और optimization आपसे अच्छा कौन कर सकता है....छेद छेद में भेद करना अच्छी बात नहीं, फिर जब भौजाइयां कम हो देवर ज्यादा तो ऑप्टिमाआईज करना ही पडेगा
और optimization आपसे अच्छा कौन कर सकता है....छेद छेद में भेद करना अच्छी बात नहीं, फिर जब भौजाइयां कम हो देवर ज्यादा तो ऑप्टिमाआईज करना ही पडेगा
Multi tasking and multi processing..भाग ८१ - बारी भौजाइयों की
१५,७४, ०८०
और अब नंदों ने दौड़ा दौड़ा के एक भौजी को पकड़ना शुरू किया।
रज्जो भाभी मौका पाके सटक ली थीं , नंदों ने दो चार छुटकियो को दौड़ाया, कम्मो, बेला, लीना,दीपा सब और रज्जो भौजी पकड़ी गयीं , पास में ही एक पेड़ों के झुण्ड में, ...
" काहो भौजी कउनो मायके का यार आया था का जो ननदो का साथ छोड़ के ,... "
मेरे साथ बैठी रेनू ने वही से चिढ़ाया,
लीना, चंदा और कम्मो ने उन्हें छाप लिया, हाथ पैर सब पकड़ के,.... और थोड़ी देर में एक देवर रज्जो भाभी पर भी चढ़ा।
शायद ही कोई भौजाई बची होगी जिस पे दो दो लौंडे न चढ़े हों, असल में भाभियाँ थीं कम देवर थे ज्यादा और फिर अभी ननदें भी अपने भाइयों के साथ साथ,.... जिस भौजाई की टाँगे उठा के कोई देवर पेल रहा था उस के मुंह में कोई ननद चढ़ी अपनी बुर चटा रही थी।
सिवाय दूबे भाभी के, जिनकी अभी जबरदस्त रगड़ाई हुयी और पूरी तरह देवरों की रबड़ी मलाई से नहाई थीं वो,
और मैं कमल के सिंहासन पे बैठी थी, बगल में रेनू उसकी बहन।
मेरी निगाहें बार बार चमेलिया -गुलबिया की ओर लौट रही थीं, एक की गांड विनोदवा मार रहा था दूसरे की पंकजवा, दोनों ही जबरदस्त लौण्डेबाज लग रहे थे जिस तरह से पिछवाड़े की सेवा कर रहे थे. चमेलिया और गुलबिया दोनों ही दो दो देवर के बीच पिस रही थीं, रगड़ी जा रही थी लेकिन मौके का फायदा उठा के वो धक्के भी मार रही थीं. ननदों को गरिया भी रही थीं समझा भी रही थी।
नीलू और लीला का तीन महीने बाद गौना होना है तो उन दोनों से गुलबिया कह रही थी,
" अरे काहें को खी खी कर रही हो, देखो और सीखो,... पहली होली में ही देवर और ननदोई एक साथ चढ़ेंगे। नयी नयी सलहज हो तो बिना बुलाये नन्दोई ससुराल होली में आते है, असली पिचकारी से होली खेलने। सीख लो दो दो पिचकारी पिचकाने का तरीका। "
चारो बल्कि सभी ६ चमेलिया और गुलबिया भी साथ साथ झड़े, झड़ते रहे,... और जैसे अखाड़े में थक के पहलवान पड़े रहे जमींन पर आम की उस बगिया में देवर भौजाई चिपके पड़े रहे।
कुछ देर में ही सब भौजाई चुद रही थीं, किसी किसी के ऊपर दो दो देवर एक साथ चढ़े, और जिसके ऊपर सिर्फ एक चढ़ा हो उसको एक साथ दो तीन ननदें छाप लेतीं, यहाँ तक की कच्चे टिकोरे वालियां भी, भौजाइयों के ऊपर चढ़ चढ़ के अपनी चूत चटा रही थीं।
जैसे किसी की नाक कट जाए और वो नक कटी कहे अरे मैं बहुत सुन्दर लग रही हूँ, तुम लोग भी कटवा लो,... मुझे तो स्वर्ग दिख रहा है, और जब तक किसी और की न कटवा ले उसे चैन न मिले, तो वही हालात भौजाइयों की हो रही थी,
जिसपर दो तीन देवर चढ़ते, वो दूसरी भौजाइयों को भी चढाती,... अरे बड़ा मजा आ रहा है , एक छेद का मजा तो रोज ननदी के भैया देते हैं लेकिन अगर एक छेद में इतना मजा तो दो छेद में तो दूना मजा,
और ननदों को भी उकसाती तो वो सब भी पकड़ लेती और भाई बहिन मिल के भौजाई की चोद देते,...
वैसे भी भौजाइयां कम थी,
हम लोगों की कबड्डी टीम में से ही सिर्फ दूबे भाभी, मैं, रज्जो भाभी, चमेलिया और गुलबिया बची थीं।
मंजू भाभी के ' वो ' शहर से महीने में आते थे दो चार दिन के लिए आते थे और महीने का हिसाब चुकता कर देते थे, सूद के साथ, तो मंजू भाभी मेरे जेठ के साथ अपने घर में और चुन्नू भी यहाँ तो घर में वो और उनके सैंया,...
चननिया तो कल ही बोल के चली गयी थी,... उसे कुछ काम था, रमजानिया को भी कहीं जाना था वो आयी तो थी लेकिन दोपहर के पहले ही चली गयी।
ये तो चार पांच भौजाई कल कबड्डी और उस के बाद की मस्ती देख के आ गयी थीं, इसलिए हम लोगों की टीम में आठ दस,...
