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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
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ननद की सास, और सास का प्लान
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दिल दिमाग के अलावा हर जगह खलबली मचा देती हैं...Thanks so much, I am grateful for your words of appreciation. aur haath ki lakiron vaali abat apne sahi kahi, superb. Bas kahani padhte rhaiye aur unhi haathon se har update ke baad do line apne comment ke bhi jaroor dijiye.
कुछ रीझ के तो कुछ रीझा के...aayengi sab pathan toli vaali aaynegi kuch sidhe se kuch bahla fusla ke aur baaki ke saath,... lekin hoga vahi jo aap chaahte hain aur dhoom dhadkae se hoga
इसी दर्द में मजा लेना .. तो कुछ विशिष्ट छोकरियों की पहचान है...अगली पोस्ट के कुछ अंश
कमल कम उस्ताद नहीं था, जहाँ छिला था, चमड़ी अंदर की छिल गयी थी, रगड़ गयी थी वहीँ पे दरेररते रगड़ते जान बुझ के पेल रहा था.
चिल्लाये ससुरी पूरे गाँव की लौंडियों को मालूम हो जाए , बीच बीच में चंदा के चूतड़ पे हाथ भी लगा रहा था, चटाक .
चूतड़ पे दर्जन भर कमल के फूल छप गए थे। कभी पूरा बाहर निकाल के जब अपनी कमर की पूरी ताकत से जड़ तक पेलता गाँड़ का छेद चौड़ा होकर फैल जाता, और दर्द से चंदा की चीख पूरी बगिया में फ़ैल जाती।
हिना को दबोचे, सुगना और गुलबिया समझ रही थीं, उनकी भी देख के सुरसुरा रही थी, इसी दर्द में तो मजा है, मरद कौन जो दरद न दे।
इसी दर्द को घूँट घूँट पीने में, अंजुरी में लेकर रोम रोम में रगड़ने मसलने में, ही तो असली मजा है। जब दरद देह का हिस्सा हो जाए, दरद इतना हो की उसी दरद के लिए जिया में हुक उठे, उस दरद देने वाले का इन्तजार करते, देहरी पर खड़े खड़े पलक न झपके, कुछ आहट हो तो लगे वो दरद देने वाला आ गया है
और जब यह अहसास हो जाए तो समझ लीजिये कैशोर्य की चौखट डांक कर, गली में आंगन में ठीकरे से इक्कट, दुक्क्ट खेलने वाली लड़की अब तरुणी हो गयी है,
और हिना को यह अहसास हो रहा था थोड़ा थोड़ा, ..
सुगना और गुलबिया के दुलार की दुलाई में लिपटी अब धीरे धीरे उन जैसी ही हो रही थी।
घुस चंदा के पिछवाड़े रहा था, चीख चंदा रही थी, दुबदुबा हिना की कसी गाँड़ रही थी,लग हिना को रहा था की उसके पिछवाड़े कोई मोटा पिच्चड घुसा है जो दर्द भी दे रहा है और मज़ा भी।
सुगना और गुलबिया की आँखे कमल के खूंटे पर लगी थीं लेकिन जाने अनजाने उन दोनों के हाथ अपनी किशोर ननद के उभारों को सहला रही थी बहुत हलके हलके जैसे कोई रुई के फाहे की तरह छू रहा हो. हिना का बदन उसके जोबन पलाश की तरह दहक रहे थे।
हिना का मन चावल चुगती कभी इस मुंडेर पर कभी उस मुंडेर पर फुदकती गौरेया की तरह, कभी चंदा की ख़ुशी में डूबी देह को देखता तो कभी सोचता साल दो साल पहले ही तो इस गाँव के लड़के लड़कियों के साथ बिना हिचक वो खेलती, झगड़ा करती, लड़ती, बारिश आने पे पहली बूँद के साथ ही अपनी इन्ही सहेलियों के साथ कभी अपने आंगन में कभी कम्मो के घर, अरई परई गोल गोल चक्कर काटती, सब सहेलिया देखतीं किसके ऊपर कितनी बूंदे पड़ी , सबकी मायें डांटती, लड़की सब पागल हो गयी हैं का,
सावन आता तो झूला झूलने इसी बगिया में आती, भाभियों की चिकोटियां, किसका झूला कितना ऊपर जाता है बस मन करता सावन को लपेट ले, ओढ़ ले और साल के बारहो महीने सावन के हो जाए, हरे भरे, सावन में पूरे गाँव में उसके अपने टोले में भी नयी नयी सुहागने गौने के बाद पहली बार मायके आतीं और भौजाइयां घेर के उनसे गौने की रात का हाल बार बार पूछतीं, ... चिकोटियां काटतीं और जब हिना ऐसे कुंवारियां भी चिपक के हाल सुनती तो कोई भौजाई उन कुंवारियों को छेड़ती भी
" सुन ले, सुन ले तेरे भी काम आएगा " .
