इस खाका में आपने रंग भरने हैं...
जबरदस्त आने वाली घटनाओ का क्या जबदस्त चित्र खींचा आपने,
आप ही के बस है
मेरा भाई मेरी जान
इस खाका में आपने रंग भरने हैं...
जबरदस्त आने वाली घटनाओ का क्या जबदस्त चित्र खींचा आपने,
आप ही के बस है
मेरा भाई मेरी जान
बेजोड़....सच कहा आपने
आरुषि जी अपना उदाहरण आप ही हैं अतुल्य
एकदम सही कहा आपने, कमल भी तो यही चाहता है,
अगली दस पंद्रह पोस्टों में आपको इन्सेस्ट के ढेर सारे रंग दिखेंगेआपकी लेखन शैली सबसे अलग है कोमल दीदी, कामुकता है तो कामसूत्र का ज्ञान भी..... मर्द हो या औरत, अगर ध्यान से पढ़े तो अपने पार्टनर को खुश रखने का तरीका भी सीख ले..... ऊपर से इंसेस्ट लवर होने के नाते तो मैं आपकी शैली में हर तरह का इंसेस्ट पढ़ना चाहूंगा
अरे ललिया तो चली गयी अपने बाबू जी, पटवारी के साथ, गाँव वालों ने तबादला करवा दिया, लेकिन अगर वापस आ गयी तो पकड़ के कहानी में घसीट के ले आउंगी और अपनी सहेली की बात भी नहीं मानूंगीललिया का लाल हरा पीला सब करना बनता है...
और वो भी तब तक जब तक रेनुआ (सखी) और कमल से सौ बार अपने किए की माफी न मांग ले...
और डर ये भी था की कच्ची कोरी कुंवारी बहन का स्वाद लगने के बाद तो दिन रात उसी कुइंया में डूबा रहेगा, ललिया का नंबर ही नहीं लगेगाऐसे तगड़े सांड को बांटना नहीं चाहती...
एकदम इस के प्रीक्वेल में सुनील और उसके दोस्त, देवरानी चमेलिया का साजन कल्लू, होली जिसके घर को बिना छुए निकल गयी थी,होली का मौका है...
और देवर भौजाई की होली तो कभी भी...
सात शतक की हार्दिक बधाइयाँ...
Wowww mazaa aa gaya kabaddi match me. You are just superb Komal ji.जीत गयी भौजाइयां
अब ढाई मिनट बचे थे। यानी हमारी ओर से कोई एक जाना था
और हम दो प्वाइंट से आगे , हमारी तरफ चार, मैं मिश्राइन भौजी , गुलबिया और मेरी देवरानी चमेलिया।
उधर नैना और पायल , ... लास्ट मूमेंट था गेम का।
मिश्राइन भौजी ने मुझे इशारा किया जाने का, और मैं पाला पार कर के नंदों के इलाके में
अब तो मैच उस तरह से था जैसे आखिरी बाल पे नंदों को नौ रन बनाना हो, छक्का मारने से भी नहीं, जब तक नो बाल न हो और मैं नो बाल, कोई फाउल नहीं करने वाली थी. लेकिन मान गयी मैं नैना को, उसमे उतना ही जोश था और पायल को भी जोश दिला रही थी,... दोनों दो ओर दो अलग कोनों,... मैंने पहले पायल की ओर हमला किया, ... मैं जानती थी की नैना पीछे से पकड़ने आएगी जब मैं पायल के पास पहुंचूंगी,.... पर पायल के पास पहुंचने के पहले मैं मुड़ के नैना की ओर,... अब पायल को टाइम लगना था पीछे से घेरने में और मैं लाइन से बहुत दूर नहीं थी, चमेलिया और गुलबिया दोनों एकदम लाइन के पास,... अगर मैं डाइव मार के लाइन पार करूँ तो वो दोनों मुझे पकड़ के खींच ले,
लेकिन मैच का फैसला हो चुका था, अगर मैं आउट भी हो जाती हमारी टीम एक प्वाइंट से जीत जाती,...
