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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Premkumar65

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ननद का वादा
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" हे जैसे आज तो मजा ले रही हो न, जल्दी ही तोहार बिटिया भी, "

मेरी बात काट के मुस्कराते हुए ननद बोली,


" अरे भौजी तोहरे मुंहे में घी गुड़, तोहार अस भौजाई सबको मिले। अरे अभी तो पेट में से अपने बाप क बदमाशी देख रही होगी, ऐन छठी के दिन, खुदे टुकुर टुकुर देख लेई की कैसे ओकर असली बाप, घचाघच्च उसकी महतारी के पेल रहा है, बस तोहार हाथ गोड़ जोड़ के, इनको छठी की रात एक बार, ,....ओकरे बाद तो हम खुदे ओके, तोहरे भतार को इसकी बिटिया के सामने पेलूँगी, कुछ गुण तोहरे भतार क बिटिया माई के पेट में से सीखेगी, कुछ बाहर आके देख देख के "


"एकदम सौरी रखावे का काम हमरे जिम्मे तो तो पक्का, ऐन छठी के दिन, भेज दूंगी इनको अपनी बिटिया के सामने ओकरी म्हातारी को, अपनी बहिनिया को चोदे रात भर, वो भी समझ जाय असली बाप कौन है "


मैंने एडवांस में गारंटी दे दी।


और होने वाली बेटी की बात सुन के या छठी की रात में ही अपनी बहन पर चढ़ाई की बात सोच के ये एकदम जोश में आ गए।

अभी तक तो बहन ही चढ़ के भाई को चोद रही थी, अब इन्होने उस की कटीली कमरिया पकड़ ली और पकड़ के ऊपर ऊपर नीचे करने लगे और थोड़ी देर में पोजीशन पलट गयी।


ऊपर ननद ही थी, लेकिन अब उसका चेहरा मेरे मरद की ओर


और वो मेरी जनम की सौतन, मेरे भतार की रखैल, दोनों हाथ मेरे मरद के कंधे पर रख के हुमच हुमच के धक्के लगा रही थी। कभी झुक के वो भाइचॉद अपने भाई को चूम लेती तो कभी अपनी दोनों चूँचियाँ उनके सीने पर रगड़ देती और उन्हें चिढ़ाती,

" क्यों भैया कैसे लग रहे हैं बहिनिया के जोबना, अरे जब से कच्ची अमिया थे तब से तुम ललचाते थे, बोलो हैं न "

पत्नी कौन जो मौके पे पति का साथ न दे तो जवाब उनकी ओर से मैंने दिया,

" जो पेट में है न, अब उसकी कच्ची अमिया देख के ललचायेंगे, तेरे भैया बेटी चोद "




" अरे ललचायेंगे क्यों, मैं खुद खोल के उसके हाथ पकड़ के अपने भैया से उसकी कच्ची अमिया कुतरवाउंगी, चूस चूस के भैया बड़ी कर देना उसकी, करोगे न काट काट के चूस के, बोलो न " मेरी ननद कौन पीछे रहने वाली, अपने भैया पर चढ़ी, गपागप गपागप उनका खूंटा घोंटती, झुक के कस के कचाक से भैया के गाल काटते बोली।


सोच सोच के वो गिनगीना रहे थे, एक होने वाली किशोरी के बारे में, माना पोस्ट डेटेड चेक था , लेकिन उन्हें कौन जल्दी थी, आज इन्वेस्ट करेंगे बाद में सूद वसूलेंगे।

सिर्फ महिलाये ही अपने भावनाये कई ढंग से नहीं अभिव्यक्त करती, पुरुष भी करते हैं और जब उनकी बहिन ने चिढ़ाया,



" कैसे करोगे बेटी के साथ ये सोच रहे हो ? "

मेरे मरद ने पलटी मारी, और जैसे एकदम कच्ची कली के साथ, वही पोज मरद ऊपर, औरत नीचे, खूंटा उन्होंने पूरा बाहर निकाल लिया और अपनी बहिनिया की रसीली गुलाबी फांको पर रगड़ने लगे,

" भैया, करो न " तड़पते सिसकते उनकी बहिनिया बोली।

लेकिन उन्होंने अंदर नहीं घुसाया और आग और बढ़ायी। सुपाड़ा अब सीधे मेरी ननद की क्लिट पे रगड़ रहा था और ननद पागल हो रही थीं