और जब वो लड़कियां बिदा होती, किसी भी पुरवा की, पठानटोली वाली हो या पंडिताने की, जाने के पहले सब से, काकी ताई से भौजी से सब से, मिल के भेंट के, दिन कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता,
पिछले सावन ही अजरा उदासी की चादर हटाने के चक्कर में बात बदलने के लिए पंडिताइन चाची से भेंटते हुए छत पर चढ़े कद्दू की बेल को देखते हुए बोली,
" चाची, पिछली बार तो एकदम बतिया थी ये "
" अरे पगली खाली बेटियां थोड़ी बड़ी होती हैं, " पंडिताइन चाची हंसने की कोशिश करते बोलीं और आँचल की कोर से आंसू का एक कतरा पोंछ लिया।
और इस समझ के साथ शब्दों में अंकित कर देना भी कमाल का जादू है... जो सब पर अपनी छाप छोड़ जाता है...कोमल जी
मानव मन और भावनाओं खासकर महिलाओं की आपको कितनी गहरी समझ है, बस इसे समझा ही जा सकता है बताया नहीं जा सकता।
और आप इस समझ को शब्दों में इस बारीकी से उतारती है कि बस अंदर कहीं भीतर तक मन भीगता चला जाता है।
काश आपका एक अंश मात्र भी लिखना आता तो शायद अपनी बात पूरी तरह कह पाता।
थोड़ा कहा बहुत समझना।
सादर
शायद सेक्स के अलावा भाव प्रवणता पर उनका ध्यान कम जाता होगा...सारी क्रेडिट आप और आप ऐसे रससिद्ध रसिक पाठकों को है
मेरी इस पोस्ट के बाद कम से कम ६-७०० व्यूज तो हुए ही होंगे जिन्होंने इस पोस्ट पर एक अदद दृष्टिपात किया होगा। पर कमेंट तो छोड़िये लाइक तक किसी की नहीं आयी।
आप ऐसे जौहरी मेरे पाठकों में मित्रों में हैं, इसके लिए मैं और मेरे दोनों थ्रेड आपके आभारी हैं। और जो बातें आप ने कही है मैं बस कोशिश करती हूँ
कई बार इरोटिका एकदम यंत्रवत हो जाती है जैसे पॉर्न फिल्म आप अंदाज लगा सकते हैं की अगला एक्शन क्या होगा, हर पार्ट में एक सेक्स सीन आएगा ही, लेकिन तन के साथ मन, और खासतौर से जिस परिवेश में वो हैं वहां के अनुसार ही उपमाओं का चयन, अब ये कहानियां ग्रामीण परिवेश की हैं या उसके चरित्र ग्रामीण परिवेश से जुड़े हैं तो कुछ न कुछ उसका असर होना चाहिए।
दूसरी बात फर्स्ट परसन में ये कहानी बहुत कुछ चलती है तो उसका परिप्रेक्ष्य भी स्त्री के रूप में ही होना चाहिए, हर बार नहीं तो दस पांच पार्ट में एक बार मन में झाँक भी लेना चाहिए,
लेकिन अगर पढ़ने वाला न हो तो बहुत खलता है
एक बार फिर से आपका कोटिश आभार मेरी पोस्टों को लाइक करने के लिए और इस कमेंट के लिए।
कुछ लोग तो इतने रजिस्टेंट हैं कि लेखक/लेखिका पर लांछन लगाना .. वो भी लगातार... नहीं छोड़ते..अरे आपको मालूम नहीं है क्या इस फोरम में गे सेक्स नहीं परमिटेड है इसलिए ये कैसे दिखा सकते हैं , आप को जोरू का गुलाम अच्छी लग रही है बहुत धन्यवाद , लेकिन इस कहानी पर भी तो कमेंट दें
आपके पिछले एनाउंसमेंट से तो अपने अधूरे पड़े फाइल के कंप्लीट होने की आशा हो गई थी..I am planning to repost my long story or novel,
Phagun ke din chaar फागुन के दिन चार ( without any change and with very few pics)
should I post it in the erotica, thriller, or other sections? I will be waiting for the reader's suggestions.
