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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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छुटकी की होली




और भौजी चली देवर को




ननद ने सही कहा था, भाभी लौट के आइयेगा सीधे कुप्पी से पीने को मिलेगी,

यहाँ तक की मेरी सास की समधन, मेरी माँ ने अपनी समधन को दस मोटी मोटी गारियाँ सुनाई थीं, बड़ी सीधी हैं सास तेरी नयी बहू को तो सीधे कुप्पी से ,






और वही हो रहा था,... वो भी खड़े खड़े, वो खड़ी थी, मैं बैठी,...




और मैंने कनखियों से देखा तो छुटकी को एक गोयतिन सास, अरे वहीँ नैना की माँ,... मेरी तरह उसको भी , सीधे कुप्पी से,.. और मेरी सास ने मेरा सर भी अपने दो हाथों से जकड़ रखा था,.. तब तक पिछवाड़े मेरी एक नहीं दो उँगलियाँ घुसीं, और कौन मेरी भाइचॉद ननद,... और जब सास ने छोड़ा तो ननद ने पिछवाड़े से निकली ऊँगली मेरे मुंह में,... ज़रा भाभी को मंजन तो करा दूँ,...



लेकिन मुझसे ज्यादा दुर्गत छुटकी की हो रही थी, सब सासें उसी पर ज्यादा मेहरबान, ... कच्चे टिकोरों को देख के सब का मन ललचाता है चाहे मरद हों या औरतें , खास तौर से बड़ी उम्र की औरतें,...



और छुटकी के ऊपर सबसे पहले चढ़ीं मेरी चचिया सास, ऐसी लिबरा रही थीं , मेरी सास की देवरानी भी सहेली भी, और सास ने पहले ही उन्ही से कच्ची अमिया वाली का भोग लगवाया,

छुटकी ने तो होली में अपने यहाँ भी मिसराइन भौजी, ( जो स्कूल में उसकी वाइस प्रिंसिपल भी थीं और इन्ही चचिया सास की उमर की रही होंगी तो होली में अपनी सबसे छोटी ननदिया को क्यों छोड़तीं, और रीतू भौजी, होली में ननदें गिन पाती हैं क्या ? और चूत चूसना तो वो अच्छी तरह सीख गयी थी,...




तो पांच छह मिनट में वो जब मेरी चचिया सास को झाड़ने के करीब ले गयी, तभी खड़े खड़े सास ने बहुओं को और बेटियों को इशारा किया बस क्या जाल में गौरैया जकड़ती है , ..और उस का सर मेरी सगी ननद ने पकड़ के मेरी चचिया सास की बिल में जबरदस्त चिपका रखा था, और हड़का भी रही थीं,...

उधर मेरी सास मेरे ,


और चचिया सास मेरी छुटकी बहिनिया के ,



मुझे सिर्फ ननद की आवाज सुनाई दे रही थी हड़काते , पुचकारते,... मुंह बंद करने की कोशिश भी मत करना,... अरे भौजी की बहिनिया,... हाँ शाबास , दो चार बूँद ,... अब तो देख बस तू खाली मुंह खोल के रख, ... एक बूँद भी बाहर नहीं जाना चाहिए, ... वरना मार मार के तेरे चूतड़,... शाबास,... अरे तेरी बड़की बहिनिया ने तो खाली दो चार गिलास पिया था , तुझे तो आज आधी बाल्टी पिलाऊंगी , सीधे कुप्पी से ,

आधी दर्जन से तो ऊपर सास थीं , फिर ननदें

मुझे याद आ रहा था मेरी जेठानी ने कैसे कजरी को , नउनिया की बिटिया छुटकी के उम्र की ही होगी , पटक के यहीं , घल घल ,... और मैंने भी तो अपनी सगी छोटी ननद के ऊपर चढ़ के, मेरी सब जेठानियाँ ललकार रही थी और मैंने सुनहला शरबत,... वही इनकी छोटी बहन जिसकी मेरे ममेरे भाई ने हचक के फाड़ी थी,...

और जब मुंह में,...

