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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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ये सौवां भाग ( ननद की बिदाई- बाँझिन का सोहर पृष्ठ १०३५) जैसा बन पड़ा आप लोगों की सेवा में हाजिर है और इन पोस्टों के लिखने के बाद कम से कम मैं ज्यादा कुछ कहने, बोलने की हालत में नहीं हूँ। हाँ बस कह सकती हूँ, जैसा कुछ आप लोगों को लगे, मन में महसूस हो तो हो सके तो दो चार लाइन लिख जरूर दीजियेगा।
 
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motaalund

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मिलेगा मिलेगा वो स्वाद भी मिलेगा एक बार ननद गाभिन हो जाएँ
समय आने पर हीं किसी कार्य का असली लुत्फ है...
लेकिन पिछवाड़े का भी प्रसंग असरदार और जोरदार होना चाहिए...
 
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motaalund

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हर बहू यही चाहती है

उसकी सास का पिछवाड़ा उसके सामने चिथड़े चिथड़े हो, फिर सास कभी भी मुंह नहीं खोल पाएगी

और बहू दामाद मिल जाएँ तो ससुराल में कोई बचेगा नहीं

बहुत ही बढ़िया कमेंट्स होते हैं आपके बस ऐसे ही साथ देते रहिये

अगला अपडेट जल्द
बहु और दामाद दोनों की ससुराल है...
तो जुगलबंदी तो नया इतिहास लिखेगी...
 
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motaalund

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एकदम सही कहा आपने ननद की ननद और सास को बुला के जबरदस्त काण्ड होना चाहिए

अब आपने कहा है तो उनका भी कुछ जुगाड़ करती हूँ जल्द ही
नंगा मुजरा...
 
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motaalund

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जितना काम आपने मोहे रंग दे कहानी के प्रचार के लिए किया शायद ही किसी ने किया हो

और अपनी कहानी में मेरा और मेरी कहानी का नाम देकर अपने हजारों हजार पाठकों तक पहुँचाना

बहुत बहुत आभार, धन्यवाद

Thanks Thank You GIF by 大姚Dayao
Rainbow Thank You GIF by Lumi
सचमुच कहानी का ताना बाना और एक्जीक्यूशन लाजवाब है...
 
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motaalund

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Ekdam sahi kaha aapne lekin sasural ka maja yahi hai saas ka bhi sasalahj ka bhi,

Thanks for support and such nice comments
और साथ में साली हो तो सिर कढाही में...
 
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motaalund

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भाग ९६

ननद की सास, और सास का प्लान


२२, ११,११९

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मैंने झट से उनके मुंह पे हाथ रख दिया, घर की बिटिया, कहीं मुंह से उलटा सीधा, अशकुन,... और सर सहलाती रही।

हम दोनों चुप चाप बैठे रहे, धीमे से मेरी ननद बोलीं

" हम सुने थे की मायका माई से होता है लेकिन हमार मायका तो भौजी से है "
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मुझे देख रही थीं और उनकी बड़ी बड़ी आँखे डबडबा रही थीं, मैंने चूम के उन पलकों को बंद कर दिया।

बोलना मैं भी बहुत कुछ चाहती थी बहुत कुछ वो भी,... पर कई बादल उमड़ घुमड़ के रह जाते हैं बिना बरसे,

तबतक मेरी सास की आवाज आई रसोई में से ननद को बुलाती, किसी काम में हेल्प के लिए। ननद रसोई में चली गयी और मैं भी निकली तो ननदोई जी के कमरे के बाहर

ननद अपनी माँ के पास रसोई में और मैं भी ,

तभी ननदोई जी के कमरे से फोन की आवाज आयी।नन्दोई जी और ननद की सास की बात, बात तो टेलीफोन पे हो रही थी, वही स्पीकर फोन आन था और दोनों ओर की बात सुनाई पड़ रही थी

मैं ठिठक गयी, कान पार के सुनने लगी।

मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी। आँखों के आगे अँधेरा छा गया, किसी तरह दीवाल पकड़ के खड़ी हो गयी।

उधर से ननद की सास की चीखने, चिल्लाने की आवाज आ रही थी। मैं सुन सब रही थी, बस समझ नहीं पा रही थी, बार बार मेरे सामने मेरी ननद की सूरत आ रही थी। अभी पल भर पहले कितनी खुश आ रही थी और यहाँ उनकी सास, क्या क्या प्लान,

बेचारी मेरी ननद। \

-----

नन्दोई जी की एक अच्छी आदत थी, एक साथ कई काम करने की, फोन करते समय भी वो कुछ पढ़ते रहेंगे, किसी और काम भी और फोन स्पीकर फोन पे,

और इस समय भी फोन स्पीकरफोन पे था, और आवाज मेरे कमरे में भी आ रही थी। वैसे तो मैं ध्यान नहीं देती लेकिन ननद जी की सास की आवाज सुन के मैं दीवाल से चिपक गयी, ननद की सास थोड़े गुस्से में लग रही थी,