ओह्ह उफ्फ्फ हाँ करो ओह्ह आह आह्हः




चूतड़ पटक रही थीं, नाख़ून से खरोच रही थी और उनके भाई ने पूछ लिया,

" बहिनिया का करूँ ? "


" अरे बहनचोद, बेटी चोद, चोद अपने बहिन को पेल दे देखा दे जांगर " वो करीब करीब चिल्लाते हुए बोली, लेकिन मेरा मरद एकदम दुष्ट, मुझे खूब मजा आ रहा था उनकी शैतानी देख के

सुपाड़ा फांको पे रगड़ रहा था





ऊँगली से उन्होंने क्लिट को कस के मसल दिया और बोला,

" सच बोल दिलवाएगी अपनी,... "
और इस बार मेरी ननद ने उनकी बात काट दी,

" एकदम दिलवाऊंगी, चोद चोद के भोंसड़ा बना दे अपनी बेटी की चूत को, खुद अपने हाथ से पकड़ के भैया, तोहार लौंड़ा उसकी कच्ची कोरी चूत में घुसवाऊँगी लेकिन अभी उसकी महतारी को तो चोद, स्साले, बेटी चोद। "


गच्चाक

पेल दिया मेरे मरद ने और फिर क्या धक्के लगाए, दो चार धक्को में लंड पूरा अंदर और लंड के जड़ से उनकी चूत का दाना रगड़ रहे थे। कुछ देर में ही मेरी ननद झड़ने लगी लेकिन उनके धक्के नहीं रुके,


कुछ देर में ही मेरी ननद फिर जोस में और बीच बीच में वो खुद बताती,

" अरे जब जब मइके आउंगी तो तोहरे साथ, और भौजी तोहें कउनो परेशानी तो नहीं " बात ननद ने मेरी ओर मोड़ दी

" एकदम नहीं, चादर तान के सोऊंगी, एही बहाने दस पांच दिन सोने को मिल जाएगा " हँसते हुए मैं बोली।

" बस, तोहार बिटिया वो तो बगले में, देख देख के,... " ननद ने आने वाले दिनों का खाका खींच दिया

और अब मेरा मरद पागल हो गया। कोका पंडित ने जितने आसन लिखे थे उससे दो चार ज्यादा मेरे मरद को आते थे और आज उन्होंने सब के सब अपनी बहन पे आजमा लिया, निहुरा के गोद में बैठा के यहाँ तक की खड़े खड़े भी


पर हाँ जैसे मैंने उन्हें समझाया था जब वो झड़े तो मेरी ननद निहुरि, चूतड़ हवा में उठा जिससे सब बीज बच्चेदानी में जाए सीधे।

और मुझसे ज्यादा उन्हें इस बात का ख्याल था, की बहीनिया को गाभिन करना है।

ननद मेरी निहुरी हुयी, एकदम कातिक की कुतिया की तरह और वो जैसे अंदर गाँठ बंध गयी हो, मोटी, दस पंद्रह मिनट तक वैसे, जैसे कोई बोतल में डाट लगा दे कस के की एक बूँद भी बाहर न आ पाए, भैया का बीज बहन की बुर में, झड़ता रिसता, धीरे धीरे बच्चेदानी की ओर बहता,


कुछ देर में हम तीनो एक दूसरे को पकड़ के लेटे थे, बीच में मेरी ननद, एक ओर उसके भैया कस के दबोचे, दूसरी ओर से में बीच में वो। जैसे कई बार छोटे बच्चे के सोते समय, माँ और बाप दोनों ओर लेटते हैं और बीच में बच्चा, उस समय बच्चे का सुख उन दोनों के सुख से भी ज्यादा होता है, एकदम उसी तरह।


मैं अपनी थकी हुयी ननद को दुलरा रही थी, हलके हलके उसके ऊपर हाथ फेर रही थी, और सोच रही थी,

होलिका माई की बात, पांच दिन के अंदर गाभिन होने वाली बात, तो पहले दिन से लेकर पांचवे दिन तक कभी भी, और पहला दिन तो आज ही था। तो क्या पता, माँ कहती है की औरत जब गाभिन होती है तो उसको पता चल जाता है, एक अलग ही ख़ुशी उसके चेहरे पर रहती है, एक नई चमक, और देखने वाले, पहचानने वाले पहचान लेते हैं। और ननद के चेहरे को देख कर लग रहा था की वो सच में गाभिन हो गयी है।

मैं अपनी ननद को कस के पकडे थी और ननद इन्हे।
Uffff kya mast update. Dialogs are superb.
 

Premkumar65

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सुबह सबेरे
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लेकिन ननद भौजाई हों और बदमाशी न हो, बस मैंने एक हाथ से नन्द के जोबन सहलाने शुरू कर दिए और दूसरे हाथ से इनका हाथ पकड़ के इनकी बहन के उभार पे और अब हम दोनों, ननद के उभारों का मजा लेरहे थे।

ननद सोने का नाटक कर रही थीं। लेकिन मैंने उनका एक हाथ पकड़ के अपने मरद के थोड़े सोये थोड़े जागे खूंटे पर रख दिया और कौन बहन होगी जब हाथ में भाई का खूंटा आ जाए तो वो छोड़ देगी, बिना पकड़े, बिना मसले। वो मेरे मरद का मजा ले रही थी मैं उसका, मेरी हथेली ननद की चुनमुनिया पे

थोड़ी देर में ननद और ननद के भाई दोनों गरमा गए, और वैसे ही लेटे लेटे साइड से ही खेल चालू हो गया। ननद के भैया, पीछे, ननद मेरी आगे, और पीछे से ही मेरे मरद ने खूंटा ठोंक दिया।


अबकी मैं एकदम अलग थी। बस थोड़ी देर में भोर होने वाली थी और मैं जानती थी, सास नहीं है, ये भाई बहन तो मस्ती के मूड में तो सब सुबह का काम मुझे ी देखना पडेगा तो बस मैं अलसाये उन लोगों का खेल देख रही थी।

पांचवा राउंड जब ख़त्म हुआ तो चिड़िया चहचहांने लगी थीं।


बाहर पौ फूट रही थी, गाँव में सुबह जल्द ही होती है। मैं तो उठ गयी लेकिन भाई बहिन एक दूसरे से चिपके, इनकी मलाई ननद रानी के जांघों पर कुछ अभी भी बहती, कुछ जम के थक्का हो गयी थी।



सुबह काम भी बहुत होता है, रसोई का, घर का और आज मुझे दस बजे के पहले बाग़ में पहुँचना था, नाश्ते खाने का भी इंतजाम उसके पहले,

ननद रानी तो आज उठने वाली नहीं थी, ... रसोई का आधा काम कर के मैं बाहर निकली, बाहर ग्वालिन भौजी, गाय भैंस दुह रही थीं, दो बाल्टी दूध रोज निकलता था।
कमरे के बाहर से निकलते मैं ठिठक गयी, अपने कमरे के सामने से। दरवाजा आधा खुला था, सुबह तो सब मरदो का खड़ा होता है।

ये पीछे से ननद को पकड़ के सो रहे थे,... लेकिन खड़ा होने के बाद,... बस जरा सा इन्होने चूँची पकड के रगड़ा, ननद ने खुद ही टाँगे उठा दी, बस पीछे से पहले सटाया, फिर धँसाया, खेल चालू।





मैं ग्वालिन भौजी से दूध की बाल्टी ले रही थी, तभी ननद की जोर से सिसकी सुनाई पड़ी,... और फिर चीख और हल्की सी आवाज


" भैया धीरे से करो, सारी रात रगड़ के रख दिया,... हाँ ऐसे ही धीमे धीमे,... कहाँ भागी जा रही हूँ "

मैं और ग्वालिन भौजी दोनों मुस्कराये।

ननद के सिसकने की आवाज खुल कर आ रही थी, तभी इनकी धीमी से आवाज आयी, " बहिनिया, ज़रा निहुर जाओ न "

" नहीं भैया, कमर टूट रही है, इत्ते कस कस के धक्के मारे हैं तूने, तू ऊपर आ जा न " ननद की थकी थकी आवाज आ रही थी ,

और फिर थोड़ी देर में सिसकिया, कभी चीख,

मैंने ग्वालिन भाभी की ओर देखते हुए दरवाजा ठीक से उठँगा दिया, और मैं और भौजी एक दूसरे को देख के मुस्करा दिए,


लेकिन मैं समझ गयी की दोपहर तक मेरे मरद मेरे नन्दोई बन गए, ये बात सारे गाँव में फ़ैल जायेगी।


ननद को दोपहर में अपनी सहेलियों के पास जाना था था दिन भर वहीँ गप्प गोष्ठी और शाम को गाँव से बाहर छावनी में , रात में वही , कल शाम को लौटना था।

इनको भी अपने दोस्तों के पास


और मुझे बाग़ में ननद देवरो की गाँठ जुड़वाने,... लेकिन उसका हाल तो पहले ही बता चुकी हूँ। पहले मैं निकली, घंटे भर बाद वो दोनों लोग भी।

ननद आज रात बाहर रहने वाली थीं, अपने सहेलियों के संग,

जैसे कल मेरी सास नहीं थी तो बस, मैं मेरी ननद और वो, मेरा मरद।

आज रात ननद बाहर रहेंगी, सास लौट आएँगी तो बस गुजरी रात की तरह बस मैं , मेरी सास और वो , मेरा मरद

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और वो किस्सा अगले पोस्ट में, मेरी सास का ।
Super super Komalji. Waiting for next episode of Maa beta.
 

komaalrani

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komaalrani

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फागुन के दिन चार -भाग १८ मस्ती होली की, बनारस की

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट करें
 

komaalrani

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Madam Ji, mujhe ni pata comment kam kyu aa rahe h. kuch log mere jaise bhi honge. I am your readers for last 15 years. lekin comment ab kar raha hu. You are one of best writer. Love you maa'm. Keep posting. log baad me pdf dhundhte hai download karne ke liye. just like me for Nanad ki training.
baat aapki ekdm sahi hai lekin comment na aane se fir agli post likhne ya post karne ka utsaah thanda pad jaata hai.

Thanks so much for your support and comments.
 

komaalrani

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komaalrani

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motaalund

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"क्यों भैया बहुत चोद रहे थे अपनी बहिनिया को न, अब बहन चोदेगी भाई को "

wow awesome erotic narration......
very vert hot.....
अब ऐसे चोदेगी बहिनिया कि भाई को बाप बना कर हीं दम लेगी..
 

motaalund

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कोमल जी...अनाचार पर आपकी पकड़ का अब कोई मुकाबला नहीं है। ऐसे ऐसे कामुक दृश्य आपने अपनी लेखनी से बनाए हैं जो किसी और लेखक के लिए लिखना इतना सरल नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि उनके मन में ऐसे विचार नहीं होंगे लेकिन उन विचारों को अमली जामा कैसे पहनया जाता है वो आपसे बेहतर कोई नहीं जानता.
कितने ही भाई होंगे जो सुबह-सुबह अपनी बहन की बाथरूम में लटकी हुई ब्रा या पैंटी सूंघ कर अपनी मलाई उसपर बहाते हैं लेकिन उस सोच को केवल आप ही इतने सुंदर ढग से प्रस्तुत कर सकती है और बहन भी ये सब जानते हुए हुए कि ये सब किसका किया धरा है....उस ब्रा को पहन कर स्कूल या कोलाज चली जाती है और उस रस को पूरे दिन भर अपनी स्तन पे महसूस कर के अपना योवन रस बहती रहती है..बहुत सुंदर और बहुत की कामुक
और खास कर भाई बहन के सोचों को शब्दों के माध्यम से पृष्ठों पर उतारना..
और उनके बात चीत के बीच हाजिरजवाबी को दिखाना..
जैसे सचमुच वो संवाद आँखों के सामने जीवंत हो उठे...
ये काफी दुष्कर कार्य है...
और कोमल रानी हर बार सफलतापूर्वक उन दृश्यों को कामयाबी से उकेर देती हैं...
:applause::applause::laughclap::laughclap:
 

motaalund

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वाह कोमल मैम

परंपराओं का सप्रमाण वर्णन इस प्रकार आप ही कर पाती हैं। आप सच में धन्य है।

सादर
सही कहा बंधुवर...
कोमल रानी न केवल उन क्षणों को साकार करती हैं...
बल्कि यादों के कोनों को कुरेद कर उन सुनहरे पलों को ताजा कर देती हैं..
 
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