पूरी तरह से आखें बंद किए अपने शरीर पर दो जोड़ी हाथों को घूमते हुए पाकर कामया शरीर एक बार फिर से उत्तेजना के सागार में गोते लगाने लगा था वो अब पूरी तरह से लाखा काका और भीमा चाचा के साथ अपने आपको फिर से उस खेल का हिस्सा बनाने को तैयार थी अपने एक हाथ से उसने भीमा चाचा की हथेली को अपनी चुचियों के ऊपर पकड़ रखा था और दूसरे हाथों को लाखा काक की जाँघो पर घुमाने लगी थी लाखा काका भी अपने आप पर हो रहे इस तरह के प्यार को नहीं झुठला सके और नीचे होकर अपनी प्यारी बहू के होंठों को अपने होंठों में दबाकर उनको थोड़ी देर तक चूसते रहे कामया ने भी कोई शिकायत नहीं की बल्कि अपने होंठों को खोलकर काका के सुपुर्द कर दिया और उनके चुबलने का पूरा मजा लेती रही भीमा चाचा भी कामया की चुचियों को दबाते दबाते अपने होंठों को उसकी चुचियों तक लेआए और उसकी एक चुचि को अपने होंठों के बीच में दबा के चूसने लगे कामया की नरम हथेली भीमा चाचा के बालों पर से होते हुए उन्हें अपनी चुचियों पर और अच्छे से खींचती रही और अपने दूसरे हाथों से काका को अपने होंठों के पास दोनों के हाथ अब कामया के पूरे शरीर पर घूमते रहे और कामया को उत्तेजित करते रहे कामया की जांघे अपने आप खुलकर उन दोनों की उंगलियों के लिए जगह बना दी थी ताकि वो अपने अगले स्टेप की ओर बिना किसी देर और रुकावट के जा सके
दोनो ने अपने हिस्से की कामया को बाँट लिया था दायां साइड भीमा चाचा के पास था और लेफ्ट साइड लाखा काका के पास था जो कि अपने आपको जिस तरह से चाहे अपने होंठों और हथेलियो को उसके शरीर पर चला रहे थे हथेलियो के संपर्क में आते हर हिस्से का अवलोकन और सुडोलता को नापने के अलावा उसकी नर्मी और कोमलता का मिला जुला एहसास भीमा और लाखा के जेहन तक जाता था कोई मनाही नहीं ना कोई इनकार बस करते रहो और करो और कोई सीमा नहीं किसी के लिए भी पूरा मैदान साफ है और कोई चिंता भी नहीं बस एक बात की चिंता थी कि कब और कैसे कामया लेटी लेटी अपने शरीर पर घुमाते हुए दोनों के हाथों का खिलोना बनी हुई थी और अपने शरीर पर से उठ रही तरंगो को सिसकारी के रूप में बाहर निकालते हुए अपने दोनों हाथों से भीमा और लाखा को अपने पास और पास खींचती जा रही थी भीमा और लाखा की उंगलियां कामया की योनि में अपनी जगह बनाने लगी थी और एक के बाद एक उसकी योनि के अंदर तक उतर जाती थी और कामया को एक और स्पर्धा की ओर धकेल-ती जा रही थी वो कामातूर हो चुकी थी एक बार फिर दोनों के चुबलने से और उंगलियों के खेल से
दोनों की उंगलियां बीच में भी कई बार आपास्स में टकरा जाती थी और फिर जो जीतता था वो अंदर हो जाता था पर एक समय ऐसा भी आया जब एक साथ दो उंगलियां उसकी योनि में समा गई थी और कामया को कोई एतराज नहीं था उसने अपनी जाँघो को और खोलकर उन्हें निमंत्रण दे दिया और अपने होंठों को पता नही कौन था उसके होंठों में रहा ही रहने दिया अपने चूचियां को सीना तान कर और भी उँचा कर दिया ताकि वो पूरा का पूरा उसके हथेलियो में समा जाए अंदर गई उंगलियां अपना कमाल दिखा रही थी और कामया के मुख से एक बार फिर से
कामया- अब करो जल्दी प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज् ज
भीमा- (जो कि उसके होंठों को अब चूस रहा था ) हाँ बहू बस थोड़ा सा रु क
कामया- नहीं करो जल्दी
एक अजीब सी गुर्राहट उसके गले से निकली जो कि भीमा और लाखा दोनों के कानों तक गई थी उनकी उंगलियां योनि के अलावा उसके थोड़ी सी दूर उसके गुदा द्वार से भी खेल रही थी और वो एक अजीब सी , आग कामया के शरीर में लगा रही थी वो अपनी गुदा द्वार को सिकोड़ कर वहाँ कोई आक्रमण से बंचित रखना चाहती थी पर
शायद दोनों की उंगलियां वहाँ के दर्शन को भी आतुर थी और धीरे से एक उंगली उसके गुदा द्वार से भी अंदर चली गई कामया एक बार अपने को नीचे दबाए हुए भी और नहीं किसी खेल को मना करती हुई एक आवाज उसके मुख से निकली
कामया - , नहीं वहां नहीं प्लीज वहां नहीं
हाँफती हुई सी उसके मुख से निकली थी पर उसके आग्रह का कोई भी असर उसे दिखाई नहीं दिया पर हाँ … उसका इनकार कमजोर पड़ गया था और उत्तेजना की ओर ज्यादा ध्यान था उसके शरीर को अब और इंतेजार नहीं करना था
