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22,43,338 ये और ननद, मेरे कमरे में, कभी हंसने बिहँसने की आवाज आ रही थी, कभी चूड़ियों के चुरमुर की तो कभी पायल की रुनझुन की,
इन्हे तो नहीं मालूम था पर ननद को तो मालूम था और मुझे भी, ...
कल अगर, अगर कल सुबह, भोर, तक कुछ नहीं हुआ, तो ससुराल लौटने पर सास उसकी, उस आश्रम में भेज के ही दम लेंगी, कोई नहीं बचा पायेगा उनको,
बस कल सुबह,
और मैंने तो फोन पर जिस तरह ननद की सास की बातें सुनी थी, नन्दोई को हफ्ते भर के लिए बाहर भेजने का,… और ननद को उन मुस्टंडीयो के साथ, यमदूतों का स्त्री रूप,
और नन्दोई की हिम्मत भी नहीं पड़ी चूं करने की, एक बार कुछ आवाज निकाली उन्होंने तो उनकी मा की सिसकी, और फिर,…
बस मुझे मुग़ले आजम का वो आखिरी सीन बारबार याद आता था, जब अनारकली को सलीम के साथ एक रात बिताने की इज्जात दी गयी थी और अगले ही दिन उसे दीवाल में चुनवा दिया जाना था । उसे सलीम को फूल सुंघा के बेहोश कर देना था जिससे जब सिपाही उसे जिन्दा दीवाल में चुनने के लिए ले जाएँ तो सलीम को पता न चले ।
आज की रात,
आज की रात कट नहीं रही थी , न मुझसे,... न मेरी सास से।
ननद ने उनसे कुछ नहीं बताया था, लेकिन माँ जो नौ महीने बेटी को कोख में रखती है, पैदा करती है, पाल पोस कर बड़ा करती है, बिन बोले ही,… बेटी भले उसकी चेहरे से मुस्कराये, खुश रहे लेकिन आँखों की खिड़की से झाँक के मन का हाल पता कर लेती है।
लोग कहते हैं दुःख बांटने से कम होता है लेकिन वो दुःख, वो डर जो मैं न उनसे कह सकती थी, …न बाँट सकती थी,
बस इतना विश्वास था मेरी माँ की तरह उन्होंने जो मुझे शक्ति दी थी, मैंने अपनी ननद के आगे ढाल बन कर खड़ी होउंगी, उनपर आयी किसी विपदा को पहले मुझसे टकराना होगा।
मेरी माँ भी, बचपन से यही एक बात सिखाती थीं, कोई किसी के बारे में कहे की उनका जीवन दुःख सहने में बीता तो तुरंत बात काट देतीं बोलती, दुःख सहने में नहीं उससे लड़ने में, उसका सामना करने में बीता।
एक दिन कोई सीरियल आ रहा था, या कोई प्रोग्राम, अगले जन्म मोहे बेटी न कीजो, माँ ने तुरंत बंद कर दिया, और बोलीं एकदम गलत अगले जन्म में ही बेटी का जन्म मिले
माँ ने अकेले हम तीनो बहनों को पाला था, कभी उनके चेहरे पर मैंने उदासी नहीं देखी थी,
बहुत दिनों तक हम तीनो बहने उनके पास ही सोती थी, सिर्फ इस लालच में की वो रात में कहानी बहुत बढ़िया सुनाती थी, अक्सर देवी माई की, एक राक्षस सब देवताओं को तंग करने लगा और सब लोग देवी माई के पास आये और बस, एक कहानी हम लोगो को बहुत अच्छी लगती की एक राक्षस ऐसा भी था की उसके हर बूँद से एक राक्षस, और देवी माई ने, उसका भी,...
