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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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हिना की हालत खराब


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आधे से ज्यादा अंदर था. लेकिन कमल ने एक ही झटके में पूरा निकाल के ठोंक दिया

चंदा के मुंह से सिसकी और चीख एक साथ निकली और वो झड़ने लगी। पूरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी , आँखे बाहर उबल के आ रही थीं. चंदा कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन मस्ती के कारण कुछ भी साफ़ नहीं बोल पा रही थी। जैसे बारिश में बढ़ी नदी में आंधी के कारण एक के बाद एक लहरें, आती हैं तट से टकराकर चूर चूर हो जाती हैं और फिर एक नयी लहर,


चंदा की हालत भी वही हो रही थी और हिना की भी हालत बिना मरवाये भी खराब थी। देख देख कर, सोच सोच कर, उसकी चुनमुनिया दुबदुबा रही थी.

झड़ चंदा रही थी लेकिन हालत हिना की भी अच्छी नहीं थी।

उसकी आँखे बस चंदा के पिछवाड़े चिपकी थीं, दुबदुबाते चंदा के पिछवाड़े के छेद में आधा घुसा. आधा निकला आधा धंसा कमल का लम्बा मोटा भाला, और देख रही थी चंदा कैसे सिर्फ गाँड़ मरवा के झड़ रही थी, कितनी ख़ुशी थी चंदा के चेहरे पर, उसकी देह मस्ती से काँप रही थी,
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और उसी मस्ती से महरूम कर रखा था हिना ने अपने को, ... उसकी पठानटोली में तो खैर एक भी लड़के थे नहीं, लेकिन उसकी सहेलियों के भाई तो थे और अब सुगना भौजी ने तो साफ़ कह दिया था हिना को,


"जब चाहे तब, जिससे चाहे उससे,...सुगना भौजी हैं न, जहाँ मन करे वहां।


हिना सुबह की धूप ऐसी गोरी, नरम गरम, गाल देख के गुलाब की पंखुड़ियां शरमा जाएँ, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, लेकिन सुगना भौजी ने ठीक कहा, ...

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क्या फायदा ऐसी आयी जवानी का, ऐसे आये जोबन का जब बुरके में छिपा के रखे, किसी को पता ही न चले की कैसे एक मस्त कली खिल रही है, कौन भौंरा चक्कर काटेगा,


और सुगना भौजी, कमल का मूसल देखते हिना की ललचाती, प्यासी आँखों को देख रही थीं, जैसे कोई छोटे बच्चे को गोदी में दुबकाता है एकदम उसी तरह इन्होने दुलराते हुए हिना को भींच लिया और उसके कच्चे टिकोरों को दबोच लिया। इसी को स्साली सात तह किये दुप्पट्टे में छिपा के रखती थी और ऊपर से काला मोटा बुरका, ... घुंडी घुमाते हुए हिना ननदिया को चिढ़ाया,

" हैं न खूब लम्बा मोटा, कड़ा,... "
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हिना की निगाहें अभी भी कमल के कमाल खूंटे से चिपकी थीं, अपने आप उसके लब खुले और बेसाख्ता निकला,

" सच में भाभी, खूब मस्त कैसा फनफनाया है "


" क्या चीज, ननद रानी जब तक बोलोगी नहीं, छोडूंगी नहीं " और खिलखिलाती हुयी सुगना ने कचकचा के नौंवी में पढ़ने वाली ननद के गाल काट लिए,


" छोड़ न भौजी, अच्छा बोलती हूँ ओह्ह,... " हिना हँसते हुए बोली लेकिन सुगना ने अबकी अपनी कच्ची ननद के दोनों निचले होंठ दबौच लिए और दोनों फांकों को पकड़ के मसलने लगी, ... " बोल बोल नहीं तो मुट्ठी पेलती हूँ कौन चीज मस्त "
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" वो ल,... ल,... लंड ,... " थूक घोंटती हुयी हिना बोली।
" अरे बोले में इतना टाइम लगाओगी तो घोंटने में पूरा इन लग जाएगा और लौंडा कही और जाके ठोंक देगा "

गुलबिया, हमारे नाउन की बहू हिना के दूसरी ओर आके बैठ गयी थी, उसने समझाया,

" एकदम ननद रानी जो दिखता है वो बिकता है और लौंडे सब न, कोई ज्यादा नखड़ा की न तो बस, तू नहीं और सही,... तो तानी लाज शरम छोड़ के मजा लो , जोबन आया है जवानी है काहें को " सुगना भौजी ने समझाया, हिना के जोबन गुलबिया और सुगना ने बाँट लिए थे ऐसी कच्ची अमिया मिलती भी मुश्किल से थी.

