नसीब वालों को सुगना ऐसी मालिश करने वाली मिलती है..थाई ( जांघ ) और उससे आगे और बीच में भी मालिश
सुगना ऐसी जवान छनछनाती बहुरिया किसी भी स्पा वाली को पीछे छोड़ दे बॉडी टू बॉडी मसाज में
नसीब वालों को सुगना ऐसी मालिश करने वाली मिलती है..थाई ( जांघ ) और उससे आगे और बीच में भी मालिश
सुगना ऐसी जवान छनछनाती बहुरिया किसी भी स्पा वाली को पीछे छोड़ दे बॉडी टू बॉडी मसाज में
साडी कायनात मिल जाएगी.. सुगना के अरमान पूरा करने को...होगा होगा एकदम डिटेल में होगा
जैसे कबड्डी वाला सीन डिटेल में हुआ
कबड्डी के बाद ननद और देवर भौजाई वाला सीन डिटेल में हुआ
उसी तरह सुगना और ससुर का एक नहीं अनेक सीन और ये भी की क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए, क्योंकि सुगना का अब स्थायी सहारा तो वहीँ हैं
अपनी अपनी विधा में दोनों श्रेष्ठ हैं...अरे इसमें भी कोई सोचने की बात है,
आरुषि जी का कोई जवाब नहीं, इस फोरम में किस्से कहानी वाले सैकड़ों हैं लेकिन वैसे कविता और चित्र, आरुषि जी अकेली हैं अपना उदाहरण स्वयं।
अपने हिसाब से कहानी आगे बढ़ाइए....होगा, आगे आएगा
लेकिन अभी देवर भाभी के किस्से चल रहे हैं इसमें एक भाग से अधिक सुगना और ससुर के बारे में बात करना थोड़ा विषयांतर हो जाता, और आगे की देवर भाभी के पोस्ट्स से जोड़ना टेढ़ा होता,
इसलिए सुगना और ससुर के विस्तृत चार पांच पोस्ट्स आएंगे
ये महुआ का नशा तो अलौकिक था...भाग ८३
महुआ चुये,
१६,५४,८००
मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।
मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी
लेकिन रेनू वहां नहीं थी,...
किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,...
उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.
कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुराने पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,
तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया,
बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी, जबरदस्त हाथ उसके सीधे उभारों पर,... जिस तरह से वो निप्स को छु रहा था,..
घने पेड़ों के झुरमुट के बीच,... वैसे ही अँधेरा हो रहा था,... और अब शाम की दस्तक भी शुरू हो गयी थी,... पकड़ इतनी तगड़ी की मैं मुड़ भी नहीं सकती थी,... तभी सामने से रेनू दिखी हंसती खिलखिलाती,... जैसे किसी बच्चे को खोया खिलौना अचानक मिल गया हो, उसकी हंसी मुझे चिढ़ा रही थी, छेड़ रही थी, उकसा रही थीं, असली ननद।
और मैं समझ गयी मुझे दबोचने वाला कौन है, उसका भाई भी भतार भी, ... और फिर उससे तो बिना गारी के बात करना उसकी और रिश्ते दोनों की बेइज्जती होती।
" हे अपनी महतारी के खसम, बहनचोद, तेरी बहिनिया की गाँड़ अपने देवर से मरवाऊँ,... वहां सरम लग रही थी की सबके सामने लेने में गांड फट रही थी. "
" अरे नहीं भौजी, वहां हिस्सा बंटाने वाले बहुत आ जाते हैं, और यहाँ केहू को अंदाज भी नहीं लगेगा,..."
और जैसे कोई फूलों की डोलची उठाये उसने मुझे बाहों में उठा लिया और सीधे महुए के पेड़ के नीचे, जहाँ ढेर सारा महुआ चूआ था,...
रेनुवा, पहले से वहीँ खड़ी खिलखिला रही थी,... वहीँ उसने लिटा दिया,... रेनू जैसे कोई बहुत खेली खायी हो अपनी गोद में मेरा सर रख लिया, साड़ी दोनों उभारों पर से सरका दी,...
और नीचे गिरे ढेर सारे ताजे महुए को मेरे जोबन पर मसल दिया।
सच में वहां कोई आवाज भी नहीं आ रही थी, लग रहा था हम तीनों किसी और दुनिया में हों,...
" हमार भौजी महुआ क सराब हैं एकदम, ... " रेनू बोली और झुक के उसने मुझे चूम लिया, ...
मैंने भी दोनों बाहों से उसे पकड़ के झुका लिया, जैसे कोई फूलों से लदी शाख हो,... और कस के चूम लिया,...
मेरी कल परसाद में मिली साड़ी छल्ले की तरह बस मेरी पतली कमर में लिपटी और दोनों लम्बी गोरी टाँगे,...
जहाँ होनी चाहिए, देवर के कंधे पर,...
कमल ने सीख लिया था जल्दी बाजी में कोई मजा नहीं, ...
और मेरे जोबन पर जो महुआ उसकी बहन ने मसला रगड़ा था, कभी झुक के उसे होंठों से चुनता तो कभी महुआ के बीच आँख मिचौली कर रहे मेरे निप्स को,...
मेरे होठ तो उसकी बहन के होंठों के साथ छल कबड्डी खेल रहे थे.
उस टीनेजर के होंठ आज पहली बार चूमे गए थे चूसे गए थे और अब सारी दुनिया का रस छलक रहा था उनमे,...
लेकिन रेनू उसकी आंखे तो अब अपने भाई से हट नहीं रही थीं, एक पल के लिए मेरे होंठों को आजाद कर के उसने अपने भाई के होंठों को चूम लिया,... और अपने भाई के होंठो का रस अपने होंठों से मेरे होंठों पर,,... लेकिन फिर रेनू के होठ मेरे होंठों से हटे तो कमल के होठ मेरे होंठों से चिपक गए, और रेनू के होंठ मेरे निप्स को चूस रहे थे,
बड़ी ताकत थी कमल के हाथों में,... मेरे उभारों पर झरते हुए महुआ के फूलों को उसने इस तरह मसला की जैसे वो शराब बन के मेरे शराब के दोनों प्यालों में,
और पीने वाला मेरा देवर तो था ही, कमल,... आज उसकी मैंने बरसों की साध पूरी की थी लेकिन उसने भी तो मेरी बात मानी, जो मैंने उसकी माँ से वादा किया था वो पूरा हुआ,...
