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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ७८

चंदा का पिछवाड़ा और कमल का खूंटा



१४,७८, ९२०


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रेनुआ थोड़ी शरमाई, थोड़ा मुस्करायी, और उस झुण्ड से हट के मेरे पास आ गयी,... और कमल से चिपक के बैठ गयी जिससे जो गाँव वालियां उसके भाई को ताना मारती थी, की पहले घर के माल को पटाओ सब को पता चल जाए, माल पट भी गया, सट भी गया और फट भी गया,

और जिस ललचायी निगाह से वो अपने भैया के तने खूंटे को देख रही थी, सब लोग समझ गए थे की जिसके बारे में सोच के कमल की बहिनिया हदस जाती है अब उसी के लिए उस के उस के ऊपर और नीचे दोनों मुंह में लार टपक रही है,...

लेकिन मेरी परेशानी दूसरी थी, इत्ता मस्त खूंटा खड़ा था और कोई स्साली ननद छिनार नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन बिल्ली के भाग से छीका टूटा,

और चंदा दिखी,..


"हे मेरे सारे देवरों का खूंटा घोंट चुकी हो, तुम्हारा असली इम्तहान, चढ़ जाओ इस खूंटे पे ,"मैंने चंदा को उकसाया
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और कमल को धक्का देके मैंने जमीन पर लिटा दिया,...

लग रहा था कुतुबमीनार आसमान चोद रहा हो,... एकदम खड़ा, फनफनाया,...

तभी चंदा की निगाह मेरे पास, मेरे साथ बैठी रेनू पर पड़ी और ननद कौन जो छिनरपना न करे तो चंदा ने छिनरपना कर दिया, वो देख रही थी, रेनू मेरे साथ बैठी है खूब चिपक के और जिस तरह से अपने भैया से नैन मटक्का कर रही है, समझ गयी और बोली वो मुझसे लेकिन निशाने पर कमल की बहिनिया थी

" भौजी, हाथ भर क खूंटा नहीं होता, ये तो बिजली क खम्भा है, लेकिन भौजी क बात, चढ़ जाएंगे हम,... पर तनी वो खम्भे वाली की बहिनिया से कहिये की अपने भैया के मूसल में चूस चास के,... "
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वो चैलेन्ज था मेरे लिए भी रेनू के लिए भी,...

और में जानती थी कित्त्ता मुश्किल काम था उसके लिए आज पहली बार तो अपने भैया के खूंटे से दोस्ती हुयी, पहली बार चुनमुनिया का घूंघट उठा, और आज सबके सामने ये पहाड़ी आलू ऐसा मोटा , अपने भैया का सुपाड़ा ले के चूसे,...

लेकिन वो समझ रही थी नाक का सवाल था और सिर्फ उसकी नहीं मेरी भी,... और थोड़ी देर पहले ही उसने नीलू को उसके भैया का कमल का खूंटा मुंह में लिए देखा था, और मैंने भी इशारा किया, पहले जीभ निकाल के अपने होंठों को चाट कर खूब थूक लगा कर, और फिर बड़ा सा मुंह खोल के,...

भाइयों के मामले में उनकी बहने तुरंत समझ जाती हैं और रेनू भी समझ गयी मुंह में ढेर सारा थूक भर के पहले उसने बड़ी देर तक अपने भैया सुपाड़े को खूब प्यार से थूक लगा लगा के चाटा और फिर जैसे मैंने बड़ा सा मुंह खोल के दिखाया था उसी तरह पूरी ताकत से मुंह खोल के सुपाड़े को,
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लेकिन बहुत ही मोटा था, और जहाँ सबसे मोटा था बीचोबीच जा कर अटक गया,... ताना मारने का मौका कौन ननद छोड़ती है तो चंदा भी चिढ़ा के बोली, बात उसने रेनू की की,....लेकिन निशाना कही और था,

" अरे भौजी उसकी बहिनिया तो इतना चाकर मुंह खोल के नहीं घोंट रही है तो,... "


और मेरे अंदर की भौजाई जागृत हो गयी. मैंने रेनू का सर पकड़ के कस के दबाया,....

वो गो गो करती रही, गाल उसका एकदम फूल गया आँखे बाहर उबल रही थीं, लेकिन सिर्फ मैं ही नहीं दबा रही थी, रेनू भी अपनी ओर से पूरी तरह कोशिश कर रही थी,... थोड़ी देर बस थोड़ी ताकत और लगा मैं हलके हलके बोल के रेनू की हिम्मत बढ़ा रही थी,... अभी एक बार सबके सामने घोंट लेगी तो फिर झिझक और हदस दोनों निकल जायेगी,...

एक एक सूत अंदर जा रहा था,...

और गपाक

पूरा सुपाड़ा अंदर,...
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और उसके आगे का चर्म दंड तो उससे कम ही चौड़ा होगा, मैंने जोर और बढ़ाया आधे से ज्यादा अंदर हो गया था, ६ इंच के करीब,... और अब सुपाड़ा हलक में अटका था, बस इसी बात का चक्कर था गैग रिफ्लेक्स, वो हुआ भी

रेनू की हालत बहुत ख़राब थी, लेकिन मैंने प्रेशर कम नहीं किया, और थोड़ी देर में वो भी पार हो गया,... मैंने सर पर से हाथ हटा दिया

और रेनू अभी भी चूस रही थी एक हाथ से अपने भाई कमल का लंड पकडे, मुंह से लार गिर रही थी, चेहरा एकदम लाल हो गया था,...


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मैंने विजयी भाव से चंदा की ओर देखा,

अब वो क्या करती, ... रेनू ने मुंह हटा लिया, उसका भैया प्यार से, तारीफ़ से अपनी छोटी बहन को देख रहा था,...

चंदा तो सदाबर्त चलाती थी सबको बांटती थी,... दोनों हाथों से अपनी चूत की फांको को फैला के सुपाड़े से सटा दिया लेकिन मैंने आँख से कमल को इशारा कर दिया था की वो नीचे से धक्का जरा भी न मारे और ऐन मौके पे कमर हिला के लंड सरका दे,...

वही हुआ, चार पांच बार कोशिश कर के भी वो नहीं ले पायी, तो फिर मैंने बड़े प्यारसे समझाया,

" अरे यार कुछ नहीं चल मैं और रेनुआ भी तेरी हेल्प करते हैं , मेरे देवर और उसके भाई का फायदा है तो हमारी भी तो जिम्मेदारी है, बस एक बार हट के दुबारा सटाओ और रेनू तुम नीचे से खूंटा पकड़ लो और चंदा के छेद में सटा देना, और मैं ऊपर से जोर लगाउंगी,"

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हुआ वही लेकिन चंदा जोर से चिल्लाई,

मेरी और रेनू की मिली जुली बदमाशी. बदमाशी तो मेरी थी और रेनू मेरे इशारे पर काम कर रही थी लेकिन मन उसका भी कर रहा था, अब वह एकदम अपने भैया की तरफ से सोच रही थी,

मैंने आँख से इशारा किया और रेनू ने अपने भैया का खूंटा, चंदा के बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े के छेद पर सेट कर दिया, दोनों हाथों से छेद भी फैला दिया, और मैंने उसी समय अपनी पूरी ताकत चंदा ननदिया के कंधे पर लगा दिया, पूरी ताकत से प्रेस कर आंख मार के कमल को भी इशारा किया.


