Shetan
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Intjar to hame bhi he chandu ka kissaछुटकी की होली
और भौजी चली देवर को
ननद ने सही कहा था, भाभी लौट के आइयेगा सीधे कुप्पी से पीने को मिलेगी,
यहाँ तक की मेरी सास की समधन, मेरी माँ ने अपनी समधन को दस मोटी मोटी गारियाँ सुनाई थीं, बड़ी सीधी हैं सास तेरी नयी बहू को तो सीधे कुप्पी से ,
और वही हो रहा था,... वो भी खड़े खड़े, वो खड़ी थी, मैं बैठी,...
और मैंने कनखियों से देखा तो छुटकी को एक गोयतिन सास, अरे वहीँ नैना की माँ,... मेरी तरह उसको भी , सीधे कुप्पी से,.. और मेरी सास ने मेरा सर भी अपने दो हाथों से जकड़ रखा था,.. तब तक पिछवाड़े मेरी एक नहीं दो उँगलियाँ घुसीं, और कौन मेरी भाइचॉद ननद,... और जब सास ने छोड़ा तो ननद ने पिछवाड़े से निकली ऊँगली मेरे मुंह में,... ज़रा भाभी को मंजन तो करा दूँ,...
लेकिन मुझसे ज्यादा दुर्गत छुटकी की हो रही थी, सब सासें उसी पर ज्यादा मेहरबान, ... कच्चे टिकोरों को देख के सब का मन ललचाता है चाहे मरद हों या औरतें , खास तौर से बड़ी उम्र की औरतें,...
और छुटकी के ऊपर सबसे पहले चढ़ीं मेरी चचिया सास, ऐसी लिबरा रही थीं , मेरी सास की देवरानी भी सहेली भी, और सास ने पहले ही उन्ही से कच्ची अमिया वाली का भोग लगवाया,
छुटकी ने तो होली में अपने यहाँ भी मिसराइन भौजी, ( जो स्कूल में उसकी वाइस प्रिंसिपल भी थीं और इन्ही चचिया सास की उमर की रही होंगी तो होली में अपनी सबसे छोटी ननदिया को क्यों छोड़तीं, और रीतू भौजी, होली में ननदें गिन पाती हैं क्या ? और चूत चूसना तो वो अच्छी तरह सीख गयी थी,...
तो पांच छह मिनट में वो जब मेरी चचिया सास को झाड़ने के करीब ले गयी, तभी खड़े खड़े सास ने बहुओं को और बेटियों को इशारा किया बस क्या जाल में गौरैया जकड़ती है , ..और उस का सर मेरी सगी ननद ने पकड़ के मेरी चचिया सास की बिल में जबरदस्त चिपका रखा था, और हड़का भी रही थीं,...
उधर मेरी सास मेरे ,
और चचिया सास मेरी छुटकी बहिनिया के ,
मुझे सिर्फ ननद की आवाज सुनाई दे रही थी हड़काते , पुचकारते,... मुंह बंद करने की कोशिश भी मत करना,... अरे भौजी की बहिनिया,... हाँ शाबास , दो चार बूँद ,... अब तो देख बस तू खाली मुंह खोल के रख, ... एक बूँद भी बाहर नहीं जाना चाहिए, ... वरना मार मार के तेरे चूतड़,... शाबास,... अरे तेरी बड़की बहिनिया ने तो खाली दो चार गिलास पिया था , तुझे तो आज आधी बाल्टी पिलाऊंगी , सीधे कुप्पी से ,
आधी दर्जन से तो ऊपर सास थीं , फिर ननदें
मुझे याद आ रहा था मेरी जेठानी ने कैसे कजरी को , नउनिया की बिटिया छुटकी के उम्र की ही होगी , पटक के यहीं , घल घल ,... और मैंने भी तो अपनी सगी छोटी ननद के ऊपर चढ़ के, मेरी सब जेठानियाँ ललकार रही थी और मैंने सुनहला शरबत,... वही इनकी छोटी बहन जिसकी मेरे ममेरे भाई ने हचक के फाड़ी थी,...
और जब मुंह में,...
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तो एक दो सासें कच्चे टिकोरों का मजा ले रही थींतो कोई सास अगवाड़े ऊँगली कर रही थी दूसरी गाँड़ की गहराई नाप रही थी ,
ननदें भी छुटकी के साथ ही,
और उसे गरिया भी रही थीं
" अरे ऊँगली से उचक रही हो , कल से गाँव भर के हमारे भाई सब एही तोहरी गाँड़ि में गोता लगाएंगे, एक निकालेगा दूसरा डालेगा, दीदी के गाँव आयी हो न सही मौसम में लंड का कोई कमी न होगी , न अगवाड़े , न पिछवाड़े,...