" कल क्यों नहीं आयी महरानी जी " सास उनकी गुस्से में बोल रही थीं।

" अरे कल उसके सर में दर्द बहुत था, मैं हस्पताल से आया तो हम लोग आ ही जाते, लेकिन, " नन्दोई जी बोलने की कोशिश कर रहते थे पर ननद की सास ने बात बीच में काट दी,

" सुख रोग लगा है महरानी को, भौजाई गोड़ दबा रही होगी, महतारी मूँड़, सब नौटंकी, आने दो आते ही, अब पूरे घर का काम, झाड़ू पोंछा, गोबर उठावे, कण्डा पाथे, जितने कामवाली हैं सबको आज ही से हटा देतीं हूँ,... जो काम बहू का है वो तो कर नहीं रही, वंश का चिराग देने का,... तो यही काम करें, कुल मूड़ पिराना ठीक हो जाएगा। "
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नन्दोई ने कोई जवाब नहीं दिया, सास ही उनकी फिर से बोलीं,

" तुम भी न उसको बहुत सर चढ़ाये रहते हो, एक तो गोर चमड़ी, और ऊपर से मुंह में शहद,अस मीठ बोली, ऐसा लुभाय हो और सीधे भी हो तुमको तो ऊँगली पे नचाती है लेकिन अब बोल दे रही हूँ, अब मैं कुछ बोलूंगी, कहूँगी, करुँगी, तो सोच लेना, माई की मेहरारू "

" नहीं नहीं माई, आप की बात हम जिन्नगी में कभी काटे की अबे, तोहार बात सबसे ऊपर वो तो हम हस्पताल में इतने दिन, वहां भी हमरे साले की वजह से इतना आराम हो गया, "

" तो कौन बड़ा काम हो गया " ननद की सास ने ऐसा जहर उगला की मुझे लगा की पिछले जन्म में पक्की नागिन रही होंगी,

" अरे ओकरे बहन की हम अपने घर लाये हैं दो जून की रोटी देते हैं, कपडा देते हैं, महरानी बन के रहती हैं ठाठ से, तो तानी हस्पताल में, ससुराल वालों का काम है, एक ठो दमाद है इतना भी नहीं करेंगे, और बिटिया भी कैसी दिए हैं ....किसी काम लायक नहीं, तीन साल हो गए ,..."


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सास ननद की, गुस्से के मारे बोल नहीं पा रही थीं, और नन्दोई की हिम्मत नहीं हो रही थी न वो फोन काट सकते थे।


फिर उनकी सास की ही आवाज आयी, गुस्से से फुफकार रही थी,


" पहले क ज़माना होता, तो झोंटा पकड़ के महतारी के सामने ओकरे पटक आती, और ओहि दिन दूसर ले आती,... सोना अस हमार लड़का, केतना लोग आपन आपन बिटिया ले के, दरवाजा खोद डारे थे, जउने दिन नयकी आती, ठीक नववें महीने पोता पोती निकाल देती, और का समझती हैं वो तो हम इतना तोपे ढांके,.... नहीं तो कुलच्छिनी बाँझिन को मायके में भी जगह नहीं मिलती, भौजाई, भौजाई इतना करती हैं वही भौजाई दुरदुरा के निकाल देखती, शक्ल देख के दरवाजा बंद कर लेती की कहीं बाँझिन क परछाई पड़े से, अरे एक गयी दूसरी आती, "

लेकिन अबकी नन्दोई जी से नहीं रहा गया,

" नहीं माई ये सब नहीं आज, कल के ज़माने में बड़ी " बड़ी मुश्किल से वो बोले।

लेकिन बेटे का बदला सुर देख माँ ने भी अपना सुर बदल दिया

" मैं जानती नहीं का, अब वो सब, अरे हमरे मायके के बगल में एक हमरे रिश्तेदार ही थे, नयी भी नहीं बियाहे के तीन साल बाद, रसोई में कुछ, साडी में उसके, लापरवाही वो की भुगती सास ननद, थाना कचहरी कुल हुआ, साल भर बाद छूटीं, अभी भी मुकदमा चल रहा है , हमहुँ को मालूम है वो जमाना बाद नहीं है, लेकिन ये सोचो न की हमरे ससुर क तोहरे बाबू क कमाई, इतना खेत, बगीचा, इतना बड़ा घर, कल कोई चिराग जलाने वाला भी नहीं, अरे हम अमर घुट्टी नहीं पी के आये हैं, बस इहे एक साध थी, जाए के पहले पोती पोता का मुंह देख लेती तो,..."
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और फिर सास चुप होगयी, हलकी सी सिसकने की आवाज, पता नहीं सच या नौटंकी थोड़ी देर दोनों ओर से कोई आवाज नहीं आयी फिर सास हलकी आवाज में बोलीं

" अरे बहुरिया लाख गुन आगर होय, लेकिन, अरे हम जिनको गौने में उतारे हमसे चार पांच साल छोट, और ओकरे आंगन में तीन तीन पोती पोता, एक दिन ओकरे घर के सामने से जा रहे थे, वो अपनी पोती को बुकवा लगा रही थी, जान बुझ के पूछी " अरे दीदी कउनो खुस खबर," जी हमारा जर गया, तोहरे चार महीने बाद गौना उतरा था उसकी बहु का, "