लेकिन अब तीनों निहुरी हुयी चंदा का खेला देख रही थीं।

चंदा सदाव्रत चलाती थी, किसी को मना नहीं करती थी. देती थी और खुल के देती थी।

लेकिन आज कहते हैं न की ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया था, बस वही हाल थी। कमल का खूंटा खूब मोटा था और गाँड़ मारने में जिला टॉप था ऊपर से उसकी बहन रेनू उसे उकसा भी रही थी, यही चंदा सबके आगे बिन कहे टांग फैला लेती थी लेकिन उसके प्यारे भाई के आगे सिकोड़ लेती थी आज आयी है नीचे,

कभी दोनों हाथों से चंदा की कमर पकड़ के, कभी दोनों हाथों से अपनी बहन की समौरिया उसी के साथ इंटर में पढ़ने वाली, चंदा की बड़ी बड़ी गदरायी चूँची पकड़ के हचक के लंड गाँड़ में पूरी ताकत से ठोंक रहा था
" उय्य्यी नहीं , कमल भैया थोड़ा रुक जाओ, ओह्ह्ह नहीं लगता है " चंदा चीख रही थी।


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लग रहा था गाँड़ अंदर से जगह जगह से छिल गयी थी, लेकिन कमल कम उस्ताद नहीं था वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था, चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक, चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।

हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।
Wah vaha chanda rani ke pichhvade ka haran ho raha he. Yaha shuhna bhabhi hina ko taiyaar kar rahi he. Lagta he is chhinar nandiya ka to is se bhi bura hal karwaogi.

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Shetan

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हिना
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लग रहा था गाँड़ अंदर से जगह जगह से छिल गयी थी, लेकिन कमल कम उस्ताद नहीं था वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था, चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक, चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।


हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।

इसी दर्द को घूँट घूँट पीने में, अंजुरी में लेकर रोम रोम में रगड़ने मसलने में, ही तो असली मजा है। जब दरद देह का हिस्सा हो जाए, दरद इतना हो की उसी दरद के लिए जिया में हुक उठे, उस दरद देने वाले का इन्तजार करते देहरी पर खड़े खड़े पलक न झपके, कुछ आहट हो तो लगे वो दरद देने वाला आ गया है


और जब यह अहसास हो जाए तो समझ लीजिये कैशोर्य की चौखट डांक कर, गली में आंगन में ठीकरे से इक्कट, दुक्क्ट खेलने वाली लड़की अब तरुणी हो गयी है,

और हिना को यह अहसास हो रहा था थोड़ा थोड़ा, .. सुगना और गुलबिया के दुलार की दुलाई में लिपटी अब धीरे धीरे उन जैसी ही हो रही थी।

घुस चंदा के पिछवाड़े रहा था, चीख चंदा रही थी, दुबदुबा हिना की कसी गाँड़ रही थी,लग हिना को रहा था की उसके पिछवाड़े कोई मोटा पिच्चड घुसा है जो दर्द भी दे रहा है और मज़ा भी।
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सुगना और गुलबिया की आँखे कमल के खूंटे पर लगी थीं लेकिन जाने अनजाने उन दोनों के हाथ अपनी किशोर ननद के उभारों को सहला रही थीं। बहुत हलके हलके जैसे कोई रुई के फाहे की तरह छू रहा हो. हिना का बदन, उसके जोबन, पलाश की तरह दहक रहे थे।

