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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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ननद भौजाई दोनों राजी हैं की जो बीज बो रहा है सबसे पहले फल वही चखेगा तो फिर चखने वाले को क्या परेशानी।
सही कहा.. रोपनी करने वाले.. फसल काट के .. खुद भोग भी तो लगाते हैं...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने इन्सेस्ट की घोषित कहानियों में भी भाई न तो बहन को गाभिन करने के चक्कर में होता है और न बहन कोशिश करती है की उसका पेट रह जाए और न भाभी उत्प्रेरक की तरह काम करती है

इन भाई बहन का प्यार अलग ही लेवल का है
और यही तो इन तीन के समागम की विशेषता बन जाती है...
जो इक्की-दुक्की कहानियों में हो तो हो...
नहीं तो आप की कहानियां .. बहुत कुछ अनकही कह जाती है...
 
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motaalund

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नया रिश्ता तो तभी पक्का होगा, जब समाज की मोहर लग जाए और इस के लिए समाज को मालूम होना भी जरूरी है और उसके बाद तो कभी गन्ने के तो कभी अरहर के खेत में भाई बहना पर चढ़ा रहेगा तो किसी को अचरज नहीं होगा, अरे भाई है हक़ है उसका। और रही दूसरी बात तो पल पल में दुनिया बदल जाती है तो फिर तय कुछ भी नहीं है,क्या होगा, सास के साथ ये तो अगली पोस्ट में ही पता चलेगा।
नया रिश्ता तो... मामा-भांजी वाला गढ़ा जाएगा...
और साजन तो सास के उसी छेद से निकले हैं...
अब तो उन रास्तों पर फिर से जाकर यादों को एक बार फिर से अहसास करना है...
 

motaalund

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अरे अगर गाँव भर की कुँवारी ननदो पर दिन भर सब भौजाइयों ने उन नंदों के सगे चचेरे भाइयों को चढ़ाया तो बेचारी घर में बैठी ननद ने कौन सा पाप किया था, उनका भी नंबर उनके भाई के साथ
आखिर बुआ भी तो ननद थी...
तो उनका किस्सा कुछ...
उन्हें भी तो ऐसे पाप से बचाना है..
 
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motaalund

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मैंने तो एक ही दिन में दो कहानियों पर अपडेट दे दिए

फागुन के दिन चार और जोरू का गुलाम, सोमवार को

और छुटकी पर भी अपडेट देना था लेकिन १ जुलाई को पोस्ट किया अपडेट और १५ दिन में कहानी पेज ९०९ से बढ़कर ९११, यानी सिर्फ दो पेज जब मैंने यह निराशा वयक्त की,,

मैं महीने में करीब ७ अपडेट पोस्ट करती हूँ, दो दो छुटकी और जोरू का गुलाम पे और ३ फागुन के दिन और अगर २० -२५ दिन कमेंट का वेट करना पड़े, तो थोड़ी हताशा होगी है, मानती हूँ जीवन की आपाधापी है लेकिन,
प्रॉब्लम ये है कि...
अगर ऑफिस से कमेंट्स करना हो तो कई बातों का ख्याल रखना पड़ता है...
और समय मिलते हीं अपनी तरफ से कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहता...

और निराशा हताशा मन में न लाएं..
हो सकता है कि कुछ पाठक (जैसे shetan ji) व्यक्तिगत कारणों से कमेंट न कर पा रहे हों...
सब समय का चक्कर है...
 
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motaalund

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But there should be some link, like say, .1 % of 30,000 will be 30, and the response was from 01 % . Means 99.99 % readers don't feel it worth to write even nice or useless
If you have visited any book fair, there are many person who visits stalls but rarely speaks and comments.
Kindly see the dedicated readers who visits your thread for your style of writing.
 

motaalund

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भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास

१८,८१,998


कल रात भर मेरे मरद ने अपनी सगी बहिनिया को मेरे सामने खूब हचक हचक के चोदा,

ननद मरद से पेली जाए वो भी सगी भौजाई के सामने, घर में रात भर, इतना मजा,.... चिंचिया रही थी, चोकर रही थी, चीख रही थी,

लेकिन मेरा मरद कउनो मुरव्वत नहीं, आपन सांड अस मूसल अपनी सगी बहनिया की बिल में एकदम जड़ तक, और एक दो बार नहीं छह बार, सबेरे तक ननद एकदम थेथर,

लेकिन अस चुदवासी, अस बुरिया में आग लगी थी अपने भैया का घोडा अस घोंटने के लिए की, ग्वालिन भौजी घर में थी, दरवाजा आधा खुला तो उन्ही के सामने...


और असली मजा तो ये की सिर्फ मेरे मरद का बीज ही नहीं लिया, पक्का गाभिन भी हो गयी और खुदे बोली,

" भैया नौ महीना बाद जॉन बिटीया होई तो ऐन छठी के दिन सौरी में ही तोहरे साथ ओकरे सामने, ...और जैसे वो बड़ी होई,... जे बीज लगाई फल भी तो उहे खायी "

और ये सुन के तो मेरा मरद एकदम पागल, ....कौन मरद नहीं होगा कच्ची अमिया के बारे में सोच के,

कल बहिन का नंबर लगा तो आज,...