" हां मालूम है मनोजवा न " बड़ी बुझी आवाज में ननदोई बोले,

" असली बात तो बताये नहीं जो करेजवा में आग लगाने वाली तोहार चाची बोलीं, " अब नन्दोई की माँ एक बार फिर से चहक रही थी " मनोजवा की मेहरिया, फिर खट्टा मांग रही है और मनोजवा क माई हमें जलाने के लिए बोली की हम तो बहु जउने दिन उतरी थी ओहि दिन बोल दिए थे बहू और कुछ नहीं लेकिन गोली ओली यह घरे में ना चली, हमरे कउनो कमी न है हार साल एक होई तो भी नहीं, बस हमरे आंगन में , बस हम चुपचाप, " ननद की सास चुप हो गयी और फिर बोलीं

" अरे हम भी तो एक्के चीज मांगे थे तोहरी मेहरारू से, जब दुल्हिन गोड़ छुई तबे हम बोल दिए थे, हमें नौ महीने में पोती पोता चाहिए, पोती हो, या पोता लेकिन, ..." और फिर उन्होंने ऐसी ठंडी सांस ली की नागिन की फुंफकार झूठ।

इतनी तेज फुफकार थी की उसका जहर दीवाल पार कर मेरे कमरे में फ़ैल गया। आवाज फिर से चाबुक ऐसी कड़क,



' कब आओगे, "

" आज फिर हस्पताल जाना है और पुलिस वाला काम भी है शाम को बुलाया है, कल सुबह, नहीं तो दोपहर तक " नन्दोई एकदम मेमना बन गए थे "

" कल सोमवार है न, तो एकदम दोपहर के पहले घर में तुम और वो महरानी, ये नहीं की सरहज के हाथ का खाना खाने के लालच में, बहुत ससुरार हो गया, आने तो दो रानी जी को, मैं साफ़ कह रही हूँ दोपहर तक तुम दोनों, "

एकदम ठंडी लेकिन असरदार आवाज और ननदोई जी पर जो असर हुआ, उससे ज्यादा दीवाल पार कर के मेरे ऊपर हुआ, जोर का झटका जोर से लगा,
एकदमे कंटाइन...
इलाज जरुरी है... आश्रम का नहीं...
बल्कि बहुरिया के ससुराल से..
तब्बे सुधार होगा...
 
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motaalund

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आश्रम और सास का प्लान
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दोपहर, मतलब दस बजे के पहले पहले नन्दोई जी ननद को लेके और कल ही तो सारा असली, कल सुबह तो पता चलेगा, कुछ भी हो मुझे ननद की सास की काट ढूंढनी होगी, नन्दोई जी कल नहीं जा सकते, अगर कल सुबह, फिर तो इतने दिनों की मेहनत, मैं सोच में थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन ननदोई जी की आवाज ने मुझे एक झटका और दिया,

" एकदम, कोशिश करूँगा की भले देर रात लगे, पर शहर का सब काम ख़तम करके आज ही यहां लौट आऊंगा, और कल मुंह अँधेरे निकल जाऊंगा, "

ये एक और झटका था, आज की रात तो ननदोई जी से ननद को बचाना था , आज पांचवी रात थी, कल मुंह अँधेरे, लेकिन झटके अभी और लगने थे और असली झटका बाकी था,

" परसों, मंगल की रात नहीं तो नरसो बुध के भिन्सारे लखनऊ चले जाना अपने मामा के यहाँ, उनका फोन आया था, कोई ट्रैकटर की एजेंसी की बात कर रहे थे, हो सका तो दिल्ली भी जाना पड़ेगा, हफ्ते भर की तैयारी से जाना होगा। और गुरु जी से बात हो गयी तो बुध को तोहरी महरानी को आश्रम,

अब ननदोई जी सनके उनके मुंह से निकल ही पड़ा, " लेकिन मैं नहीं रहूंगा तो, " बड़े धीमे से उन्होंने प्रतिरोध किया फिर तो इतने कोड़े पड़े

" मेहरारू क तलवा चाटोगे का, गोदी में उठा के ले जाओगे, महारानी को। अब बहुत सेवा सत्कार, हो गया महरानी का, अरे काम धंधा से पेट भरेगा की मेहरारू क तलवा चाट चाट के, ....तलवा चाटने लायक करम की होतीं, अब तक दो तीन पोती-पोता दी होतीं तो हमहुँ उनकी आरती उतारते,

ओह बाँझिन क नाम मत लेवावा सबेरे, परसों पहली बस से लखनऊ, बड़ी मुश्किल से कुछ ले देके एजेंसी वाले से बात हुयी है और ये बाँझिन के चक्कर में,। "


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गुस्से में वो बोल नहीं पा रही थी और ननदोई की बोलने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी लेकिन सन्नाटे को तोड़ती हुयी सास जी की आवाज आयी मेरी बस जान नहीं निकली, सामने होती तो मैं मुंह नोच लेती उनका। ''