रेनुआ ने दूर की चाल चली...मस्ती बाग़ में -ननद और देवर संग
रेनू के होठ मेरे होंठों से हटे तो कमल के होठ मेरे होंठों से चिपक गए, और रेनू के होंठ मेरे निप्स को चूस रहे थे,
बड़ी ताकत थी कमल के हाथों में,... मेरे उभारों पर झरते हुए महुआ के फूलों को उसने इस तरह मसला की जैसे वो शराब बन के मेरे शराब के दोनों प्यालों में,और पीने वाला मेरा देवर तो था ही, कमल,... आज उसकी मैंने बरसों की साध पूरी की थी लेकिन उसने भी तो मेरी बात मानी, जो मैंने उसकी माँ से वादा किया था वो पूरा हुआ,...
और तभी क्या जोरदार धक्का, जैसे किसी ने पेट पर घूंसा मारा,...
और मैंने बहुत जोर से गरियाया,
"अपनी महतारी का भोंसड़ा चोद चोद के तुझे स्साले भोंसड़ा चोदने की आदत पड़ गयी है, ... ऐसी जल्दी क्या थी,..."
पर उसे तो जल्दी थी, उसने मुझे दुहरा कर दिया और क्या रगड़ रगड़ के,...
मैं टप टप चुये सफ़ेद मोती के दानों ऐसे महुए के बिस्तर पे और मेरी देह पे जो महुए के फूल उसकी बहिनिया ने रगड़े थे, रखे थे हम दोनों की देह से चूर चूर हो के पिस के, साथ में आम के बौर की महक, हलकी हलकी चलती सांझ की फगुनहट से भरी हवा,
और मेरे ऊपर चढ़ा मेरा देवर, बगल में उसकी बहन, मेरी ननद
और उसकी बहन ने भी, ...
अरे भौजी तोहें देवर की मलाई चखा दूँ, जबतक दोनों मुंह में न जाए,... और मेरे मुंह में अपनी आज पहली बार चुदी अपनी चुत रगड़ रगड़ के, कमल की सब मलाई मेरे मुंह में,.. मैं क्यों छोड़ देती। मेरे देवर की रबड़ी मलाई,.. और साथ में ननद की चूत चूसने का सुख,...
कभी जीभ अंदर कर के कभी रगड़ रगड़ के,
उधर कमल का हर धक्क्का सीधे बच्चेदानी में लग रहा था, स्साला शुरू से ही चौथे गियर में था,... आधे घंटे के बाद ही वो झडा तबतक मैं और रेनू दो बार झड़ चुके थे.
मैंने उठने की कोशिश की, हे कमल चलने दे अब शाम हो गयी है, बाकी लोग भी जा रहे हैं।
ढलते सूरज की किरणे, आम और महुआ के पत्ते से छन छन कर जमीन पर आ रही थी, पिघलते सोने की तरह। बाहर बगीचे से नंदों, भौजियों की आवाजें अब धीमी पड़ती जा रही थीं, लेकिन एक बार के बाद कौन देवर भौजाई को छोड़ता है और कौन भौजाई का ही मन भरता है, और यहाँ तो रेनू ऐसी छिनार ननद भी थी जो पहली बार अपने भाई से चुदी थी लेकिन लग उसकी जन्म जन्म की रखैल की तरह थी। अपने भाई की ओर से वही बोली,,
" भौजी, बस थोड़ी देर और, और कौन आप अकेली हैं आपकी ननद और देवर भी तो हैं "
उसके हाथ मेरे जोबन पे टहल रहे थे।
" अरे नहीं मना थोड़ी कर रही हूँ, आज नहीं तो फिर कभी, देख तेरे भाई ने कितना कीचड़ कर दिया है, चोदल बुर फिर से चोदने में मजा थोड़े ही आता है, "
रेनू महा छिनार धीरे से मेरे कान में बोली
" अरे तो भौजी पिछवाड़े क छेद, हमार भाई बहुत मस्त गांड मारता है "
मैंने खींच के उसे चूम लिया और उसके भाई को सुनाते बोली,
" ये छिनार तोहार कुल चालबाजी हम समझ रहे हैं सोच रही की देवर क कुल मलाई यहीं ख़तम हो जाए और रात में टांग फैलाये के सोवा, चोदवावे क न पड़े, "
" अरे नाही भौजी, चार साल से टरका रही थी जब से कच्ची अमिया आना शुरू हुयी थी, अब ये तो आज आपका आसीर्बाद था, एक मिनट नहीं सोने दूंगा, आपकी ननद को चोद चोद के, गौने की रात है आज उसकी, "
कमल ने पक्का वादा किया। वैसे तो वायदे लोग करते रहते हैं लेकिन मेरी ससुराल में जब कोई मरद अपनी बहिन चोदने का वायदा करता है तो मैं जरूर मान जाती हूँ।
और मैं मान गयी, हलके हलके मैं कमल का मूसल छू रही थी, सहला रही थी, अभी भी थोड़ा थका, थोड़ा सोया सा, फिर मैंने रेनू को काम पे लगाया,
" भैया क दुलारी, चल अपने भैया क मलाई चाट चूट के साफ़ करो, एको बूँद बची रह जाए, कौन भौजाई नहीं चाहेगी की उसकी ननद उसकी अपने भौजाई क बुर से अपने भैया क मलाई भैया के सामने साफ़ करे, "
रेनू चाट चूस भी रही थी, छेड भी रही थी, चिढ़ा भी रही थी,
" केकरा मूसल यह में अंदर गया था पहले तोहरे मायके में भौजी " ऊँगली कर के कमल की मलाई निकाल के मुझे दिखा के चाटते रेनू ने चिढ़ाया,
" छिनार, तोहार भैया गौना करा के लाये थे, ओहि रात, "
मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की खिलखिलाती रेनू मेरी बुर में कस कस के दो ऊँगली घुमाती बोली,