पर ननदें अट्ठारह बीस,... आठ दस की झिल्ली ही आज फटी थी, और देवर भी उतने ही, और वो सब मिल के हम भौजाइयों के पीछे पड़ गए थे पर ननदें लालच भी दे रही थीं,
" भैया, आज तो मिल गया लेकिन अगर रोज चाही न तो पहले हचक के गुलबिया भौजी क गाँड़ मारो कस चाकर चूतड़ है, मायके में तो खूब गांड मरवाती थी"
और भौजाई भी, जो आठ दस आयी थीं उनमे से आधे से ज्यादा के मरद बाहर ही रहते थे, ... दो चार तो पास के शहर में तो कुछ हफ्ते दो हफ्ते में आते थे, पानी निकाल के चले जाते थे और कुछ महीने में,... और बाकी किसी का पंजाब, किसी का बंबई, सूरत, अहमदाबाद,.. साल में एक दो बार छुट्टी मिली ट्रेन का टिकट मिला तो,
गुलबिया को बड़ी उम्मीद थी की उसके ननद का भाई होली में जरूर आएगा, छुट्टी भी मिल गयी थी लेकिन जनरल में भी घुसने की जगह नहीं मिली, एकदम छनछनाई,... तो उन भौजाइयों की दिवाली होली सब हो गयी, एक साथ इतने नए नए लौंडों के साथ
आरती, , दुलारी सविता, सुगना, रीता,
पट-पट चूत और चूतड़ पर धक्कों के पटाखे चल रहे थे...आरती, दुलारी
और भौजाई भी, जो आठ दस आयी थीं उनमे से आधे से ज्यादा के मरद बाहर ही रहते थे, ... दो चार तो पास के शहर में तो कुछ हफ्ते दो हफ्ते में आते थे, पानी निकाल के चले जाते थे और कुछ महीने में,... और बाकी किसी का पंजाब, किसी का बंबई, सूरत, अहमदाबाद,.. साल में एक दो बार छुट्टी मिली ट्रेन का टिकट मिला तो, गुलबिया को बड़ी उम्मीद थी की उसके ननद का भाई होली में जरूर आएगा, छुट्टी भी मिल गयी थी लेकिन जनरल में भी घुसने की जगह नहीं मिली, एकदम छनछनाई,... तो उन भौजाइयों की दिवाली होली सब हो गयी, एक साथ इतने नए नए लौंडों के साथ
आरती, , दुलारी सविता, सुगना, रीता,
शादी के पहले जब से तेल हल्दी चढ़ती है तभी से गर्मी चढ़नी शुरू हो जाती है,
जिस बात के लिए टोका टोकी होती थी, दस आँखे देखती रहती थीं, कहाँ गयी,... किधर,... किसके साथ,... अब उसी के लिए सब मज़ाक गारी मस्ती,...
और सुहागन होने के साथ वो गर्मी एकदम पीक पर, गौने की रात मर्द से ज्यादा उसको इन्तजार रहता है,... और एक बार स्वाद लगने के बाद तो उपवास करना बहुत मुश्किल होता है, जैसे गरम तवे के ऊपर कोई दो चार बूंदे पानी की डाल दे और छनछना उठे,...
बस वही हालत जिनके मरद परदेस रहते हैं,... परब त्यौहार पर भी नहीं आते,... वही हालत उनकी होती है,..
और फिर सुबह से ननदों की बार बार मस्त चुदाई देख देख के , नए नए लौंडों के मोटे लम्बे लंड देख के सब भौजाइयों की भी हो रही थी,... और शरम लिहाज का तो आज सवाल ही नहीं था, हमाम में सब एक जैसे,.. कौन चिढ़ाएगा, बोलेगा,... जो ननद आग लगाती वो खुद चार चार पांच लौंडो से अपने सगे चचेरे भाइयों के आगे खुद ही अपना नाड़ा खोल रही थी, सास सब थीं नहीं , देवर भी सब कुंवारे,...
और जो सबसे बड़ी जेठानी थीं, सास लोगों की सहेली,... दूबे भाभी वो खुद नाम ले ले के उकसा रही थी, ...
" अरे आरती, एक से का होगा, ... अरे जिन कहो हमार देवर गाँड़ नहीं मारे हैं, हे रुपवा का देख रही है आरती भौजी क गाँड़,... "
और रूपा और सोना मिल के भौजी क गाँड़ कस के चियार देतीं और मारने वालों की कमी तो थी नहीं,... ऊपर दे दोनों बदमाश दूबे भाभी को अहसान जताते बोल रही थीं,
" एकदम बड़की भौजी, भौजी क बात हुकुम है "
और का हचक के आरती भौजी की गाँड़ मारी गयी,... उनकी उम्र मुझसे चार पांच साल बड़ी रही होगी,
सबसे छोटी तो मैं ही, इंटर का इम्तहान होने वाला था की शादी हो गयी,... बोर्ड का इम्तहान का माँ ने कई बार जिद्द की लेकिन देखने के बाद मेरी सास मानी नहीं, कही गरमी में लगन नहीं है दिसंबर में साइत अच्छी निकली है, और इम्तहान का इतना है तो गौना रख लीजियेगा, इम्तहान के बाद,... चैत में गौने की साइत है,... बोर्ड का इम्तहान होली हरदम बीच में पड़ती है,..
.मैं झूठ मूठ का बोलती थी नहीं गौना इंटर का रिजल्ट के बाद,...
लेकिन शादी होने के बाद कौन इन्तजार करता है , बस जिस दिन इम्तहान ख़तम हुआ, हफ्ते भर के अंदर गौना करा के,.... होली के बीस पच्चीस दिन बाद,...
इंटर का इम्तहान खतम हुआ ही था की ससुराल वाले गौना कराने आ गए, इंटर का रिजल्ट तो मेरे ससुराल आने के चार महीने बाद निकला, ... अभी साल भर मुश्किल से हुआ
और बाकी भौजाई भी बीस बाइस से लेकर सत्ताईस अट्ठाइस,...
सबसे बड़ी दुलारी भौजी थीं,
लेकिन वो भी लड़कोर नहीं थी, कल उनको आसीर्बाद मिला था की इस बार कोख हरी होगी . और होती भी कैसे मुंह दिखाई में ही आसा बहू ने कबूल करवा लिया, तीन साल तक कुछ नहीं खाली मौज मस्ती,... रोज दिन रात चक्की चलती थी, पर उसके बाद मर्द उनके दुबई चले गए, वही दो साल में एक बार की छुट्टी पन्दरह दिन की,... पहले से दुलारी भौजी पिलानिंग करके रखी थीं अबकी पक्का गाभिन होना है, लेकिन उसी समय माहवारी आ गयी चार पांच दिन उसमे फिर घर में कोई गमी हो गयी,...
उसके बाद फिर दो साल,... और कोई लड़ाई होगी तो छुट्टी भी टल गयी,... तो सबसे ज्यादा वही गरमाई थी.
और दुलारी भौजी की चुदाई हुयी भी जबरदस्त, सबरे से गर्मायी थी,
दूबे भाभी के साथ चमेलिया और गुलबिया ने भी नंदों को इशारा किया,... और चंदा ननदिया ने जिससे गाँव का कोई लड़का बचा नहीं था, चुनके सबसे जबरदस्त चोदू तीन चार लौंडो को,
दो चार ननदों ने दुलारी भौजी को पकड़ के आम की मोटी डाल को को पकड़ा के निहुरा दिया, भौजी ने खुद टाँगे फैला दी, और देवर ने दोनों जोबना पकड़ के ऐसा धक्का मारा की भौजी भैया को भुला गयी
लेकिन थोड़ी देर में वो भी पीछे से धक्का मार मार के लंड घोंट रही थी, और नीलू रूपा लीला तीनो उन्हें घेर के जबरदस्त गरिया रही थीं हर धक्के के साथ,
लेकिन वो तो शुरुआत थी उसके झड़ते ही एक ने खूंटा खड़ा किया हुआ था और दो नंदों ने पकड़ के दुलारी भौजी को उसके ऊपर बैठा दिया, और उस लौंडे ने भौजी को खींच के,... नीचे से पेलना शुरू कर दिया और दूसरा पीछे से तैयार खड़ा था और उसने गांड में ठोंक दिया।
कोई भौजाई नहीं बची थी, जिसके साथ दो तीन राउंड डबलिंग न हुयी हो,...
