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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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Ha me padhte padhte ruk gai thi. Me samaz gai ki aap ko problem hogi. Aap post kar rahi thi.. aap ki story post ho rahi thi to notification problem create karti. Par maza aaya. Me kab se is story ke updates ka wait kar rahi thi. Maza aa gaya
thanks so much
 

komaalrani

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भाग ५१ भैया के संग अमराई में पृष्ठ ४५६

  • भाग ५० माँ का नाइट स्कूल पृष्ठ ४३५
  • भाग ४९ मस्ती -माँ, अरविन्द और गीता की पृष्ठ ४२० –
  • भाग ४८ - रोपनी -फुलवा की ननद पृष्ठ 394
  • भाग ४७ रोपनी पृष्ठ ३७५
  • भाग ४६ तीन सहेलियां खड़ी खड़ी, किस्से सुनाएँ घड़ी घड़ी पृष्ठ ३६३
  • भाग ४५ गीता चली स्कूल पृष्ठ ३४८
  • भाग ४४ रिश्तों में हसीन बदलाव उर्फ़ मेरे पास माँ है पृष्ठ ३४१
  • भाग ४३ इन्सेस्ट कथा- माँ के किस्से, मायके के पृष्ठ ३२९
  • भाग ४२ इन्सेस्ट कथा माँ के किस्से, पृष्ठ ३१७
  • भाग ४१ इन्सेस्ट कथा - मामला वल्दियत का उर्फ़ किस्से माँ के पृष्ठ ३०३
  • भाग ४० इन्सेस्ट गाथा - गोलकुंडा पर चढ़ाई -भाई की पृष्ठ २८६
  • भाग ३९ - माँ, बेटा, बेटी और बरसात की रात पृष्ठ २७१
  • भाग ३८ मेरे पास माँ है पृष्ठ २६०
  • भाग ३७ - इन्सेस्ट कथा - और माँ आ गयीं पृष्ठ २५०
  • भाग ३६ -इन्सेस्ट किस्सा- मस्ती भैया बहिनी उर्फ़ गीता -अरविन्द की पृष्ठ २३६
  • भाग ३५ फुलवा पृष्ठ २२५
  • भाग ३४ इन्सेस्ट कथा - चाची ने चांदनी रात में,... पष्ठ २१४
  • भाग ३३ अरविन्द और गीता की इन्सेस्ट गाथा सांझ भई घर आये पृष्ठ २००
  • भाग ३२ - इन्सेस्ट गाथा अरविन्द और गीता, पृष्ठ १७८
  • भाग ३१ इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का पृष्ठ १६५
 
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Jiashishji

दिल का अच्छा
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अमराई में-भाई बहन की मस्ती


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और अरविंद ने पीछे से उसके कान में फुसफुसाया, हे गितवा, तनी पेड़ के ऊपर देख , दो तोता,...

और जैसे गीता का ध्यान पेड़ के ऊपर की ओर गया उसके भाई अरविन्द का एक हाथ गीता और पेड़ के तने के बीच, और कस कस के बहन के उभार को भींचने लगा, दूसरे हाथ ने चोली की डोर खोल दी और सरक कर चोली नीचे,...


गीता की आँखे तो तोते की तलाश में थीं पर उसके दोनों कबूतर कस के उसके भाई अरविन्द के हाथों में थे और जोबन का रस लेने में तो वो पक्का खिलाड़ी था , जोबन पे उसका हाथ पड़ते ही बड़ी से बड़ी नखड़ीली लड़कियां खुद अपने हाथों से शलवार का नाड़ा खोलने लगती थीं, और गीता तो उसकी असली एकलौती सगी, सहोदर बहन थी.

कभी अरविन्द दोनों चूँचिया हलके हलके सहलाता , बस छू छू के जैसे छोड़ देगा, हवा के झोंके की तरह, ... तो कभी ऐसे रगड़ता की जैसे पीस पीस के पिसान ( आटा ) बना देगा,... कभी दो उँगलियों में निप्स को दबा के मसल देता



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और उसका असर अरविन्द के मूसल पे भी हो रहा था, वो सोते से जग गया था, थोड़ा थोड़ा टनटना रहा था,...

और बदमाशी का ठेका सिर्फ अरविन्द के पास थोड़े ही था, उसी पेट से तो उसकी बहन गीता भी निकली थी और अब जो लाज शरम का परदा हट गया था देह का रस उसके ऊपर भी हावी था तो गीता ने भी एक हाथ से, ... तम्बू बने शार्ट से , भैया के खूंटे को पकड़ लिया, दबोच लिया और कस के मसलने लगी,



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एक जवान होती, कच्ची उमर वाली टीनेजर, बहन अगर किसी भी सगे भाई के तने लंड को पकड़ ले , मसलने लगे तो लंड की क्या हालत होगी,...


वही हालत अरविन्द के लंड की हुयी , एकदम बेकाबू, बिना लगाम का घोड़ा सरपट दौड़ने को बेताब,...

कभी दबाती कभी मसलती और जब उसे मालूम हो गया की अरविन्द का लंड अब बिन चोदे नहीं छोड़ने वाला है , तो बस अगला काम भी उसने अरविन्द का खुद कर दिया,

बहन हो तो ऐसी,...

अपने हाथ से भाई का शार्ट खींच के जमीन पे, ... और खूंटा बाहर,

" हे तुझे बोला था न दोनों हाथों से कस के पकड़ना " अरविन्द ने उसे झूठ मूठ का हड़काया,

" अरे भैया पकडे तो हूँ ,... " अपने बाएं हाथ से वो पेड़ को अभी पकडे थी उसी ओर इशारा किया लेकिन साथ में कस के अपने हाथ से भैया के लंड को भी दबोच के समझा दिया की वो भी समझ रही है क्या पकड़ना है, और पकड़ने के साथ वो मुठिया भी रही थी, लेकिन एक झटका और सुपाड़ा खुल गया भैया का ,
ऐसी प्यारी दुलारी बहना सब को मिले,...



और उस के बाद गीता ने फिर दोनों हाथों से कस के पेड़ को पकड़ लिया,... इधर भाई का शार्ट नीचे गिरा तो उसने बहन की साड़ी साया उठा के सीधे कमर तक, और कमर में कस के लपेट दिया, कित्ते भी धक्के लगें वो खुले नहीं, और एक बार फिर बहन के दोनों हाथों पेड़ से लिपटे और भाई के दोनों हाथ बहना के जोबन से लिपटे, ... और भाई का लंड बहना के छोटे चूतड़ों पे टक्कर मारता,

जैसे दरवाजे कोई प्यार से दस्तक दे

और दरवाजा खुल गया , गीता ने अपनी दोनों टाँगे अच्छी तरह फैला दी. अरविन्द के हाथों में तो वो जादू था कि, बस एक बार उसका हाथ जोबन पे लग जाए फिर तो लाख मना करने वाली भी भी खुद पिघलने लगती थी, अपनी टाँगे फैलाती थी पर वो भी जब तक वो लड़की मस्ती के मारे पागल न हो जाए दस बार खुल के न बोले खूंटा अंदर नहीं पेलता था,


