- 46,523
- 48,352
- 304
Ab dono bhai behn ne daba badha diya hai,khuda kher kre .बरसात की रात
इसी छेड़छाड़ और डबल मीनिंग बात में खाना खत्म होगया और गीता बर्तन लेकर किचेन में,
भाई का मन वो जान रही थी थी , उसके शार्ट में खूंटा एकदम तना था , बित्ते भर का तो होगा,... लेकिन वही झिझक,...
दोनों अपने अपने कमरे में सो गए
उसका भाई अरविन्द अपने कमरे में, थोड़ी देर तक तो वो कुनमुनाया लेकिन दिन भर की थकान, नींद ने घेर लिया, पर हां,...
आज जब वो सोने आया तो एक बोतल घर के सरसों के तेल की, तगड़ी झार वाली, ला के अपनी चारपाई के नीचे,
पर रात में,...
आधी रात हो चुकी थी या शायद ज्यादा
तेज बादल गरजना शुरू हुए बिजली की कड़क और पानी की बौछार, गीता के कमरे में हवा के झोंके से खिड़की शायद खुल गयी , बौछार अंदर आ रही थी ,... तूफ़ान भी जबरदस्त था ,...
हूँ हूँ की तेज आवाज गूँज रही थी , बारिश के साथ तूफ़ान भी था,
गीता डर के मारे अपने बिस्तर में दुबक गयी थी, .... बचपन से ही कड़कती बिजली और तेज तूफ़ान की आवाज से वो डर जाती थी
और कहीं भी हो , दिन या रात , माँ की गोद में भागके सिमट जाती थी,... और माँ उसे चिपका लेती थीं, रात हो तो रात भर उनकी गोद में ही चिपकी रहती थी, डर तब भी लगता था , लेकिन सुकून भी रहता था की बिजली यहाँ नहीं गिर सकती , माँ का आंचल रोक लेगा,... और उसकी ये हालत सब को मालुम थीं ,... वैसे भी घर में था और कौन,... वो माँ और भैया।
वैसे तो बाहर एकदम अँधेरा था , लेकिन जब बिजली चमकती थी तो कैमरे के फ्लैश की तरह सब कुछ पल भर के लिए चमक जाता था,...
थोड़ी रौशनी थोड़ी अँधेरे में, वो नीम का पेड़, जिसके नीचे वो खेलती थी, निम्बोलिया बीनती थी, ... एकदम जिन्नात की तरह लग रहा था ,...
सारे पेड़ झूम रहे थे जैसे उन के ऊपर ढेर सारे भूत प्रेत उन्हें हिला रहे हों,... मारे डर के उसने आँखे मींच ली , चद्दर में ऊपर तक ओढ़ ली ,...
माँ ,...
लेकिन माँ तो मामा के यहाँ गयी थी और उसे समझा भी गयी थीं , अब तू बड़ी हो गयी है , बच्ची नहीं रही, अपना भी ख्याल रखना , भैया का भी,...
और एक बार फिर बिजली चमकी ,
बादल कड़के , .... उसने मारे डर के चद्दर के अंदर भी अपनी आँखे मींच ली, ... तभी कुछ अरररा कर आवाज हुयी,...
और आधी खुली बंद आँखों से उसने देखा , वो बड़ा सा पाकुड़ का पेड़ जिस पे हर साल झूला पड़ता था,.... उसकी एक बड़ी मोटी सी डाल चरमरा के गिरी उसकी आँखों के सामने,... कितना पुराना पेड़ ,...
माँ कहती थी उसकी डोली इसी पेड़ के नीचे उतरी थी,... और जिस तरह से होओओओ होओओओओ कर के हवा चल रही थी, लग रहा थी कोई पेड़ पालव आज बचेगा नहीं,....
हड़बड़ा के वो अपने कमरे से उठी, और बगल के कमरे में, ... भैया के कमरे का दरवाजा खुला था,... और वो चद्दर ओढ़े, गहरी नींद में बाहर के आंधी तूफ़ान से बेखबर,... वो उनके कमरे में घुस के सीधे उनके चद्दर में घुस के दुबक गयी और कस के उन्हें अपनी बाँहों में बांध लिया।
सोते समय सिर्फ वो एक जांघिया पहनते थे , और गीता भी सिर्फ एक समीज पतली सी,... और आज माँ भी नहीं थी तो ऊपर नीचे भी कुछ नहीं , समीज के अंदर
और जांघिये के अंदर 'वो' सुगुबगा रहा था , करवट ले रहा था , थोड़ा जगा और जब गीता ने अपने भैया को गले से लगाया , कस के चिपक के दुबकी वो तो सीधे वो डंडा समीज के ऊपर से उसकी जाँघों के बीच।
कुछ देर में जब वो डर से उबरी तो उसे ' उसका' अहसास हुआ।
और वो गिनगीना गयी, एक नए ढंग का अहसास उसकी जांघो के बीच शुरू हो गया, एक हल्की सी सिहरन, कम्पन ,... रोज तो देखती थी वो इस बदमाश मोटू को ,भइआ जब उसे पकड़ के ६१-६२ करते थे, उसकी ब्रा के कप में उसकी सब मलाई,... उसके भाई का एक हाथ जैसे नींद में पड़ गया उसके सीने पर था,... वो और कस के भैया से चिपक गयी, ....
