komaalrani
सबसे पहले तो मुझे सचमुच बहुत दुःख है कोमल जी कि मैं आपकी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं कर पाई। सबसे पहले तो जैसा कि मैंने पहले कहा, आप जैसी उत्कृष्ट और परिपक्व लेखिका की उत्कृष्ट कृति पर समीक्षा लिखने या टिप्पणी देने के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ गए और दूसरी बात यह कि मैं अपनी दो कहानियों में इतना व्यस्त थी कि मुझे समय ही नहीं मिल पाया। पा रहा था. आप ये सब कैसे कर लेती हैं?
मेरे थ्रेड पर आकर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ देने और अपने सभी पाठकों को जवाब देने के लिए मैं आपका धन्यवाद .
कहानी की बात करू तो इमरतिया ने सूरज बाबू के मुंह को खून लगवा दिया है। मर्द का लौड़ा और रेस का घोड़ा मंजिल तक पंहुच के ही रुकता है और सूरज की मंजिल है अपनी बहन बुचिया की बुर।
आशा है आप जल्दी ही बुचिया की बुर का उद्घाटन करवा देंगी और मेरा वादा है आपसे की एक बात बुर फट जाए बुचिया की...मेरी तरफ से एक गरमा गरम कविता पक्का