और गीता तो उसकी सगी बहन, ... गीता की हालत ख़राब हो रही थी, दोनों हाथों से वो अब पेड़ को पकडे थी, साड़ी उसकी कमर तक उलटी, प्रेम गली और नितम्ब दोनों एकदम खुले,... अब वो खुद भैया के खड़े लोहे से कड़े खूंटे पे अपने छोटे छोटे चूतड़ रगड़ रही थी मसल रही थी, ... बस सोच रही थी भैया कब उसे चोदना शुरू करें , बुर उसकी लिसलिसा रही थी,



इसी पेड़ के सहारे खड़ी कर के अरविन्द ने गाँव की कितनी लड़कियों को चोदा था, ज्यादातर तो गीता की समौरिया, और इसी पेड़ के सहारे खड़ा करके चमेलिया फुलवा की बहन को तो कितनी बार चोदा था और वो तो गितवा से साल भर से ऊपर छोटी थी, ... और कोई लड़की होती तो अबतक कब का अरविन्द ने चोदना शुरू कर दिया होता हाँ ये बात जरूर है की उसका सुपाड़ा घुसते ही दर्द के मारे बेचारी ऐसे चिल्लाती की पूरे बाग़ में, लेकिन बाग़ इतनी गझिन और बड़ी थी की बाहर तक कुछ भी पता नहीं चलता था,... और जितना वो चिल्लाती रोती कहरती उतना ही अरविन्द का जोश बढ़ता, ...

और खूब कस के दरेरते, रगड़ते पेलता, की चूत का चमड़ा छिल जाए और एक बार लंड पूरी तरह घुस के हर धक्का बच्चेदानी पर,.. लेकिन साथ साथ छोटी छोटी चूँचियाँ वो ऐसे रगड़ता की थोड़ी देर में वो ये भूल जाती की चूत में दर्द ज्यादा हो रहा है की चूँची में,...



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पर गीता की बात और थी,

वह उसे पहले खूब गीली करना चाहता था,... और उसका खूंटा जिस तरह से प्रेमगली के बाहर धक्के मार रहा था गीता की बुर पानी बहा रही थी, ... लेकिन अभी भी महीने के आस पास हो गए थे अरविन्द को अपनी बहन गीता को चोदते, लेकिन अभी भी हर बार दो ढक्क्न घर का कडुवा तेल जरूर अपनी बहन की फांकों को फैला के अंदर टपकाता था और अपने मूसल को भी तेल पानी करने के बाद ही , भले ही उसकी बुर उसकी मलाई से बजबजा रही हो,...

पर यह कहाँ तेल,...

लेकिन घर से निकलने के पहले उसने अपनी शार्ट की जेब में बोरोलीन की एक ट्यूब रख ली थी की क्या पता लग जाए मौका,...

तो बस पहले तो अरविन्द ने बोरोलीन,... बुर में लीलने के लिए, अपने लोहे की मोटी रॉड पे , सुपाड़ा तो उसकी बहन ने अपने हाथ से खोल दिया था , तो पहले ट्यूब पिचका के थोड़ा सा वहां और बाकी मुठिया के आगे के आधे हिस्से पे,... साथ में रुक रुक के वो पहले एक फिर दो उँगलियाँ गीता की बुर में कभी आगे पीछे कभी गोल गोल घुमा रहा था,




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उसकी बहन की बुर तो पानी फेंक रही थी, फुदफुदा रही थी , सगे भाई के लंड के लिए पागल हो रही थी और गीता के मुंह से सिर्फ गालियां निकल रही थीं, अरविन्द के लिए,

" स्साले बहनचोद, चोदता काहे नहीं,... तेरी बहन को तेरी माँ को अपने भाई से चुदवाउ,... पेल न भैया, बहुत चुदवास लगी है, चूत में आग लगी है ,... "


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लेकिन अरविन्द उसे और गीली कर रहा था साथ में अपने खूंटे पे बोरोलीन लगा के मुठिया रहा था,...

गीता पागल हो के अपने चूतड़ भाई के खूंटे पे रगड़ रही थी,... खूंटा और तन्ना रहा था,... फिर अरविंद ने उस बोरोलीन की ट्यूब का नोजल सीधे बहन की बुर की फ़ांको को फैला के उसके बीच लगा दिया और पूरी ताकत से टूयब दबा दी जबतक सारी की सारी क्रीम उसकी बहन गीता की फडफ़ड़ाती गीली बुर में पैबस्त नहीं हो गयी.

और उसेक बाद बस कहर बरपा हो गया,... अरविन्द ने अपनी बहन की दोनों गुलाबी रेशमी मखमल सी मुलायम फांको को फैला के अपना सुपाड़ा सेट किया और मार दिया करारा धक्का,



उईईईईई उईईई ओह्ह उफ्फफ्फ्फ़ उईईई ,.. गीता की जोरदार चीख निकली, ...
अमराई में चुदासी । कसम से अपने दिन याद आ गए
 

Jiashishji

दिल का अच्छा
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लगा धक्का लगा छक्का आम के पेड़ के नीचे



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और उसेक बाद बस कहर बरपा हो गया,... अरविन्द ने अपनी बहन की दोनों गुलाबी रेशमी मखमल सी मुलायम फांको को फैला के अपना सुपाड़ा सेट किया और मार दिया करारा धक्का,

उईईईईई उईईई ओह्ह उफ्फफ्फ्फ़ उईईई ,.. गीता की जोरदार चीख निकली, ...

पर गीता ने कस के पेड़ को दोनों हाथों से पकड़ के रखा था , अपनी पूरी ताकत से गीता अपनी जाँघों को, टांगों को फैलाये थी और अपने अंदर घुसता, रगड़ता, दरेरता अपने भैया अरविन्द का मोटा सुपाड़ा महसूस कर रही थी,... चूत चरपरा रही थी , पहले भी भैया ने घर में उसे दीवाल के सहारे खड़े कर के उसकी ली थी, कई बार दिन में भी,... लेकिन इस तरह बाहर खुले में एक पेड़ के नीचे खड़े खड़े,... अपनी ओर से वो पूरी कोशिश कर रही थी पर दर्द तो हो ही रहा था ,




दो चार धक्को में सुपाड़ा पूरा पैबस्त हो गया,... और अब अरविन्द रुक गया, उसने अब सारा ध्यान अपनी छोटी बहन के छोटे छोटे जोबन की ओर दिया जिसके बारे में सोच सोच के ही उसका न जाने कितने दिनों से खड़ा हो जाता था,... कभी हलके से कभी जोर साथ में कभी गाल चूमता कभी होंठ काटता,
धीरे धीरे गीता भी अपने बुर में घुसे भाई के सुपाड़े का मजा लेने लगी चीखें अब सिसकियों में बदलने लगीं,

बिना दोनों जोबन छोड़े बल्कि उन्हें ही पकड़ के खूब जबरदस्त धक्के , भैया ने अपनी छुटकी बहिनिया की कसी चूत में मारने शुरू किये , और हर धक्के के साथ बहन का पेट उसकी देह पेड़ की छाल से कस के रगड़ जाती और वो बुरी तरह से अपने भैया और उस पेड़ के बीचपिस जाती ,

लेकिन कुछ देर में उसे भी मजा आने लगा , वो भी चूतड़ पीछे कर के धक्के का जवाब धक्के से देने लगी,... कभी अपनी चूत में अरविन्द का लंड वो निचोड़ देती, दबोच देती,



सच में जितना मजा अरविन्द को अपनी सगी बहन को चोदने में आ रहा था गीता से भी बारी कुंआरी कच्ची कलियाँ,... उतना किसी के साथ नहीं आया भले ही चाची की उम्र की भोंसड़ी वालियां हो या गीता से भी बारी कुंआरी कच्ची कलियाँ ,


सगी छोटी बहन को चोदने की बात ही और होती है, वो भी खुले आम,... फुलवा की माँ उसे सही समझाती थी,...


