जैसा जाते समय था कोई बदलाब नहीं पर जब कामया डाइनिंग रूम को क्रॉस कर रही थी तो अचानक ही उसकी नजर टेबल पर रखे ताजे और लाल पीले फूलो के गुच्छे पर पड़ी और वो चौक गई थी
पापाजी की नजर भी एक साथ ही उन गुलदस्ते पर पड़ी यह यहां कौन लाया और क्यों भीमा के अलावा और कौन रहता है इस घर मे ं
पापाजी की ओर देखते हुए वो कुछ कहती पर
पापाजी- अरे भीमा
एक उची आवाज गूँज उठी थी भीमा जो की किचेन में था दौड़ता हुआ बाहर आया और नजर नीचे किए वहां हाथ बाँधे खड़ा हो गया
भीमा- जी
पापाजी- यह फूल कौन लाया
भीमा- जी वो फूल वाला दे गया था बाबूजी कह रहा था मेमसाहब के लिए भिजवाया है
पापाजी- अच्छा हाँ …
और वो अपने कमरे की ओर चल दिए पर कामया वही खड़ी रही मेमसाहब मतलब वो नजर उठाकर एक बार भीमा की ओर देखा तो वो गर्दन नीचे किए
वापस किचेन की ओर जाते दिखा वो जल्दी से उन फूलो के पास पहुँची और किसने भेजा था ढूँढने लगी थी कही कोई नाम नहीं था पर एक प्रश्न उसके दिमाग में घर कर गई थी किस ने भेजा उसे फूल आज तक तो किसी ने नहीं भेजा है कौन है
इसी उधेड़ बुन में वो अपने कमरे में पहुँची और चेंज करने लगी थी बाथरूम से जल्दी से तैयार होकर निकली थी कि नीचे जाकर खाना खाना है पर मोबाइल पर रिंग ने उसे एक बार फिर से जगा दिया शायद कामेश का फोन है सोचते हुए उसने फोन उठा लिया पर वो किसी नंबर से था
अरे यार यह कंपनी वाले भी ना रात को भी परेशान करने से नहीं चूकते , बिना कुछ सोचे ही उसने फोन काट दिया पर फिर वो बजने लगा क्या है कौन है वो हाथों में सेल लिए सीढ़ियो तक आ गई थी नीचे डाइनिंग स्पेस पर पापाजी भी आते दिख रहे थे
कामया ने आखिर फोन उठा लिया
कामया- हेलो
- फूल कैसे लगे मेमसाहब
कामया -
कामया जैसे थी वैसे ही जम गई थी यह और कोई नहीं भोला था इतनी हिम्मत तो सिर्फ़ वही कर सकता था और फोन भी राक्षस है शैतान है वो वही खड़ी हुई सकपका गई थी और कुछ सूझ नहीं रहा था पर नीचे से पापाजी की आवाज उसके कानों में टकराई तो वो संभली और झट से फोन काट कर जल्दी से डाइनिंग रूम में आ गई थी खाने खाते समय वो सिर्फ़ भोला के बारे में ही सोच रही थी क्या चीज है वो और कितनी हिम्मत है उसमें
जरा भी डर नहीं कि मुझे फोन कर ले रहा है वो भी रात में पर कामया के शरीर में एक तरंग सी दौड़ गई थी जैसे ही भोला का नाम उसके जेहन में आया था वो खाना तो खा रही थी पर उसे उस समय की घटना फिर से याद आ गई थी ना जाने क्यों बार-बार मन को झटकने से भी वो सब फिर से उसके सामने बिल्कुल किसी पिक्चर की तरह घूम रहा था
वो खाते खाते अपने आपको भी संभाल रही थी और अपने जाँघो के बीच में हो रही हलचल को भी दबाने की कोशिश करती जा रही थी पर वो थी कि धीरे-धीरे रात के घराने के साथ ही उसके शरीर में और गहरी होती जा रही थी वो एक बार फिर से कामुक होने लगी थी खाना खाना तो दूर अब तो वो अपने सांसों को कंट्रोल तक नहीं कर पा रही थी उसका दिल धड़क कर उसके धमनियो से टकराने लगा था पर किसी तरह से अपना खाना पूरा करके वो भी पापाजी के साथ ही उठ गई थी
पापाजी- कुछ सोच रही हो बहू
कामया- जी नहीं क्यों
पापाजी- नहीं खाना नहीं खाया ठीक से तुमने
कामया- जी वो भूख नहीं थी पता नहीं क्यों
पापाजी---वो चलते समय काफी पी ली थी ना शायद इसलिए
कामया- जी
कामया ने पापाजी को झूठ बोला था पर क्या वो सच बता देती छी क्या सोचती है वो पर अब क्या वो तो अपने कमरे में जाने लगी थी पर क्या करेगी वो कमरे में जाकर कामेश तो है नहीं फिर
नहीं वो नहीं जाएगी कही वो जल्दी से अपने कमरे में घुस गई और सारे बोल्ट लगा दिए और कपड़े चेंज करने लगी थी पर बाथरूम में घुसते ही फिर से भोला का वो वहशी पन वाला चेहरा उसके सामने था उसके लोहे जैसा लिंग और हाथों का स्पर्श उसके पूरे शरीर में एक बार फिर से धूम मचा रहे थे वो बार-बार अपने को उस सोच से बाहर निकालती जा रही थी पर वो और भी उसके अंदर उतरती जा रही थी