वो मेरी और रेनू की बदमाशी समझ गया, और मुस्करा के उसने कस के अपने दोनों हाथों से चंदा की कमर पकड़ के अपनी ओर पुल करना शुरू किया और उसी जोर से नीचे से धक्का लगाया, ... रेनू ने कस के अपने भाई का खूंटा चंदा के पिछवाड़े सटा रखा था



उयी ओह्ह्ह्हह्ह नाहीईईई उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़



जोर से चंदा चीखी,.. जबतक वो समझी आधे से ज्यादा सुपाड़ा अंदर था, और ऊपर से मेरा पुश करना और नीचे से कमल का चंदा की कमर पकड़ के पुल करना जारी था,
 
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घुस गया, धंस गया, अड़स गया

बैठ गयी चंदा खूंटे पे



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मैंने आँख से इशारा किया और रेनू ने अपने भैया का खूंटा, चंदा के बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े के छेद पर सेट कर दिया, दोनों हाथों से छेद भी फैला दिया, और मैंने उसी समय अपनी पूरी ताकत चंदा ननदिया के कंधे पर लगा दिया पूरी ताकत से प्रेस किया कर आंख मार के कमल को भी इशारा किया,

वो मेरी और रेनू की बदमाशी समझ गया, और मुस्करा के उसने कस के अपने दोनों हाथों से चंदा की कमर पकड़ के अपनी ओर पुल करना शुरू किया और उसी जोर से नीचे से धक्का लगाया, ... रेनू ने कस के अपने भाई का खूंटा चंदा के पिछवाड़े सटा रखा था

उयी ओह्ह्ह्हह्ह नाहीईईई उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़
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जोर से चंदा चीखी,.. जबतक वो समझी आधे से ज्यादा सुपाड़ा अंदर था,



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और ऊपर से मेरा पुश करना और नीचे से कमल का चंदा की कमर पकड़ के पुल करना जारी था,

" अरे रानी आधा सुपाड़ा गाँड़ में घुस गया है अब लाख रोओ गाओ बिन गाँड़ मरवाये बचत नहीं है,... आराम से गाँड़ ढीली करो अभी तो बित्ता भर पूरा बाकी है "
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बेचारी, चुदी तो बहुत थी, लेकिन ये मुझे मालूम था की पिछवाड़े ज्यादा कुदाल नहीं चली थी इसलिए वो रास्ता टाइट था. और आज एकदम मोटा मूसल,... और अब चंदा भी मान गयी थी की बच नहीं सकती,... तो वो भी थोड़ा जोर लगा रही थी,... तिल तिल करके मूसल अंदर जा रहा था और रेनू अपने भैया का खूंटा मस्ती से पकड़े नीचे से ठेल रही थी. कभी जिसका नाम लेके भी कोई भौजाई छेड़ देती थी तो वो मुंह फुला लेती थी वो,.. आज उसी को खुद पकड़ के चंदा की गंडिया में नीचे से ठेल रही थी, लेकिन हम सबके कोशिश करने पे भी ज्यादा नहीं घुस पाया, ५-६ इंच अंदर हो गया था पर अभी भी एक तिहाई से ज्यादा बाकी था



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और गाँड़ मारने में जब तक बॉल्स तक न घुसे तो का मजा,...

और उस परेशानी का हल ढूंढा खुद कमल ने, बिना बाहर निकाले,... बड़ी ताकत थी स्साली रेनुआ के भाई में,...


लिएदिए उठा और वहीँ आम के पेड़ के नीचे निहुरा के,... चंदा ने भी आम का मोटा तना कस के पकड़ लिया,...अब चंदा निहुरी हुयी थी, एकदम कातिक की कुतिया बनी और गांड मारने में सब मर्दों का फेवरिट आसन इसलिए की ताकत पूरी जोर से लगती है और दोनों चूँची पकड़ के निहुरा के गाँड़ मारने का मजा ही अलग है।

और कमल ने ऑलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाल लिया, फिर चंदा की दोनों चूँची कस के पकड़ी और किस ताकत से पेला,
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चंदा को छोड़िये,.. आस पास बैठी सब भौजाइयों की चीख निकल गयी,... सब मस्ती बंद करके सब भौजाइयां भी आँखे फाड़े चंदा की भीषण भयानक गाँड़ मराई देख रही थीं,... और मैं भी सोच रही थी की इसलिए तो रेनुआ हदसी थी, उसने ऐसे ही अपने भाई को किसी को पेलते देखा होगा,

लेकिन सबसे ज्यादा मस्ती रेनुआ ही ले रही थी, कुतिया बनी चंदा की गाँड़ में से अपने भैया का लंड अंदर बाहर होते देखते,... दरेरते, रगड़ते,... और साथ में अपने भाई को ललकार भी रही थी,...

" हाँ भैया हाँ ऐसे ही, रोने बिसूरने दो ससुरी को,... कुछ देर में खुदे धक्का मार मार के घोंटेंगी, पेलो पूरी ताकत से चीथड़े चीथड़े कर दो गाँड़ को, पता चले यह आम की बाग़ में रेनुवा के भाई से मरवाई थी, बीसो से मरवाई होगी और आज हमरे भैया की बारी बिसूर रही है, साली नौटंकी, ... "
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बात रेनू की एकदम सही थी,...

बीस क्या पचासों से लेकिन अब उसने गिनना छोड़ दिया था लेकिन ज्यादातर लौंडे चुनमुनिया में झंडा गाड़ना चाहते है और चंदा भी उसी में,... तो चुदी तो पता नहीं कितनों से थी लेकिन पिछवाड़े चार पांच बार ही,.. वो भी आखिरी बार महीना चल रहा था तो किसी ने, छह सात महीने पहले, और वो भी स्साला केंचुआ छाप था,.. तो फिर वो सिकुड़ के एकदम टाइट हो गयी थी,...
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और बाकी सब लड़कियों की तरह कमल को उसने भी साफ़ साफ़ मना कर दिया था, ... घर में माल है तो पहले उसका नंबर लगा दो फिर आना

और आज कमल ने अपनी बहन का, रेनू का नंबर लगा दिया था अगवाड़े का भी पिछवाड़े का और वो भी मेरे सामने, मैं गवाह थी। सुबह से दो कोरी गाँड़ फ़ाड़ चुका था पहले अपनी बहन रेनू की फिर कच्ची कली कमसिन हिना की।

थोड़ी देर में चंदा को भी मजा आने लगा वो भी चूतड़ से पीछे की पर धक्का मार मार के कमल का साथ दे रही थी,
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अब चंदा को भी गाँड़ मरवाने में मजा आने लगा था भले ही जब बाकी लड़कियां सहेलियों से झांटों के आने का मतलब पूछती हैं चंदा गन्ने और अरहर के खेत में घोड़ी बन रही थी,



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लेकिन एक तो पिछवाड़े का मजा उसने कम लिया था, ज्यादातर लड़के चुनमुनिया के ही चक्कर में रहते थे

और दूसरे उसे अफसोस हो रहा था की उसने भी बाकी लड़कियों की तरह कमल को यह कह के मना कर दिया था की पहले घर के माल पे हाथ साफ़ करो, अब लग रहा था घाटा उसे ही हुआ। गाँव में क्या अगल बगल के गाँवों में शायद ही कोई बचा होगा जिसका उसने न खाया होगा लेकिन आज उसका अपनी टक्कर का सांड़ मिला था, सांडों में सांड़। कमल.