,,,,,,

,,,,,

तो एक दो सासें कच्चे टिकोरों का मजा ले रही थींतो कोई सास अगवाड़े ऊँगली कर रही थी दूसरी गाँड़ की गहराई नाप रही थी ,




ननदें भी छुटकी के साथ ही,
और उसे गरिया भी रही थीं

" अरे ऊँगली से उचक रही हो , कल से गाँव भर के हमारे भाई सब एही तोहरी गाँड़ि में गोता लगाएंगे, एक निकालेगा दूसरा डालेगा, दीदी के गाँव आयी हो न सही मौसम में लंड का कोई कमी न होगी , न अगवाड़े , न पिछवाड़े,...



तो कोई मेरी गाँव की सासों को ललकार रही थीं , " हाँ चाची तनी ठीक से नाप जोख कर लीजिये,... कल से आपके बेटवा लोग, अरे इनकी बहिनिया को हमरे गाँव का मोट मस्त लंड पसंद आ गया तो अपनी छुटकी बहिनिया को भी ले आयीं। "

और बस थोड़ी देर बाद उस मौके का फायदा उठा के बस अपनी साड़ी मैंने लपेटी और निकल ली,... किसी से मैंने वायदा किया था,...

……..




चंदू से मैंने वायदा किया था,मेरा रिश्ते से देवर,... गाँव की सब औरतें, ननदें, जेठानियाँ, कामवालियां,... सब उसे सांड़ कहती थीं और ब्रम्हचारी भी,

एक दिन मिश्राइन भाभी ने उसका पूरा किस्सा बताया, गाँव में लौंडो को,.. रेख आयी, टनटनाना शुरू हुआ, दूध मलाई बहनी शुरू हुयी,

सबसे पहले तो कोई कामवाली, घर में खेत में, नेवान कर लेती




उसके बाद भौजाइयां, कितनों के तो मरद परदेस कमाने जाते थे तो आधे समय छूंछियाई रहती थीं, तो कच्ची उमर का देवर,... और एक बार मूसल राज को भोग मिल गया, प्रेम गली में आना जाना शुरू होगया तो, मेरे ससुराल की लड़कियां, ननदें , सब की सब मायके की छटी छिनार,...

मैं तो कहती थी ननद और छिनार पर्यायवाची हैं,... झांटे आने के पहले ही लंड ढूँढ़ना शुरू कर देती थी,...




लेकिन चंदू मेरा देवर सच में सांड़ था, मिश्राइन भौजी बोलीं की जो चार चार बच्चो की माँ, गाँव जवार में जिससे कोई मर्द बचा न हो, ... जब रेख आ रही थी, उस उमर में भी, वो सब भोंसड़ी वाली भी, जितना गौने की रात में न चीखी होंगी उससे ज्यादा,..

कुछ दिन में सब उससे कतराने लगीं, सिर्फ वही कामवालियां , .. उसमें से भी कोई एक नयी लड़की थी, ... कुँवारी तो नहीं,.. लेकिन शादी हो गयी थी, गौना नहीं हुआ था गाँव के दो चार बाबू साहेब चढ़ चुके थे और थी भी शौक़ीन,... बहुत चिल्लाई वो और क्या नहीं कहा, ... चंदू को,...


बस उसी के बाद,...

सिर्फ रमजानिया जो उसके यहाँ काम करती थी उसी से उसकी पटती थी,... उसने बहुत समझाया भी की भैया , चुदवाने से आज तक कोई लौंडियाँ नहीं मरी, स्साली छिनरपना कर रही थी,...




डेढ़ साल से ऊपर हो गए, तब से चंदू लंगोट का पक्का, एकदम ब्रम्हचारी,... लड़कियों औरतों के देख के आँखे नीची कर लेता, कोई भौजाई कुछ बोलती भी , तो बस रास्ता काट के निकल जाता,...