वो फिर से उसी गर्त में जाने को एक बार फिर से तैयार थी जिससे वो बचना चाहती थी पर हिम्मत नहीं थी अपने कमरे में चेंज करने के बाद बैठी हुई कामेश के फोन का वेट करती रही पर उसका फोन नहीं आया वो एक बार दरवाजे के पास तक हो आई कि कोई आवाज उसे सुनाई दे तो कुछ आगे बढ़े पर शायद खाने के बाद सब सो गये थे पर लाखा और भीमा क्या वो भी क्या उन्हें भी इंतजार नहीं था पर क्या वो उनके पास चली जाए या क्या करे उनका इंतजार
हां इंतेजार ही करती हूँ आएँगे वो वो एक बार फिर उठी और हल्के से दरवाजे को अनलाक करके वापस आके बेड पर लेट गई और इंतजार करने लगी बहुत देर हो गई थी लेटे लेटे कामया का पूरा शरीर जल रहा था वो लेटे लेटे भोला के बारे में सोच रही थी और उसी सोच में वो काम अग्नि की आग में जलती जा रही थी और वो उसे शांत करने का रास्ता ढूँढने भी लगी थी पर कहाँ लाखा और भीमा तो जैसे मर गये थे कहीं पता नहीं था आखिर थक कर कामया खुद ही उठी और अपना बेड छोड़ कर धीरे से अपने कमरे के बाहर निकली महीन सा गाउन पहने हुए अपने आपको पूरा का पूरा उजागार करते हुए वो खाली पाँव ही बाहर आ गई थी

वो सीढ़ियो पर उतरती हुई और गर्दन घुमाकर ऊपर भी देखने की कोशिश करती रही पर कोई नहीं दिखा और नहीं कोई हलचल वो अपने आपको संभालती हुई बड़े ही भारी मन से अपने को ना रोक पाकर धीरे-धीरे अपने तन की आग के आगे हार कर सीढ़ियाँ चढ़ रही थी हर एक कदम पर वो शायद अंदर से रोती थी या फिर वापस लोटने की कोशिश करती थी पर पैरों को नहीं रोक पा रही थी वो कुछ ही सीढ़िया शेष बची थी कि पीछे से एक आहट सी हुई उसने पलटकर देखा तो भीमा चाचा ऊपर की ओर ही आ रहे थे यानी भीमा चाचा का काम खतम नहीं हुआ था अब ख़तम हुआ है यानी कि उसे भी जल्दी थी
 

Alok

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Just fabulous.....

Waiting for more..
 
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अगले अपडेट का इंतजार है भाई
 

Coquine_Guy

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अगर थोड़ा और इंतजार करती तो हो सकता था कि वो ही उसके पास आ जाते और भीमा भी एकदम से जहां था वहां ही रुक गया एक बार पीछे पलटकर देखा और धीरे-धीरे कामया की ओर बढ़ने लगा कामया तो जैसे जम गई थी वो लगातार भीमा चाचा को अपने पास आते हुए देखती रही और आते आते उनकी बाहों मे जैसे अपने आप ही पहुँच गई थी पीछे से जैसे ही भीमा चाचा ने उसे बाहों में भरा एक लंबी सी सिसकारी उसके होंठों से निकली और वो भीमा चाचा के शरीर से चिपक गई थी वो वही खड़ी रही और अपने महीन से गाउनके होते हुए भी भीमा चाचा के शरीर की गर्मी को अपनी स्किन पर महसूस करती रही वो धीरे से अपनी हथेलियो को भीमा चाचा के बड़े-बड़े और मजबूत हाथों के

ऊपर रखकर उन्हें सहलाने लगी थी वो धीरे से अपने सिर को पीछे करते हुए अपने समर्थन का और अपने समर्पण का इशारा दे चुकी थी हाँ … वो यहां आई ही इसलिए थी तो शरम कैसी उसे शांति चाहिए थी और परम आनंद के सागर में वो एक बार फिर से गोते लगाने को तैयार थी उसके अंदर की सारी झिझक और शरम ना जाने कहाँ हवा हो चुकी थी अब वो एक निडर कामया थी और एक सेक्स की भूखी औरत और उसके पास एक नहीं दो-दो मुस्टंडे थे उसके तन की आग को बुझाने को