कमल पिछवाड़े का पहलवान था। एक एक इंच उसे मालूम था कहाँ करने से मरवाने वाला/वाली चिल्लाने लगती है कब मजे से पागल हो जाती है. और अब वो चंदा को तड़पा रहा था, उसे पता चल गया था की अब चंदा को मरवाने में मजा आ रहा है, बस उसने ऑलमोस्ट बाहर निकाल लिया और रुक गया,

चंदा सब मेरी ननदों की तरह जनम की चुदवासी, सात पुश्त की रंडी, पैदायशी छिनार, गाँड़ में मोटे मोटे चींटे काट रहे थे, तड़प के बोली



" डालो न , रुक काहे गए,... "
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" का डालूं,... " उसे चिढ़ाते हुए कमल बोला,
 
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बड़ा मजा पिछवाड़े में

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कमल पिछवाड़े का पहलवान था। एक एक इंच उसे मालूम था कहाँ करने से मरवाने वाला/वाली चिल्लाने लगती है कब मजे से पागल हो जाती है. और अब वो चंदा को तड़पा रहा था, उसे पता चल गया था की अब चंदा को मरवाने में मजा आ रहा है, बस उसने ऑलमोस्ट बाहर निकाल लिया और रुक गया,

चंदा सब मेरी ननदों की तरह जनम की चुदवासी, सात पुश्त की रंडी, पैदायशी छिनार, गाँड़ में मोटे मोटे चींटे काट रहे थे, तड़प के बोली


" डालो न , रुक काहे गए,... "



" का डालूं,... " उसे चिढ़ाते हुए कमल बोला,

खीझ के चंदा बोली, " अरे अपनी बहिनी क भतार, आपन लंड, पेल न, बहुत मज़ा आ रहा था, ... डालो न अंदर पूरा। "
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रेनू तो एकदम सट के अपने भैया से बैठी थी, अपने भैया का मोटा मूसल चंदा के पिछवाड़े घुसते निकलते देख रही थी , जवाब उसी ने दिया चंदा को छेड़ते

" हाँ छिनार, हमार भैया है हमार भतार हैं, यार हैं, हमार सैंया हैं ऐसा हमारे भैया क मोट औजार चाही तो खुदे काहे नहीं धक्का मार के घोंट लेती। "



और रेनू ने साथ में अपने भैया को भी बोला

" मत पेलना भैया, मारेगी धक्का यही "
रेनू खुल के गाँव की छोरियों को बता देना चाहती थी, ये भैया भी मेरा है, सैंया भी मेरा है, यार भी है और भतार भी और इसका खूंटा भी मेरा है।

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रिंग साइड सीट पर सिर्फ रेनू ही नहीं थी, हिना भी थी, और अब सुगना भाभी से उसकी पक्की दोस्ती हो गयी थी। ननद भाभी के रिश्ते के साथ साथ सहेली भी बन गयी थीं दोनों। सुगना भाभी की पिलानिंग लांग टर्म थी, एक बार हिना को लंड का शौक लग गया, खुद ही लंड खोर हो गयी तो अपनी इज्जत बचाने के लिए खुद ही बाकी पठान टोली वालियों की,टांग फैलवायेगी।

हिना भी कुछ ललचायी निगाह से कभी कमल के मोटे खूंटे को देखती तो कभी मजे से भरे चंदा के चेहरे को, मस्ती से भरी चंदा की देह को जो लंड के धक्के लिए व्याकुल हो रही थी।


सच में बहुत मोटा था लेकिन चंदा की गाँड़ भी चौड़ी होके उसे इस तरह दबोचे थी जैसे इस जनम में तो नहीं ही छोड़ेगी.

और उस मोटे लंड को ललचायी नजरो से देखती हुयी हिना को देखती, सुगना भौजी की अनुभवी आँखों बहुत कुछ सोच समझ रही थीं। हिना के कान में फुसफुसाते बोली ,



" हिना देख चंदा को कैसे बौराई है खूंटे के लिए जैसे बछिया हुड़कती है सांड़ के लिए "


"एकदम भौजी पगलाई हुयी है "


हलके से मुस्कराते हुए हिना भी उसी तरह फुसफुसाते बोली।


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" देख जो मजा चोदने और मारने में लौंडो को आता है न उससे कई गुना ज्यादा मजा हम सबको चुदवाने और मरवाने में आता है बस मजा लेना आना चाहिए,... और स्साले लौंडो को भी मालूम हो न की लौंडिया नाड़ा खोलने के लिए तैयार है तभी तो वो चक्कर काटेंगे। अब देखो बछिया हुड़कती है तभी तो सांड़ आता है चढ़ने के लिए उसके ऊपर। तो अगर मजा लेना है तो पहली चीज सरम लिहाज पिछवाड़े डालो। "
धीमे धीमें सुगना भौजी बोलीं हिना से। वो उसे ज्ञान दे रही थीं और चारा भी डाल रही थी।

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हिना और सुगना भौजी दोनों चंदा से बस हाथ भर की दूरी पर थीं और हिना ललचायी नजर से कमल के मोटे तगड़े कड़क खूंटे को देख रही थी जो एकदम अटका हुआ था चंदा के पिछवाड़े बॉटल में डाट की तरह।
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सुगना भौजी समझ रही थीं जिस दिन से हिना लंड देख के बजाय हदसने के, गुस्सा होने के,... ललचाने लगेगी, उसका मन खुद करेगा घोंटने का तो समझिये आधा काम हो गया, और इस लिए वो जान बुझ के इस तरह से हिना के साथ बैठीं थी की हिना की निगाह कमल के मोटे मूसल से हट नहीं रही थी।

और जिस तरह चंदा घोंटने के लिए तड़प रही थी अब हिना भी समझ रही थी जिंदगी के असली मजे से वो दूर थी। अच्छा हुआ लीना की बात मान के आ गयी।



चंदा ने एक बार फिर बोला लेकिन अबकी रेनू से चिरौरी की

" रेनुआ यार तू तो हमार पक्की सहेली हो तुंही बोलो न भैया को, ... पेल दें न काहें तड़पा रहे हैं "

" कर दूंगी यार तू भी क्या बात कर रही है, लेकिन भैया चार पानी झड़ चुके हैं दो बार मेरे अंदर दो बार हिना के, अब इतनी जल्दी नहीं झड़ेंगे, तू ही मार न दो चार धक्का एक बार आधा घोंट ले तो बस बाकी का काम मैं बोल दूंगी भैया से। "
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हिना को विशवास नहीं हो रहा था अपनी आँखों पर, चंदा जिस आम के पेड़ को पकड़ के झुकी थी बस एक बार फिर से कस के पकड़ा उस पेड़ के तने को और पीछे की ओर धक्का लगाना शुरू किया। साफ़ लग रहा था चंदा कितनी कोशिश कर रही है कितनी ताकत लगा रही है। कमल ने कस के एक हाथ से चंदा की पतली कमर को पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसकी चूँची दबा रहा था, लेकिन धक्का नहीं लगा रहा था।

पर चंदा के धक्को से ही धीरे धीरे बहुत धीरे सरकते सरकते सूत दर सूत होते हुए कमल का मोटा गदहा छाप लंड चंदा की गाँड़ में घस रहा था।

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चंदा के चेहरे पर जो ख़ुशी व्याप्त थी वो देख देख कर हिना को भी लग रहा था लड़की पैदा होने का असली सुख इसी मोटे डंडे में है और बिना हिचक लोक लाज भूल के आम की बगिया में दिन दहाड़े घोंटने में न की सात पर्दो में उस बिल को छुपाने में जिसे बनाने वाले ने बनाया सिर्फ इसीलिए को वो मर्दों का घोंटे। यहाँ तक की लड़कियों के लिए मूतने का छेद भी अलग है और इस छेद का सिर्फ काम यही है।

लेकिन उधर मामला अटक गया था, चंदा के धक्क्को से सुपाड़ा तो चंदा की कसी गाँड़ घोंट गयी लेकिन मामला गाँड़ के छल्ले पर अटक गया, जैसे पतली गले की कोई बोतल हो और उसमे कुछ अटक जाए,



सुगना भौजी ने हिना से कहा, हिनवा अब देख असली खेल.