हाँ मेरी बात अलग थी, मुझे देख के खुद साइकिल से उतर के नमस्ते करता, लेकिन मैं भी क्या करती, रिश्ते से भौजाई थी, बिना मज़ाक किये देवर से छोड़ दूँ,... और मज़ाक भी एकदम खुल्ल्म खुल्ला,... वो जवाब तो नहीं देता था,... लेकिन उसके गाल इतने शरम से लाल हो जाते थे की बस यही मन करता था की कचकचा के काट लूँ , सच्ची इतनी तो इस गाँव की कोई लड़की भी नहीं शरमाती,...


मेरी ननदें मुझे चिढ़ाती भीं, चढाती भी ,

एक बोलती की कउनो उर्वशी मेनका आएगी तभी चंदू भैया का ब्रम्हचर्य भंग होगा,... तो दूसरी बोलती, हमार नयकी भौजी कउन उर्वशी मेनका से कम है, भउजी अबकी फागुन में देवर क,...

Intjar to hame bhi he chandu ka kissa
 

Shetan

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देह की होली



उसकी लंगोट की गाँठ,...



नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था,





लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ, और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,... लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी , लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,...


कड़ा तो लोहे का रॉड,




पर अभी तो होली होनी थी तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,



और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,



मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,



बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।



और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...



शुरुआत तो मैंने ही की और उसे आँख से भी बरज दिया , मुंह से बोल के भी साफ़ साफ़ मना कर दिया और हाथ से भी पकड़ के रोक दिया, की मैं बड़ी हूँ, भौजाई हूँ, जो करुँगी मैं करुँगी , डालूंगी मैं वो अपनी बहनों की तरह चुपचाप डलवा ले,

और अखाड़े में उसे पटक के अखाड़े की मिटटी में ही गिरा दिया, और चढ़ गयी ऊपर,...



लंगोट रंग और कीच लगाने के लिए तो मैंने पहले ही ढीला कर दिया था, अबकी खोल के दूर फेंक दिया, भौजी देवर के बीच में लंगोट का क्या काम,... साड़ी मेरी छल्ले की तरह बस कमर से फंसी,


और फटा पोस्टर निकला हीरो,... और क्या हीरो था,


सच में जबरदस्त, लम्बाई तो मैंने पहले ही नाप ली थी, मेरे बीत्ते से भी एकाध इंच बड़ा ही रहा होगा, लेकिन जो देख के दिल दहल गया, वो था सुपाड़ा खूब मोटा तो था ही एकदम कड़ा, धूसर, बस पेशाब वाला छेद हलका सा दिखता था, लाल गुलाबी,




और अब मैं समझी मेरी एक से एक छिनार ननदों की भी मेरे इस देवर के आगे क्यों फटती थी, इस मोटे कड़े सुपाड़े को लीलने में भी भोंसड़ी वालियों की फूंक सरक जाती होगी,... पर मैं तो भौजाई थी, ...

अखाड़े में का देसी कडुआ तेल उठा के,... नहीं सुपाड़े पे नहीं पोता मैंने , ... सुपाड़ा दबा के छेद खोल के, जैसे मेरी देवर की माँ बचपन में लगाती होंगी, ... बस उसी तरह टप टप, बूँद बूँद सरसों का तेल,... मुझे मालूम था खूब छरछरा रहा होगा, छरछराये , मेरी भी तो परपरायेगी जब ये पेलेगा,... और फिर बाकी का तेल अपनी हथेली में लगा के बाकी के शिश्न पे,एकदम जड़ से लेकर,... जैसे पहलवान अखाड़े में कुश्ती लड़ने से पहले ढेर सारा तेल चुपड़ते हैं,




और मैंने अपनी गुलबिया में भी दो ऊँगली में ढेर सारा तेल चुपड़ के, एकदम अंदर तक, ...

असल में जो लौंडिया चुदने में चिल्लाती हैं एक तो छिनरपना और नौटंकी, स्साली शुद्ध नौटंकी और दूसरे, तैयारी नहीं करतीं चुदवाने के लिए जैसे सादी बियाह खाली मरद के चोदने के लिए होता है, लड़की को तो कुछ चहिये ही नहीं, मेरी तो जिस दिन से से इन लोगों ने लड़की देख के हाँ कहा था, बस तिलक बरीक्षा तो दूर, बस उसी दिन से, भाभियाँ तो छोड़िये, माँ मेरी उन से भी ज्यादा, गुलबिया को तेल पिलाया की नहीं, चिक्कन मुककन किया की नहीं,...