और माँ बोलती भी थी, देखो आते है सब लोग देवी माई के पास तो कैसे कह सकते हैं की लड़की, औरत कमजोर होती है,
सुबह मैं उठती थी, माँ को देखती थी तो,... बस देवी माई याद आती
इंटर का रिजल्ट भी नहीं आया था गौने आ गयी, मुझे शादी, गौने के लिए डर नहीं था, लेकिन, और माँ ने बिन कहे मेरा डर समझ लिया
" बोलीं तू घबड़ा मत, तेरी सास से मैंने कह दिया है की तीन साल तक बच्चे के लिए बात नहीं करेंगी " और माँ ने मुझे गोली दिलवा दी थी।
लेकिन मेरी सास, उन्होंने जोर से हड़का लिया, गौने उतरे दो दिन ही हुआ था, अचानक मेरी सास बोलीं,
" मेरी समधन ने कहा था, तीन साल तक,… "
मुझे लगा मेरी सास अब हड़काएंगी तो मैंने तुरंत बहाना बनाया, " वो मैं ही, ऐसा कुछ नहीं, बस, " मैं जानती थी सब सास बहू के पीछे पहले दिन से पड़ी रहती हैं, " पोते का मुंह देखना है पोते का मुंह देखना है तो ये भी कुछ उसी तरह से सोच रही होंगी।
उन्होंने मेरी बात सुनी ही नहीं बस हड़का दिया " एक बात कान खोल के सुन ले दुल्हिन, कोख किसकी है तेरी, नौ महीने पेट में किसे रखना है तुझे, पैदा होते समय दर्द किसे होंगे तुझे, तो बस ये पक्का है , ये फैसला न तेरे मरद की सास करेंगी न तेरी सास, जब तेरी मर्जी हो "
और अगले दिन खुद ले के गयीं आसा बहु के पास और ताम्बे का ताला लगवा दिया, रोज रोज गोली के झंझट से छुट्टी।
रस्ते में लौटे हुए मैंने उनसे पूछा की मान लीजिये किसी पास पड़ोसिन ने, ,,,,
एकदम रूप बदल गया उनका और बोलीं, " बस मुझे बता देना, मुंह न झौंस दूँ उसका तो कहना "
लेकिन आज उन हिम्मती सास की भी,
हम दोनों बहुत देर तक बिना बोले बतियाये, खिड़की से बाहर धीरे धीरे सरकती रात देखते और मन में दोनों के बस यही सवाल था,
' होलिका माई की पांच दिन वाली बात ठीक होगी न, .....कल सुबह नन्द जी का टेस्ट, '
विश्वास मुझे पूरा था मैं तो चार पांच प्रिग्नेंसी किट बगल में रख के लेतऔर मुझसे ज्यादा मेरी सास को, लेकिन दांव पर इतना कुछ था
लेकिन कुछ तो बात करनी ही थी, मन बहलाने को, चिंता को टालने को, अब जो कल सुबह जो होगा, होगा,
कभी मेरी नजर बाहर खिड़की से बाहर पड़ती, काली चादर आसमान ने तान रखी थी जैसे रात गहरी नींद सो रही हो, बड़े बड़े पेड़ भी अलसाये नींद में, बस उनकी छाया, पूरे गाँव में शायद मैं और मेरी सास इस तरह जग रहे थे, मन की चिंता पलकों के किवाड़ को बंद ही नहीं होने दे रही थी।
मैंने सास को उनकी मायके की बात को लेकर छेड़ा, उनके एक ही भाई था, छोटा यहां से थोड़ी दूर पर ही गाँव था लेकिन इस सावन में कई बरस बाद गयी थीं जब मैंने धक्के लगा के उन्हें भेजा था। और बात सीधे मेरी ननदो पर चली गयी।
इनकी दो ममेरी बहने थी, चुन्नी और टुन्नी
दोनों से मैं अपने गौने में ही मिली थी, छुटकी की उम्र के आसपास की, थोड़ी छोटी।
जब मैं गौने आयी तो दोनों छोटी ही थीं, लेकिन जब बाकी ननदें मुझे छेड़ती, गौने की रात के बाद सब ननदों ने घेर कर मुझसे ' रात की बात ' पूछी, लहंगा पलट के ;नीचे वाले मुंह की मुंह दिखाई' की, वो दोनों सबसे आगे बैठीं, कान पारे सब सुन रही थीं, खिलखिला रही थीं।
और जो ननदें थोड़ी लजाती हैं, झिझकती हैं नई आयी भौजाइयां सबसे पहले उन्ही को छेड़ती हैं, तो मैंने भी उन दोनों को खूब रगड़ा।
गाँव में लड़कियां, शादी ब्याह, रतजगा में जा जा के बहुत जल्द जवान हो जाती हैं, बाकी कसर कामवालियां छेड़ छेड़ के एकदम खुली बात कर के ,
तो सास से मैंने चुन्नी टुन्नी की बात चलायी,