थोड़ी ही देर में गीता झड़ने के कगार पर पहुँच गयी पर अरविन्द उसका भाई नहीं रुका , वो पेलता ही रहा पूरी ताकत से,... और रुका भी तो एक ऊँगली से बहन की क्लिट रगड़ने लगा और बहन फिर गरमा गयी और अबकी गीता ने अपनी एक टांग उठा के पेड़ के सहारे,.. और अब चूत और अच्छी तरह खुल गयी थी,... लंड और खुल के जा रहा था , हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे

गीता जब दूसरी बार झड़ी तो भैया भी उसके अंदर देर तक मलाई छोड़ता रहा,...




कौन बहनचोद बहन को एक बार चोदने के बाद छोड़ता है , अरविन्द ने भी नहीं छोड़ा,



हाँ कुछ रुक के और बाग़ में जमीन पे लिटा के,..
खुलेआम चुदाई का मजा ही कुछ और है । और फिर अपनी सगी बहन हो । तो बात ही कुछ और है।
 

Jiashishji

दिल का अच्छा
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अमराई में चढ़ा भैया



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गीता जब दूसरी बार झड़ी तो भैया भी उसके अंदर देर तक मलाई छोड़ता रहा,...

कौन बहनचोद बहन को एक बार चोदने के बाद छोड़ता है , अरविन्द ने भी नहीं छोड़ा,

हाँ कुछ रुक के और बाग़ में जमीन पे लिटा के,..




और अब एकदम गाँव की स्टाइल में खुले में दोनों की प्रेम लीला शुरू हो गयी थी और इससे अरविन्द से ज्यादा गीता खुश थी,...

" दीदी, अरविन्द भैया ने फिर कभी,... बाग़ में या कहीं घर के बाहर, आप पे चढ़ाई की। "



गीता बहुत देर तक खिलखिलाती रही, फिर छुटकी के गाल पे कस के चिकोटी काट के बोली,...

" पगली तू बड़ी भोली है, इस गाँव में नयी नयी आयी है न,... यहाँ तो सब खुल्ल्म खुल्ला,... ये पूछ किस दिन नहीं, नौवें दसवें में पढ़ने वाली बहिन को कोई भाई छोड़ता है, तू ही सोच, छोटी छोटी कच्ची अमिया, ... चिकने चिकने गाल, बस आ रही नयी नयी छोटी छोटी झांटे,... और अरविंदवा तो नंबरी चोदू, लोग लंड खड़ा करने के लिए सोचते हैं उसका तो बैठाना मुश्किल था,... "

फिर गीता ने ने अपना और अपने भाई अरविन्द का किस्सा आगे बढ़ाया,...


" अरे उस दिन आम के बाग़ में खुले आम में दो बार चोदने के बाद,... अरविन्द भैया की जो थोड़ी बहुत झिझक हिचक थी वो भी खतम हो गयी थी, ..

और वो तो मुझे बाद में पता चला, दो लड़कियां, चमेलिया, अरे वही फुलवा की बहिनिया और उस की एक सहेली उन दोनों ने भैया को मेरे ऊपर चढ़े हुए देख लिया था,... वो दोनों भी बाग़ में आयी थीं,... मैं तो , उस समय दूसरी बार भैया चोद रहा था मुझे बाग़ में लिटा के,...


मैंने ही उसे सहला के चूस के पहली चुदाई के बाद खड़ा कर दिया था वो वो क्यों छोड़ता,...



लेकिन उसने मुझे पेट के बल लिटा के,..एक आसन में तो कभी चुदाई उसकी आज तक ख़तम नहीं हुयी कम से तीन चार तरीके से , लेकिन हर बार बड़ी बेरहमी से,...



तो मैं पेट के बल लेटी थी , चूतड़ दोनों उठा के उसके धक्के खा रही थी, तो मुझे तो कुछ दिखता नहीं,... हाँ भैया ने जरूर दोनों शैतानों को देख लिया था, .. और मुस्करा के वो दोनों चली गयीं, चमेलिया तो खैर रोपनी वाली दिन से मेरी सहेली बन गयी थी लेकिन दूसरी वाली उस ने जरूर गाँव भर बाँट दिया , और अगले दिन ही स्कूल में मेरी दो सहेलियों ने खूब चिढ़ाया,... "

पर छुटकी तो अभी फास्ट फारवर्ड के मूड में थी उसने एक्सीलेटर पर दबाया, गीता को बाग़ से बाहर निकालने के लिए, और गीता ने अगले दिनों की बात बताई,...

गीता की माँ, वो तो गीता के भाई अरविन्द से भी एक हाथ आगे बढ़ की गीता के पीछे,... होता ये था की गीता के स्कूल की तो दो ढाई बजे छुट्टी हो जाती थी , दस मिनट में वो घर,भाई उसका अरविन्द भी दोपहर में बाहर का काम कामधाम करके वापस,...

लेकिन दोपहर के खाने के बाद ही माँ की गप्प गोष्ठी शुरू होती थी, सब पडोसिने, कभी और कोई नहीं तो ग्वालिन भौजी माँ की तेल मालिश करने या कभी ब्लाक से कोई आ गया, कोई मिलने वाले,...

तो वो भी चाहती थीं की उस समय दोनों भाई बहन बाहर रहें,.. फिर अब धीरे धीरे जो इत्ते सालो से वो घर की खेत की बाग बगीचे की जिम्मेदारी अकेले देख रही थीं अब धीरे धीरे पूरी तरीके से अपने बेटे के कंधे पर डाल रही थीं,... लेकिन साथ साथ वो बेटी को भी इस बात में शामिल करना चाहती थीं, आखिर इतने दिनों से वो सब काम देख रही थी तो गीता को भी अंदाज तो होना चाहिए,...भाई का हाथ बटाये साथ दे, और उन से बढ़ के गाँव वालियों को काम करने वालियों को भी मालूम हो की ये खाली स्कूल और घर वाली नहीं है,

तो उसे भी वो हाँक देती थीं भाई के साथ, बाहर,...



गीता की भी मन तो करता ही था,

रात भर तो माँ और भैया मिल के उस की चटनी बनाते ही थे,... लेकिन इस उमर में मन कहाँ भरता है,...