ओहो.. सविता भाभी कॉमिक्स की सविता भौजी यहाँ भी..सविता भौजी
मस्त भी और सबको पस्त भी कर देनेवाली, ...उमर में मुझसे ५-६ साल बड़ी २३-२४ के आसपास की लेकिन पक्की सहेली ऐसी जैसे समौरिया हों, लहीम शहीम, अच्छी खासी लम्बी, साढ़े पांच से ज्यादा ही लेकिन तन्वंगी, सारा मांस खींचकर बनाने वाले ने दो ही जगह रख दिया था,
कमर के ऊपर और कमर के नीचे, कूल्हे इत्ते बड़े की हम सब चिढ़ाते की लगता है धक्के फौजी भौजी ही ऊपर चढ़के मारती होंगी।
रहने वाली एक दूर के शहर की पर यूनिफार्म और फौजी के दम्बूक पर दिल दे बैठीं।
लेकिन पति उनके असली फौजी नहीं थे बी एस एफ में थे, लेकिन यूनिफार्म तो थी और सीमा पे तैनाती भी,... पता चला की ससुराल गाँव देहात में होगी, वो पश्चिम की, ये पूरबिया,... लेकिन जिसकी जहाँ लिखी रहती थी, शादी हुयी, गौना हुआ और आ गयीं। हाँ ससुराल कम ही रहती थीं मतलब गाँव में, लेकिन आतीं तो लम्बा रहतीं और कोई कह नहीं सकता था की भौजी गाँव की नहीं है, चाहे रोपनी में जाना हो, चाहे गाँव के मेले हों, रतजगा हो।
खेल ये था की जबतक फौजी फेमली स्टेशन पर रहता था तो भौजी साथ में और सीमा पर बन्दूक चले न चले, शान्ति हो पर घर में रोजाना, दिन भी रात भी।
पर कभी कभी नान फेमली स्टेशन पर जब पोस्टिंग होती तो वहां तो सविता भाभी जा नहीं सकती थी और अकेले क्वार्टर उन्हें सालता था तो उनके पति यहाँ छोड़ जाते थे, महीना दो महीना कभी कभी छह महीना भी जैसा हो फिर वो एकदम गाँव वाली। तो इस बार यही हुआ. कोई अर्जेन्ट आपरेशन था होली के पांच दिन बाद से , तो होली तो उन्होंने पिया के साथ मनाई लेकिन उन्हें भी मालूम था की गाँव में ८-१० दिन और तो कल शाम को जब कबड्डी ख़तम हुयी उसके थोड़ी देर बाद वो आयीं और भिन्सारे एक गाडी थी उससे उनके पति वापस।
और रज्जो भौजी उन्हें अपने साथ ले आयी थीं।
बस मैं यही सोच रही थी की अगर कल सविता भौजी हमारे साथ रहतीं तो कबड्डी का मैच हम लोग जीत तो गए, लेकिन और आसानी से जीत जाते। सविता भौजी की पकड़ सँड़सी से भी कड़ी थी, जिसको पकड़ लिया वो छुड़ा नहीं नहीं सकता था और फौजी के साथ रह के भौजी बहुत दांव पेंच भी सीख गयी थीं।
आज सुबह जो दूबे भाभी ने काम बांटा था, तो मेरे जिम्मे रेनू और कमल के साथ कच्ची कलिया थी और
कुछ नयी कोरी ननदें सुगना भौजी के जिम्मे लेकिन हिना के आने के बाद, पहले हिना को फिर पठानटोली वालों को पटाने की टेढ़ी जिम्मेदारी सुगना भौजी के ऊपर आ गयी।
सविता भौजी के आते ही, जो खेली खायी ननदें थीं, अभी इंटर में पहुंची थी लेकिन इंटरकोर्स पहले ही करवा चुकी थी, पहले नहीं बहुत पहले, उनकी जिम्मेदारी सविता भाभी के ऊपर .
सविता भाभी से उन सबकी पटती भी थी और फटती भी थी। कभी बरात के जाने के बाद रतजगा में अगर उस समय फौजी भौजी गाँव में हुयी तो बस उन नन्दो की शलवार का नाड़ा खोलने की जिम्मेदारी सविता भौजी की थी।
लेकिन अब जब ब्रेक के बाद भौजियों की रगड़ाई शुरू हो गयी तो फौजी भौजी का नंबर लगना ही था,...
लेकिन उनके साथ कोई जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी, वो खुद ही गरमाई थीं। पूरे दो महीने का उपवास था चुनमुनिया का, जो रोज दावत उड़ाती हो, तीन तीन चार चार बार भोग लगाती हो , अगर उसे उपवास करना पड़े,... और अब जब सामने थाल सजा था, उनकी सारी देवरानी जेठानी छक के जीम रही थीं, तो सविता भाभी क्यों भूखी रहतीं। हाँ उन्होंने दो बातें बोल दी नंदों को
अपना जोड़ी दार वो खुद तय करेंगी और कैसे पेली जाएंगी वो भी,
चुना उन्होंने मुन्ना को, जो कमल और बिट्टू की ही उमर का था, कसरती जवान,.. लेकिन खूब गोरा चिकना ,... सब भौजाइयां उसे चिढ़ातीं, " देवर है की ननद "
और काम उन्होंने सौंप दिया, मुन्ना को
" जैसे हमरे देवरानी के साथ करोगे वैसे ही एकदम, अगर सही सही किये तो मैं खुद छह महीने में अपने लिए देवरानी ले आउंगी, ... एकदम तेरी पंसद की कच्ची कोरी , और अगर गड़बड़ा गए तो यही बगिया में मुट्ठी से तेरी गाँड़ मारूंगी,... और देवरानी तो भूल जा मेरी ननद भी नहीं मिलेगी।"
फ्री की कंसल्टेंसी के साथ-साथ अनुभवी महिला के साथ प्रैक्टिकल भी..सविता भौजी -मुन्ना
अपना जोड़ी दार वो खुद तय करेंगी और कैसे पेली जाएंगी वो भी,
चुना उन्होंने मुन्ना को, जो कमल और बिट्टू की ही उमर का था, कसरती जवान,.. लेकिन खूब गोरा चिकना ,... सब भौजाइयां उसे चिढ़ातीं, " देवर है की ननद "
और काम उन्होंने सौंप दिया, मुन्ना को
" जैसे हमरे देवरानी के साथ करोगे वैसे ही एकदम, अगर सही सही किये तो मैं खुद छह महीने में अपने लिए देवरानी ले आउंगी, ... एकदम तेरी पंसद की कच्ची कोरी , और अगर गड़बड़ा गए तो यही बगिया में मुट्ठी से तेरी गाँड़ मारूंगी,... और देवरानी तो भूल जा मेरी ननद भी नहीं मिलेगी।"
मुन्ना अनाड़ी नहीं था , कितनो का नाड़ा खोल चूका था। आज ही सविता भौजी के सामने अपनी बहिनिया चुनिया की कच्ची चूत भी फाड़ी थी,...
