“”माँ बेटी का प्यार दुलार
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" माँ, अरविन्द भैया को ललचाते अपने दोनों हाथों से मेरी अमिया उठा के पकड़ एक उसे दिखातीं और ललचातीं, बोलतीं,
" देख, मेरी बेटी के जुबना कितने मस्त है, स्साली इस गाँव क्या आस पास के किसी गाँव में किसी माल का इत्ता मस्त जोबन नहीं है, बोल चाहिए क्या ? और भैया लिबराता देखता तो माँ और उसे हड़काती, स्साले दो साल पहले से इसकी कच्ची अमिया आने लगी थीं , गांव भर के लौंडो को महक लग गयी थी, सब पीछे पड़े थे,..
और तू बुरबक,... अरे तभी पकड़ के चोद देता, दो चार बार जबरदस्ती पेलता रोती गाती कुछ दिन में खुद चुदवाने लगती,... लेकिन तू भी न,... पर सोच ले चाहिए तो मेरी सब बात माननी पड़ेगी "
" कौन सी बात माँ की " अब छुटकी से नहीं रहा गया उसने पूछ ही लिया, पर गीता ने नहीं बताया उसने किस्सा जारी रखा,
" मैं भी भैया को ललचाती हुयी बोलती,
आओ न भैया, तेरा मन नहीं कर रहा अपनी बहन की लेने का क्या, उह्ह आह्हः , देख मेरी महारानी किती गीली हो रही है , आओ न अरविन्द भैया, प्लीज,... "
भैया जैसे मेरी ओर आने को होता माँ उसे रोक देती बोलती,
पहले मैं दुलारी प्यारी बेटी की चाशनी चाटूँगी, तू चुपचाप मेरी बात मान और माँ बेटी का प्यार दुलार देख। "
फिर माँ मेरे पास आके मेरी एक टांग उठा के पहले तो मेरी प्यारी गीली बौराई सहेली को हलके हलके थपकाती, फिर हल्के हलके सिर्फ जीभ की टिप मेरी चूत की दोनों फांकों को अलग करती और फांकों के बीच में थोड़ा सा प्रेशर डल के जैसे कोई लौंडा बिनचुदी चूत में अपना सुपाड़ा फंसाता है माँ एकदम उसी तरह से , हलके हलके आगे पीछे,...
मस्ती से में चूतड़ उचकाती और पीछे से भैया निहुरि हुई माँ के पिछवाड़े जीभ लगा के सपड़ सपड़ , जितनी जोर से माँ मेरा चाटती, चूसती, उससे ज्यादा जोर से भैया माँ का,... "
" अरविन्द भैया माँ की बुर चूसता,... " छुटकी से रहा नहीं गया उसने पूछ लिया।
गीता बड़ी देर तक हंसती रही, फिर बोली ,
" तू स्साली सब पूछ के दम लेगी। हां भी नहीं भी। पहले तो वो माँ की बुर में ही मुंह लगाता,... लेकिन कुछ देर बाद माँ हल्के से झटके,...माँ के बड़े बड़े चूतड़ कोई भी लहालोट हो जाता तो अरविन्द भैया भी,... और माँ को एकदम मालूम था तो उस झटके से माँ के पिछवाड़े का छेद, और भैया का मालूम था की वहां ऊपर से चाटने से काम नहीं चलेगा पूरी जीभ अंदर डालनी पड़ेगी जबतक जीभ की टिप पे अंदर का माल न लगे , और फिर जैसे ऊँगली अंदर डाल के घुमाते हैं न उसी तरह से जीभ से, माँ ने अरविन्द और मुझे दोनों अच्छी तरह से ये सब सिखा दिया था, पिछवाड़े चाटना, चूसना,... मैं तुझे भी सिखा दूंगी, घबड़ा मत,"
गीता थोड़ी रुकी फिर फ़ास्ट फारवर्ड किया,...
" और जब भैया मुझे चूसता , तो मेरे मुंह पे माँ की बुर माँ खूब रगड़ रगड़ के मुझसे चुसवाती, ... और बेचारे अरविन्द भैया के ये देख के और हालत ख़राब,... और जब मैं अरविन्द भैया का लंड चूसती तो माँ उसके ऊपर चढ़के उससे अपनी बुर चुसवाती, खूब मजा आता ,लेकिन घंटे भर से पहले मैं अरविन्द भैया को चोदने के लिए नहीं मिलती थी।
और जब चुदाई शुरू होती तो,... कोई रात ऐसी नहीं गयी होगी जब मैं सात आठ बार से कम झड़ी होऊं और भैया भी तीन चार बार से कम कभी नहीं , कम से कम दो बार मेरे अंदर और एक दो बार माँ के अंदर मलाई छोड़ता ,...
