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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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कभी कभी देवरानी जेठानी की छेड़खानी में, ननदें भी मजा लेने लगती है और देवरानी भी अपना पलड़ा भारी करने के लिए ननदों का साथ पकड़ लेती हैं।

कल दूबे भाभी को कुंवे पर नहलाते चमेलिया ने छेड़ा, बड़की भौजी आज पानी से नहाय ला कल तोहें देवरन क मलाई से नहलाइब।

भौजाइयों में सबसे बड़ी दूबे भाभी सब की जेठानी और सबसे छोटी चमेलिया सब की देवरानी,...

तो बात चमेलिया की सही हुयी देवरों की मलाई से दूबे भाभी नहलायी गयीं और रेनू ने भी योगदान दिया,...
आखिर जेठानी-देवरानी भी पीछे क्यों रहें..
वो रिश्ता भी इनसे कुछ कम नहीं...

और चमेलिया ने अपनी बात सच करके दिखलाई....
 

motaalund

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और भौजाइयां चाहती भी हैं मजा लेना


जितने देवर थे वो अब ननदों पर चढ़कर नन्दोई भी हो गए तो डबल मस्ती का रिश्ता,... और सुबह से ननदों को देवरो से मजा लेते देख रही हैं तो उनका भी मन कुलबुला रहा है
दस्तूर के मुताबिक देवर और भौजाईयों की तो साल भर होली होती है...
 

motaalund

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एकदम एक बार हिना गर्माएगी

तो खुद तो आएगी ही दो चार सहेलियों को बहनों को भी ले आएगी , इसलिए सुगना भौजी हिना को एकदम रिंग साइड व्यू दे रहीं हैं।
और रेफरी की तरह सबको अपनी निगरानी में चढ़वाएंगी..
 

motaalund

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खेल तमाशा देख नहीं दिखा रही हैं

सब पठान टोलियां वाली जो पानी पाने के लिए तरस रही हैं सुगना भाभी उन सबका इंतजाम करेंगी , और भी बहुत कुछ है सुगना भाभी का किस्सा जो बस एक दो पोस्ट के बाद ही आएगा।

आयुषी जी से मैंने एक वायदा किया था उसे निभाने में भी सुगना भौजी ही काम आएँगी ,
सच में... सुगना का सुग्गा भी उड़ना चाहिए...
 

motaalund

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एकदम सही हाल बयान किया

मरद तो गुलबिया का पंजाब रहता है, होली दिवाली में भी कभी आया कभी नहीं आया, कभी छुट्टी नहीं कभी रिजर्वेसन नहीं।

तो पिछवाड़ा क्या अगवाड़ा भी,...
दोनों ओर से हल चलाने वालों की मौज....
 

motaalund

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और कच्ची कलियाँ जो आज ही बिरादरी में फड़वा के शामिल हुईं हैं

देख रही हैं, सीख रही हैं। और सबसे बढ़के हिना
अभी प्रैक्टिकल देख रही हैं..
फिर खुद प्रैक्टिकल करके देखेंगी...
 

motaalund

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असली मीना बाजार तो तब लूटेगा, जब पठान टोली वालियों का नंबर आएगा,

तम्मन्ना, ज़ीनत, मुमताज़, शमा, दो दर्जन है लुटवाने के लिए बेताब
बेताब तो हम पाठक वंद भी हैं...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने सिर्फ कुंवारे देवर ही, विवाहित पुरुषों और सास को तो दिन भर गाँव में भी नहीं रहना था।

मानव मन,...एक तो हर भौजाई किसी न किसी की पत्नी होती, फिर कहीं उस पति के मन में अपनी पत्नी का किसी और के साथ मजे लेते देखना, मन में ईर्ष्या पैदा कर सकता था।

दूसरे वह किसी न किसी का जेठ भी होता और गाँव में जेठ और ससुर तो वैसे भी बेराये जाते हैं,

तीसरी बात सास और पति के रहते, भौजाई लोग भी खुल के मजे नहीं ले पातीं

और देवर ननद का तो रिश्ता ही भाभियों के लिए मजे का मजाक का है ,

इस लिए सास और विवाहित पति वर्जित थे और कब्बडी वाले दिन तो सारे पुरुष, लेडीज ओनली मामला था।
इसलिए सारे वर्जित लोग गाँव से बाहर..
और जब पति पास न हों तो एकदम खुल्लम खुल्ला खेल ..
बिना कोई डर.. शरम .. लिहाज के..
 
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