हिना का मन, चावल चुगती, कभी इस मुंडेर पर कभी उस मुंडेर पर फुदकती गौरेया की तरह, कभी चंदा की ख़ुशी में डूबी देह को देखता तो कभी सोचता साल दो साल पहले ही तो इस गाँव के लड़के लड़कियों के साथ बिना हिचक वो खेलती, झगड़ा करती, लड़ती, बारिश आने पे पहली बूँद के साथ ही अपनी इन्ही सहेलियों के साथ कभी अपने आंगन में कभी कम्मो के घर, अरई परई गोल गोल चक्कर काटती, सब सहेलिया देखतीं किसके ऊपर कितनी बूंदे पड़ी , सबकी मायें डांटती, लड़की सब पागल हो गयी हैं का,

सावन आता तो झूला झूलने इसी बगिया में आती, भाभियों की चिकोटियां, किसका झूला कितना ऊपर जाता है बस मन करता सावन को लपेट ले, ओढ़ ले और साल के बारहो महीने सावन के हो जाए, हरे भरे,

सावन में पूरे गाँव में उसके अपने टोले में भी नयी नयी सुहागने गौने के बाद पहली बार मायके आतीं और भौजाइयां घेर के उनसे गौने की रात का हाल बार बार पूछतीं, ... चिकोटियां काटतीं और जब हिना ऐसे कुंवारियां भी चिपक के हाल सुनती तो कोई भौजाई उन कुंवारियों को छेड़ती भी

" सुन ले, सुन ले तेरे भी काम आएगा " .
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और जब वो लड़कियां बिदा होती, किसी भी पुरवा की, पठानटोली वाली हों या पंडिताने की, जाने के पहले सब से, काकी, ताई से भौजी से सब से, मिल के भेंट के, ...दिन कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता .



पिछले सावन ही अजरा उदास की चादर हटाने के चक्कर में बात बदलने के लिए पंडिताइन चाची से भेंटते हुए छत पर चढ़े कद्दू की बेल को देखते हुए बोली,



" चाची, पिछली बार तो एकदम बतिया थी ये "



" अरे पगली खाली बेटियां थोड़ी बड़ी होती हैं, " पंडिताइन चाची हंसने की कोशिश करते बोलीं और आँचल की कोर से आंसू का एक कतरा पोंछ लिया।

उन्हें भी मालूम था की अजरा का मरद क़तर गया है और दो साल के बाद ही लौटेगा, ... मरद के बिना ससुराल कितनी खाली मालूम होती है, कोई उनसे पूछे।



हिना को लगा लेकिन जब अब फागुन आया है सब सखियाँ खुद महुआ के फूल बनी हैं, देख के नशा हो रहा है तो वो दूर खड़ी, ... अपने में दुबकी,



और चंदा की चीख ने एक बार फिर उसका ध्यान कमल और चंदा की ओर खींच दिया।

चंदा की चीख, चीख कम थी सिसकी ज्यादा।

अब लंड के हर ठोकर से उसकी पिछवाड़े की सांकरी गैल के तार तार झंकृत हो रहे थे, कमल की मोटी बीन पर वो नागिन झूम रही थी। आज तक सपने में भी उसे ऐसा संपेरा नहीं मिला था। अब वह कभी गोल गोल घुमाती तो कभी कस के आम के पेड़ को पकडे पकड़े पूरी ताकत से धक्के का जवाब से देती, कभी जब लंड पूरा अंदर घुसता तो बस प्यार से कस के निचोड़ लेती जैसे कोई सजनी बरस बरस बाद परदेस से लौटे साजन को गलबहिं डाल के ऐसे दबोचती जैसे बिरह के हर पल पल का हिसाब ले रही थी, जैसे बियोग के वो पल कपूर से उड़ जाएंगे।
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चंदा भी कमल के खूंटे को इत्ते प्यार से दबोचती हक़ से ताकत से, जैसे हो हिम्मत तो निकल जाओ बाहर।



हिना मंत्रमुग्ध होके देख रही थी।


देह की किताब पर सुख के ये अक्षर कैसे लिखे जाते हैं सीख रही थी. सुख सिर्फ पुरुष का नहीं है जो प्रणय याचना करता है, उससे ज्यादा ही सुख स्त्री भी भोगती है जब तन के साथ मन के सारे बंधन ढीले कर देती हैं. अंगिया की डोर ढीली करने से पहले, हलके से आँखे नीची कर कुछ शरमाते लजाते नीवी के बंधन खोलने के पहले, मन के पाखी के पिजरे का द्वार खोलना होता है।

