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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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. सास की शिक्षा

(
भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
यह भाग, भाग ८९, पिछले पृष्ठ के अंत से शुरू होता है, कृपया वहां से लिंक कर के पढ़े। और कमेंट जरूर दें )
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मैं यही सोच रही थी और कस के अपनी चुनमुनिया भींचे हुयी थी न जाने कितने देवरों की मलाई भरी थी उसमें,

और ये ट्रिक भी मेरी सास ने समझायी थी।

प्यारी सहेली को कस के भींच के रखने वाली,

गौने की रात के अगले दिन या शायद एक दिन बाद, खाली मैं और वो थे तो मुस्कराते हुए उन्होंने पूछा,

" सुनो बहू, वो मलाई,... मलाई साफ़ कर देती हो क्या ? "

मैं बोली कुछ नहीं पर जोर से सर हिला के ना का इशारा किया।

रात भर तो सास का बेटा चढ़ा रहता है, पुरजा पुरजा ढीला कर देता है. सुबह दो दो ननदें पकड़ कर बल्कि टांग कर बिस्तर से उठाती हैं वरना पलंग से पैर जमीन पर नहीं रखा जाता। तो साफ़ करने की ताकत किसमें बचती।

सास जोर से मुस्करायीं और हल्के से बोलीं,
" साफ़ करना भी मत, मलाई को एकदम अंदर,... बुर अपनी कस के सिकोड़, जितनी देर तक मलाई अंदर रहेगी उतना ही फायदा होगा। बस कस के निचोड़ना जैसे मुतवास लगती है और मूतने की जगह नहीं,.. कोई आड़ नहीं,... तो का करती हो, सिकोड़ के, ....बस उसी तरह "

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मैंने हाँ में सर हिलाया, फिर एक परेशानी मन में आयी और मैंने सास के सामने उगल दी.

" लेकिन आप, चलिए आप से का छिपाना, ढकना,... लेकिन और गाँव की सास, ननद जेठानी सब रहती हैं। केतनो कस के निचोड़ूंगी, रात भर क,... कहीं एक दो बूँद सरक के रेंग के,... "

सास मेरी पहले तो खूब हंसती रहीं फिर दुलरा के मुझे चूम लिया और बोलीं,

" अरे तुम सच में बहुत भोली हो. अरे सुहागिन की यही दो तो निशानी है, मांग में सिन्दूर खूब भरभराता रहे, और नीचे दरार में मलाई बजबजाती रहे. अरे तोहार महतारी भेजी काहें हैं,... यही मलाई खाने को। "

इस मामले में मेरी माँ और सासू माँ में कोई फरक नहीं था। जब बिदाई के समय बाकी माँ बेटी को पकड़ के " अरे मोर बहिनी ' कह के रोती हैं,... वो मेरे कान में बोल रही थीं,

" जाओ रोज मलाई मिलेगी खाने को। "


और सासू जी कुछ समझा के कुछ प्रैक्टिस करा के,... रसोई में हम दोनों होते तो वो हंस के बोलतीं,

" निचोड़ कस के "

और मैं निचोड़ लेती दोनों फांके कस के, फिर चार पांच मिनट बाद वो बोलतीं, चल ढीली कर लेकिन धीरे धीरे,.. वो बढ़ के दस पंद्रह मिनट हो गया,... फिर और,

और अब तो जो पंजा लड़ाते हैं उन के पंजे में जितनी ताकत होती है, कोई हाथ नहीं छुड़ा पाता, झुका नहीं पाता उससे ज्यादा मेरी दोनों फांको में, मेरी चुनमुनिया में थीं।

आज कितने देवर, ...और सब की मलाई निचोड़ निचोड़ के मेरी बिल में भरी थी, मजाल की एक बूँद बाहर छलक जाए। मैं मुस्करायी सबसे बाद में कमल चढ़ा था। अरे अँधेरा होने लगा था,... बहनचोद क खाली औजार गदहा छाप नहीं था, कटोरी भर मलाई भी उगला था स्साले ने। जो बह के जांघ पे गयी अब तक चिपचिपा रही है.

और सबसे पहले बिट्टू, वो भी लीना और सुगना की बदमाशी,...

बताया तो था, लीना एकदम कच्ची कुँवारी और बिट्टू कमल से भी बड़ा उम्र में, लेकिन सुगना भौजी ने लीना को न जाने का घुट्टी पिलाई की वो खुद ही अपने सगे भाई के सामने टांग फ़ैलाने को तैयार,... और खूब मस्त भाई बहन की चुदाई,... जब मैं पहुंची उन दोनों के पास तो थोड़ी देर पहले ही बिट्टू ने अपनी छोटी सगी बहन की, कुतिया बना के लेना शुरू किया था, हचक के पेल रहा था, सुगना के सामने अपनी बहिनिया को।


ननद भाई से चुद रही हो और भौजाई छेड़ें नहीं।

मैंने और फिर सुगना ने लीना को चिढ़ाना शुरू किया। पहली बार फटी थी, दो बार की चुदाई के बाद थोड़ी देर में लीना थक कर चूर हो गयी। लेकिन बिट्टू का फिर से फनफनाने लगा।


मैंने ही छेड़ा, " क्यों लीना ले ले, फिर से खड़ा हो गया है। "


सुगना की ओर देख के लीना हंस के बोली , नहीं अब भौजी क नंबर।

सुगना सच में रस क जलेबी थी, पोर पोर से रस चूता था। और बातों में देखने में भी, बस देखने वाला निढाल, लेकिन उसने तीर मेरी ओर मोड़ दिया,

" अरे नयकी भौजी क नंबर लगावा पहले,... छोट क नंबर पहले और हम मना थोड़े ही कर रहे हैं,... "

और मैं भी गरमा गयी थी पहले रेनू की जो जबरदस्त चुदाई फिर गाँड़ मराई कमल ने की थी, फिर पठानटोली वाली की जो रगड़ाई हुयी थी, और ननद की बोलती बंद करने में मैं पीछे नहीं रहने वाली थी,

बिट्टू को चिढ़ाते बोली,

" ये स्साला बहन चोद ये क्या चोदेगा मुझे, मैं इसको चोद भी दूंगी और मुझे बिना झाड़े झड़ा तो इसकी और इसकी बहन दोनों की गाँड़ मारूंगी।"

मुझे न बिट्टू की गाँड़ मारने का मौका मिला न लीना का, कुछ देर बाद बिट्टू ऊपर था,.... और क्या जबरदस्त धक्के लगाए,...

उसके बाद तो कम्मो का भाई पंकज,

रूपा और सोना का भाई मुन्ना,...

राजा,...

और दोपहर बाद जब ननदें सब चुद गयीं तीन तीन चार बार, पहले अपने सगे चचेरे भाइयों से , फिर गाँव के बाकी लौंडों से,... तो कुछ नए नए जवान हो रहे लौंडों का जोश कुछ भौजाइयों के जोबन का रस और कुछ दूबे भाभी के शिलाजीत वाले लड्डू का असर ,

जैसे गुड़ में चींटे लगते हैं वैसे सब देवर मेरे पीछे, तीनों छेद के बाद भी

और ननदें, ख़ास तौर से जिनकी आज पहली बार फटी थी जिनमे सबसे आगे रेनू और बेला, अपने भाइयों के पीछे पड़ गयीं,

" अगर तुम सब को अपनी अपनी बहन का मजा चाहिए न तो नयकी भौजी को दूध से नहला दो आज "

बस सब लड़के एक साथ,... और भौजाई सब भी अपने देवरों के साथ,... दर्जन भर से ऊपर लौंडे एक साथ, ...



मैं कस के चुनमुनिया भींचे, आज की मस्ती सोच के मुस्कराते जल्दी जल्दी घर की ओर चल रही थी , अँधेरा तो था लेकिन अब आसमान में चाँद मामा भी टार्च लाइट फेंक रहे थे। लग रहा था घरों में सास लोग अभी पहुंची नहीं थी.




बहुओं के तेज तेज बोलने की आवाज आ रही थी.


