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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ३१


इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )

रात बाकी बात बाकी
 

komaalrani

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भाग ३१


इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )



रात बाकी बात बाकी




और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ... लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,... उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,... और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई को अपनी बाँहों में बाँध रखा था

बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं

टप टप टप



आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।

आधे पौन घंटे के बाद मन तो भैया का भी कर और छुटकी बहिनिया का भी लेकिन पहल कौन करे?

पहल बहन ने ही की,



उसे लगने लगा की कहीं भैया को ये न लग रहा हो की उनसे कुछ गलत हो गया या उन्होंने छुटकी को चोट लगा दी ये सोच के उन्हें बुरा लग रहा हो , दर्द तो उसे अभी भी बहुत हो रहा था, जाँघे फटी पड़ रही थीं, ' वहां' भी रुक रुक के चिलख उठ रही थी,... पैर उठाने या फ़ैलाने का वो सोच भी नहीं सकती थी , और भैया का था भी कितना लम्बा मोटा,... काला नाग,... जो भैया के मोबाइल में वो देखती थी, उससे भी जबरदस्त,...
लेकिन, उससे रहा नहीं गया, उसने डरते डरते उसे छू लिया,... सो रहा था,...भैया का ' वो ' अभी डरने की कोई बात नहीं थी,...
और पहले वही बोली, ' उसे' हलके से छूते हुए उसने भैया को चिढ़ाया,...

" भैया, सो रहा है , थक गया लगता है ,... "

अब भैया के भी बोल खुले , वो कैसे चुप रहता,... छेड़ते हुए उसके गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बहन से बोला,... "

" तो जगा दे न, ... काहें डर रही है छूने से ,.. "

और बहना क्यों भैया से पीछे रहती, बस पहले छुआ, और अभी तो सो रहा था, तो मुट्ठी में ले भी लिया और पकड़ के हलके से दबा भी दिया।
कित्ता अच्छा लग रहा था छूने में,... पर थोड़ी देर में ही वो चौंक गयी, ' वो ' तो जगने लगा था, फूलने लगा था,... उसके मुंह से निकल गया,...



" भैय्या,... "

" अरे पगली घबड़ा क्यों रही है , वो ख़ुशी से फूल रहा है की इत्ती प्यारी से गुड़िया ने उसे हाथ में ले लिया है , ... अभी इत्ता बोल रही थी , अब डर रही है न , डरपोक " भैया ने उसे चिढ़ाया ,...


और अब उसने और कस के न सिर्फ दबोच लिया , बल्कि भैया जैसे उसकी ब्रा पकड़ के इसे सहलाते थे , .... उस समय भी उस का मन करता था , एक बार बस पकड़ ले , मुट्ठी में ले ले ,... तो बस , अब उसी तरह से वो सहला रही थी , मुठिया रही थी,...


थोड़ी ही देर में वो खूब कड़ा हो हो गया,...वो जान रही थी जाग गया तो वो उसकी फिर ऐसी की तैसी करेगा , करेगा तो कर दे , ... और साथ साथ अपन छोटे छोटे जुबना भी अपने भैया के सीने पे रगड़ रही थी , और आग को हवा दे रही थी,...



भैया अब कैसे चुप रहता , उसके भी हाथ चालू हो गए , और जो छोटे छोटे उभार उसकी नींद उड़ाते थे, थोड़ी देर पहले ही सपने में आ के तंग कर रहे थे , बस सके दोनों हाथों में लड्डू और कस के मसलने रगड़ने लगा , उसके होंठ बहना के होंठ चूमने लगे,...



बाहर बीच बीच में से चांदनी बादलों का घूंघट उठा उठा के भैया बहिन की मस्ती देख रही थी, खिड़की पूरी खुली थी , तूफ़ान के बाद ठंडी ठंडी हवा आ रही थी,... और गीता भी चांदनी में नहाये अपने भाई अरविन्द के बदन को निहार रही थी, एकटक।

और अबकी बहना के होंठ भी चुम्मी का जवाब दे रहे थे, जब भैया की जीभ उसके मुंह में घुसती तो उसकी जीभ भी कबड्डी खेलती, ..

और सबसे मज़ा आ रहा था, उसे भैया के,... नहीं नहीं अब तो ये खिलौना उसका था,.... कित्ते दिन से उसकी सहेलियां ललचाती थीं,
मेरे जीजू का इत्ता लम्बा है, मेरे कज़िन का इत्ता मोटा है, जब घुसता है तो जान निकाल लेता है, गितवा स्साली एक बार ले के देख अंदर,...

और अब तो उसके पास, वो सब साली कमीनी देख लेंगी तो चूत और गाँड़ दोनों फट जाएंगी, ... लम्बा मोटा तो है कितना कड़ा भी है

और प्यारा भी, हाथ में पड्कने में कित्ता अच्छा लग रहा है,

मन तो उसका तभी ललचा गया था जब उसके जुबना को निहारते भैया के शार्ट में खूंटे की तरह तना था,



लेकिन जो छेद भैया ने बाथरूम में उसे देखने के लिए किया था, ... उससे असली फायदा तो उसी का होगया,... और छेद बड़ा तो गितवा ने ही किया था की बाथरूम का हर कोना साफ़ साफ़ दिख जाए, आवाज भी सुनाई दे,... और जो पहली बार उसने भैया का हथियार देखा,
कलेजा मुंह को आ गया,



इत्ता,... इत्ता बड़ा,... कैसे फनफनाया हुआ था ,... और उसे अपने जुबना पे अभिमान भी हुआ की भैया की तो उसके कच्चे टिकोरों ने ही की,...