बाहर बैठी भौजाइयों ने ननदों को घेर लिया था, और एक से एक गालियां, ... बस मैच ख़तम होने का इन्तजार था,
हमारी टीम और ननदों के टीम के जो लोग आउट हो गए थे वो भी लाइन के किनारे बैठी,
मिश्राइन भाभी अब बाहर बैठी भौजाइयों को ललकार रही थीं,..
." कउनो स्साली छुप के बच के जानी नहीं चाहिए,... आपन आपन माल छांट लो,... अरे वो देखो मितवा कहाँ छिप रही है, अरे आज तोहरी महतारी के भोंसड़ी में से निकाल ले आएंगे , कहाँ जाओगी तोहार भैया भी नहीं है जिनसे चुदवाने जा रही है"
बड़ी जोर से आवाज आयी मेरी एक जेठानी की,... " अरे हमरे देवर से तो रोज चुदवाती हो आज भौजाई से चोदवाय के मजा लो,... आज बिन चोदे, गाँड़ मारे छोड़ना नहीं,..."
वो वही थीं जिन्होंने मंजू भाभी के यहाँ मेरी बात मना की थी कि हम लोग ननदों को हरा देंगे बस थोड़ी सी स्ट्रेटजी, बोली फालतू अरे नयको तोहार पहली होली है, चुपचाप हार मानने में ही अरे पिछले चार साल से मैं टीम में हूँ , पर साल तो खाली गीता थी अबकी नैना भी आगयी,... अब तो किसी सूरत में भौजाई नहीं जीत सकतीं,... "
जब टीम बनी तो हम लोगों ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था और आज हम जीत की ओर थे तो सबसे जोश में वही,..
मैं बार बार कभी नैना कभी पायल , लेकिन कभी किसी के इतना पास नहीं जाती थी की दोनों ओर से घिर जाऊं,...
तभी एनाउंस हुआ बस एक मिनट और,...
और चमेलिया गुलबिया पायल को चिढ़ा रही थीं,...
रात पायल कहाँ बजी,... हमरे भैया के संग बजी, हमरे भैया से चोदावत बजी, गाँड़ मरावत बजी,
मैंने एक बार फिर पायल की ओर हमला किया, तेज वो भी थी कम्मो इतना तो नहीं फिर भी, कन्नी काटने में बहुत तेज, अचानक से मुड़ कर वो मेरे पीछे पहुँच गयी और नैना भी दूसरी ओर से बढ़ी,... मैं उस समय बाएं और थी ,
चमेलिया गुलबिया बोल रही थीं वापस, वापस
कोई कह सकता है की मैंने पायल या नैना को आउट करने की कोशिश क्यों नहीं की,... दो तीन बातें थीं पहले तो हम लोग दो प्वाइंट से आगे थे तो जीतना तो पक्का था , दो प्वाइंट से जीतें या तीन प्वाइंट से,... लेकिन अगर कहीं मैं पकड़ी जाती, मेरी सांस छूट जाती तो मैं आउट, मेरी रगड़ाई होती सो होती, बाहर बैठी ननदों का मोरल जो अभी डाउन था , थोड़ा ऊपर हो जाता,
दूसरे पायल भले ही उछल रही थी पर नैना भी मान चुकी थी की मैच ख़त्म हो गया है तो वैसे में नैना को आउट करके उसकी इतनी दिनों की साख मैं खराब नहीं करना चाहती थी, ... अगर मैच फंसा होता, एक राउंड बाकी होता तो बात अलग थी, और ऐसे में नैना के पीछे पड़ने का मतलब नहीं था और एक बात यह थी की मैं भी थक रही थी कल रात एक पल नहीं सोई थी पहले नन्दोई जी के साथ, फिर इनके साथ,... रत जगा तो चलिए रोज की बात थी लेकिन सुबह सुबह चंदू देवर के साथ ( भाग २४ देवर भाभी की होली पृष्ठ ११३ ) वो चंदू जिसका नाम लेने से लड़कियां क्या औरतें कांपती थीं, चार चार बच्चो की माँ भोसड़ी वालियां उसका एक बार घोंट लेती थी तो हफ़्तों सहारा लेकर चलती थीं, उसके साथ सुबह सुबह दो राउंड,... और पहले राउंड में तो मैं ही ऊपर पूरे कमर का जोर लगा के,... दूसरे राउंड में आधे से ऊपर कीचड़ में रगड़ के आम के पेड़ के सहारे खड़ा कर के,... निहुरा के,... और वहां से निकली तो मंजू भाभी के यहाँ चुन्नू का भोग लगाया,... फिर तब से कबड्डी की प्लानिंग तो मैं भी बस टाइम पास कर रही थी