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बस उसे तैयारी करनी थी की कैसे और कितनी देर तक वो टिक सकती है और वो तैयार थी पूरी तरह से अपने होंठों को वो सिर को पीछे करते हुए भीमा चाचा के खुरदुरे गालों पर अपने से ही घिसने लगी थी छोटे छोटे बालों के होते हुए भी उसे कोई चिंता नहीं थी बल्कि उसे वो अच्छा लग रहा था साफ और चिकनी त्वचा अब उसे अच्छी नहीं लगती थी उसे तो जानवरों के साथ रहने की आदत पड़ चुकी थी और अपने को उसी हाल में खुश भी पाती थी भीमा चाचा की हथेलिया पीछे से होकर कामया के पेट से होते हुए उसकी चुचियों तक आ गई थी और धीरे धीरे उन्हें सहलाते जा रहे थे कामया के होंठ भीमा के होंठों से मिलने को आतुर थे और वो अपने सिर को बार-बार घुमाकर भीमा के होंठों के आस-पास अपने होंठों को घिसते जा रही थी भीमा भी कामया के इशारे को समझकर धीरे से अपने होंठों को उसके होंठों पर रखता हुआ

उसके होंठों को चूमने लगा था और बहुत ही हल्के और स्वाद लेता हुआ वो कामया के होंठों का रस अपने अंदर उतारता जा रहा था उसके हाथों पर आए कामया के शरीर के हर हिस्से को वो अपने कठोर हाथों से छूता और सहलाता हुआ ऊपर से नीचे और फिर ऊपर की ओर ले जाता था वो कामया के आतुर पन से वाकिफ नहीं था पर आज कुछ खास था वो नहीं जानता था कि क्या पर वो महसूस कर सकता था उसके किस करने की स्टाइल से और उसके शरीर से उठ रही तरंगो से उसकी सांसें फेकने के तरीके से और अपने शरीर को उसके हाथों के सपुर्द करने के तरीके से आज भीमा भी कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो गया था अपने हाथों को ऊपर ले जाते हुए वो कामया की जाँघो के बीच से सहलाता हुआ उसके छोटे से गाउनको अपने हाथों के साथ ही उठाता चला गया और उसे नंगा करता चला गया भीमा के हाथों को अपने शरीर पर से घूमते हुए जब वो कामया के उभारों तक पहुँचे तो उसके निपल्स अपनी उत्तेजना को नहीं छुपा पाए थे वो इतने कड़े हो चुके थे कि एक हल्के से दबाब से ही कामया के मुख से निकली सिसकारी और झटके से पलटने की वजह बन गये थे वो झट से पलटकर भीमा के होंठों पर फिर से चिपक गई थी एक सीढ़ी ऊपर होने की वजह से कामया अपने आपकोआज थोड़ा सा उँचा महसूस कर रही थी और अपनी पूरी जान लगाकर भीमा चाचा के होंठों पर टूट पड़ी थी कामया की उत्तेजना से ही लगता था कि आज की रात एक कयामत की रात होगी और बहुत कुछ बाकी है जो कि पूरा करना है हाथों के स्पर्श से भीमा के हाथ उसके गाउनको उसके कंधों तक ले आए थे और धीरे धीरे उसकी गर्दन से बाहर करने की कोशिश में थे पर कामया के होंठ तो जैसे उसके होंठों से चिपक गये थे और कामया उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थी पर एक झटके से गाउन भी बाहर था और फिर भीमा के होंठ कामया की गिरफ़्त में थे