" अरे हमको, अरे पूरे गाँव को मालूम है नयकी भौजी इतने जोर से चोकरी थीं, जब उनकी फटी थी, अरे हमरे गाँव क मरदन क अलावा केकर ताकत बा जउन हमारी नयकी भौजी क अस सुंदर चिक्क्न बुर क झिल्ली फाड़े, भौजी क महतारी यही लिए तो भेजी थी, सोच समझ के पता कई के। "
बात रेनू की एकदम सही थी।
इन्होने सिर्फ मेरी नहीं मेरी दोनों छोटी बहनों की झिल्ली फाड़ी और छुटकी की एक सहेली, यहाँ तक की मेरे ममेरे भाई के पिछवाड़े का भी नेवान उन्होंने ही किया। और हम सब बहनों के पिछवाड़े का भी सिवाय छुटकी के, जो उन्होंने मेरे ननोदयी को वादा कर दिया था,
लड़के एक तो अपनी माँ बहिन की गारी सुन के गरमाते हैं दूसरे दो लड़कियों की मस्ती देख के,
रेनू अब कस कस के मेरी बुर चूस रही थी, मेरी जाँघे फैली जा रही थीं, मलाई कब की साफ़ हो गयी थी सीधे मेरी बुर से ननद के पेट में , और ये देख के कमल का खूंटा फनफना रहा था , स्साले का सच में बहुत मोटा था कोई भी लड़की सुपाड़ा देख के ही भड़क जाए, और गांड मारने के तो नाम पर ही ,
भौजी का सिखाया पढाया दांव ..एक बार और
रेनू अब कस कस के मेरी बुर चूस रही थी, मेरी जाँघे फैली जा रही थीं, मलाई कब की साफ़ हो गयी थी सीधे मेरी बुर से ननद के पेट में , और ये देख के कमल का खूंटा फनफना रहा था , स्साले का सच में बहुत मोटा था कोई भी लड़की सुपाड़ा देख के ही भड़क जाए, और गांड मारने के तो नाम पर ही ,
मेरी उँगलियाँ उसी सुपाड़े पर टहल रही थीं, खूब मोटा, किसी तरह गांड में घुस भी गया तो जब छल्ला पार करेगा तो सच में जान निकल जायेगी, लेकिन आज मोटे लौंड़े ने अपनी बहन रेनू की गांड मारी,
एकदम कच्ची कली, कल तक काले तम्बू में कैद, हिना की गांड मारी,
और वो भी दोनों बार सिर्फ मेरे कहने पर, दोनों ही चिंचियाती रही, रोती रही कलपती रहीं गांड पटकती रही लेकिन मैंने कमल को बोल दिया था एकदम जड़ तक गांड तो कोई भी मार लेगा, गांड का भोंसड़ा बना के छोड़ना, हिना तो घंटे भर तक जमीन पे चूतड़ नहीं रख पा रही थी।
खुश होकर उस सुपाड़े को मैंने पूरा मुंह खोल के ले लिया।
लेकिन रेनू छिनार सब देख रही थी, बोली, " अरे भैया, भौजी को आधे तिहे में मजा नहीं आता, एंकर मुंह , भौजी के बुर से कम मीठ न बा चोदा कस के,
पूरा तो नहीं लेकिन आधा लंड उसने मेरे मुंह में धीरे धीरे कर के सरका दिया,
आज कमल ने सब बातें मेरी मानी थी और अब उसे अपनी बहन को गाँव में सबके समाने भरौटी चमरौटी वालियों के सामने भी एकदम अपनी रखैल बना के रखना था, मैं बहुत प्यार से अपने देवर क लंड चूस रही थी, कभी जीभ को धीरे धीरे सुपाड़े पर घुमाती तो कभी दोनों होंठों से दबा के कस कस के चूसती, मुंह मेरा जबरदस्त खुला हुआ था लेकिन मेरी लार खूंटे को गीला किये हुए थी,
उधर उसकी बहन छिनार, कभी दोनों फांको को एक साथ चूसती तो कभी जीभ से ही मेरी बुर चोद चोद के मेरा बुरा हाल कर रही थी , मन झड़ने के किनारे पहुँच जाती तो वो रुक जाती, और मैं उसे गरिया भी नहीं सकती थी, उसके भैया का लंड मेरे मुंह में घुसा था।
रेनू ने अपनी मन की बात कह दी, " भौजी यही निहुर के "
और मैं एक चौड़े से आम के पेड़ को पकड़ के निहुर गयी,
हवा तेज चल रही थी, लग रहा था कहीं आंधी न आये, आंधी कितनी भी तेज आये महुआ और टिकोरे बिनने का जो मजा है, सूरज की दो चार किरणे जो अब तक आ रही थीं वो भी अब जमीन से सरक कर पेड़ों के तने पर पड़ रही थीं,
लेकिन अँधेरे का चोदने वालों पर कोई फरक नहीं पड़ता, अमावस की रात तो मिलने वालों के लिए सबसे अच्छी होती है और घर में भी रजाई के अंदर मरद निशाना साध लेता है, कमल बड़ा खिलाड़ी, लेकिन आज असली देवर, भौजाई को तंग करने पे जुटा था और उसकी राय देनेवाली उसकी रखैल बहन,
रेनू ने जिस तरह से चाटा था मेरी फुद्दी फुदक रही थी। बस मन कर रहा था कमल पेल दे, लेकिन वो अपने कड़े मोटे सुपाड़े को बस बार मेरी बुर के होंठों पे रगड़ रहा था, अब मुझसे नहीं रहा गया,
" स्साले तेरी बहन महतारी को गदहों से चुदवाउ, जब चोदना नहीं था, तो काहें " लेकिन फिर उसकी रखैल बोल उठी,
" अरे भौजी, आपके देवर सोच रहे हैं पता नहीं दुबारा कब, "
वो मुझसे कबुलवाना चाह रही थी, और गाली सुनना चाह थी,
" देवर और भौजी क बीच में ननद क कौन काम है, देवर भौजी क साल भर क फागुन होता है ये भी नहीं मालूम तोहें लेकिन रोज हरे देवर क रखैल क गांड से सडका टपकता रहना चाहिए "