असली चीज थी भौजाइयों का जीतना, और मैंने अपनी टीम के साथ दिखा दिया था तो आखिरी मिनट पर रिस्क लेने का मतलब भी नहीं था और मिश्राइन भाभी ने मेरे आने के पहले दस बार समझाया भी था
मैंने नैना को पास आने दिया,... और फिर तीर की तेजी से दाएं छोर पे मैदान के अब उन दोनों को मैं ललचा रही थी,
" जो मुझे पकड़ लेगा उसकी की गाँड़ में मैं मुट्ठी नहीं करूंगी, ... ( मैंने ये नहीं कहा था की उसकी गाँड़ में मुट्ठी नहीं होंगी, चमेलिया और गुलबिया दोनों बौरायीं थी पायल की गाँड़ मारने के लिए , लेकिन कल पहले अपने सगे भैया के खूंटे के ऊपर चढ़ेगी उसके बाद,... )
हे पायल, तय कर लो मेरे किस किस देवर से कल चुदवाओगी,...
मैं खड़े खड़े चिढ़ा रही थी पर साथ साथ कनखियों से देख रही थी नैना चुपके से मेरे पीछे की ओर ,....
और मैं भाग कर लाइन के पास वहां से एक बार फिर उन दोनों को ललचा रही थी,...
तबतक अनाउंस हुआ टाइम ओवर,
मैं लाइन के पास ही थी, मैंने लाइन अपनी ओर पार कर ली,...
एक बार मंजू भाभी, दूबे भाभी,... मोहिनी और रज्जो ने जोर का हल्ला किया,
और उनसे ज्यादा बाहर बैठी भौजाइयों ने , हल्ला किया ,जिसके हाथ जो ननद लगी, उसे पकड़ के दबोच लिया, चननिया, रामजनिया और दो चार भौजाइयां जो बच के छिप के भाग रही थीं उन ननदों को पकड़ के घसीटा, एक भी नहीं बच पायी
भौजाइयों का हल्ला आसमान छू रहा था।
चमेलिया और गुलबिया ने साथ साथ लाइन पार की और पायल को दबोच के आराम से पहले उसका टॉप फाड़ा और कुछ बोला,...
लेगिंग उसने खुद उतार के चमेलिया को पकड़ा दी,
और एक बार मैं फिर लाइन के पार थी दौड़ती हुयी, नैना कबड्डी के मैदान के दूसरी ओर अकेले थी, ...
अपने घुटनों के बल बैठी, मुझे देख कर खड़ी हुयी पर मैंने उसे कस के अँकवार में में भेंट लिया जैसे दो बहनें सालों बाद मिली हों, ....
नैना ननद से बढ़ कर मेरी सहेली भी थी, गाँव के बारे में", गाँव के लड़के लड़कियों के बारे में जितना उसे मालूम था जितना उसने मुझे एक ही मुलाक़ात में बताया, बिना बोले हम दोनों कस के एक दूसरे को भींचे खड़ी रहीं फिर बैठ गयीं।
हाँ बाद में जब उन्हें आसीर्बाद मिला की पांच दिन में ही वो गाभिन होंगी और नौ महीने में मुझे मामी बना देंगी,.... तो एक और बदमासी मेरे दिमांग में बताउंगी,... बताउंगी सब फुल डिटेल, और दो तीन पार्ट में और सिर्फ ननद की नहीं मेरी सास की भी,... लेकिन अभी बात तो गाँव की बगिया की और मेरी सारी ननदिया की,...भाग ७२ - मेरा भाई मेरी जान
किस्से भैया बहिनिया के
12,93,990
सुबह रेनू और कमल की गाँठ जुड़वानी है ,
देवर को ननद पर चढाने से बड़ा पुण्य काम भौजाई के लिए क्या होगा।
और अब बात अगले दिन की, मेरी सारी गाँव भर की नंदों ने मनाया, मेरा भाई मेरी जान,...