लेकिन जब मैं घर पहुंची तो दरवाजा खुला,... और अंदर से इनके फेवरिट खाने की और ताजे गन्ने के रस से बने बखीर के हलके हलके पकने की मीठी मीठी महक आ रही थी।
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भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
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सास मेरी आ गयी

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सास मेरी अपनी आनेवाली बहुओं के लिए घोड़े ऐसे लड़के जनने के अलावा एक काम और बहुत अच्छा करती थीं, खाना बनाने का।

घर के बाहर से उनके हाथ की महक आ रही थी। थोड़ी देर तक बस मैं घर के बाहर खड़ी अधखुले दरवाजे से खाने की महक सूंघती रही, चने की दाल,... एकदम मेरी सास की पेसल डिश और उससे भी बढ़के सास के बेटे की सबसे फेवरिट, जिस दिन उनसे कोई बात मनवांनी हो, उलटा सीधा काम करवाना हो बस चने की यही पेसल दाल, गुड़, नारियल,... एकदम मेरी सास की स्टाइल की। खूब धीमी आंच पे आराम से पकती थी।

और बात करने में भी सिखाने में भी, ...चुदाई के बाद जो मेरी सास को अच्छी लगती थी वो एकदम शुद्ध देसी गाँव के खाना बनाने की तरकीब सिखाने की.

मैं कई बात गड़बड़ करती थी, बोलती भी थी खुद मैं की मैं नहीं सीख पा रही तो वो हंस के बोलती थीं,

" पहली बार खूंटे पे चढ़ के चोदा था तो क्या एक बार में ही सब गुर सीख गयी थी का ? अरे चुद तो हर कोई जाती है गौने की रात, ... लेकिन असली खेल तो तब शुरू हो जाता है जब औरत खुद चढ़ के चोदना शुरू करती है, मर्द को मजे दे दे के, खुद मजे ले ले के चुदवाती है और उसको सीखने में टाइम लगता ही है.


मेरी सास को चार पांच साल लगा था मुझे रसोई की सब बात सिखाने में, तू तो साल भर में ही सोलह आने में चौदह आने सीख गयी है, बाकी भी जल्द ही सीख जायेगी, बल्कि मुझसे आगे निकल जायेगी। "


धीरे से मैंने दरवाजा खोला, सास जी अपना घर का बनाया ताजा हाथ से कूटा पीसा मसाला सब्जी में छिड़क के मिला रही थीं।

पीछे से मैंने उन्हें दबोच लिया, चार चार बच्चो को दूध पिलाने के बाद भी मेरे सास के जोबन जबरदस्त थे, सीधे मेरी हाथ वहीँ। धीरे धीरे पकती दाल, हलकी आंच पे बन रही बखीर और सब्जी की महक के बीच भी मेरी नाक ने सूंघ लिया,

कन्या रस बल्कि महिला रस

और मैं समझ गयी, सास लोगों के कल रात और आज खूब आपस में मस्ती की, और बस उसको जांचने का एक ही तरीका था मेरी सास ने किसकी किसकी चाशनी चाटी।

मैंने सास को पलटा और मेरे होंठ सीधे उनके होंठों पे, एकदम चिपक के चुम्मी,


मेरी चचिया सास,... पश्चिम पट्टी वाली मुन्ना क महतारी, ...और हम लोगो की ओर की दो और सास की चाशनी तो मैं साफ़ साफ पहचान गयी,...

और जितना मिला सब चाट भी गयी. खूब स्वादिष्ट, गाढ़ी,...
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होली के दिन चार पांच दिन ही तो हुए,... सुबह सुबह मैंने होली की सुबह झुक के सास का पैर छूने की कोशिश की, तो मेरी जेठानी ने उकसाया,

" अरे छुटको, आज सास के गोड़ लगने का नहीं गोड़ के बीच में,... "
और बात साफ़ कर दी मेरी सास से थोड़ी ही छोटी उनकी खास सहेली, वही मुन्ना क महतारी,... मेरा सर जबरन मेरी सास की जाँघों के बीच चिपकाते बोलीं,

" अरे बहू, आज बरस बरस क दिन, तोहार पहली होली, तानी अपने सैंया क मातृभूमि क तो दर्शन कर लो, जहाँ से तोहार मर्द निकले हैं, बल्कि स्वाद ले लो "


फिर एक दो सास ने और, .. और मेरी सास ने भी कस के मेरा सर पकड़ के मेरे साजन की मातृभूंमि पे,... और मेरी सास की जाँघों की पकड़ तो लोहे की सँड़सी मात,

बहुत तेज महक मेरी नथुनों में,... समझ तो गयी मैं, सास अभी अभी,... 'कर' के और स्वाद भी,... लेकिन पकड़ इतनी थी की, ...

" अरे होली क परसाद है सास क " एक सास ने चिढ़ाया, चाट ले चाट ले,..

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और मैं चाटने चूसने लगी,... कुछ देर हलके हलके, फिर कस कस के,. सास की मांसल फांको को अपने होंठों के बीच दबोच के,...

सात आठ मिनट के बाद वहीँ मुन्ना क महतारी, मेरी सास की खास सहेली,...

फिर चचिया सास, ... कुछ ने तो खड़े खड़े, और कुछ ने जमीन पर लिटा के ऊपर चढ़ के और बीच में कोई सास बोलती भी,

" नयको, पहचान कौन "....

घंटे भर से ऊपर,... दर्जन भर से ज्यादा ही सास रही होंगी.

तो उस दिन से है मैं गाँव की सब सास के निचले होंठ की महक स्वाद सब पहचान गयी. ऊपर से मेरी सास चढ़ातीं जोर से,


" बहू झाड़ दे अच्छी तरह से, देखा दे हमार बहुरिया हर चीज में नंबर वन है। "

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तो आज सास के होंठों पे मैं उन गांव वाली सास लोगों की चाशनी का स्वाद पहचान रही थी.


लगे हाथ मैंने सास की साड़ी भी उठा दी, और अपनी हथेली वहां पे रगड़ने लगी, वहां भी परनाला बह रहा था. मतलब सास जी ने चाटा भी था, चटवाया भी था, खूब मस्ती की थी उन लोगों ने आपस में।

लेकिन जैसे मैंने उनके मुंह से अपना मुंह उठाया, और होंठों पर लगी चाशनी को जीभ से चाट लिया।

सास मेरी जोर से मुस्करायीं। लेकिन मैं उनसे उनकी कल की रात का हाल चाल पूछ पाती उन्होंने मुझसे मेरे दिन का हाल पूछ लिया,

" कुछ हुआ रेनुआ का "

और जब मैंने उन्हें बताया की उसके भाई कमल ने मेरे सामने, ...मैंने ही चढ़ा के उसे अपने और चमेलिया के सामने,.. रेनुआ पर चढ़वाया, रेनू की फटी भी, गाँड़ भी कमलवा ने मारी, और उसके बाद भी, ...कमल ने पठान टोले वाली हिना की भी फाड़ी और उसकी भी गांड मारी। रेनू कमल तो अब मरद मेहरारू मात, रेनू खुदे चिपकी रहती है। दोनों को घर छोड़ के ही आयीं "

रेनू की बात सुन के मेरी सास खुश नहीं महा खुश, खूब आसिषा उन्होंने। बोली, तोहार नाम तो होई ही तोहरे साथ तोहरी सास क भी, बता नहीं सकती रेनुआ क महतारी केतना खुश होगी।

और मेरी सास पठान टोले वाली बात सुन के तो एकदम निहाल,


' बहुत बढ़िया की, सब तम्बू कनात ताने, ...अरे गाँव क बिटिया कतो गाँव में पर्दा करती है, कुछ तो मायके ससुरार में फर्क होना चाहिए,... कउनो बचनी नहीं चाहिए, "

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और मारे ख़ुशी के आसीर्बाद देने के लिए उन्होंने मुझे पकड़ के सीधे झुका के,


मेरे साजन के मातृभूमि पे जहाँ आज मेरे साजन की घर वापसी होने वाली थी,... खूब चाशनी थी, एक तार वाली गाढ़ी रसीली मेरी सास की,... और मैंने जी भर के चाटा,



लेकिन अब मेरी सास की बारी थी, अपनी साड़ी कमर तक उठा के मैं शरारत भरी आवाज में बोली

" आपके लिए पंच गव्य लायी हूँ " मेरी बुर में मलाई बजबजा रही थी कुछ रोकने के बाद भी छलक के बुर की फांको पे चिपकी