और अब कमल से भी नहीं रहा गया, उसने कस के चंदा के दोनों जोबना पकड़ के क्या धक्का मारा, गाँड़ के छल्ले को दरेरते रगड़ते घिसते कमल का मोटा लंड चंदा की संकरी गांड फैलाता फाड़ता अंदर घुस रहा था



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और हिना कुछ आश्चर्य से कुछ मजे से चंदा के रोम रोम से, चेहरे से छलकती चमकती ख़ुशी देख रही थी. देख के ही उसकी हिना की गाँड़ दुबदुबाने लगी, कभी सिकुड़ती कभी फैलती,... बहुत मजा आ रहा था, लेकिन वो मजा ले नहीं सकती थी बदनामी के डर से, खास तौर से शबनम के लेकिन सुगना भौजी ने उसका जो इलाज बताया था वो बस हो जाए,



आधे से ज्यादा अंदर था लेकिन कमल ने एक ही झटके में पूरा निकाल के ठोंक दिया

चंदा के मुंह से सिसकी और चीख एक साथ निकली और वो झड़ने लगी। पूरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी , आँखे बाहर उबल के आ रही थीं. चंदा कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन मस्ती के कारण कुछ भी साफ़ नहीं बोल पा रही थी। जैसे बारिश में बढ़ी नदी में आंधी के कारण एक के बाद एक लहरें, आती हैं तट से टकराकर चूर चूर हो जाती हैं और फिर एक नयी लहर,
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चंदा की हालत भी वही हो रही थी और हिना की भी हालत बिना मरवाये भी देख देख कर सोच कर, उसकी चुनमुनिया दुबदुबा रही थी.
 
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हिना की हालत खराब


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आधे से ज्यादा अंदर था. लेकिन कमल ने एक ही झटके में पूरा निकाल के ठोंक दिया

चंदा के मुंह से सिसकी और चीख एक साथ निकली और वो झड़ने लगी। पूरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी , आँखे बाहर उबल के आ रही थीं. चंदा कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन मस्ती के कारण कुछ भी साफ़ नहीं बोल पा रही थी। जैसे बारिश में बढ़ी नदी में आंधी के कारण एक के बाद एक लहरें, आती हैं तट से टकराकर चूर चूर हो जाती हैं और फिर एक नयी लहर,


चंदा की हालत भी वही हो रही थी और हिना की भी हालत बिना मरवाये भी खराब थी। देख देख कर, सोच सोच कर, उसकी चुनमुनिया दुबदुबा रही थी.

झड़ चंदा रही थी लेकिन हालत हिना की भी अच्छी नहीं थी।

उसकी आँखे बस चंदा के पिछवाड़े चिपकी थीं, दुबदुबाते चंदा के पिछवाड़े के छेद में आधा घुसा. आधा निकला आधा धंसा कमल का लम्बा मोटा भाला, और देख रही थी चंदा कैसे सिर्फ गाँड़ मरवा के झड़ रही थी, कितनी ख़ुशी थी चंदा के चेहरे पर, उसकी देह मस्ती से काँप रही थी,
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और उसी मस्ती से महरूम कर रखा था हिना ने अपने को, ... उसकी पठानटोली में तो खैर एक भी लड़के थे नहीं, लेकिन उसकी सहेलियों के भाई तो थे और अब सुगना भौजी ने तो साफ़ कह दिया था हिना को,


"जब चाहे तब, जिससे चाहे उससे,...सुगना भौजी हैं न, जहाँ मन करे वहां।


हिना सुबह की धूप ऐसी गोरी, नरम गरम, गाल देख के गुलाब की पंखुड़ियां शरमा जाएँ, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, लेकिन सुगना भौजी ने ठीक कहा, ...

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क्या फायदा ऐसी आयी जवानी का, ऐसे आये जोबन का जब बुरके में छिपा के रखे, किसी को पता ही न चले की कैसे एक मस्त कली खिल रही है, कौन भौंरा चक्कर काटेगा,


और सुगना भौजी, कमल का मूसल देखते हिना की ललचाती, प्यासी आँखों को देख रही थीं, जैसे कोई छोटे बच्चे को गोदी में दुबकाता है एकदम उसी तरह इन्होने दुलराते हुए हिना को भींच लिया और उसके कच्चे टिकोरों को दबोच लिया। इसी को स्साली सात तह किये दुप्पट्टे में छिपा के रखती थी और ऊपर से काला मोटा बुरका, ... घुंडी घुमाते हुए हिना ननदिया को चिढ़ाया,

" हैं न खूब लम्बा मोटा, कड़ा,... "
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हिना की निगाहें अभी भी कमल के कमाल खूंटे से चिपकी थीं, अपने आप उसके लब खुले और बेसाख्ता निकला,

" सच में भाभी, खूब मस्त कैसा फनफनाया है "


" क्या चीज, ननद रानी जब तक बोलोगी नहीं, छोडूंगी नहीं " और खिलखिलाती हुयी सुगना ने कचकचा के नौंवी में पढ़ने वाली ननद के गाल काट लिए,


" छोड़ न भौजी, अच्छा बोलती हूँ ओह्ह,... " हिना हँसते हुए बोली लेकिन सुगना ने अबकी अपनी कच्ची ननद के दोनों निचले होंठ दबौच लिए और दोनों फांकों को पकड़ के मसलने लगी, ... " बोल बोल नहीं तो मुट्ठी पेलती हूँ कौन चीज मस्त "
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" वो ल,... ल,... लंड ,... " थूक घोंटती हुयी हिना बोली।
" अरे बोले में इतना टाइम लगाओगी तो घोंटने में पूरा इन लग जाएगा और लौंडा कही और जाके ठोंक देगा "

गुलबिया, हमारे नाउन की बहू हिना के दूसरी ओर आके बैठ गयी थी, उसने समझाया,

" एकदम ननद रानी जो दिखता है वो बिकता है और लौंडे सब न, कोई ज्यादा नखड़ा की न तो बस, तू नहीं और सही,... तो तानी लाज शरम छोड़ के मजा लो , जोबन आया है जवानी है काहें को " सुगना भौजी ने समझाया, हिना के जोबन गुलबिया और सुगना ने बाँट लिए थे ऐसी कच्ची अमिया मिलती भी मुश्किल से थी.

लेकिन अब तीनों निहुरी हुयी चंदा का खेला देख रही थीं।

चंदा सदाव्रत चलाती थी, किसी को मना नहीं करती थी. देती थी और खुल के देती थी।

लेकिन आज कहते हैं न की ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया था, बस वही हाल थी। कमल का खूंटा खूब मोटा था और गाँड़ मारने में जिला टॉप था ऊपर से उसकी बहन रेनू उसे उकसा भी रही थी, यही चंदा सबके आगे बिन कहे टांग फैला लेती थी लेकिन उसके प्यारे भाई के आगे सिकोड़ लेती थी आज आयी है नीचे,

कभी दोनों हाथों से चंदा की कमर पकड़ के, कभी दोनों हाथों से अपनी बहन की समौरिया उसी के साथ इंटर में पढ़ने वाली, चंदा की बड़ी बड़ी गदरायी चूँची पकड़ के हचक के लंड गाँड़ में पूरी ताकत से ठोंक रहा था
" उय्य्यी नहीं , कमल भैया थोड़ा रुक जाओ, ओह्ह्ह नहीं लगता है " चंदा चीख रही थी।


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लग रहा था गाँड़ अंदर से जगह जगह से छिल गयी थी, लेकिन कमल कम उस्ताद नहीं था वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था, चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक, चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।

हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।
 
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हिना
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लग रहा था गाँड़ अंदर से जगह जगह से छिल गयी थी, लेकिन कमल कम उस्ताद नहीं था वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था, चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक, चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।


हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।

इसी दर्द को घूँट घूँट पीने में, अंजुरी में लेकर रोम रोम में रगड़ने मसलने में, ही तो असली मजा है। जब दरद देह का हिस्सा हो जाए, दरद इतना हो की उसी दरद के लिए जिया में हुक उठे, उस दरद देने वाले का इन्तजार करते देहरी पर खड़े खड़े पलक न झपके, कुछ आहट हो तो लगे वो दरद देने वाला आ गया है


और जब यह अहसास हो जाए तो समझ लीजिये कैशोर्य की चौखट डांक कर, गली में आंगन में ठीकरे से इक्कट, दुक्क्ट खेलने वाली लड़की अब तरुणी हो गयी है,

और हिना को यह अहसास हो रहा था थोड़ा थोड़ा, .. सुगना और गुलबिया के दुलार की दुलाई में लिपटी अब धीरे धीरे उन जैसी ही हो रही थी।

घुस चंदा के पिछवाड़े रहा था, चीख चंदा रही थी, दुबदुबा हिना की कसी गाँड़ रही थी,लग हिना को रहा था की उसके पिछवाड़े कोई मोटा पिच्चड घुसा है जो दर्द भी दे रहा है और मज़ा भी।
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सुगना और गुलबिया की आँखे कमल के खूंटे पर लगी थीं लेकिन जाने अनजाने उन दोनों के हाथ अपनी किशोर ननद के उभारों को सहला रही थीं। बहुत हलके हलके जैसे कोई रुई के फाहे की तरह छू रहा हो. हिना का बदन, उसके जोबन, पलाश की तरह दहक रहे थे।

हिना का मन, चावल चुगती, कभी इस मुंडेर पर कभी उस मुंडेर पर फुदकती गौरेया की तरह, कभी चंदा की ख़ुशी में डूबी देह को देखता तो कभी सोचता साल दो साल पहले ही तो इस गाँव के लड़के लड़कियों के साथ बिना हिचक वो खेलती, झगड़ा करती, लड़ती, बारिश आने पे पहली बूँद के साथ ही अपनी इन्ही सहेलियों के साथ कभी अपने आंगन में कभी कम्मो के घर, अरई परई गोल गोल चक्कर काटती, सब सहेलिया देखतीं किसके ऊपर कितनी बूंदे पड़ी , सबकी मायें डांटती, लड़की सब पागल हो गयी हैं का,

सावन आता तो झूला झूलने इसी बगिया में आती, भाभियों की चिकोटियां, किसका झूला कितना ऊपर जाता है बस मन करता सावन को लपेट ले, ओढ़ ले और साल के बारहो महीने सावन के हो जाए, हरे भरे,

सावन में पूरे गाँव में उसके अपने टोले में भी नयी नयी सुहागने गौने के बाद पहली बार मायके आतीं और भौजाइयां घेर के उनसे गौने की रात का हाल बार बार पूछतीं, ... चिकोटियां काटतीं और जब हिना ऐसे कुंवारियां भी चिपक के हाल सुनती तो कोई भौजाई उन कुंवारियों को छेड़ती भी

" सुन ले, सुन ले तेरे भी काम आएगा " .
--
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और जब वो लड़कियां बिदा होती, किसी भी पुरवा की, पठानटोली वाली हों या पंडिताने की, जाने के पहले सब से, काकी, ताई से भौजी से सब से, मिल के भेंट के, ...दिन कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता .



पिछले सावन ही अजरा उदास की चादर हटाने के चक्कर में बात बदलने के लिए पंडिताइन चाची से भेंटते हुए छत पर चढ़े कद्दू की बेल को देखते हुए बोली,



" चाची, पिछली बार तो एकदम बतिया थी ये "



" अरे पगली खाली बेटियां थोड़ी बड़ी होती हैं, " पंडिताइन चाची हंसने की कोशिश करते बोलीं और आँचल की कोर से आंसू का एक कतरा पोंछ लिया।

उन्हें भी मालूम था की अजरा का मरद क़तर गया है और दो साल के बाद ही लौटेगा, ... मरद के बिना ससुराल कितनी खाली मालूम होती है, कोई उनसे पूछे।



हिना को लगा लेकिन जब अब फागुन आया है सब सखियाँ खुद महुआ के फूल बनी हैं, देख के नशा हो रहा है तो वो दूर खड़ी, ... अपने में दुबकी,



और चंदा की चीख ने एक बार फिर उसका ध्यान कमल और चंदा की ओर खींच दिया।

चंदा की चीख, चीख कम थी सिसकी ज्यादा।

अब लंड के हर ठोकर से उसकी पिछवाड़े की सांकरी गैल के तार तार झंकृत हो रहे थे, कमल की मोटी बीन पर वो नागिन झूम रही थी। आज तक सपने में भी उसे ऐसा संपेरा नहीं मिला था। अब वह कभी गोल गोल घुमाती तो कभी कस के आम के पेड़ को पकडे पकड़े पूरी ताकत से धक्के का जवाब से देती, कभी जब लंड पूरा अंदर घुसता तो बस प्यार से कस के निचोड़ लेती जैसे कोई सजनी बरस बरस बाद परदेस से लौटे साजन को गलबहिं डाल के ऐसे दबोचती जैसे बिरह के हर पल पल का हिसाब ले रही थी, जैसे बियोग के वो पल कपूर से उड़ जाएंगे।
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चंदा भी कमल के खूंटे को इत्ते प्यार से दबोचती हक़ से ताकत से, जैसे हो हिम्मत तो निकल जाओ बाहर।



हिना मंत्रमुग्ध होके देख रही थी।


देह की किताब पर सुख के ये अक्षर कैसे लिखे जाते हैं सीख रही थी. सुख सिर्फ पुरुष का नहीं है जो प्रणय याचना करता है, उससे ज्यादा ही सुख स्त्री भी भोगती है जब तन के साथ मन के सारे बंधन ढीले कर देती हैं. अंगिया की डोर ढीली करने से पहले, हलके से आँखे नीची कर कुछ शरमाते लजाते नीवी के बंधन खोलने के पहले, मन के पाखी के पिजरे का द्वार खोलना होता है।

जब मन आसमान की लम्बाई चौड़ाई लम्बाई नापने लगता है कभी दहकते पलाश सा सुलगता है तो कभी बूँद बूँद टपकते महुआ की तरह चूता है, तब अपने आप देह रस्विनी हो जाती है। खुद ही चोली की गाँठ और साया का नाड़ा खुल जाता है, और मन और तन दोनों फागुन हो उठता है।

कमल और चंदा दोनों दुनिया से बेखबर थे सिर्फ प्रणय क्रिया में लीन उस क्रौंच युगल की तरह,

और बेखबर हिना भी थी बस थोड़ा बहुत अहसास सुगना और गुलबिया का था, जो उसे सम्हाले थीं।

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कमल के धक्के तूफानी हो गए थे, अब उसने चंदा के चौड़े नितम्बों को पकड़ लिया था, वह चौड़े नितम्ब जो स्त्री के सौंदर्य को भी परिभाषित करते हैं और उस कठिन कर्म को जिसके लिए विधाता ने उसे चुना है, सृष्टि को आगे बढ़ाने का। गर्भस्थ शिशु ज्यादा जगह चाहता है माँ के पेट में और नितम्ब चौड़े होकर उस के लिए स्थान बनाते हैं.