वो पागलो की तरह से अपने आपको भीमा चाचा की ओर धकेलती हुई और अपने को उनपर घिसती हुई उनपर गिरी जा रही थी और भीमा के चारो ओर किसी बेल की तरह से लिमटी हुई थी वो अपने टांगों को उठाकर भी भीमा की कम र के चारो ओर से उसे कसने की कोशिश करती जा रही थी अब उसके शरीर पर सिर्फ़ एक वाइट कलर की लेस वाली पैंटी ही थी पर उसे कोई चिंता नहीं थी इस घर की बहू सीढ़ियो पर अपने नौकर के साथ रात को अपने शरीर की आग को ठंडा करने की कोशिश में थी उसे कोई चिंता नहीं थी थी तो बस अपने शरीर की जला देने वाली उस आग की जो उसे हर पल अपने आपसे अलग करने की कोशिश करती थी वो परेशान हो चुकी थी अपने से लड़ते हुए और अपने पति के अनदेखे पन से वो अब फ्री है और वो अब अपने को नहीं रोकना चाहती थी इसलिए भी आज वो अपनी उत्तेजना को छुपाना नहीं चाहती थी बल्कि खुलकर भीमा चाचा का साथ दे रही थी जैसे अपने पति का साथ देती थी आज उसे कोई डर नहीं था और ना ही फिकर आज वो सब करेगी जो वो करना चाहती है और अपने आपको नहीं तड़पाएगी हाँ … अब और नहीं बहुत हो चुका है इसी सोच में डूबी कामया कब भीमा चाचा की गोद में चढ़कर आगे की ओर बढ़ने लगी थी उसे नहीं पता चला वो तो अपनी दोनों जाँघो को भीमा की कमर के चारो ओर कस के जकड़े हुए अपनी योनि को उसके लिंग के पास ले जाने की कोशिश में लगी हुई थी उसे पता ही नहीं चला कि कब भीमा की गोद में चढ़े हुए वो उसके कमरे में पहुँच गई वो तो लगातार भीमा को उत्तेजित करने में लगी थी कि जैसे भी हो उसका लिंग उसे छू जाए और वो हासिल कर सके पर एक आवाज ने उसे वर्तमान में ले आया पीछे से एक आवाज
- अरे

और फिर दो हाथों ने उसे पीछे से भी सहलाना शुरू कर दिया कामया समझ गई थी कि वो लाखा काका है और उसे इस तरह से देखकर उनके मुख से निकला होगा पर वो तो जैसे सबकुछ भूल चुकी थी वो लगातार भीमा चाचा के होंठों पर टूटी हुई थी और अपनी कमर को उसके पेट पर रगड़ रही थी पर एक जोड़ी हाथों के जुड़ने से उसकी मनोस्थिति कुछ और भी भड़क उठी थी वो हाथ उसके पीठ से लेकर उसके नितंबों तक जाते थे और फिर जाँघो को सहलाते हुए फिर से ऊपर की ओर उठने लगते थे अब तो होंठ भी जुड़ गये थे पीछे से और जहां जहां वो होंठों को ले जाते थे गीलाकरते हुए ऊपर या नीचे की ओर होते जाते थे कामया की कमर से धीरे-धीरे पैंटी का नीचे सरकना भी शुरू हो गया था वो अपने को भीमा चाचा के गोद से आजाद करते हुए पीछे के हाथों को आ जादी दे चुकी थी और फिर एकदम से वो भीमा चाचा के होंठों को छोड़ कर अपने होंठों को पीछे की ओर ले गई थी शायद सांसों को छोड़ने के लिए पर दोनों के बीच में फासी हुई कामया के होंठों को पीछे से लाखा काका ने दबुच लिया और अपने होंठों से जोड़ लिया था कामया की सांसें भी लाखा काका के अंदर ही छूट-ती चली गई थी और पूरा शरीर किसी धनुष की भाँति पीछे की ओर होता चला गया था लाखा काका के चुबलने से और भीमा काका के हाथों के सहलाने से वो अब अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पा रही थ ी
कामया- करो प्लीज जल्दी करो

भीमा और लाखा को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया था वो अपने काम में लगे हुए थे उस हसीना के शरीर के हर हिस्से को अपने हाथों और होंठों से छूते हुए बिना किसी रोकटोक के बिंदास घूम रहे थे आज का खेल उनके लिए बड़ा ही अजीब था वो इस घर की बहू अपने अंदाज में आ गई थी और जल्दी से अपने शरीर की आग से छुटकारा पाना चाहती थी कामया का एक हाथ लाखा काका को पीछे से अपने ओर खींचे हुए था और एक हाथ से वो भीमा चाचा की गर्दन के चारो ओर किए उन्हें भी खींच रही थी शरीर के हर हिस्से पर उनके हाथों और चुभन के चलते वो अब और नहीं रुक पा रही थी लगातार वो अपने मुख से एक ही आवाज सिसकारी के रूप में निकालती जा रही थी
कामया- करो प्लीज जल्दी करूऊऊऊ उूुुउउफफफफफफफफ्फ़ आआआआआआह् ह



पर दोनों मूक बने हुए थे पर कब तक आज उस शेरनी के सामने सबकुछ बेकार था एक ही झटके में लाखा काका और भीमा चाचा के सिर के बाल उसकी नरम नरम हथेलियो के बीच में थे और लगातार खींचते हुए वो उन्हें अपने होंठों के पास लाती जा रही थी और लगातार रुआंसी सी उसके मुख से आवाज निकलती जा रही थी
कामया- करो ना प्लीज जल्दी करो नाआआआ आ
 

Alok

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