और उसके अलावा जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो जाती तो उस समय जबरदस्ती कर के भैया मुझे निहुरा के अगवाड़े पिछवाड़े मलाई जरूर भरता
और गाँड़ तो जब मेरी कमीनी सहेलियां आ जातीं उसके बाद ऐसे हचक हचक के मारता, सहेलियों का कन्धा पकड़ के, उन्ही के सहारे सहारे मैं स्कूल जा पाती"
और माँ कित्ती बार ,...
छुटकी को तो पूरा हिसाब चाहिए था और गीता थोड़ा उदास हो गयी बोली, मुश्किल से एक दो बार। फिर कुछ सोच के मुस्कराते हुए बोली , लेकिन हाँ एक रात मैंने और भैया ने तय कर लिया था की आज माँ की हम दोनों भाई बहन मिल के ,... और उस दिन चार बार माँ झड़ी रात में , .. और फिर गीता ने वो किस्सा माँ का , विस्तार से सुनाया।
वैसे तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, जब मैं अरविन्द भैया और माँ, चाहे दिन हो या रात मस्ती नहीं करते थे. हाँ जब मैं नहीं रहती थी, स्कूल में या सहेलियों के साथ मटरगस्ती करने तो माँ और भैया कोई बदमाशी नहीं करते थे, ...
लेकिन एक दिन मैंने और भैया ने तय कर लिया था की आज माँ की जबरदस्त रगड़ाई करनी है, हम दोनों तो वैसे भी मौका पाते ही बदमाशी चालू कर देते थे, चुम्मा चाटी, मेरी छोटी छोटी चूँची दबाना, मसलना , खास तौर से मेरी सहेलियों के सामने उन्हें ललचाते जलाते, और मैं भी कौन कम, बस उसकी जांघिया नीचे सरका के चुसूर चुसूर चूस के खड़ा कर देती और देने के समय अपने चूतड मटका के, मुड़ के जीभ चिढ़ाते हुए बाहर भाग जाती थी.
मैं जानती थी की पकड़ में आउंगी तो अरविन्द भैया हचक के गाँड़ मारेगा, .. तो मारे न,.. मेरा एकलौता प्यारा मीठा सा सगा भाई है, वो स्साला बहनचोद नहीं मारेगा तो कौन मारेगा। लेकिन वो दिन मैंने और अरविन्द भैया ने माँ के नाम कर दिया और सोच के खूब जुगत लगा के,... गितवा छुटकी को सुनाते समझाते बोली।
छुटकी भी खूब ध्यान से सुन रही थी, सुन सुन के सोच सोच के पिघल रही थी। गीता सुना रही थी, उस दिन की बात,
" शाम से ही माँ कुछ उदास लग रही थी. हम दोनों की बात का जवाब हूँ हां में दे रही थी, हम दोनों आपस में बदमाशी भी करते, लड़ते तो डांट नहीं रही थी,... पता नहीं कहा था ध्यान उसका। ग्वालिन भौजी भी, उनसे तो रोज माँ खूब चहक चहक के बात करती थी, और भौजी भी गाँव की कुल लड़कियों औरतों का हाल मिर्च मसाले के साथ,..और अब तो मेरे सामने भी,... कौन किससे फंसी है, हमारे टोला के साथ, चमरौटी, भरौटी, अहिरोटी कोई पुरवा नहीं बचता था,... कौन भौजाई अपने मरद के पंजाब जाने के बाद देवर के साथ बिना नागा सोती है, कौन लड़की जवान हो रही है , कहाँ सास बहु मिल के किस लौंडे को फांस रही हैं, सब कुछ,...
लेकिन उस दिन माँ ने उन्हें भी बस दो चार मिनट में निपटा दिया,... "
छुटकी को तो सीधे एडल्ट सीन में इंट्रेस्ट था वो फ़ास्ट फारवर्ड करते बोली, वो बताइये न दी, कैसे आप ने और अरविन्द भैया ने मिल के, आप ही तो कह रही थीं की माँ कभी भी रात भर में एक दो बार से ज्यादा नहीं झड़ती थी जबकि आप सात आठ बार, अरविन्द भैया चार बार,...
गीता उस रात की बात याद करके खिलखिलाने लगी और उसने भी गाड़ी चौथे गियर में डाल दी। और बताना शुरू किया,...
" मैं भी भैया को ललचाती हुयी बोलती,
आओ न भैया, तेरा मन नहीं कर रहा अपनी बहन की लेने का क्या, उह्ह आह्हः , देख मेरी महारानी किती गीली हो रही है , आओ न अरविन्द भैया, प्लीज,... "
भैया जैसे मेरी ओर आने को होता माँ उसे रोक देती बोलती,
पहले मैं दुलारी प्यारी बेटी की चाशनी चाटूँगी, तू चुपचाप मेरी बात मान और माँ बेटी का प्यार दुलार देख। "
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Garam scene
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