लेकिन कई गलतियां की मुन्ना ने
सबकी देखा देखी मुन्ना ने सविता भौजी की लम्बी टाँगे उठा के जैसे ही मुन्ना ने अपने कंधे पर रखी सविता भाभी ने जोर से हड़काया, कोई तोहार बहिनिया नहीं है जो हरदम गरमाई रहती है, पनियाई रहती है। अरे नयी नयी दुल्हिन मिलेगी तो पहले गरमाओ, प्यार व्यार करो, रगड़ो मसलो,...
मुन्ना ने सविता भाभी के बड़े बड़े जोबनो कीओर रुख किया, पर फिर उसे भौजी की डांट पड़ गयी,
" नयी नयी दुल्हिन मिलेगी तो ऐसे रगड़ा रगड़ी से शुरुआत होगी, अरे थोड़ा गरमाओ, सहलाओ हलके से छुओ, फिर धीरे धीरे प्रेशर बढ़ाओ , एकाध चुम्मी लो,... और सोच लो अगर एक गलती और किये न तो मेरे बिन कहे निहुर जाना, मरवाने के लिए। "
मुन्ना समझ भी गया और सम्हल भी गया और उसे फ्री की कंसल्टेंसी मिल गयी, खूब खेली खायी गाँव की लड़कियों की चंदा और लीला।
पहले हलके हलके चुम्मा, और साथ में जोबन को बस छूना सहलाना और थोड़ी देर में होंठ से सरक के होंठ उभारों के नीचे और चुम्मा चुम्मी खेलते लेते, चुम्मे सीधे चूँची के ऊपर, फिर एक निपल को सहलाना और एक जोबन को रगड़ना मसलना लेकिन बस हलके हलके,... जो बचा हुआ हाथ है वो भौजी की जांघो पे सरसराते हुए , सहलाते हुए धीरे धीरे ऊपर,... जैसे रेशम से छू रहा और जब प्रेम गली के पास पहुँच जाए तो रुक के ऊँगली से बिना दोनों फांको को छुए
मुन्ना ने थोड़ी देर में ही सविता भाभी को गरम कर दिया। आधे घंटे में तो उनकी बिल पूरी तरह पनिया गयी, वो खुद चूतड़ उठा उठा के मुन्ना को हड़का रही थीं, उसका रही थी, लेकिन मुन्ना की सगी बहन चुनिया, और उसकी सहेलियां, और सबसे खेली ननद चंदा,... सब मुन्ना से बोल रही थीं
" और तड़पने दो भौजी को. "
चंदा ने कुछ कान में बोला मुन्ना को
मुन्ना ने टांग तो उठाया भौजी की लेकिन बजाय खूंटा धँसाने के अपना मुंह भौजी की चुनमुनिया में लगा दिया, और पहले हल्के हलके फिर जोर से चूसने लगा ,
और क्या मस्त चूसा मुन्ना ने सविता भाभी को, पहले तो जीभ से पनियाई बुर के अंदर बाहर, एक दो बार नहीं बार बार, ... सविता भाभी की बुर एकदम लासा हो गयी। चपचप चपचप। फिर जीभ की जगह ऊँगली और जीभ सीधे क्लिट पे, सविता भाभी को जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा और मौके का फायदा उठा के मुन्ना में पेल दिया।
गीली लसलसी बुर गप्प से सुपाड़ा अंदर, लेकिन अब ननदें सब साथ थीं सविता भाभी को तड़पाने के लिए। चुनिया ने खुद अपने भाई से कहा,
" भैया रुक जाओ "
मुन्ना का आधे से ज्यादा लंड बाहर,... अब किसी ननद ने भौजी की चूँची पकड़ी तो किसी ने चूतड़ और शुरू हो गयी रगड़ाई जबतक सविता भाभी ने अपने मुँह से दस बार न बोला होगा
" मुन्ना चोद न , चोद यार, चोद कस कस के "
अब दोनों जोबन सीधे मुन्ना के हाथ में और कस के ठुकाई शुरू होगी, नयी नयी जवानी, ताकत की कमी नहीं और ठुकाई कोई पहली बार तो कर नहीं रहा था। रगड़ते दरेरते मोटा खूंटा जा रहा था अंदर और थोड़ी देर में ही बच्चेदानी पर धक्के लग रहे थे, ...
सविता भाभी पहले ही इतनी पनिया गयी थीं की झड़ने के कगार पर , लेकिन ननदें उन्हें और तड़पाना चाहती थी तो
मुन्ना ने लंड बाहर निकालने की कोशिश की तो सविता भाभी बिफर पड़ीं, बोलीं अभी मैं ऊपर चढ़ के चोदती हूँ तुझे नहीं चोद ठीक से, झाड़ दे मुझे,
अब सब ननदें खिलखिलाने लगी, सोना बोली,
" अरे भौजी आपने ही तो मुन्ना भैया से कहा था की आपकी देवरानी को पहले दिन जैसे पेलेगा उस तरह. तो क्या आपकी देवरानी इतनी बड़ी मायके की छिनार होगी की पहले दिन गौने की रात में ही ऊपर चढ़ के चोदना शुरू कर देगी " ?