मेरे बिना कुछ कहे वो झुक गयीं और सीधे मुंह लगा लिया लेकिन खुश होके,... मेरी आँखों में आँख डाल के बोलीं

" पांच लौंडो का "

" अरे नहीं आठ, और सबसे बाद में कमल का है तो सबसे पहले उसीका स्वाद मिलेगा " और उनका सर पकड़ के अपनी जाँघों के बीच ,
 
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. सास के लिए चाशनी- बिट्टू

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और सास ने कस के चूसना शुरू कर दिया।

सासू जी चूसने चाटने में नंबरी थीं. जीभ से सपड़ सपड़ दोनों होंठों को फांको के बाहर लगा के, ... चुसूर चुसूर चूसने में उनका जवाब नहीं था लेकिन आज पहले थोड़ी देर उन्होंने चूसा चाटा,

फिर जैसे कोई चम्मच से, बस जीभ की नोक से उसी तरह मेरी बिल से छलक रही मलाई का एक एक टुकड़ा निकाल के गप्प गप्प,... स्वाद ले ले के नयी उमर के लौंडो की मलाई,... का स्वाद ले रही थीं,





" सबसे बाद में तो कमल का तो लेकिन सबसे पहले किसकी मलाई गपकी मेरी बहुरिया ने "

एक पल के लिए मेरी बिल से मुंह हटा के मेरी सास ने मेरे चेहरे की ओर मुंह उठा के देख के पूछा,




मैं समझ गयी, सासू रानी नयी उमर की नयी फसल के नए लौंडों के लंड का हाल जानने के लिए बेचैन हैं , तो बस मैंने भी हाल खुलासा सुनाना शुरू कर दिया

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कैसे लीना और सुगना भाभी ने मिल के बिट्टू को मेरे ऊपर चढ़ा दिया।

बिटटुवा अपनी सगी बेहिनिया लीना से कम से कम ७ -८ साल तो बड़ा होबे करेगा, और खूब लम्बा चौड़ा भी, मैंने बात बतानी शुरू की तो मेरी सास ने बीच में टोंक दिया,


" मालूम है,...
लिनवा को तो अभी होली के दो चार महीने पहले ही तो खून खच्चर शुरू हुआ, ओकर महतारी बताई थीं, उमर तो बस, ...



और बिटटुवा तो पूरा मरद बियाहे लायक,... तोहरे वाले से दो तीन साल बस छोट होई। "

सासू जी ने सब डिटेल बतया फिर अपनी राय भी जाहिर कर दी,

" उम्मर से का होला, देवर तो देवर "

लेकिन मैं बातों में उलझी नहीं, सीधे बगिया की बात पे आ गयी, जिस तरह से बिना रोये लीना ने बिट्टू का घोंटा था, ... माना कमल ऐसा सांड़ नहीं था, लेकिन कम भी नहीं था, सात इंच से ज्यादा ही रहा होगा और मोटा कितना, फिर जिस बेदर्दी से अपनी छोटी बहिनिया को चोद रहा था, चार बच्चो वाली भी पानी मांग जाती।

कचकचा के कभी उसकी चूँची दबाता कभी कच्च से अपनी बहिनिया के टिकोरे काट लेता।




लेकिन सुगना भौजी का भी बड़ा रोल था, जिस तरह से उन्होंने लीना को गरमाया था और उकसा के बेदर्दी से उसके सगे बड़े भाई से उसकी फड़वायी थी, मान गयी मैं इसलिए अब उनकी बात टाल भी नहीं सकती थी.

लेकिन असली बात ये थी की जिस तरह से कमल ने रेनू को रगड़ रगड़ के चोदा था, उसके बाद बिट्टू ने लीना को आग लगी थी कमर के नीचे, मेरी भी।

लीना ने मुझसे कहा, " भौजी देखा बिना एक्को टेसुआ बहाये तोहार ननद घोंट ली , तोहरे देवर क अब तूँहूँ अपने देवर क मन राख दा "

ऊपर से सुगना ने और आग में घी डाला,

" अरे तोहार नयकी भौजी ननद क बात क्यों टालेंगी। "




गलती बिट्टू ने दी कर दी बोलने की, अभी अपनी कच्ची उमर की कोरी बहन की चूत फाड़ी थी, उसकी मलाई अभी बहन के बुर से बह रही थी। इसलिए ज्यादा जोश में था. बोल गया वो,


"देखा केतना जबरदस्त खड़ा बा, तो भौजी चोदवयबू।"

बस मैंने पूरी ताकत से उसे धक्का दिया और वो उस घने बाग़ की जमीन पे, ( जैसे चुमावन की रसम में भौजाइयां देवर को धक्का देती हैं और नाउन पीछे से न सम्हारे तो देवर भहराय पड़े ) और चिढ़ाते मैं बोली,

" स्साले मादरचोद तू का चोदेगा, तुझे तो मैं चोदूगी, ... लेकिन ऐसे जल्दी से अगर गिरा न तो तेरी बहन की भी गाँड़ मारूंगी और तेरी भी। और तेरे ऐसे चिकने की तो मैं चूँची से चोद के मार लेती हूँ "





और उसके ऊपर झुक के साड़ी के ऊपर से दीखते उभारों को सहलाया, उभार तो वैसे ही पथराये, गोल गोल, बेचारे की हालत खराब, बस मैंने साड़ी नीचे सरका दी जस्ट उभारों के और उभार और उभर के सामने आ गए , बस बेचारे की हालत खराब, कभी थूक निगलता था, कभी कुछ बोलने की कोशिश करता तो बोल नहीं पाता,

निगाहें बस वही दोनों गोलों पर चिपकीं, बड़े भी, कड़े भी।

और जो खड़ा था उसका वो एकदम पत्थर हो गया,...



सास मेरी दम साधे सुन रही थीं, मुस्करा के अब बोलीं,


जिस दिन तुम गौने उतरी हो न ओहि के अगले दिन से गाँव क कुल लवंडे माते थे एही जोबन के चक्कर में, ... कोई बोला भी की कुल लड़के जब देखो तब बहाना बना के घर के अंदर बाहर,...

तो मैं बोली भी इतना मीठ मीठ गुड़ क डली आयी है तो चींटे तो चक्कर काटेंगे ही





मैं भी मुस्करा दी और बोली

मैंने भी अपने दोनों जोबन हाथ से पकड़ के दिखाते बिट्टू को चिढ़ाया,

" चाही का "

उसने बस सर हिला दिया, आँखों में खुशी नाच रही थी, बोल फूटने की हालत नहीं थी। और मैंने बिट्टू को अपनी शर्त सुना दी

" तो दो बात पहले तो तोहें एही चूची से चोद के झाड़ब,

दूसरे हमरे यह ननद के लीना के आज से रखैल बना के रखिया, हरदम एकरे बुरिया से तोहार सडका चुवे क चाही। कभी जब भी हम अपनी ननद क बुर में ऊँगली डालूंगी और तोहार मलाई न मिली तो समझ जाना। देवर भाभी क कुट्टी "


मान गया, और जोर से खाली हाँ भौजी निकला, बस।

और मैं भी बैठ गयी, लेकिन मैंने अब अपनी जीभ का कमाल दिखाया, जीभ निकाल के उसकी टिप से खुले सुपाड़े पर हलके हलके सहलाया रगड़ा कभी पेशाब के छेद में बिट्टू के अपनी जीभ की टिप डाल देती थी, आखिर मलाई भी तो वहीँ से निकलती थी।




और थोड़ी देर तंग करने के बाद अपने हाथ से अपनी दोनों बड़ी बड़ी कड़ी कड़ी चूँचियों को पकड़ के उसके बीच में लंड,

थोड़ी देर तक बिना रगड़े मसले मैं बस चूँची से दबाती रही और उसके लंड का कड़ापन अपने जोबन पर महसूस करती रही,... वो भी अपने लंड पर भौजाई की मांसल गोरी गोरी रस भरी चूँची महसूस कर रहा था, फिर पहले हलके से और थोड़ी देर में कस कस के मैंने चूँची से उसके लंड को चोदना शुरू किया मेरी आँखे उसके चेह्ररे से चिपकी, ...


