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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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बहुत बहुत आभार

जितना प्यार भाई बहन से करता है, उससे कम बहन भाई से थोड़े करती है और फिर ब्याहता बहन, हर रस भोगी, हर खेल खेली तो भैया को विपरीत रति का सुख क्यों ने दे, भाई भी तो समझ ले बहन का भी मन उतना ही करता है, जितना उसका, फिर उसे इन्सेस्ट का अपराधबोध भी नहीं होगा, कुछ अटपटा भी नहीं लगेगा, और जब मौका पायेगा तब बहन के ऊपर,

ऐसे कमेंट ही सच बोलूं तो कहानी लिखने की और उसे आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं
बचपन का साथ...
हर सुख-दुःख... खेल में साथ साथ...
काफी कुछ समानता माँ बाप द्वारा प्रदत..
तो आकर्षण स्वाभाविक है..
और कई बार खेल-खेल में भी भाई-बहन की आपसी शिकायतों में भी प्यार छुपा होता है...
तो ये तो एक कदम आगे भर हीं है...
जो उनके प्यार को और गहराई देता है..
 

motaalund

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बहुत बहुत स्वागत

बीच बीच में ऐसे आकर, कभी कभी मेरा और कहानी का विश्वास बढाती रहिये, अच्छा लगता है ,

ब्रा सच में सेक्स उद्दीपन का एक बड़ा आब्जेक्ट है और वो बहुत सी कल्पनाओं को ट्रिगर करता है। और बाथरूम में टंगी हो या डारे पर सूखती हो, चोली के पीछे क्या है, वाली भावना जागृत हो जाती है। इन्सेस्ट के किस्से मैंने सिर्फ इस कहानी में बीच बीच में लिखने शुरू किये हैं लेकिन मैं हमेशा यह सोचती हूँ की कहानी में क्या और कब के साथ क्यों और कैसे भी होना चाहिए, भाई बहन के बीच सेक्सुअल अट्रैक्शन शुरू कैसे हुआ, बढ़ा कैसे,

वरना कई बार इन्सेस्ट की कहानियों में हम मान लेते हैं की अगर पुरुष है तो उसका काम ही है उस कहानी में और उसके घर की सभी महिलाओं से देह संबध बारी बारी से बनाना, पर थोड़ा सा पृष्ठभूमि दे देने से मुझे लगता है बात ज्यादा रोचक हो जाती है ,

एक बार फिर से आभार और प्रतीक्षा रहेगी, इस कहानी पर भी और बाकी सूत्रों पर भी
ब्रा के अलावा ..
कई बार महिलाओं के सोने.. नहाने.. खाने व घर के अन्य क्रियाओं को करते हुए..
जाने अंजाने कुछ दृश्य जो अपनी छाप छोड़ जाते हैं..
वो भी कम उत्तेजक नहीं होते...
लेकिन किसी से कहना-सुनना इस विषय में दूभर है...
क्योंकि सामाजिक मान्यता जो नहीं...
वर्चुअल वर्ल्ड में कुछ ऐसे हीं दबे छिपे किस्से...
पढ़ने सुनने को मिल जाते हैं...
 

motaalund

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यह पोस्ट और इन सारे वीडियो को शेयर करते समय मुझे आपके आनेवाले कमेंट्स का ध्यान भी था और इन्तजार भी। कम से कम इसी बहाने पुराने रीत रिवाजों पे थोड़ी बात चीत हो जाती है कुछ घर गाँव की यादें उभर आती हैं।
अब तो गाँव जाने पर उजाड़ सा लगने लग जाता है...
कहाँ वो पहले चहल पहल...
शादी-ब्याह पर लोगों का मिलना जुलना... साथ साथ रीति रिवाजों के कार्य निपटाना...
और अब तो लोग गाँव छोड़ कर शहरों और कस्बों का रुख करने लगे हैं...
तो धीरे-धीरे लोग इन्हें बिसराए जा रहे हैं...
लेकिन आपका प्रयास सार्थक रहा...
 

motaalund

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may be for the main event but i feel with destination weddings and where heavy expanses are being done mariages are again expanding to two to three days, the main event of course being one day. Mehandi, Haldi, Ladies' Sangeet and Cocktail are the other parts
There is no escape route from destination wedding..
Also people enjoy it as a vacation to spare some time.
 

motaalund

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यही तो रस्मो का मजा है, छेड़ छाड़, हंसी, चिढ़ाना, मजे लेना

लेकिन एक बात है ऐसी ज्यादातर रस्मो में सिर्फ महिलाये/लड़किया ही रहती हैं इसलिए ज्यादा खुल के बातचीत, गाने और छेड़खानी होती है
जवानी के इस मोड़ पर की यही उमंगें हीं तो सारा जीवन साथ देगी...
खास कर फलाने ने ये किया.. फलाने ने वो कहा...
ऐसे हँसी ठिठोली हुई...
सब कुछ वीडियो के माध्यम से कैप्चर...
 