जिसके जिसके सगे भाई थे, छोटे बड़े, सब चढ़े अपनी बहनों पर, कच्ची कलियाँ हो, बिन ब्याही चुदी ननदें हो या ब्याही और गौना न हुआ, साजन के पहले भाइयों ने नंबर लगाया, कुछ ने सीधे, कुछ ने धोखे से कुछ ने जबरदस्ती, लेकिन सबका पानी बच्चेदानी तक गया,... और जिसके सगे नहीं थी, तो चचेरे, नहीं तो उसी पट्टी के जिसको वो राखी बांधती थी, सबके सामने भैया भैया बोलती थीं, उन सब के संग जम के चुदेया हुयी और वो भी बीच गाँव में सब भौजाइयों के सामने,... न कोई ननद बची न बिन ब्याहा देवर, सब ने होली के संग राखी मनाई,
अब आप ये मत समझिये की मैंअपनी सगी ननद और उनके सगे भैया की कबड्डी गोल कर गयी, वो तो सारी रात चली और मेरे सामने चली, ... और कित्ती मुश्किल से फंसी थी, स्साली ( वैसे तो सब ननदें साली होती है लेकिन मेरी ननद तो असली वाली थीं,... मेरा ममेरा भाई, उनकी छोटी बहन मेरी सबसे छोटी ननद जो छुटकी की समौरिया, उसकी झिल्ली ऐन होली के दिन फाड़ गया, और मैंने खुद देखा,... बाद में ननद के बिल में से ऊँगली निकाल के अपने भैया की मलाई भी उसे चटाई,... तो जिसकी बहन मेरे भैया से चुदी, तो मेरे भैया की स्साली ही तो हुयी, बड़ी ही सही,... तो उसकी साली तो मेरी साली )
चमेलिया और गुलबिया दोनों ने जुगत लगाई और मिश्राइन भाभी ने भी घी डाला,...
दोंनो छेदो में डबल फिस्टिंग, पिछवाड़े चमेलिया और गुलबिया की मुट्ठी घुसती, अगवाड़े मेरी दोनों,... और बस मेरी ननद हदस गयी, वो समझी सचमुच,... खास तौर से पिछवाड़े,... कुछ दर्द का डर, कुछ बिना बियाये, बुर के भोंसड़ा होने का डर,... बस मान गयी मेरी शर्त, अपने भैया की गोदी में बैठ के चुम्मा चाटी, मेरे साजन के खूंटे पे बैठने की बात,...
और मेरे सामने,... और वैसे भी ननद भौजाई में कौन सरम,... कौन सबके सामने,... मेरे ही सामने तो,...
हाँ बाद में जब उन्हें आसीर्बाद मिला की पांच दिन में ही वो गाभिन होंगी और नौ महीने में मुझे मामी बना देंगी,.... तो एक और बदमासी मेरे दिमांग में बताउंगी,... बताउंगी सब फुल डिटेल, और दो तीन पार्ट में और सिर्फ ननद की नहीं मेरी सास की भी,... लेकिन अभी बात तो गाँव की बगिया की और मेरी सारी ननदिया की,...
ननदों को हम लोगों ने दस बजे बुलाया था, और देवरों को साढ़े दस बजे, ननदों को छुटकी बगिया में और देवरों को बड़की बगिया में, दोनों सटी थीं, अगल बगल बस बीच में एक पतली सी पगडण्डी जहाँ से कभी कभार कोई भूला भटका ही जाता था, दोनों बगिया गझिन थी, दुपहरिया में अमावस,... लेकिन बड़की बगिया के बीच में एक थोड़ा खूला मैदान था,... जहाँ कल कबड्डी हुयी थी,...