हाँ, देवर के सुपाड़े के लिए मेरी जीभ, होंठ, मुंह थे न,...


पहले वही पेशाब वाले छेद पर, जीभ की टिप डाल के जो सुरसुरी की मेरे देवर की महतारी की फट गयी,




उसके बाद जीभ से लपड़ सपड़ सुपाडे को चाट चाट के अपने थूक गीला कर दिया, और साथ में मेरे तेल लगे हाथ, देवर के लंड को मुठिया मुठिया के , बहुत मोटा बांस था, पूरी तरह से मुट्ठी में नहीं आ पा रहा था,...





और फिर भौजाई चढ़ गयी देवर की बांस की पिचकारी के ऊपर, मोटा मूसल,... लेकिन देवर पहलवान था तो भौजाई भी उस अखाड़े के जबरदस्त खिलाड़न,...

मैंने पहले दो ऊँगली डाल के अपनी बुर की फांको को फैला दिया, एकदम कैंची की खुली फाल की तरह, पूरी ताकत से,जाँघे भी पूरी तरह खुलीं,... और मेरी रसीली फांकों के बीच बस मैंने सुपाड़े को फंसा दिया, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा, ... बस एक तिहाई फंसा होगा, पर इतना काफी था मेरे लिए, ...

अरे गन्ने अरहर के खेत में कुँवारी नयी उमर वाली जब जांघ के नीचे आती है तो गाँव के लौंडे बस , इतना भी सुपाड़ा भी घुस जाए तो फिर तो लड़की चाहे जितना रोये गरियाये , दुहाई दे, कोर्ट पुलिस का , बाप महतारी का नाम ले , बिन चोदे नहीं छोड़ते

तो मैं इत्ते मस्त देवर को क्यों छोड़ती,


तो मैंने भी नहीं छोड़ा,

बस गहरी सांस ले के, देवर के दोनों हाथ पकड़ के, ये मान के की आज इज्जत की बात है अगर मैंने इसकी इज्जत आज न लूटी , ... और पूरी ताकत से धक्का मार दिया,




चुदाई में जैसे लंड की लम्बाई मोटाई के साथ कमर का जोर और चूतड़ की ताकत लगती है वही बात जब औरत ऊपर होती है , तो मेरी कमर की ताकत किसी मर्द से कम नहीं थी, ...

गप्पांक, दो तीन धक्के और सुपाड़ा पूरा अंदर,... लेकिन उतने में ही मेरी माँ बहन सब चुद गयीं। लग रहा था मेरी बुर की एक एक मांसपेशियां फट के अलग अलग हो जाएंगी, जैसे किसी ने एक नहीं दो दो मुट्ठियां एक साथ मेरी बुर में जबरदस्ती पूरी ताकत से ठेल दी हों,... दर्द जाँघों तक फ़ैल गया था, लेकिन मैं जानती थी अगर इस समय मैं ज़रा भी चीखी, दर्द मेरे चेहरे पर आया तो मेरा ये देवर,... फिर कभी किसी लड़की की ओर मुंह भी नहीं करेगा,


दर्द मैं पी गयी, घूँट घूँट, औरत का जनम ही दर्द पीने के लिए होता है,


और फिर मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही थे , इस मर्द के लिए,... मेरे जोबन पर तो जान देता था वो, बस उसके दोनों हाथ अपने हाथों से खींच के मैंने अपनी भरी भरी छातियों पर रख दिया, और जिस तरह से उसे मुस्करा के देखा, कोयी भी पागल हो जाता,... और मेरा देवर तो पहले ही पागल था भाभी के जुबना पर, पहले तो झिझकते हुए उसने पकड़ा कुछ देर सहलाया, फिर पूरी ताकत से, सच्च में असली मर्द, जिस लड़की के हिस्से आएगा न उसकी जवानी धन्य हो जायेगी, ...




और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...
Mukabla kate ka he.
 