लेकिन अब मुन्ना से भी नहीं रहा जा रहा था, उसने धक्को की रफ्तार बढ़ाई, नीचे से सविता भाभी चूतड़ उठा उठा के साथ दे रही थीं और थोड़ी देर में
पहले सविता भाभी झडी फिर साथ में मुन्ना भी,
वो देर तक उन पे लेटा रहा और निकाला तो मलाई की धार सविता भाभी की जांघ पे बह रही थी।
थोड़ी देर तक तो सविता भाभी की हिलने की हिम्मत नहीं थी लेकिन ननदों की जुबान, खासतौर पर उभरते जोबन वाली कच्ची कलियों की जुबान तो रुक ही नहीं रही थी, कम्मो और बेला सविता भाभी के पीछे पड़ गयीं
" अरे भाभी अभी तो आठ आने का भी खेल नहीं हुआ और आप ने सरेंडर कर दिया ? "
" अरे भौजी अस चाकर चूतड़, देवर बिना गाँड़ मारे थोड़े छोड़ देंगे " रेनू दूर से ही बोली।
दो चार नंदों ने , लीला, नीलू, सोना, रूपा सब ने मिलके सविता भाभी को उठा के वहीं महुआ के पेड़ के पास निहुरा कर, और देवर तो कई मुठिया थे पहले से ही, सविता भाभी का मस्त चूतड़ था ही ऐसा,... बस उसी में से एक ने कस के भौजी की चूतड़ को फैलाया और उनकी गाँड़ मरौवल शुरू हो गयी।
ननदें खूब चिढ़ा रही थी,
" अरे भौजी अभी तो शुरआत है, होली में बच गयी थीं, कल कबड्डी में भी नहीं थीं सबका उधार चुकेगा आज "
लीना जिसकी आज पहली बार फटी थी, वो भी पटर पटर बोल रही थी,... " अरे भौजी जब पिछवाड़े कीड़े काटे न बस हमसे बोल दीजियेगा,... एकदम तसल्ली बख्स इंतजाम करुँगी,... और एक से तो आप का मन भरेगा नहीं तो तीन चार और वो भी खाली पिछवाड़े के लिए। "
सविता भौजी अब गप्पागप्प गाँड़ में घोंट रही थीं।
इतनी विशाल और जबरदंग चूचि ..दूबे भाभी
कमल लेकिन रेनू के साथ बैठा था,... दूबे भाभी के साथ तो शुरुआत ही होई थी वो भी खाली थीं, बात ये थी की उनकी बुर में और पिछवाड़े इतनी मलाई नंदों ने भरवा दी थी की,... मैं भी रेनू और कमल के साथ बैठी थी, रेनू ने कमल को दूबे भाभी की ओर इशारा किया, पर उनके दोनों छेदो में पहले से ही इतनी मलाई भरी थी और चमेलिया गुलबिया ने उनके चेहरे और बाल पर भी दूध दही की नदी बहवा दी थी,... वही कमल ने इशारा किया, लेकिन मैं थी ही न वहां अपनी ननद की सहायता के लिए, मैंने रेनू के कान में कुछ कहा,
दूबे भाभी हम तीनो को मुस्करा के देख रही थीं,
रेनू ने दूबे भाभी को सुनाते हुए शरारत से कमल को चिढ़ाया,
" अरे दूबे भौजी क चूँची महिलिया से ऊँची,... मजा ले लो " ...
लेकिन बाकी ज्ञान मैंने भी कमल को दे दिया। आखिर भौजी थी उसकी, मैं नहीं सिखाऊंगी तो क्या उसकी बहन महतारी सिखाएंगी ?
" देख यार दूबे भाभी, सब भौजाइयों में सबसे बड़ी, तो सबसे ज्यादा उनका 'आदर सत्कार ' होना चाहिए न,... तो बुर तो उनकी कितने लौंडो ने चोदी, बुर अब तक बजबजा रही है,... गाँड़ तो विनोदवा ने मार के चिथड़ा कर दिया,... मुंह में चूस चूकी हैं बस एक जगह बची है उनकी चूँची अब वो चोद दो "
हिना और सुगना भौजी भी मेरे बगल में ही बैठीं थीं, सुगना ने हिना को ललकारा,...
" अरे मर्द क मलाई बहुत मुश्किल से मिलती है, दूबे भाभी के देह पर, कुछ देर में कुल झुरा जायेगी नहीं तो बह जायेगी, जा जा चाट ले, ... और सबसे बड़की भौजी हैं आसीर्बाद देंगी तो कबो खूंटा क कमी न होगी। "
दूबे भाभी ने बहुत प्यार दुलार से हिना को बुलाया और जैसे ही वो पास आयी अपनी दोनों जाँघे फैला दी और वो कच्ची कली समझ गयी, ... बस सीधे दूबे भाभी की कुप्पी में मुंह लगा लिया और लगी सपड़ सपड़ चाटने चूसने। फिर जीभ अंदर डाल के, ... जो उनकी जाँघों पर फैली थी वो भी। अभी तो गाँव भर के देवरों ने उन्हें वीर्य स्नान कराया था, एक इंच देह न बची होगी जो मलाई से लिथड़ी न हो और अब वही हिना सपड़ सपड़ चाट रही थी। कुछ देर पहले सब लौंडो के सामने उनकी उनकी मलाई उनकी बहनों की बुर से और अब भौजी की देह से,...
लेकिन लौंडो ने सबसे ज्यादा अपनी मलाई दूबे भाभी की दोनों जबरदस्त चूँचियों पर बहाई थी,
और थी भी वो जबरदंग न र्सिफ खूब बड़ी बड़ी ३८ डी डी से क्या कम होंगी, और उससे भी बड़ी बात एकदम कड़ी टनाटन, गोल गोल, जरा भी ढीली नहीं पड़ी थीं। दूर से दिखती थीं , इसलिए खाली ननदें ही नहीं हम उनकी देवरानियाँ भी चिढ़ाती थीं
" दूबे भौजी क चूँची आसमान से ऊँची , "
और वही मैं कमल को समझा रही थी की ऐसी चूँची को चोदने का मजा, बुर चोदने या गाँड़ मारने से कम नहीं होता लेकिन दूबे भाभी ऐसी चूची मिलती कहाँ है तो
ऐसी चूँची न चोदने वाले को पाप लगता है और कमल में लाख बुराई हो पर वो पाप नहीं करना चाहता था।
कमल समझदार था, कमल का खूंटा भी टनाटन,...