' अब तो बड़ी हो गयी होंगी, बहुत दिन से देखा नहीं उनको, गौने में बस मिली थी "
तो मेरी सास भी खुल गयी,
" हाँ वो दोनों भी जिद कर रही थीं, आने के लिए, लेकिन अभी तो उनका इम्तहान चल रहा होगा, और यहाँ आके उनका मन भी बहल जाएगा, मैंने छेड़ा भी बुआ से मिलने का मन कर रहा है की,.. तो वो सब साफ़ बोली, ...भाभी से। "
बस इतनी ओपनिंग काफी थी मेरी लिए
" अरे इम्तहान चल रहा है तो हफ्ते दस दिन में ख़त्म हो जाएगा, फिर दो महीने की गर्मी छुट्टी, बुलवा लीजिये न "
" किसके साथ आएँगी दोनों, तेरे मरद के मामा को तो छुट्टी नहीं मिलती इतना काम धंधा फैला दिया है, मुश्किल से दो घंटे को राखी के दिन आ पाता है " सास ने एक और परेशानी खड़ी की लेकिन मेरी ऐसी बहु क्यों लायी थीं उनकी परेशानी सुलझाने के लिए ही न।
" अरे ये छह फुट का लौंडा मेरी सास ने काहें पैदा किया है, भेज दीजियेगा उनको, सबेरे जाएंगे, सांझ को फटफटिया पे दोनों को बैठा के ले आयंगे। मैं भी कल उन दोनों को बोल दूंगी, इम्तहान के अगले दिन ही डोली कहांर भेज रही हूँ, आज जाएँ गौने। “
मेरी सास खिलखिलाने लगी, बोली चल मैं भी बोल दूंगी, और करवट मोड़ के सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं मायके की याद थी या फिर वही चिंता लेकिन उन्होंने भी बात बदलने के लिए एक नयी बात चलाई
मेरी सास खिलखिलाने लगी, बोली चल मैं भी बोल दूंगी, और करवट मोड़ के सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं मायके की याद थी या फिर वही चिंता लेकिन उन्होंने भी बात बदलने के लिए एक नयी बात चलाई
छुटकी कब तक रहेगी,
बनावटी गुस्से से मैंने अपनी सास को पकड़ लिया और बोली,
" अब आप उसको धक्के दे के भगाने पे तुली हैं, सावन में मुझे धक्के दे रही थी, मायके जाओ, मायके जाओ और मैंने आपको मायके भेज दिया और दनदनाते अपनी ननद के साथ खूब सावन के मजे लिए,... उसी तरह मेरी बहन भी कहीं नहीं जाने वाली। "
उनका दुःख मैं समझ सकती थी,
मेरे मायके से आने से पहले ही जेठानी जी मेरी छोटी ननद को, छुटकी से थोड़ी ही बड़ी, अपने साथ ले के बंबई चली गयीं, ये बोल के की वहीँ उसका नाम लिखवाएंगी, यहाँ गाँव में,
तो छुटकी के आने से एकदम से घर में चहल पहल, मैं तो तब भी घर की बहू थी, वो तो अपने जीजा की साली।
और सास से उसकी मिलते ही दोस्ती हो गयी, पक्की वाली, दोनों लोग झगड़ा भी करतीं,... बतियाती भीं मिल के सहेली की तरह, देह सुख तो था, मेरी सास को सब बड़ी उम्र की औरतों की तरह कच्ची अमिया कुतरने का शौक था,
लेकिन उनका अकेलापन भी ख़तम हो गया था, जैसे बंद कमरे में कच्ची धूप पसर गयी हो,
वो भी समझ रही थीं, मेरी बदमाशी से उनके दुःख की चादर पल भर के लिए उतर गयी, खिलखिलाते, मुझे दुलराते पकड़ के बोलीं
" अरे मैं भगा नहीं रही हूँ, मेरा बस चले तो तो तुम दोनों को मोटी रस्सी से बाँध के अपने पास रखूं, उसका इम्तहान,... "
" अरे नहीं, सालाना इम्तहान नहीं देगी, उसकी भौजाई ने कर दिया है इंतजाम वो वाइस प्रिंसिपल हैं, छमाही में अच्छे नंबर थे बस उसी पे, नौवा हैं कौन बोर्ड का, तो जून तक तो गर्मी की छुट्टी भर, अभी कच्ची अमिया का मजा लेगी, फिर पेड़ पे चढ़ के बाग़ में आम खायेगी, " मैंने सास को कस के दुबका के समझाया
" तो,.. जुलाई में स्कूल खुलेगा फिर तो " मेरा सास कुछ जोड़ते हुए बोलीं
" नहीं " मैंने एकदम साफ़ साफ़ बोल दिया,
कौन दस बीस दिन में इतनी पढ़ाई हो जाएगी, सावन का झूला झूल के,