उस की बाकी सहेलियां किसी के दो तीन से कम आशिक नहीं थे, कई तो शाम को किसी से सिवान में मिलती थीं तो स्कूल से लौटते हुए किसी के और के सामने गन्ने के खेत में स्कर्ट पसारती थीं,... दिन भर क्लास में पढाई से ज्यादा तो कल किस ने किस से,... बस यही बातें,... और सुन सुन के जब लौटती गीता तो इतनी गर्मायी रहती की मन करता की कब भैया से अकेले में मिल के,.. बस अरविन्द भैया कब उसकी चोदे,... और सिर्फ सहेलियां ही नहीं, गाँव की भौजाइयां, काम करने वालियां, सब,..अब सब को तो मालूम ही था की वो अरविंदवा से चुदती है तो एकदम खुल के चिढ़ाती थीं,...

और उसका भाई भी, एक बार बहन की चूत का स्वाद लगने के बाद कौन भाई,...

और अरविन्द तो अपनी चाची का ट्रेंड किया,... तो वो भी अक्सर चक्कर काटता रहता, .... जहाँ जहाँ गीता जाती,... और स्कूल भी गाँव का, हफ्ते में दो तीन दिन तो कभी छुट्टी तो कभी जल्दी छुट्टी,.. और सावन का महीना, तो लड़कियां सब ( जिनको यारों के पास नहीं जाना होता था ) झरर मार के झूले पे भौजाइयों के साथ झूला झूलने, कजरी गाने,... और झूले से ज्यादा मजा झूले पे होने वाली छेड़छाड़ से, और अब तो गीता भी गाँव में साड़ी ही पहन के निकलती थी,


बस झूला शुरू होते ही छेड़छाड़ शुरू, उसके पीछे बैठी कोई भौजाई, साड़ी उलट देती थी और सोन चिरैया में ऊँगली डाल के पूछती, " अरविंदवा के मलाई हो न "





और बुर में ऊँगली शुरू, कोई न कोई भौजी चोली में बंद जोबन भी खोल देती,... और उसके भाई का नाम ले ले के, अरे देवर अरविन्द ऐसे दबाते हैं ना,... "



भाई का नाम सुन के और उसकी चूत गरमा जाती थी, ...

एक तो रोपनी के दिन उसने खुद कबूल कर लिया था फिर अमराई में तो चुदते ही,... दो लड़कियों ने साफ़ साफ़ देखा था , लेकिन गीता को कुछ भी बुरा नहीं लगता था बल्कि वो इसी छेड़छाड़ का इन्तजार करती थी पर सबसे मजा आता था कजरी ख़त्म होते जब वह भौजाइयों सहेलियों के साथ घर की ओर लौटती तो आस पास उसका भाई अरविन्द बाइक पे चक्कर काटता रहा, और उसे खींच के पीछे बैठा लेता, सब सहेलियां अरविन्द को खुद चिढ़ातीं,



" अरे कभी हमारे भी साथ,... "

लेकिन छुटकी फास्ट फारवर्ड चाहती थी सीधे मुद्दे पर कब खुले आसमान के नीचे गीता अपने भाई अरविन्द से कब कहाँ कैसे चुदी।



" गन्ने के खेत में, आम की बाग़ में चोदने के दो दिन बाद ही अरविन्द भैया ने गन्ने के खेत में नंबर लगा दिया , दोपहर में " गीता ने कबूला

लेकिन अब छुटकी हाल खुलासा चाहती थी और गीता ने सब किस्सा गन्ने के खेत का बताया।
बहन भाई के प्यार को मां का आशिर्वाद प्राप्त है ।
 

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लेकिन असली बाप... मेरा मतलब है कि मामा अभी उसका सिर्फ जिक्र आया है...
कहानी में एक्शन...
Ji haa mei bhi wahi bol raha tha action naa sahi , lekin jis raat yaha geetwa ki opening hui thi us raat uski maa bhi to mama ki ghod mei thi uska hi thodi jhakal mil jaati to maza aa jata apke sath humari bhi arji jor dijiye
 

pprsprs0

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भाग ५० - माँ का नाइट स्कूल


माँ -गीता -अरविन्द



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माँ रसोई में चली गयी खाना गरम करने के लिए, लेकिन वहां से भी कान पारे, मेरी चीखें जरा भी कम हुयी तो वहीँ से भैया को कभी डांट लगाती तो कभी उकसातीं, और वो गाँड़ मारने की रफ्तार बढ़ा देता,...



जब माँ खाना ले के निकली आधे घंटे बाद तो उसी समय भैया मेरी गाँड़ में झड़ रहा था, हालत ये थी की जमीन पर चूतड़ रख के बैठा भी नहीं जा रहा था, माँ ने अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया खूब दुलार से, ... भैया ने भी,... खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था दोनों ने पकड़ के मुझे सहारा देकर उठाया,... भैया चिढ़ा रहा था माँ ने उसे भी डांटा,..


पर छुटकी उसे तो रात का किस्सा सुनना था ये तो बस चटनी थी, और उसने कैंची चलाई और गीता से बोला,

:" दीदी तो उस दी क्या रात को कुछ नहीं आपने सिर्फ आराम किया ?"



गीता बड़ी जोर से खिलखिलाई और उस कच्ची अमिया, छुटकी को गले में लिपटा के कस के पहले चुम्मी ली और कचकचा के गोरे गुलाबी गाल काट लिए।

" अरे नयकी भौजी क छुटकी बहिनिया, रोज तोहार गाँड़ बिन नागा यह गाँव में जब मारी जायेगी न तो समझोगी। एक दो बार जीजा डबल जीजा से चुदवाने, गाँड़ मरवाने से कुछ नहीं होता, अभी तो आयी हो,... अरे ओह दिन नहीं, रोज बिना नागा रात भर,... रात में तो माँ का नाइट स्कूल चलता था, ये ये बात माँ ने सिखाई मुझे, क्या बताऊँ, ... माँ ने ऐसी एक्सरसाइज सिखाई है की दिन रात कोई चुदवाये गांड़ मरवाये, कितने भी मोटे मोटे मूसल से, चोदने वाले को लगेगा पहली बार चोद रहा है,... चूँची भी ढीली नहीं होगी मिजवाने दबवाने से,... और सिर्फ मुझको भी नहीं भैया को भी, लौंडिया को बिन चोदे कैसे खाली छू के , वो भी बिना चूत में हाथ लगाए कैसे पागल कर दो , खुद ही लौंड़ा अपने हाथ से पकड़ के अपनी बिल में घुसवायेगी, सिर्फ गाँड़ मार के कैसे लौंडिया को झाड़ दें,... "



छुटकी बहुत ध्यान से कान पारे गीता की बाते सुन रही थी, फिर छोटी बच्ची की तरह जिद करके बोली,

" दीदी, मुझे भी चाहिये, मुझे भी सीखना है,.... "

गीता ने उसे दुलार से चिपका लिया और कच्ची अमिया दबाती बोली,...