पर दोनों जाँघों के बीच कितनी लिस लिस हुयी थी, सहेली उसकी फुदक रही थी, बजाय डरने के,



और आज छू के पकड़ के इत्ता मजा आ रहा था ,... हाँ अब वो खूब मोटा हो गया था, उसकी मुट्ठी में ठीक से पकड़ में नहीं आ रहा था, पर,... कभी ऊँगली सी फूले फूले लीची से सुपाड़े को बस हलके से छू लेती, तो कभी मूसल के बेस पे नाख़ून से शरारत से खरोंच लेती और भैया गिनगीना जाता,...

लेकिन उसका सारा बदला भैया उन कच्ची अमियो पे उतार रहा था कभी प्यार से चूसते चूसते कस के कुतर देता तो कभी हलके हलके सहलाते सहलाते, पूरी ताकत से रगड़ देता और मसल देता,



गरमा दोनों गए थे,...

और भैया ने पूछ लिया,
 

komaalrani

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आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक




और भैया ने पूछ लिया,

" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "

गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...

बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे



उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ

सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,



वो चीखती रही,

वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...





और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...

तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,


पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...

" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "

लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.

" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।



गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,



और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,

पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।


बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...



" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "




" कोई नहीं, "

लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...

" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...

पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...

" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "

झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,



" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.





उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,


" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,


" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "




और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,

" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "



और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,
 
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रिश्तों में हसीन बदलाव




और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,...


" ये स्साले लौंडे, घासवालियों के पीछे, खूब चुदी चुदाई काम करनेवालियों के चक्कर में कुत्ते की तरह दुम हिलाते जीभ लपलपाते घुमते हैं एक बार चोदने को मिल जाए, और घर में बिन चुदी कसी कोरी चूत है, मस्त माल है एकदम जिल्ला टॉप, गोरी चिकनी, उस की चूत में आग लगी है, स्साले उस बहन को चोदने के नाम पे स्सालों की गाँड़ फटती है,...




अरे उनकी बहन क्या बिना चुदे बचती है , जिस जिस को वो चोदते हैं, वो भी तो किसी की बहनिया ही हैं,... अरे ये सोच , दुनिया में शुरू में अगर दो ही थे एक आदमी एक औरत,... तो वो स्साला अगर अपनी बहन नहीं चोदता तो दुनिया आगे कैसे बढ़ती लेकिन नहीं , अरे हम सब उसी बहनचोद की औलाद हैं, लेकिन नहीं कहीं पढ़ लिया इन्सेस्ट , इंसेक्ट क्या कहते हैं खराब है, बहनचोद,...

अरे बहन चोदने से बढ़ कर समझदारी कुछ नहीं है , लेकिन क्या करेगी, पहल तुझे ही करनी पड़ेगी, संगीता रानी। तेरा भाई स्साला अरविंदवा नंबरी चोदू है , उसकी शकल देख के लगता है एक बार अगर वो चोदने पे उतर आया न तो ऐसा चोदू तुझे कहीं मिलेगा नहीं , लेकिन उसे चढ़ाना तुझे ही पड़ेगा। "



और गीता वही कर रही थी और उसका भाई अरविन्द अब एकदम से,...

अरविन्द के मुट्ठी में दुनिया का सबसे बड़ा धन, छुटकी बहिनिया के जोबन थे और उन्हें पकड़ के वो कस कस के रगड़ मसल रहा था, अब वो भूल चूका था की उसकी बहिनिया की बारी उमरिया क्या है, ये रुई के फाहे ऐसे २८ नंबर वाले उभार बस अभी उभर ही रहे हैं, कभी हथेली से कस कस के दबाता, तो कभी मूंगफली के दाने के तरह के छोटे छोटे निपल को अंगूठे और तर्जनी के बीच पकड़ के मसल देता,...

और अरविन्द की सगी छोटी बहन गीता सिसक उठती मचल जाती, ... कभी कभी उसे दर्द भी हो रहा था, भैया उसकी चूँची इतनी जोर से रगड़ रहे थे, लेकिन वो मस्ता रही थी, सिसक रही थी ,जाँघों के बीच जोर जोर से लसलसी हो रही थी, थकी थकी जाँघे भी अपने आप फ़ैल रही थीं, चूत में जोर के कीड़े काट रहे थे , ... और उसे सबसे बड़ी ख़ुशी इस बात की हो रही थी कि,

रिश्तों में हसीन बदलाव अब हो चुका था,

उसका सगा भाई अब उसे एक मस्त माल समझ रहा था, चुदवाने के लिए तैयार, चोदने के लिए गर्मागर्म लौंडिया,...



और सहेली की भाभी ने यही बात बार बार सिखाई थी, उसे सिखाया पढ़ाया था की तेरे घर में ही इत्ता मस्त मूसल है, तेरा सगा भाई अरविन्द, और तेरी ओखली अभी तक कोरी है,...