अब तो गाँव में उसकी इतनी सहेलियां हो गयी हैं, मुझसे ज्यादा मेरी नंदों की उससे दोस्ती है और सावन के बाद अभी से सुन लीजिये मैं मायके वायके नहीं जाउंगी आपके पास रहूंगी, उसके जीजा छोड़ आएंगे, वही लाये थे, वही जाएंगे छोड़ने "
उन्होंने चैन की सांस ली और बोला,
"तुम कल अपनी ननदो से, चुन्नी टुन्नी से बोल देना, मैं भी तेरे मरद के मामी से बात कर लुंगी, छुटकी और वो दोनों रहेंगी तो थोड़ा, "
लेकिन मैं समझ रही थी वो असल में क्या पूछना चाहती थी , " छुटकी, वापस कब लौटेगी "
" बस दो तीन दिन में आ जायेगी आपकी लाड़ली, लेकिन एक बात साफ़ बोल रही हूँ अभी से सोयेगी आप के ही साथ। अभी भी वो अकेली नहीं सो पाती। असल में कबड्डी में "
मैंने समझाया की क्यों मैंने समझ बूझ के अभी छुटकी को घर से दूर रखा है।
सास की नजर बहुत तेज थी, कबड्डी में अम्पायर भी थी और वो नहीं होती तो हम मैच कभी नहीं जीतते,
हँसते हुए बोलीं, मैं समझ गयी थी तभी जब गितवा खुदे गिर गयी और इतना जल्दी हार मान गयी,
" एकदम, तो बस गितवा बोली थी की दो तीन दिन छुटकी उसके साथ, उसका भाई जमाने बाद किसी पे मोहाया था, तो मैं भी मान गयी। छुटकी से गितवा की दोस्ती भी खूब है, तो कल मिली थी छुटकी गीता दोनों, दोनों बोली दो तीन दिन और,... तो मैं मान गयी तो बस परसो नर्सो
सास ने चैन की सांस ली और करवट बदल के सो गयी,
लेकिन असली बात मैंने उन्हें बताई नहीं, क्यों मैं छुटकी को घर से बाहर रखना चाहती थी।
इन पांच दिनों में तो मैं छुटकी की छाया भी इस घर पर नहीं पड़ने देना चाहती थी और जब गितवा बोली, तीन दिन के लिए छुटकी, उस के साथ, और मैंने छुटकी का मुंह देखा तो उस का भी मुंह चमक रहा था, गितवा से उसकी पक्की दोस्ती हो गयी थी।
और मैंने हाँ कर दिया, हाँ बस ये बात मैं, गीता और छुटकी जानते थे, फिर जब अम्पायरों ने गीता के साथ छुटकी को भी फाउल करने के लिए आउट कर दिया, तो बस उन दोनों की चांदी हो गयी।
मैच ख़तम होने का इन्तजार किये बिना दोनों फुर्र, गितवा छुटकी को लेकर चम्पत हो गयी, अपने भाई से मिलवाने।
मैं इस लिए कबड्डी के बाद से ही नहीं चाहती थी की छुटकी घर आये,
और गीता के कहने से मेरा एक पंथ दो काज हो गया, हम कबड्डी मैच भी जीत गए जो बिना गितवा के साथ के मुश्किल था और दूसरी बात कबड्डी के बाद जो मस्ती हुयी उसी में तो मैंने ननद से कबुलवाया की मेरे मर्द के नीचे वो आएँगी, उसी शाम को होलिका माई ने ननद के पांच दिन के अंदर गाभिन होने का आशीर्वाद दिया और उसी रात से मेरे मरद ने अपनी सगी बहन को,...
और छुटकी होती घर में तो उससे ये सब बात छिपानी मुश्किल थी।
मेरा मरद मेरा मरद है, चाहे जो करे, लेकिन छुटकी अभी बच्ची है, कहीं उसका मुंह खुल गया, कभी कहीं मजाक में तो, ...मेरी ससुराल की बात मैं नहीं चाहती थी मेरे मायके तक पहुंचे या गाँव में दस मुंह हो, फिर तो जिस घर की इज्जत को तोप ढांक के रखने का काम मेरा था, वो सब गड़बड़ हो जाता। सास से ज्यादा मेरी जिम्मेदारी घर की इज्जत की, और छुटकी बडंबोली, अभी बच्ची ही तो है, कहीं मजाक मजाक में ही तो सब गड़बड़
मेरे ननद और मेरे मरद की बात खाली हम तीनो के बात थी, मैं, मेरी ननद और मेरा मरद,
उस रात तो सास भी घर में नहीं थी, फिर छुटकी कही मेरे मायके में जा के गलती से ही उसकी मुंह से ये बात निकल जाती की उसके जीजू.////
मजाक की बात और है सब लोग मर्दों को उनकी बहन से जोड़ के चिढ़ाते हैं लेकिन,... घर की इज्जत कच्ची मिटटी का घड़ा है और बहू का पहला काम है घर की इज्जत, घर का नाम
तो बस एक बार ननद चली जाए उसके बाद एक दो दिन के अंदर मैं जाके छुटकी को ले आउंगी।