बस दोनों चूँचियों के बीच क्या जबरदस्त चूँची चुदाइ हुयी,
जैसे दूबे भाभी की चूँचियाँ पहाड़ को टक्कर देती थीं वैसे ही कमल का खूंटा भी कुतुबमीनार से कम नहीं था।
दूबे भाभी को लगा की कमल उनकी कुठरिया में सेंध लगाएगा, लेकिन ननदें मेरी सब की सब भौजी को चिढ़ा रही थीं कमल को उकसा रही थीं
चोदल बुर जिन चोदिहा मोरे भैया, अरे चोदल बुर मजा न देय
लेकिन उसको तो मैंने समझा बुझा के भेजा तो सीधे ही दोनों पहाड़ो के बीच सुरंग में उसने घात लगाई और अपने हाथों से भौजी की बड़ी बड़ी चूँचियाँ पकड़ के कड़े कड़े लंड पर, लोहे के रॉड ऐसे कड़े लंड की रगड़ाई से चूँची मस्त, मोटा खुला सुपाड़ा देख के किस औरत क मन न ललच हो उठेगा,... कमल उन्हें तड़पा रहा था पर वो दूबे भाभी को नहीं जानता था
भौजी ने हलके धक्के से कमल को जमींन पर गिरा दिया और खुद बैठ गयीं अब कमल का खूंटा था तो उनके जोबन के बीच लेकिन कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली, दोनों जोबन भौजी के भौजी के ही हाथ में,... नज़रों से कमल को उन्होंने बरज दिया,... खबरदार अगर हाथ भी लगाया,... और पूरी ताकत से भौजी के जुबना ने देवर के लंड को गपूच लिया, जोबन का स्पर्श कड़े कड़े लंड पे, भौजी भी गिनगीना रही थीं देवर भी फनफना रहा था।
एक बूँद, बस एक बूँद लार भौजी के होंठों से टपकी,... जैसे दिन भर दहकने वाला सूर्य शाम को पहाड़ियों के बीच छुप जाता है सिर्फ उसकी लालिमा, सिन्दूरी आभा झिलमिलाती रहती है,... बस उसी तरह जरा जरा सा सुपाड़ा दिख रहा था और दूबे भौजी के होंठों से टपकी वो लार की बूँद सीधे सुपाडे पर और वहां से सरकती, फिसलती चर्म दंड पर,
और अब दूबे भाभी के हाथ मैदान में आ गए जिस तरह से अपने दोनों उभारों को वो कमल के लंड से रगड़ रगड़ कर मसल रही थी, उनकी ननदों की भी देख देख के हालत खराब हो गयी, कितनों के हाथ अपनी जाँघों के बीच पहुँच गए, जिन देवरों का खूंटा भौजाइयों को चोद चोद के सो गया था वो भी अब फनफनाने लगा था। भौजी लंड के जड़ से लेकर सुपाड़े तक को अपने जुबना के बीच रगड़ रही थीं, बार बार, लगातार,....
कुछ देर तक हाथों से जोबन पकड़ के रगड़ने के कलाई से कोहनी के बीच दोनों हाथों के बीच दोनों उभार दबे हुए और उभारों के बीच कमल का लंड दबा,
पर चालीस पचास बार रगड़ने के बाद भौजी रुक गयीं और गप्प कमल का सुपाड़ा उनके मुंह में और एक बार फिर दोनों चूँची से लंड रगड़ा जा रहा था
लेकिन जिसका काम उसी को साधे
और थोड़ी देर में कमल कस कस के दूबे भाभी की चूँची चोद रहा था, वो बगिया मेंलेटीं , कमल उनके ऊपर चढ़ा , और दोनों चूँचियों के बीच रगड़घिस्स होता लंड
बहुत देर तक यह खेला चला और फिर पिचकारी का सफ़ेद रंग, कुछ भौजी के मुंह पे कुछ मुंह में,... लेकिन ढेर सारा सीधे उनके जोबन पे
रेनू पहले तो अकेले ही हल्ला कर रही थी फिर दो चार और ननद और आगयी,... और दूबे भौजी रेनू को एक से एक गाली दे रही थीं,..
सब मलाई दूबे भाभी की दोनों बड़ी बड़ी चूँचियों पर,...
पर दूबे भाभी कम नहीं थी रेनू का सर खींच के उन्होंने अपनी चूँची पर, ...
चाट ले तोहरे बचपन क यार क माल है।
रेनू भी लपड़ लपड़ चाट गयी और जो थोड़ा बचा था वो ऊँगली में लपेट के दूबे भाभी को चटा दिया।
कच्ची कली के अलावा कच्चा केला..बंटी
तभी मुझे बंटी दिख गया, और मैंने दौड़ के उसे दबोच लिया, मेरा सबसे कम उमर वाला देवर, बताया तो था उसके बारे में
चलिए फिर से याद दिला देती हूँ।
मिश्राइन भाभी के यहाँ से हम लोग होली खेल के लौट रहे थे, होली की मस्ती, भांग, ठंडाई सब भौजाई बौराई थी, रस्ते में कोई मिले उसकी रगड़ाई तय, और हम सबकी नेता थीं यही दूबे भाभी
यहाँ तक की भाभी लड़कों को भी नहीं बख्शती थीं| एक छोटा लड़का पकड़ में आया तो मुझसे बोलीं,
“खोल दे, इस साल्ले का पजामा|”
मैं जरा सा झिझकी तो बोलीं,
“अरे तेरा देवर लगेगा, जरा देख अभी नूनी है कि लंड हो गया| चेक कर के बता, इसने अभी गांड़ मरवानी शुरू की या नहीं, वरना तू हीं नथ उतार दे साल्ले की|”
वो बेचारा भागने लगा, लेकिन हम लोगों की पकड़ से कहाँ बच सकता था|
मैंने आराम से उसके पजामे का नाड़ा खोला, और लंड में, टट्टे में खूब जम के तो रंग लगाया हीं, उसकी गांड़ में उंगली भी की और गुलाल भरे कंडोम से गांड़ भी मार के बोला,
“जा जा, अपनी बहन से चटवा के साफ करवा लेना|”
तबतक रज्जो भौजी ने आवाज लगायी,
"अरे नयको जरा हैंडपंप चला के देख पानी वानी निकलता है की नहीं
मैं उन देवरानियों में नहीं थी जो जेठानी की बात न माने, वो लाख छटपटाता रहा लेकिन पहले तो मैंने एक झटके में चमड़ा खींच के सुपाड़ा खोला और उसे छेड़ा,
"अभी मुट्ठ मारना शुरू किये की नहीं अरे जवान बहिन सुशीला घर में है, कुछ सिखाती नहीं ,"
मिनट भर भी नहीं लगा होगा की फनफना के खड़ा हो गया और पांच सात मिनट में पानी फेंक दिया, सब मेरी हथेली पे, ... वही उसके मुंह पे पोत के बोली, अपनी बहिनिया से चटवाना, एकदम नया स्वाद मिलेगा उसको,...