उन्होंने ही बोला था की देखो गरमी में आके कोई भी मरद एक बार तो चोद देगा, पानी भी झाड़ देगा , लेकिन थोड़ी देर बाद ठंडा होने पे भी , उसके मन में कोई बदलाव न हो और उसी समय कुछ देर बाद अगर उसका फिर से तन्ना जाए ,... और वो दुबारा चोद दे तो समझो रिश्ते में बदलाव पूरा ,

अब तुम उसकी माल हो, उसकी सजनी, वो तेरा साजन , अब सिर्फ मरद औरत का रिश्ता , सबसे मस्त रिश्ता,.... और फिर तेरी रोज चुदाई का इंतजाम पक्का ,




इसलिए गीता ने पक्का कर लिया था की कुछ भी करके अपने भाई अरविन्द से उसे दुबारा चुदवाना है,... और उसका भाई खुद चोदने के लिए पागल हो रहा था , यही तो वो चाहती थी , रिश्तों में हसीन बदलाव अब पूरा हो चुका था।
 
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दुबारा



इसलिए गीता ने पक्का कर लिया था की कुछ भी करके अपने भाई अरविन्द से उसे दुबारा चुदवाना है,... और उसका भाई खुद चोदने के लिए पागल हो रहा था , यही तो वो चाहती थी


, रिश्तों में हसीन बदलाव अब पूरा हो चुका था।



और अरविन्द, काम कला में पक्का, लौंडिया को गरम करके पहले आलमोस्ट झड़ने के करीब लाके तब पेलने की कला में माहिर , जिससे पहले धक्के में ही वो पानी फेंक दे,... और फिर हर धक्का सीधे बच्चेदानी तक,...

बस अब उसे जल्दी नहीं थी , एक जोबन अभी भी भाई के मुट्ठी में था पर अब वो बस हलके हलके सहला रहा था और होंठ दूसरे उभार की परिक्रमा कर रहे थे कभी जीभ से चाट लेता, तो कभी बस छोटी छोटी चुम्मी, ... तो कभी जीभ की टिप से कुरेद देता ,... और छोटे छोटे चुंबन के पग धरते,होंठ निप्स के पास, लेकिन उसने निप नहीं छुए अपनी बहिनिया के, बस जीभ की टिप से निप के चारो ओर,




और उसका दूसरा हाथ अपनी बहिनिया गीता की गोरी गोरी मांसल जाँघों पे सहला रहा था, नहीं योनि महल के पास नहीं बस थोड़ी दूर , कभी उँगलियों से सहलाता तो कभी हलके हलके हलके हाथों के जोर से जाँघों को फैलाता,... गीता खुद ही जाँघे फैला रही थी की उसका भाई चढ़ के , लेकिन अब उसका भाई अपनी बहिन को गरमाने में लगा था,... अब एक बार चोद के वो झिल्ली फाड् चुका था, खून खच्चर हो चुका था, अब सिर्फ मज़ा ले ले के आराम से चोदने का टाइम था और उसकी बहिन ऐसा मस्त माल आसपास के गाँव में भी नहीं था, ...





गीता गरमा रही थी बस उसका मन कर रहा था उसका भाई अरविन्द,...

एक हाथ से वो उसके लंड को सहला रही थी , खूब फनफना रहा था एकदम लोहे के राड ऐसा कड़ा,... सुपाड़ा मोटा खुला,




और अचानक जैसे बाज झपट्टा मार के किसी गौरया को झप्पट ले बस उसी तरह से उसके भैया के होंठों ने उसके एक निप को होंठों के बीच दबोच लिया, ... और लगा कस के चूसने, बीच बीच में भैया की जीभ होंठों के किले के बीच से निकल के सीधे निप्स पे छू के उसे पागल कर देती,... और साथ में हो हथेली जाँघों पर सरकती हुयी, जाँघों के बीच की दरार की तरफ बढ़ रही थी, बस एक झटके में और अपनी हथेली से बार बार हलके हलके उसकी चूत सहलाने लगाए , कभी अंगूठे से उसकी क्लिट सहला देता तो कभी एक ऊँगली बुर में डाल के अंदर बाहर,



अब गीता से नहीं रहा गया, उसने खुद अपनी दोनों टाँगे उठा दी,



थोड़ी देर में ही वो पीठ के बल लेटी थी, उसकी दोनों टाँगे उठी, भैया के कंधे पर जाँघे खुलीं,... पूरी तरह फैली,... हाँ अबकी शर्मा तो रही थी , लेकिन डर बहुत कम रही थी और उसने सायास आँखे अपनी खोल रखी थीं ,

चाँद भी खिड़की के रास्ते से उतर के उसकी पलंग के बगल में बैठ गया था ,...




अबकी उसके सामने ही, भैया ने फिर से सरसों के तेल बोतल खोली, अपने मोटे मूसल में जम के लगाया , और फिर उसकी दोनों फांको को फैला के सीधे बोतल से बूँद बूँद,... दो ढक्कन से भी ज्यादा, २० ग्राम कडुवा तेल तो कम से, उसकी बिल से छलक के बाहर आ रहा था तब भी, और पहली बार भैया की मलाई भी अंदर थी कटोरी भर,... और फिर अरविन्द भैया ने दोनों फांकों को बंद कर के थोड़ी देर मसला, जिससे सरसों का तेल बजाय बाहर आने के बहिनिया की बुर में अच्छी तरह सोख ले,... और थोड़ा सा ऊपर दोनों फांको पर लगा के ,...