" एकदम भौजी "
कह के कमलवा ने वो धक्का मारा की मेरी चीख निकल गयी। वो तो आम के पेड़ को मैं कस के पकडे थी, और जांगर था देह में वरना भहरा पड़ती।
और अब कमल का एक हाथ मेरे जोबन पे क्या कस के दबोचे हुए था और फिर दुबारा पहले से भी करारा धक्का, बुर की दीवालों को रगड़ते हुए जब देवर का मोटा सुपाड़ा अंदर घुसा चीख भी निकली और मजा भी आया।
खूब मोटा रगड़ते दरेरते अंदर घुस रहा था। और अब वो दोनों हाथ से मोटी मोटी चूँचियों को कस कस के निचोड़ रहा था। बहुत ताकत थी कमल की देह मे।
और अब मुझे भी मस्ती की सूझी, कमल ने जब पूरा बाहर निकाल कर एक धक्के में बच्चेदानी तक मारा मेरी बच्चेदानी हिल गयी। पूरा खूंटा जड़ तक अंदर था, बस मैंने धीरे धीरे बुर को सिकोड़ना शुरू किया उस मोटे मूसल पे, और फिर हलके से ढीली करके फिर एक बार में ही कस के दबोच लिया, बिना अंदर बाहर किये चुदाई का मजा मेरे देवर को आ रहा था।
" ओह भौजी ओह, बहुत मजा आ रहा है आज तक अइसन मजा "कमल बोल रहा था
" अरे तो हमरे नयकी भौजी क चोद भी तो पहली बार रहे हो भैया " रेनू ने छेड़ा कमल को।
और अब कमल पूरी ताकत से चोद रहा था, लेकिन ननद को झूठ मूठ का छिनार थोड़े ही कहते हैं, मैं एकदम झड़ने के कगार पर थी।
रेनू ने कमल के कान में कुछ फुसफुसाया, और जब तक मैं समझूं रेनू ने खुद अपने हाथ से पकड़ कर अपने भैया का खूंटा मेरी बिल से बाहर कर के मेरी पिछवाड़े की दरार पर सटा दिया,
" अरे छिनार एक बार झड़ जाने देती, जब चूस रही थी तब नहीं झड़ने दी और जब मेरा प्यारा देवर पेल रहा था , एकदम झड़ने के कगार,...
लेकिन मैं चीखी कमल ने ढकेल दिया था पूरी ताकत से मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा पिछवाड़े अंड़स गया था,
" भौजी ढीली करो " रेनू मुझे चिढ़ा रही थी जैसे मैं उसे समझा रही थी जब कमल ने पहली बार उसकी गांड में अपना खूंटा धँसाया था एकदम मेरी ही आवाज मे।
" स्साली छिनार तनी सांस तो लेने दो " मैं उससे बोली,
और मेरा देवर कम से कम उसने मेरी बात सुनी और जो मैंने समझाया था गांड मारते समय भी बुर रानी का ख्याल करना चाहिए वो सीख उसने अच्छी तरह सीख ली थी। एक हथेली वहां पर सहला रही थी, रगड़ रही कभी दो उँगलियाँ एक साथ बुर में अंदर बाहर एकदम लंड की तरह
और जब मेरे पिछवाड़े को देवर के मोटे सुपाड़े की आदत पड़ गयी तो धीरे धीरे पीठ सहलाते उसने ठेलना शुरू किय। मैं रेनू या हिना की तरह पहली बार तो पिछवाड़े नहीं घोंट रही थी इसलिए वो छल्ला मैंने ढीला कर रखा था,
गप्प
कमल का सुपाड़ा छल्ला पार कर गया।
लेकिन भौजी हो और देवर के साथ छेड़खानी न करे, मैंने अब जब छल्ला पार हो गया था तो आधे घुसे खूंटे पे उसे कस के भींच लिय। लेकिन कमल भी कम शैतान नहीं था, पीछे का बदला उसने आगे से लिया एक साथ तीन उंगलिया पेल कर,
थोड़ी देर में ही मैं आगे पीछे दोनों छेदो का मजा ले रही थी। दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त रगड़ाई के बाद पहले मैं ही झड़ी लेकिन उसके साथ ही साथ कमल भी। बड़ी देर तक वो अंदर ठुसे रहा फिर धीरे धीरे खूंटा बाहर निकाला, टप टप टप टप जैसे महुआ चुए, मलाई मेरे पिछवाड़े से टपक रही थी।
पेड़ का सहारा पकड़ के मैं सीधी हुयी, शाम ढल चुकी थी। धीरे धीरे हम तीनो बाग़ से बाहर निकले।
अब तो अपनी बहनों का हाल खुलासा किया है हीना ने..ढल गयी शाम
हम लोग जब बाहर पहुंचे तो शाम ढल चुकी थी, लोग घर जा रहे थे,... सब ननदो से मैं गले मिली और रेनू कमल से बोली चलो तुम दोनों को घर छोड़ते मैं चली जाउंगी।
लेकिन निकलने के पहले मैं पठान टोली वाली हिना से खूब गले लग के मिली,
चिढ़ाया छेड़ा और तीन बार कसम धरायी की अब जरूर आएगी हमरे पुरवा में, और गाँव का लड़की, गाँव में थोड़ी कउनो पर्दा करती हैं, वो भी तो बाकी ननदों की तरह है. बाइस पुरवा में एक पुरवा तो वो भी है,...
पहले खूब आना जाना होता था, ... लेकिन दो चार साल से,... औरतें तो अभी भी सादी बियाह, गौना छठी बरही में, गाँव तो एक ही है
सुगना भाभी ने हिना के गाल पे चुटकी काट के कहा
और अकेले नहीं अपने टोले की बाकी सब भी,...
भाभी को अपने देवरों का बड़ा ख्याल था,...
