और छुटकी ने अपने योगदान से पाशा पलटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई...वो गलती तो नैना की थी, ननदों को उसने चढ़ाया था। स्कीम ननदो की थी छुटकी को पकड़ के सबके सामने खूब रगड़ेंगे, और कहते हैं चालाक से चालाक अपराधी एक गलती जरूर करता है और ननदें भी तो उसी तरह,... तो वो गलती हो गयी उनसे, बड़ी जिद्द करके उनकी ये शर्त मानी गयी , उसके बदले में नंदों की टीम ने सब शर्ते मान ली. टीम में पुरवा की बाहर की भौजाइयां ( चमेलिया, गुलबिया, चननिया, और रमजनिया ) मैच का टाइम कम कर दिया।
उन्हें अंदाज नहीं था की कुछ दिन पहले ही छुटकी का सेलेक्शन स्टेट लेवल पर अंडर १५ में होने से रह गया था और वो रीजनल चैम्पियन कब्बडी की टीम का हिस्सा थी।
और छुटकी के आने से मैच जीतने में बड़ी मदद मिली
दूसरी बात अगले दिन वाली होली में सब ननदें भी नहीं आतीं, सिर्फ वो जो ससुराल न गयी हों, और देवर भी खाली कुंवारे। सास का तो एकदम मना था। और गाँव की बहुएं
कबड्डी वाले दिन तो सब लड़की औरतें
और वैसे भी छुटकी गीता के साथ गयी थी , और गीता ने अपनी शर्त यही बताई थी चार दिन तक अब छुटकी उसी के साथ
साथ हीं नैना को हार का सामना कर अपनी गलती की भरपाई भी करनी पड़ी....