सास ये पूछ कर अपने दिनों को याद कर रही है.... सास की शिक्षा
( भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
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मैं यही सोच रही थी और कस के अपनी चुनमुनिया भींचे हुयी थी न जाने कितने देवरों की मलाई भरी थी उसमें,
और ये ट्रिक भी मेरी सास ने समझायी थी।
प्यारी सहेली को कस के भींच के रखने वाली,
गौने की रात के अगले दिन या शायद एक दिन बाद, खाली मैं और वो थे तो मुस्कराते हुए उन्होंने पूछा,
" सुनो बहू, वो मलाई,... मलाई साफ़ कर देती हो क्या ? "
मैं बोली कुछ नहीं पर जोर से सर हिला के ना का इशारा किया।
रात भर तो सास का बेटा चढ़ा रहता है, पुरजा पुरजा ढीला कर देता है. सुबह दो दो ननदें पकड़ कर बल्कि टांग कर बिस्तर से उठाती हैं वरना पलंग से पैर जमीन पर नहीं रखा जाता। तो साफ़ करने की ताकत किसमें बचती।
सास जोर से मुस्करायीं और हल्के से बोलीं,
" साफ़ करना भी मत, मलाई को एकदम अंदर,... बुर अपनी कस के सिकोड़, जितनी देर तक मलाई अंदर रहेगी उतना ही फायदा होगा। बस कस के निचोड़ना जैसे मुतवास लगती है और मूतने की जगह नहीं,.. कोई आड़ नहीं,... तो का करती हो, सिकोड़ के, ....बस उसी तरह "
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मैंने हाँ में सर हिलाया, फिर एक परेशानी मन में आयी और मैंने सास के सामने उगल दी.
" लेकिन आप, चलिए आप से का छिपाना, ढकना,... लेकिन और गाँव की सास, ननद जेठानी सब रहती हैं। केतनो कस के निचोड़ूंगी, रात भर क,... कहीं एक दो बूँद सरक के रेंग के,... "
सास मेरी पहले तो खूब हंसती रहीं फिर दुलरा के मुझे चूम लिया और बोलीं,
" अरे तुम सच में बहुत भोली हो. अरे सुहागिन की यही दो तो निशानी है, मांग में सिन्दूर खूब भरभराता रहे, और नीचे दरार में मलाई बजबजाती रहे. अरे तोहार महतारी भेजी काहें हैं,... यही मलाई खाने को। "
इस मामले में मेरी माँ और सासू माँ में कोई फरक नहीं था। जब बिदाई के समय बाकी माँ बेटी को पकड़ के " अरे मोर बहिनी ' कह के रोती हैं,... वो मेरे कान में बोल रही थीं,
" जाओ रोज मलाई मिलेगी खाने को। "
और सासू जी कुछ समझा के कुछ प्रैक्टिस करा के,... रसोई में हम दोनों होते तो वो हंस के बोलतीं,
" निचोड़ कस के "
और मैं निचोड़ लेती दोनों फांके कस के, फिर चार पांच मिनट बाद वो बोलतीं, चल ढीली कर लेकिन धीरे धीरे,.. वो बढ़ के दस पंद्रह मिनट हो गया,... फिर और,
और अब तो जो पंजा लड़ाते हैं उन के पंजे में जितनी ताकत होती है, कोई हाथ नहीं छुड़ा पाता, झुका नहीं पाता उससे ज्यादा मेरी दोनों फांको में, मेरी चुनमुनिया में थीं।
आज कितने देवर, ...और सब की मलाई निचोड़ निचोड़ के मेरी बिल में भरी थी, मजाल की एक बूँद बाहर छलक जाए। मैं मुस्करायी सबसे बाद में कमल चढ़ा था। अरे अँधेरा होने लगा था,... बहनचोद क खाली औजार गदहा छाप नहीं था, कटोरी भर मलाई भी उगला था स्साले ने। जो बह के जांघ पे गयी अब तक चिपचिपा रही है.
और सबसे पहले बिट्टू, वो भी लीना और सुगना की बदमाशी,...