एक बार फिर चंदा उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी, कुछ अस्पष्ट बोल रही थी, कस के रसाल के उस विशाल तने को अपनी बाँहों में जकड़ लिया था जैसे कमल के हर धक्के को सह सके और अब कमल अपना पौरुष रस चंदा के अंदर निकाल रहा था, पूरी तरह चंदा के गुदा द्वार में घुसा अपना पूरा बोझ चंदा पे डाले। कमल की भी आँखे बंद हो चुकी थीं, देह ढीली पड़ रही थी लेकिन उसका विशाल लिंग, जैसे उसका कोई लग ही अस्तित्व हो , वह अभी भी फनफनाया .


कभी कभी बारिश में लगता है बारिश बंद हो गयी हैं बादलों की गगरी खाली हो गयी है लेकिन वो जैसे झट से पास के ताल पोखर में डुबकी लगा के दुबारा पानी ले आते हैं धार टूटने नहीं पाती, बस वह हाल कमल की हो रही थी,... एक बार के बाद दुबारा, और वीर्य जिस तेजी से निकलता, चंदा की देह में बूँद बूँद रिसता, चंदा की देह भी कांपने लगती।
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कुछ देर तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे, कमल को ओढ़े चंदा, और फिर धीरे धीरे कमल ने अपना लिंग बाहर निकाला।

देख रही लड़कियों के लिए जैसे कोई सम्मोहन खतम हुआ।

हिना को लगा जैसे एक तिलस्म टूट गया और वो तिलस्म से बाहर आ गयी , अब उसे फिर से बाकी सहेलियों की चहचाहट, भौजियों की छेड़खानी सुनायी पड़ने लगी ,

चंदा कटे पेड़ की तरह अभी भी निहुरी झुकी पड़ी थी, आँखे आधी बंद और जब हलकी सी खुलीं तो उसने कमल को देखा और एकबार शर्मा कर के अपनी आँखे बंद कर ली,

हिना ये चुहुल देख रही थी, खुद ही मुस्करा रही थी।


तभी चंदा के पिछवाड़े से बूँद बूँद कर के वीर्य धार रिसने लगी. शैतान रेनू, अपनी सहेलियों को देख के उसने एक बार कस के आँख मारी और पूरी ताकत से दोनों हाथों से चंदा की गाँड़ फैला दी और फिर जैसे कोई बाँध टूट गया हो परनाला बहने लगा हो,... सफ़ेद गाढ़ी रबड़ी मलाई की धार चंदा के पिछवाड़े से,...
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" " कित्ता ढेर सारा, ... " हिना के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा और फिर वो अपनी ही आवाज सुन के लजा गयी।



" कित्ता ढेर सारा का , बोल न मेरी बिन्नो " गुलबिया ने बगल में चिकोटी काट के हिना को चिढ़ाया।



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अब हिना भी पक्की ननद हो गयी थी भौजाई से पीछे हटने वाली नहीं थी, फिर गुलबिया का घर पठानटोली में भी जजमानी करता था तो कोई काज प्रयोजन,... तो गुलबिया से वो पहले ही,



" ढेर सारा रबड़ी मलाई,... और जउन मलाई घौंटे हमार भौजाई कुल आपन बहिन महतारी छोड़ के बाईसपुरवा में आती हैं उहे और का " हिना चहक के बोली।

" घोंटबू तू ये रबड़ी मलाई, ... बोला , हमार कुल देवर, बाईसपुरवा के कुल लौंडे सब आपन मलाई घोंटाने के लिए तैयार खड़े हैं और घबड़ा जिन आसा बहू तीन महीना वाली अंतरा पहले ही लगा दी , तो न पेट फुलाई न उलटी होई,... " गुलबिया कौन हटने वाली थी पीछे।



थोड़ी देर में गुलबिया और सुगना दोनों हिना को रगड़ रहे थे।
 
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भाग ७८

चंदा का पिछवाड़ा और कमल का खूंटा

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लग रहा था गाँड़ अंदर से जगह जगह से छिल गयी थी, लेकिन कमल कम उस्ताद नहीं था वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था, चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक, चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।


हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।

इसी दर्द को घूँट घूँट पीने में, अंजुरी में लेकर रोम रोम में रगड़ने मसलने में, ही तो असली मजा है। जब दरद देह का हिस्सा हो जाए, दरद इतना हो की उसी दरद के लिए जिया में हुक उठे, उस दरद देने वाले का इन्तजार करते देहरी पर खड़े खड़े पलक न झपके, कुछ आहट हो तो लगे वो दरद देने वाला आ गया है


और जब यह अहसास हो जाए तो समझ लीजिये कैशोर्य की चौखट डांक कर, गली में आंगन में ठीकरे से इक्कट, दुक्क्ट खेलने वाली लड़की अब तरुणी हो गयी है,

और हिना को यह अहसास हो रहा था थोड़ा थोड़ा, .. सुगना और गुलबिया के दुलार की दुलाई में लिपटी अब धीरे धीरे उन जैसी ही हो रही थी।

घुस चंदा के पिछवाड़े रहा था, चीख चंदा रही थी, दुबदुबा हिना की कसी गाँड़ रही थी,लग हिना को रहा था की उसके पिछवाड़े कोई मोटा पिच्चड घुसा है जो दर्द भी दे रहा है और मज़ा भी।
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सुगना और गुलबिया की आँखे कमल के खूंटे पर लगी थीं लेकिन जाने अनजाने उन दोनों के हाथ अपनी किशोर ननद के उभारों को सहला रही थी बहुत हलके हलके जैसे कोई रुई के फाहे की तरह छू रहा हो. हिना का बदन उसके जोबन पलाश की तरह दहक रहे थे।

हिना का मन चावल चुगती कभी इस मुंडेर पर कभी उस मुंडेर पर फुदकती गौरेया की तरह, कभी चंदा की ख़ुशी में डूबी देह को देखता तो कभी सोचता साल दो साल पहले ही तो इस गाँव के लड़के लड़कियों के साथ बिना हिचक वो खेलती, झगड़ा करती, लड़ती, बारिश आने पे पहली बूँद के साथ ही अपनी इन्ही सहेलियों के साथ कभी अपने आंगन में कभी कम्मो के घर, अरई परई गोल गोल चक्कर काटती, सब सहेलिया देखतीं किसके ऊपर कितनी बूंदे पड़ी , सबकी मायें डांटती, लड़की सब पागल हो गयी हैं का,

सावन आता तो झूला झूलने इसी बगिया में आती, भाभियों की चिकोटियां, किसका झूला कितना ऊपर जाता है बस मन करता सावन को लपेट ले, ओढ़ ले और साल के बारहो महीने सावन के हो जाए, हरे भरे,

सावन में पूरे गाँव में उसके अपने टोले में भी नयी नयी सुहागने गौने के बाद पहली बार मायके आतीं और भौजाइयां घेर के उनसे गौने की रात का हाल बार बार पूछतीं, ... चिकोटियां काटतीं और जब हिना ऐसे कुंवारियां भी चिपक के हाल सुनती तो कोई भौजाई उन कुंवारियों को छेड़ती भी

" सुन ले, सुन ले तेरे भी काम आएगा " .
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और जब वो लड़कियां बिदा होती, किसी भी पुरवा की, पठानटोली वाई हो या पंडिताने की, जाने के पहले सब से, काकी ताई से भौजी से सब से, मिल के भेंट के, दिन कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता,



पिछले सावन ही अजरा उदास की चादर हटाने के चक्कर में बात बदलने के लिए पंडिताइन चाची से भेंटते हुए छत पर चढ़े कद्दू की बेल को देखते हुए बोली,



" चाची, पिछली बार तो एकदम बतिया थी ये "



