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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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इसलिए तो कहा है अहा ग्राम्य जीवन भी क्या, ...

जैसा आज हिना के साथ हुआ वो सूद सहित, तमन्ना, शबाना, आयशा, मुमताज, ज़ीनत सबके साथ,

हिना के साथ जैसे खुली बाग़ में गाँव के सब लौंडो के सामने, उसकी स्कूल की सहेलियों के बीच, सब भौजाइयों की मौजूदगी में।

और फिर जैसा दूबे भाभी ने करवाया, हिना ने सब सहेलियों की कुप्पी से सीधे मलाई खायी, स्वाद ले लेकर,... आम के बगीचे में और जिस की मलाई चटखारे ले के खा रही थी, वो भी देख रहे थे,

बिलकुल ऐसे,... फिर तम्बू कनात का सवाल ही नहीं रहता।
हर छेद का आनंद ... बारंबार... यत्र तत्र सर्वत्र...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने खेत में फसल लहलहा रही हो , उसे काटा न जाए, पेड़ पर फल लग के पक रहे हों उन्हें तोड़ के खाया न जाए, तो काहें की खेती और काहें के फल,...

और उस टोली में अगर खेत काटने वाले नहीं, फल खाने वाले नहीं तो बगल के टोले में तो है और अगर पडोसी पड़ोसन के काम नहीं आएगा, फिर तो
जिसका हमें था इंतजार.. वो घड़ी कब आएगी....
 

motaalund

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:wink: और सिर्फ इसी कहानी में नहीं, बाकी कहानियों में भी

खास तौर पर फागुन के दिन चार के परिवर्धित रूप में

किसी मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी ने कहा था,...Age is just a number तो झूठ थोड़ी कहा होगा।
और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है...
वैसे वैसे काम भावनाएं भी अपने चरम को अग्रसर रहती हैं...
 

motaalund

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एकदम और शुरू में थोड़ी बहुत जबरदस्ती न हो तो बाद में वही कहेंगी, " मेरे मना करने से क्या हुआ, ... तुम मान क्यों गए. "

इसलिए पठान टोली के चार पांच पार्ट तो कम से कम ( और पंचो की राय हो तो ज्यादा भी )
बल्कि एक फ़िल्म में श्रीदेवी को भी जब सन्नी देवल ने छोड़ दिया... तो उसे मायूसी हुई...
मतलब थोड़ी जोर-जोरी तो उनका भी एक्सपेक्टेशन रहती है...
 

motaalund

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अरे नहीं, एकदम कच्ची कोरी भी, ... रेनू के बाद हिना पर भी तो कमल में नंबर लगाया था। एकदम कच्ची कोरी, आगे और पीछे दोनों ओर का फीता उसी ने तो काटा था,

हाँ रोई रोहट खूब होगी, चीख पुकार भी मचेगी,... खून खच्चर तो होता ही है। और भौजाई काहे के लिए है, जैसे गौने की रात में अपने देवर को देवरानी की सेज पर पहुंचा के बाहर से ताला बंद कर देती है तो सब पठान टोली वाली ननदें जल्द ही देवरानी बनेगीं,... कच्ची कोरी तो बस अब वही हैं और कमल का नंबर तो पहले लगेगा वहां,
और उसके बाद कमल के पीछे पंकज, चुन्नू.. चंदू...इत्यादि इत्यादि...
लेकिन क्या आपके सैंया महरूम रह जाएंगे....
वो भी तो इसी गाँव के छैला रह चुके होंगे...
और नंदोई के लिए तो इस गाँव की सब सालियाँ हीं हुई...
 
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motaalund

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आगे आगे देखिये

पहले तीन भागों में तो काफी नए प्रसंग जुटे, ख़ास तौर से गुड्डी और उस के परिवार से जुड़े।
सचमुच पहले तीन भाग में आधे से ज्यादा नए प्रसंग जुड़े...
इसलिए उम्मीद तो रख हीं रख सकते हैं..
क्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है...
 

motaalund

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आम्र मंजरी सिर्फ पुष्प धन्वा के पंच शरो में से एक नहीं है, वह ग्राम मन्यताओं और विश्वासों से भी जुड़ा, और जीवन चक्र, पेड़ पौधों से अलग नहीं रहता, इसलिए आम्र मंजरी, पुष्पित होना, किसी कन्या के युवती होने से, रजस्वला होने से जोड़ कर देखा जाता है और फल का आना गर्भवती होने से। होलिका के प्रसंग को इसलिए एक बार इस पोस्ट में रेखांकित किया गया की ग्राम जीवन की कहानी है तो उसके मिथक, प्रतीक, मान्यताएं और विश्वास का भी कहीं कहीं जिक्र होता है। और हर गांव में एक ऐसा पेड़ होता है जिसपे या तो बरम बाबा ( ब्रह्मराक्षस ) रहते हैं या वो आशीष देता है .

तो कई बार यह कहानी उस ओर भी मुड़ जाती है।
पुराने विश्वासों और मान्यताओं के पीछे भी कोई कारण रहा होगा...
लेकिन वो अब धूमिल पड़ती जा रही है...
 

motaalund

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और जैसा रज्जो भाभी ने बताया,

जिसकी जिसकी मलाई खायी उस मरद के पीछे तो मतवायी घूमेगी। और यह दूबे भाभी की चाल थी, उन्हें मालूम था यह टोटका। और गाँव की सब लड़कियों भौजाइयों की इच्छा, हिना और बाकी पठान टोली वालियों के साथ क्या करना चाहती है ये उन्हें अंदाज तो था ही, तो बस,...
आखिर ऊपर का स्वाद लग गया तो...
तो नीचे का ऑटोमेटिक पसंद आ हीं जाएगा...
 
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