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जोरू का गुलाम भाग ३० - रात भर मस्ती - बारी ननदिया गुड्डी
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some new surprise.भाग ९०
वह रात
१९,२४, २५९
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अबकी जो सास बोलीं तो मैं चिढ़ाते बोली " अरे अभी हमरे सास क पूत आ रहा है, नम्बरी बहनचोद, मादरचोद, झड़वा लीजियेगा न उससे जो मजा बेटे के साथ है वो बहू के साथ थोड़ी है , ... "
तबतक बाइक की आवाज सुनाई पड़ी, हल्की सी दूर से आती हुयी,
मेरी सास खिलखिलायीं, " आ गया तेरा खसम, अभी ठोकेगा मेरी समधन की बिटिया को "
"एकदम आपकी समधन ने दामाद किसलिए बनाया था उनको, इसीलिए तो लेकिन आज मेरी सास का पूत पहले मेरी सास को,... "
हँसते हुए सास की बिल में एक साथ दो ऊँगली ठेलते हुए मैंने उन्हें चिढ़ाया।
लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,... ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,
जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,
सांकल की आवाज, साथ में जोर से दरवाजे को खड़काने की आवाज आयी, मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया,नौ साढ़े नौ हो गया था, पूरे गाँव में सोता पड़ा था, और सामने मेरे,
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चिंटू इनका खास दोस्त, बगल के गांव का, एकदम बदहवास, बाल बिखरे, शर्ट की बटन भी जल्दी में उल्टी सीधी बंद,
मैं किसी अनहोनी की आशंका से घबड़ा उठी, मेरी सास के तो बोल नहीं फूट रहे थे,
" का हुआ चिंटू भैया, तोहार भैया,.... " बड़ी मुश्किल से मैं बोल पायी।
चिंटू मुझे पल भर देखता रहा, फिर बड़ी हिम्मत बटोर के रुक रुक के बोल पाया,
" भौजी,.... भैया,... अस्पताल,... पुलिस,"
मुझे तो जैसे काठ मार गया, कुछ सूझा नहीं थोड़ी देर को, लेकिन फिर हिम्मत कर के मैं बोली,
" चिंटू भैया अंदर आइये, बैठ के बात करिये, "
मेरी सास पर तो जैसे बज्र गिर गया था, मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे, बस पथराई आँखों से मुझे देख रही थीं। अब सब मुझे ही सम्हालना, अपने को भी सास को भी.
चिंटू बैठ गया था, मैं उसके लिए पानी ले आयी, और पानी पी के थोड़ी उसकी हालत ठीक हुयी। उसने बोलना शुरू किया,
" भैया,... "
" का हुआ भैया को " अब मेरी सास से रहा नहीं गया, वो बोल पड़ीं। मैंने इशारे से उन्हें चुप रहने को बोला और चिंटू के हाथ में दुबारा पानी की ग्लास पकड़ा दी।
पानी फिर पिया उसने, सांस ली और बोला,
" भैया कहलवाए हैं, ... "
और अब मेरी और मेरी सास की साँस फिर चलना शुरू हुयी। मुझे मालूम था की किसी को खाली पानी नहीं देते, झट से मैं एक प्लेट गुझिया ले आयी,
" भैया, गुझिया खा लो, अपने हाथ से बनायी हूँ, इतना दूर से आ रहे हो, पहले खा लो, फिर पानी पी के आराम से बताओ। " मैं बोली,
सास मेरी बगल रखी बसखटिया पर बैठ गयीं, मैं खड़ी ही रही और चिंटू ने बोलना शुरू किया,