तो वही बंटी
सुबह तो मैंने उसकी नथ उतारी थी, स्साला क्या नखड़ा पेल रहा था, इत्ता तो जिन कुंवारियों की झिल्ली फटी थी उनके साथ जोर जबरदस्ती नहीं करनी पड़ी जित्ता मुझे बंटी के साथ थोड़ा दूबे भाभी की गोली का भी असर था, खड़ा तो टनाटन होगया,
आखिर में मैंने उसके ऊपर चढ़ के एक हाथ से उसकी दोनों कलाईयां पकड़ के दबोची, दूसरे से उसकी कमर पकड़ के सेट किया, अपने को और खूब करारा धक्का मारा, रोया तो वो नहीं लेकिन तड़पना, छटकना उसका एकदम गाँव की उसकी छिनार बहनों जैसे ही था, जबतक मैं ऊपर चढ़ी रही खुद धक्के मारते रही तब तक तो ठीक था
लेकिन जब पलट के उसे ऊपर किया तो फिर वही नखड़ा, मुझे हड़काना पड़ा
" चुप्प स्साले, मार सीधे से धक्का, एक धक्का भी हल्का हुआ न तो ये मुट्ठी देख रहे हो सीधे तेरी गाँड़ में जायेगी जड़ तक सोच ले. मारना है की मरवाना। "
तब जाके वो कुछ सहज हुआ, उसका हाथ भी खींच के मैंने जोबन पर रखा, फिर उसने हलके हलके,... हाँ झड़ने में आज सात आठ मिनट से ज्यादा ही लगा।
लेकिन दिन भर दो चार भौजाइयों ने और उस पर हाथ साफ़ कर लिया था, जैसे कच्चे टिकोरों के सब लौंडे दीवाने होते हैं वैसे ही कमसिन लौंडे के लिए खेली खायी भौजाई सब भी।
तो वही दिख गया,
बंटी की घंटी आपने बजा दी....मस्ती बंटी संग
लेकिन दिन भर दो चार भौजाइयों ने और उस पर हाथ साफ़ कर लिया था, जैसे कच्चे टिकोरों के सब लौंडे दीवाने होते हैं वैसे ही कमसिन लौंडे के लिए खेली खायी भौजाई सब भी।
तो वही दिख गया,
मुझे देखकर वो आम के एक चौड़े पेड़ के पीछे छुपने लगा, मैं उसे अनदेखा करके बाग़ के अंदर जिधर बाग़ और गझिन थी, उधर घुस गयी,
बेचारे बंटी ने चैन की साँस ली,.. वो भी जिधर भौजाइयां रगड़ी जा रही थी, किसी पे दो किसी पे तीन चढ़े हुए,... किसी किसी के ऊपर ननदें चढ़ी अपनी बुर चटवाती, उसे क्या मालूम खतरा टला नहीं है,
बस पीछे से मैंने उसे धर दबोचा, और हड़का लिया,
" अबे स्साले क्या लौंडिया की तरह छुपा है? और छुपने छुपाने से काईन लौंडिया बची है आज तक, जो रहरिया में गन्ने के खेत में जा के छुपती हैं उनकी वहीँ ले ली जाती है। और आज के दिन भौजाई से न कोई ननद बचती है न देवर, "
जबतक वो समझ पाता, खींच के मैं उसे थोड़ा और अंदर, जहाँ बाग़ और गझिन हो गया था, दिन में भी अँधेरा रहता था,...
देवर भाभियों की मस्ती देखकर उसका भी टनटना रहा था,... उसे पकड़ के मैंने थोड़ा और मुठियाया,... फिर एक झटके में खींच के सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा खोल दिया, और गरियाया,
" तोर बहिन महतारी समझायी नहीं की अब इसको खुला ही रखो,... रगड़ खा खा के ही पत्थर होगा , टनटना रहा है, अबे स्साले ये समझ ले की पहले बुर रानी को मनाना पड़ता है चाहे लौंडिया हो या मेहरारू। चल चाट , कबो तोर बहिनिया चटाई है की नहीं , आज स्साली है नहीं वरना अपने सामने तुमसे चटवाती, चलो बहिन न सही भौजाई"
घास पर मैं लेटी, ... जाँघे फैलाये,... स्लेटी अँधियारा, गलबाँही डाले बड़े बड़े पुराने पेड़, जिन्होंने न जाने कितनो की प्रेम लीला देखी होगी अपने नीचे,... और जाँघों के बीच में वो नौसिखिया चटोरा,...
आज चाहे कोई ननद हो या भौजाई, किसी की बुर ऐसी नहीं थी जिसमें दो चार कटोरी मलाई न बजबजा रही हो, मेरी कैसे बची रहती मेरी कटोरी में भी खीर छलक रही थी,...
बस जैसे उसकी जीभ वहां लगी वो जोर से गिनगिनाया, पर मुझे मालूम था ये होगा इसलिए मैं पहले से तैयार थी, मैंने झट से अपनी जाँघों के बीच उसके सर को दबोच लिया, लाख कोशिश करे वो हिल नहीं सकता था, बिन चाटे भौजाई की बुर छूट नहीं थी , मरद चोदने के बाद तो जल्दी अपनी मेहरारू की नहीं चाटता, भले वो झड़ी हो न झड़ी हो, ...
तो मालूम हो की न जाने किसकी मलाई अंदर से छलक रही है, फिर कोई भी झिझकेगा ही,... लेकिन इसी झिझक का ही तो इलाज करना ही था,..
कमर उठा के मैंने बुर उसके मुंह में लगा दिया और हड़काया,
" चाट साले, जब तेरी बहन यारन से चुदवा के लौटती है तो शलवार खोल के चटवाती है की नहीं, चाट मेरे भैया तेरे आज के बहनोई का माल है,... कल दुसरे बहनोई का माल ले आउंगी,.. अब छोड़ना मत, चाहे स्कूल से आये चाहे खेत से बोलना दीदी जरा सा मलाई चटवा दो , देखना जरूर चटवायेगी अपने छोटे भैया को, ... चाट स्साले कस कस के एक बूँद मत छोड़ना, एक दम साफ़ हो जाएगी तब दूंगी,... "
कुछ देर में वो खुद जीभ बिल में डाल के मलाई का स्वाद ले रहा था और असर वही हुआ जो मैं सोच रही थी पहले से टनटनाया खूंटा अब और पागल हो गया,...
और इस बार उसके धक्के में तेजी भी थी और ताकत भी, थोड़ा बहुत जोबन का रस लेना भी सीख गया था. मैं शरारत से कभी अपनी बुर निचोड़ लेती, उसके औजार को दबोच लेती और उस बेचारे की हालत खराब हो जाती, ... थोड़ी देर में उसने मुझे दुहरा कर दिया था और लम्बे लम्बेशॉट लगा रहा था,... मैंने भी रोका नहीं ,... और थोड़ी देर में उसने सब अपनी ताकत मेरी बिल में उंडेल दी और कटे पेड़ की तरह मेरे ऊपर,...
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वो अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद साढ़े तीन साल हो गए क़तर गया था। पच्छिम पट्टी की,...