" तू मरद सब समझते हो की खाली तुंही सब चोद सकते हो, आज पड़े हो न भौजाई के पल्ले " हँसते हुए सुगना सब भौजाई की ओर से बोली ,



लीना की निगाह कभी मेरे जोबन पर तो कभी अपने भाई के मोटे लंड पर,

उसका भाई कुछ नहीं कर रहा था जो करना था मैं कर रही थी, लेकिन कुछ देर बाद मुझे दया आ गयी और मैं लेट गयी और बिट्टू को अपने ऊपर खींच लिया।


सीधे उसका लंड मेरी दोनों कड़ी कड़ी चूँचियों के बीच और वो हचक हचक के मेरी चूँची चोद रहा था। मैं भी दोनों हाथों से अपने जोबन कस के पकडे उसके लंड पे दबाये थी ,



लीना अब मेरे बगल में मेरे सर के पास बैठी अपने भाई के लंड को बड़े प्यार से देख रही थी।

खुला मोटा लाल मांसल सुपाड़ा कौन न ललचा जाए, लंड तो चूँची केबीच मसला कुचला जा रहा था, लेकिन मैंने जीभ निकाल के सुपाड़े की टिप पे छुला दी। कभी मैं लीना को पकड़ के झुका देती तो वो नदीदी भी अपने भाई का लंड चाट लेती।

लेकिन मन कुछ देर बाद मेरा भी चुदने का होने लगा।

किसका नहीं होता इत्ता लम्बा मोटा कड़क लंड देख के और बिट्टू भी समझ रहा था में बुर पनिया रही है।

मुझे लगा की मेरे ऊपर चढ़ के लेकिन जबरदस्त ताकत थी उसमें, मेरे कुछ भी समझने के पहले उसने मुझे घोड़ी बना दिया, बस पास ही एक पुराना पाकुड़ का पेड़ था बस मैंने उसका तना कस के पकड़ लिया। मैं जान रही थी की धक्के कस के आएंगे और हुआ भी वही, पहले धक्के में ही उसने आधा लंड करीब चार इंच पेल दिया। अगर मैं कस के पेड़ को न पकडे होती,...

ऊपर से मेरी ननद, पहली बार चुदी लीना और अपने भैया को चढ़ा रही थी,

" अरे भैया पूरा पेलो, नयकी भौजी को मायके में गदहे का शौक था, इसलिए धोबी इनसे कपड़े का पैसा नहीं लेता था, ये उसके गदहों का मन रखती थीं "


सच में ऐसी ही नन्दो के लिए कहा जाता है की छिनरों के बुर में लाल मिर्च भर के कूटना चाहिए, तब इनका दिमाग थोड़ा ठंडा रहता है।

और बहनचोद बिट्टू ने सच में जबरदस्त करारा धक्का मारा, तीन चार धक्को में लंड अंदर था ,





मैं भी जानती थी एक बार अपनी सगी कोरी बहना को चोद चूका है तो वो झड़ेगा टाइम लगा के ही, और पन्दरह बीस मिनट हचक के चोदा बिट्टू ने।

दोनों चूँची पकड़ के, मैं एक बार झड़ चुकी थी दूसरे बार किनारे पहुँच रही थी, बस मैंने उस के चूँची पकडे हाथ पर अपने हाथ से दबा के इशारा किया और वो समझ गया।


थोड़ी देर में मैं पीठ के बल थी, झड़ रही थी और जैसे ही मेरा झड़ना रुका, उसने अपना तना लंड खींच के एक बार फिर से मेरी चूँची चोदनी शुरू की , और उसी तेजी के साथ जैसे बुर चोद रहा हो, पांच मिनट के अंदर ही वो भी झडा और सारी मलाई मेरे दोनों जोबन पे और बची खुची चेहरे पे।


" तो बिट्टू की मलाई तेरी बिल में,... " सास कुछ उदास हो गयी थीं।

" अरे नहीं आप के बेटवा सब इतने सीधे हैं, कुछ देर में ही लीना और सुगना ने चूस चास के फिर उसका खड़ा कर दिया और अबकी मेरे ऊपर चढ़ के, ... पूरी ताकत से,... और इस बार की सब सफ़ेद रोशनाई मेरी दवात में।


जब आप खाइयेगा तो सब से अंत में उसी की मलाई मिलेगी।
 
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चंदरवा


अब सास खुश और एक बार फिर से मेरी बुर की चुसाई में लग गयी लेकिन थोड़ी देर में पूछी और बिटटुवा के बाद कौन हमरी बहुरिया चोदा ?

-- " असल में, ...आपकी बहुरिया को बड़ी जोर से मूतवास लगी थी, "....मैंने सास के सवाल का जवाब दिया, और सास ने भी मेरी बात में हामी भरी

" सही कह रही हो, जब रगड़ के चुदाई होती है न ओकरे बाद मूतवास लगती है लेकिन मूत लेना चाहिए तुरंत नहीं तो तो दुबारा चुदवाने में मजा नहीं आता "


" वही तो और आस पास बगिया में कउनो जगह नहीं थी, आम क बगिया में जहाँ देखो तहँ कउनो ननद निहुरी, कउनो टांग उठाये अपने भैया से चुदवाय रही थी तो थोड़ा और निकल के जहाँ खूब गझिन, पाकुड़ महुआ, बरगद और खूब झाड़ झंखाड़ है वहीँ, ... वहां कोई नहीं था तो वहीँ बैठ के ,... बड़ी जोर से मुतवास लगी थी,.... खूब देर तक,... छुलछुल छुलछुल,... फिर जब उठी तो आराम मिला, फिर जब दस कदम ही चली थी की बरगद के पेड़ के पास एक लौंडा खड़ा मूत रहा था आपन पकडे, ... पीछे से पहचान तो नहीं पायी, लेकिन खूब कसरती देह चौड़ा कन्धा पतली कमर और पीठ के मांस तो एकदम टाइट और वही हालत चूतड़ के, मन तो किया पकड़ के सहला दूँ लेकिन,;;;

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पर बात बीच में सास ने काट दी,

"पतली कमर, टाइट चूतड़ और पीठ जैसे बता रही हो, मतलब बहुत जांगर होगा उसमे, और बहुत ताकत होगी उसके धक्के में" ,

और मैंने अपनी बात जारी रखी,...

" मैं एकदम दबे पांव उसके पीछे गयी और कस के पीछे से दबोच लिया, साडी मेरी वैसे ही छल्ले की तरह खाली कमर में लिपटी, अपने जोबन क बरछी उसके पीठ में रगड़ते एकदम चिपक के मैंने देखा, ... चेहरा तो अभी भी नहीं दिखा था लेकिन उसकी देह देख के,... मेरी देह में फिर से अगन लग गयी थी, ये दिख रहा था की स्साला अपना खूंटा बाएं हाथ से पकड़े, मूत रहा था,... और ऐसे पकडे था जैसे मुठिया रहा हो, बस जैसे मैंने उसकी बहिनिया को लेके एक जब्बर गारी दी, खूब मोटा तगड़ा खूंटा था,..

" साले बहिन क नाम लेके मुट्ठ मार रहे हो यहां, ... "





उसी समय वो मुड़ा और उसका चेहरा देख के मैं पहचान गयी चन्दरवा है, और मैंने फिर बहिनिया को लेके उसको गरियाया,

" ई धक्का बहिनिया के बुर में पेलते तो,... " लेकिन बात पूरी नहीं हुयी की मैं समझ गयी गलती हो गयी, उसका चेहरा मुरझा गया था और खूंटा भी ,



अब सास ने मामला साफ़ किया


" हाँ ओकर बड़की बहिनिया सुनितवा, मेला में कउनो चुड़िहारे के साथ भाग गयी थी दो चार साल पहले, अरे तर ऊपर की तो नहीं थी लेकिन चदंरवा से दो तीन साल ही बड़ी थी। लेकिन कुछ दोस तो चंदरवा का भी तो था, साल भर से ऊपर से छनछनाती फिरती थी, और घर में रोज,...