" तुम्हारे रहने की कोई जरूरत नहीं, तुम रहोगे तो वो और नौटंकी करेगी, और खबरदार उसको कानों कान खबर न हो, जाउंगी तो मैं भी नहीं । गुरूजी बड़े अच्छे हैं उन्होंने कहा है की अपनी चार प्रमुख सेविकाएं भेजंगे, उनका वाहन आएगा, झांगड़, बस वो चार सेविकाएं ले जाएंगी और एक हफ्ते के लिए, बस कल दोपहर के पहले तुम दोनों आ जाना, "



" एकदम " नन्दोई जी बोले लेकिन उसके पहले उनकी माँ फोन काट चुकी थीं।



प्रमुख सेविकाएं, झांगड़, मेरी तो पैरो के नीचे की ज़मीन सरक गयी और मैं जो जानती थी न ननद से कह सकती थी न अपनी पूरा कमरा घूम रहा था, चक्कर आ रहा था, बार बार वही प्रमुख सेविकाएं, झांगड़ सुनाई पड़ रहा था,



कुछ तो मेरी ननद ने सुनाया था लेकिन बाद में मैंने अपनी एक सहेली से, जो उसी गाँव में ब्याही थी जिसके पास वो आश्रम था और उसने बताया था


' प्रमुख सेविकाओं ' का किस्सा, ये सब लेडीज बाउंसर थी जो दिल्ली के आसपास से बार से आती थीं, और उनमे भी सबसे खूंख्वार, पक्की लेस्बो,

और झांगड़ चलता फिरता टार्चर चैंबर, एक छोटा ट्रक कंटेनर की तरह का, एकदम साउंड प्रूफ, वो चारों किसी लड़की को पहले तो गंगा डोली करके पकड़ के उस ट्रक के पीछे, और ड्राइवर पीछे से बंद कर देता।

पहले तो उस लड़की को दो दो झापड़ सब बारी बारी से, और उसके बाद नोच नोच के उसके कपडे, फिर दो पकड़ के उसके हाथ बाँध देती, झांगड़ की छत में चुल्ले लगे थे इस काम के लिए। फिर एक बड़े से कटोरे में आसव, जबरदस्ती मुंह खुलवा के, ...जरा भी मना करने पर, फिर से चांटे। वो एक कटोरा आसव ही देह की सब ताकत धीरे धीरे ख़तम कर देता, और सब से बढ़ कर उस लड़की की देह में जबरदस्त कामाग्नि जगाता, दस मिनट रुक के दुबारा वही आसव, और उस के बाद चारो मिल के उस के बदन को नोचती जब तक हर काम के लिए वो हाँ न कर देती।

मेरी फूल सी ननद, इत्ती प्यारी दुलारी, रूपे का तन, सोने का जोबन और ये, और इसी लिए हफ्ते भर के लिए ननदोई जी को बाहर किया जा रहा था, हफ्ते भर में आश्रम में, और वहां जो गिद्ध नोचते,....

अब मुझे समझ में आया होली की मस्ती में भी बीच में उनका चेहरा उदास क्यों हो गया था, एकदम बुझा जब वो बोलीं,



अबकी भौजाई से होली खेल लूँ, फिर पता नहीं ननद भौजाई की कब होली हो,

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उन्हें अंदाज था यहाँ से लौटने पर क्या होने वाला है ।



मैंने सर को झटका,

पहले पहली परेशानी,


नन्दोई जी रात को जो लौटने का जो प्रोग्राम बनाये हैं उन्हें किसी तरह शहर में हस्पताल में ही उलझाना, किसी भी हालत में आज उन्हें नहीं आना था, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था इस परेशानी का हल,

लेकिन तभी वो आगये,... जिसके साथ मेरी माँ ने भेजा था, मेरी सब परेशानियों का हल करने के लिए,
ये सास भी "जोरु के गुलाम" वाली जेठानी से कम नहीं है... तगड़ा प्लान बनाए बैठी है..
लेकिन काट के साथ जैसे जेठानी का सुधार अभियान कामयाब हुआ...
वैसा हीं कुछ इधर भी...
 
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motaalund

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आश्रम का सच और ननद की परेशानी
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मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, इतनी जबरदस्त पकड़ आश्रम की ननद की सास पर,


क्या खेल है और फिर उनकी सास भी, सब देख कर भी आँख बंद किये हैं,

मैंने बहुत कुछ पता किया था, जबसे ननद ने आश्रम और गुरु जी के बारे में बताया था, कुछ सुना कुछ सोचा और कुछ समझा।

पहला खेल था बड़मनई या बड़े बड़े लोगों का, जिससे पूछो वही कहता था बड़े बड़े लोग आते हैं, ....एक से एक नेता, अफसर, बिजनेसमैन सोझे बाबा क गोड़ पकडत है।

और मैं समझ गयी नेता, तो पहली बात तो राजनीति की अनिश्चितता, टिकट मिलेगा की नहीं, मिला तो इलेक्शन जीतेंगे की नहीं और जीत गए तो मिनिस्टर, क्या पता किसका आसीर्बाद काम कर जाए, लेकिन इससे ही जुडी एक बात थी। बड़मनई इसलिए जाते हैं छोटमनई जाते हैं। ये बात मशहूर थी की कम से कम ४०-५० गावों में तो गुरु जी का पूरा असर था और २००-२५० में भी काफी तो मतलब , दस पंद्रह हजार वोट तो पक्के, एम् एल ए के इलेक्शन में तो इतने में चुनाव जीत जाता हैं। तो गुरु जी की कृपा हो उनके साथ फोटो, उठना बैठना हो तो,...