Shetan

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देवर की बारी,

उसकी पिचकारी




और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...



कुछ देर के लिए मैं फिर रुक गयी, लेकिन देवर से अब नहीं रहा गया, मैं भी गोल गोल कमर घुमा के , कभी आगे पीछे हो के , क्या कोई मरद चोदेगा जिस तरह से मैं ऊपर चढ़ के,... वो भी अब नीचे से धक्का लगा के साथ दे रहा था, पर जब उससे नहीं रहा गया तो मेरी पतली कमरिया पकड़ के, उसने मुझे अपनी ओर खींचा और नीचे से भी धक्का मारा, पांच छह धक्के और अब मैंने पूरा घोंट लिया था,

और उसकी छाती पे लेट के अपने जोबन कभी उसकी छाती पर रगड़ती कभी उठ के उसके होंठों पर रगड़ देती, और भौजी हो और होली न हो , तो हाथ फैला के बगल की नाली से कीच निकाल के एक बार फिर से उसके मुंह पे , सीने पे,





कुछ देर की मस्ती के बाद, कमान देवर ने अपने हाथ में ले ली , मैं अब नीचे थी वो ऊपर , लेकिन मैंने इत्ते कस के मूसल भींच रखा था , ज़रा भी सरक के बाहर नहीं आया,... और उसके बाद तो क्या उसने धुनाई की, हर धक्का बच्चेदानी पर लगता था, ...


मुझे अब समझ में आ रहा था , चार चार बच्चो वाली माँ, काम करने वाली सब क्यों हार मान जाती थी, साइज के साथ ये जो तूफान मेल चलाता था,... एक पल के लिए भी सांस नहीं लेने देता था, पर मैं पूरा साथ दे रही थी,नीचे से चूतड़ उछालती , उसकी पीठ पे अपने नाख़ून धंसाती , और ज़रा भी सुस्ताता वो तो उसकी माँ भीं सब गरिया देती, ... मैं कितनी बार झड़ी पता नहीं, तीन चार बार तो कम से कम , और मुझे झाड़ना आसान नहीं था, तब भी,




मुझे समझ में आ गयी थी इसकी परेशानी, जैसे कोई भुक्खड़ हो , लगता हो कहीं सामने से थाली न छीन जाए,... हबड़ हबड़, जल्दी जल्दी, बस जो दो चार बार औरतों ने उसे मना कर दिया, बस उसे लगा की वो मना करें उसके पहले अपने मन की कर ले,...

और टाइम भी उसे बहुत लगता था , ताकत भी बहुत थी और औजार भी पूरा बुलडोजर था ,... बस अगर यही काम वो धीमे धीमे करता , कुछ देर तक लड़की को उसके लंड की आदत लग जाती फिर , थोड़ा और , फिर थोड़ा और,...

और एक बार अगर चीख पुकार ज्यादा हो तो रुक के थोड़ा चुम्मा चाटी, थोड़ा चूँची चूसता, क्लिट सहलाता, और उसे इतना गरम कर देता की वो खुद चुदवाने के लिए चिल्लाने लगती,



जो लग जल्दी झड़ते है उन्हें हड़बड़ी होती है, पर इसको तो आराम आराम से,



तलवार जबरदस्त थी, तलवार चलाने की ताकत भी बहुत थी, बस तलवार के पैंतरे सीखने बाकी थे,...

और आखिर भौजाइयां क्यों होती हैं तो बस ये जिम्मेदारी मेरे ऊपर, चंदू का आज ब्रह्मचर्य तो मैंने तुड़वा ही दिया, अब उसे नंबरी चुदक्क्ड़ बनाना था, गाँव की जितनी कुँवारी लड़कियां उसकी बहनें लगती हैं, चुदी, बिनचुदी, सब पर उसे चढ़ाउंगी,..




पर अभी मैं उसे रोक नहीं रही थी, अब मैं उसके इन तूफानी धक्को का मजा ले रही थी, गाँव में इस तरह खुले में, मस्त चुदने का और वो भी ऐसे मूसल छाप से, पहला मौक़ा था मेरा,...