ओकर महतारी सुनितावा के चाचा से, फूफा से,... किससे नहीं फंसी थी। सुनितवा क बाबू तो सूरत गए थे कमाने वही दिवाली छठ पे आते थे हफता भर के लिए। सुनितवा क महतारी क यारन से चुदवावे से फुरसत नहीं, पता नहीं था की घर में लड़की जवान हो रही है सब देख रही है, ओकरे भी बिल में आग फूट रही है। अरे तुहि बतावा अगर बछिया सांड़ के लिए हुड़क रही है , दो दिन चार दिन दस दिन, कउनो इंतजाम नहीं होगा तो का होगा "



सास ने बात मेरी ओर ठेल दी,

" खूंटा तोड़ाय देगी और का " हँसते हुए मैं बोली लेकिन चंदर वाला मामला अभी मुझे साफ़ नहीं हो रहा था मैंने सास से पूछ लिया लेकिन चंदरवा,

" अरे बुरबक ससुर, घरे में माल, बहिन गरमाय के सिवान, खेताड़ी क चक्कर काट रही है और वो,... असल में चंदरवा बचपन से ही अखाड़े और दंगल के , ... पहले १०० दंड लगाता था फिर कोई बोला नहीं २००,... तो बस दंड पेलने के चक्कर में,... देह तो खूब बनाया था,... माना सुनितवा उससे दो तीन साल बड़ी थी तो का हुआ, ... " सास बोलीं

और मैंने भी बात जोड़ी,...

" एकदम अरे आज बिट्टू लीना की झिल्ली फाड़ा की नहीं, पूरे आठ साल बड़ा है , तो बड़ा भाई छोटी बहन की ले सकता है बुर फाड़ सकता है तो छोटा भाई काहें नहीं चोद सकता, ...वो स्साला बुरबक रह गया दंड पेलने में,... उसकी बहिनी को कोई और लंड पेल दिया , "




" एकदम यही बात, एकदम सही सोचती हो बहू तुम। और जो सुनीता मेले में सहेलियों के साथ गयी,... तो एक चुड़िहार ताक में था ही , चूड़ी पहनाने के बहाने हाथ पकड़ा , बांह सहराई, जोबन दबाया, फिर एक दिन खेत में ले जाके पेल दिया। और तुम तो जानती हो गरमाई लौंडिया को एक बार लंड का स्वाद लग जाये बस ,
.... रात दिन घर में महतारी को कभी चाचा से कभी फूफा से कभी मौसा से चुदवाती देख रही थी तो और,... फिर तो चूड़िहरवा को मुफ़्त का जवान होता माल मिल गया, कभी दो बार कभी तीन बार कभी रात में लौटती भी नहीं थी, तो बस मेला खतम हुआ और वो भी चुड़िहारे के साथ,...

फिर कहाँ पता चलता है, किसी से फंसी हो , पेलवा रही हो तो चलता है लेकिन किसी के साथ भाग गयी तो,... बाद में चंदरवा को भी लगा की उसकी बहिन कितनी बार उसको इशारा की , कई बार खुल के भी, लेकिन वो दंड पेलने के चक्कर में,... लेकिन ये बताओ बहू की चंदरवा उदास हो गया तो तू का की? "

और मैंने हाल खुलासा बयान किया।

मुझे भी लगा बड़ी गलती हो गयी, सुनीता का किस्सा तो मुझे भी मालूम ही था, लेकिन मुंह से ंनिकली बात और लंड से निकला बीज वापस तो हो नहीं सकता।


बस पीछे से ही पकड़ के मैंने कस के एक चुम्मा चंदर के होंठ पे ले लिया और बैठ के उसका और जैसे उसका लंड पकड़ के होंठों के पास ले गयी चंदरवा बिचक गया,


" अरे भौजी, अभी तो,... "

सच में धार अभी पूरी तरह रुकी नहीं थी,... लेकिन मैंने उसकी आँखों में आँखे डालकर, जोर से गरियाया,


" स्साले गांडू, तेरी महतारी की गाँड़ अपने मायके के गदहों से मरवाऊँ, ये मोट बांस अस लौंड़ा केकर हौ, तोहार की तोहरे भौजी क ? "




" भौजी क, भौजी तोहार " मुश्किल से वो बोल पाया।

बस जीभ निकाल के जीभ की टिप से उसका छेद जहाँ पल भर पहले,... मैंने जोर से चाट लिया और वो गनगना गया। चेहरे पर मस्ती छा गयी थी।





जीभ मेरी सुपाडे के छेद को छेड़ रही थी, लेकिन आंखे उसकी आँखों को ललचा रही थीं और मेरे दोनों खुले जोबन उसे और उकसा रहे थे।

मैंने होंठों को जोड़ के एक कुप्पी सी बनाई और सुपाड़े के उस छेद के ऊपर रखकर पहले तो कुछ देर चुसूर चुसूर चूसा फिर जीभ की टिप से जैसे सुपाडे को जीभ से चोद रही होंऊ।

जैसे बिजली की बटन दबाने से पंखा चलने लगता है, बल्ब जलने लगता है बस वही असर हुआ चंदरवा के खूंटे पर। खड़ाक, एकदम खट्ट से खड़ा हो गया।

फिर क्या था मैंने डबल अटैक कर दिया, ... मेरे मन में भी लग रहा था उसे बहन का नाम लेके नहीं बोलना चाहिए था पर अब जो कर सकती थी वो कर रही थी।


बाएं हाथ से लंड के बेस पे पकड़ के, बहुत मोटा था। सिर्फ अंगूठे और तर्जनी से बेस को दबा रही थी और अब पूरा सुपाड़ा मेरे मुंह में गप्प हो गया था और जैसे स्कूल की लड़कियां बर्फ के गोले को ले कर जोर जोर से चुस्से मारती हैं मैं भी उसी तरह,



चंदरवा पर मस्ती चढ़ रही थी, लंड एकदम लोहे का रॉड हो रहा था,

लेकिन मेरी बदमाशियां अभी शुरू ही हुयी थीं, हाथ से लेकर अब मैं उसके दोनों रसगुल्लों को कभी सहलाती, कभी तौलती तो कभी हलके से दबा देती तो कभी नाख़ून से बॉल्स और गाँड़ के बीच की जगह खुरच देती, लेकिन देवर मेरा भी तो मरद था . उसने कस के मेरा सर दबाया और बांस उसका धीरे धीरे मेरे मुंह के अंदर, ठेलने लगा,


मैंने कस के अपने गुलाबी रसभरे होंठों से लंड दबोच रखा था, जब चमड़ी होंठों को रगड़ते जाती इत्ता अच्छा लग रहा था, मेरी जीभ खूंटे के नीचे से चाट रही थी और कस कस के मैं चूस रही थी, वो पूरी ताकत से पेल रहा था, ठेल रहा था, और मैं घोंट रही थी,




एकदम हलक तक चंदरवा ने पेल दिया। आँखे उबली पड़ रही थीं, गाल फूले हुए थे थके फटे पड़ रहे थे लेकिन मैं पूरी ताकत से चूस रही थी, जीभ उसके सुपाड़े पे रगड़ रही थी। कुछ देर बाद जब चन्दर ने बाहर मूसल निकाला तो मैंने उसे जाने नहीं दिया हाथ से पकड़ लिया और साइड से चाटने लगी।

सपड़ सपड़ सपड़ सपड़



" भौजी, ओह्ह, उफ्फ्फ, ओह्ह्ह " मस्ती से बार बार चन्दर की आँखे बंद हो रही थीं। और वो चौंक गया, वो सोच भी नहीं सकता था,

मैं उसके एक रसगुल्ले को लेकर चूस रही थी और हाथ से उसके तने खड़े पागल मूसल को मुठिया रही थी बहुत हलके हलके। मेरे थूक से लग लग के लंड गीला हो गया था। जीभ मेरी कभी दोनों रसगुल्ले पर तो कभी बॉल्स से लेकर बेस तक पर मेरी आँखे चुदवाने के लिए जगह ढूंढ रही थी लेकिन चारो ओर झाड़ झंखाड़ , और खूब गझिन पाकुड़, महुवा, बरगद के पेड़, ....