और छुटकी के घर में रहने से एक और दिक्कत थी बल्कि सबसे बड़ी दिक्क्त, मेरे ननदोई जी।
गुड़ से चींटे को दूर कर सकते हैं लेकिन कच्ची अमिया से किसी मरद को दूर रखना वो भी मेरे ननदोई ऐसे, बहुत मुश्किल होता, और पांच दिन तो मुझे ननदोई जी की छाया से भी नन्द पर पड़ने भी नहीं देनी थी, बड़ी मुश्किल से कभी हस्पताल की नर्स तो कभी, और छुटकी घर में रहती तो उसके आगे कौन हस्पताल की नर्स को पूछता, और वो घर में गुड़ पे मक्खी की तरह भिनकते रहते और मेरा ननद को गाभिन कराने का सब प्लान बेकार हो जाता
तो बस अब दो चार दिन और
बस एक बार ननद हंसी खुसी विदा हो जाए तो उसके बाद छुटकी को ले आउंगी, मन मेरा भी नहीं लगता लेकिन ये पांच दिन, बस अब कल सुबह,
मेरी भी आँख लग गयी, एक घडी मैं सोई होउंगी मुश्किल से और जब नींद खुली तो रात ने अपने कदम समेटने शुरू कर दिए थे। आसमान जो गाढ़ी नीली स्याही से पुता लगता था अब स्लेटी हो गया था, पेड़ जो सिर्फ छाया लग रहे थे वो थोड़ा बहुत दिखने लगे थे, लेकिन भोर होने में अभी भी टाइम था, तभी कुछ आहट सी हुयी, दरवाजा खुलने बंद होने की, और मुझे याद आया आज भोर होने के पहले करीब चार बजे ही इन्हे खेत पे जाना था, गेंहू की कटनी की तैयारी के लिए अभी हफ्ता दस दिन बाकी था कटनी शुरू होने में और कटनी तो एक पहर रात रहते शुरू हो जाती,
मैंने निकल के दरवाजा बंद किया और सीधे ननद के कमरे में।
एक घडी मैं सोई होउंगी मुश्किल से और जब नींद खुली तो रात ने अपने कदम समेटने शुरू कर दिए थे।
आसमान जो गाढ़ी नीली स्याही से पुता लगता था अब स्लेटी हो गया था, पेड़ जो सिर्फ छाया लग रहे थे वो थोड़ा बहुत दिखने लगे थे, लेकिन भोर होने में अभी भी टाइम था,
तभी कुछ आहट सी हुयी, दरवाजा खुलने बंद होने की, और मुझे याद आया आज भोर होने के पहले करीब चार बजे ही इन्हे खेत पे जाना था, गेंहू की कटनी की तैयारी के लिए अभी हफ्ता दस दिन बाकी था कटनी शुरू होने में और कटनी तो एक पहर रात रहते शुरू हो जाती,
मैंने निकल के दरवाजा बंद किया और सीधे ननद के कमरे में।
ननद थेथर पड़ी थी।
हिलने को कौन कहे, आँख खोलने की ताकत नहीं लग रही थी, मेरे मर्द ने आज अपनी बहिनिया को कुचल के रख दिया था, जाँघों पर, मेरे मरद के वीर्य के थक्के पड़े थे, बुर से अभी भी बूँद बूँद कर मलाई रिस रही थी।
मैंने उनका हाथ पकड़ के सहारा देकर उठाया, उनकी मुस्कराती आँखों ने मेरे बिन पूछे सवाल को समझ लिया था, बुदबुदाते बोलीं,
' पूरे पांच बार, हिला नहीं जा रहा है "
नीचे पड़ी साडी उठा के बस अपने बदन पे उन्होंने डाल लिया, लेकिन अबकी उन्होंने जो अपनी दीये जैसे बड़ी बड़ी आँखों को उठा के देखा मैं उनका डर समझ गयी, बस हाथ दबा के, अपनी ओर दुबका के मैंने बिस्वास दिलाया, बिन कहे,
' होलिका माई की बात याद रखिये बस'
कुछ देर में हम लोग कच्चे आंगन में जहाँ पांच दिन पहले रात में मैंने ननद ने बच्चे वाली पट्टी से चेक किया था, साथ साथ मूत के, दोनों की एक लाइन, न मैं गाभिन न वो। आज फिर उकडू मुकड़ू हम दोनों बैठ गए, जाँघे फैला के, ननद के जाँघों के बीच मैंने गुदगुदी लगाई, और छेड़ा,
" अरे मूता कस के, रोकी काहें हो "
पहले तो एक दो बूँद, फिर तेज धार, अब ननद चाह के भी रोक नहीं सकती थीं,
बस मैंने उस जांच वाली पट्टी को, जैसे आशा बहु ने समझाया था सीधे मूत की धार में, और फिर हटा लिया, और मैं भी ननद के साथ