पूरे आधे घंटे की नॉन स्टाप चुदाई के बाद झड़ा वो और पांच दस मिनट मैं उसे कस के अपनी बांहों में रही, मेरी कल कल मेरे इस देवर ने ढीली कर दी थी... और जब वो निकला बाहर तो मेरी आँखे फैली की फैली रह गयीं, एक तो इतनी ज्यादा मलाई, उसके गाँव की सब कुँवारी गाभिन हो जातीं,...

मेरी कटोरी ऊपर तक बजबजा रही थी और साथ में बह बह के मेरी जाँघों पर ,



देवर भाभी की असली होली तो यही सफ़ेद रंग वाली होली है, पिचकारी तो मेरे इस देवर की जबरदस्त है ही, रंग भी खूब गाढ़ा और ढेर सारा,..दूसरी बात अच्छी तरह झड़ने के बाद भी , अभी भी ६-७ इंच का और जितना सोया उससे ज्यादा जागा।


और ऊपर से मेरे देवर के ब्रम्हचारी बनने का चक्कर,... मैं अलसा रही थी , और सोच रही थी,

गाँव का टेलीग्राफ, आज शाम नहीं तो कल तक पूरे गाँव की मेरी सारी जेठानियों, ननदों को मालूम पड़ जाएगा, ... उर्वशी मेनका की तरह, नयकी भौजी ने भी,... मैं अपने देवर को देख के मुस्करा रही थी, देखने में भी एकदम कामदेव का अंश, और तीर भी उसका,...




और वो भी मुस्करा रहा था, पहली बार वो किसी पर चढ़ा था और वो चीख चिल्ला नहीं रही थी, उसे गरिया नहीं रही थी,..



उसे अपनी ओर खींच लिया मैंने और बाँहों में भर के देर तक चूमती रही, होंठों पर मुंह में जीभ डाल के सीने पर अपने उभार रगड़ रगड़ के,... पता नहीं क्या खाते हैं इस गाँव के लौंडे, मरद,... झंडा खड़ा होना शुरू हो गया, अब वो खूंटा तो मेरा था तो बस मैंने अपने मुट्ठी में, नहीं नहीं मुठिया नहीं रही थी, बस हलके से पकड़ के महसूस कर रही थी, उसका कड़ापन, मुटाई,... इत्ता अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती,...

Apni chhutki ko is shand ke pas mat le aana
 

Shetan

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देवर की देवरानी




जहाँ वह लड़कियों के नाम से घबड़ाता, गाँव की औरतों की परछाई देख के दूर हो जाता, आज वहीँ एकदम खुले में , ट्यूबवेल के नीचे, अमराई में , अखाड़े में./


करीब पौने तीन घंटे मैं रही और तीन बार,... कुछ भीगी, कुछ सूखी साडी मैंने देह में लपेट ली , चोली भी जस तस बाँध ली , लेकिन चलने के पहले मैंने उसे एक बार हड़काया,... और चूमा भी,...

" सांझ को फिर आउंगी देवर जी, समझ लो, इन्तजार करना,... और एक बार फिर से,... "

मैं बोल ही रही थी की उसने बोलने की कोशिश की, बस कस के चूम के मैंने उसका मुंह बंद कर दिया और हड़का भी लिया, गरिया भी दिया,...

" तो कहाँ जाओगे, तोहरी महतारी कउनो बयाना दी हैं, उनके भोंसड़ा चोदने का मन कर रहा है, अरे मुझे मालूम है गाँव का रिवाज, एक पहर रात होने से पहले तो तुम गाँव में कदम भी नहीं रख सकते,... मज़ा आया न , तो शाम को फिर से,... "




असल में मुझे यह डर था की यह ब्रम्हचारी कहीं फिर से अपनी उस ब्रम्हचारी वाली खोल में न घुस जाए, इसलिए उसे चूत का चस्का ठीक से लग जाने के लिए दुबारा, तिबारा, चार पांच दिन में तो ये खुद चूत ढूंढता फिरेगा, और पूरे गाँव में नयकी भौजी ने जो बीड़ा उठाया था , उसे पूरा कर दिया ये भी मशहूर हो जायेगा,...

