अरविंदवा कहाँ है...Finally kamal ko komal bhabhi ke komal komal sharir ko bhogne ka sukh milega.
अरविंदवा कहाँ है...Finally kamal ko komal bhabhi ke komal komal sharir ko bhogne ka sukh milega.
और क्या मस्त पेश किया है...Kamal or komal ke sambhog ka bahut besabri se intejar tha. Pathko ko
ये डायलोग तो एकदम टनटना देते हैं...Not
Not fair komal ji, aadhe ghnte ki chudai 2 line me khatam kardi. Esa to hai nhi ki aadhe ghante kamal or komal ne ek dusre se kuchh bola nahi hoga. Yahan apko direct speech ka jyada se jyada use krna chahiye. Khaskar jab kahani ka main character ho to or achhe se thoda extra likh skte hai. Jese real life me bhi koi chup chap nhi krte. Vese hi yahan pr kare
एक बार में छोड़ने वाली चीज भी...Uffff garam garam gaaand ki rupae .
सास भी ननद भी...Ufffff Komalji what an erotic update. keeps one excited all the time.
उम्र का मोड़ हीं ऐसा है कि सबकुछ बदल जाता है...Bahut badhiya. Kamal or Renu ki jindagi ba
Renu Kamal ki jindagi badal di komal bhabhi ne
कंजूसी... अरे रात भर रगड़ाई होनी चाहिए..A
Ab nanad ki baari ka intejar rahega. Koi kanjusi mt krna btane me. Achhe se detail me ek ek pal ka
लेखनी तो ऐसी जबर्दस्त है कि ...धन्य हो आपकी लेखनी, कोमल मैम
ये अपडेट तो गजब का रहा।
वाह वाह शानदार
अब तो अगले अपडेट का इंतजार तो और भी शिद्दत से रहेगा।
सादर
कविता पढ़ कर दिल बाग बाग हो उठा...Thanks Komal ji
अद्भुत और बहुत बढ़िया अपडेट कोमल जी। अपने सामने चुदती हुई ननदो को देख कर कौन भोजाई अपने अरमानो को काबू में रख सकती है। और फिर कमल जैसा मुस्टंडा और उसके ऊपर से उसका लंबा मोटा हथियार देख कर कोई भी औरत खुद ही पैर खोल में उसके नीचे आ जाए मरवाने को…few line from me as token of appreciation;
बँसवाड़ी के झुरमुट में वहां महुआ के पेड़ के नीचे
कमल दबोच के भाभी को चुची को जोर से मीचे
महुआ की शराब सा नशा भाभी के योवन रस में
दौर रहा है बन के लहू कमल की हर एक नस में
सेज बनी है फूलों की और महक आम के बौर से
महक रही है फिजा सारी मदमस्त हवा के शोर से
मसल रहा है महुआ के फूल थाम के सख्त उभार
नीचे से पनियाई चूत में करता अपने लौड़े से वार
रगड़ रगड़ के चोदे भाभीऔर चख्ता भरपुर जवानी
देख के उसका जोश जवानी भाभी भी हुई दीवानी
चूत झड़ चुकी भाभी की लेकिन सुलग रहे अरमान
भाभी की मोटी गांड में फंसी है अब देवर की जान
लेकर मुँह में चूसे लौड़ा बन के अपने देवर की रांड
निहुर गई देवर के आगे अब खोल के अपनी गांड
मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा जब अंड़स गया पिछवाड़े
हचक हचक के फाड़े गांड और धक्के जोर से मारे
भाभी के दोनों छेदो में देवर ने भर दी आज मलाई
भाभी भी खूब याद करेगी देवर से ऐसी हुई ठुकाई
सचमुच... क्या सटीक कविता लिखी है...वाह आरुषि मैम
आपके कवित्व का तो जवाब नहीं।
घटना को कविता में जीवंत कर देना, ये सिर्फ आप ही कर सकती हैं।
आपकी कविता "iceing on the cake" से भी आगे निकल जाती हैं।
हार्दिक आभार
सादर