और नंदों को दस बजे बुलाया गया था तो साढ़े नौ बजे के पहले हम सबो को पहुंचना ही था,
मुझे कुछ सोचना नहीं था क्या पहनूं, दूबे भाभी ने कल बता दिया था आसीर्बाद में होलिका माई की जो उतरन मिली थी,... उसके जबरदस्त असर के बारे में,... वो साड़ी पहनने के बाद, चाहे सास हो चाहे ननद चाहे देवर या कोई, बस एक नजर और उसके बाद वो सोच भी नहीं सकता था पहनने वाली की कोई बात टाले,... और कोई कहने की जरूरत भी नहीं होती जो सोचो वही अपने आप उसके मन में दिमाग में पत्थर की लकीर,
लेकिन असर और भी थे, होली तो मदन का त्योहार और होलिका माई रति का रूप, तो पहनने वाली और देखने वाली/वाले दोनों के मन में मन्मथ इस तरह मथता था की बस काम भावना ही,... फिर रिश्ता नाता कुछ नहीं बस जो सामने दिखे उस पे चढ़ जाने का मन,... लेकिन अच्छा हुआ दूबे भाभी ने उसको पहनने का गुन ढंग भी समझा दिया था,
सिर्फ वही उतरन की साड़ी, देह पे उसके बाद एक चिथड़ा भी नहीं बचना चाहिए, हर अंग पे उस माई के परसाद का स्पर्श होना चाहिए और फिर आधे घंटे के अंदर उसका असर पूरा हो जायेगा, जोबन एकदम पथरा जायँगे, जैसे प्रस्तर प्रतिमाओ में होते हैं,... निपल दोनों बरछी की नोक, योनि से हल्का हल्का मादक अलग ढंग की महक वाला स्त्राव निकलना शुरू करेगा, बस बूँद बूँद और उसकी महक जिस मरद की नाक में भी पड़ी तो बसंत में फूलों से भरी बगिया में जो
भौरे की हालत होती है, वही हालत होगी,... और बदमासी में कही वो एक बूँद किसी मर्द को चखा दिया, तो फिर तो खरगोश भी सांड़ हो जायेगा,... और अगर पहले से सांड़ हो तो दस सांड़ों की ताकत आ जायेगी,...
पर उस के साथ जरूरी है सुहागन का सोलह सिंगार, मांग में भरभराता, सिन्दूर, गले में मंगल सूत्र, आँखों में काजल, होंठों पे लाली हलकी नहीं पूरी और पैरों में घुंघरू वाले बिछुए,... कोहनी तक चूड़ियां, कुछ चुरमुर करें कुछ चटके,
देवर को भाभी पर चढ़ने में मजा तभी आता है, जब चढ़े हुए वो भौजाई के मांग में किसी और का सिन्दूर देखता है, गले में मंगल सूत्र दोनों उभारों के बीच दबा छुपा, तो वो और जोर से पूरी ताकत से धक्के लगाने लगता है , भाई के नाम का सिन्दूर और मंगल सूत्र देखकर खूंटा और कड़ा हो जाता है, ... खूब रगड़ रगड़ कर दरेर कर पेलता है और भाभी ये सब समझते हुए और जोर से नीचे से चूतड़ उठा उठा के देवर के धक्कों का जवाब देती है,
सच है,.. किसी और की कुर्सी में बैठने का मजा ही और है।
तो मैं आधे घंटे तक रगड़ रगड़ के नहाई सोलह सिंगार किया, उबटन लगाया और फिर एक बार होलिका माई को स्मरण करके उनका परसाद, उनकी उतरन वो खूब चटक लाल रंग वाली साड़ी पहनी, अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं था और हाँ जोबन पे ऐसे कस के बाँधा था की कुश्ती में भी न खुलें जब तक मैं न चाहूँ . और सिर्फ मैं ही नहीं जितनी मेरी जेठानियाँ थी ( और अकेली देवरानी चमेलिया, कल्लू हमरे कहार क दुल्हिन भी ). सब की सब उसी तरह से सिर्फ लाल साड़ी न ब्लाउज न साया और उभारों पर खूब कस के बंधी,...