एकदम उसी तरह जिस तरह जेठानियाँ अपनी नयी देवरानी के मन से डर, हिचक दूर करने के लिए, पहली रात को अपने देवर को समझा बुझा के भेजती हैं,




" दुलहिन चाहे जितना नखड़ा करे, बहाना बनाये, ... मैंने चेक कर लिया है उसकी पांच दिन वाली छुट्टी अभी पांच दिन पहले ख़तम हुयी है,... टाँगे सिकोड़े, जाँघे भींचे , लहंगे के नाड़े पर हाथ न रखने दे,...छोड़ना मत उसको,... फटेगी तो उसकी आज ही रात,... और कोई मुर्रवत नहीं, चीखने देना, खूब खून खच्चर होगा तो होगा , दूसरे कम से कम तीन बार,... और हर बार मलाई पूरी की पूरी अंदर,... "





और अगले दिन, फिर दिन में कुछ न कुछ बहाना बना के अपनी देवरानी को देवर के पास छोड़ आतीं हैं , जिससे एक दो बार दिन दहाड़े भी , बस दो चार दिन में नई दुल्हिन के खुद खुजली मचने लगती है , खुद ही लंड का इन्तजार करती है... और यही हालत इस की भी होने वाली है , दो चार दिन, दोनों जून ,... उसके बाद तो ये खुद,...

और एक बात मैंने उससे कही चलने के पहले, पहले तो उसे बिस्वास नहीं हुआ , फिर खुस हुआ फिर लजा गया,...



लेकिन उसके पहले उससे अपना रिश्ता समझा देती हूँ,...


मेरे ससुर के दो बेटे, एक तो जेठ जी, जो अक्सर बाहर रहते हैं,... ससुर जी का बंबई में काफी कारोबार था वो देखते हैं,...

और छोटे ये मेरे साजन, उसी तरह मेरे अजिया ससुर के भी दो बेटे बड़े मेरे ससुर जी और छोटे मेरे चचिया ससुर, जो अब नहीं है , मिलेट्री में बड़े अफसर थे,... लड़ाई में,... ये मेरा देवर उन्ही का एकलौता लड़का, ...


मेरे अजिया ससुर बड़े जमींदार थे , पन्दरह बीस गाँव की जमींदारी, और अपने रहते ही उन्होंने सब कुछ दोनों बेटों में , मेरे ससुर और मेरे चचिया ससुर में बाँट दिया था, पचासो बीघे तो गन्ने के खेत, बाग़ ,



और भी बहुत,... लेकिन रिश्ता अभी भी एकदम घर का, गलती से भी कभी मैं या कोई भी चचिया नहीं बोलती थी,... और एक बात, मेरी जेठानी के कुछ बच्चेदानी में प्रॉब्लम थी इसलिए उनके लिए बच्चा होना मुश्किल था,... और मेरे इस देवर ने ब्रम्हचारी होने का फैसला कर लिया था और जिद्दी बचपन का,...

तो एक दिन मेरे देवर की माँ, मेरी चचिया सास, मेरी सास के पास, मैं भी थी वहां,... इतनी उदास मेरी सास से बोलने लगी, अब हमार बंस नहीं चलेगा, बात मेरी सास और हम दोनों समझते थे, उनका एकलौता लड़का , मेरा देवर और उसने तय कर लिया था शादी नहीं करेगा, इतनी जमीन जायदाद,... बस आंसू नहीं गिर रहे थे ,




मुझे भी बहुत खराब लग रहा था, लेकिन बात और माहौल बदलने में मेरी सास का कोई मुकाबला नहीं था,... एक बार उन्होंने मुस्करा के मेरी ओर देखा , फिर मेरी चचिया सास को,... और उनकी ठुड्डी पकड़ के बोलीं,...
" तोहें कौन लाया था देवर के लिए,... "




इस उम्र में भी मेरी चचिया सास लजा गयीं, आँखे झुक गयीं , उदास चेहरे पर वो बात याद कर के मुस्कान आ गयी और वो बोलीं,...

