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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, मजे ले, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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Didi ab dhood main jamun dal diya dahi tu jam hi jaygiare abhi 9 mahine ka time hai .
thanks so much you are enjoying the story and regularly commenting on the story
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बहुत बहुत धन्यवादशानदार !
आनन्द आ गया।
वाह, मजा आ गया।
1000 पृष्ठों की बधाई
ekdam sahi kahaa aapneDidi ab dhood main jamun dal diya dahi tu jam hi jaygi
thanksKomal Di Komal Di
YOU ARE Osome .. Try to Write Some thing On Realtionship, Social Media world And toxicity ... This can be benefecial for young comers teen .. how to be safe relationship
And i Know no one can do more better than you .. your charming younger brother reyansh
100 part men aapke saval ka jaavb milega bas do parts aur thoda sa wait aur saath diijye bahoot bahoot dhanyvaad.Komal Ji, bahot din ke baad forum par aya, story to read kar leta hu but comment ni de pata. As usual awsm. Kuch sawal hai kuch sujhav hai. 1 ) kya hero ki mother ko pata hai, bete aur beti ke bare me isiliye wo kuch ni bol rahi ? sujhav - Renu ka milan jab uske bhai se karwa diya to uski mother se milan karwane ka neg kyu ni manga, apne sasu ma se to maang liya. usse bhi neg mango. aur Naina ka bhi kuch karwa do. bechari sukhi padi hai.
Next part bas thodi der menYe wala update bahut accha tha, keep updating
Super update. Akhir Komal ki mehnat kaam aa gai.सत्ती माई
सत्ती माई का चौरा थोड़ा दूर था, गाँव के सिवान के पास, जहाँ पठानटोला शुरू होता था एकदम वहीं, वहां भी एक छोटी सी बगिया थी उसी के बीच,
हमारी सास बताती हैं, उनके गौने उतरने के बहुत पहले की बात, उनकी सास ने बताया था, हमारी सास के अजिया ससुर और सुगना के ससुर, बाबू सूरजबली सिंह के बाप, गाँव वाले बोले की माई का चौरा कच्चा है उसको पक्का करवाने को, सूरजबली सिंह के पिता जी और बड़े सैय्यद, हिना के बाबा में बड़ी दोस्ती थी। बात सिर्फ इतनी थी की वो बगिया और जमीन पठानटोला में पड़ती थी, बड़े सैयद की,
वो दोनो लोग गए, बड़े सैयद, हिना के बाबा के पास, की गाँव के लोग चाहते हैं ये दोनों लोग करवा देंगे, बस जमीन बड़े सैय्यद की है इसलिए उनकी इजाजत,
" नहीं देंगे, ऊ का बोले, इजाजत, का कर लोगे, पठान क लाठी देखो हो, दोस्ती न होती, कोई और बोलता तो मार गोजी, मार गोजी, "
मारे गुस्से के बड़े सैयद का चेहरा लाल, और उनके गुस्से के आगे तो जिले का अंग्रेज कलेक्टर भी,
" क्यों दें, इजाजत " बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से निकला फिर वो अपनी बोली में आ गए, ज्यादा देर खड़ी बोली में बात करने से मुंह दर्द करने लगता था,
" तू दोनों से पहले पैदा हुए है, यहाँ गाँव क मट्टी हम जानते हैं, माना हम तो पैदायसी बुरबक है तो तुंहु दोनों क माथा खराब है, सत्ती माई खाली तोहार हैं का,... हम पहले पैदा हुए तोहसे, तो तोहसे पहले हमार हैं, अरे ये सोचा गाँव में ताउन पड़े, प्लेग हैजा हो तो खाली एक पट्टी में होगा दूसरी में नहीं होगा, सूखा पड़ेगा तो हमार खेत नहीं झुरायेगा, ....बचाता कौन है, माई न ? "
फिर बड़े सैयद ने अपना फैसला सुना दिया,
चौरा पक्का होगा, जैसा वो लोग चाहते हैं एकदम वैसा बल्कि उससे भी अच्छा, लेकिन बनायेंगे बड़े सैय्यद।
और तबसे सावन क पहली कढ़ाही, पठानटोले की औरतें चढाती हैं।
और मोहर्रम भी, दस दिन तक पूरे बाईसपुरवा में कोई शुभ काम, गाना बजाना सिंगार पटार, सब बंद, मैंने अपनी सास से पूछा भी तो थोड़ा प्यार से झिड़कते, थोड़ा समझाते बोलीं, " अरे घरे में मेहरारुन कुल सोग किये हों, बगल में,... गाना बजाना अच्छा लगता है का। "
सुबह हो रही थी, आसमान एकदम लाल था, सिंदूरी मेरी ननद के मांग ऐसा, बगल में पतली सी चांदी की हँसुली ऐसी नदी, वहां से साफ़ साफ़ दिखती थी। और झप्प से लाल लाल गोल सूरज नदी में से जैसे नहा के, जैसे कोई लड़का गेंद जोर से उछाल के फेंक दे, सूरज सीधे आसमान में,
हम दोनों ननद भौजाई ने अंचरा पकड़ के सूरज देवता को हाथ जोड़ा।
सुबह हो गयी थी।
सत्ती माई का चौरा, खूब लीपा पोता, हम दोनों लोगो ने गोड़ छुआ, वहां भी ढेर सारे पेड़ों का झुरमुट, खूब घना , जगह जगह ईंटो के चूल्हे, कहीं कहीं चूल्हे की राख, कड़ाही चढाने के निशान,
मैंने अंचरा फैला कर, अपनी ओर ननद दोनों की ओर से मनौती मानी,
" माई नौवें महीना खुशबरी होई, सुन्नर सुन्नर बिटिया होई तो बरही के दिन पहले यही कड़ाही चढ़ाउंगी "
और जब मैंने सर ऊपर उठाया, तो उन पेड़ो से भी पुरानी, एक बूढी माई, बाल सारे सफ़ेद, भौंहों तक के, देह थोड़ी झुकी, कृशकाय, और दूध सी मुस्कान,
ननद के सर पर वो खूब दुलार से हाथ फेर रही थी, मुझे देख कर मुस्करायीं, तो मैंने फिर एक बार घूघंट थोड़ा सा नीचे खींचा, अंचरा से दोनों हाथ से उनके दोनों गोड़ पांच बार छुए, आँखे मेरी बंद लेकिन मुझे बहुत हल्की हलकी आवाज सुनाई दे रही थी
" कउनो परेशानी नहीं होगी, जउन किहु, एकदम ठीक, घरे क परेशानी से बचाने की पहली जिम्मेदारी बहू की, जउने दिन चौखट लांघी, बहू ही घर की चौखट, कउनो परेशानी घुसने नहीं देगी, हम हैं न "
लेकिन जब मैंने आँखे खोली तो वो एकदम नहीं बोल रही थी, खाली उनका हाथ मेरे सर को सहला रहा था।
फिर उन्होंने एक काला धागा निकाला, और बाँध वो ननद के गोरे गोरे हाथ पर रही थीं, लेकिन बोल मुझसे रही थीं,
" नौ महीने तक ये धागा ऐसे ही, कभी भी उतरना नहीं चाहिए, खाली तू , भौजाई इसको खोल सकती हो। बरही में जब कढ़ाही चढाने आना तो हमार धागा, हमें दे देना, कउनो परेशानी झांक भी नहीं सकती जब तक ये धागा बंधा रहेगा। "
मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,
" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”
"हाथ टूट जाएगा, ....भस्म हो जाएगा, ....अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। "
मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,
जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।
Thanks next part soonSuper update. Akhir Komal ki mehnat kaam aa gai.