जब हम दोनों उठे, तो बड़ी देर तक मैं वो जांच पट्टी हाथ में लिए देवता पित्तर, होलिका माई की दुहाई, फिर खोल के देखा, दो लाइन लग तो रही थी,
ननद परेशान का हुआ, लेकिन आंगन के उस कोने में अँधेरा सा था, जिधर रौशनी थी, हम दोनों उधर आये,
भोर बस हुआ चाहती थी, हलकी सफेदी सी लग रही थी, एकाध चिड़िया चिंगुर बोलने लगे थे,
ननद को मैंने दूर कर दिया और अब साफ़ साफ़ देखा,
पक्का दो लाइन,
मेरी मुस्कान से ही वो समझ गयीं, एक बार पूरब मुंह हो के मैंने हाथ जोड़ा और दौड़ के ननद को बाँहों में भर लिया और वो मारे ख़ुशी के चिल्लाई,
" भौजी, हमार भौजी.... "
ख़ुशी के मारे न मुझसे बोला जा रहा था न मेरी ननद से, जैसे छोटे छोटे बच्चे आंगन में बादल आने पर गोल गोल घूमते हैं हाथ फैला के, गोल गोल चक्कर काटते हुए बस हम दोनों ननद भौजाई, उसी तरह
फिर मैंने अपनी ननद को बाहों में भर लिया, क्या कोई मर्द किसी औरत को दबोचता होगा, और कस कस के उनको चूमते, होंठों को चूसते बोली,
" मिठाई खाउंगी, पेट भर, "
" एकदम खियाइब लेकिन तबतक नमकीन खारा ही, "
सच में पक्की बदमाश ननद, और मेरा सर खींच के अपनी जाँघों के बीच, जहां अभी भी, लेकिन कौन भौजाई ननद क रसमलाई छोड़ती है, जो मैं छोड़ती, बस बिना ये सोचे की वहां अभी,
कस कस के चूसने चाटने लगी, और फिर दोनों फांको को फैला के ननद की चूत से बोली,
" अरे चूत महरानी, आपकी जय हो, जउन बढ़िया खबर आप दिहु, जउने चूत में हमरे मरद क लंड गपागप गया, जेकर मलाई खाऊ, ओहि चूत में से नौ महीने के बाद अँजोरिया अस गोर गोर बिटिया हो, खूब सुन्दर "
नन्द मेरी बात सुन के खिलखिला रही थीं, हंस रही थीं, लेकिन हँसते खिलखिलाते आगे की बात मेरी ननद ने ही पूरी की,
" और ओह बिटिया की चूत में हमरे भाई क,हमरे भौजाई के मरद क लंड गपागप सटासट जाए "
और मैंने नन्द को अँकवार में लेटे लेटे ही भेंट लिया।
थोड़ी देर में हम दोनों बोलने लायक हुए तो उसी हालत में लथर पथर,... सास के सामने हम दोनों,
हम दोनों को देख के वो समझ गयीं खुशखबरी, उनके चेहरे की चमक मुस्कान रुक नहीं रही थी, उन्होंने हाथ बढ़ाया और मेरी ननद उनकी बाहों में
देर तक माँ बेटी भेंटती रही, न बेटी बोली न माँ, बस माँ कभी बेटी के खुले बालों पे हाथ फेरतीं, कभी पीठ सहलातीं, फिर उन्होंने मेरी ओर हाथ बढ़ाया,
लेकिन मैंने मना कर दिया, " आज आपकी बात नहीं मानूंगी "
उन्होंने मेरे गौने उतरने के अगले दिन ही मना कर दिया था की मैं उनके गोड़ न छूउ, वो मुझे बेटी की तरह ले आयी हैं।
घूंघट माथे से नीचे लाकर, दोनों हाथों से आँचल पकड़ के माथे को सास के दोनों पैरों पर लगाकर पांच बार मैंने सास के पैर छुए और बस यही मन में मांग रही थी,
" मेरी ननद खुश रहे, नौ महीने में बिटिया ठीक से हो अच्छे से हो, किसी की नजर न लगे हमरे ननद के सुख पे "
सास ने मुझे पकड़ के उठाया और गले लगाया, फिर हम दोनों को हड़काते समझाते बोलीं,
" अच्छा अब चलो, जल्दी से ननद भौजाई नहा धो के तैयार हो के, भोरे मुंह, पहले होलिका माई के स्थान पे, फिर सत्ती माई क चौरा और दोपहरिया क जाके देवी माई के यहाँ मिठाई चढ़ा के, और सांझी के हम बरम बाबा के हलवा पूड़ी चढ़ा के आइब "
हम ननद भौजाई हँसते बिहँसते जैसे ही कमरे से बाहर ही निकल रहे थे की सास ने फिर टोका,
" और एक बात, आज से ही सोहर जिन गावे लगा "( सोहर - बच्चे के जन्म पर गाये जाना वाला गीत )
ननद मेरी खूब तैयार हो के, लाल रंग की चूनर, पैरों में कड़ा छडा हजार घूंघर वाली पाजेब, हंसती बिहँसती, और उनकी ख़ुशी में सब चिड़िया ऐसे चहचहा रही थीं, पेड़ ऐसे झूम रहे थे, जैसे सास ने हम दोनों को तो अभी से सोहर गाने को मना किया था,... पर प्रकृति पर किसकी पाबंदी चलती है।