" और कौन , आप लायी थीं , उस जमाने में लड़की देखने का कौन रेवाज थोड़े ही था,... "

मेरी ओर इशारा कर के , मेरी सास उनसे बोलीं,

" बस, तो ये हमार तोहार चिंता क बात थोड़े है , हैं न जेठानी,... ये लाएंगी अपने लिए देवरानी काहें को परेशान हो रही हैं, इसका काम है , ये जाने,... "

बस मेरे लिए इशारा काफी था, मैं उनसे हँसते हुए बोली,...


"एकदम, घबड़ाइये मत मेरी जिम्मेदारी है आप काहे को परेशान हो रही हैं, देवरानी मेरी मैं लाऊंगी न,... और सिर्फ लाऊंगी नहीं , जिस दिन देवरानी आएगी न उसके ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा , ... अभी से तैयारी कर लीजिये, देवरानी उतारने के लिए चुनरी लूंगी और पोता होने क पियरी , और उसकी दोनों दादी लोगन क सोहर के साथे जम के गारी सुनाऊँगी। "




वो इतनी खुश,... उनसे बोला नहीं जा रहा था, मुश्किल से बोलीं,...

" अरे बहू तोहरे मुंह में घी गुड़,... देवरानी लाने क जिम्मेदारी तो सच में तोहरे हैं "



तो बस, मैंने देवर से वही कहा था, ...

" जब तक देवरानी नहीं आती, ... "

मेरी बात पूरी होने के पहले ही उसके मुंह से कौन निकल गया,


और मैंने जोर से हड़का लिया,

" देवरानी मेरी है की तुम्हारी, ... तुमसे मतलब कौन होगी मेरी देवरानी, तेरी आँख में पट्टी बाँध के ले जाउंगी, बियाह के अपनी देवरानी ले आउंगी, ... हाँ उसके बाद तोहरे हवाले ,... फिर कर लेना अपने मन की,... लेकिन ले मैं ही आउंगी और जल्द ही , समझ लो "....




और उसके बाद मैं मंजू भाभी की ओर मुड़ चली , वहां भी एक किशोर देवर, एक कच्चा केला इन्तजार कर रहा था।







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Ab dewarani ki kya jarurat he. Ek bahuriya hi kafi thi. Sab ko sambhal hi legi
 

Shetan

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Thanks so much, aapke aise comment padh ke hi kahani likhne ki saari emhnat vasool ho jaati hai
Ye bhi me aap ka badhpan hi samzungi. Vese padhne vala kuchh kahene pe manzur ho jata he. Aap vo sayar ho jo kisi tarif ka mohtaj nahi. Khud khud chal kar bande se puchhe bata teri raza kya he.
 

komaalrani

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Apni chhutki ko is shand ke pas mat le aana
apane ekdam sahi kaha, Chandu ka mukabla to main hi kar skati hun ya jo Devarani Dhundhungi vo karegi, Chhutaki ko to usase door hi Rakhungi
 

Shetan

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apane ekdam sahi kaha, Chandu ka mukabla to main hi kar skati hun ya jo Devarani Dhundhungi vo karegi, Chhutaki ko to usase door hi Rakhungi
Hmmm pyari gudiya ko to sirf uske jijy or apne saiya ke sath hi rakhna.
 

komaalrani

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My other story in this forum, Joru ka Gullam has registered 1.1. + Million views, thanks friends
 

komaalrani

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Hmmm pyari gudiya ko to sirf uske jijy or apne saiya ke sath hi rakhna.
aage aage dehhiye. meri Nanina naandiya aur meir saas to poora Gaon uspe chadhane ki taiyaari kar ke baithi hain, aap ke coment is story ke liye bahoot supportive hain, thanks sooooooo much.
 

Shetan

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aage aage dehhiye. meri Nanina naandiya aur meir saas to poora Gaon uspe chadhane ki taiyaari kar ke baithi hain, aap ke coment is story ke liye bahoot supportive hain, thanks sooooooo much.
Komalji aap ek chij miss kar rahi he. Kabhi samdhi samadhan ka bhi mel karwado. Bahuriya ke samne
 
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