फिर मार दिया करारा धक्का,...

उईईई उईईईईई वो जोर से चीखी ,... दर्द से पूरी देह भर गयी ,... लेकिन भैया ने उसके होंठ बंद नहीं किये बल्कि पतली सी कमरिया पकड़ के दूसरा धक्का पहले से भी करारा मारा,



उईईई ओह्ह्ह्हह उफ्फ्फ्फ़ नहीं नहीं ,... ओह्ह्ह्ह , उफ्फ्फ्फ़ उईईईईई ,...



वो चीखे जा रही थी , और भैया धक्के पर धक्के मारे जा रहा था , दूसरा तीसरा चौथा , सुपाड़ा पूरा अंदर धंस गया था , फिर और जोर से ,...

उईईई उईईईईई

बहना भले ही अनाड़ी थी पर भैया पक्का खिलाड़ी था , यही चीखें ही तो कुँवारी कच्ची कलियों के साथ मजे लेने का असली मजा है,... चिल्लायेंगी, चूतड़ पटकेंगी , उछलेंगी ,... पर धीरे धीरे कर के लंड पूरा घोंटेंगी,...

गीता ने दोनों हाथों से चादर को कस के पकड़ रखा था,... हलके हलके चीख रही थी लेकिन अच्छा भी लग रहा था अब पहली बार इतना दर्द भी नहीं हो रहा था , जब रगड़ते दरेरते अंदर घुसता तो बहुत अच्छा लगता और अंदर कैसा तो,... मजे से उसकी आँखे बार बार आँखे बंद हो जा रही थी , आधे से ज्यादा अबकी उसने अंदर ले लिया था,...




और अब भाई ने भी पैंतरा बदला , धक्के रुके लेकिन हाथ होठ चालू हो गए , अब उसके होंठ कभी बहना के गालों को चूमता, कभी उसके जुबना का रस लूटता, तो कभी बस आ रहे निपल को पकड़ के चूसते ,

मजे से बहन की हालत खराब हो गयी , एक हथेली एक उभार को कस के रगड़ रही थी , दबा रही थी मसल रही थी और दूसरा उभार होंठ के कब्जे में , ... भाई ने २८ से ३८ तक हर साइज के मजे लुटे थे



लेकिन जो मज़ा सगी छोटी बहन के जोबन लूटने में आ रहा था , उसका कोई जवाब नहीं था,...
 
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भैया का धंस गया,..पूरा अंदर








जो मज़ा सगी छोटी बहन के जोबन लूटने में आ रहा था , उसका कोई जवाब नहीं था,...



अरविन्द मन ही मन मुस्करा रहा था,

जिस मोटे, उसके बित्ते से बड़े तूफानी लंड को घोंटने में चार बच्चों की माँ, पक्की भोसड़े वालियां भी पनाह मांग जाती थीं, चीखती चिल्लाती थीं, रोती कराहती थीं,





आज उसकी सगी छोटी बहन ने उसे कसम धरायी थी की उसे पूरा घोंटना है, ... मन तो उसका भी यही कर रहा था [पहली बार चोदते समय भी , बल्कि जब उसकी कच्ची चूत को सोच सोच के वो उसकी छोटी छोटी २८ नंबर की ब्रा में मुट्ठ मारता था तो भी अरविन्द यही सोचता था की उसका पूरा लंड उसकी बहन की कच्ची कोरी चूत में जड़ तक धंसा है,... वो जानता था,... बहुत परपरायेगा, .... फट के हाथ में आ जायेगी उसकी,पर


आज उसने खुद कसम धरा दी और और किसकी, खुद उसकी , ... उसकी छोटी बहन की,... कितना भी कडुवा तेल वो पिलाये, उसकी कच्ची बुर को,... पर जब वो खुद चाहती है ,... और दो चार बार बच्चेदानी पर सुपाड़े का धक्का लगा, जड़ तक,... लंड के बेस से उसने बहिन की क्लिट को रगड़ दिया तो वो खुद ,

बस दोनों २८ नंबर के छोटे छोटे जोबन को पकड़ के उसने करारा धक्का मार दिया, उसके कमर के जोर के आगे तो,.. और आज उसके धक्के रुक नहीं रहे थे , न बहिनिया की चीख,...




उईईई , ओह्ह्ह्हह्ह नहीं , लगता है, आह उफ्फ्फ्फ़ जान गयी,...

और थोड़ी देर में मस्ती में मजे में बहन ने चूतड़ पटकने शुरू कर दिए , कुछ देर के बाद धक्के फिर से चालू हो गए और अबकी जबरदस्त , पूरी ताकत से लंड अब एकदम अंदर तक,... और थोड़ी देर में जड़ तक बहन झड़ने के कगार पर थी पर वो रुका नहीं, एक बार उसने फिर से धीरे धीरे पूरा लंड बाहर निकाला और पूरे ताकत से वो धक्का मारा जैसे उसने झिल्ली फाड़ने के लिए मारा है , और सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी पर,... वो जबरदस्त ठोकर, बहना का कोर कोर हिल गया,....