जब मन आसमान की लम्बाई चौड़ाई लम्बाई नापने लगता है कभी दहकते पलाश सा सुलगता है तो कभी बूँद बूँद टपकते महुआ की तरह चूता है, तब अपने आप देह रस्विनी हो जाती है। खुद ही चोली की गाँठ और साया का नाड़ा खुल जाता है, और मन और तन दोनों फागुन हो उठता है।

कमल और चंदा दोनों दुनिया से बेखबर थे सिर्फ प्रणय क्रिया में लीन उस क्रौंच युगल की तरह,

और बेखबर हिना भी थी बस थोड़ा बहुत अहसास सुगना और गुलबिया का था, जो उसे सम्हाले थीं।

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कमल के धक्के तूफानी हो गए थे, अब उसने चंदा के चौड़े नितम्बों को पकड़ लिया था, वह चौड़े नितम्ब जो स्त्री के सौंदर्य को भी परिभाषित करते हैं और उस कठिन कर्म को जिसके लिए विधाता ने उसे चुना है, सृष्टि को आगे बढ़ाने का। गर्भस्थ शिशु ज्यादा जगह चाहता है माँ के पेट में और नितम्ब चौड़े होकर उस के लिए स्थान बनाते हैं.

एक बार फिर चंदा उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी, कुछ अस्पष्ट बोल रही थी, कस के रसाल के उस विशाल तने को अपनी बाँहों में जकड़ लिया था जैसे कमल के हर धक्के को सह सके और अब कमल अपना पौरुष रस चंदा के अंदर निकाल रहा था, पूरी तरह चंदा के गुदा द्वार में घुसा अपना पूरा बोझ चंदा पे डाले। कमल की भी आँखे बंद हो चुकी थीं, देह ढीली पड़ रही थी लेकिन उसका विशाल लिंग, जैसे उसका कोई लग ही अस्तित्व हो , वह अभी भी फनफनाया .


कभी कभी बारिश में लगता है बारिश बंद हो गयी हैं बादलों की गगरी खाली हो गयी है लेकिन वो जैसे झट से पास के ताल पोखर में डुबकी लगा के दुबारा पानी ले आते हैं धार टूटने नहीं पाती, बस वह हाल कमल की हो रही थी,... एक बार के बाद दुबारा, और वीर्य जिस तेजी से निकलता, चंदा की देह में बूँद बूँद रिसता, चंदा की देह भी कांपने लगती।
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कुछ देर तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे, कमल को ओढ़े चंदा, और फिर धीरे धीरे कमल ने अपना लिंग बाहर निकाला।

देख रही लड़कियों के लिए जैसे कोई सम्मोहन खतम हुआ।

हिना को लगा जैसे एक तिलस्म टूट गया और वो तिलस्म से बाहर आ गयी , अब उसे फिर से बाकी सहेलियों की चहचाहट, भौजियों की छेड़खानी सुनायी पड़ने लगी ,

चंदा कटे पेड़ की तरह अभी भी निहुरी झुकी पड़ी थी, आँखे आधी बंद और जब हलकी सी खुलीं तो उसने कमल को देखा और एकबार शर्मा कर के अपनी आँखे बंद कर ली,

हिना ये चुहुल देख रही थी, खुद ही मुस्करा रही थी।


तभी चंदा के पिछवाड़े से बूँद बूँद कर के वीर्य धार रिसने लगी. शैतान रेनू, अपनी सहेलियों को देख के उसने एक बार कस के आँख मारी और पूरी ताकत से दोनों हाथों से चंदा की गाँड़ फैला दी और फिर जैसे कोई बाँध टूट गया हो परनाला बहने लगा हो,... सफ़ेद गाढ़ी रबड़ी मलाई की धार चंदा के पिछवाड़े से,...
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" " कित्ता ढेर सारा, ... " हिना के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा और फिर वो अपनी ही आवाज सुन के लजा गयी।



