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भाग ३१
इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )
रात बाकी बात बाकी
इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )
रात बाकी बात बाकी
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Awesome updateभाग ३१
इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )
रात बाकी बात बाकी
और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ... लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,... उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,... और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई को अपनी बाँहों में बाँध रखा था
बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं
टप टप टप
आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।
आधे पौन घंटे के बाद मन तो भैया का भी कर और छुटकी बहिनिया का भी लेकिन पहल कौन करे?
पहल बहन ने ही की,
उसे लगने लगा की कहीं भैया को ये न लग रहा हो की उनसे कुछ गलत हो गया या उन्होंने छुटकी को चोट लगा दी ये सोच के उन्हें बुरा लग रहा हो , दर्द तो उसे अभी भी बहुत हो रहा था, जाँघे फटी पड़ रही थीं, ' वहां' भी रुक रुक के चिलख उठ रही थी,... पैर उठाने या फ़ैलाने का वो सोच भी नहीं सकती थी , और भैया का था भी कितना लम्बा मोटा,... काला नाग,... जो भैया के मोबाइल में वो देखती थी, उससे भी जबरदस्त,...
लेकिन, उससे रहा नहीं गया, उसने डरते डरते उसे छू लिया,... सो रहा था,...भैया का ' वो ' अभी डरने की कोई बात नहीं थी,...
और पहले वही बोली, ' उसे' हलके से छूते हुए उसने भैया को चिढ़ाया,...
" भैया, सो रहा है , थक गया लगता है ,... "
अब भैया के भी बोल खुले , वो कैसे चुप रहता,... छेड़ते हुए उसके गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बहन से बोला,... "
" तो जगा दे न, ... काहें डर रही है छूने से ,.. "
और बहना क्यों भैया से पीछे रहती, बस पहले छुआ, और अभी तो सो रहा था, तो मुट्ठी में ले भी लिया और पकड़ के हलके से दबा भी दिया।
कित्ता अच्छा लग रहा था छूने में,... पर थोड़ी देर में ही वो चौंक गयी, ' वो ' तो जगने लगा था, फूलने लगा था,... उसके मुंह से निकल गया,...
" भैय्या,... "
" अरे पगली घबड़ा क्यों रही है , वो ख़ुशी से फूल रहा है की इत्ती प्यारी से गुड़िया ने उसे हाथ में ले लिया है , ... अभी इत्ता बोल रही थी , अब डर रही है न , डरपोक " भैया ने उसे चिढ़ाया ,...
और अब उसने और कस के न सिर्फ दबोच लिया , बल्कि भैया जैसे उसकी ब्रा पकड़ के इसे सहलाते थे , .... उस समय भी उस का मन करता था , एक बार बस पकड़ ले , मुट्ठी में ले ले ,... तो बस , अब उसी तरह से वो सहला रही थी , मुठिया रही थी,...
थोड़ी ही देर में वो खूब कड़ा हो हो गया,...वो जान रही थी जाग गया तो वो उसकी फिर ऐसी की तैसी करेगा , करेगा तो कर दे , ... और साथ साथ अपन छोटे छोटे जुबना भी अपने भैया के सीने पे रगड़ रही थी , और आग को हवा दे रही थी,...
भैया अब कैसे चुप रहता , उसके भी हाथ चालू हो गए , और जो छोटे छोटे उभार उसकी नींद उड़ाते थे, थोड़ी देर पहले ही सपने में आ के तंग कर रहे थे , बस सके दोनों हाथों में लड्डू और कस के मसलने रगड़ने लगा , उसके होंठ बहना के होंठ चूमने लगे,...
बाहर बीच बीच में से चांदनी बादलों का घूंघट उठा उठा के भैया बहिन की मस्ती देख रही थी, खिड़की पूरी खुली थी , तूफ़ान के बाद ठंडी ठंडी हवा आ रही थी,... और गीता भी चांदनी में नहाये अपने भाई अरविन्द के बदन को निहार रही थी, एकटक।
और अबकी बहना के होंठ भी चुम्मी का जवाब दे रहे थे, जब भैया की जीभ उसके मुंह में घुसती तो उसकी जीभ भी कबड्डी खेलती, ..
और सबसे मज़ा आ रहा था, उसे भैया के,... नहीं नहीं अब तो ये खिलौना उसका था,.... कित्ते दिन से उसकी सहेलियां ललचाती थीं,
मेरे जीजू का इत्ता लम्बा है, मेरे कज़िन का इत्ता मोटा है, जब घुसता है तो जान निकाल लेता है, गितवा स्साली एक बार ले के देख अंदर,...
और अब तो उसके पास, वो सब साली कमीनी देख लेंगी तो चूत और गाँड़ दोनों फट जाएंगी, ... लम्बा मोटा तो है कितना कड़ा भी है
और प्यारा भी, हाथ में पड्कने में कित्ता अच्छा लग रहा है,
मन तो उसका तभी ललचा गया था जब उसके जुबना को निहारते भैया के शार्ट में खूंटे की तरह तना था,
लेकिन जो छेद भैया ने बाथरूम में उसे देखने के लिए किया था, ... उससे असली फायदा तो उसी का होगया,... और छेद बड़ा तो गितवा ने ही किया था की बाथरूम का हर कोना साफ़ साफ़ दिख जाए, आवाज भी सुनाई दे,... और जो पहली बार उसने भैया का हथियार देखा,
कलेजा मुंह को आ गया,
इत्ता,... इत्ता बड़ा,... कैसे फनफनाया हुआ था ,... और उसे अपने जुबना पे अभिमान भी हुआ की भैया की तो उसके कच्चे टिकोरों ने ही की,...
पर दोनों जाँघों के बीच कितनी लिस लिस हुयी थी, सहेली उसकी फुदक रही थी, बजाय डरने के,
और आज छू के पकड़ के इत्ता मजा आ रहा था ,... हाँ अब वो खूब मोटा हो गया था, उसकी मुट्ठी में ठीक से पकड़ में नहीं आ रहा था, पर,... कभी ऊँगली सी फूले फूले लीची से सुपाड़े को बस हलके से छू लेती, तो कभी मूसल के बेस पे नाख़ून से शरारत से खरोंच लेती और भैया गिनगीना जाता,...
लेकिन उसका सारा बदला भैया उन कच्ची अमियो पे उतार रहा था कभी प्यार से चूसते चूसते कस के कुतर देता तो कभी हलके हलके सहलाते सहलाते, पूरी ताकत से रगड़ देता और मसल देता,
गरमा दोनों गए थे,...
और भैया ने पूछ लिया,
Ekdam perfect samvad bhai behan ka , superb, amazing update,on right track, almost there.आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक
और भैया ने पूछ लिया,
" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "
गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...
बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे
उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ
सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,
वो चीखती रही,
वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...
और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...
तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,
पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...
" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "
लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.
" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।
गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,
और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,
पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।
बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...
" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "
" कोई नहीं, "
लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...
" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...
पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...
" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "
झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,
" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.
उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,
" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,
" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "
और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,
" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "
और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,