और वो झड़ने लगी ,... वो काँप रही थी, हवा में उड़ रही थी, नदी में जैसे गोते खा रही , लहरे उसे किनारे पर लाती , लेकिन फिर लहरे वापस बीच मझधार में ले जाती ,...कुछ सोचने समझने की हालत में है थी बस मज़ा,... और मज़ा



भाई थोड़ी देर रुका लेकिन अबकी उसने उसके झड़ने से रुकने का इंतज़ार नहीं किया , लेकिन धक्के हलके हलके थे, वो आलमोस्ट उसके ऊपर लेटा , धक्के मारता , साथ में चुम्मी लेता , हाथ बहन को दोनों फैली रेशमी जाँघों को सहलाता , और जब जड़ तक वो अदंर घुस जाता तो बस उसके बेस से बहना की क्लिट को हलके हलके ,...


अब वो भी साथ साथ मजे ले रही थी हर धक्के के साथ अपने छोटे छोटे चूतड़ भी उठाती, भैया को अपनी बांहो में भींच लेती ,..धक्के कभी तेज हो रहे थे तो कभी रुक रुक के ,... पर अब हर धक्के के साथ उसे एक नए मज़े का अहसास हो रहा था और थोड़ी देर में वो फिर हवा में उड़ रही थी , गुलाबो कभी फैलती तो कभी सिकुड़ती, भैया के मोटू को वो कस कस के भींच रही थी , जैसे अब जिंदगी भर नहीं छोड़ेगी ,...




पर अब भैया रुक गया था,... बस उसके मस्ती से भरे चेहरे को देख रहा था , कभी झुक के चूम लेता तो कभी टकटकी लगा के बस देखता जैसे पहली बार देख रहा हो , जैसे गौने की रात दूल्हा दुल्हन के चेहरे को देखता था ,...



पर कुछ देर बाद फिर धक्के चालू हो गए और अबकी शुरू से ही पूरी रफ़्तार से ,

खटिया के पाए जोर जोर से चुरुर चुरुर बोल रहे थे ,... अब वो भी कगार पर था,... और थोड़ी देर बाद भाई बहन साथ साथ ,...


वो देर तक झड़ता रहा , वो भी साथ साथ झड़ती रही,... उसने अपने को भैया के हवाले कर दिया था , गाढ़ी रबड़ी मलाई उसकी दोनों जाँघों पर छलक के बह रही थी ,... पर उसे परवाह नहीं थी ,... वो दोनों उसी तरह , वो उसके अंदर धंसा , उसकी बाहें भैया को कस के दबोचे , ..





बारिश रुक गयी थी, पर बादलों ने एक बार फिर से चांदनी की मुश्कें कस ली थीं, ... हवा खूब ठंड चल रही थी

अबकी तो पहली बार से भी ज्यादा दर्द हुआ था, देह एकदम दर्द से चूर, जाँघे फटी पड़ रही थीं,.... और चूत के अंदर तो जैसे किसी ने लोहे का मोटा रॉड ठेल दिया हो, भभा रहा था, जैसे मोटे मोटे छाले पड़ गए हों अंदर, अंदर की चमड़ी छिल गयी हो,.... जोर से छरछरा रहा था, लेकिन भैया ने जो कटोरी भर सफ़ेद मलहम अपने इंजेक्शन से छोड़ा था अब धीरे धीरे उसका असर हो रहा था, अंदर का दर्द कुछ कम हो रहा था, पर जरा सा हिलते हुए भी जाँघों के बीच जोर की चिलख उठती थी.



कुछ देर में ही भैया ने खींच के उसे साइड में,

अब वो दोनों साइड में लेटे थे, एक दूसरे की बाँहों में कस के भींचे,...

अरविन्द का मोटा खूंटा दो बार की चुदाई बहन की चूत से सरक के बाहर हो गया था और थोड़ा थका, सुस्ताया आधा सोया,आधा जगा, उसकी छुटकी बहन की जाँघों के बीच दबा, पड़ा था. गीता के छोटे छोटे जोबन अब अरविन्द भैया की चौड़ी छाती में दबे थे. गीता ने कस के अपनी बाँहों में भैया को दबोच रखा था और भाई ने भी उसे अपनी बाँहों में, ... उसकी एक टांग गीता की टांगो के ऊपर,.... अब सिर्फ चुपचाप दोनों लेटे थे, ... हाँ गीता कभी कभी हलके भाई के गाल को चूम लेती थी और उसके भाई अरविंद की उँगलियाँ उसकी गोरी चिकनी नंगी पीठ पे टहल रहीं थी और कभी कभी नितम्बो पे भी,... और छोटे छोटे वस्त्रहीन नितम्बों पे भाई की उँगलियों का स्पर्श,....

गीता बस सिहर उठती, अपना मुंह उसकी चौड़ी छाती में छिपा लेती,

जमीन पर बिखरे दोनों के कपड़ों की तरह शरम भी अब कहीं फर्श पर बिखरी थी, खुली खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी, थोड़े बहुत बादल कभी चाँद को घेर कर अँधेरा कर देते तो कभी चांदनी उन्हें बिखरा के गीता और उसके भाई अरविन्द की काम क्रीड़ा देखने कमरे में घुस के पसर जाती।
 
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भैया बहिनी





जमीन पर बिखरे दोनों के कपड़ों की तरह शरम भी अब कहीं फर्श पर बिखरी थी, खुली खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी, थोड़े बहुत बादल कभी चाँद को घेर कर अँधेरा कर देते तो कभी चांदनी उन्हें बिखरा के गीता और उसके भाई अरविन्द की काम क्रीड़ा देखने कमरे में घुस के पसर जाती।


बात गीता ने ही शुरू की, ... बिन बोले, कभी छोटे छोटे चुम्मी से तो कभी अपनी उँगलियों से भाई अरविन्द के चौड़े सीने पे कुछ लिख के,... और फिर फुसफुसाहटों में, ...