और नेता की देखादेखी अफसर भी, ट्रांसफर, पोस्टिंग, अब गुरु जी के यहाँ नेता मंत्री सब आते हैं तो गुरु जी की कृपा हो, एक बार मंत्री जी से कह दें, मंत्री जी जो पता भी चल जाए की ये भी गुरु जी के यहाँ आते जाते हैं,...

और अगर नेता और अफसर आएंगे तो बिज़्नेसेवाले भी, उनका काम नेता से भी पड़ता हैं और अफसर से भी।

और जितने बड़े बड़े नेता, अफसर आएंगे, पैसे वाले आयंगे तो गाँव के लोगो के लिए और कोई प्रूफ नहीं चाहिए की गुरु जी में कुछ तो बात हैं ही।

और अनिश्चितता और भय के साथ जो इन सब को जोड़ता हैं वो हैं पैसा।

गुरु जी को अपने लिए नहीं,... आश्रम के लिए तो कही नुजूल की सराकरी जमीन पर एन जी ओ बनाकर लीज ले लिया, पट्टा लिखवा लिया, बंजर ऊसर जमीन, गाँव की चरागाह, तो किसी ने अपने किसी के नाम पे कुछ बनवा दिया, कहीं भक्तो ने अपनी जमीन दे दी।

और जैसे जैसे जमीन प्रापर्टी बढ़ी, वैभव बढ़ा वैसे ही गौरव भी बढ़ा। और गाँव के लोगों में असर भी।

आश्रम ने आस पास कई गाँवों में सिर्फ महिलाओं /लड़कयों के लिए क्लिनिक खोले थे और एक एक महिला अस्पताल का काम चल रहा था। एक हाईस्कूल भी बन रहा था।

क्लिनिक में भी कोई पैसा नहीं लगता था और स्कूल भी फ्री होनेवाला था।

गुरु जी ने महिलाओं को ही अपना फोकस बनाया था इसलिए की ज्यादातर गाँवों में मरद कमाने के लिए दिल्ली बंबई, साल छह महीने में आते, कुछ आस पास के शहरों में और जो बचते भी वो खेती किसानी में। खेती किसानी में जब से मशीनों का काम बढ़ गया था, बुआई जुताई कटाई का काम भी कम हो गया था,


इसलिए हर गाँव में टोला वाइज वालंटियर, जो अक्सर जाति के आधार पर ही होते थे, चमरौटी, भरौटी, बबुआन, सब में एक एक वालंटियर कम से कम, ...और वही किसी को दवा दारु कराना हो, किसी की बहू को बच्चा न हो रहा हैं, कोई थाना कचहरी हो, सब में और उस वालंटियर की जिम्मेदारी थी. गुरु जी का नाम, आश्रम का असर, थाना, तहसील, हर जगह झटपट काम होता था। जो गांव की वालंटियर थीं, उनकी साडी का रंग अलग, भगवा , केसरिया और सफ़ेद ब्लाउज, दूर से लगता था आश्रम वाली हैं।

उनकी जिम्मेदारी थी की कम से कम अपनी टोली के पांच मेंबर बनाये जो महीने में पांच दिन कम से कम सेवा के लिए आश्रम में आएं। जो जो मेंबर आते थे उन के खाने पीने का इंतजाम आश्रम में, तो गाँव क्या, कोई टोला ऐसा नहीं था, जहाँ पांच दस आश्रम वालियां न हों और जब वो आश्रम नहीं जाती थीं तो हफ्ते में एक दिन सतसंग, घण्टे दो घंटे का

तो इस तरह का नेट वर्क बीसो गावों में फ़ैल चुका था और साल के अंत में सौ गाँवों का टारगेट था।

मेरी ननद की सास भी बड़मनई में आती थीं, बड़के वाले नहीं तो बीच वाले में कम से कम, और गाँव के हिसाब से तो बड़मनई में ही। थाना दरोगा, बी डी ओ, तहसील दार आते गाँव में तो उन्ही के घर पे गाडी खड़ी होती, वहीँ चाय नाश्ता। एक ज़माने में जमींदारी थी और वो ख़तम होने पे भी सौ बीघा से ऊपर की खेती थी, एक राइस मिल चल रही थी और सबसे बढ़ के के इज्जत,...