" अरे पगली खाली बेटियां थोड़ी बड़ी होती हैं, " पंडिताइन चाची हंसने की कोशिश करते बोलीं और आँचल की कोर से आंसू का एक कतरा पोंछ लिया।

उन्हें भी मालूम था की अजरा का मरद क़तर गया है और दो साल के बाद ही लौटेगा, ... मरद के बिना ससुराल कितनी खाली मालूम होती है, कोई उनसे पूछे।



हिना को लगा लेकिन जब अब फागुन आया है सब सखियाँ खुद महुआ के फूल बनी हैं, देख के नशा हो रहा है तो वो दूर खड़ी, ... अपने में दुबकी,



और चंदा की चीख ने एक बार फिर उसका ध्यान कमल और चंदा की ओर खींच दिया।

चंदा की चीख, चीख कम थी सिसकी ज्यादा।

अब लंड के हर ठोकर से उसकी पिछवाड़े की सांकरी गैल के तार तार झंकृत हो रहे थे, कमल की मोटी बीन पर वो नागिन झूम रही थी। आज तक सपने में भी उसे ऐसा संपेरा नहीं मिला था। अब वह कभी गोल गोल घुमाती तो कभी कस के आम के पेड़ को पकडे पकड़े पूरी ताकत से धक्के का जवाब से देती, कभी जब लंड पूरा अंदर घुसता तो बस प्यार से कस के निचोड़ लेती जैसे कोई सजनी बरस बरस बाद परदेस से लौटे साजन को गलबहिं डाल के ऐसे दबोचती जैसे बिरह के हर पल पल का हिसाब ले रही थी, जैसे बियोग के वो पल कपूर से उड़ जाएंगे।
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चंदा भी कमल के खूंटे को इत्ते प्यार से दबोचती हक़ से ताकत से, जैसे हो हिम्मत तो निकल जाओ बाहर।



हिना मंत्रमुग्ध होके देख रही थी।


देह की किताब पर सुख के ये अक्षर कैसे लिखे जाते हैं सीख रही थी. सुख सिर्फ पुरुष का नहीं है जो प्रणय याचना करता है, उससे ज्यादा ही सुख स्त्री भी भोगती है जब तन के साथ मन के सारे बंधन ढीले कर देती हैं. अंगिया की डोर ढीली करने से पहले, हलके से आँखे नीची कर कुछ शरमाते लजाते नीवी के बंधन खोलने के पहले, मन के पाखी के पिजरे का द्वार खोलना होता है।

जब मन आसमान की लम्बाई चौड़ाई लम्बाई नापने लगता है कभी दहकते पलाश सा सुलगता है तो कभी बूँद बूँद टपकते महुआ की तरह चूता है, तब अपने आप देह रस्विनी हो जाती है। खुद ही चोली की गाँठ और साया का नाड़ा खुल जाता है, और मन और तन दोनों फागुन हो उठता है।

कमल और चंदा दोनों दुनिया से बेखबर थे सिर्फ प्रणय क्रिया में लीन उस क्रौंच युगल की तरह,

और बेखबर हिना भी थी बस थोड़ा बहुत अहसास सुगना और गुलबिया का था, जो उसे सम्हाले थीं।
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कमल के धक्के तूफानी हो गए थे, अब उसने चंदा के चौड़े नितम्बों को पकड़ लिया था, वह चौड़े नितम्ब जो स्त्री के सौंदर्य को भी परिभाषित करते हैं और उस कठिन कर्म को जिसके लिए विधाता ने उसे चुना है, सृष्टि को आगे बढ़ाने का। गर्भस्थ शिशु ज्यादा जगह चाहता है माँ के पेट में और नितम्ब चौड़े होकर उस के लिए स्थान बनाते हैं.

एक बार फिर चंदा उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी, कुछ अस्पष्ट बोल रही थी, कस के रसाल के उस विशाल तने को अपनी बाँहों में जकड़ लिया था जैसे कमल के हर धक्के को सह सके और अब कमल अपना पौरुष रस चंदा के अंदर निकाल रहा था, पूरी तरह चंदा के गुदा द्वार में घुसा अपना पूरा बोझ चंदा पे डाले। कमल की भी आँखे बंद हो चुकी थीं, देह ढीली पड़ रही थी लेकिन उसका विशाल लिंग, जैसे उसका कोई लग ही अस्तित्व हो , वह अभी भी फनफनाया .


कभी कभी बारिश में लगता है बारिश बंद हो गयी हैं बादलों की गगरी खाली हो गयी है लेकिन वो जैसे झट से पास के ताल पोखर में डुबकी लगा के दुबारा पानी ले आते हैं धार टूटने नहीं पाती, बस वह हाल कमल की हो रही थी,... एक बार के बाद दुबारा, और वीर्य जिस तेजी से निकलता, चंदा की देह में बूँद बूँद रिसता, चंदा की देह भी कांपने लगती।
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कुछ देर तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे, कमल को ओढ़े चंदा, और फिर धीरे धीरे कमल ने अपना लिंग बाहर निकाला।

देख रही लड़कियों के लिए जैसे कोई सम्मोहन खतम हुआ।

हिना को लगा जैसे एक तिलस्म टूट गया और वो तिलस्म से बाहर आ गयी , अब उसे फिर से बाकी सहेलियों की चहचाहट, भौजियों की छेड़खानी सुनायी पड़ने लगी ,

चंदा कटे पेड़ की तरह अभी भी निहुरी झुकी पड़ी थी, आँखे आधी बंद और जब हलकी सी खुलीं तो उसने कमल को देखा और एकबार शर्मा कर के अपनी आँखे बंद कर ली,

हिना ये चुहुल देख रही थी, खुद ही मुस्करा रही थी।


तभी चंदा के पिछवाड़े से बूँद बूँद कर के वीर्य धार रिसने लगी. शैतान रेनू, अपनी सहेलियों को देख के उसने एक बार कस के आँख मारी और पूरी ताकत से दोनों हाथों से चंदा की गाँड़ फैला दी और फिर जैसे कोई बाँध टूट गया हो परनाला बहने लगा हो,... सफ़ेद गाढ़ी रबड़ी मलाई की धार चंदा के पिछवाड़े से,...
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" " कित्ता ढेर सारा, ... " हिना के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा और फिर वो अपनी ही आवाज सुन के लजा गयी।



" कित्ता ढेर सारा का , बोल न मेरी बिन्नो " गुलबिया ने बगल में चिकोटी काट के हिना को चिढ़ाया।



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अब हिना भी पक्की ननद हो गयी थी भौजाई से पीछे हटने वाली नहीं थी, फिर गुलबिया का घर पठानटोली में भी जजमानी करता था तो कोई काज प्रयोजन,... तो गुलबिया से वो पहले ही,



" ढेर सारा रबड़ी मलाई,... और जउन मलाई घौंटे हमार भौजाई कुल आपन बहिन महतारी छोड़ के बाईसपुरवा में आती हैं उहे और का " हिना चहक के बोली।

" घोंटबू तू ये रबड़ी मलाई, ... बोला , हमार कुल देवर, बाईसपुरवा के कुल लौंडे सब आपन मलाई घोंटाने के लिए तैयार खड़े हैं और घबड़ा जिन आसा बहू तीन महीना वाली अंतरा पहले ही लगा दी , तो न पेट फुलाई न उलटी होई,... " गुलबिया कौन हटने वाली थी पीछे।



थोड़ी देर में गुलबिया और सुगना दोनों हिना को रगड़ रहे थे।
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भाग ७७