और कुछ देर में उस दुबकने चिपकने से पतली सी समीज ,ऊपर सरकती रही,...
गीता को ,... जो बार बार उसकी सहेली की भाभी बोलती थीं ,... पहल लड़की को ही करनी पड़ती है , लड़के बेचारे तो घबड़ाते रहते हैं,...और अगर भाई हो तो और , झिझकता ही रहेगा , और बहन ब्याह के किसी और के पास चली जायेगी,... और उस से पहले ही कोई पड़ोस वाला लड़का गन्ने के खेत में उसे गन्ना खिला देगा।
फिर गीता ने खुद ही अपनी ब्रा खोल के जान बूझ के बाथरूम में छोड़ा,.. और कल दिन में ही तो उसकी मलाई भरी अपनी ब्रा को न सिर्फ पहना बल्कि उससे हुक भी लगवाया,...
समीज पेट के ऊपर तक सरक गयी थी अपने आप ही , ... बस गीता ने भैया का एक हाथ सीधे समीज के अंदर अपने उभार पर,
गोल गोल रूई के फाहे , खूब मुलायम , गुलाबी गुलाबी,
कच्चे टिकोरे , जिस पर अभी किसी तोते की चोंच नहीं लगी थी,
बस हलके हलके उभरते हुए उभार , जिनके बारे में सोच सोच के उसका भैया रोज मुट्ठ मारता था , आज उसकी मुट्ठी में
और अपने आप ही गीता के हाथ भैया के हाथ पर , उस हाथ पर जो उसके उभार पर था , और गीता ने हलके से बहुत हलके से दबा दिया ,... बस जैसे बटन से स्टार्ट करने वाली गाड़ियां होती हैं , बस उसी तरह से,... अब भइया जैसे अनजाने में सहला रहे थे , छू रहे थे, बस हलके हलके,... और गीता को लगा वो हवा में उड़ रही है , उफ्फ्फ्फ़ ऐसा तो कभी नहीं लगा ,... कित्ता अच्छा , बस मुश्किल से वो अपनी सिसकी रोक पा रही थी,...
उसने एक टांग उठा के उसकी ओर करवट किये भैया की टांगो पर रख दिया , ...उनकी कमर से थोड़ा सा नीचे,... लेकिन ये उसने भी ध्यान नहीं दिया की ऐसे करने से उसकी जाँघे पूरी तरह खुल गयी हैं , समीज भी एकदम सिकुड़ के बस उसके उभारों के ऊपर,.... और समीज के नीचे उसने कुछ पहन भी नहीं रखा था, लेकिन इस सब बातों से अनजान , उसने अपनी भैया के ऊपर रखी टांग के सहारे उन्हें और अपनी ओर खींच लिया। और अब वह मोटू , जांघिए के अंदर पूरी तरह तना सीधे उसकी गोरी गोरी मखमली जाँघों के बीच, आलमोस्ट वहीँ सटा हुआ,
गीता ने एक बार फिर उसके उभार के ऊपर जो भैया का हाथ था उसे , अबकी हलके से नहीं कस के दबा दिया और बस अब भइया छूने सहलाने से आगे बढ़ के हलके हलके दबाने मसलने लगे ,... अब ये बहाना दोनों छोड़ चुके थे की सोते में अनजाने में
गीता ने अपना दूसरा हाथ , भैया के जांघिये में डाल के उस मोटू को पकड़ लिया जिसे देख के वो रोज रोज ललचाती थी। और आज पकड़ने पर ,... डरते हुए हिम्मत कर के छुआ था गीता ने, कितना कड़ा, एकदम लोहा,... मुश्किल से मुट्ठी में समा रहा था , वो कितना सोचती थी, छूने में पकड़ने में कैसा लगेगा,... और आज ,... सोचने से भी ज्यादा अच्छा लग रहा था , हिम्मत कर के धीरे धीरे उसने अपनी टीनेजर मुट्ठी का दबाव बढ़ाया,... और अंगूठे से , मोटू के मुंह के पास , ... थोड़ा खुला थोड़ा बंद,... वो रोज तो देखती थी , भइया उसकी ब्रा से पकड़ के कैसे आगे पीछे करते हैं , बस वही सोच के एकदम उसी तरह उसने धीरे अपने भैया के 'उसको' आगे पीछे करना शुरू किया , हलके हलके,
Ajj to behn ki tehas nehas honi nischit lagti hai.
Dhansu update,majhi hui gr8 writer ki likhi hui.