और गुरु जी की कृपा होने से तो और, एक बार तो डिप्टी साहेब भी आये तो खाना उन्ही के यहाँ, प्रधानी से लेकर ब्लाक प्रमुखी तक के इलेक्शन में उनकी राय ली जाती।

गुरु जी ने उनको पांच गाँव के वालंटियर का हेड बनाया था और नए दस गाँवों में संदेश पहुंचाने का काम भी दिया था।

जो नया हाईस्कूल बन रहा था बगल के गाँव में , उस में भी वो सोचती थीं की गुरु जी उन्हें मैनेजर बनाएंगे। यहाँ तक की गुरु पूर्णिमा को उन्हें तीसरी लाइन में बैठने को मिला था जबकि पहली पांच लाइन तो एकदम वी आई पी लाइन थी, और जब वो गोड़ छूने झुकी थी तो गुरु जी ने खुद उनकोउठाया और हाल चाल पूछा।

पूरे आश्रम में उनकी इज्जत हैं। प्रमुख सेविका जितनी भी हैं सब उन्हें पहचानती हैं।



दो तीन चीजे होती हैं जो सब से ज्यादा किसी पे असर डालती हैं और ननद की सास पे भी वही बात थी, लालच, जलन और डर।

लालच जरूरी नहीं हो की पैसे का हो, वो प्रतिष्ठा का भी होता हैं,... यही ननद की सास पे था।

गुरु जी के आश्रम में और आगे बढ़ने का, आश्रम के अंदर तो नहीं बाहर के जो काम धाम हों उनमे वो सबसे आगे बढ़ना चाहती थीं

और जलन थी बगल के गाँव में एक और उन्ही की तरह थीं वो भी स्कूल के काम में, लेकिन वो खुद उनकी एक बहू थी और दो कुँवारी लड़कियां सब पांच से दस दिन आश्रम में सेवा देती थीं और ख़ुशी ख़ुशी। बेटा उनका दुबई में रहता था, दो साल से बहू गाभिन नहीं हुयी थी, लेकिन गुरु जी की कृपा से जिस दिन हफ्ते भर के लिए उनका बेटा आया उसी महीने बहू गाभिन हो गयीं। गुरु जी के आगे डाकटर हकीम फेल।



लेकिन सबसे बड़ी बात थी डर।

ननद की सास ने अपने गाँव की ही तीन चार बहुओं को, गौने के चार पांच महीने के अंदर अगर उलटी नहीं शुरू हुयी तो आश्रम की क्लिनिक में दिखवाया और फिर गुरु जी की कृपा, किसी का डेढ़ साल भी नहीं डांक पाया सब के यहाँ बेटा -बेटी, लेकिन खुद उनके यहाँ अभी तक खट्टा भी बहू ने नहीं माँगा।

बोलता कोई नहीं था लेकिन दबी जबान से और ये बात गुरु जी तक तो पहुंची ही होगी, ...और जो बगल के गाँव वाली वो इस बात को बढ़ा चढ़ा के जरूर प्रमुख सेविकाओं से कहती होगी,.... तो फिर आश्रम में इस बहू के चक्कर में उनकी सास का रुतबा न कहीं कम हो



और दूसरा डर था क्या होगा खेत बाड़ी का,... बंस का। आश्रम की जान पहचान से उनकी सास धीरे धीरे और भी धंधे, लेकिन बाद में कौन देखेगा, अगर बंश ही नहीं चला तो।



लेकिन मम्मला सिर्फ सास का ही नहीं था , नन्दोई जी ने जो बताया था अपनी माँ और आश्रम के बारे में उनके कहे बिना मैं समझ गयी थी की मामला क्या हैं।

मामला था ननद का सोने ऐसा रंग और गदराया जोबन। देख के जिस का न खड़ा होता उस का भी खड़ा हो जाए, गालों में हंसती तो गड्ढे पड़ते, ठुड्डी पे तिल, चम्पई रंग, बड़ी बड़ी आखे और पूरी देह में काम रस छलकता रहता, देख के लगता एकदम चुदने के लिए तैयार हैं।
पॉवर का नशा .. सबसे जल्दी चढ़ता है.. और इसके लिए आदमी/औरत क्या नहीं करते...
लेकिन कॉर्पोरेट स्टाइल इंतजाम कर रखा है आश्रम वालों ने भी...
कुछ पत्रकार लॉबी हीं इनका पोल खोल कर धरती पर लाएगी...
 
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ननद


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और दूसरा डर था क्या होगा खेत बाड़ी का बंस का। आश्रम की जान पहचान से उनकी सास धीरे धीरे और भी धंधे, लेकिन बाद में कौन देखेगा, अगर बंश ही नहीं चला तो।



लेकिन मम्मला सिर्फ सास का ही नहीं था , नन्दोई जी ने जो बताया था अपनी माँ और आश्रम के बारे में उनके कहे बिना मैं समझ गयी थी की मामला क्या हैं।

मामला था ननद का सोने ऐसा रंग और गदराया जोबन। देख के जिस का न खड़ा होता उस का भी खड़ा हो जाए, गालों में हंसती तो गड्ढे पड़ते, ठुड्डी पे तिल, चम्पई रंग, बड़ी बड़ी आखे और पूरी देह में काम रस छलकता रहता, देख के लगता एकदम चुदने के लिए तैयार हैं।

नन्दोई जी ने बताया था, " एक बार आपकी ननद माई के साथ गयीं भी आश्रम, वहां एक थीं उन्होंने देखा भी, फिर गुरु जी ने माई से कहा की बहू को दो चार दिन के लिए आश्रम छोड़ दो, "

