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आपने एकदम सही कहा, इस कहानी में जैसे सावन में कोई रच रच में मेंहदी लगाए, और इन्सेस्ट के इलाके में तो कैसे कोई खूब भीगे, गीले, काई लगे आंगन में सम्हल के सम्हल के कदम रखे, हलकी सी साड़ी उठा के, नीचे देखते हुए, अब फिसले, तब फिसले,बहुत बढ़िया अपडेट कोमल जी. मुझे वाकई मज़ा आया। आज शायद पहली बार मैंने आपकी कहानी में चूची चुदाई का जिक्र देखा है और वो भी अत्यंत सुंदर तस्वीरों के साथ …क्या लिखा है . इस अपडेट में और भी बहुत कुछ है. कुछ ऐसी उपमाएं या कुछ ऐसे तर्क दिए हैं जो वाकाई लाजवाब है जिसको केवल आप जैसा लेखक ही महसूस कर सकता है और लिख सकता है। किसी नौसिखिये के लिए वो सब कहना कभी भी मुमकिन नहीं है…
“लेकिन असली खेल तो तब शुरू हो जाता है जब औरत खुद चढ़ के चोदना शुरू करती है, मर्द को मजे दे दे के, खुद मजे ले ले के चुदवाती है और उसको सीखने में टाइम लगता ही है.”……
सही कहा आपने जब स्त्री पहला संभोग करती है तो उसकी 5 मिनट बड़ी खौफ में गुजरती है तब स्त्री सोचती है कि मैं संभोग के लिए तैयार ही क्यों हुई लेकिन धीरे-धीरे जब समय बढ़ता है तब स्त्री चाहती है कि बस मैं इसी के लिए बनी हूं यह कभी ढीला न पड़े और मैं हमेशा इसके सवारी करती रहूं।
“उम्मर से का होला, देवर तो देवर "
इस सन्दर्भ में भी मेरा विश्वास है की भाभियों मे एक maturity रहती हैं जो लड़कियों में नहीं रहती आजकल लड़कों को अपनी ओर आकर्षित करती है।संभोग क्रिया का अनुभव होने के बाद शादीशुदा स्त्री संभोग की कद्र करना शुरू कर देती है।वो पुरुष की जरूरत को समझकर समय पर पूरे मन से खुलकर संभोग क्रिया में भाग लेती है।
“निगाहें बस वही दोनों गोलों पर चिपकीं, बड़े भी, कड़े भी।”
और अगर गोल भी और सुडोल भी हो तो मर्द की हालत ख़राब हो जाती है
लेकिन मन कुछ देर बाद मेरा भी चुदने का होने लगा।
किसका नहीं होता इत्ता लम्बा मोटा कड़क लंड देख के
रगड़ता तो अंदर जाकर 3 इंच वाला भी है मगर 7-8 इंच वाला जब अंदर बाहर होता है तो रगड़ अच्छी होती है और लंबाई अच्छे से महसूस होती है। एक एक इंच जन्नत में ले जाता है जांघों में कंपन होता है और बिस्तर में भूचाल आ जाता है।
सही कह रही हो, जब रगड़ के चुदाई होती है न ओकरे बाद मूतवास लगती है लेकिन मूत लेना चाहिए तुरंत नहीं तो तो दुबारा चुदवाने में मजा नहीं आता "
धन्य हैं आप..शायद ही कोई हो जो इतनी महत्वपूर्ण बात है कि इतनी सूक्ष्मता से निरीक्षण किया हो
और अंत में पूरी जवानी का निचोड़ चंद पंक्तियों में….
अरे तुहि बतावा अगर बछिया सांड़ के लिए हुड़क रही है , दो दिन चार दिन दस दिन, कउनो इंतजाम नहीं होगा तो का होगा "वो स्साला बुरबक रह गया दंड पेलने में,... उसकी बहिनी को कोई और लंड पेल दिया , "
और तुम तो जानती हो गरमाई लौंडिया को एक बार लंड का स्वाद लग जाये बस ,
कमेन्ट्स की कमी , खास तौर पर इस कहानी में बहुत खलती है और मैं बार बार अपने मन का दुःख कहती भी हूँ। बहुत से दयावान आते हैं , पढ़ते हैं, बादलों की तरह एक नजर डाल के मुंह बिचका के, बिना कमेंट की एक दो बूँद टपकाये, कही और चले जाते हैं।
और ऐसे सूखा ग्रस्त क्षेत्र में यह कृपा, आपका एक एक कमेंट, एक एक शब्द स्वाति की बूंदो की तरह है, पानी नहीं अमृत ।
इस प्रसंग में सास बहू के सम्बन्धो पर मैंने कुछ लिखने और उससे ज्यादा कहने की कोशिश की है, आपको अच्छा लगा, इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। सास निश्चित रूप से ज्यादा अनुभवी है और अपने अनुभव की गठरी बहू के सामने खोल रही है, एकदम सखी वत, वैसे भी मेरा निजी अनुभव है, देह संबंधो और देह सुख के बारे में जितना औरते खुल के बात करती हैं, विशेष रूप से ग्राम्या, बिना किसी अपराधबोध के कभी मजाक में कभी चिढ़ाने में तो कभी बस ऐसे ही, वो पुरुष नहीं करते।
सास बहू की ये बात चीत रिश्तों की नयी खुलती परतें, अगली दो तीन पोस्टों में भी आती रहेंगी। बस यही विनम्र निवेदन है की स्नेह की यह बारिश इसी तरह उन पोस्टों पर भी जरूर करियेगा।
अगली पोस्ट भी जल्द ही।