भोर बस हुआ चाहती थी।
रात की काली चादर हटा के उषा भी जल्दी जल्दी अपने पैरों में महावर लगा के, पायल झमकाती, आसमान के आंगन में उतरने की तैयारी कर रही थी।
और हम ननद भौजाई तेज कदम बढ़ाते, हम दोनों के कदम आज जमीन पर पड़ नहीं रहे थे, ननद ऐसी खुश की जैसे दुनिया की पहली औरत हों जो गाभिन हुयी हो, और उनकी ख़ुशी छलक के मुझे भी भीगा रही थी।
और उस ख़ुशी कब हम दोनों घर से निकले कब होलिका माई के स्थान पहुँच गए, पता ही नहीं चला।
एकदम घना, खूब बड़ा पुराना आम का एक पेड़ उसके नीचे जैसे अपने मिटटी इकट्ठी हो के थोड़ी ऊँची जगह, जहाँ बैठ के होलिका माई, बरस फल बताती थीं, आशीष देती थीं। आम के पुराने पेड़ के बगल में जैसे यार दोस्त हों पुराने महुआ और पाकड़ के पेड़, थोड़ी ही देर पर एक खूब बुजुर्ग बरगद का पेड़, और हम दोनों बस उकंडु मुकड़ू बैठ गए, ननद हंसती बिहँसती।
यहाँ कभी कुछ चढ़ाया नहीं जाता, माई के घर कोई मिठाई ले के जाता है क्या ?
बस मनभर बतिया लो, दुःख सुख कह लो, वो भी अक्सर बिना बोले। माई के आगे बिटिया को, खास तौर से ससुरातिन बिटिया को कुछ बोलना नहीं पड़ता, माई चेहरा देख के सुख दुःख समझ जाती है।
ननद तो गाँव की बिटिया, माई क दुलारी, उस दिन ही गोद में बैठा के माई ने कैसे उनको दुलराया था, गाल सहलाया था, कोख पे हाथ रख के बता दिया था जल्द ही भरेगी ये,
इसलिए मेरी सास ने बोला था सबसे पहले होलिका माई का स्थान,
लेकिन मैं आज एकदम गाँव की बहू, हल्का सा घूँघट, और अंचरा हाथ में लेके बार बार माई का गोड़ छू रही थी, मेरी इच्छा आँख से आंसू बनकर निकल रही थी, माई के गोड़ धो रही थी,
' हमरे ननद को कुछ न हो, उसकी कोख हरदम हरी रहे, उसकी कोख को कुछ न हो, नौवें महीने सोहर हो, घर परिवार उनका बढे, खुस रहे'
हम जब उठे, तो भरहरा कर आम के बौर, गिरने लगे उसी पेड़ से और बिहँसती ननद ने अंचरा फैला के रोप लिया, एक एक बौर,।
उस पेड़ के बौर गाँव में सबसे पहले लगते हैं सबसे देर तक रहते हैं, लेकिन मजाल है की कभी कोई गिरे, हाँ जिस दिन होलिका माई आती हैं उस दिन की बात अलग है, पर आज, होलिका माई का आसीर्बाद, संदेस,
मैं हूँ न, कुछ नहीं होगा मेरी बिटिया को,
और ननद से ज्यादा मैं मुस्करा रही थी उन बौरों के मतलब का अंदाजा लगा के,
कोख हरदम हरी रहे, मतलब एक बिटिया निकले और दूसरी का नंबर लगे,
सत्ती माई सत्ती माई का चौरा थोड़ा दूर था, गाँव के सिवान के पास, जहाँ पठानटोला शुरू होता था एकदम वहीं, वहां भी एक छोटी सी बगिया थी उसी के बीच,
हमारी सास बताती हैं, उनके गौने उतरने के बहुत पहले की बात, उनकी सास ने बताया था, हमारी सास के अजिया ससुर और सुगना के ससुर, बाबू सूरजबली सिंह के बाप, गाँव वाले बोले की माई का चौरा कच्चा है उसको पक्का करवाने को, सूरजबली सिंह के पिता जी और बड़े सैय्यद, हिना के बाबा में बड़ी दोस्ती थी। बात सिर्फ इतनी थी की वो बगिया और जमीन पठानटोला में पड़ती थी, बड़े सैयद की,
वो दोनो लोग गए, बड़े सैयद, हिना के बाबा के पास, की गाँव के लोग चाहते हैं ये दोनों लोग करवा देंगे, बस जमीन बड़े सैय्यद की है इसलिए उनकी इजाजत,
" नहीं देंगे, ऊ का बोले, इजाजत, का कर लोगे, पठान क लाठी देखो हो, दोस्ती न होती, कोई और बोलता तो मार गोजी, मार गोजी, "
मारे गुस्से के बड़े सैयद का चेहरा लाल, और उनके गुस्से के आगे तो जिले का अंग्रेज कलेक्टर भी,