रीत का दिमाग तो दोधारी तलवार है...फागुन के दिन चार के शुरूआती भाग के सस्पेंस /थ्रिलर से जुड़े कुछ चुने हुए अंश
मैंने पोजीशन वाला इन्क्लोजर दिखाया। ये लोकेशन हैं जहाँ से फोन होते हैं और उनकी टाइमिंग हैं।
रीत ने थोड़ा जूम किया झुकी और ध्यान से देखा फिर वापस सिर उठाकर बोली- “ये हो नहीं सकता।
“क्यों? मैं और डी॰बी॰ साथ-साथ बोले।
रीत फिर झुकी और मैप में दिखाते बोली- “काशी करवट से लेकर अस्सी तक ये देख रहे हो। पहली काल यहाँ से हुई 8:12 पे दूसरी हुई अब इस जगह से 8:17 पे और तीसरी हुई इस जगह से 8:22 पे। अब सड़क से अगर आप चलोगे। तो इस समय बनारस में इतना जाम होता है की आप किसी तरह पहुँच नहीं सकते।
दूसरी बात मान लो ये बनारस की गलियों से वाकिफ है, मुझसे ज्यादा तो नहीं जानता होगा। गली से भी कोई डायरेक्ट कनेक्शन नहीं है और मोटर साइकिल से भी आओगे तो कम से कम 10-12 मिनट लगेगा…”
हम लोग क्या बोलते। डी॰बी॰ तो बनारस नए-नए आये थे और मुझे भी बनारस की गलियों के बारे में रीत इतना कतई नहीं मालूम था।
रीत फिर कुर्सी से पीठ सटाकर बैठ गई। दोनों हाथ पीछे करके, कोई दूसरा वक्त होता तो मेरी निगाह सीधे उसके कुरता फाड़ उभारों पे जाती पर। एक तो मामला सीरियस था दूसरे सामने डी॰बी॰ बैठे थे। लेकिन फिर भी मेरी निगाहें वहीं पहुँच गई आदत से मजबूर। रीत ने मुझे देखते हुए देखा, आँखों से डांटा और एक बार फिर झुक के एक मिनट के लिए प्लान को देखा।
और फिर सीधे बैठकर मुश्कुराने लगी और बोली- “मैं बेवकूफ हूँ…”
“एकदम। चलो माना तो सही तुमने। तुम दुनियां की पहली लड़की होगी जिसने ये सत्य स्वीकार किया होगा…” मैंने मुश्कुराते हुए कहा।
“पिटोगे तुम और वो भी कसकर…” रीत कोई हथियार खोजते हुए बोली।
“एकदम मेरी ओर से भी…” डी॰बी॰ ने उसी का साथ दिया।
रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।
“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।
नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।
“तो फोन वाला आदमी अगर नाव पे हो तो इन सारी जगहों पे जो टाइम दिखाया गया है वो पहुँच सकता है हमें जगह देखकर लग रहा था लेकिन लोकेशन तो 100 मीटर के आसपास ही होगी…”
“हाँ एकदम…” और फिर मैंने एक सवाल डी॰बी॰ से किया- “क्या आप लोगों ने फोन चेक करने वाली वैन तो नहीं चला रखी हैं…” मैंने पूछा।