Wah man gae bhouji party. Chit bhi meri aur pat bhi. Har ek ne do teen. Lagta he hori ki ashli pichkariyo se khelne ka man pahele se hi bhouji party ne bana hi liya tha. Khud hi fasi apne aap. Gariyana na huaa to kahe ki hori. Me har gan gari ko injoy karti hu. Love it.भाग ८१ - बारी भौजाइयों की
१५,७४, ०८०
और अब नंदों ने दौड़ा दौड़ा के एक भौजी को पकड़ना शुरू किया।
रज्जो भाभी मौका पाके सटक ली थीं , नंदों ने दो चार छुटकियो को दौड़ाया, कम्मो, बेला, लीना,दीपा सब और रज्जो भौजी पकड़ी गयीं , पास में ही एक पेड़ों के झुण्ड में, ...
" काहो भौजी कउनो मायके का यार आया था का जो ननदो का साथ छोड़ के ,... "
मेरे साथ बैठी रेनू ने वही से चिढ़ाया,
लीना, चंदा और कम्मो ने उन्हें छाप लिया, हाथ पैर सब पकड़ के,.... और थोड़ी देर में एक देवर रज्जो भाभी पर भी चढ़ा।
शायद ही कोई भौजाई बची होगी जिस पे दो दो लौंडे न चढ़े हों, असल में भाभियाँ थीं कम देवर थे ज्यादा और फिर अभी ननदें भी अपने भाइयों के साथ साथ,.... जिस भौजाई की टाँगे उठा के कोई देवर पेल रहा था उस के मुंह में कोई ननद चढ़ी अपनी बुर चटा रही थी।
सिवाय दूबे भाभी के, जिनकी अभी जबरदस्त रगड़ाई हुयी और पूरी तरह देवरों की रबड़ी मलाई से नहाई थीं वो,
और मैं कमल के सिंहासन पे बैठी थी, बगल में रेनू उसकी बहन।
मेरी निगाहें बार बार चमेलिया -गुलबिया की ओर लौट रही थीं, एक की गांड विनोदवा मार रहा था दूसरे की पंकजवा, दोनों ही जबरदस्त लौण्डेबाज लग रहे थे जिस तरह से पिछवाड़े की सेवा कर रहे थे. चमेलिया और गुलबिया दोनों ही दो दो देवर के बीच पिस रही थीं, रगड़ी जा रही थी लेकिन मौके का फायदा उठा के वो धक्के भी मार रही थीं. ननदों को गरिया भी रही थीं समझा भी रही थी।
नीलू और लीला का तीन महीने बाद गौना होना है तो उन दोनों से गुलबिया कह रही थी,
" अरे काहें को खी खी कर रही हो, देखो और सीखो,... पहली होली में ही देवर और ननदोई एक साथ चढ़ेंगे। नयी नयी सलहज हो तो बिना बुलाये नन्दोई ससुराल होली में आते है, असली पिचकारी से होली खेलने। सीख लो दो दो पिचकारी पिचकाने का तरीका। "
चारो बल्कि सभी ६ चमेलिया और गुलबिया भी साथ साथ झड़े, झड़ते रहे,... और जैसे अखाड़े में थक के पहलवान पड़े रहे जमींन पर आम की उस बगिया में देवर भौजाई चिपके पड़े रहे।
कुछ देर में ही सब भौजाई चुद रही थीं, किसी किसी के ऊपर दो दो देवर एक साथ चढ़े, और जिसके ऊपर सिर्फ एक चढ़ा हो उसको एक साथ दो तीन ननदें छाप लेतीं, यहाँ तक की कच्चे टिकोरे वालियां भी, भौजाइयों के ऊपर चढ़ चढ़ के अपनी चूत चटा रही थीं।
जैसे किसी की नाक कट जाए और वो नक कटी कहे अरे मैं बहुत सुन्दर लग रही हूँ, तुम लोग भी कटवा लो,... मुझे तो स्वर्ग दिख रहा है, और जब तक किसी और की न कटवा ले उसे चैन न मिले, तो वही हालात भौजाइयों की हो रही थी,
जिसपर दो तीन देवर चढ़ते, वो दूसरी भौजाइयों को भी चढाती,... अरे बड़ा मजा आ रहा है , एक छेद का मजा तो रोज ननदी के भैया देते हैं लेकिन अगर एक छेद में इतना मजा तो दो छेद में तो दूना मजा,
और ननदों को भी उकसाती तो वो सब भी पकड़ लेती और भाई बहिन मिल के भौजाई की चोद देते,...
वैसे भी भौजाइयां कम थी,
हम लोगों की कबड्डी टीम में से ही सिर्फ दूबे भाभी, मैं, रज्जो भाभी, चमेलिया और गुलबिया बची थीं।
मंजू भाभी के ' वो ' शहर से महीने में आते थे दो चार दिन के लिए आते थे और महीने का हिसाब चुकता कर देते थे, सूद के साथ, तो मंजू भाभी मेरे जेठ के साथ अपने घर में और चुन्नू भी यहाँ तो घर में वो और उनके सैंया,...
चननिया तो कल ही बोल के चली गयी थी,... उसे कुछ काम था, रमजानिया को भी कहीं जाना था वो आयी तो थी लेकिन दोपहर के पहले ही चली गयी।
ये तो चार पांच भौजाई कल कबड्डी और उस के बाद की मस्ती देख के आ गयी थीं, इसलिए हम लोगों की टीम में आठ दस,...
पर ननदें अट्ठारह बीस,... आठ दस की झिल्ली ही आज फटी थी, और देवर भी उतने ही, और वो सब मिल के हम भौजाइयों के पीछे पड़ गए थे पर ननदें लालच भी दे रही थीं,
" भैया, आज तो मिल गया लेकिन अगर रोज चाही न तो पहले हचक के गुलबिया भौजी क गाँड़ मारो कस चाकर चूतड़ है, मायके में तो खूब गांड मरवाती थी"
और भौजाई भी, जो आठ दस आयी थीं उनमे से आधे से ज्यादा के मरद बाहर ही रहते थे, ... दो चार तो पास के शहर में तो कुछ हफ्ते दो हफ्ते में आते थे, पानी निकाल के चले जाते थे और कुछ महीने में,... और बाकी किसी का पंजाब, किसी का बंबई, सूरत, अहमदाबाद,.. साल में एक दो बार छुट्टी मिली ट्रेन का टिकट मिला तो,
गुलबिया को बड़ी उम्मीद थी की उसके ननद का भाई होली में जरूर आएगा, छुट्टी भी मिल गयी थी लेकिन जनरल में भी घुसने की जगह नहीं मिली, एकदम छनछनाई,... तो उन भौजाइयों की दिवाली होली सब हो गयी, एक साथ इतने नए नए लौंडों के साथ
आरती, , दुलारी सविता, सुगना, रीता,