" फिर ननद जी गयीं क्या " जानते हुए भी मैंने पूछा।



" नहीं, माई ने लाख कहा, लेकिन ननद आपकी बस एक जिद मैं अकेले कभी कहीं नहीं रही, जबतक सास जी रहेंगी तक लेकिन उन्ही के साथ लौट आएँगी, आपकी ननद में सब बात अच्छी है लेकिन, अब माई, ठीक है मानता हूँ जबान की कड़वी हैं लेकिन शुरू से हैं और हम सबके साथ है और उनकी बात कहने से पहले पूरी हो जाए ये उनकी आदत है, और आज से थोड़ी। लेकिन चाहती तो भला ही हैं न, पाल के बड़ा किया, गुरु जी को बोल के आयी थीं मैं अपनी बहू को खुद ले के आउंगी और छोड़ के जाउंगी, फिर जब तक इलाज न हो जाए दो दिन चार दिन सात दिन रखिये, अब ये जाने को तैयार नहीं " माँ की बात खाली जाना नन्दोई को भी अच्छा नहीं लग रहा,



और असली बात थी जो मैं समझ गयी ननद के रूप और जोबन को देख के उस गुरु का टनटना गया होगा और एक बार गुरु के भोग लेने के बाद बाकी आश्रम वालों को भी छक के चखने का मौका मिलता और एक बार बस फिल्म बनने की देर थी, फिर तो, और जो मुख्य सेविका थी वो जान रही थी बिजनेस पोटेंशियल, एक बार ननद हत्थे चढ़ जाती फिर तो दर्जनों मर्दो के नीचे वो सुलाती



गुरु जी, उनके चेले और प्रमुझ सेविका सब मेरी ननद के ऊपर मोहाये थे लेकिन उनका आश्रम न जाना, तो इसलिए अब बात झांगड़ वाली

मतलब गुरु जी ने मेरी सास को समझा दिया होगा,

अभी नहीं तो कभी नहीं, और वो नहीं आने को तैयार हैं सीधे से तो जबरदस्ती, और इसलिए सास बहाना बना के पहले नन्दोई जी को फुटा रही थीं, लखनऊ, की उनके सामने ज्यादा जोर जबरदस्ती नहीं हो पाएगी। और एक बार झांगड़ में चढ़ गयीं या किसी तरह गंगा डोली करके टांग के उन चेलियों ने पटक दिया फिर तो ननद की,...

और वो कहने को हफ्ते भर था, पता नहीं कब तक, जब तक वो अच्छी तरह टूट नहीं जातीं

मुझे किसी ने बताया था झांगड़ वाली बात तो मैंने विशवास नहीं किया था लेकिन अब तो ननद की सास ने खुद अपने मुंह से झागंड़ वाली बात बोली,

मेरी रूह काँप गयी, अगर जो मैंने सुना था अगर उसका एक हिस्सा भी सच होगा तो, वो झांगड़ वाली प्रधान सेविका, एक तरीका था उसका,



" स्साली को न मूतने दो, न सोने दो " ज्यादातर लड़कियां २४ घंटे में टूट जाती हैं और दो दिन तक कोई नहीं टिकता, उसके बाद जो कुछ कहो,



एक पिंजड़े ऐसे कमरे में मुश्किल से ४ X ४ के , बस दोनों हाथों को पकड़ के ऊपर से टांग देते, दोनों पैरों के अंगूठे मुश्किल से फर्श को छूते रहते। और न खाना न पानी न सोना, तेज लाइट सीधे चेहरे पे फोकस और बिना किसी पैटर्न के तेज म्यूजिक कान में लगे हेड फोन में, दोनों पैरों के बीच में एक चार फ़ीट लम्बा डंडा डिवाइडर की तरह, जिससे दोनों टाँगे हरदम फैली रहेंगी। १२ घंटे बाद पांच छह लीटर पानी सीधे मुंह में एक कीप से,



न कोई बात करेगा, न बोलेगा, न दिखेगा, चेहरा के अलावा बाकी पिजड़ा अँधेरे में और एक बार जब वो टूट गयी तो बस किसी जबरदस्त मर्द के पास हचक के चोदेगा, और फिर कमरे में लेकिन अकेले कभी नहीं, कोई लेडी बाउंसर साथ में जो उसे बैठने नहीं देगी, खाना, पीना, मूतना सोना हैं तो खुद जा के किसी मरद से बोलना होगा, आश्रम के चोदने के लिए।



और दो तीन दिन में जब घमंड टूट जाएगा, औकात में आ जायेगी तो बाकी सेविकाओं की तरह नहला धुला के आसव् पिला के पहले गुरु जी के पास, फिर बाकी चेलों के पास, फिर उसी तरह ब्ल्यू फिल्म। फरक यही होगा की अबकी ब्ल्यू फिल्म चोरी छुपे नहीं खुले आम बनेगी और उसे जो रोल बताया जाएगा वो करना होगा, और दो चार दिन बाद, अमावस्या या पूर्णिमा से ग्राहक के पास और साथ में ड्रग की भी आदत