" भैया तेरा मन बहुत दिन से कर रहा था न "



हाँ "

बहुत हलके से बोला अरविन्द लेकिन कस के अपने चौड़े सीने से बहन के छोटे छोटे जोबन को दबा देकर और जोर से बहन की बात में हामी भरी। बहन ज्यादा बोल्ड थी, वो खुल के बोली,...

" भैया, मेरा मन भी बहुत दिन से कर रहा था,... तेरे साथ करवाने को,... तेरा मन कर रहा था तो किया कयों नहीं ?"

" अब करूँगा अपनी बहना से प्यार रोज करूंगा, बिना नागा, दिन रात,... " और अरविन्द ने कस के अपनी बहन को चूम लिया





और जैसे उसके इरादे की हामी भरते, उसका खूंटा भी अब खड़ा होने लगा था।

गीता ने भी अपने सगे भाई को कस के चूम लिया,... और उसका एक हाथ खींच के अपने उत्तेजना से पथराये जोबन पे रख दिया , मन तो उसका यही कर रहा था, भैया कस के दबाएं मसलें कुचले,... मीज मीज के इसे, ... और जैसे बिन उसके बोले भैया ने इरादा समझ लिया और अब वो कस कस के अपनी छोटी बहन की चूँचियाँ मसल रगड़ रहे थे,

गीता और कस के भैया से चिपक गयी, बस मन कर रहा था ये रात कभी ख़तम न हो। अपनी देह वो भैया की देह से रगड़ने लगी, मन तो उसका बस यही मन कर रहा था की भैया कस के पेल दें, लेकिन उनकी बाहों से वो अलग भी नहीं होना चाहती थी, और अब चांदनी पूरी तरह दोनों की देह को नहला रही थी , गीता खुल के सब देख रही थी,


बात गीता के मन की ही हुयी , वो भले ही अनाड़ी थी पर भैया उसका पूरा खिलाडी था,

हाँ भाई बहन के रिश्ते के नाते कुछ बहन की कच्ची कोरी उमर के नाते लेकिन अब दो बार कस कस के चोद लेने के बाद, ...


खूंटा अब पूरा खड़ा हो चुका था,, उसने साइड में लेटे लेटे ही,...



साइड में बहन की जाँघों को पूरा फैलाया, एक हाथ से पकड़ के अपनी टांग के ऊपर, अब खूंटा सीधे बिल के पास, ... एक हाथ में तेल लेके एक बार फिर से कस के अपने लंड को मुठियाते हुए उसे तेल से चुपड़ दिया,... दो बार की हचक की चुदाई के बाद चूत का मुंह थोड़ा खुल गया था पर फिर भी एक हाथ की ऊँगली से दोनों फांको को फैला के , सुपाड़ा सटा दिया,...




और बस एक करारा धक्का और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा बहन की बुर के अंदर,... और बहन की बुर ने उसे भींच लिया कस के .

दो बार की मलाई और कडुआ तेल से गीता की बुर चप चप कर रही थी।




इसलिए सुपाड़े को घुसने में उत्ती दिक्क्त नहीं हुयी, दो तीन धक्के और पूरा सुपाड़ा अंदर पैबस्त हो गया, गीता की बिल में लेकिन एक बार फिर से तेजी से दर्द की लहर उठी और वो उसे पी गयी लेकिन उसे इसका इलाज मालूम था और उसने अपने होंठ भैया के होंठों पे रख दिए , अरविन्द को और इशारा करने की जरूरत नहीं थी , जीभ की नोक से उसने बहिना के रसीले गुलाबी होंठों को खोल दिया और अपनी जीभ बहन के मुंह में पूरी अंदर तक घुसेड़ दिया।




यही स्वाद तो हर बहन चाहती ,है नीचे वाले मुंह में भैया का खूंटा धंसा हो और ऊपर वाले मुंह में भैया की जीभ। अरविन्द ने अपने होंठों से उसके होंठों को एकदम सील करदिया था , कभी बहन के होंठों को चूस चूस के उसका रस लूटता तो कभी हलके से दांत गड़ा देता,

बेचारी गीता सिसक भी नहीं पाती पर इसी बेबसी के लिए तो हर बहन तरसती है, और वो चाहती भी यही थी की भैया के जीभ का रस उसे मुंह के अंदर मिले।


उसे कस के दबोच के उसके भाई अरविंद ने चार खूब करारे धक्के लगाए , अब तो बहन चाह के भी चीख नहीं सकती थी , लंड आधे से ज्यादा घुस गया, और उसने धक्का लगाना रोक दिया , एक हाथ कस के बहन के जोबन का रस ले रहा था तो दूसरा क्लिट की हाल चाल,

गीता गरमा रही थी, और वो समझ गयी थी उसे क्या करना है , भैया क्या चाहता है उससे,



वो भी भाई को कस के पकडे थी, और गाँव की लड़की ताकत में किसी से कम नहीं , बस कस के उसने भी भाई पर अपनी बाँहों की पकड़ बढ़ाई और कस के धक्का मारा, पहली बार तो कुछ नहीं हुआ लेकिन दो चार धक्के के बाद लंड इंच इंच कर के उसकी बुर में सरक सरक के अंदर जाने लगा,... बुर उसकी दर्द से फटी जा रही थी लेकिन पहली बार वो खुद धक्के मार मार के इस बदमाश मोटू को घोंट रही थी।

लेकिन आठ दस धक्के के बाद उसकी कमर थकने लगी,...