बताया तो था, लीना एकदम कच्ची कुँवारी और बिट्टू कमल से भी बड़ा उम्र में, लेकिन सुगना भौजी ने लीना को न जाने का घुट्टी पिलाई की वो खुद ही अपने सगे भाई के सामने टांग फ़ैलाने को तैयार,... और खूब मस्त भाई बहन की चुदाई,... जब मैं पहुंची उन दोनों के पास तो थोड़ी देर पहले ही बिट्टू ने अपनी छोटी सगी बहन की, कुतिया बना के लेना शुरू किया था, हचक के पेल रहा था, सुगना के सामने अपनी बहिनिया को।
ननद भाई से चुद रही हो और भौजाई छेड़ें नहीं।
मैंने और फिर सुगना ने लीना को चिढ़ाना शुरू किया। पहली बार फटी थी, दो बार की चुदाई के बाद थोड़ी देर में लीना थक कर चूर हो गयी। लेकिन बिट्टू का फिर से फनफनाने लगा।
मैंने ही छेड़ा, " क्यों लीना ले ले, फिर से खड़ा हो गया है। "
सुगना की ओर देख के लीना हंस के बोली , नहीं अब भौजी क नंबर।
सुगना सच में रस क जलेबी थी, पोर पोर से रस चूता था। और बातों में देखने में भी, बस देखने वाला निढाल, लेकिन उसने तीर मेरी ओर मोड़ दिया,
" अरे नयकी भौजी क नंबर लगावा पहले,... छोट क नंबर पहले और हम मना थोड़े ही कर रहे हैं,... "
और मैं भी गरमा गयी थी पहले रेनू की जो जबरदस्त चुदाई फिर गाँड़ मराई कमल ने की थी, फिर पठानटोली वाली की जो रगड़ाई हुयी थी, और ननद की बोलती बंद करने में मैं पीछे नहीं रहने वाली थी,
बिट्टू को चिढ़ाते बोली,
" ये स्साला बहन चोद ये क्या चोदेगा मुझे, मैं इसको चोद भी दूंगी और मुझे बिना झाड़े झड़ा तो इसकी और इसकी बहन दोनों की गाँड़ मारूंगी।"
मुझे न बिट्टू की गाँड़ मारने का मौका मिला न लीना का, कुछ देर बाद बिट्टू ऊपर था,.... और क्या जबरदस्त धक्के लगाए,...
उसके बाद तो कम्मो का भाई पंकज,
रूपा और सोना का भाई मुन्ना,...
राजा,...
और दोपहर बाद जब ननदें सब चुद गयीं तीन तीन चार बार, पहले अपने सगे चचेरे भाइयों से , फिर गाँव के बाकी लौंडों से,... तो कुछ नए नए जवान हो रहे लौंडों का जोश कुछ भौजाइयों के जोबन का रस और कुछ दूबे भाभी के शिलाजीत वाले लड्डू का असर ,
जैसे गुड़ में चींटे लगते हैं वैसे सब देवर मेरे पीछे, तीनों छेद के बाद भी
और ननदें, ख़ास तौर से जिनकी आज पहली बार फटी थी जिनमे सबसे आगे रेनू और बेला, अपने भाइयों के पीछे पड़ गयीं,
" अगर तुम सब को अपनी अपनी बहन का मजा चाहिए न तो नयकी भौजी को दूध से नहला दो आज "
बस सब लड़के एक साथ,... और भौजाई सब भी अपने देवरों के साथ,... दर्जन भर से ऊपर लौंडे एक साथ, ...
मैं कस के चुनमुनिया भींचे, आज की मस्ती सोच के मुस्कराते जल्दी जल्दी घर की ओर चल रही थी , अँधेरा तो था लेकिन अब आसमान में चाँद मामा भी टार्च लाइट फेंक रहे थे। लग रहा था घरों में सास लोग अभी पहुंची नहीं थी.
बहुओं के तेज तेज बोलने की आवाज आ रही थी.
लेकिन जब मैं घर पहुंची तो दरवाजा खुला,... और अंदर से इनके फेवरिट खाने की और ताजे गन्ने के रस से बने बखीर के हलके हलके पकने की मीठी मीठी महक आ रही थी।
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भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
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ताकि बहु बेटे को बता दे कि सास को क्या-क्या अच्छा लगता है...