एकदम भौजी, हँसते हुए हिना बोली, अभी भी बेचारी खड़ी नहीं हो पा रही थी, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर जबरदस्त मूसल चले थे, सुगना भौजी का ही सहारा लेके ही खड़ी थी,
पीछे से कोई बोली, ओह टोला में पता नहीं का खाती हैं खाली लड़कियां निकलती हैं, मेहरारुन के,...
मैंने बात सम्हाली,
लेकिन हमार कुल ननद कितनी सुन्दर हैं सुकवार, हिना को ही देख लीजिये, एकदम गुलाब क फूल,.. वो तो आपके देवर पर उसने किरपा कर दी की आज आगयी,... और हिनवा कितनी तोर बहिनिया हैं, सगी नहीं पूछ रही हूँ, मुझे मालूम है तुम अकेली हो. चचेरी टोले पडोसी,...
कुछ तो मुझे मालूम था लेकिन उसके मुंह से सुनना चाहती थी,...
हिना ने गिनाना शुरू कर दिया,
हमरे दो ठो तो चचेरी हमारी घर की ही, ज़ेबा और जिया,... वो दोनों तो हमरे समौरीया, जिया छह महीना छोट, जेबा चार महीना बड़ी, और बगल में शेखू काका क तीन बिटिया हैं,... आयशा, फातिमा और करीना,... करीना तो रेनू दीदी के साथे पढ़ती हैं,...
बगल में रेनू की ओर इशारा करके वो बोलीं,
पीछे से कोई भौजाई बोली,... अरे ओहमें से फटी कितनी है,
हिना लजा गयी,... लेकिन जवाब गुलबिया ने दिया, गाँव क नाउन क बहुरिया, पठान टोला के सैयद लोगों का भी वही सादी बियाह,...
' अरे करीनवा तो अपने हरवाह समुआ से फंसी है,.. उहो आज से नहीं,... हिनवा क समौरिया थी तब से,... "
गुलबिया की बात सुनके सब भाभियाँ हंसने लगीं तो रज्जो भाभी हिना की ओर से बोलीं,
" अरे तो का हुआ, ... खेती में ट्रैक्टर आ गया, तो हरवाह को कुछ तो चाहिए, जोतने को "
हिनवा भी खिलखिला के हंस पड़ी,...
" अरे गुलबिया भौजी,... करीना क चक्कर तो सबको मालूम है, टोले मोहल्ले में किसी से छुपा थोड़े ही है दो तीन बार तो
हमरे सामने,...हम सब लोग स्कूल से साथे तो लौटते हैं, तो समुआ को देख के करीनवा हमको बस्ता पकड़ा दी,... बोली घर पे बोल देना की स्कूल में उस्तानी जी रोक ली हैं, उनके यहाँ कुछ काम था। और समुआ के इशारे पे वहीँ गन्ने के खेत में,... हमको भी मालूम है की गन्ने के खेत में का होता है,... "
किसी ने चिढ़ाया तो तू कैसे बची रही, तो मैं फिर हिना की ओर से बोली,...
" अरे काहें चिढ़ा रही हैं बेचारी को, वो बचा के रखी थी हमरे देवरों के लिए, एक तो बेचारी ने अपनी गुल्लक फुड़वायी हम सब के देवर से और ऊपर से सब लोग,... फिर मैं हिना को छेड़ते हुए बोली,...
" हे ननद रानी, अपने भाई लोगन क तो मलाई आज बहुत गटकी हो,... ( अभी भी उसकी ताज़ी चुदी चूत से सडका टपक रहा था ) लेकिन दो चार दिन में हम भौजाई लोगन क भाई क भी घोंटना पडेगा। "
ननद क मतलब छिनार, बल्कि पैदायशी छिनार,... और हिना भी थी तो ननद ही,... इसी गाँव की मिट्टी में खेल के बड़ी हुयी यहाँ का हवा पानी,...
" अरी भाभी बुला लीजिये, देख लुंगी उन संबको भी,... बेचारे ऐसी मीठी मीठी मस्त बहन हमरे गांव भेजे, काहें,... हमरे भैया क रोज बिना नागा घोंटने के लिए तो कभी हम भी,... "
और सब ननदें एक साथ, हिना का साथ देते हंसने लगीं।
हिना भी उनके गोल की हो गयी थी और जल्द ही उसके टोले वाली बाकी भी, ज़ेबा, जिया, फातिमा आयशा,... और बाकी सब भी,
" एकदम हम तो आय गए तोहरे गाँव लेकिन तोहें अनवार ( लाने वाला ) न भेजना पड़े " मैंने हँसते हुए, उसे चिढ़ाते हुए
उसकी बात पूरी की और हिना खुद बोली,
" एकदम नहीं भौजी, जहाँ हमारा नयकी भौजी वहीँ हम,... "
वो लीना के साथ आई थी, लीना उसके क्लास में पढ़ती भी थी, सहेली भी थी। लीना के साथ मैंने सुगना भौजी को भी बोला की हिना की उसके घर छोड़ आने को,
वैसे सुगना भौजी को बोलने की जरूरत नहीं थी।
एक तो उनकी पट्टी, एकदम पठान टोले से सटी, नाऊ कहार वही, दूसरे हिना क महतारी, सुगना भौजी क, अब जब सुगना भौजी गौने उतरीं तो उनकी सास तो थीं नहीं साल डेढ़ साल पहले ही, तो गांव क दो चार औरते ही परछन की और सबसे आगे थीं हिना क महतारी, कुल रस्म भी कराई, कंगन छोड़वायी से मौरी सेरवाई तक, हिना छोटी थी उस समय लेकिन सुगना भौजी से वो बोलीं तोहार छोट ननद, और हिना के ससुर की असली भौजाई भी वही थीं , मजाक करने से लेकर ख्याल करने तक , जब उनको फालिज मारा, तो सबसे पहले वही, और सुगना भी उनकी सास ही मानती थी, आना जाना, सुख दुःख,