और मैंने स्टाइल बदल दी।

अब बजाय होंठ के मेरी चूँचिंया उसके लंड को चोदने लगीं, अब मैं उसके ऊपर चढ़ के चोदू इत्ती जगह तो थी नहीं तो बस चूँची चोदन, और जिस ललचायी नजर से वो मेरी चूँची देखे रहा था कुछ इनाम तो बनता था बेचारे को।

बहन भी नहीं थी उसके घर में।

दोनों हाथों से चूँची पकड़ के उसके लोहे के रॉड पर रगड़ रही थी, बहुत मजा आ रहा था , कभी अपने मोटे मोटे निपल से उसके पेशाब के छेद को चोद देती




तो कभी मेरी मोटी मोटी चूँची के बीच दबे कुचले रगड़े जा रहे चंदरवा के लंड के सुपाडे को कभी जीभ से चाट लेती तो कभी हलके से चूस लेती।

लेकिन चाहती तो मैं थी चुदवाना।

मेरी बुर मेरे होंठ और चूँची को गरिया रही थी की तुम दोनों मजा ले लिए और मैं ही प्यासी हूँ,

और वो भी चाहता था चोदना

मैंने हल्का सा इशारा ही किया बस बहुत जांगर था चंदरवा में। बस गोदी में उठाय के महुवा के पेड़ के सहारे खड़ा किया, खड़ा किया समझिये आधा हवा में और एक झटके में सुपाड़ा बिल में गच्चाक से अंदर, एक हाथ के सहारे हमारा चूतड़ पकड़ के टांग फैलाय के दूसरा धक्का अस करारा मारा की आधा बांस अंदर।

मैं कस के अपने उठे हुए पैर से चंदरवा का चूतड़ चाप के दाबे थी, अपनी ओर कस के भींच रही थी. मेरी उसकी लम्बाई करीब करीब बराबर थी , कुछ में उसे अपनी ओर खींच रही थी और कुछ वो ताकत से ठेल रहा था, चमड़ी से चमड़ी रगड़ते हुए, उसके चौड़े सीने से मेरी चूँची, जैसे चक्की गेंहू पीस पीस के पिसान कर देती है उसी तरह से, जब आधा से ज्यादा अड़स गया, तो वो रुक गया और हम दोनों चुदाई का मजा लेने लगे।



चुम्मा चाटी, उसके मुंह में मैंने जीभ डाल दी, और गोल गोल, ... मैं कभी अपनी चूत कस कस के उसके बांस पर सिकोड़ती, उसे दबोचती, लंड को निचोड़ती, और जब मैं रुक जाती तो वो हलके हलके धक्के

लेकिन थोड़ी देर में जब हम लोग सेट हो गए फिर जांगर दिखाया चन्दर ने और एक झटके में जैसे गोद में दोनों चूतड़ पकड़ के हवा में, मेरे दोनों पैर हवा में दोनों हाथों से चन्दर ने मेरे दोनों चूतड़ पकड़ के, का जबरदस्त धक्के खड़े खड़े मार रहा था और पूरा वजन भी सम्हाले था. हर धक्के में बच्चेदानी हिल रही थी. दूर दूर तक कोई नहीं था, खाली ऊँचे ऊँचे पेड़ पाकड़ के महुआ के, ननदों की चीख पुकार भी बहुत हलकी कभी किसी की गाँड़ फट रही हो, झिल्ली फटे उस समय भी बहुत हलकी सी चीख सुनाई देती थी वरना लग रहा था हम लोगों से एकदम अलग थलग चुदाई का मस्ती से मजा ले रहे थे,




दस मिनट तक मेरे दोनों चूतड़ अपने हाथ से पकडे, मेरी पूरी देह का वजन उसके ऊपर, और उसके लंड का जोर मेरे अंदर, कभी जोर जोर से पेलता, कभी दरेररता, लंड के बेस से बुर को रगड़ता, बदमाश इतना की जैसे उसे लगता मैं झड़ने के करीब हूँ कच कच्चा के कभी गाल काट लेता कभी चूँची पे दांत गड़ा देता, लेकिन थोड़ी देर में फिर उसने लंड एकदम बाहर निकाला और पलट के मुझे पेड़ के सहारे, अब मेरा मुंह पेड़ की ओर

--- और गाँड़ चंदरवा की ओर, वो पीछे से हमें दबोचे, मैं टांग भी खूब फैला ली और पीछे की ओर चूतड़ उचका के खड़े खड़े गप्प से उसका लंड घोंट ली। इतना मजा आया खड़े खड़े चुदवाने में, एक हाथ से हमारी कमर पकड़े थे दूसरे से चूतड़ पे, और दे धक्के पे धक्का,.. मजा तो हम दोनों का आ रहा था , लेकिन मैं जानती थी की मरद को असली मजा किस्मे आता है बस वही पाकड़ के पेड़ को पकड़ के थोड़ी देर बाद मैं निहुर गयी चूतड़ ऊपर
 
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और,...


सास मेरी जो अब तक सांस थामे अपनी बहू और चन्दर की पेड़ के नीचे खड़े होकर चुदवाने का किस्सा मजे ले ले कर सुन रही थीं, हंस के बोली


" वैसे चूतड़ ऊपर किया जैसे लौंडे गाँड़ मरवाने के लिए करते हैं न "

मैं भी खिलखिला के बोली,


" हाँ एकदम वैसे ही,... आगे का हिस्सा एकदम नीचे और पिछवाड़ा ऊपर, धक्का जोरदार लगता है और पूरा अंदर तक,...

लेकिन खुले आम बगिया में जहाँ कउनो लड़का लड़की कभी भी आ सकता था ऐसे मरवाने में अलग ही मजा आ रहा था ,

कुछ देर में ही मेरी दोनों चूँची पकड़ के चंदरवा जोर जोर से धक्का मार रहा था और मैं भी उसका लंड निचोड़ लेती कभी चूतड़ से धक्के का जवाब धक्के में देती,... पन्दरह बीस मिनट रगड़ के चोदा होगा,... पहले मैं झड़ी फिर वो,... ऐसे ही मैं चूतड़ ऊपर किये उचकाए, निहुरे।

एक एक बूँद उसकी मलाई की मेरी कुप्पी में, और वो निकाल भी लिया तो भी पांच मिनट तक मैं बुर अपनी कस के निचोड़े रही, एक एक बूँद मलाई चंदरवा क आपके लिए लाइ हूँ "



आज्ञाकारी ,अच्छी बहू की तरह मैं बोली।

सास ने कैसे कोई जीभ से आइसक्रीम की कोन में से कुरेद कुरेद के, उसी तरह मेरी चुनमुनिया में से कुरेद के एक एक बूँद मलाई की खा रही थीं ,



बहुत दिन बाद जवान लौंडो की मलाई चखने का उन्हें मौका मिला था वो भी बहू की बुर से, ...

लेकिन सास कौन जो थोड़ी बहुत बदमाशी न करे और मेरी सास तो इस तरह के खेल में नंबरी थी. उनकी जीभ मेरी बिल के अंदर उन प्वॉयंट्स को भी कस कस के रगड़ रही थी जो मुझे पागल करने के लिए काफी थे , कभी वो सपड़ सपड़ चाटती तो कभी क्या कोई मर्द लंड पेलेगा उस ताकत से अपनी पूरी जीभ मेरे अंदर और होंठ उनके कस के दोनों फांकों को पकड़ के चूसते,...

मेरी हालत खराब हो रही थी, कभी चूतड़ पटकती तो कभी सिसकती तो कभी पलंग की पाटी को हाथ से पकड़ लेती,

" अरे सासू जी थोड़ा बहू को भी सेवा करने का मौका दीजिये न अभी तो आपका बेटा आपकी कुइंया में डुबकी लगाएगा ही, ... "

मैंने सासू जी से कहा,



और थोड़ी देर में हम दोनों 69 की मुद्रा में थे. चुसम चुसाई के मामले में मैं कम नहीं थी।


एक से एक खेली खायी ननद को भी पांच मिनट के अंदर चूस के झाड़ देती थी चाहे वो लाख नखड़ा करे,... लेकिन अपनी सास के आगे मैं भी हार मानती थी।

उनकी गुलाबो थी बहुत रसीली, एकदम पावरोटी की तरह फूली फूली फांके, एकदम चिपकी और खूब रसीली, खूब ताकत लगाने पर फ़ैल तो जाती थी, थी तो भोंसड़ा ही, लेकिन दसो सालों से कोई मूसल उसके अंदर नहीं गया था, सिर्फ औरतों लड़कियों से चुसवा, चटवा के इसलिए टाइट खूब थी




लेकिन इतने दिन मैं भी समझ गयी थी की मेरी सास की चुनमुनिया कहाँ से और कैसे चिल्लाती है, ...