कुछ देर दोनों रुके रहे पर अब भाई ने नंबर लगाया लेकिन बजाय अंदर पेलने के वो धीरे धीरे सरका के बाहर निकाल रहा था , गीता से नहीं रहा गया,... और अब एक बार उसने धक्को की जिम्मेदारी सम्हाल लिया और जितना बाहर निकला था वो एक बार फिर से अंदर,...


बारिश तेज हो गयी थी , और हवा का रुख बदल गया था।




खुली खिड़की से तेज बौछार अब पलंग पे आ रही थी और दोनों भाई बहन भीग रहे थे, लेकिन जोश में कोई कमी नहीं थी। जैसे बारिश में भी सहेलियां , ननद भौजाई , सावन में भीगते हुए भी झूले का मजा लेती रहती हैं, ... उसी तरह दोनों बारी बारी से झूले की पेंग की तरह धक्के लगा रहे थे, जल्दी किसी को नहीं थी , भाई दो बार बहन की बुर में झड़ चुका था वैसे भी वो लम्बी रेस का घोडा था , बीस पच्चीस मिनट के पहले और अबकी तो तीसरा राउंड था,...

और बहन भी अब दर्द की दरिया पार कर सिर्फ खुल के मजे ले रही थी और समझ रही थी की नयी नयी आयी भौजाइयों को क्यों रात होते ही नींद आने लगती है , जम्हाई भरने लगती हैं पिया के पास जाने को।

आठ दस मिनट के बाद ही अबकी पूरा मोटू गीता के अंदर घुसा , लेकिन एक बार जैसे ही बच्चेदानी पे धक्का लगा , गीता कापने लगी, झड़ने लगी , पर भाई अबकी रुका नहीं , दोनों हाथों से उसने कस के बहन की चूँची पकड़ के , पहले तो कुछ देर तक मसला और जैसे ही बहन का कांपना रुका , एकदम तूफानी धक्के ,...



हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे , आलमोस्ट पूरा लंड बाहर और फिर रगड़ते दरेरते चूत फाड़ते पूरी ताकत से बहन की बच्चेदानी पे जबरदस्त चोट मारता और बहन काँप जाती, कुछ दर्द से लेकिन ज्यादा मजे से,... दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद जब गीता झड़ी तो साथ साथ उसका भाई अरविन्द भी उसकी चूत में


दोनों थोड़ी देर में ही नींद में गोते लगा रहा थे, देस दुनिया से बेखबर। भाई बहन तीन बार के मिलन के बाद खूब गहरी नींद,..

 
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Lets Go Waiting GIF by The Tonight Show Starring Jimmy Fallon
update posted, please do read and share you view on my debut in incest story,...
 

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भाग ३१


इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )



रात बाकी बात बाकी




और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ... लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,... उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,... और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई को अपनी बाँहों में बाँध रखा था

बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं

टप टप टप



आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।

आधे पौन घंटे के बाद मन तो भैया का भी कर और छुटकी बहिनिया का भी लेकिन पहल कौन करे?

पहल बहन ने ही की,



उसे लगने लगा की कहीं भैया को ये न लग रहा हो की उनसे कुछ गलत हो गया या उन्होंने छुटकी को चोट लगा दी ये सोच के उन्हें बुरा लग रहा हो , दर्द तो उसे अभी भी बहुत हो रहा था, जाँघे फटी पड़ रही थीं, ' वहां' भी रुक रुक के चिलख उठ रही थी,... पैर उठाने या फ़ैलाने का वो सोच भी नहीं सकती थी , और भैया का था भी कितना लम्बा मोटा,... काला नाग,... जो भैया के मोबाइल में वो देखती थी, उससे भी जबरदस्त,...
लेकिन, उससे रहा नहीं गया, उसने डरते डरते उसे छू लिया,... सो रहा था,...भैया का ' वो ' अभी डरने की कोई बात नहीं थी,...
और पहले वही बोली, ' उसे' हलके से छूते हुए उसने भैया को चिढ़ाया,...

" भैया, सो रहा है , थक गया लगता है ,... "

अब भैया के भी बोल खुले , वो कैसे चुप रहता,... छेड़ते हुए उसके गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बहन से बोला,... "

" तो जगा दे न, ... काहें डर रही है छूने से ,.. "

और बहना क्यों भैया से पीछे रहती, बस पहले छुआ, और अभी तो सो रहा था, तो मुट्ठी में ले भी लिया और पकड़ के हलके से दबा भी दिया।
कित्ता अच्छा लग रहा था छूने में,... पर थोड़ी देर में ही वो चौंक गयी, ' वो ' तो जगने लगा था, फूलने लगा था,... उसके मुंह से निकल गया,...