सुगना के ससुर बाबू सूरजबली सिंह और हिना के पिता बड़े सैय्यद के बीच पुरानी खानदानी दोस्ती थी।
एक साल ताजिया के समय सैय्यद साहेब न आ पाए, हिना की माँ सुगना के ससुर के यहाँ आयीं, पुरानी बात है, सुगना के गौने उतरने के बहुत पहले लेकिन गाँव की बड़ी बूढी कई बार बता चुकी हैं।
हिना की माँ, सुगना के ससुर के पास आयीं, खाली इतना बोलीं, देवर यह साल,
" भौजी, तोहार देवर, अभी, "
वो आगे कुछ बोल पाते उनकी भौजी, हिना की महतारी ने उनके मुंह पे हाथ रख दिया, " नौज अब आगे जिन बोला, अपने भौजी का क कफ़न दफन
" भौजी रोवावा जिन " वो सिर्फ इतना बोले,
उस साल अपनी छह हाथ की लाठी लेकर पगड़ी बांधे, सबसे आगे अलम लेकर बाबू सूरजबली सिंह चल रहे थे। बाबू साहेब की लाठी का चालीस पचास गाँव में लोहा लोग मानते थे।
हर साल मेला भी बड़के सैयद की जमीन में ही लगता था, करीब चार बिगहा में एक फसल नहीं बोई जाती थी,
चकबन्दी हो रही थी, एक कोई सड़क भी निकलने वाली थी, पास के गाँव के एक लड़के ने जिसकी तहसील में बहुत जान पहचान थी, आके हिना की महतारी से बोला,
" चाची, वो जमीनिया, आप कहिये तो चक कटवाय के, और एक क दस मिलेगा, और अभी भी वहां कुछ खास तो आधे साल परती पड़ी रहती है "
हिना की माँ एकदम गोरी चिट्ठी, सैय्यद क बिटीया, लेकिन गुस्से में मुंह तमतमा गया, एकदम लाल भभुका, वैसे तो नफीस बोली बोलती थी लेकिन अगर गुस्से में हों तो असली जुबान पर उतर आती थीं और गालियां तो कुंजड़िन मात,
कुछ देर तक तो मारे गुस्से के बोली नहीं निकली, फिर जब बोलीं तो, " तो ऊ मेलवा कहाँ लागे, ऊ ऊ रवनवा कहाँ फूंका जाए, तोहरी महतारी क बुर में, हमरे आगे नंगे चूतड़ फैलाय के, दुबारा बोला न तो जबनिया खींच के तोहरी गंडिया में, चला हैन चकबंदी समझावे, "
भले पुरवा बाइस हों, गाँव तो एक ही है,
मुझे खुद याद है, सबरे मैं चूल्हे पे दाल चढ़ा रही थी, खबर आयी, कल्लू चमार, वही फुलवा के बगल में जिसका घर है, कल्लू क बेटवा, कल नदी नहाने गया था, वही, अब नहीं, उसकी देह,
मेरी सास ने सीधे लोटा भर पानी चूल्हे में डाल दिया, " गाँव का जवान लड़का गया है, " और खाली हमारे घर में नहीं बाइस पुरवा में कहीं चूल्हा नहीं जला।
तो सुगना भौजी ने हिना को बोल के ही रखा था की वो उसे घर छोड़ के आएँगी, लीना के साथ, लीना भी उन्ही की पट्टी की थी,
सुगना भौजी समझ गयीं, मामला सिर्फ हिना का नहीं है इसी बहाने उसकी बाकी चचेरी मोहल्ले की बहनें, जवान हो रही और जवान होने वाली कुल लड़कियों की खोज खबर,...
मैं मान गयी लीना को, कैसे जुगत कर के हिना को पटा के, फुसला के लायी और वो जानती थी आज बगिया में पहुँच गयी तो भौजाइयाँ सबी बिना चुदवाये उसे छोड़ेंगी नहीं,... और एक बार लम्बा मोटा घोंट लिया तो तो जा गाँव के लड़कों के बारे में अंट संट बोलती है शिकायत करती है वो सब गांड में घुस जाएगा,
लेकिन उससे भी बड़ा काम किया दूबे भाभी ने,
खैर सबसे बड़ी थीं कुल पुरान रीत रिवाज ढंग जानती थीं, उसी आम के पेड़ के नीचे, जहाँ कल होलिका माई आसीर्बाद दी थीं, बरसफल बिचारा था और उनका जबरदस्त असर एक दो दिन तक उस जगह रहता ही था,
वहीँ हिना को, उन सब लड़कियों की बिल से जिनकी आज ही उनके भाइयों से फटी थी, उनके भाइयों की मलाई चटवायी, खिलाई। और उस जगह का असर खाली नहीं जाता था, जहाँ हिना पहले गाँव के लड़कों से दूर भागती थी, वहीँ कल से खुद ही जिसकी जिसकी मलाई उसने चाटी थी, उनके आगे पीछे कातिक की कुतिया की तरह गर्मायी घूमेगी,... जबतक चुदवा नहीं लेगी दो चार से बड़े बड़े चींटे काटते रहेंगे,... तो अब तो वो आएगी ही,...
जैसे काँटा में कीड़ा लगा के मछली फंसाने का मामला होता है तो बस अब पठान टोले की बाकी मछलियों को फ़साने का काम सुगना भौजी को के जिम्मे,...
सुगना भौजी लीना और हिना के साथ निकलीं तो मैं भी रेनू और कमल के साथ,...
एक दिन की बहिन...कमल और रेनू
मैं कमल और रेनू के साथ उन दोनों के घर की ओर.