" अबे स्साली तुझे तो सिखाऊंगी ही, मेरे गाँव के लौंडो का फायदा होगा, उन्हें मजा मिलेगा तुझे दर्द,.. चल अभी एक ट्रिक बताती हूँ फिर रात का माँ के साथ का किस्सा, चूत टाइट करने के लिए माँ ने सिखाया था, दिन में चार पांच बार, तुझे तो कम से कम दस बार करना होगा, ... सुन, .. माँ बोली, जब मुतवास लगती है बड़ी जोर से लेकिन क्लास में हो या जा नहीं सकती हो तो का करती हो,

छुटकी खिलखिलाती हुयी बोली,.. अरे कस के बिलिया भींच लेती हूँ और का, एक बूँद बाहर न निकले जिससे,...

चूम के गीता बोली,...

बस एकदम यही करना है कम से कम दस बार और घडी देख के दो मिनट तक पूरी ताकत से और जब ढीली करो तो एक झटके में नहीं बहुत धीरे धीरे पूरे एक मिनट में और यही काम चार पांच बार करो,... कहीं भी कभी भी, दिन में दस बार,... इससे चुदवाने में भी बड़ा मजा आता है , जब लौंडे का औजार पूरा घुस गया हो, तो बस धीरे धीरे कर के दबोच लो,... निचोड़ लो स्साले को,.. बुरिया में ऊँगली डाल के प्रैक्टिस कर, माँ मुझे करवाती थीं, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर, ... मैं भी करवाउंगी तुझे, ... तुझे छोटी बहन बनाया है स्साली तो सिखाना ही पड़ेगा लेकिन चल पहले रात का किस्सा बताती हूँ, बहुत सीखेगी तू। "



और गीता ने किस्सा सुनाना शुरू किया, किस्सा नहीं पूरा का पूरा सच,

" रात में सबसे पहले मैं और माँ मिल के अरविन्द भैया की ऐसी की तैसी करते थे,...

माँ मुझे कहती थी उसके सामने भैया का मुंह में ले के चूसूं,...ऐसे नहीं सिर्फ होंठों के जोर से बिना हाथ लगाए, खूब धीरे धीरे भैया का पूरा सुपाड़ा गप्प करना, और साथ में आँखे मेरी भैया को लगातार देखती रहती थीं उसे चिढ़ाती उकसाती थीं, और सपड़ सपड़ चाट के जब सुपाड़ा खूब गीला हो जाए तो बस, मुंह हटा लो और तड़पने दो,...




फिर मैं सिर्फ जीभ की टिप से अरविन्द भैया के मूत वाले छेड़ में घुसा के खूब सुरसुरी करती थी, बेचारा गिनगीनाता रहता, तड़पता रहता, और मैं सिर्फ जीभ की टिप से मूत वाले छेद से हलके हलके पहले मोटे तड़पते सुपाड़े पर फिर उस चमड़े के मोटे मूसल के बेस तक थूक लगा के सहलाते, रगड़ते और बॉल्स तक,...

" और माँ क्या करती थीं " छुटकी ने मजे लेते हुए पूछा।

" माँ तो और,... " गीता ने किस्सा आगे बढ़ाया,

"थोड़ी देर में हम माँ बेटी मिल के अरविन्द भैया के खूंटे का मजा लेते, कभी गन्ना वो चूसती और रसगुल्ला मैं, कभी एक साइड से वो जीभ लगा के और दूसरी साइड से मैं जीभ लगा के चाटतीं,.. चाटते चूसते कभी माँ, अरविन्द भैया को दिखा दिखा के मेरे होठं चूसने लगती , लेकिन अरविन्द भैया को छोड़ती नहीं थी जब हम वो की जीभ होंठ लंड को छोड़ देती तो माँ की उँगलियाँ मैदान में आ जातीं और वो भैया के खूंटे को पकड़ के मुठियाने लगती और उनकी उँगलियाँ जब खूंटे को पकड़तीं तो मैं भैया की बॉल्स को, ...




तू ही सोच कोई स्साला लौंडा, अगर उसकी जवान होती कच्ची उमर वाली बहन और मस्त बड़ी बड़ी कड़ी कड़ी चूँची वाली माँ, मिल के ऐसी की तैसी करेंगी तो क्या हालत होगी,... "

छुटकी के दिमाग में तो सिर्फ गितवा के भाई अरविन्द का मोटा खड़ा तन्नाया लंड ही नजर आ रहा था उसके मुंह से निकल गया,

" बेचारे अरविन्द भैया"


गीता बड़े जोर से खिलखिलाई,


" और क्या दो दो मस्त माल सामने और चोदने को नहीं मिल रहा,... कम से कम घंटे भर माँ, अरविन्द भैया को तड़पाती लेकिन सबसे ज्यादा मजा तब आता जब भैया को बिना छुए वो उसकी हालत खराब कर देती,

" बिन छुए, ... कैसे" गीता की आँखे विस्मय से फ़ैल गयीं,

" माँ के आगे सब फेल,.. माँ पीछे से मुझे अपनी गोद में दुबका लेती थी फिर उसके दोनों हाथ मेरी छोटी छोटी चूँचियों पे, क्या मस्त दबाती है माँ,... कभी हलके हलके छूती तो कभी कस के दबोच लेती,... कभी मेरी किसमिश ऐसे निपल पकड़ के जोर जोर से पुल करती,





देख देख के भैया की हालत ख़राब, डंडा एकदम टनटना जाता, बेचारे का. लेकिन माँ की उँगलियों से मेरी हालत भी कम खराब नहीं होती, मेरी फांके गीली होने लगतीं, मेरी हथेलियां खुद मेरी पनियाई चूत पे हलके हलके सहलाने लगतीं,... मेरे मुंह से जोर जोर से सिसकियाँ निकलतीं और साथ में उफ्फ्फ माँ के चुम्मी, नहीं चेहरे पे नहीं,... कभी गले पे , कभी कंधे पे, भैया को दिखाते ललचाते, और भैया का खूंटा एकदम हवा में तना पूरे बित्ते भर का, तड़पता,...

और ये सोच के सुन के छुटकी भी गीली हो रही थी पर बिन बोले, टोके गीता की बात वो सुन रही थी,... और गीता सुना रही थी,

" माँ, अरविन्द भैया को ललचाते अपने दोनों हाथों से मेरी अमिया उठा के पकड़ एक उसे दिखातीं और ललचातीं, बोलतीं, " देख, मेरी बेटी के जुबना कितने मस्त है, स्साली इस गाँव क्या आस पास के किसी गाँव में किसी माल का इत्ता मस्त जोबन नहीं है, बोल चाहिए क्या ? और भैया लिबराता देखता तो माँ और उसे हड़काती, स्साले दो साल पहले से इसकी कच्ची अमिया आने लगी थीं , गांव भर के लौंडो को महक लग गयी थी, सब पीछे पड़े थे,.. और तू बुरबक,... अरे तभी पकड़ के चोद देता, दो चार बार जबरदस्ती पेलता रोती गाती कुछ दिन में खुद चुदवाने लगती,... लेकिन तू भी न,... पर सोच ले चाहिए तो मेरी सब बात माननी पड़ेगी "
“”