और जो ननद ताल पोखरे की बात कर रही थीं वो भी नहीं हो सकती थी क्योंकि दिन रात गाभिन होने के बाद दस पंद्रह दिन आश्रम की एक सेविका परछाई की तरह साथ रहती,



अकेली औरत तो सोच सकती हैं लेकिन जब पेट में बच्चा आ जाता हैं तो जिम्मेदारी बढ़ जाती हैं, डर बढ़ जाता हैं



तरह तरह के ख्याल आ रहे थे मेरे मन में



बेचारी मेरी ननद, बस आज की रात बस किसी तरह आज मेरी ननद जरूर गाभिन हो जाये

एक बार ससुराल पहुँच गयीं तो अब उनकी सास को कोई रोक नहीं सकता था, नन्दोई को पहले ही हटाने का ननद की सास ने प्लान बना लिया था और ननद को आश्रम भेजने का भी । अबकी ननद से न कहा जाता न पूछा जाता बस जबरदस्ती और एक बार झागंड़ में घुस गयी फिर तो

बस किसी तरह, आज की रात ये और मेरे मरद के पास रह जाये

मुझे अपने मरद के बीज पर पूरा भरोसा था और होलिका माई के आशीर्वाद पर ,



बस आज की रात,


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मुझे ननद का बुझा चेहरा याद आ रहा था,

"भौजी अगर मैं उस आश्रम में गयी तो,... इस बार की मुलाकात आपकी मेरी आखिरी मुलाक़ात होगी, ....याद करियेगा अपनी इस ननद को"
कर भला तो हो भला...
लालच बुरी बला...
लेकिन होलिका माई के आशीर्वाद के सामने सब धरा का धरा रह जाएगा...
 
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motaalund

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परेशानी का हल


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" बड़ी परेशान लग रही हो "



" एक काम है आपसे " मैंने उनकी ओर देख के कहा,

" यहीं या बिस्तर पे चलें, " कुछ चिढ़ाते हुए कुछ उकसाते वो बोले, और मेरे परेशान चेहरे पे मुस्कान आ गयी।

" कल मेरी ननद को जाने दीजिये, फिर पांच दिन का हिसाब करूंगी सूद समेत निचोड़ लुंगी, लेकिन ये नन्दोई जी, कुछ करके, ...आज रात वहीँ हस्पताल में रुक जाएँ, " मैंने अपनी परेशानी बता दी।



" ठीक है, " मेरे लिए जो पहाड़ था वो उन्होंने फूंक के उड़ा दिया,

" मैंने ही सी ओ को बोला था, की कुछ कर के आज शाम को , लेकिन फिर बोल दूंगा और हस्पताल में भी, वैसे भी आज संडे है सब आफिस बंद रहता है, तो कल ही, "



" कल भी दोपहर के बाद ही लौटें यहां, " मैंने अपनी डिमांड बढ़ाई,

" ठीक है, अरे कल उनका काम ही दोपहर तक वहां ख़त्म होगा, शाम को ही लौटेंगे, लेकिन एक छोटी सी,.. "



लालची उस बदमाश के दिमाग में सिर्फ एक चीज रहती है, तबतक उनकी माँ बहन दोनों की आवाज आयी खाना लग गया है

और मैं बच के निकल गयीं, हाँ जाते जाते एक छोटी सी चुम्मी दे दी, घूस, इतना बड़ा काम करवाया उन्होंने मेरे।

खाते समय नन्दोई जी बड़े सीरियस थे, मैंने उन्हें खूब छेड़ा भी हस्पताल की नर्सों का नाम ले ले के, लेकिन चेहरे पे मुस्कान भी नहीं आयी हाँ उठते उठते बोले, " मैं कुछ भी कर के रात में आ जाऊंगा, और हम लोग सुबह सुबह निकल देंगे, माई का फोन आया था "


शाम को ही नन्दोई जी का फोन आ गया, पुलिस वालों ने साइन तो करा लिया लेकिन आफिस बंद है इसलिए उनके पेपर और बाइक कल ही मिलेंगे, और उनके दोस्त के सीटी की रिपोर्ट भी सुबह ही आएगी, इसलिए हस्पताल से डिस्चार्ज भी कल ही, इसलिए कल वो आएंगे लेकिन ननद मेरी तैयार रहें आते ही चल देंगे।

उस नर्स ने जिसके साथ पिछली बार उन्होंने, उसने नन्दोई जी से बोल दिया था, एक कच्ची कली आयी है, आगे से भी कोरी और पीछे से भी कोरी, अगर आज रात वो रुक जाएँ तो,

देर शाम को ही मैंने ननद को कमरे में पहुंचा दिया " आज रात खूब हंस बिहँस लो, सुबह भोर होने के पहले ही आउंगी मैं " और उनको अंदर कर के मैंने दरवाजा बंद कर दिया।

मैं अपनी सास के पास लेकिन आज हम दोनों के मन में यही था कल सुबह क्या होगा।
छेद के इंतजाम ने .. वो भी आगे पीछे दोनों से कोरी...
नंदोई के मुँह के साथ साथ लंड से भी पानी चूने लगा होगा..
अब ना करें तो कैसे...
 
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