जो रेनू अपने भैया कमल की परछाई नहीं देखना चाहती थी, आज उससे एकदम चिपक के, जो रेनू लड़का लड़की के रिश्ते की बात सुन के उखड़ जाती थी, आज खुल के चुदाई की बात कर रही थी और सबसे बढ़ के मेरे साथ मिल के अपने भाई को छेड़ रही थी,
छेड़ना मैंने ही शुरू किया, और रेनू एकदम मेरी ओर होगयी अपने भाई कम नए नए बने यार की रगड़ाई करने
" क्यों काहें कह रहे थे कोई लड़की नहीं देती, आज केतने की फाड़ी, " पहले कमल को छेड़ा फिर मुझसे बोली
" अरे भौजी, मैं देख रही थी न कैसे मजे ले ले कर हिनवा क कच्ची बुर चोद रहा था, कउनो अलग ढंग का मज़ा आ रहा था, चेहरे पे केतना ख़ुशी,... और उहो छिनार हमरे भाई से चुदवावे मे कैसे मजा ले रही थी, चूतड़ उठा के गपागप घोंट रही थी. और रोज ये भौजी हमसे कहता था की रेनुवा दे दे कोई गाँव क लड़की देती नहीं है। और बदमाश कैसे मजे लेके हिना क गाँड़ मार रहा था'"
मैं खूब खुश हो रही थी कल इसी समय तो अपनी चचेरी सास, कमल की माँ से यही वादा तो कर के गयी थी आज उनके बेटे को उसकी बहन के ऊपर न चढ़ाया और उसके बाद बहन खुद ही उनके बेटे के लिए टांग फैलाएगी चिपकी रहेगी, वो लौट के आएँगी पहचानेगी नहीं रेनू -कमल को. और वही हाल था।
" एकदम तू सही कही रही है, हिना तो चलो पठान टोला वाली उसे अपने टोले का सबसे जबरदस्त मूसल दिखाना था,... लेकिन उसके अलावा "
मेरी बात काट के रेनू हँसते हुए बोली, " अरे भौजी तीन तो मेरे सामने,.... "
" हे देवर जी लेकिन अब मेरी इस ननद को छोड़के,... "
रेनू ने फिर मेरी बात काट दी, बोली
" अरे कहीं जाएगा तो लौट के मेरे ही पास आएगा,... कभी कभार स्वाद बदल ले, मुझे एतराज नहीं है "
मैंने पाला बदला, और देवर की ओर से बोली,...
" अरे ननद रानी, अब हमार देवर तोहें आपने रखेल बना के रखेगा, जब चाहेगा, जहाँ चाहेगा, जैसे चाहेगा निहुरा के पेलेगा, सोच लो बहुत तडपायी हो मेरे देवर को चार साल से बेचारा ललचा रहा है ये रसगुल्ला खाने के लिए " और ये कहके मैंने रेनू के उभार कस के दबा दिया,
कमल जोर से मुस्कराया।
बिना मेरा हाथ हटाए रेनू बोली, " भौजी आप तो नेता लोगन से भी ज्यादा दलबदलू निकलीं। " फिर हँसते हुए जोड़ा,
" अरे भौजी अब ये स्साला नहीं पेलेगा तो मैं पटक के पेल दूंगी,... आज ही मैं अपना बिस्तर इसके कमरे में, बल्कि बिस्तर क्यों, इसी के पलंग पर अड्डा जमाऊँगी, चार साल का उधार चुकाना है सूद सहित, क्यों भैया। "
तब तक रेनू -कमल का घर आगया था,... कमल बोलने लगा,
" भौजी, माँ मामा के यहाँ गयी थीं आ गयी होंगी शायद, हालांकि ताली तो दे के गयी थीं "
अब मैंने राज खोला,...
" एकदम नहीं,... हफ्ते भर तक घर पर तुम दोनों का राज है मरद मेहरारू की तरह रहो, तोहार महतारी जेठानी देवरानी हमार दोनों सास , हफ्ता भर के लिए तोहरे ननिहाल गयी हैं मुझसे कल ही बोल दिया था."
ताला खोलते हुए रेनू बोली,...
" हफ्ता भर नहीं भौजी अब हरदम के लिए. मरद मेहरारू,... खाली राखी के दिन पैसा लेने के लिए भाई बहिन उसमें कोई कंजूसी नहीं , और ओकरे बाद,...
" वही राखी बंधे हाथ से तोहार चूँची दबायी "
हँसते हुए में बोली और अपने घर की ओर चल दी.
वहां तो मेरी रिश्ते वाली सास हफ़ते भर नहीं आने वाली थी,...
पर यहाँ मेरी सास तो बस आने वाली थीं और उसके बाद क्या होगा ये सोच के मैं गिनगीना गयी।
क्या हुआ मेरी ननद सास के साथ, आगे के पार्ट्स में
मौका अच्छा तैयार है..किस्सा भैया बहिनी का. उर्फ़ मेरी ननदिया
आप लोग भी जानने को बेताब होंगे न की क्या हुआ सास और सासू जी के बेटे के बीच ? और सासू जी और सासू जी के लाडले के बीच में वही होगा जो कल सासू जी के बेटे और सासू जी की लाड़ली के बीच हुआ और क्या जबरदस्त हुआ.
तो सही बात है जो बात पहले हुयी वो पहले बतानी चाहिए न, तो वो बात पहले, यानी किस्सा भैया बहिनी का. कैसे चुदी मेरी ननद अपने सगे प्यारे प्यारे भैया से।
कौन भौजाई होगी जो न चाहती होगी की बढ़ बढ़ कर छेड़ने वाली ननद किसी दिन वही खूंटा घोंटे जो पहले दिन से उसकी भौजाई बिना नागा आगे पीछे घोंट रही है, अरे जिस कहानी का यह सीक्वेल है उसके शुरू में ही बताया था, फिर दुहरा देती हूँ, वरना आप कहेंगे साल भर पुरानी बात कौन गाँठ बाँध के बैठा रहेगा
अरे पन्ना पलटने दीजिये , हाँ तो बस,
अरे पन्ना पलटने दीजिये , हाँ तो बस, चलिए शार्ट में लांग बातें बताती हूँ,
ननद मेरी चिढ़ाने में, छेड़ने में नंबरी, एक दिन मैं टाइट शलवार सूट पहन के टहल रही थी, गौने के तीन चार दिन ही हुए थे, नितम्ब दोनों कसर मसर,...