" कित्ता ढेर सारा का , बोल न मेरी बिन्नो " गुलबिया ने बगल में चिकोटी काट के हिना को चिढ़ाया।



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अब हिना भी पक्की ननद हो गयी थी भौजाई से पीछे हटने वाली नहीं थी, फिर गुलबिया का घर पठानटोली में भी जजमानी करता था तो कोई काज प्रयोजन,... तो गुलबिया से वो पहले ही,



" ढेर सारा रबड़ी मलाई,... और जउन मलाई घौंटे हमार भौजाई कुल आपन बहिन महतारी छोड़ के बाईसपुरवा में आती हैं उहे और का " हिना चहक के बोली।

" घोंटबू तू ये रबड़ी मलाई, ... बोला , हमार कुल देवर, बाईसपुरवा के कुल लौंडे सब आपन मलाई घोंटाने के लिए तैयार खड़े हैं और घबड़ा जिन आसा बहू तीन महीना वाली अंतरा पहले ही लगा दी , तो न पेट फुलाई न उलटी होई,... " गुलबिया कौन हटने वाली थी पीछे।



थोड़ी देर में गुलबिया और सुगना दोनों हिना को रगड़ रहे थे।
Are hina rani jese ful ka bhi kuchh kar dete. Bechari ko dikha dikha aur puchh puchh ke gad gadate rahe. Par pichhvade ka varanan jabardast laga. Kya erotic shararat thi. Amezing. Ese hi log thode komalji ke deewane he.

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Lakshmanain

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बड़ा मजा पिछवाड़े में
कोमल मैं इस कहानी में जो आपके सजना हैं उनका रोल कब आएगा की जोरू के गुलाम की तरह इसमें भी गढ़वा ही रखी हैं देखो कोमल मैं मेंन किरदार को ही लेकर पढ़ते हैं कौन सा किरदार क्या कर रहा है वह मायने नहीं रखता कोमल मैं मेंन किरदार क्या रोल है वह मायने रखता है जैसे मूवी ही देख लो विलयन क्या कर रहा है वह मैंने नहीं रखता है लेकिन हीरो क्या कर रहा है वह मायने रखता है हम उसी हिसाब से कहानी भी पढ़ते हैं कोमल में कोमल मैं अगर कुछ दर्शक लोग का भी दे तो बुरा नहीं मानना चाहिए इसलिए उनके मन की बात मालूम पड़ता है आपको आगे भी कहानी लिखने में दिक्कत नहीं होगी सही कह रहे हैं या गलत कह रहे हैं मैं आप उसका जवाब तो दिया करो बहुत-बहुत धन्यवाद
 

komaalrani

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पृष्ठ ११८० ( जोरू का गुलाम ) पर आरुषि जी उकृष्ट चित्रमयी काव्य कथा पति -पत्नी और मिंत्र

इसके बारे में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाना होगा , पहली चार लाइनों से ही आने वाली स्थिति का अंदाज लग जाता है


मेरा एक परम मित्र है जो ऑफिस में है मेरा सहकर्मी
आजकल अपनी बीवी की नहीं बुझा पता है वो गर्मी
पिछले कुछ महीनों से उनमें हो रही थी खूब लड़ायी
ज्योति की योनि छूते ही मुरली बहा देता था मलाई


बस पृष्ठ ११८० पर जाएँ पढ़ें और पढ़ कर कैसा लगा जरूर बताएं।

https://exforum.live/threads/जोरू-का-गुलाम-उर्फ़-जे-के-जी.12614/page-1180
 

komaalrani

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Neelu ka nakhre or bola ki " ruk saale, bhabhi roko na". Ese hi samvad hi baat kr raha tha me apse. Last ke 2-3 part me to maja hi aa gya, ek dam hot
Aaaynge ayange ab aise hi smavaad aaynge aap part 78 padhiyega to kahiyegaa
 

komaalrani

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Jinki 10-12 ki nayi nayi seal khul hai, wo sab hi bahar ho gyi ya koi hai himmat wali jisko doubling or tripling hogi,
Kahani se jude rahiye, comment dete rahiye sb pata chalega

Thanks so much for your regular comments.

:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 

komaalrani

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भाग ७८

चंदा का पिछवाड़ा औ
र कमल का खूंटा

updates are posted on page 779, please do read, enjoy and comment.
 

komaalrani

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Wah Komalji. Akhir nando ki unke bhaiya ke khute se pakki vali dosti karwa hi di. Amezing. Aur renu vala seem to jabardast erotic tha. Maza hi aa gaya. Sath me grafics bhi maind me vesa hi seem create kar rahe he.

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Bahoot bahoot thanks, aap ka saath hi is kahani ko aage badha rha hai aage aur bhi aise part aaynege, thanks again
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार
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फागुन अभी लगा नहीं , लेकिन दस्तक दे रहा है , और मुझे लगा यही सही समय है फागुन के दिन चार को पोस्ट करने का।

लिंक भी दे रही हूँ और थोड़ा इस कहानी के बारे में
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" फागुन के दिन चार " मेरी लम्बी कहानी बल्कि यूँ कहें की उपन्यास है। इसका काल क्रम २१ वी शताब्दी के शुरू के दशक हैं, दूसरे दशक की शुरुआत लेकिन फ्लैश बैक में यह कहानी २१ वीं सदी के पहले के दशक में भी जाती है.

कहानी की लोकेशन, बनारस और पूर्वी उत्तरप्रदेश से जुडी है, बड़ोदा ( वड़ोदरा ) और बॉम्बे ( मुंबई ) तक फैली है और कुछ हिस्सों में देश के बाहर भी आस पास चली आती है। मेरा मानना है की कहानी और उसके पात्र किसी शून्य में नहीं होने चाहिए, वह जहां रहते हैं, जिस काल क्रम में रहते हैं, उनकी जो अपनी आयु होती है वो उनके नजरिये को , बोलने को प्रभावित करती है और वो बात एक भले ही हम सेक्सुअल फैंटेसी ही लिख रहे हों उसका ध्यान रखने की कम से कम कोशिश करनी चाहिए।

लेकिन इसके साथ ही कहानी को कुछ सार्वभौम सत्य, समस्याओं से भी दो चार होना पड़ता है और होना चाहिए।

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कहानी फागुन में शुरू होती है और फागुन हो, बनारस हो फगुनाहट भी होगी, होली बिफोर होली भी होगी।

लेकिन होली के साथ एक रक्तरंजित होली की आशंका भी क्षितिज पर है और यह कहानी उन दोनों के बीच चलती है इसलिए इसमें इरोटिका भी है और थ्रिलर भी जीवन की जीवंतता भी और जीवन के साथ जुडी मृत्यु की आशंका भी। इरोटिका का मतलब मेरे लिए सिर्फ देह का संबंध ही नहीं है , वह तो परिणति है। नैनों की भाषा, छेड़छाड़, मनुहार, सजनी का साजन पर अधिकार, सब कुछ उसी ' इरोटिका ' या श्रृंगार रस का अंग है। इसलिए मैं यह कहानी इरोटिका श्रेणी में मैं रख रही हूँ .

और इस कहानी में लोकगीत भी हैं, फ़िल्मी गाने भी हैं, कवितायें भी है

पर जीवन के उस राग रंग रस को बचाये रखने के लिए लड़ाई भी लड़नी होती है जो अक्सर हमें पता नहीं होती और उस लड़ाई का थ्रिलर के रूप में अंश भी है इस कहानी में।


तो यह थ्रेड इन्तजार कर रहा है आपके साथ का, प्यार का दुलार का आशीष का दुआओं का

कुछ नजारा मिल जाए इसलिए इस थ्रेड के शुरू करने के साथ मैंने आने वालो भागों की कुछ झलकियां भी शेयर की है

और इस भाग में तीन प्रंसग है, बनारस की शाम, सुबहे बनारस और बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम,

तो पधारे इस थ्रेड पर आशीष दें, और इन झलकियों पर भी अपना मंतव्य रखे

प्रतीक्षारत

https://exforum.live/threads/फागुन-के-दिन-चार.126857/
 
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komaalrani

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link for my story, Phagun ke din chaar.

Please do read, enjoy like and share your comments.
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