कुल मिला जुला के बात यह थी की परेशानी इनकी नहीं नन्दोई जी की थी, बल्कि नन्दोई जी के एक दोस्त की, एकदम घर ऐसा दोस्त, सगे भाई से बढ़कर,
Very very hot update.सास और सास का पूत
और जैसे दस मिनट हुए मैंने इशारा किया, उन्होंने पलटी मारी और सास ने भी साथ दिया ,
सास नीचे सास का बेटा ऊपर।
और फिर तो उनको चौसठों कला आती थी। कोका पंडित ने जितने आसान बनाये थे उससे भी दो चार ज्यादा, पूरा बित्ते भर का मोटा खूंटा अपनी महतारी के बिल में घुसेड़ के जड़ तक, उन्होंने मूसल के बेस से मेरी सास के क्लिट को रगड़ना शुरू किया और अब छटपाने की सिसकने की बारी मेरी सास की थी, लेकिन वो बोल तो सकती नहीं थी, इसलिए मैं उनकी ओर से जले कटे पे नमक छिड़क रही थी।
सास के बेटे के पीछे खड़े हो के उनके पीठ पे कभी अपने जोबन रगड़ती, कभी मेरी उंगलिया जड़ तक धंसे खूंटे के बेस पे जा के बॉल्स को सहलाती और उनसे कहती
" हाँ, ऐसे ही, और जोर से रगड़ो, झाड़ दो साली को "
और जब वो कमर उचका रही थीं, उन्होंने क्या जोरदार आलमोस्ट पूरा बाहर निकाल के तीन चार धक्के ऐसे जोर से मारे की मेरी सास झड़ने लगीं, वो हिचकियाँ भर रही थी, सिसकियाँ ले रही थी , लेकिन उस समय कोई मरद सुनता है क्या ? वो तो और जोर से,
लेकिन मेरी सास भी कम नहीं थी, थोड़ी देर में फिर गरमा गयी,
इत्ते दिनों के बाद मोटे मूसल का स्वाद मिला था, अब मामला दोनों ओर से था, लेकिन दस मिनट हो रहा था ब्लाइंड फोल्ड खोलने का टाइम, मैंने सास को इशारा किया, उन्होंने हाँ भर दिया पर साथ साथ आपै दोनों टांगो से कस के मेरे मरद को भींच के पकड़ लियाऔर बुर भी एकदम टाइट, और एक बार वो टाइट कर लें तो कोई ऊँगली न निकाल पाए अंदर से यहाँ तो मोटा लंड था। मैंने भी उन्हें पीछे से दबोच रखा था, और ब्लाइंडफोल्ड खोल दिया,
वो अपने नीचे दबी अपनी माँ को देख कर एक बार सकपकाए,
लेकिन हम सास बहू की मिली पकड़,... चाह के भी नहीं निकाल सकते थे और मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन सास बड़ी थीं, मोर्चा उन्होंने अपने हाथ में ले लिया और इन्हे हड़काते हुए बोली
" अरे पूरी दुनिया में, ससुराल में , यहाँ , लौंडो को, लौंडियों को , कल की कच्ची कलियों को चोदते रहते हो और मेरी बुर में क्या कांटे लगे हैं। पेल कस के आज देखूंगी तेरी ताकत, अगर निकालने की सोचा भी न "
और सास की बात सुन के मुझे भी जोश आ गया और मैं भी इन्हे हड़काने में जुट गयी,
" निकालने की तो सोचना भी मत बाहर,.... अगर मेरी सास को नहीं चोदोगे तो मेरी भी नहीं मिलेगी, ...स्साले तेरी साली और बहन दोनों नहीं है बस अपना हिलाते रहना। अच्छा चल मेरी सास नहीं अपनी सास समझ के पेल पूरी ताकत से "
और मेरे तरकश में भी अनेक तीर थे,
बस मैंने तर्जनी सास के बेटे की पिछवाड़े की दरार पे रगड़नी शुरू कर दी
और नतीजा तुरंत सामने आया, क्या जबरदस्त धक्का सास के बेटे ने सास की बुरिया में मारा, कोई और होता तो चीड़ता फाड़ता, अंदर तक,
लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थीं, उन्होंने तुरंत प्रेम गली को ढीला किया और उसे अँकवार में भर लिया, साथ ही खिंच के बेटे के दोनों हाथ जोबन पे
बस उसके बाद तो न कहने लायक, न लिखने लायक
दस पन्दरह मिनट बाद जब उन्होंने मलाई फेंकी तो उसी समय सास में भी किनारे लग चुकी थीं।
और उसके बाद तो अगली बार निहुरा के
लेकिन सपने में कोई नियम कायदा तो होता नहीं,
सपने में सास मेरी रसोई में झुकी हुयी चावल धो रही थी
और मेरी नींद हलकी सी खुल गयी लेकिन मैंने कस के आँख मींच ली और सपना फिर गतांक से आगे चालू हो गया
ये आये और मैंने मुस्करा के एक बार देखा और बदमाशी से सास का साडी साया ऊपर उठा दिया, बस खेल चालू
मजा तो सास को भी बहुत आ रहा था लेकिन बनावटी गुस्से से बोलीं, " अरे बहू कम से कम रसोई में तो "
" और जब आप का बेटा मुझे रसोई में दिन दहाड़े गौने के तीसरे ही दिन, और आप ने देखा भी लेकिन उलटे पैर चली गयीं " मैंने भी उसी तरह छेड़ते हुए बोला
लेकिन कोई माँ बेटे को दोष देती है क्या और वो भी बहू के सामने, तो मेरी सास ने भी सब दोष मेरे ऊपर धर दिया,
" अरे मेरी बहू है ही इतनी सुन्दर, गर्मागर्म माल, रस की कड़ाही से निकली जलेबी, ....उसे देख के मेरे बेटे का मन डोल जाता था , उस की क्या गलती "
वो मुस्कराते बोलीं और तबतक उनके बेटे ने गली के अंदर दाखिला ले लिया था , दोनों जोबन उसकी मुट्ठी में कस के
मैं कहीं और देख रही थी, इधर उधर और मुझे देसी घी वाला ही डिब्बा दिखा और हथेली पे उसे लुढ़काते हुए मैं बोली
" मेरी सास किसी से कम हैं क्या, जब चूतड़ मटकाते चलती हैं तो आदमी क्या गदहों का खड़ा हो जाता है और जित्ते लौंडो की नेकर सराक एक मारी होगी न, मेरी सास का पिछवाड़ा उससे भी टाइट है "
और सारा का सार हाथ का घी सास के गाँड़ के छेद पे, और जो थोड़ा बहुत निकल रहा था उसे भी अपनी ऊँगली में लपेट के अंदर तक, पहले एक ऊँगली और फिर उसपे चढ़ा के दूसरी ऊँगली और दो ऊँगली भी घी लगी होने पर भी मुश्किल से जा रही थी। लेकिन मेरा वाला तो गाँड़ मारने में एकदम उस्ताद, अपनी कच्ची कोरी दस में पढ़ने वाली साली की खाली थूक लगा के गाँड़ मार दी थी, तो मेरी सास तो
और जब प्रेम गली से खूंटा बाहर निकला तो बस हाथ में लगा सब घी लगा के मैंने कस कस के मुठियाया और उनके सुपाड़े को मेरी सास के पिछवाड़े, गोल छेद को चियार के सटा दिया, और बोली
" मार धक्का "
उधर सास के पिछवाड़े मेरे मरद का जोरदार धक्का पड़ा और मेरी नींद टूट गयी,
बाहर अच्छी खासी धुप निकल आयी थी, मैं बिस्तर पे एकदम उघारे, बस नीचे गिरी साड़ी लपेट ली और बाहर, जहाँ मेरी सास बैठी थीं ।
Awesome lesbian actionसास बहू
थोड़ी देर में मैं मेरी सास और मैं हम दोनों पलंग पर थे लेकिन नींद कोसो दूर थी। मेरे मन में इन्ही को लेकर चिंता थी। मुझे पूरा मालूम था की ये एक बार पहुँच गए हैं तो सब कुछ सम्हाल लेंगे। पुलिस, हस्पताल सब. लेकिन मन का क्या करें, मन का काम परेशान होना है, वो हो रहा था. मैं अपने मरद के लिए सासू माँ अपने बेटे और दामाद दोनों के लिए.