माँ ने ऐसी एक्सरसाइज सिखाई है की दिन रात कोई चुदवाये गांड़ मरवाये, कितने भी मोटे मोटे मूसल से, चोदने वाले को लगेगा पहली बार चोद रहा है,... चूँची भी ढीली नहीं होगी मिजवाने दबवाने से,... और सिर्फ मुझको भी नहीं भैया को भी, लौंडिया को बिन चोदे कैसे खाली छू के , वो भी बिना चूत में हाथ लगाए कैसे पागल कर दो , खुद ही लौंड़ा अपने हाथ से पकड़ के अपनी बिल में घुसवायेगी, सिर्फ गाँड़ मार के कैसे लौंडिया को झाड़ दें,... "

“”

Ufff geetwa ki maa ne sab kuch thik se sikhaya hai dono bacho ko
 

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भाग ५० - माँ का नाइट स्कूल


माँ -गीता -अरविन्द



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माँ रसोई में चली गयी खाना गरम करने के लिए, लेकिन वहां से भी कान पारे, मेरी चीखें जरा भी कम हुयी तो वहीँ से भैया को कभी डांट लगाती तो कभी उकसातीं, और वो गाँड़ मारने की रफ्तार बढ़ा देता,...



जब माँ खाना ले के निकली आधे घंटे बाद तो उसी समय भैया मेरी गाँड़ में झड़ रहा था, हालत ये थी की जमीन पर चूतड़ रख के बैठा भी नहीं जा रहा था, माँ ने अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया खूब दुलार से, ... भैया ने भी,... खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था दोनों ने पकड़ के मुझे सहारा देकर उठाया,... भैया चिढ़ा रहा था माँ ने उसे भी डांटा,..


पर छुटकी उसे तो रात का किस्सा सुनना था ये तो बस चटनी थी, और उसने कैंची चलाई और गीता से बोला,

:" दीदी तो उस दी क्या रात को कुछ नहीं आपने सिर्फ आराम किया ?"



गीता बड़ी जोर से खिलखिलाई और उस कच्ची अमिया, छुटकी को गले में लिपटा के कस के पहले चुम्मी ली और कचकचा के गोरे गुलाबी गाल काट लिए।

" अरे नयकी भौजी क छुटकी बहिनिया, रोज तोहार गाँड़ बिन नागा यह गाँव में जब मारी जायेगी न तो समझोगी। एक दो बार जीजा डबल जीजा से चुदवाने, गाँड़ मरवाने से कुछ नहीं होता, अभी तो आयी हो,... अरे ओह दिन नहीं, रोज बिना नागा रात भर,... रात में तो माँ का नाइट स्कूल चलता था, ये ये बात माँ ने सिखाई मुझे, क्या बताऊँ, ... माँ ने ऐसी एक्सरसाइज सिखाई है की दिन रात कोई चुदवाये गांड़ मरवाये, कितने भी मोटे मोटे मूसल से, चोदने वाले को लगेगा पहली बार चोद रहा है,... चूँची भी ढीली नहीं होगी मिजवाने दबवाने से,... और सिर्फ मुझको भी नहीं भैया को भी, लौंडिया को बिन चोदे कैसे खाली छू के , वो भी बिना चूत में हाथ लगाए कैसे पागल कर दो , खुद ही लौंड़ा अपने हाथ से पकड़ के अपनी बिल में घुसवायेगी, सिर्फ गाँड़ मार के कैसे लौंडिया को झाड़ दें,... "



छुटकी बहुत ध्यान से कान पारे गीता की बाते सुन रही थी, फिर छोटी बच्ची की तरह जिद करके बोली,

" दीदी, मुझे भी चाहिये, मुझे भी सीखना है,.... "

गीता ने उसे दुलार से चिपका लिया और कच्ची अमिया दबाती बोली,...


" अबे स्साली तुझे तो सिखाऊंगी ही, मेरे गाँव के लौंडो का फायदा होगा, उन्हें मजा मिलेगा तुझे दर्द,.. चल अभी एक ट्रिक बताती हूँ फिर रात का माँ के साथ का किस्सा, चूत टाइट करने के लिए माँ ने सिखाया था, दिन में चार पांच बार, तुझे तो कम से कम दस बार करना होगा, ... सुन, .. माँ बोली, जब मुतवास लगती है बड़ी जोर से लेकिन क्लास में हो या जा नहीं सकती हो तो का करती हो,

छुटकी खिलखिलाती हुयी बोली,.. अरे कस के बिलिया भींच लेती हूँ और का, एक बूँद बाहर न निकले जिससे,...

चूम के गीता बोली,...

बस एकदम यही करना है कम से कम दस बार और घडी देख के दो मिनट तक पूरी ताकत से और जब ढीली करो तो एक झटके में नहीं बहुत धीरे धीरे पूरे एक मिनट में और यही काम चार पांच बार करो,... कहीं भी कभी भी, दिन में दस बार,... इससे चुदवाने में भी बड़ा मजा आता है , जब लौंडे का औजार पूरा घुस गया हो, तो बस धीरे धीरे कर के दबोच लो,... निचोड़ लो स्साले को,.. बुरिया में ऊँगली डाल के प्रैक्टिस कर, माँ मुझे करवाती थीं, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर, ... मैं भी करवाउंगी तुझे, ... तुझे छोटी बहन बनाया है स्साली तो सिखाना ही पड़ेगा लेकिन चल पहले रात का किस्सा बताती हूँ, बहुत सीखेगी तू। "



और गीता ने किस्सा सुनाना शुरू किया, किस्सा नहीं पूरा का पूरा सच,

" रात में सबसे पहले मैं और माँ मिल के अरविन्द भैया की ऐसी की तैसी करते थे,...

माँ मुझे कहती थी उसके सामने भैया का मुंह में ले के चूसूं,...ऐसे नहीं सिर्फ होंठों के जोर से बिना हाथ लगाए, खूब धीरे धीरे भैया का पूरा सुपाड़ा गप्प करना, और साथ में आँखे मेरी भैया को लगातार देखती रहती थीं उसे चिढ़ाती उकसाती थीं, और सपड़ सपड़ चाट के जब सुपाड़ा खूब गीला हो जाए तो बस, मुंह हटा लो और तड़पने दो,...




फिर मैं सिर्फ जीभ की टिप से अरविन्द भैया के मूत वाले छेड़ में घुसा के खूब सुरसुरी करती थी, बेचारा गिनगीनाता रहता, तड़पता रहता, और मैं सिर्फ जीभ की टिप से मूत वाले छेद से हलके हलके पहले मोटे तड़पते सुपाड़े पर फिर उस चमड़े के मोटे मूसल के बेस तक थूक लगा के सहलाते, रगड़ते और बॉल्स तक,...

" और माँ क्या करती थीं " छुटकी ने मजे लेते हुए पूछा।

" माँ तो और,... " गीता ने किस्सा आगे बढ़ाया,

"थोड़ी देर में हम माँ बेटी मिल के अरविन्द भैया के खूंटे का मजा लेते, कभी गन्ना वो चूसती और रसगुल्ला मैं, कभी एक साइड से वो जीभ लगा के और दूसरी साइड से मैं जीभ लगा के चाटतीं,.. चाटते चूसते कभी माँ, अरविन्द भैया को दिखा दिखा के मेरे होठं चूसने लगती , लेकिन अरविन्द भैया को छोड़ती नहीं थी जब हम वो की जीभ होंठ लंड को छोड़ देती तो माँ की उँगलियाँ मैदान में आ जातीं और वो भैया के खूंटे को पकड़ के मुठियाने लगती और उनकी उँगलियाँ जब खूंटे को पकड़तीं तो मैं भैया की बॉल्स को, ...




तू ही सोच कोई स्साला लौंडा, अगर उसकी जवान होती कच्ची उमर वाली बहन और मस्त बड़ी बड़ी कड़ी कड़ी चूँची वाली माँ, मिल के ऐसी की तैसी करेंगी तो क्या हालत होगी,... "

छुटकी के दिमाग में तो सिर्फ गितवा के भाई अरविन्द का मोटा खड़ा तन्नाया लंड ही नजर आ रहा था उसके मुंह से निकल गया,

" बेचारे अरविन्द भैया"


गीता बड़े जोर से खिलखिलाई,


" और क्या दो दो मस्त माल सामने और चोदने को नहीं मिल रहा,... कम से कम घंटे भर माँ, अरविन्द भैया को तड़पाती लेकिन सबसे ज्यादा मजा तब आता जब भैया को बिना छुए वो उसकी हालत खराब कर देती,

" बिन छुए, ... कैसे" गीता की आँखे विस्मय से फ़ैल गयीं,

" माँ के आगे सब फेल,.. माँ पीछे से मुझे अपनी गोद में दुबका लेती थी फिर उसके दोनों हाथ मेरी छोटी छोटी चूँचियों पे, क्या मस्त दबाती है माँ,... कभी हलके हलके छूती तो कभी कस के दबोच लेती,... कभी मेरी किसमिश ऐसे निपल पकड़ के जोर जोर से पुल करती,





देख देख के भैया की हालत ख़राब, डंडा एकदम टनटना जाता, बेचारे का. लेकिन माँ की उँगलियों से मेरी हालत भी कम खराब नहीं होती, मेरी फांके गीली होने लगतीं, मेरी हथेलियां खुद मेरी पनियाई चूत पे हलके हलके सहलाने लगतीं,... मेरे मुंह से जोर जोर से सिसकियाँ निकलतीं और साथ में उफ्फ्फ माँ के चुम्मी, नहीं चेहरे पे नहीं,... कभी गले पे , कभी कंधे पे, भैया को दिखाते ललचाते, और भैया का खूंटा एकदम हवा में तना पूरे बित्ते भर का, तड़पता,...

और ये सोच के सुन के छुटकी भी गीली हो रही थी पर बिन बोले, टोके गीता की बात वो सुन रही थी,... और गीता सुना रही थी,

" माँ, अरविन्द भैया को ललचाते अपने दोनों हाथों से मेरी अमिया उठा के पकड़ एक उसे दिखातीं और ललचातीं, बोलतीं, " देख, मेरी बेटी के जुबना कितने मस्त है, स्साली इस गाँव क्या आस पास के किसी गाँव में किसी माल का इत्ता मस्त जोबन नहीं है, बोल चाहिए क्या ? और भैया लिबराता देखता तो माँ और उसे हड़काती, स्साले दो साल पहले से इसकी कच्ची अमिया आने लगी थीं , गांव भर के लौंडो को महक लग गयी थी, सब पीछे पड़े थे,.. और तू बुरबक,... अरे तभी पकड़ के चोद देता, दो चार बार जबरदस्ती पेलता रोती गाती कुछ दिन में खुद चुदवाने लगती,... लेकिन तू भी न,... पर सोच ले चाहिए तो मेरी सब बात माननी पड़ेगी "
“”


तू ही सोच कोई स्साला लौंडा, अगर उसकी जवान होती कच्ची उमर वाली बहन और मस्त बड़ी बड़ी कड़ी कड़ी चूँची वाली माँ, मिल के ऐसी की तैसी करेंगी तो क्या हालत होगी,... "

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Garam 🔥🔥🔥
 

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भाग ५० - माँ का नाइट स्कूल


माँ -गीता -अरविन्द



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माँ रसोई में चली गयी खाना गरम करने के लिए, लेकिन वहां से भी कान पारे, मेरी चीखें जरा भी कम हुयी तो वहीँ से भैया को कभी डांट लगाती तो कभी उकसातीं, और वो गाँड़ मारने की रफ्तार बढ़ा देता,...



जब माँ खाना ले के निकली आधे घंटे बाद तो उसी समय भैया मेरी गाँड़ में झड़ रहा था, हालत ये थी की जमीन पर चूतड़ रख के बैठा भी नहीं जा रहा था, माँ ने अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया खूब दुलार से, ... भैया ने भी,... खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था दोनों ने पकड़ के मुझे सहारा देकर उठाया,... भैया चिढ़ा रहा था माँ ने उसे भी डांटा,..


पर छुटकी उसे तो रात का किस्सा सुनना था ये तो बस चटनी थी, और उसने कैंची चलाई और गीता से बोला,

:" दीदी तो उस दी क्या रात को कुछ नहीं आपने सिर्फ आराम किया ?"



गीता बड़ी जोर से खिलखिलाई और उस कच्ची अमिया, छुटकी को गले में लिपटा के कस के पहले चुम्मी ली और कचकचा के गोरे गुलाबी गाल काट लिए।

" अरे नयकी भौजी क छुटकी बहिनिया, रोज तोहार गाँड़ बिन नागा यह गाँव में जब मारी जायेगी न तो समझोगी। एक दो बार जीजा डबल जीजा से चुदवाने, गाँड़ मरवाने से कुछ नहीं होता, अभी तो आयी हो,... अरे ओह दिन नहीं, रोज बिना नागा रात भर,... रात में तो माँ का नाइट स्कूल चलता था, ये ये बात माँ ने सिखाई मुझे, क्या बताऊँ, ... माँ ने ऐसी एक्सरसाइज सिखाई है की दिन रात कोई चुदवाये गांड़ मरवाये, कितने भी मोटे मोटे मूसल से, चोदने वाले को लगेगा पहली बार चोद रहा है,... चूँची भी ढीली नहीं होगी मिजवाने दबवाने से,... और सिर्फ मुझको भी नहीं भैया को भी, लौंडिया को बिन चोदे कैसे खाली छू के , वो भी बिना चूत में हाथ लगाए कैसे पागल कर दो , खुद ही लौंड़ा अपने हाथ से पकड़ के अपनी बिल में घुसवायेगी, सिर्फ गाँड़ मार के कैसे लौंडिया को झाड़ दें,... "



छुटकी बहुत ध्यान से कान पारे गीता की बाते सुन रही थी, फिर छोटी बच्ची की तरह जिद करके बोली,

" दीदी, मुझे भी चाहिये, मुझे भी सीखना है,.... "

गीता ने उसे दुलार से चिपका लिया और कच्ची अमिया दबाती बोली,...