“हाँ करीब 10 दिन से जब से दंगे की अफवाहें आनी शुरू हुई हैं, लेकिन तुम्हें कैसे पता चला। तीन गाड़ियां हैं, और 24 घंटे चल रही हैं…” डी॰बी॰ बोले।
“उनकी रेंज नदी तक है…” मैंने दूसरा सवाल पूछा।
“हाँ और नहीं। घाट और घाट के पास तक का इलाका कवर होगा लेकिन कोई नदी के बीच में या रामनगर साइड में होगा तो नहीं…” वो बोले।
“बस तो ये साफ है। कोई जरूरी नहीं है की उस आदमी को पता हो इन वान्स के बारे में। लेकिन वो कोई प्रोफेशनल है जो पूरी प्रीकाशन ले रहा है और इन फोन की लोकेशन के बारे में और ओनरशिप के बारे में ज्यादा पता नहीं चल पायेगा वो भी मैंने पता कर लिया है। इन दो घंटो के अलावा। इन नम्बरों का पन्द्रह दिनों में और कोई इश्तेमाल नहीं किया गया। ये सिम बहुत पुराने हैं और प्री पेड़ हैं, आशंका है किसी डेड आदमी के ये सिम होंगे और दो घंटो के अलावा सिवाय आज जब होस्टेज वाले टाइम, एक काल आई थी। उनकी लोकेशन भी नहीं पता चल रही है…”
मैंने पूरी इन्फोर्मेशन उनसे शेयर की।
डी॰बी॰ अब पूरी तरह चिंतित लग रहे थे।
नहीं समझ आने पर .. अब क्लास लगेगी आनंद बाबु की...रीत ने मुझसे सवाल पूछा- “जब बाम्ब एक्सप्लोड हुआ तो तुम लोग कहाँ थे…”
“अरे यार तुम्हें मालूम है, हम लोग सीढ़ी पे थे बाहर से किसी ने ताला बंद कर दिया था। ये तो अच्छा हुआ बाम्ब एक्सप्लोजन से वो दरवाजा टूट गया…”
रीत ने मेरी बात काटी और अगला सवाल दाग दिया, मुझी से- “और पुलिस बाम्ब एक्सप्लोजन के बाद अन्दर गई…”
“हाँ यार…” मैं किसी तरह से अपनी झुंझलाहट रोक पा रहा था“बताया तो था की हम लोग बाहर आ गए एक्सप्लोजन के बाद तब पोलिस वाले, कुछ पैरा मेडिक स्टाफ और फोरेंसिक वाले अन्दर गए थे मेरे सामने…”
डी॰बी॰ ने मेरी ताईद की और अपनी मुसीबत बुला ली।
“अच्छा आप बताइये। जब पुलिस वाले और फोरेंसिक टीम अन्दर गई तो उन्होंने चुम्मन और रजऊ को किस हालत में और कहाँ पर देखा…” रीत ने सवाल दगा।
“वो दोनों बरामदे में थे। पीछे वाली सीढ़ी जिस बरामदे में खुलती है वहाँ… दोनों गिरे हुए थे। रजऊ के ऊपर छत का कुछ हिस्सा गिरा था और चुम्मन के ऊपर कोई अलमारी गिर गई थी। जिस कमरे में बाम्ब था वहां नहीं थे…” डी॰बी॰ ने पूरी पिक्चर साफ कर दी।
“करेक्ट। तो तुम लोग तो सीढ़ी पे थे और वो दोनों बरामदे में और तुमने पहले ही बता दिया था की वो बंम्ब बिना टाइमर के था और रिमोट से भी एक्सप्लोड नहीं हो सकता था…”
रीत अब मेरी और फेस की थी- “तो सवाल है की वो एक्सप्लोड कैसे हुआ?”
