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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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और फुलवा चिढ़ाएगी भी उसे, ... फिर चमेलिया ने अपना और गितवा का भीफिर तो बार-बार आएगी...
ऐसे स्वाद के लिए...
Thanks soooooooooo much९००००० व्यूज के लिए मुबारकां....
आप तो आरुषि जी की तरह कविता करने लगेचाची को चाव से..
भाभी को भाव से...
दीदी को दांव से...
गितवा धीरे धीरे गाँव के सब रसम रिवाज सीख रही है और चमेलिया हैं न उसको सब अड्डे बताने वालीगन्ने और अरहर का खेत तो सबसे माकूल जगह है... साथ में बंसवाड़ी भी..
Ekdam sahi kaha aapneलेकिन एक बार जब खड़ा हो गया तो फिर बिना फाड़े वापस म्यान में नहीं आएगा...
अरे उसकी चाल से ही पता चल जाएगा कीस्पेशल हलवा खिलाई...
और अब मुँह के बजाय.. गांड़ दिखाएगी...
एकदम सही कहा आपनेये प्यार का जंग है...
तलवार और म्यान दोनों इसका लुत्फ उठाएंगे...
आप कविता की चंद पंक्तयों में जो दुःख बयान कर देती हैं, वो गद्य के दस पन्ने भी नहीं कर पाते, जीवन यही सुख दुःख का धूप छाँव का खेला है,खो गई है ख़ुशियाँ
मुस्कान क़ायम है
दर्द दफ़्न हैं सीने में
कतरा कतरा ख़त्म
हो रहा है सब कुछ
मर चुकी है ज़िंदगी
साँसें क़ायम है
आँसू जो बहा नहीं आँखों से
चीख जो निकली नहीं ज़बान से
नील पड़े हैं मन की देह पर
डरे सहमे हैं ख़्वाब झूठे
यथार्थ का सच क़ायम है