" अबे स्साली तुझे तो सिखाऊंगी ही, मेरे गाँव के लौंडो का फायदा होगा, उन्हें मजा मिलेगा तुझे दर्द,.. चल अभी एक ट्रिक बताती हूँ फिर रात का माँ के साथ का किस्सा, चूत टाइट करने के लिए माँ ने सिखाया था, दिन में चार पांच बार, तुझे तो कम से कम दस बार करना होगा, ... सुन, .. माँ बोली, जब मुतवास लगती है बड़ी जोर से लेकिन क्लास में हो या जा नहीं सकती हो तो का करती हो,

छुटकी खिलखिलाती हुयी बोली,.. अरे कस के बिलिया भींच लेती हूँ और का, एक बूँद बाहर न निकले जिससे,...

चूम के गीता बोली,...

बस एकदम यही करना है कम से कम दस बार और घडी देख के दो मिनट तक पूरी ताकत से और जब ढीली करो तो एक झटके में नहीं बहुत धीरे धीरे पूरे एक मिनट में और यही काम चार पांच बार करो,... कहीं भी कभी भी, दिन में दस बार,... इससे चुदवाने में भी बड़ा मजा आता है , जब लौंडे का औजार पूरा घुस गया हो, तो बस धीरे धीरे कर के दबोच लो,... निचोड़ लो स्साले को,.. बुरिया में ऊँगली डाल के प्रैक्टिस कर, माँ मुझे करवाती थीं, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर, ... मैं भी करवाउंगी तुझे, ... तुझे छोटी बहन बनाया है स्साली तो सिखाना ही पड़ेगा लेकिन चल पहले रात का किस्सा बताती हूँ, बहुत सीखेगी तू। "



और गीता ने किस्सा सुनाना शुरू किया, किस्सा नहीं पूरा का पूरा सच,

" रात में सबसे पहले मैं और माँ मिल के अरविन्द भैया की ऐसी की तैसी करते थे,...

माँ मुझे कहती थी उसके सामने भैया का मुंह में ले के चूसूं,...ऐसे नहीं सिर्फ होंठों के जोर से बिना हाथ लगाए, खूब धीरे धीरे भैया का पूरा सुपाड़ा गप्प करना, और साथ में आँखे मेरी भैया को लगातार देखती रहती थीं उसे चिढ़ाती उकसाती थीं, और सपड़ सपड़ चाट के जब सुपाड़ा खूब गीला हो जाए तो बस, मुंह हटा लो और तड़पने दो,...




फिर मैं सिर्फ जीभ की टिप से अरविन्द भैया के मूत वाले छेड़ में घुसा के खूब सुरसुरी करती थी, बेचारा गिनगीनाता रहता, तड़पता रहता, और मैं सिर्फ जीभ की टिप से मूत वाले छेद से हलके हलके पहले मोटे तड़पते सुपाड़े पर फिर उस चमड़े के मोटे मूसल के बेस तक थूक लगा के सहलाते, रगड़ते और बॉल्स तक,...

" और माँ क्या करती थीं " छुटकी ने मजे लेते हुए पूछा।

" माँ तो और,... " गीता ने किस्सा आगे बढ़ाया,

"थोड़ी देर में हम माँ बेटी मिल के अरविन्द भैया के खूंटे का मजा लेते, कभी गन्ना वो चूसती और रसगुल्ला मैं, कभी एक साइड से वो जीभ लगा के और दूसरी साइड से मैं जीभ लगा के चाटतीं,.. चाटते चूसते कभी माँ, अरविन्द भैया को दिखा दिखा के मेरे होठं चूसने लगती , लेकिन अरविन्द भैया को छोड़ती नहीं थी जब हम वो की जीभ होंठ लंड को छोड़ देती तो माँ की उँगलियाँ मैदान में आ जातीं और वो भैया के खूंटे को पकड़ के मुठियाने लगती और उनकी उँगलियाँ जब खूंटे को पकड़तीं तो मैं भैया की बॉल्स को, ...




तू ही सोच कोई स्साला लौंडा, अगर उसकी जवान होती कच्ची उमर वाली बहन और मस्त बड़ी बड़ी कड़ी कड़ी चूँची वाली माँ, मिल के ऐसी की तैसी करेंगी तो क्या हालत होगी,... "

छुटकी के दिमाग में तो सिर्फ गितवा के भाई अरविन्द का मोटा खड़ा तन्नाया लंड ही नजर आ रहा था उसके मुंह से निकल गया,

" बेचारे अरविन्द भैया"


गीता बड़े जोर से खिलखिलाई,


" और क्या दो दो मस्त माल सामने और चोदने को नहीं मिल रहा,... कम से कम घंटे भर माँ, अरविन्द भैया को तड़पाती लेकिन सबसे ज्यादा मजा तब आता जब भैया को बिना छुए वो उसकी हालत खराब कर देती,

" बिन छुए, ... कैसे" गीता की आँखे विस्मय से फ़ैल गयीं,

" माँ के आगे सब फेल,.. माँ पीछे से मुझे अपनी गोद में दुबका लेती थी फिर उसके दोनों हाथ मेरी छोटी छोटी चूँचियों पे, क्या मस्त दबाती है माँ,... कभी हलके हलके छूती तो कभी कस के दबोच लेती,... कभी मेरी किसमिश ऐसे निपल पकड़ के जोर जोर से पुल करती,





देख देख के भैया की हालत ख़राब, डंडा एकदम टनटना जाता, बेचारे का. लेकिन माँ की उँगलियों से मेरी हालत भी कम खराब नहीं होती, मेरी फांके गीली होने लगतीं, मेरी हथेलियां खुद मेरी पनियाई चूत पे हलके हलके सहलाने लगतीं,... मेरे मुंह से जोर जोर से सिसकियाँ निकलतीं और साथ में उफ्फ्फ माँ के चुम्मी, नहीं चेहरे पे नहीं,... कभी गले पे , कभी कंधे पे, भैया को दिखाते ललचाते, और भैया का खूंटा एकदम हवा में तना पूरे बित्ते भर का, तड़पता,...

और ये सोच के सुन के छुटकी भी गीली हो रही थी पर बिन बोले, टोके गीता की बात वो सुन रही थी,... और गीता सुना रही थी,

" माँ, अरविन्द भैया को ललचाते अपने दोनों हाथों से मेरी अमिया उठा के पकड़ एक उसे दिखातीं और ललचातीं, बोलतीं, " देख, मेरी बेटी के जुबना कितने मस्त है, स्साली इस गाँव क्या आस पास के किसी गाँव में किसी माल का इत्ता मस्त जोबन नहीं है, बोल चाहिए क्या ? और भैया लिबराता देखता तो माँ और उसे हड़काती, स्साले दो साल पहले से इसकी कच्ची अमिया आने लगी थीं , गांव भर के लौंडो को महक लग गयी थी, सब पीछे पड़े थे,.. और तू बुरबक,... अरे तभी पकड़ के चोद देता, दो चार बार जबरदस्ती पेलता रोती गाती कुछ दिन में खुद चुदवाने लगती,... लेकिन तू भी न,... पर सोच ले चाहिए तो मेरी सब बात माननी पड़ेगी "
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