मैंने खुद को समझाने के लिए सासू माँ को समझाना शुरू किया,
" माता जी परेशान न होइए, वो पहुंच गए होंगे कभी के, उन्होंने तो पहले ही कहलवा दिया था की वहां से फोन नहीं हो पायेगा, सब ठीक होगा, नन्दोई जी को भी कुछ नहीं होगा, "
" मालूम है मुझे लेकिन क्या करूँ मन का,... बार बार यही सोचती हूँ जब चिंटू आया था कैसी घबड़ाहट हुयी लेकिन तुमने कैसे सम्हाला, बहुत हिम्मत है तुममे "
मुझे बाँहों में भींच के बोलीं वो।
'असल में मेरी एक सास हैं इस घर में और उनके रहते मुझे मालूम है इस घर में कोई अलाय बलाय नहीं आएँगी आने के पहले वो उसकी माँ चोद देंगी, बस उन्ही सासू माँ के चलते मेरे में हिम्मत आ गयी है अब मैं किसी से भी नहीं डरती, न घबड़ाती, मेरी सासू माँ हैं न मेरे साथ "
उन्हें और कस के भींचते हुए मैंने बोला।
" तू पागल है"
ये कह के उन्होंने अपना फैसला सुना दिया, और दुलार से मेरा सर सहलाने लगीं। लेकिन फिर अपनी परेशनी सुना दी,
" पता नहीं क्यों अभी भी एक तो दिल धड़क रहा है, नींद नहीं आ रही "
मैं समझ रही थी उनका टेंशन और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी।
" रुकिए माता जी " कह कर मैं इनकी अलमारी के पास गयी और खोला।
पीने के मामले में ये कभी कभार वाले थे लेकिन नन्दोई जी तो पीते ही थे और वो आते तो रोज बोतल खुलती भी ख़तम भी होती। और ये साथ देते ही, इसलिए इनकी अलमारी में दो चार बोतल नयी हरदम ही रहती, और मर्द तो हर घर में लेकिन औरतें भी, होली में,
मेरी इन्ही ननद ने चार पाउच, देसी वाले सीधे, होली का परसाद है कहकर, फिर इतनी चढ़ी मुझे की रंगे पुते अपने सगे समान ममेरे भाई को पटक के जबरदस्ती, देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ के चोद दिया, वो चिंचियाता रहा और तो और फिर जब वो मेरे ऊपर चढ़ा था, तो ननदोई जी ने पीछे से उसकी गाँड़ भी मार ली, और मैं समझ रही थी, मेरा देवर है तो उनका साला लगा
अलमारी से बोतल निकाल के मैं ग्लास लेने जा रही थी तो मेरी सास ने टोका,
"कहाँ आधी रात में ग्लास लेने जा रही है , ला सीधे बोतल से ही"
और बिस्तर पर सास के बगल में बैठ के मैंने एकदम छोटी सी घूँट, हल्की सी कड़वी लगी लेकिन मैं घोंट गयी और मेरे मन में आइड्या आ गया की सासू माँ को कैसे पिलाया जाय.