इन्ही ननद ने पिछवाड़े ऊँगली करते हुए चिढ़ाया, भाभी ऐसा लेफ्ट राइट होगा तो ये पिछवाड़ा नहीं बचेगा,
" तो न बचे यार,... अगवाड़ा तो जिस दिन से आयी हूँ चार पांच बार, और रात दिन में कोई फर्क नहीं तो,"
मैं भी मस्ती में बोली और ननद की बात सच निकली। ननद के भैया आये और दिन दहाड़े ही पिछवाड़े का भी फीता काट दिया, और चीखते हुए मैं यही सोच रही थी की किसी दिन अपनी इस कलजीभी ननद की गाँड़ में ये खूंटा अपने सामने घुसवाऊँगी तो पता चलेगा, उसका कहा सही ही हुआ।
लेकिन इरादा मैंने पक्का कर लिया होली के बाद,
मेरा ममेरा छोटा भाई आया था, हाईस्कूल का इम्तहान देकर,... मुझे अपने साथ शाम को ले जाने,... चुन्नू,... बस मेरी इन्ही ननद ने पहले तो होली के दिन मुझे देसी पिला के टुन्न कर दिया, फिर मेरे भाई की ऐसी रंगाई पुताई की,... की कोई देख के पहचान नहीं सकता था था, कपडे तो सब चिथड़े हो गए थे , और ननद मुझसे बोलीं ,
" भाभी आपका छोटा देवर है पेल दीजिये पटक के, तब होगी देवर भाभी की होली "
मैं बावरी अपने भाई को देवर समझ के उस के ऊपर चढ़ के ऐसी चुदाई शुरू की, लेकिन था तो वो भी मर्द का बच्चा, थोड़ी देर में वो मेरे ऊपर, मैं नीचे ,.. और मेरी ननद मुझे उकसा रही थीं, हाँ भाभी हां, ... और ननद नन्दोई की मिली भगत मैंने देखा थोड़ी देर में ननदोई जी आ गए और,.. जिसे मैं देवर समझ रही थी, उस मेरे भाई के पीछे अपना मूसल,
" हाँ ननदोई जी, महतारी का दूध पिया हो एक धक्के में घुसा दीजिये चिकने स्साले की गाँड़ में अपना लंड "
मैं ननदोई जी को यह समझ कर ललकार रही थी, मेरा देवर तो उनका स्साला हुआ, तो स्साले की लेने का हक़ तो बहनोई को है ही,...
मेरे ससुराल में कोई जेंडर में भेदभाव नहीं था बस खाली छेद होना चाहिए, ... और वो बेचारा चिंचिया रहा था,... दसवे में पढ़ने वाला,...
लेकिन जैसे ही उसने झड़ना शुरू किया, ननद जी ने दो बाल्टी सादा पानी हम दोनों के ऊपर, ... उसका रंग उतरा गया मेरा नशा , तब मैं समझी की देवर नहीं मेरा भाई है
लेकिन उस समय मैं झड़ रही थी और झड़ते समय कौन मरद को छोड़ता है चाहे कल का लौंडा ही क्यों न हों,... हाँ नन्दोई जी बहुत देर बाद झड़े।
और उसके बाद मेरी ननद ने मेरे भाई के सामने खुल के छेड़ा,
" अरे मैंने सोचा की मेरे भाई से तो जब से आयी हो रोज मज़ा ले रही हो, बरस बरस का दिन होली का, तानी अपने भाई से भी ले लो "
मेरा भाई अभी भी बेचारा टाँगे फैलाये, किसी तरह दीवार का सहारा लेकर खड़ा था,... मुझसे आँखे बचा रहा था, बेचारा।
तभी मैंने तय कर लिया था की ननद के ऊपर उनके भाई को भी चढ़ाउंगी, वो भी अपने सामने ही.
और मौका मिल गया कबड्डी में जीत कर.
अब साल भर ननदों को हम भौजाइयों की बात माननी थी, चाहे उनके भाई को उन ननदों के ऊपर चढ़ाएं चाहे अपने भाई को.
लेकिन मैं समझ गयी थी की ये बात कुंवारी ननदों के लिए तो ठीक है लेकिन शादी शुदा ननदों के लिए मुश्किल, खास तौर पे मेरी ननद के लिए, बीस कोस पे ससुराल, पक्की सड़क, कभी यहाँ कभी वहां। कउनो बात होगी तो चूतड़ मटका के अपनी ससुराल चल देंगी।
लेकिन मौका मिल गया, जब ननदों की रगड़ाई हो रही थी कबड्डी में हारने के बाद,... और मौका दिया मेरी सहेलियों, चमेलिया और गुलबिया ने। दोनों मेरे साथ मेरी इन ननद को दबोचे थीं, और बोली रही थीं मुट्ठी करने को,... लेकिन झगड़ा ये था की दोनों ही गाँड़ में मुट्ठी करने की जिद करने कर रही थीं,...
लेकिन दूबे भाभी चतुर चालाक उन्होंने मेरी आँखों की प्यास पढ़ ली की कैसे ननद को पाने काबू में करूँ। बस उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, हमारे नाउन की बहू गुलबिया को ललकारा,
" अरे काहें झगड़ रही हो, ऊंट के मुंह में जीरा,... ये ननद तोहार ससुराल में न जाने कितनों क एक साथ घोटती होंगी,... एक मुट्ठी से का होगी,... दोनों पिछवाड़े डालो एक साथ, तब तो चाकर होगी, ससुरारे लौटेंगी तब सास खुस होके मानेगी अपने समधियाने की ताकत और खुदे आएँगी यहाँ कुटवाने। "
बस हो गया समझौता, गुलबिया चमेलिया दोनों मेरी ननद की गाँड़ एक साथ मारेंगी मुट्ठी से,... और मैं क्यों पीछे रहती, मैंने भी जोड़ दिया, जोर से बोली,
" सुन चमेलिया, यह गाँव क रीत है कउनो देवरानी जेठानी की बात नहीं टालती तो दूबे भौजी क हुकुम, लेकिन मैं यह नहीं देख सकती की चूत रानी के साथ जुलुम हो कउनो भेदभाव, गलत है न। यह गांव में सबको मजा देने के बाद अपने ससुराल में,... तो मैं भी ननद रानी की बुर में दोनों मुट्ठी एक साथ पेलुंगी "
और जो मैं सोचती थी वही हुआ, हम तीनों की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,
यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,...
मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया।
चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।
बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, कब्बडी के बात सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।
मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया।