कोमल जीऔर,...
सास मेरी जो अब तक सांस थामे अपनी बहू और चन्दर की पेड़ के नीचे खड़े होकर चुदवाने का किस्सा मजे ले ले कर सुन रही थीं, हंस के बोली
" वैसे चूतड़ ऊपर किया जैसे लौंडे गाँड़ मरवाने के लिए करते हैं न "
मैं भी खिलखिला के बोली,
" हाँ एकदम वैसे ही,... आगे का हिस्सा एकदम नीचे और पिछवाड़ा ऊपर, धक्का जोरदार लगता है और पूरा अंदर तक,...
लेकिन खुले आम बगिया में जहाँ कउनो लड़का लड़की कभी भी आ सकता था ऐसे मरवाने में अलग ही मजा आ रहा था ,
कुछ देर में ही मेरी दोनों चूँची पकड़ के चंदरवा जोर जोर से धक्का मार रहा था और मैं भी उसका लंड निचोड़ लेती कभी चूतड़ से धक्के का जवाब धक्के में देती,... पन्दरह बीस मिनट रगड़ के चोदा होगा,... पहले मैं झड़ी फिर वो,... ऐसे ही मैं चूतड़ ऊपर किये उचकाए, निहुरे।
एक एक बूँद उसकी मलाई की मेरी कुप्पी में, और वो निकाल भी लिया तो भी पांच मिनट तक मैं बुर अपनी कस के निचोड़े रही, एक एक बूँद मलाई चंदरवा क आपके लिए लाइ हूँ "
आज्ञाकारी ,अच्छी बहू की तरह मैं बोली।
सास ने कैसे कोई जीभ से आइसक्रीम की कोन में से कुरेद कुरेद के, उसी तरह मेरी चुनमुनिया में से कुरेद के एक एक बूँद मलाई की खा रही थीं ,
बहुत दिन बाद जवान लौंडो की मलाई चखने का उन्हें मौका मिला था वो भी बहू की बुर से, ...
लेकिन सास कौन जो थोड़ी बहुत बदमाशी न करे और मेरी सास तो इस तरह के खेल में नंबरी थी. उनकी जीभ मेरी बिल के अंदर उन प्वॉयंट्स को भी कस कस के रगड़ रही थी जो मुझे पागल करने के लिए काफी थे , कभी वो सपड़ सपड़ चाटती तो कभी क्या कोई मर्द लंड पेलेगा उस ताकत से अपनी पूरी जीभ मेरे अंदर और होंठ उनके कस के दोनों फांकों को पकड़ के चूसते,...
मेरी हालत खराब हो रही थी, कभी चूतड़ पटकती तो कभी सिसकती तो कभी पलंग की पाटी को हाथ से पकड़ लेती,
" अरे सासू जी थोड़ा बहू को भी सेवा करने का मौका दीजिये न अभी तो आपका बेटा आपकी कुइंया में डुबकी लगाएगा ही, ... "
मैंने सासू जी से कहा,
और थोड़ी देर में हम दोनों 69 की मुद्रा में थे. चुसम चुसाई के मामले में मैं कम नहीं थी।
एक से एक खेली खायी ननद को भी पांच मिनट के अंदर चूस के झाड़ देती थी चाहे वो लाख नखड़ा करे,... लेकिन अपनी सास के आगे मैं भी हार मानती थी।
उनकी गुलाबो थी बहुत रसीली, एकदम पावरोटी की तरह फूली फूली फांके, एकदम चिपकी और खूब रसीली, खूब ताकत लगाने पर फ़ैल तो जाती थी, थी तो भोंसड़ा ही, लेकिन दसो सालों से कोई मूसल उसके अंदर नहीं गया था, सिर्फ औरतों लड़कियों से चुसवा, चटवा के इसलिए टाइट खूब थी
लेकिन इतने दिन मैं भी समझ गयी थी की मेरी सास की चुनमुनिया कहाँ से और कैसे चिल्लाती है, ...
जीभ की टिप से मैंने हलके से दोनों फूली हुयी फांको को फैलाया, जिसमे कोई मोटा लंड गया होगा तो मेरे साजन इनके पेट में आये होंगे और इसी रस्ते से निकले होंगे। साथ में अपनी लम्बी नाक से सास की क्लिट को सहला दिया,
वो एकदम बौरा गयीं,
मेरी जीभ ने उस रसकूप में डुबकी मारी, और जो शैतानी वो कर रही थीं बुर के अंदर की दीवाल पर जहाँ जहां नर्व एंडिंग्स होती हैं वहीँ कस कस के रगड़ने का
वो कांपने लगीं, बुर उनकी पनिया गयी , एक तार की चाशनी धीरे धीरे निकलने लगी और मैंने जीभ की टिप से चाट लिया
बहुत रसीली थी , शहद मात,...
मैं उन्हें किनारे ले जा के रोक देती, बेचारी सास बार बार मुझसे कहतीं
" अरे बहू झाड़ दे न एक बार, ... मेरी अच्छी बहू बस एक बार "
देह उनकी काँप रही थी एकदम कगार पर वो पहुँच जाती और मैं जीभ बाहर निकाल लेती,... चूसना रोक देती। और जैसे कांपना कम होता फिर चुसाई चालू , और थोड़ी देर में सास की हालत खराब
अबकी जो सास बोलीं तो मैं चिढ़ाते बोली
" अरे अभी हमरे सास क पूत आ रहा है, नम्बरी बहनचोद, मादरचोद, झड़वा लीजियेगा न उससे जो मजा बेटे के साथ है वो बहू के साथ थोड़ी है , ..."
ऊँगली के टिप से खूब गरमाई उनकी मुलायम बुर कुरेदते बोली,
" आ रहा होगा न मेरी सासु का लाड़ला, अपने मामा का जना, एक बार उस सांड़ का घोंट लीजिये, अपने मायके के सब मर्दों को उसके मामा को सब को भूल जाइयेगा, ये दोनों बड़ी चूँचियाँ पकड़ के जो हचक हचक के पेलेगा न, अब वही झाड़ेगा, आपको, "
मेरी सास की आँखे पूरी देह कह रही थी उन्हें भी उसी का इन्तजार है,
मैं, बल्कि हम दोनों, मैं और मेरी सास बस यही एक बात सोच रहे थे, जेठानी तो गयीं, मेरी छोटी ननद को लेकर मुम्बई, दूसरी ननद भी ससुरातिन, पांच छह दिन में वो भी अपने ससुरे, ....तो बस तो घर में खाली हम तीनो,... मैं, मेरी सास और ये, ....फिर तो दिन दहाड़े,
और मैं खुद पकड़ अपनी सास को निहुरा के चढ़ाउंगी उन्हें, कोई दिन नागा नहीं जाएगा जब माँ की बिल में बेटे का, आज तो बस,...
तबतक बाइक की आवाज सुनाई पड़ी, हल्की सी दूर से आती हुयी,
मेरी सास खिलखिलायीं, " आ गया तेरा खसम, अभी ठोकेगा मेरी समधन की बिटिया को "
"एकदम आपकी समधन ने दामाद किसलिए बनाया था उनको, इसीलिए तो लेकिन आज मेरी सास का पूत पहले मेरी सास को,... "
हँसते हुए सास की बिल में एक साथ दो ऊँगली ठेलते हुए मैंने उन्हें चिढ़ाया।
लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,...
ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,
जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,
लेकिन, लेकिन, ....एकदम पक्का उनकी बाइक की आवाज नहीं थी, उनके कदमो की भी नहीं, ...और सबसे बड़ी बात उनके आने की आहट से मेरी देह कसमसाने लगती थी, एकदम मस्ती सी भर जाती थी, खूब अच्छा अच्छा लगता था, पर आज, ...
मेरा मन आशंका से भर गया, लेकिन इनकी तरह मेरे सास को भी बिन बोले मेरे मन का डर पता चल जाता था, उन्होंने कस के अपने हाथ से मेरे हाथ को दबा दिया, जैसे कह रही हों, कुछ नहीं होगा, कुछ नहीं सब ठीक है, मैं हूँ न,
सांकल की आवाज, साथ में जोर से दरवाजे को खड़काने की आवाज आयी, मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया,नौ साढ़े नौ हो गया था, पूरे गाँव में सोता पड़ा था, और सामने मेरे,....और
यह भाग, भाग ८९, पिछले पृष्ठ (919) के अंत से शुरू होता है, कृपया वहां से लिंक कर के पढ़े। और कमेंट जरूर दें. भाग ८९ की पहली पोस्ट पृष्ठ ९१९ के सबसे अंत में है और शेष आगे के भाग यहाँ, कृपया पढ़ना पिछले पृष्ठ ९१९ से शुरू करें। धन्यवाद और कमेंट जरूर दें, बिना कमेंट के कहानी लिखने में मजा नहीं आता।
Thanks so much .Ab delhi dur nahi hai ab hamare hero delhi ko fateh kar hi dega
Mforबस साथ बनाये रखिये, अगले अपडेट्स में देखिये कहानी किधर मुड़ती है। इस पोस्ट के अंतिम भाग की आखिरी लाइन से कुछ अंदाज तो लग ही गया
और आपकी आखिरी बात एकदम सही है कमेंट्स का अभाव
पोस्ट हुए तीन दिन हो गए और करीब ७ हजार लोगो ने पढ़ भी लिया लेकिन अभी ७ लोगों के भी कमेंट नहीं आये। लेकिन ऐसे में पहले ही दिन पहले ही पन्ने पर आपका कमेंट उम्मीद भी जगाता है और उत्साहित भी करता है। बस अन्य मित्रों से भी यही अनुरोध है की भले एक लाइन लिखें , एक शब्द लिखे, लेकिन कहानी पर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराये।
एक बार फिर से आभार, धन्यवाद
I think many reader are not comfortable creating account on this forum due to privacy issue. I also created account on this forum after 4-5 years just to comment on your story. Xforum should enable some feature to like or comment on story without creating account this can increase response to forum.बस साथ बनाये रखिये, अगले अपडेट्स में देखिये कहानी किधर मुड़ती है। इस पोस्ट के अंतिम भाग की आखिरी लाइन से कुछ अंदाज तो लग ही गया
और आपकी आखिरी बात एकदम सही है कमेंट्स का अभाव
पोस्ट हुए तीन दिन हो गए और करीब ७ हजार लोगो ने पढ़ भी लिया लेकिन अभी ७ लोगों के भी कमेंट नहीं आये। लेकिन ऐसे में पहले ही दिन पहले ही पन्ने पर आपका कमेंट उम्मीद भी जगाता है और उत्साहित भी करता है। बस अन्य मित्रों से भी यही अनुरोध है की भले एक लाइन लिखें , एक शब्द लिखे, लेकिन कहानी पर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराये।
एक बार फिर से आभार, धन्यवाद
Kese nahi manega, jab komal ji manyengi to. Vese to mujhe Maa Bete ka incest pasand nhi ya jisme ek generation ka fark ho. Lekin komal ji ki story ho to sab achha lgta haiभाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
१८,८१,998
कल रात भर मेरे मरद ने अपनी सगी बहिनिया को मेरे सामने खूब हचक हचक के चोदा,
ननद मरद से पेली जाए वो भी सगी भौजाई के सामने, घर में रात भर, इतना मजा,.... चिंचिया रही थी, चोकर रही थी, चीख रही थी,
लेकिन मेरा मरद कउनो मुरव्वत नहीं, आपन सांड अस मूसल अपनी सगी बहनिया की बिल में एकदम जड़ तक, और एक दो बार नहीं छह बार, सबेरे तक ननद एकदम थेथर,
लेकिन अस चुदवासी, अस बुरिया में आग लगी थी अपने भैया का घोडा अस घोंटने के लिए की, ग्वालिन भौजी घर में थी, दरवाजा आधा खुला तो उन्ही के सामने...
और असली मजा तो ये की सिर्फ मेरे मरद का बीज ही नहीं लिया, पक्का गाभिन भी हो गयी और खुदे बोली,
" भैया नौ महीना बाद जॉन बिटीया होई तो ऐन छठी के दिन सौरी में ही तोहरे साथ ओकरे सामने, ...और जैसे वो बड़ी होई,... जे बीज लगाई फल भी तो उहे खायी "
और ये सुन के तो मेरा मरद एकदम पागल, ....कौन मरद नहीं होगा कच्ची अमिया के बारे में सोच के,
कल बहिन का नंबर लगा तो आज,...
आँख के सामने मरद अपनी सगी बहिनिया को, ननदिया को पेले,... उससे ज्यादा मजा सिर्फ एक चीज में है
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मरद अपनी महतारी पे चढ़े,... वो भी सास की बहू के सामने,और आज वो होना है, पक्का,
सास मेरी , इनकी महतारी,
खूब भरी भरी भरी देह, खेली खायी जोबन चोली में नहीं समाता, टप टप गुड़ की जलेबी की तरह रस टपकता है.
सोच सोच के मैं मस्ता रही थी, केतना मजा आएगा जब ये अपनी महतारी के भोंसडे में हुमच हुमच के,
सास कल होलिका माई के जाने के बाद बाकी सब गाँव की सासो के साथ गाँव के बाहर, एक छावनी है, औरतों की रात भर की आपस की मस्ती, जैसे आज मेरी ननद गयी हैं अपनी बियहता सहेलियों के साथ, सास आज रात को आएँगी जब मैं घर पहुंचूंगी उसीके आसपास,
कल इनको इनकी बहिनिया पे चढ़ा के जितना मजा आया था उससे ज्यादा मजा आएगा इन्हे इनकी महतारी पे चढ़ा के,
रस्ते की बँसवाड़ी, ताल पोखर, पार करते, पगडण्डी पगडंडी चलते, मैं आज दिन की बाते याद कर रही थी और रात में क्या होगा ये सोच के खुश हो रही थी,…
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शाम को लौटते हुए देर हो गयी, ननदें छोड़ ही नहीं रही थीं, अँधेरे में भी सब चालू थीं.
फिर रेनू और कमल को घर छोड़ा।
उसके पहले सुगना से बहुत देर तक, ... पठानटोली वाली हिना को वही तो छोडने जा रही थीं, तो बाकी पठानटोला क माल क हालचाल, कैसे उन सबों को अपने पुरवा में ला के, सुगना का दिमाग बहुत तेज चलता था इन सब कामों में और उस दिन दोस्ती भी अच्छी हो गयी.
रेनू कमल के यहाँ भी बात करने में लेट हो गया.
लौटते हुए मेरे दिमाग में कभी कल की बात कभी अपने सास के बारे में,...
कल रात तो अपने सामने अपनी ननद पे इन्हे चढ़वा के बहुत मज़ा आया. और ननद भी एकदम खुल के खेल रही थी, जब से होलिका माई ने पांच दिन के अंदर गाभिन होने की बात कही ऐसी गरमाई थीं की,... फिर हमने चमेलिया, गुलबिया और दूबे भाभी के सामने तीन तिरबाचा भी भरवा लिया था की अपने भैया के साथ हमरे सामने,...
और उनके भइया भी,... हमको तो लगता है पहले से कुछ लस्टम पस्टम, खुदे क़बूले की अपनी बहिनिया की ब्रा में मुट्ठ मारते थे,... लेकिन उससे ज्यादा नहीं,...
और कौन भाई नहीं होगा जो अपनी बहन को देख के न ललचाय, ... और बहन उनकी ननद मेरी थीं भी जबरदस्त, जोबन एकदम गद्दर, बड़े भी कड़े भी,और कुंवारेपन में कच्ची अमिया भी खूब कड़ी,...
मैं तो सवा सेर लड्डू मानी हूँ, पूड़ी चढ़ाउंगी, अगर हमार ननद पांच दिन में गाभिन हो गयी,..
लेकिन हमारी सास कैसे, ... वो तो बिना ज्यादा जोर जबरदस्ती के मान गयी अपने बेटे का खूंटा घोंटने के लिए. मेरी एक बात आज तक उन्होंने नहीं टाली।
लेकिन असली बात ये थी की उनका बेटा मानेगा की नहीं अपनी महतारी के ऊपर चढ़ने को, देख के ललचाना, पजामा क तम्बू बनना एक बात है लेकिन,...,
रास्ते भर मेरे दिमाग में यही उथलपुथल हो रही थी, कैसे, ...
वैसे सास हमारी अभी जबरदस्त माल थीं.
उनके समधियाने में दर्जनों का उनका नाम लेने से ही टनटना जाता है. वैसे तो चार बच्चे हैं उनके. मेरे जेठ, ये, मेरी ये ननद और छुटकी नन्द जो अभी नौवे में है और जो मेरी जेठानी के साथ शहर चली गयी है। तो इस हिसाब से तो चालीस -पैतालीस के बीच की होंगी, लेकिन लगती ३५ से एक दिन ज्यादा नहीं थी, और जोस भी उसी तरह, अरे एक भोजपुरी ऐक्ट्रेस हैं एकदम हूबहू उन्ही की तरह ट्रू कॉपी, ... जैसे लगता था जुड़वा बहने हो, कुम्भ के मेले में बिछुड़ गयी हों,... सेम टू सेम, हाँ जोबन के मामले में मेरी सास दो नंबर आगे हैं, अरे चलिए फोटो दिखा देतीं उन ऐक्ट्रेस की समझ जाइएगा, मेरी सास कैसी लगती होंगी,..
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गोरा चम्पई रंग, एकदम खुला खुला, नाचती गाती मुस्कराती काजल से लदी आँखे, भरे भरे गाल, गुलाबी होंठों से रस हरदम छलकता रहता, सुतवा नाक में कभी छोटी सी नथ तो कभी चमकती दमकती कील, माथे पर हरदम बड़ी सी लाल बिंदी, कानों में गालों को सहलाते झुमके,... जिससे जिनका ध्यान उन चिकने रसीले गालों की ओर न जाए, वो भी चला जाये।
और चिकने गालों से सरक के निगाह बस उन दो पहड़ियों पर, बल्कि पहाड़ों पर चली जाती थी,
मैंने बताया न उन ऐक्ट्रेस से भी दो नंबर आगे, ३८ डी डी। लेकिन एकदम कड़क. जैसे टेनिस वाली बाल होती हैं न स्पंजी लेकिन एकदम कड़क, दबाओ तो हलकी सी दबेंगी फिर जस की तस. दबवाया तो मेरी माँ की समधन ने न जाने कितनों से होगा, लेकिन अभी भी जस के तस. झूठ नहीं कह रही हूँ, चार पांच दिन भी तो हुए नहीं होली के, उन्होने मेरी चोली में हाथ डाल के माँ को गरियाया,
" बाप तो न जाने कौन है, इसकी महतारी को भी नहीं मालूम लेकिन गेंदा दूनो तो एकदम महतारी पे गया है। "
तो मैं क्यों छोड़ देती, मैंने भी ब्लाउज में हाथ डाल दिया उनके। खूब बड़े बड़े, कड़े. और मेरी एक बुआ सास थीं, उनकी ननद,... तो उन्होंने भी मुझे ललकारा,
" अरे तानी कस के बहुरिया,.. एहि क दूध पी पी के तोहार मरद इतना कड़क हुआ है " कड़े भी, मांसल भी और मेरी हथेली से बाहर।
ढक्कन वो भी नहीं लगाती और मैं भी. शादी के दो तीन दिन बाद ही मैंने अपनी सब ब्रा टिन के बक्से बंद कर दी और अपनी सास की तरह मैं भी बिना ढक्कन के, मेरा भी टाइम बचता, इनको भी आराम हो गया और देवर ललचाते सो अलग।
और मेरी सास ने तारीफ़ भी की,
" सही किया, इतना क्या मज़ा लेने देने वाली चीज़ को दुहरे ढक्क्न में बंद करना। "
वो लेकिन एकदम लो कट चोली पहनतीं, जरा सा झुकती तो पूरी गहराई।
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साड़ी भी मेर्री तरह कमर के नीचे ही बांधती और खूब टाइट, आगे से खूब गहरी नाभि साफ़ दिखती और पिछवाड़े से कसर मसर करते, लेफ्ट राइट करते, दोनों नितम्ब। पीछे से देखने वालों को पान के पत्ते की तरह चिकनी, खूब गोरी पीठ भी दिखती और गहरी नाली भी,... समझने वाले समझ जाते,... कामुक स्त्री की सबसे पक्की निशानी।
चूड़ियां कोहनी तक, और पायल हजार घुंघरू वाले, जब ये कभी दिन दहाड़े मेरे ऊपर चढ़े रहते, कभी कभी तो रसोई में ही। तो बस घुंघरू की आवाज हम दोनों को वार्निंग देने के लिए काफी थी।
दुबली नहीं थी, लेकिन एक इंच एक्स्ट्रा फैट भी नहीं। खूब मांसल गदरायी देह, गाल हो, जोबन हो, पिछवाड़ा,.. जो भी थोड़ा बहुत फैट था सब वहीँ।
जो एम् आई एल ऍफ़ कहते हैं न पक्की वही वाली,...
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लेकिन साला मादरचोद मेरा मरद अपनी मस्त माँ को चोदेगा की नहीं, मैं यही सोच रही थी.
सास तो मेरी मान गयी थी, वचन भी दे दिया था और एक बार वचन देकर वो मुकरने वाली नहीं थी,.. लेकिन स्साला मेरी सास का बेटा,... स्साला उसकी सब सगी चचेरी ममेरी फुफेरी बहनो पे मोहल्लों के गदहों को चढ़वाऊं, ...वो स्साला मानेगा की नहीं।
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अगले भाग इस पोस्ट के अगले पृष्ठ, पृष्ठ ९२० पर
Koi ginti nhi hai aaj ki. Komal bhabhi ne kitne devoron ko khush kiya aaj. सास की शिक्षा
( भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
यह भाग, भाग ८९, पिछले पृष्ठ के अंत से शुरू होता है, कृपया वहां से लिंक कर के पढ़े। और कमेंट जरूर दें )
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मैं यही सोच रही थी और कस के अपनी चुनमुनिया भींचे हुयी थी न जाने कितने देवरों की मलाई भरी थी उसमें,
और ये ट्रिक भी मेरी सास ने समझायी थी।
प्यारी सहेली को कस के भींच के रखने वाली,
गौने की रात के अगले दिन या शायद एक दिन बाद, खाली मैं और वो थे तो मुस्कराते हुए उन्होंने पूछा,
" सुनो बहू, वो मलाई,... मलाई साफ़ कर देती हो क्या ? "
मैं बोली कुछ नहीं पर जोर से सर हिला के ना का इशारा किया।
रात भर तो सास का बेटा चढ़ा रहता है, पुरजा पुरजा ढीला कर देता है. सुबह दो दो ननदें पकड़ कर बल्कि टांग कर बिस्तर से उठाती हैं वरना पलंग से पैर जमीन पर नहीं रखा जाता। तो साफ़ करने की ताकत किसमें बचती।
सास जोर से मुस्करायीं और हल्के से बोलीं,
" साफ़ करना भी मत, मलाई को एकदम अंदर,... बुर अपनी कस के सिकोड़, जितनी देर तक मलाई अंदर रहेगी उतना ही फायदा होगा। बस कस के निचोड़ना जैसे मुतवास लगती है और मूतने की जगह नहीं,.. कोई आड़ नहीं,... तो का करती हो, सिकोड़ के, ....बस उसी तरह "
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मैंने हाँ में सर हिलाया, फिर एक परेशानी मन में आयी और मैंने सास के सामने उगल दी.
" लेकिन आप, चलिए आप से का छिपाना, ढकना,... लेकिन और गाँव की सास, ननद जेठानी सब रहती हैं। केतनो कस के निचोड़ूंगी, रात भर क,... कहीं एक दो बूँद सरक के रेंग के,... "
सास मेरी पहले तो खूब हंसती रहीं फिर दुलरा के मुझे चूम लिया और बोलीं,
" अरे तुम सच में बहुत भोली हो. अरे सुहागिन की यही दो तो निशानी है, मांग में सिन्दूर खूब भरभराता रहे, और नीचे दरार में मलाई बजबजाती रहे. अरे तोहार महतारी भेजी काहें हैं,... यही मलाई खाने को। "
इस मामले में मेरी माँ और सासू माँ में कोई फरक नहीं था। जब बिदाई के समय बाकी माँ बेटी को पकड़ के " अरे मोर बहिनी ' कह के रोती हैं,... वो मेरे कान में बोल रही थीं,
" जाओ रोज मलाई मिलेगी खाने को। "
और सासू जी कुछ समझा के कुछ प्रैक्टिस करा के,... रसोई में हम दोनों होते तो वो हंस के बोलतीं,
" निचोड़ कस के "
और मैं निचोड़ लेती दोनों फांके कस के, फिर चार पांच मिनट बाद वो बोलतीं, चल ढीली कर लेकिन धीरे धीरे,.. वो बढ़ के दस पंद्रह मिनट हो गया,... फिर और,
और अब तो जो पंजा लड़ाते हैं उन के पंजे में जितनी ताकत होती है, कोई हाथ नहीं छुड़ा पाता, झुका नहीं पाता उससे ज्यादा मेरी दोनों फांको में, मेरी चुनमुनिया में थीं।
आज कितने देवर, ...और सब की मलाई निचोड़ निचोड़ के मेरी बिल में भरी थी, मजाल की एक बूँद बाहर छलक जाए। मैं मुस्करायी सबसे बाद में कमल चढ़ा था। अरे अँधेरा होने लगा था,... बहनचोद क खाली औजार गदहा छाप नहीं था, कटोरी भर मलाई भी उगला था स्साले ने। जो बह के जांघ पे गयी अब तक चिपचिपा रही है.
और सबसे पहले बिट्टू, वो भी लीना और सुगना की बदमाशी,...
बताया तो था, लीना एकदम कच्ची कुँवारी और बिट्टू कमल से भी बड़ा उम्र में, लेकिन सुगना भौजी ने लीना को न जाने का घुट्टी पिलाई की वो खुद ही अपने सगे भाई के सामने टांग फ़ैलाने को तैयार,... और खूब मस्त भाई बहन की चुदाई,... जब मैं पहुंची उन दोनों के पास तो थोड़ी देर पहले ही बिट्टू ने अपनी छोटी सगी बहन की, कुतिया बना के लेना शुरू किया था, हचक के पेल रहा था, सुगना के सामने अपनी बहिनिया को।
ननद भाई से चुद रही हो और भौजाई छेड़ें नहीं।
मैंने और फिर सुगना ने लीना को चिढ़ाना शुरू किया। पहली बार फटी थी, दो बार की चुदाई के बाद थोड़ी देर में लीना थक कर चूर हो गयी। लेकिन बिट्टू का फिर से फनफनाने लगा।
मैंने ही छेड़ा, " क्यों लीना ले ले, फिर से खड़ा हो गया है। "
सुगना की ओर देख के लीना हंस के बोली , नहीं अब भौजी क नंबर।
सुगना सच में रस क जलेबी थी, पोर पोर से रस चूता था। और बातों में देखने में भी, बस देखने वाला निढाल, लेकिन उसने तीर मेरी ओर मोड़ दिया,
" अरे नयकी भौजी क नंबर लगावा पहले,... छोट क नंबर पहले और हम मना थोड़े ही कर रहे हैं,... "
और मैं भी गरमा गयी थी पहले रेनू की जो जबरदस्त चुदाई फिर गाँड़ मराई कमल ने की थी, फिर पठानटोली वाली की जो रगड़ाई हुयी थी, और ननद की बोलती बंद करने में मैं पीछे नहीं रहने वाली थी,
बिट्टू को चिढ़ाते बोली,
" ये स्साला बहन चोद ये क्या चोदेगा मुझे, मैं इसको चोद भी दूंगी और मुझे बिना झाड़े झड़ा तो इसकी और इसकी बहन दोनों की गाँड़ मारूंगी।"
मुझे न बिट्टू की गाँड़ मारने का मौका मिला न लीना का, कुछ देर बाद बिट्टू ऊपर था,.... और क्या जबरदस्त धक्के लगाए,...
उसके बाद तो कम्मो का भाई पंकज,
रूपा और सोना का भाई मुन्ना,...
राजा,...
और दोपहर बाद जब ननदें सब चुद गयीं तीन तीन चार बार, पहले अपने सगे चचेरे भाइयों से , फिर गाँव के बाकी लौंडों से,... तो कुछ नए नए जवान हो रहे लौंडों का जोश कुछ भौजाइयों के जोबन का रस और कुछ दूबे भाभी के शिलाजीत वाले लड्डू का असर ,
जैसे गुड़ में चींटे लगते हैं वैसे सब देवर मेरे पीछे, तीनों छेद के बाद भी
और ननदें, ख़ास तौर से जिनकी आज पहली बार फटी थी जिनमे सबसे आगे रेनू और बेला, अपने भाइयों के पीछे पड़ गयीं,
" अगर तुम सब को अपनी अपनी बहन का मजा चाहिए न तो नयकी भौजी को दूध से नहला दो आज "
बस सब लड़के एक साथ,... और भौजाई सब भी अपने देवरों के साथ,... दर्जन भर से ऊपर लौंडे एक साथ, ...
मैं कस के चुनमुनिया भींचे, आज की मस्ती सोच के मुस्कराते जल्दी जल्दी घर की ओर चल रही थी , अँधेरा तो था लेकिन अब आसमान में चाँद मामा भी टार्च लाइट फेंक रहे थे। लग रहा था घरों में सास लोग अभी पहुंची नहीं थी.
बहुओं के तेज तेज बोलने की आवाज आ रही थी.
लेकिन जब मैं घर पहुंची तो दरवाजा खुला,... और अंदर से इनके फेवरिट खाने की और ताजे गन्ने के रस से बने बखीर के हलके हलके पकने की मीठी मीठी महक आ रही थी।
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भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
यह भाग, भाग ८९, पिछले पृष्ठ के अंत से शुरू होता है, कृपया वहां से लिंक कर के पढ़े। और कमेंट जरूर दें
Is saas bahu ki jodi ko najar na lageसास मेरी आ गयी
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सास मेरी अपनी आनेवाली बहुओं के लिए घोड़े ऐसे लड़के जनने के अलावा एक काम और बहुत अच्छा करती थीं, खाना बनाने का।
घर के बाहर से उनके हाथ की महक आ रही थी। थोड़ी देर तक बस मैं घर के बाहर खड़ी अधखुले दरवाजे से खाने की महक सूंघती रही, चने की दाल,... एकदम मेरी सास की पेसल डिश और उससे भी बढ़के सास के बेटे की सबसे फेवरिट, जिस दिन उनसे कोई बात मनवांनी हो, उलटा सीधा काम करवाना हो बस चने की यही पेसल दाल, गुड़, नारियल,... एकदम मेरी सास की स्टाइल की। खूब धीमी आंच पे आराम से पकती थी।
और बात करने में भी सिखाने में भी, ...चुदाई के बाद जो मेरी सास को अच्छी लगती थी वो एकदम शुद्ध देसी गाँव के खाना बनाने की तरकीब सिखाने की.
मैं कई बात गड़बड़ करती थी, बोलती भी थी खुद मैं की मैं नहीं सीख पा रही तो वो हंस के बोलती थीं,
" पहली बार खूंटे पे चढ़ के चोदा था तो क्या एक बार में ही सब गुर सीख गयी थी का ? अरे चुद तो हर कोई जाती है गौने की रात, ... लेकिन असली खेल तो तब शुरू हो जाता है जब औरत खुद चढ़ के चोदना शुरू करती है, मर्द को मजे दे दे के, खुद मजे ले ले के चुदवाती है और उसको सीखने में टाइम लगता ही है.
मेरी सास को चार पांच साल लगा था मुझे रसोई की सब बात सिखाने में, तू तो साल भर में ही सोलह आने में चौदह आने सीख गयी है, बाकी भी जल्द ही सीख जायेगी, बल्कि मुझसे आगे निकल जायेगी। "
धीरे से मैंने दरवाजा खोला, सास जी अपना घर का बनाया ताजा हाथ से कूटा पीसा मसाला सब्जी में छिड़क के मिला रही थीं।
पीछे से मैंने उन्हें दबोच लिया, चार चार बच्चो को दूध पिलाने के बाद भी मेरे सास के जोबन जबरदस्त थे, सीधे मेरी हाथ वहीँ। धीरे धीरे पकती दाल, हलकी आंच पे बन रही बखीर और सब्जी की महक के बीच भी मेरी नाक ने सूंघ लिया,
कन्या रस बल्कि महिला रस
और मैं समझ गयी, सास लोगों के कल रात और आज खूब आपस में मस्ती की, और बस उसको जांचने का एक ही तरीका था मेरी सास ने किसकी किसकी चाशनी चाटी।
मैंने सास को पलटा और मेरे होंठ सीधे उनके होंठों पे, एकदम चिपक के चुम्मी,
मेरी चचिया सास,... पश्चिम पट्टी वाली मुन्ना क महतारी, ...और हम लोगो की ओर की दो और सास की चाशनी तो मैं साफ़ साफ पहचान गयी,...
और जितना मिला सब चाट भी गयी. खूब स्वादिष्ट, गाढ़ी,...
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होली के दिन चार पांच दिन ही तो हुए,... सुबह सुबह मैंने होली की सुबह झुक के सास का पैर छूने की कोशिश की, तो मेरी जेठानी ने उकसाया,
" अरे छुटको, आज सास के गोड़ लगने का नहीं गोड़ के बीच में,... "
और बात साफ़ कर दी मेरी सास से थोड़ी ही छोटी उनकी खास सहेली, वही मुन्ना क महतारी,... मेरा सर जबरन मेरी सास की जाँघों के बीच चिपकाते बोलीं,
" अरे बहू, आज बरस बरस क दिन, तोहार पहली होली, तानी अपने सैंया क मातृभूमि क तो दर्शन कर लो, जहाँ से तोहार मर्द निकले हैं, बल्कि स्वाद ले लो "
फिर एक दो सास ने और, .. और मेरी सास ने भी कस के मेरा सर पकड़ के मेरे साजन की मातृभूंमि पे,... और मेरी सास की जाँघों की पकड़ तो लोहे की सँड़सी मात,
बहुत तेज महक मेरी नथुनों में,... समझ तो गयी मैं, सास अभी अभी,... 'कर' के और स्वाद भी,... लेकिन पकड़ इतनी थी की, ...
" अरे होली क परसाद है सास क " एक सास ने चिढ़ाया, चाट ले चाट ले,..
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और मैं चाटने चूसने लगी,... कुछ देर हलके हलके, फिर कस कस के,. सास की मांसल फांको को अपने होंठों के बीच दबोच के,...
सात आठ मिनट के बाद वहीँ मुन्ना क महतारी, मेरी सास की खास सहेली,...
फिर चचिया सास, ... कुछ ने तो खड़े खड़े, और कुछ ने जमीन पर लिटा के ऊपर चढ़ के और बीच में कोई सास बोलती भी,
" नयको, पहचान कौन "....
घंटे भर से ऊपर,... दर्जन भर से ज्यादा ही सास रही होंगी.
तो उस दिन से है मैं गाँव की सब सास के निचले होंठ की महक स्वाद सब पहचान गयी. ऊपर से मेरी सास चढ़ातीं जोर से,
" बहू झाड़ दे अच्छी तरह से, देखा दे हमार बहुरिया हर चीज में नंबर वन है। "
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तो आज सास के होंठों पे मैं उन गांव वाली सास लोगों की चाशनी का स्वाद पहचान रही थी.
लगे हाथ मैंने सास की साड़ी भी उठा दी, और अपनी हथेली वहां पे रगड़ने लगी, वहां भी परनाला बह रहा था. मतलब सास जी ने चाटा भी था, चटवाया भी था, खूब मस्ती की थी उन लोगों ने आपस में।
लेकिन जैसे मैंने उनके मुंह से अपना मुंह उठाया, और होंठों पर लगी चाशनी को जीभ से चाट लिया।
सास मेरी जोर से मुस्करायीं। लेकिन मैं उनसे उनकी कल की रात का हाल चाल पूछ पाती उन्होंने मुझसे मेरे दिन का हाल पूछ लिया,
" कुछ हुआ रेनुआ का "
और जब मैंने उन्हें बताया की उसके भाई कमल ने मेरे सामने, ...मैंने ही चढ़ा के उसे अपने और चमेलिया के सामने,.. रेनुआ पर चढ़वाया, रेनू की फटी भी, गाँड़ भी कमलवा ने मारी, और उसके बाद भी, ...कमल ने पठान टोले वाली हिना की भी फाड़ी और उसकी भी गांड मारी। रेनू कमल तो अब मरद मेहरारू मात, रेनू खुदे चिपकी रहती है। दोनों को घर छोड़ के ही आयीं "
रेनू की बात सुन के मेरी सास खुश नहीं महा खुश, खूब आसिषा उन्होंने। बोली, तोहार नाम तो होई ही तोहरे साथ तोहरी सास क भी, बता नहीं सकती रेनुआ क महतारी केतना खुश होगी।
और मेरी सास पठान टोले वाली बात सुन के तो एकदम निहाल,
' बहुत बढ़िया की, सब तम्बू कनात ताने, ...अरे गाँव क बिटिया कतो गाँव में पर्दा करती है, कुछ तो मायके ससुरार में फर्क होना चाहिए,... कउनो बचनी नहीं चाहिए, "
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और मारे ख़ुशी के आसीर्बाद देने के लिए उन्होंने मुझे पकड़ के सीधे झुका के,
मेरे साजन के मातृभूमि पे जहाँ आज मेरे साजन की घर वापसी होने वाली थी,... खूब चाशनी थी, एक तार वाली गाढ़ी रसीली मेरी सास की,... और मैंने जी भर के चाटा,
लेकिन अब मेरी सास की बारी थी, अपनी साड़ी कमर तक उठा के मैं शरारत भरी आवाज में बोली
" आपके लिए पंच गव्य लायी हूँ " मेरी बुर में मलाई बजबजा रही थी कुछ रोकने के बाद भी छलक के बुर की फांको पे चिपकी
मेरे बिना कुछ कहे वो झुक गयीं और सीधे मुंह लगा लिया लेकिन खुश होके,... मेरी आँखों में आँख डाल के बोलीं
" पांच लौंडो का "
" अरे नहीं आठ, और सबसे बाद में कमल का है तो सबसे पहले उसीका स्वाद मिलेगा " और उनका सर पकड़ के अपनी जाँघों के बीच ,
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Mfor
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wait for next few episodes and story may take a turn, last part itself has already given an indication and yes i am aware of the aversion of many readers, to that aspect,Kese nahi manega, jab komal ji manyengi to. Vese to mujhe Maa Bete ka incest pasand nhi ya jisme ek generation ka fark ho. Lekin komal ji ki story ho to sab achha lgta hai
Ekdam sahi kaha aapneIs saas bahu ki jodi ko najar na lage