इंटरवल के बाद

ननदों की मस्ती
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14,42,820



इंटरवल हो गया था , एक बजे का



कुछ खाना पीना आधे घंटे तक दस पांच मिनट आराम उसके बाद और फिर मस्ती।



कपड़े सब ने पहन लिए थे, हम भौजाइयों का तो झंझट ही नहीं था सबने सिर्फ साड़ी पहन रखी थी, सीने पर खूब टाइट बाँध रखी थी, उभार झलक रहे थे उनका कड़ापन, कटाव निप्स सब कुछ साफ़ साफ़, जरूरत पड़ी तो तो थोड़ा नीचे सरका लिया देवरों का कल्याण हो गया और चुनमुनिया को हवा दिखानी हुयी तो कमर तक उठा ली, छल्ले की तरह कमर पे,... उतारने की जरूरत ही नहीं थी,

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और ननदों के कपडे आज फाड़ने की जरूरत नहीं पड़ी, जबरदस्ती हुयी लेकिन बस कपडे उतारने के लिए,और अंदर का ढक्कन तो उन सबने भी नहीं पहना था, और वही हालत देवरों की थी,

और खाने के साथ भी मस्ती चालू थी, मैं देख रही थी नयी जोड़ियां बन गयी थीं,


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रेनू ऐसी ननद जो कमल को हाथ लगाना तो दूर पास फटकने भी नहीं देती थी, खुद उससे चिपकी, अपने हाथ से खिला रही थी चिढ़ा भी रही थी खुल के मज़ाक कर रही थी,

" भैया अभी सुबह से तुम मुझे खिला रहे थे वहां, अब मेरी बारी है, खा लो, खा लो तेरी सारी एनर्जी तो मैं खा गयीं हूँ, और बची खुची हिना ने घोंट लिया,... तुझे ताकत की बहुत जरूरत है "

कमल ने इशारा किया ऐसे नहीं खाऊंगा और रेनू ने अपने मुंह में लेके, बस सबके सामने क्या जबरदस्त चुम्मा चाटी हुयी भाई बहन के बीच में, और कमल ने उसे अपना इरादा बता दिया,

" अरे बहना अभी तो कुछ नहीं, घर चल बताता हूँ, आज से न दिन न रात, किसी दिन नहीं छोडूंगा,... "

लेकिन रेनू का इरादा और खतरनाक था और न वो झिझक रही थी की उसकी सहेलियां, भाभियाँ सुन रही हैं. अपने भाई कमल का गाल चूम के बोली,...

" बड़े आये हैं, कोई तुझे छोड़ने देगा तो न आज घर पहुँचते है मैं अपना बिस्तर तेरे कमरे में, वहीँ अड्डा जमाऊँगी, बल्कि बिस्तर की क्या जरूरत है तेरा बिस्तर तो है ही और वैसे भी तू तो मेरे ऊपर ही चढ़ा रहेगा और फिर मुझे चार साल का उधार भी लेना है सूद सहित "
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सब लड़कियां भाभियाँ रेनू कमल का प्रेमालाप फटी आँखों से देख रही थीं, सपने में कोई नहीं सोच सकता था इन दोनों में कभी,...

दूबे भाभी मेरे पास आयीं और खुश होके बोलीं,

" तेरी सास अगर यहाँ होती न तो ये रेनुआ और कमलवा को देख के दस गारी तोहरी महतारी को देतीं, कहतीं तोहार महतारी कउनो जादूगर , ओझा सोखा से चुदवाय के तोहे पैदा किये हैं, तभी पेट से ये सब जादू मंतर सीख के आयी है. कमल क महतारी केतना खुश होंगी बता नहीं सकती।"

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मैंने उन्हें बताया नहीं की कल रात में घर जाते हुए मिली थी और अपना सब दुःख उन्होंने मुझसे कहा था और तभी मैंने वादा किया था, ... बल्कि बात मजाक में मोड़ दी,


" अरे आप सबसे बड़ी जेठानी हैं हमारी, आप से ज्यादा कौन जानता है, हम लोगन की कुल ननद सब, एक भी नहीं बची होंगी, जो भाई चोद न हों और कउनो देवर नहीं बचे जो बहन चोद न हो "

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" और जो दो चार आपन समेट के रखी थीं,.. उन नंदों को तू आज भाई चोद बना दी " हँसते हुए रेनू कमल को देखते वो बोलीं,...


और सिर्फ रेनुवा नहीं,

कल की छोरी बेला, जिसकी आज नथ उतरी थी, वो एकदम चुन्नू से चिपकी, राखी भी बांधती थी दोस्ती भी लेकिन आज मरद मेहरारू वाला रिश्ता लग रहा था.


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कम्मो जो आज सुबह तक कुँवारी थी उसके सगे भाई पंकज से भौजाइयों ने उसकी फड़वायी और अब वो दोनों भी गौने के बाद दुलहा दुल्हिन देख के ललचाते रहते हैं एकदम वैसे ही दोनों एक दूसरे को देख के,...
लेकिन नयी नयी कच्ची कलियाँ बारी उमरिया वाली जिनकी आज पहली बार फटी थी, उन सबकी हालत भी बहुत खराब था,


हिना बेचारी उसके साथ तो डबलिंग भी हो गयी थी, दो दो भौजाइयां उसे पकड़ के खाना खिला रही थीं ,


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जो हालत गौने की रात के बाद भौजाई की होती है वो आज इन कच्ची कलियों ननदों की हो रही थी,



" हे कौन कौन देवर बचा है जो आपन बहिन आज नहीं चोदा हाथ उठाओ, जबरदस्त इनाम मिलेगा " दूबे भाभी जोर से बोलीं,..
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सब देवर दूबे भाभी को देख के खिलखिला रहे थे, भांग का दूसरा डोज खीर में सबके पेट में पहुँच गया था और उनकी ओर से एक ननद बोली, ,


" का इनाम मिलेगा ये भी बता दा भौजी "

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" गाँड़ मारी जायेगी यही खूंटे से " चमेलिया स्ट्रेप ऑन ( जो गाय बैल बांधने वाले खूंटे में कंडोम लगा के लोकल जुगाड़ से बना था ) लहरा के बोली। और जोड़ा

" दो ही तरह के देवर हैं यह गाँव में या तो गांडू या बहिन चोद,... "

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बात बदलने और काटने में नीलू का कोई मुकाबला नहीं था, हँसते हुए वो बोली,...

"ठीक है जो बहिन नहीं चोदा होगा ओके का इनाम मिलेगा, ... भौजाई सब चोदवायेंगी,... का अरे फागुन ख़तम हो रहा है,... नयकी भौजी सोच ला
आज तोहार कुल देवर मुठियाय रहे हैं दो दर्जन से उपर देवर हैं, अगवाड़ा, पिछवाड़ा, एक साथ की बारी बारी से, ... "

कम्मो बैठी हुयी थी, उठा नहीं जा रहा था, उसके सगे भाई पंकज ने इतनी जबरदस्त अपनी छोटी बहन की कच्ची कोरी बिल फाड़ी थी, अभी भी मलाई जमी हुयी थी, लेकिन ननद मतलब छिनार, बिना बोले कैसे रहती, नीलू की बात जवाब उसी ने दिया। कबड्डी में भी वो मेरे पीछे पड़ी थी गरियाने में।

" अरे नीलू दीदी, बारी बारी से तो बहुत टाइम लगेगा, हमरे नयकी भौजी को समझत का हो, बड़ी निक हैं सबका मन रखेंगी एक साथ तीन तीन, तीनो छेद में और दो को मुठियायेंगी, हर देवर को हर छेद क मज़ा। उनकर महतारी भेजी हैं इसलिए। "

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Renu to bilkul badal gyi or ek dam khul kr maje le rahi hai, ghar me bhi kisi se chup kar nhi
 
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