motaalund

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इसलिए मैंने ये सब वीडियो शेयर किये, डाक्टर मीता ने जो हल्दी लगाई वो अभी भी आम है यह दिखाने के लिए

वरना आज कल हल्दी जो एक इवेंट है, जिसका एक ड्रेस कोड होता है पुरुष पीले कुर्ते में, महिलाये भी पीली साड़ी, कुर्ते या ड्रेस में अलग से मेनू और जो नहीं होता वो है गाना, रसम, नाउन ( उसकी जगह इवेंट मैनेजर ने ले ली है ) तो इस नयी हल्दी से परिचित कुछ लोग शायद डाक्टर मीता वाली हल्दी की बात को अतिश्योक्ति, या एक फैंटेसी या एक लेस्बियन तड़का न समझे इस लिए मैंने ये तीन वीडियो भी डाले और Rites of passage के बारे में टिप्पणी भी की अब बड़े या संयुक्त परिवार की जगह जहां व्यक्ति केंद्र हो रहा है उस समय इन रीतियों का महत्व कम हो रहा है।
अभी कुछ समय पहले मड़वा गाड़ते समय ..
पाँच विवाहित पुरुषों द्वारा किए गए रस्मों में कोई ड्रेस कोड नहीं...
और भौजाइयां तो जैसे गिन गिन कर बदला ले रही थीं...
बनियान फाड़ के हल्दी पोत रही थी....
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने

लेकिन एक बार में एक कदम, पहला कदम बहन को गाभिन करने का, फिर एक बार पेट फूल जाए, फिर तो जब मायके आये

बल्कि बहन तो चाहती है सौरी मायके में ही हो और भौजी ही सौरी रखायें, तो अगर सतमासे के बाद ननद मायके आ गयी तो फिर तो बहन -भाई का खेल चालू ही रहेगा, लेकिन पहला कदम अभी सिर्फ गाभिन करने का
नाधा तो आधा...(Well begun is half done)
 

motaalund

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जब आप युवावस्था प्राप्त करना शुरू करते हैं तो विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण विकसित होना शुरू हो जाता है। अक्सर आकर्षण का पहला स्तर परिपक्व महिलाओं के प्रति होता है और पुरुषों के लिए महिला शिक्षकों से शुरू होता है और महिलाओं के लिए पुरुष शिक्षकों से शुरू होता है और धीरे-धीरे यह परिवार के सदस्यों में परिवर्तित हो जाता है क्योंकि वे आपके अधिक करीब होते हैं और अधिक सुलभ होते हैं। बढ़ते हुए युवा पुरुषों को अक्सर देखा जा सकता है कि जैसे ही उनकी मां या बहन स्नान कर लेती हैं, वे तुरंत बाथरूम की ओर भागते हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद होती है कि उनका इस्तेमाल किया हुआ अधोवस्त्र लटका हुआ या टोकरी में रखा हुआ मिलेगा, जिसे सूंघने में उन्हें आनंद आता है और अपनी कल्पना में उनका आनंद लेते हैं।
और वो गंध.. अविस्मरणीय होती है..
 

motaalund

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धन्य मैं हूँ,

आप ऐसे मित्र पाठक पा कर जो इन सूक्ष्म बिंदुओं पर न सिर्फ दृष्टि डालते हैं बल्कि उन्हें अप्रिशिएट करते हैं और टिप्पणी भी देते हैं। वरना अधिकतर लोग अगर कहानी में हर दूसरी पोस्ट में देह संबंध न हुए तो ' उन्हह' कह के किसी और कहानी का रुख पकड़ते हैं।
लेकिन कहानी का मतलब ये नहीं कि हर पैराग्राफ सेक्स से भरा हो...
उसके पीछे की पृष्ठभूमि और संवाद भी काफी मायने रखता है...
जिसमें शायद सेक्स ना हो...
पर हास्य-व्यंग्य और छेड़ छाड़ हो...
जो कहानी के रचनात्मकता को दर्शाता है...
 

motaalund

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एकदम देह संबध तो शादी के बाद के जीवन का हिस्सा हैं लेकिन असली बात है गुण कितने मिलते हैं, दाम्पत्य जीवन कैसा होगा, बेटी का आगे का जीवन कैसे रहेगा माँ की चिंता उसके बारे में ज्यादा है। और बीच बीच में फ्लैश बैक के जरिये, कहानी पीछे मुड़ के भी देखती है।
कुछ बहु-चर्चित फिल्में... जैसे शोले या फिर थ्री इडियट्स भी बीच बीच में फ़्लैश बैक के जरिये...
कहानी को आगे बढ़ाते हैं...
और क्या हीं कामयाबी पाई है...

और मां बेटी के मानवीय संबंधों को भी आपने क्या खूबी से बखान किया है...
 
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