आँख के सामने मरद अपनी सगी बहिनिया को, ननदिया को पेले,... उससे ज्यादा मजा सिर्फ एक चीज में है



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मरद अपनी महतारी पे चढ़े,... वो भी सास की बहू के सामने,और आज वो होना है, पक्का,



सास मेरी , इनकी महतारी,

खूब भरी भरी भरी देह, खेली खायी जोबन चोली में नहीं समाता, टप टप गुड़ की जलेबी की तरह रस टपकता है.

सोच सोच के मैं मस्ता रही थी, केतना मजा आएगा जब ये अपनी महतारी के भोंसडे में हुमच हुमच के,

सास कल होलिका माई के जाने के बाद बाकी सब गाँव की सासो के साथ गाँव के बाहर, एक छावनी है, औरतों की रात भर की आपस की मस्ती, जैसे आज मेरी ननद गयी हैं अपनी बियहता सहेलियों के साथ, सास आज रात को आएँगी जब मैं घर पहुंचूंगी उसीके आसपास,


कल इनको इनकी बहिनिया पे चढ़ा के जितना मजा आया था उससे ज्यादा मजा आएगा इन्हे इनकी महतारी पे चढ़ा के,

रस्ते की बँसवाड़ी, ताल पोखर, पार करते, पगडण्डी पगडंडी चलते, मैं आज दिन की बाते याद कर रही थी और रात में क्या होगा ये सोच के खुश हो रही थी,…


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शाम को लौटते हुए देर हो गयी, ननदें छोड़ ही नहीं रही थीं, अँधेरे में भी सब चालू थीं.

फिर रेनू और कमल को घर छोड़ा।

उसके पहले सुगना से बहुत देर तक, ... पठानटोली वाली हिना को वही तो छोडने जा रही थीं, तो बाकी पठानटोला क माल क हालचाल, कैसे उन सबों को अपने पुरवा में ला के, सुगना का दिमाग बहुत तेज चलता था इन सब कामों में और उस दिन दोस्ती भी अच्छी हो गयी.

रेनू कमल के यहाँ भी बात करने में लेट हो गया.



लौटते हुए मेरे दिमाग में कभी कल की बात कभी अपने सास के बारे में,...

कल रात तो अपने सामने अपनी ननद पे इन्हे चढ़वा के बहुत मज़ा आया. और ननद भी एकदम खुल के खेल रही थी, जब से होलिका माई ने पांच दिन के अंदर गाभिन होने की बात कही ऐसी गरमाई थीं की,... फिर हमने चमेलिया, गुलबिया और दूबे भाभी के सामने तीन तिरबाचा भी भरवा लिया था की अपने भैया के साथ हमरे सामने,...

और उनके भइया भी,... हमको तो लगता है पहले से कुछ लस्टम पस्टम, खुदे क़बूले की अपनी बहिनिया की ब्रा में मुट्ठ मारते थे,... लेकिन उससे ज्यादा नहीं,...


और कौन भाई नहीं होगा जो अपनी बहन को देख के न ललचाय, ... और बहन उनकी ननद मेरी थीं भी जबरदस्त, जोबन एकदम गद्दर, बड़े भी कड़े भी,और कुंवारेपन में कच्ची अमिया भी खूब कड़ी,...



मैं तो सवा सेर लड्डू मानी हूँ, पूड़ी चढ़ाउंगी, अगर हमार ननद पांच दिन में गाभिन हो गयी,..



लेकिन हमारी सास कैसे, ... वो तो बिना ज्यादा जोर जबरदस्ती के मान गयी अपने बेटे का खूंटा घोंटने के लिए. मेरी एक बात आज तक उन्होंने नहीं टाली।

लेकिन असली बात ये थी की उनका बेटा मानेगा की नहीं अपनी महतारी के ऊपर चढ़ने को, देख के ललचाना, पजामा क तम्बू बनना एक बात है लेकिन,...,



रास्ते भर मेरे दिमाग में यही उथलपुथल हो रही थी, कैसे, ...

वैसे सास हमारी अभी जबरदस्त माल थीं.

उनके समधियाने में दर्जनों का उनका नाम लेने से ही टनटना जाता है. वैसे तो चार बच्चे हैं उनके. मेरे जेठ, ये, मेरी ये ननद और छुटकी नन्द जो अभी नौवे में है और जो मेरी जेठानी के साथ शहर चली गयी है। तो इस हिसाब से तो चालीस -पैतालीस के बीच की होंगी, लेकिन लगती ३५ से एक दिन ज्यादा नहीं थी, और जोस भी उसी तरह, अरे एक भोजपुरी ऐक्ट्रेस हैं एकदम हूबहू उन्ही की तरह ट्रू कॉपी, ... जैसे लगता था जुड़वा बहने हो, कुम्भ के मेले में बिछुड़ गयी हों,... सेम टू सेम, हाँ जोबन के मामले में मेरी सास दो नंबर आगे हैं, अरे चलिए फोटो दिखा देतीं उन ऐक्ट्रेस की समझ जाइएगा, मेरी सास कैसी लगती होंगी,..