मैं अपनी सास के ऊपर लेटी,
उन्होंने धीरे धीरे खींच के मेरी साड़ी उतार के नीचे और मैं क्यों छोड़ती। थोड़ी देर में सास बहु की साड़ियां एक साथ पलंग के नीचे और सास बहू पलंग पर,
और अबकी बोतल से ढेर सारा मेरे मुंह में, थोड़ी देर मुंह में गोल गोल घुमाती रही, फिर दोनों हाथों से कस के सास के गुलाबी मांसल गाल दबाया, उन्होंने खुद मुंह खोल दिया और मेरे मुंह से शुद्ध दारु, मेरी सासू के मुंह में।
और उसके बाद मेरी जीभ, सासू लंड चूसने में जरूर पक्की होंगी जिस तरह से वो मेरी जीभ चूस रही थी, क्या मस्त।
उसी समय मैंने तय कर लिया जल्द बहुत जल्द अपने सामने सासू के मुंह मोटा लौंड़ा जरूर घुसवाऊँगी, और किसका सासू के पूत का,… मस्त चूसेंगी ये।
और जब तक वो मेरी जीभ, मेरे हाथ, उनके जोबन का रस ले रहे थे, मेरी गुलाबो उनकी चमेली पर घिस्से मार रही थी,
और सिसकते हुए जब उन्होंने मेरे होंठों को छोड़ा, एक बार फिर बोतल मेरे मुंह में और दो पेग के बराबर थोड़ी देर में मेरे मुंह से होते हुए सास के मुंह में, और अबकी मैंने उनके दोनों होंठों को अपने होंठों से दबोच लिया, कस कस के चूसंती रही, जब तक एक एक बूँद दारु की सासू जी के पेट में नहीं उतर गयी।
लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थी,
एक बार मेरी ट्रिक और चली पर चौथी बार,
पहले तो जब बोतल मेरे मुंह में लगी, मैंने पहली की तरह दारू मुंह में डाली, बस सासू जी ने मेरी कलाई पकड़ ली। उनकी पकड़ और सँड़सी मात, और गटर गटर मुंह से मेरे पेट में जाने लगा, कबतक मैं मुंह में रोक के रखती। और जो थोड़ा बहुत बचा था, मेरी सास ने अब अपने होंठ, मेरे होंठों पर चिपका दिए और मेरे मुंह से वो भी मेरे पेट में चला गया.
अब बोतल उनके हाथ और उन्होंने जो किया में सोच भी नहीं सकती थी.
जिन बड़ी बड़ी चूँचियों का दूध पीके मेरा मरद इतना तगड़ा हो गया की उसका खूंटा हाथ बाहर मोटी दीवाल में भी छेद कर दे.
बस वही मस्त चूँची बड़ी बड़ी भी कड़ी कड़ी भी, मेरे खुले होंठों के ऊपर, कभी निपल रगड़ देती कभी उठा लेती,
फिर बूँद बूँद बोतल से मदिरा और जोबन दोनों का नशा मेरे होठों से मुंह में सरकता हुआ और मेरी धमनियों शिराओं से सीधे मेरे तन मन को पागल करता,
लेकिन थोड़ी देर में मैंने बोतल सासू की माँ के हाथ से छीन ली, जवानी की ताकत, और बोली,
" आपके बेटे को ऐसे पिलाती हूँ,..."
मेरी गुलाबो सासू जी के मुंह से सटी हुयी और बोतल से बूँद बूँद पहले मेरी क्लिट को भिगोता, फिर दोनों गुलाबी फूली फूली फांको को गीली करता सासू माँ के खुले मुंह, उन्होंने खुद मुंह खोल रखा था और चुसूर चुसूर पी रही थीं, लेकिन थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, पहले तो जीभ निकाल के उन्होंने उन दारू से भीगी गुलाबी रसीली फांको को छूने की कोशिश की, फिर गरदन उठा के मेरी दोनों फांको को अपने होंठों के बीच में,
मन तो मेरा भी कर रहा था, मैंने भी अपनी रसीली चुनमुनिया रगड़नी शुरू कर दी और सासू जी ने चूसना शुरू किया,
कई बार तो मुझे लगता था की ये जो जबरदस्त चूत चटोरे हैं ये उन्होंने अपनी महतारी से खून में पाया है,
बोतल मैंने नीचे रख दी थी, आधी से ज्यादा खाली कर दी थी हम दोनों ने और हम दोनों पर अब उसका असर चढ़ गया था,
कुछ देर तक तो मैं अपनी बुर सासू जी के मुंह पे रगड़ती रही लेकिन मुझे वो सुरंग दिखी जिसमें से मेरे बालम निकले थे और रोज मेरी सुरंग में बिना नागा घुसते हैं। देख के मेरा मन ललचा गया, और मैं सासू से बोली,
" सासू माँ बहू का काम है सास की सेवा करने और मैं आप से करवा रही हूँ, पहले मैं "
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