Shetan
Well-Known Member
- 14,828
- 39,518
- 259
Wah vaha chanda rani ke pichhvade ka haran ho raha he. Yaha shuhna bhabhi hina ko taiyaar kar rahi he. Lagta he is chhinar nandiya ka to is se bhi bura hal karwaogi.हिना की हालत खराब
आधे से ज्यादा अंदर था. लेकिन कमल ने एक ही झटके में पूरा निकाल के ठोंक दिया
चंदा के मुंह से सिसकी और चीख एक साथ निकली और वो झड़ने लगी। पूरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी , आँखे बाहर उबल के आ रही थीं. चंदा कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन मस्ती के कारण कुछ भी साफ़ नहीं बोल पा रही थी। जैसे बारिश में बढ़ी नदी में आंधी के कारण एक के बाद एक लहरें, आती हैं तट से टकराकर चूर चूर हो जाती हैं और फिर एक नयी लहर,
चंदा की हालत भी वही हो रही थी और हिना की भी हालत बिना मरवाये भी खराब थी। देख देख कर, सोच सोच कर, उसकी चुनमुनिया दुबदुबा रही थी.
झड़ चंदा रही थी लेकिन हालत हिना की भी अच्छी नहीं थी।
उसकी आँखे बस चंदा के पिछवाड़े चिपकी थीं, दुबदुबाते चंदा के पिछवाड़े के छेद में आधा घुसा. आधा निकला आधा धंसा कमल का लम्बा मोटा भाला, और देख रही थी चंदा कैसे सिर्फ गाँड़ मरवा के झड़ रही थी, कितनी ख़ुशी थी चंदा के चेहरे पर, उसकी देह मस्ती से काँप रही थी,
और उसी मस्ती से महरूम कर रखा था हिना ने अपने को, ... उसकी पठानटोली में तो खैर एक भी लड़के थे नहीं, लेकिन उसकी सहेलियों के भाई तो थे और अब सुगना भौजी ने तो साफ़ कह दिया था हिना को,
"जब चाहे तब, जिससे चाहे उससे,...सुगना भौजी हैं न, जहाँ मन करे वहां।
हिना सुबह की धूप ऐसी गोरी, नरम गरम, गाल देख के गुलाब की पंखुड़ियां शरमा जाएँ, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, लेकिन सुगना भौजी ने ठीक कहा, ...
क्या फायदा ऐसी आयी जवानी का, ऐसे आये जोबन का जब बुरके में छिपा के रखे, किसी को पता ही न चले की कैसे एक मस्त कली खिल रही है, कौन भौंरा चक्कर काटेगा,
और सुगना भौजी, कमल का मूसल देखते हिना की ललचाती, प्यासी आँखों को देख रही थीं, जैसे कोई छोटे बच्चे को गोदी में दुबकाता है एकदम उसी तरह इन्होने दुलराते हुए हिना को भींच लिया और उसके कच्चे टिकोरों को दबोच लिया। इसी को स्साली सात तह किये दुप्पट्टे में छिपा के रखती थी और ऊपर से काला मोटा बुरका, ... घुंडी घुमाते हुए हिना ननदिया को चिढ़ाया,
" हैं न खूब लम्बा मोटा, कड़ा,... "
हिना की निगाहें अभी भी कमल के कमाल खूंटे से चिपकी थीं, अपने आप उसके लब खुले और बेसाख्ता निकला,
" सच में भाभी, खूब मस्त कैसा फनफनाया है "
" क्या चीज, ननद रानी जब तक बोलोगी नहीं, छोडूंगी नहीं " और खिलखिलाती हुयी सुगना ने कचकचा के नौंवी में पढ़ने वाली ननद के गाल काट लिए,
" छोड़ न भौजी, अच्छा बोलती हूँ ओह्ह,... " हिना हँसते हुए बोली लेकिन सुगना ने अबकी अपनी कच्ची ननद के दोनों निचले होंठ दबौच लिए और दोनों फांकों को पकड़ के मसलने लगी, ... " बोल बोल नहीं तो मुट्ठी पेलती हूँ कौन चीज मस्त "
" वो ल,... ल,... लंड ,... " थूक घोंटती हुयी हिना बोली।
" अरे बोले में इतना टाइम लगाओगी तो घोंटने में पूरा इन लग जाएगा और लौंडा कही और जाके ठोंक देगा "
गुलबिया, हमारे नाउन की बहू हिना के दूसरी ओर आके बैठ गयी थी, उसने समझाया,
" एकदम ननद रानी जो दिखता है वो बिकता है और लौंडे सब न, कोई ज्यादा नखड़ा की न तो बस, तू नहीं और सही,... तो तानी लाज शरम छोड़ के मजा लो , जोबन आया है जवानी है काहें को " सुगना भौजी ने समझाया, हिना के जोबन गुलबिया और सुगना ने बाँट लिए थे ऐसी कच्ची अमिया मिलती भी मुश्किल से थी.
लेकिन अब तीनों निहुरी हुयी चंदा का खेला देख रही थीं।
चंदा सदाव्रत चलाती थी, किसी को मना नहीं करती थी. देती थी और खुल के देती थी।
लेकिन आज कहते हैं न की ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया था, बस वही हाल थी। कमल का खूंटा खूब मोटा था और गाँड़ मारने में जिला टॉप था ऊपर से उसकी बहन रेनू उसे उकसा भी रही थी, यही चंदा सबके आगे बिन कहे टांग फैला लेती थी लेकिन उसके प्यारे भाई के आगे सिकोड़ लेती थी आज आयी है नीचे,
कभी दोनों हाथों से चंदा की कमर पकड़ के, कभी दोनों हाथों से अपनी बहन की समौरिया उसी के साथ इंटर में पढ़ने वाली, चंदा की बड़ी बड़ी गदरायी चूँची पकड़ के हचक के लंड गाँड़ में पूरी ताकत से ठोंक रहा था
" उय्य्यी नहीं , कमल भैया थोड़ा रुक जाओ, ओह्ह्ह नहीं लगता है " चंदा चीख रही थी।
लग रहा था गाँड़ अंदर से जगह जगह से छिल गयी थी, लेकिन कमल कम उस्ताद नहीं था वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था, चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक, चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।
हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।