" क्यों दें, इजाजत " बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से निकला फिर वो अपनी बोली में आ गए, ज्यादा देर खड़ी बोली में बात करने से मुंह दर्द करने लगता था,
" तू दोनों से पहले पैदा हुए है, यहाँ गाँव क मट्टी हम जानते हैं, माना हम तो पैदायसी बुरबक है तो तुंहु दोनों क माथा खराब है, सत्ती माई खाली तोहार हैं का,... हम पहले पैदा हुए तोहसे, तो तोहसे पहले हमार हैं, अरे ये सोचा गाँव में ताउन पड़े, प्लेग हैजा हो तो खाली एक पट्टी में होगा दूसरी में नहीं होगा, सूखा पड़ेगा तो हमार खेत नहीं झुरायेगा, ....बचाता कौन है, माई न ? "
फिर बड़े सैयद ने अपना फैसला सुना दिया,
चौरा पक्का होगा, जैसा वो लोग चाहते हैं एकदम वैसा बल्कि उससे भी अच्छा, लेकिन बनायेंगे बड़े सैय्यद।
और तबसे सावन क पहली कढ़ाही, पठानटोले की औरतें चढाती हैं।
और मोहर्रम भी, दस दिन तक पूरे बाईसपुरवा में कोई शुभ काम, गाना बजाना सिंगार पटार, सब बंद, मैंने अपनी सास से पूछा भी तो थोड़ा प्यार से झिड़कते, थोड़ा समझाते बोलीं, " अरे घरे में मेहरारुन कुल सोग किये हों, बगल में,... गाना बजाना अच्छा लगता है का। "
सुबह हो रही थी, आसमान एकदम लाल था, सिंदूरी मेरी ननद के मांग ऐसा, बगल में पतली सी चांदी की हँसुली ऐसी नदी, वहां से साफ़ साफ़ दिखती थी। और झप्प से लाल लाल गोल सूरज नदी में से जैसे नहा के, जैसे कोई लड़का गेंद जोर से उछाल के फेंक दे, सूरज सीधे आसमान में,
हम दोनों ननद भौजाई ने अंचरा पकड़ के सूरज देवता को हाथ जोड़ा।
सुबह हो गयी थी।
सत्ती माई का चौरा, खूब लीपा पोता, हम दोनों लोगो ने गोड़ छुआ, वहां भी ढेर सारे पेड़ों का झुरमुट, खूब घना , जगह जगह ईंटो के चूल्हे, कहीं कहीं चूल्हे की राख, कड़ाही चढाने के निशान,
मैंने अंचरा फैला कर, अपनी ओर ननद दोनों की ओर से मनौती मानी,
" माई नौवें महीना खुशबरी होई, सुन्नर सुन्नर बिटिया होई तो बरही के दिन पहले यही कड़ाही चढ़ाउंगी "
और जब मैंने सर ऊपर उठाया, तो उन पेड़ो से भी पुरानी, एक बूढी माई, बाल सारे सफ़ेद, भौंहों तक के, देह थोड़ी झुकी, कृशकाय, और दूध सी मुस्कान,
ननद के सर पर वो खूब दुलार से हाथ फेर रही थी, मुझे देख कर मुस्करायीं, तो मैंने फिर एक बार घूघंट थोड़ा सा नीचे खींचा, अंचरा से दोनों हाथ से उनके दोनों गोड़ पांच बार छुए, आँखे मेरी बंद लेकिन मुझे बहुत हल्की हलकी आवाज सुनाई दे रही थी
" कउनो परेशानी नहीं होगी, जउन किहु, एकदम ठीक, घरे क परेशानी से बचाने की पहली जिम्मेदारी बहू की, जउने दिन चौखट लांघी, बहू ही घर की चौखट, कउनो परेशानी घुसने नहीं देगी, हम हैं न "
लेकिन जब मैंने आँखे खोली तो वो एकदम नहीं बोल रही थी, खाली उनका हाथ मेरे सर को सहला रहा था।
फिर उन्होंने एक काला धागा निकाला, और बाँध वो ननद के गोरे गोरे हाथ पर रही थीं, लेकिन बोल मुझसे रही थीं,
" नौ महीने तक ये धागा ऐसे ही, कभी भी उतरना नहीं चाहिए, खाली तू , भौजाई इसको खोल सकती हो। बरही में जब कढ़ाही चढाने आना तो हमार धागा, हमें दे देना, कउनो परेशानी झांक भी नहीं सकती जब तक ये धागा बंधा रहेगा। "
मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,
" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”
"हाथ टूट जाएगा, ....भस्म हो जाएगा, ....अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। "
मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,
जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।