जीभ की टिप से मैंने हलके से दोनों फूली हुयी फांको को फैलाया, जिसमे कोई मोटा लंड गया होगा तो मेरे साजन इनके पेट में आये होंगे और इसी रस्ते से निकले होंगे। साथ में अपनी लम्बी नाक से सास की क्लिट को सहला दिया,

वो एकदम बौरा गयीं,

मेरी जीभ ने उस रसकूप में डुबकी मारी, और जो शैतानी वो कर रही थीं बुर के अंदर की दीवाल पर जहाँ जहां नर्व एंडिंग्स होती हैं वहीँ कस कस के रगड़ने का

वो कांपने लगीं, बुर उनकी पनिया गयी , एक तार की चाशनी धीरे धीरे निकलने लगी और मैंने जीभ की टिप से चाट लिया

बहुत रसीली थी , शहद मात,...




मैं उन्हें किनारे ले जा के रोक देती, बेचारी सास बार बार मुझसे कहतीं

" अरे बहू झाड़ दे न एक बार, ... मेरी अच्छी बहू बस एक बार "

देह उनकी काँप रही थी एकदम कगार पर वो पहुँच जाती और मैं जीभ बाहर निकाल लेती,... चूसना रोक देती। और जैसे कांपना कम होता फिर चुसाई चालू , और थोड़ी देर में सास की हालत खराब


अबकी जो सास बोलीं तो मैं चिढ़ाते बोली

" अरे अभी हमरे सास क पूत आ रहा है, नम्बरी बहनचोद, मादरचोद, झड़वा लीजियेगा न उससे जो मजा बेटे के साथ है वो बहू के साथ थोड़ी है , ..."


ऊँगली के टिप से खूब गरमाई उनकी मुलायम बुर कुरेदते बोली,

" आ रहा होगा न मेरी सासु का लाड़ला, अपने मामा का जना, एक बार उस सांड़ का घोंट लीजिये, अपने मायके के सब मर्दों को उसके मामा को सब को भूल जाइयेगा, ये दोनों बड़ी चूँचियाँ पकड़ के जो हचक हचक के पेलेगा न, अब वही झाड़ेगा, आपको, "

मेरी सास की आँखे पूरी देह कह रही थी उन्हें भी उसी का इन्तजार है,

मैं, बल्कि हम दोनों, मैं और मेरी सास बस यही एक बात सोच रहे थे, जेठानी तो गयीं, मेरी छोटी ननद को लेकर मुम्बई, दूसरी ननद भी ससुरातिन, पांच छह दिन में वो भी अपने ससुरे, ....तो बस तो घर में खाली हम तीनो,... मैं, मेरी सास और ये, ....फिर तो दिन दहाड़े,

और मैं खुद पकड़ अपनी सास को निहुरा के चढ़ाउंगी उन्हें, कोई दिन नागा नहीं जाएगा जब माँ की बिल में बेटे का, आज तो बस,...



तबतक बाइक की आवाज सुनाई पड़ी, हल्की सी दूर से आती हुयी,



मेरी सास खिलखिलायीं, " आ गया तेरा खसम, अभी ठोकेगा मेरी समधन की बिटिया को "


"एकदम आपकी समधन ने दामाद किसलिए बनाया था उनको, इसीलिए तो लेकिन आज मेरी सास का पूत पहले मेरी सास को,... "

हँसते हुए सास की बिल में एक साथ दो ऊँगली ठेलते हुए मैंने उन्हें चिढ़ाया।



लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,...

ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,

जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,
लेकिन, लेकिन, ....एकदम पक्का उनकी बाइक की आवाज नहीं थी, उनके कदमो की भी नहीं, ...और सबसे बड़ी बात उनके आने की आहट से मेरी देह कसमसाने लगती थी, एकदम मस्ती सी भर जाती थी, खूब अच्छा अच्छा लगता था, पर आज, ...

मेरा मन आशंका से भर गया, लेकिन इनकी तरह मेरे सास को भी बिन बोले मेरे मन का डर पता चल जाता था, उन्होंने कस के अपने हाथ से मेरे हाथ को दबा दिया, जैसे कह रही हों, कुछ नहीं होगा, कुछ नहीं सब ठीक है, मैं हूँ न,

सांकल की आवाज, साथ में जोर से दरवाजे को खड़काने की आवाज आयी, मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया,नौ साढ़े नौ हो गया था, पूरे गाँव में सोता पड़ा था, और सामने मेरे,....और

यह भाग, भाग ८९, पिछले पृष्ठ (919) के अंत से शुरू होता है, कृपया वहां से लिंक कर के पढ़े। और कमेंट जरूर दें. भाग ८९ की पहली पोस्ट पृष्ठ ९१९ के सबसे अंत में है और शेष आगे के भाग यहाँ, कृपया पढ़ना पिछले पृष्ठ ९१९ से शुरू करें। धन्यवाद और कमेंट जरूर दें, बिना कमेंट के कहानी लिखने में मजा नहीं आता।
 
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भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास

१८,८१,998


कल रात भर मेरे मरद ने अपनी सगी बहिनिया को मेरे सामने खूब हचक हचक के चोदा,

ननद मरद से पेली जाए वो भी सगी भौजाई के सामने, घर में रात भर, इतना मजा,.... चिंचिया रही थी, चोकर रही थी, चीख रही थी,

लेकिन मेरा मरद कउनो मुरव्वत नहीं, आपन सांड अस मूसल अपनी सगी बहनिया की बिल में एकदम जड़ तक, और एक दो बार नहीं छह बार, सबेरे तक ननद एकदम थेथर,

लेकिन अस चुदवासी, अस बुरिया में आग लगी थी अपने भैया का घोडा अस घोंटने के लिए की, ग्वालिन भौजी घर में थी, दरवाजा आधा खुला तो उन्ही के सामने...


और असली मजा तो ये की सिर्फ मेरे मरद का बीज ही नहीं लिया, पक्का गाभिन भी हो गयी और खुदे बोली,

" भैया नौ महीना बाद जॉन बिटीया होई तो ऐन छठी के दिन सौरी में ही तोहरे साथ ओकरे सामने, ...और जैसे वो बड़ी होई,... जे बीज लगाई फल भी तो उहे खायी "

और ये सुन के तो मेरा मरद एकदम पागल, ....कौन मरद नहीं होगा कच्ची अमिया के बारे में सोच के,

कल बहिन का नंबर लगा तो आज,...

आँख के सामने मरद अपनी सगी बहिनिया को, ननदिया को पेले,... उससे ज्यादा मजा सिर्फ एक चीज में है



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मरद अपनी महतारी पे चढ़े,... वो भी सास की बहू के सामने,और आज वो होना है, पक्का,



सास मेरी , इनकी महतारी,

खूब भरी भरी भरी देह, खेली खायी जोबन चोली में नहीं समाता, टप टप गुड़ की जलेबी की तरह रस टपकता है.

सोच सोच के मैं मस्ता रही थी, केतना मजा आएगा जब ये अपनी महतारी के भोंसडे में हुमच हुमच के,

सास कल होलिका माई के जाने के बाद बाकी सब गाँव की सासो के साथ गाँव के बाहर, एक छावनी है, औरतों की रात भर की आपस की मस्ती, जैसे आज मेरी ननद गयी हैं अपनी बियहता सहेलियों के साथ, सास आज रात को आएँगी जब मैं घर पहुंचूंगी उसीके आसपास,


कल इनको इनकी बहिनिया पे चढ़ा के जितना मजा आया था उससे ज्यादा मजा आएगा इन्हे इनकी महतारी पे चढ़ा के,

रस्ते की बँसवाड़ी, ताल पोखर, पार करते, पगडण्डी पगडंडी चलते, मैं आज दिन की बाते याद कर रही थी और रात में क्या होगा ये सोच के खुश हो रही थी,…


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शाम को लौटते हुए देर हो गयी, ननदें छोड़ ही नहीं रही थीं, अँधेरे में भी सब चालू थीं.