एक झलक भी नहीं, आखिर आज देवरों को ललचाना भी तो था, और सबसे बढ़िया, जब चाहो तब खाली पतले से छल्ले की तरह कमर पर अटका, और देवर के ऊपर चढ़ के उसको चोद दो, ननद को चटा दो, शरबत पिला दो,...
मैं मोहिनी भौजी के साथ ही पहुंची, वो बगल में ही रहती थीं. हम दोनों सीधे छोटी बगिया में जहाँ ननदों को आना था अभी भी पंद्रह बीस मिनट बाकी था। लेकिन हम लोगों के पहले रमजनिया, आशा बहू और उनकी सहेली आ चुकी थीं. उसी के साथ साथ चमेलिया और गुलबिया भी आ गयीं,...
आशा बहू को बोला गया था अंतरा की सूई २०-२५ ले आने के लिए ( गाँव में ये सूई आशा बहू ही लगाती हैं , तीन महीने तक कितना भी कोई लड़की मलाई खाये, पेट नहीं फूलेगा १४ से ४४ तक सब उम्र वालों के लिए ठीक है )आशा बहू थी तो बगल के गाँव की लेकिन रिश्ते में तो बजाय २०-२५ के पूरे ४० लायी थीं साथ में उनकी सहेली भी जिससे आधे पौने घंटे में सब ननदों को ( लीला और नीलू को छोड़ के उन दोनों को तो तीन महीने में गौने जाना था, तो जायँ पेट फुला के, सास भी खुस हो गयी जब दुल्हिन उतारने के महीने भर के अंदर खट्टा मांगेगी, उलटी शुरू कर देगी ),...
रमजनिया पूरी तैयारी के साथ आयी थी,
आज उसे रहना नहीं था साढ़े ग्यारह बजे के करीब कहीं जाना था. जड़ी बूटियों के मामले में उस का कोई जोड़ नहीं था सौ पचास गाँव तक, दूबे भाभी ने उसे अच्छी तरह समझाया था, तो वो नंदों और देवरों के दोनों के लिए,... दो चार जड़ी बूटी बड़ी तगड़ी नंदों के लिए,... और दो चार देवरों के लिए,... ननदों वाली ठंडाई में मिला के देनी थी। उस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाना था, ऐसी मस्ती चढ़ती,... सगे भाई पर चढ़ के चोद दे ऐसी आग लगेगी चूत में, और ठंडाई में भांग तो थी ही,...वैसे भी ननदों पर जो कल परसाद वाला भभूत मैंने लगाया था उसका असर पूरे २४ घंटा रहना ही था , काम के पूरी तरह सब बस में रहतीं।
और लड़कों वाला और खतरनाक था एक तो रमजानिया दूबे भाभी से ढेर सारे शिलाजीत की असली गोलियां, मजमे वाली नहीं, असली,... जो सच में बकरे को सांड़ बना दे और सांड़ को दस सांड़ की ताकत दे,... वो लड्डू ऐसी गोलियों में और रामजनिया अपनी बूटियां मिला रही थी, उसके दो असर थे एक तो फ्रीक्वेंसी,... जिसका मुश्किल से सुबह दूसरी बार सुबह जाके खड़ा हो वो भी छह बार के पहले न रुके,... दूसरे मन बहुत तेज करता सारी शरम झिझक खाने के आधे घंटे के अंदर ख़तम हो जाती।
थोड़ी देर में बाकी जेठानियाँ भी आ गयीं,... चननिया ने मना कर दिया था कुछ काम था, मंजू भाभी भी नहीं आ रही थी, रमजानिया भी थोड़ी देर में चली जाती लेकिन ६-७ और दस बजने के पहले आ गयीं।