तो कोई मेरी गाँव की सासों को ललकार रही थीं , " हाँ चाची तनी ठीक से नाप जोख कर लीजिये,... कल से आपके बेटवा लोग, अरे इनकी बहिनिया को हमरे गाँव का मोट मस्त लंड पसंद आ गया तो अपनी छुटकी बहिनिया को भी ले आयीं। "
और बस थोड़ी देर बाद उस मौके का फायदा उठा के बस अपनी साड़ी मैंने लपेटी और निकल ली,... किसी से मैंने वायदा किया था,...
……..
चंदू से मैंने वायदा किया था,मेरा रिश्ते से देवर,... गाँव की सब औरतें, ननदें, जेठानियाँ, कामवालियां,... सब उसे सांड़ कहती थीं और ब्रम्हचारी भी,
एक दिन मिश्राइन भाभी ने उसका पूरा किस्सा बताया, गाँव में लौंडो को,.. रेख आयी, टनटनाना शुरू हुआ, दूध मलाई बहनी शुरू हुयी,
सबसे पहले तो कोई कामवाली, घर में खेत में, नेवान कर लेती
उसके बाद भौजाइयां, कितनों के तो मरद परदेस कमाने जाते थे तो आधे समय छूंछियाई रहती थीं, तो कच्ची उमर का देवर,... और एक बार मूसल राज को भोग मिल गया, प्रेम गली में आना जाना शुरू होगया तो, मेरे ससुराल की लड़कियां, ननदें , सब की सब मायके की छटी छिनार,...
मैं तो कहती थी ननद और छिनार पर्यायवाची हैं,... झांटे आने के पहले ही लंड ढूँढ़ना शुरू कर देती थी,...
लेकिन चंदू मेरा देवर सच में सांड़ था, मिश्राइन भौजी बोलीं की जो चार चार बच्चो की माँ, गाँव जवार में जिससे कोई मर्द बचा न हो, ... जब रेख आ रही थी, उस उमर में भी, वो सब भोंसड़ी वाली भी, जितना गौने की रात में न चीखी होंगी उससे ज्यादा,..
कुछ दिन में सब उससे कतराने लगीं, सिर्फ वही कामवालियां , .. उसमें से भी कोई एक नयी लड़की थी, ... कुँवारी तो नहीं,.. लेकिन शादी हो गयी थी, गौना नहीं हुआ था गाँव के दो चार बाबू साहेब चढ़ चुके थे और थी भी शौक़ीन,... बहुत चिल्लाई वो और क्या नहीं कहा, ... चंदू को,...
बस उसी के बाद,...
सिर्फ रमजानिया जो उसके यहाँ काम करती थी उसी से उसकी पटती थी,... उसने बहुत समझाया भी की भैया , चुदवाने से आज तक कोई लौंडियाँ नहीं मरी, स्साली छिनरपना कर रही थी,...
डेढ़ साल से ऊपर हो गए, तब से चंदू लंगोट का पक्का, एकदम ब्रम्हचारी,... लड़कियों औरतों के देख के आँखे नीची कर लेता, कोई भौजाई कुछ बोलती भी , तो बस रास्ता काट के निकल जाता,...
हाँ मेरी बात अलग थी, मुझे देख के खुद साइकिल से उतर के नमस्ते करता, लेकिन मैं भी क्या करती, रिश्ते से भौजाई थी, बिना मज़ाक किये देवर से छोड़ दूँ,... और मज़ाक भी एकदम खुल्ल्म खुल्ला,... वो जवाब तो नहीं देता था,... लेकिन उसके गाल इतने शरम से लाल हो जाते थे की बस यही मन करता था की कचकचा के काट लूँ , सच्ची इतनी तो इस गाँव की कोई लड़की भी नहीं शरमाती,...
मेरी ननदें मुझे चिढ़ाती भीं, चढाती भी ,
एक बोलती की कउनो उर्वशी मेनका आएगी तभी चंदू भैया का ब्रम्हचर्य भंग होगा,... तो दूसरी बोलती, हमार नयकी भौजी कउन उर्वशी मेनका से कम है, भउजी अबकी फागुन में देवर क,...
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