" भैय्या,... "

" अरे पगली घबड़ा क्यों रही है , वो ख़ुशी से फूल रहा है की इत्ती प्यारी से गुड़िया ने उसे हाथ में ले लिया है , ... अभी इत्ता बोल रही थी , अब डर रही है न , डरपोक " भैया ने उसे चिढ़ाया ,...


और अब उसने और कस के न सिर्फ दबोच लिया , बल्कि भैया जैसे उसकी ब्रा पकड़ के इसे सहलाते थे , .... उस समय भी उस का मन करता था , एक बार बस पकड़ ले , मुट्ठी में ले ले ,... तो बस , अब उसी तरह से वो सहला रही थी , मुठिया रही थी,...


थोड़ी ही देर में वो खूब कड़ा हो हो गया,...वो जान रही थी जाग गया तो वो उसकी फिर ऐसी की तैसी करेगा , करेगा तो कर दे , ... और साथ साथ अपन छोटे छोटे जुबना भी अपने भैया के सीने पे रगड़ रही थी , और आग को हवा दे रही थी,...



भैया अब कैसे चुप रहता , उसके भी हाथ चालू हो गए , और जो छोटे छोटे उभार उसकी नींद उड़ाते थे, थोड़ी देर पहले ही सपने में आ के तंग कर रहे थे , बस सके दोनों हाथों में लड्डू और कस के मसलने रगड़ने लगा , उसके होंठ बहना के होंठ चूमने लगे,...



बाहर बीच बीच में से चांदनी बादलों का घूंघट उठा उठा के भैया बहिन की मस्ती देख रही थी, खिड़की पूरी खुली थी , तूफ़ान के बाद ठंडी ठंडी हवा आ रही थी,... और गीता भी चांदनी में नहाये अपने भाई अरविन्द के बदन को निहार रही थी, एकटक।

और अबकी बहना के होंठ भी चुम्मी का जवाब दे रहे थे, जब भैया की जीभ उसके मुंह में घुसती तो उसकी जीभ भी कबड्डी खेलती, ..

और सबसे मज़ा आ रहा था, उसे भैया के,... नहीं नहीं अब तो ये खिलौना उसका था,.... कित्ते दिन से उसकी सहेलियां ललचाती थीं,
मेरे जीजू का इत्ता लम्बा है, मेरे कज़िन का इत्ता मोटा है, जब घुसता है तो जान निकाल लेता है, गितवा स्साली एक बार ले के देख अंदर,...

और अब तो उसके पास, वो सब साली कमीनी देख लेंगी तो चूत और गाँड़ दोनों फट जाएंगी, ... लम्बा मोटा तो है कितना कड़ा भी है

और प्यारा भी, हाथ में पड्कने में कित्ता अच्छा लग रहा है,

मन तो उसका तभी ललचा गया था जब उसके जुबना को निहारते भैया के शार्ट में खूंटे की तरह तना था,



लेकिन जो छेद भैया ने बाथरूम में उसे देखने के लिए किया था, ... उससे असली फायदा तो उसी का होगया,... और छेद बड़ा तो गितवा ने ही किया था की बाथरूम का हर कोना साफ़ साफ़ दिख जाए, आवाज भी सुनाई दे,... और जो पहली बार उसने भैया का हथियार देखा,
कलेजा मुंह को आ गया,



इत्ता,... इत्ता बड़ा,... कैसे फनफनाया हुआ था ,... और उसे अपने जुबना पे अभिमान भी हुआ की भैया की तो उसके कच्चे टिकोरों ने ही की,...

पर दोनों जाँघों के बीच कितनी लिस लिस हुयी थी, सहेली उसकी फुदक रही थी, बजाय डरने के,



और आज छू के पकड़ के इत्ता मजा आ रहा था ,... हाँ अब वो खूब मोटा हो गया था, उसकी मुट्ठी में ठीक से पकड़ में नहीं आ रहा था, पर,... कभी ऊँगली सी फूले फूले लीची से सुपाड़े को बस हलके से छू लेती, तो कभी मूसल के बेस पे नाख़ून से शरारत से खरोंच लेती और भैया गिनगीना जाता,...

लेकिन उसका सारा बदला भैया उन कच्ची अमियो पे उतार रहा था कभी प्यार से चूसते चूसते कस के कुतर देता तो कभी हलके हलके सहलाते सहलाते, पूरी ताकत से रगड़ देता और मसल देता,



गरमा दोनों गए थे,...

और भैया ने पूछ लिया,
Awesome update 👌👌👌🔥🔥🔥⭐⭐⭐
 

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आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक




और भैया ने पूछ लिया,

" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "

गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...

बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे



उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ

सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,



वो चीखती रही,

वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...





और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...

तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,


पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...

" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "

लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.

" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।



गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,



और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,

पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।


बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...



" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "




" कोई नहीं, "

लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...

" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...

पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...

" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "

झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,



" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.





उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,


" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,


" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "




और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,

" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "



और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,
Ekdam perfect samvad bhai behan ka , superb, amazing update,on right track, almost there.👌👌👌👌👌👌👌👌👌🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
 
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