एक ही झटके से वो उठ बैठी और दोनों की ओर देखती हुई लाखा काका पर लगभग कूद पड़ी लाखा काका जब तक कुछ समझते , वो उनके ऊपर थी और उनके सीधे खड़े हुए लिंग के ऊपर कामया और धम्म से वो अंदर था
कामया- अहाआह्ह
जैसे ही वो अंदर गया कामया का शरीर आकड़ गया और थोड़ा सा पीछे की ओर हुई ताकि अपने योनि में घुसे हुए लिंग को थोड़ा सा अड्जस्ट कर सके पीछे होते देखकर भीमा चाचा ने उसे अपनी बाहों में भर कर उसे सहारा दिया और धीरे-धीरे उसके गालों को चूमते हु ए
भीमा- आज क्या हुआ है बहू हाँ …
और उसकी चूचियां पहले धीरे फिर अपनी ताकत को बढ़ाते हुए उन्हें मसलने लगा था लाखा काका तो नीचे पड़े हुए कामया की कमर को संभाले हुए उसे ठीक से अड्जस्ट ही करते जा रहे थे और कामया तो जैसे अपने अंदर उनके लिंग को पाकर जैसे पागल ही हो गई थी वो बिना कुछ सोचे अपने आपको उचका कर उनके लिंग को अपने अंदर तक उतारती जा रही थी
उसके अग्रसर होने के तरीके से कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि कामया कितनी उत्तेजित है
कामया के मुख से निकलती हुई हर सिसकारी में बस इतना जरूर होता था
कामया- और जोर्र से काका उूुउउम्म्म्मम और जोर से जल्दी-जल्दी करूऊऊऊ उूुउउम्म्म् म
और अपने होंठों से पीछे बैठे हुए भीमा चाचा के होंठों पर चिपक गई थी उसकी एक हथेली तो नीचे पड़े हुए काका के सीने या पेट पर थी पर एक हाथ तो पीछे बैठे भीमा चाचा की गर्दन पर था और वो लगा तार उन्हें खींचते हुए अपने सामने या फिर अपने होंठों पर लाने की कोशिश में लगी हुई थी लाखा काका का लिंग उसके योनि पर लगातार नीचे से हमलाकर रहा था और दोनों हथेलियो को जोड़ कर वो कामया को सीधा बिठाने की कोशिश भी कर रहा था पर कामया तो जैसे पागलो की तरह कर रही थी आज वो उछलती हुई कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ हो जाती थी पर लाखा काका अपने काम में लगे रहे
भीमा भी कामया को ही संभालने में लगा हुआ था और उसकी चुचियों को और उसके होंठों को एक साथ ही मर्दन किए हुए था और अपने लिंग को भी जब भी तोड़ा सा आगे करता तो कामया के नितंबों की दरार में फँसाने में कामयाब भी हो जाता था वो अपने आप भी बड़ा ही उत्तेजित पा रहा था और शायद इंतजार में ही था कि कब उसका नंबर आएगा पर जब नहीं रहा गया तो वो कामया की हथेली को खींचते हुए अपने लिंग पर ले आया और फिर से उसकी चुचियों पर आक्रमण कर दिया वो अपने शरीर का पूरा जोर लगा दे रहा था उसकी चूचियां निचोड़ने में पर कामया के मुख से एक बार भी उउफ्फ तक नहीं निकला बल्कि हमेशा की तरह ही उसने अपने सीने को और आगे की ओर कर के उसे पूरा समर्थन दिया उसकी नरम हथेली में जैसे ही भीमा चाचा का लिंग आया वो उसे भी बहुत ही बेरहमी से अपने उंगलियों के बीच में करती हुई धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगी थी कामया का शरीर अब शायद ज्यादा देर का मेहमान नहीं था क्योंकी उसके मुख से अब सिसकारी की जग ह , सिर्फ़ चीख ही निकल रही थी और हर एक धक्के में वो ऊपर की बजाए अपने को और नीचे की ओर करती जा रही थी लाखा की भी हालत खराब थी और कभी भी वो अपने आपको शिखर पर पहुँचने से नहीं रोक पाएगा
आज तो कमाल ही कर दिया था बहू ने एक बार भी उन्हें मौका नहीं दिया और नहीं कोई लज्जा या झिझक मजा आ गया था पर एक डर भी बैठ गया था पर अभी तो मजे का वक़्त था और वो ले रहा था
आखें खोलकर जब वो अपने ऊपर की बाहू को देखता था वो सोच भी नहीं पाता था कि यह वही बहू है जिसके लिए वो कभी तरसता था या उसकी एक झलक पाने को अपनी चोर नजर उठा ही लेता था आज वो उसके ऊपर अपनी जनम के समय की तरह बिल्कुल नंगी उसके लिंग की सवारी कर रही थी और सिर्फ़ कर ही नहीं रही थी बल्कि हर एक झटके के साथ उसे एक परम आनंद के सागर की ओर धकेलते जा रही थी वो अपनी कल्पना से भी ज्यादा सुंदर और अप्सरा से भी ज्यादा कोमल और चंद्रमा से भी ज्यादा उज्ज्वल अपनी बहू को देखते हुए अपने शिखर पर पहुँच ही गया और एक ही झटके में अपनी कमर को उँचा और उँचा उठाता चला गया पर कामया के दम के आगे वो और ज्यादा नहीं उठा सका और एक लंबी सी अया के साथ हीठंडा हो गया