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गोरा चम्पई रंग, एकदम खुला खुला, नाचती गाती मुस्कराती काजल से लदी आँखे, भरे भरे गाल, गुलाबी होंठों से रस हरदम छलकता रहता, सुतवा नाक में कभी छोटी सी नथ तो कभी चमकती दमकती कील, माथे पर हरदम बड़ी सी लाल बिंदी, कानों में गालों को सहलाते झुमके,... जिससे जिनका ध्यान उन चिकने रसीले गालों की ओर न जाए, वो भी चला जाये।


और चिकने गालों से सरक के निगाह बस उन दो पहड़ियों पर, बल्कि पहाड़ों पर चली जाती थी,

मैंने बताया न उन ऐक्ट्रेस से भी दो नंबर आगे, ३८ डी डी। लेकिन एकदम कड़क. जैसे टेनिस वाली बाल होती हैं न स्पंजी लेकिन एकदम कड़क, दबाओ तो हलकी सी दबेंगी फिर जस की तस. दबवाया तो मेरी माँ की समधन ने न जाने कितनों से होगा, लेकिन अभी भी जस के तस. झूठ नहीं कह रही हूँ, चार पांच दिन भी तो हुए नहीं होली के, उन्होने मेरी चोली में हाथ डाल के माँ को गरियाया,


" बाप तो न जाने कौन है, इसकी महतारी को भी नहीं मालूम लेकिन गेंदा दूनो तो एकदम महतारी पे गया है। "

तो मैं क्यों छोड़ देती, मैंने भी ब्लाउज में हाथ डाल दिया उनके। खूब बड़े बड़े, कड़े. और मेरी एक बुआ सास थीं, उनकी ननद,... तो उन्होंने भी मुझे ललकारा,


" अरे तानी कस के बहुरिया,.. एहि क दूध पी पी के तोहार मरद इतना कड़क हुआ है " कड़े भी, मांसल भी और मेरी हथेली से बाहर।


ढक्कन वो भी नहीं लगाती और मैं भी. शादी के दो तीन दिन बाद ही मैंने अपनी सब ब्रा टिन के बक्से बंद कर दी और अपनी सास की तरह मैं भी बिना ढक्कन के, मेरा भी टाइम बचता, इनको भी आराम हो गया और देवर ललचाते सो अलग।

और मेरी सास ने तारीफ़ भी की,

" सही किया, इतना क्या मज़ा लेने देने वाली चीज़ को दुहरे ढक्क्न में बंद करना। "
वो लेकिन एकदम लो कट चोली पहनतीं, जरा सा झुकती तो पूरी गहराई।

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साड़ी भी मेर्री तरह कमर के नीचे ही बांधती और खूब टाइट, आगे से खूब गहरी नाभि साफ़ दिखती और पिछवाड़े से कसर मसर करते, लेफ्ट राइट करते, दोनों नितम्ब। पीछे से देखने वालों को पान के पत्ते की तरह चिकनी, खूब गोरी पीठ भी दिखती और गहरी नाली भी,... समझने वाले समझ जाते,... कामुक स्त्री की सबसे पक्की निशानी।

चूड़ियां कोहनी तक, और पायल हजार घुंघरू वाले, जब ये कभी दिन दहाड़े मेरे ऊपर चढ़े रहते, कभी कभी तो रसोई में ही। तो बस घुंघरू की आवाज हम दोनों को वार्निंग देने के लिए काफी थी।

दुबली नहीं थी, लेकिन एक इंच एक्स्ट्रा फैट भी नहीं। खूब मांसल गदरायी देह, गाल हो, जोबन हो, पिछवाड़ा,.. जो भी थोड़ा बहुत फैट था सब वहीँ।


जो एम् आई एल ऍफ़ कहते हैं न पक्की वही वाली,...

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लेकिन साला मादरचोद मेरा मरद अपनी मस्त माँ को चोदेगा की नहीं, मैं यही सोच रही थी.

सास तो मेरी मान गयी थी, वचन भी दे दिया था और एक बार वचन देकर वो मुकरने वाली नहीं थी,.. लेकिन स्साला मेरी सास का बेटा,... स्साला उसकी सब सगी चचेरी ममेरी फुफेरी बहनो पे मोहल्लों के गदहों को चढ़वाऊं, ...वो स्साला मानेगा की नहीं।
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अगले भाग इस पोस्ट के अगले पृष्ठ, पृष्ठ ९२० पर
साला मानेगा कैसे नहीं...
साजन की सजनी ने और उसके साथ की भौजाइयों ने घर की पुरनकी भौजाई को नया और अंजाना सुख देने का ठान जो लिया है...
 
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