निकल पड़ी है भौजी कर मन वे विचार
अब करनी होगी ननंदिया देवर पे सवार
ननद के मन के डर को दूर भगाना होगा
देवर के खूंटे पे ननद को बिठाना होगा
बहन और भाई का करवायेगी वो मेल
दोनों मिलके खेलेंगे जवानी वाला खेल
बित्ते भर का लौड़ा जब बहन लेगी घोंट
रोज़ रात खोलेगी फ़िर नीचे वाले होठ
एक बार जो चाख लेगी भैया की मलाई
लपक लपक करेगी फिर लौड़े की चुसाई
एक बार जो खुल गया डर और शर्म का धागा
भैया से फिर चूदेगी रोज बिना किये कोई नागा
अपनी प्यारी रेनू कमल से सील खुलवाएगी
घर के हर कोने में फिर भैया से चूत मरवायेगी
बहन और भाई में फिर होगा इतना प्यार
उछल-उछल के घोंटेगी भैया का हथियार