फिर रेनू और कमल को घर छोड़ा।

उसके पहले सुगना से बहुत देर तक, ... पठानटोली वाली हिना को वही तो छोडने जा रही थीं, तो बाकी पठानटोला क माल क हालचाल, कैसे उन सबों को अपने पुरवा में ला के, सुगना का दिमाग बहुत तेज चलता था इन सब कामों में और उस दिन दोस्ती भी अच्छी हो गयी.

रेनू कमल के यहाँ भी बात करने में लेट हो गया.



लौटते हुए मेरे दिमाग में कभी कल की बात कभी अपने सास के बारे में,...

कल रात तो अपने सामने अपनी ननद पे इन्हे चढ़वा के बहुत मज़ा आया. और ननद भी एकदम खुल के खेल रही थी, जब से होलिका माई ने पांच दिन के अंदर गाभिन होने की बात कही ऐसी गरमाई थीं की,... फिर हमने चमेलिया, गुलबिया और दूबे भाभी के सामने तीन तिरबाचा भी भरवा लिया था की अपने भैया के साथ हमरे सामने,...

और उनके भइया भी,... हमको तो लगता है पहले से कुछ लस्टम पस्टम, खुदे क़बूले की अपनी बहिनिया की ब्रा में मुट्ठ मारते थे,... लेकिन उससे ज्यादा नहीं,...


और कौन भाई नहीं होगा जो अपनी बहन को देख के न ललचाय, ... और बहन उनकी ननद मेरी थीं भी जबरदस्त, जोबन एकदम गद्दर, बड़े भी कड़े भी,और कुंवारेपन में कच्ची अमिया भी खूब कड़ी,...



मैं तो सवा सेर लड्डू मानी हूँ, पूड़ी चढ़ाउंगी, अगर हमार ननद पांच दिन में गाभिन हो गयी,..



लेकिन हमारी सास कैसे, ... वो तो बिना ज्यादा जोर जबरदस्ती के मान गयी अपने बेटे का खूंटा घोंटने के लिए. मेरी एक बात आज तक उन्होंने नहीं टाली।

लेकिन असली बात ये थी की उनका बेटा मानेगा की नहीं अपनी महतारी के ऊपर चढ़ने को, देख के ललचाना, पजामा क तम्बू बनना एक बात है लेकिन,...,



रास्ते भर मेरे दिमाग में यही उथलपुथल हो रही थी, कैसे, ...

वैसे सास हमारी अभी जबरदस्त माल थीं.

उनके समधियाने में दर्जनों का उनका नाम लेने से ही टनटना जाता है. वैसे तो चार बच्चे हैं उनके. मेरे जेठ, ये, मेरी ये ननद और छुटकी नन्द जो अभी नौवे में है और जो मेरी जेठानी के साथ शहर चली गयी है। तो इस हिसाब से तो चालीस -पैतालीस के बीच की होंगी, लेकिन लगती ३५ से एक दिन ज्यादा नहीं थी, और जोस भी उसी तरह, अरे एक भोजपुरी ऐक्ट्रेस हैं एकदम हूबहू उन्ही की तरह ट्रू कॉपी, ... जैसे लगता था जुड़वा बहने हो, कुम्भ के मेले में बिछुड़ गयी हों,... सेम टू सेम, हाँ जोबन के मामले में मेरी सास दो नंबर आगे हैं, अरे चलिए फोटो दिखा देतीं उन ऐक्ट्रेस की समझ जाइएगा, मेरी सास कैसी लगती होंगी,..



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गोरा चम्पई रंग, एकदम खुला खुला, नाचती गाती मुस्कराती काजल से लदी आँखे, भरे भरे गाल, गुलाबी होंठों से रस हरदम छलकता रहता, सुतवा नाक में कभी छोटी सी नथ तो कभी चमकती दमकती कील, माथे पर हरदम बड़ी सी लाल बिंदी, कानों में गालों को सहलाते झुमके,... जिससे जिनका ध्यान उन चिकने रसीले गालों की ओर न जाए, वो भी चला जाये।


और चिकने गालों से सरक के निगाह बस उन दो पहड़ियों पर, बल्कि पहाड़ों पर चली जाती थी,

मैंने बताया न उन ऐक्ट्रेस से भी दो नंबर आगे, ३८ डी डी। लेकिन एकदम कड़क. जैसे टेनिस वाली बाल होती हैं न स्पंजी लेकिन एकदम कड़क, दबाओ तो हलकी सी दबेंगी फिर जस की तस. दबवाया तो मेरी माँ की समधन ने न जाने कितनों से होगा, लेकिन अभी भी जस के तस. झूठ नहीं कह रही हूँ, चार पांच दिन भी तो हुए नहीं होली के, उन्होने मेरी चोली में हाथ डाल के माँ को गरियाया,


" बाप तो न जाने कौन है, इसकी महतारी को भी नहीं मालूम लेकिन गेंदा दूनो तो एकदम महतारी पे गया है। "

तो मैं क्यों छोड़ देती, मैंने भी ब्लाउज में हाथ डाल दिया उनके। खूब बड़े बड़े, कड़े. और मेरी एक बुआ सास थीं, उनकी ननद,... तो उन्होंने भी मुझे ललकारा,


" अरे तानी कस के बहुरिया,.. एहि क दूध पी पी के तोहार मरद इतना कड़क हुआ है " कड़े भी, मांसल भी और मेरी हथेली से बाहर।


ढक्कन वो भी नहीं लगाती और मैं भी. शादी के दो तीन दिन बाद ही मैंने अपनी सब ब्रा टिन के बक्से बंद कर दी और अपनी सास की तरह मैं भी बिना ढक्कन के, मेरा भी टाइम बचता, इनको भी आराम हो गया और देवर ललचाते सो अलग।

और मेरी सास ने तारीफ़ भी की,

" सही किया, इतना क्या मज़ा लेने देने वाली चीज़ को दुहरे ढक्क्न में बंद करना। "
वो लेकिन एकदम लो कट चोली पहनतीं, जरा सा झुकती तो पूरी गहराई।

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साड़ी भी मेर्री तरह कमर के नीचे ही बांधती और खूब टाइट, आगे से खूब गहरी नाभि साफ़ दिखती और पिछवाड़े से कसर मसर करते, लेफ्ट राइट करते, दोनों नितम्ब। पीछे से देखने वालों को पान के पत्ते की तरह चिकनी, खूब गोरी पीठ भी दिखती और गहरी नाली भी,... समझने वाले समझ जाते,... कामुक स्त्री की सबसे पक्की निशानी।

चूड़ियां कोहनी तक, और पायल हजार घुंघरू वाले, जब ये कभी दिन दहाड़े मेरे ऊपर चढ़े रहते, कभी कभी तो रसोई में ही। तो बस घुंघरू की आवाज हम दोनों को वार्निंग देने के लिए काफी थी।

दुबली नहीं थी, लेकिन एक इंच एक्स्ट्रा फैट भी नहीं। खूब मांसल गदरायी देह, गाल हो, जोबन हो, पिछवाड़ा,.. जो भी थोड़ा बहुत फैट था सब वहीँ।


जो एम् आई एल ऍफ़ कहते हैं न पक्की वही वाली,...

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लेकिन साला मादरचोद मेरा मरद अपनी मस्त माँ को चोदेगा की नहीं, मैं यही सोच रही थी.

सास तो मेरी मान गयी थी, वचन भी दे दिया था और एक बार वचन देकर वो मुकरने वाली नहीं थी,.. लेकिन स्साला मेरी सास का बेटा,... स्साला उसकी सब सगी चचेरी ममेरी फुफेरी बहनो पे मोहल्लों के गदहों को चढ़वाऊं, ...वो स्साला मानेगा की नहीं।
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Tumar mard kaun sa koi Rishi muni hai jo nhi maanega,jarur chadhega vo tumari saas par
Gazab update 👌👌👌👌✅✅✅💯💯
 

Rajizexy

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rajkomal

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aaj noon me hi update dekha jaise hi time mila read kiya. jaldi jaldi me. but review nahi de paya. mujhe laga tha ki aaj kuch ho hi jayega lekin phir samajh aya ki aap koi new writer thode hi hai, pahle kuch bhumika to banegi tabhi to logical end hoga. ... well aaj to mujhe bhi nirasa hui morning me update aya read to bahuto ni kiya hoga but reply bahut kam aate hai.
 
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