“इसका जवाब तो तुम देने वाली थी…” मेरा धैर्य खतम हो रहा था। मैंने थोड़ा जोर से बोला।
“चूहे से…” वो मुश्कुराकर आराम से बोली।
डी॰बी॰ खड़े हो गए।
मैं डर गया मुझे लगा की वो नाराज हो गए।
लेकिन खड़े होकर पहले तो उन्होंने क्लैप किया फिर रीत की ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया। रीत भी उठ गई और उसने तपाक से हाथ मिलाया।
डी॰बी॰ बैठ गए और बोले- “यही चीज मुझे समझ में नहीं आ रहा थी। फोरेंसिक एवीडेंस यही इंडिकेशन दे रहे थे। लेकिन इस तरह कोई सोच नहीं रहा था, ना सोच सकता था। तार पर बहुत शार्प निशान थे, वो चूहे के बाईट मार्क रहे होंगे और लाजिक तुमने सही लगाया, न ये लोग थे वहाँ, ना चुम्मन था और ना पुलिस। तो आखीरकार, कैसे एक्सप्लोड हुआ और फोरेंसिक एविडेंस से कन्फर्म भी होता है। एक मरा चूहा भी वहां मिला…”
“उस चूहे ने बहुत बड़ा काम किया बाम्ब के बारे में पता चल गया…” रीत बोली।
मुझे डर लगा की अब वो कहीं दो मिनट मौन ना रहें।
लेकिन डी॰बी॰ बोले और मुझसे मुखातिब होकर- “यू नो, इट वाज अ परफेक्ट बाम्ब जो रिपोर्ट्स कह रही हैं। मेजर समीर के लोगों ने भी चेक किया और अपने फोरेंसिक वालों ने भी। सैम्पल्स बाईं प्लेन हम लोगों ने दिल्ली सेन्ट्रल फोरेंसिक लेबोरटरी में, हाँ वही जो लोदी रोड में है, भेजे थे। प्रेलिमिनरी रिपोर्ट्स का वाई मेसेज आया है। सिर्फ टाइमर और डिटोनेटर फिट नहीं थे…”
“फिट नहीं थे मतलब…” मैं बोला। ये मेरी पुरानी आदत है की ना समझ में आये तो पूछ लो और इस चक्कर में कई लोग नाराज हो चुके हैं।
“मतलब ये…” डी॰बी॰ मुश्कुराते हुए बोले जैसे टीचर क्लास में ना समझ बच्चों को देखकर मुश्कुराते हैं।
“वो लगाकर निकाल लिए गए थे। इसमें डिटोनेटर टी॰एन॰टी॰ के इश्तेमाल हुए थे जो नार्मली मिलेट्री ही करती है। इसके पहलेकर एक्स्प्लोजंस में नार्मल जो क्वेरी वाले डिटोनेटर्स, पी॰ई॰टी॰एन॰ इश्तेमाल करते हैं वो वाले होते हैं। दूसरी बात, इसमें डबल डिटोनेटर्स लागए गए थे। दूसरा डिटोनेटर्स स्लैप्पर डिटोनेटर्स।
अब बात काटने और ज्ञान दिखाने की जिम्मेदारी मेरी थी।
“वही जो अमेरिका में लारेंस वालों ने बनाए हैं। वो तो बहुत हाई ग्रेड। लेकिन मुझे वहां दिखा नहीं…” मैंने बोला और मुड़कर रीत की तरफ देखा की वो कुछ मेरे बारे में भी अच्छी राय बनाये लेकिन वो डी॰बी॰ को देख रही थी। और डी॰बी॰ ने फिर बोलना शुरू कर दिया।
“बात तुम्हारी भी सही है और मेरी भी की डिटोनेटर्स लगाकर निकाल लिए गए थे। लेकिन इन के माइक्रोस्कोपिक ट्रेसेस थे। और तीसरी बात। इसकी डिजायन इस तरह की थी की फिजिकल बैरियर्स के बावजूद। सेकेंडरी शाक्वेव्स 200 मीटर तक पूरी ताकत से जायेंगी। जिसका मतलब ये की उस समय जो भी उसकी जद में आएगा। सीरियसली घायल होगा। लेकिन डिटोनेटर की तरह शार्पनेल भी अभी नहीं लगे थे बल्की डालकर निकाल लिए गए थे…”
ओह्ह्ह.. ये तो कम होगा... या तो कंटेंट बढाएं या फ्रीक्वेंसी...I am planning to post it on the second Sunday of February. On every Sunday, depending on the response. Unlike JKG there will be no additions and pics will be one or two, so just CnP.